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Friday, May 25, 2012

मुन्नाजीक मैथिली विहनि कथाक संग्रह “प्रतीक” - समीक्षक गजेन्द्र ठाकुर

मुन्नाजीक मैथिली विहनि कथाक संग्रह “प्रतीक” विहनि कथाक प्रतीकात्मकताक प्रतीक बनि गेल अछि। बिरारसँ विहनि उपारि धान आ मेरचाइ रोपबाक प्रक्रिया ऐ संग्रहक सभ कथा सभमे देखमामे आओत। तेँ ई छिटुआ नै रोपुआ धानक खेती बनि गेल अछि आ तीन मोनक कट्ठा सभ गोटे सुनैत होएब, मुदा एतऽ देखब। विहनि कथा हास्य कणिका नै अछि, ई कथाक जड़ि अछि बीआ अछि, छिटुआ धानसँ भेल पौध आ विहनिसँ भेल पौधमे बड्ड अन्तर छै। छिटुआ धान फौदाइ नै छै। से हास्य कणिका बिठुकट्टा होइ छै, ऐ मे हँसी अबै छै, मुदा ओ छिटुआ धान जेकाँ अछि। दोसर बेर ओइ बिठुकट्टा कथाकेँ, हास्य कणिकाकेँ सुनब तँ ने हँसिये लागत आ नहिये छगुणते। तखन जँ बिनु सिझने विहनि कथा लिखाएत, बिनु सिझेने विहनि कथा लिखब तँ लतीफा बनबे टा करत। आ हास्य कणिका विहनि, लघु आ दीर्घ कथा वा उपन्यासमे लेखकीय सामर्थ्यक अनुसार प्रयुक्त होइत रहल अछि आ होइत रहत। 

मुदा उसना धानसँ बिराड़मे विहनि नै बहराएत। से बिनु उसीनने बीआ बाउग करऽ पड़त। बिनु उसीनने सिझाबऽ पड़त आ तइ लेल बेशी मेहनति करऽ पड़त। आ बीआ छीटब तैयो सभ धानसँ विहनि नै बहराएत किछु सँ नहियो बहराएत। से विहनि कथाकेँ सफल हेबाक प्रतिशत कम छै, लघुकथाक सफलताक प्रतिशत कने बेशी छै, दीर्घ-कथा आ उपन्यासक सफलताक प्रतिशत आर बेशी छै। मुदा उपन्यास झंझटिया काज छै, मोन घोर कऽ दै छै, बेशी समए लागै छै। विहनि कथा धाँइ-धाँइ लिखाइ छै। मुदा जहिना कविता लेल आवेग चाही तहिना विहनि कथा लेल, नै तँ ने धाँइ-धाँइ लिखेबे करत आ पद्यक गद्य आ गद्यक पद्य बनबाक आशंका सेहो रहत। सभ उपन्यासकार कतेक रास विहनि उपाड़ि कऽ सजबैए, उपन्यास गद्य छिऐ मुदा ओइमे कोनो पात्र जँ गीत गाबऽ लागए तँ ओकरा अहाँ रोकि देबै? जे उपन्यासकार रहैए ओ विहनि देखि उपन्यासक धनखेती देखऽ लगैए, कखनो ओ विहनि कथा लिखियो दैए, फेर लोभ संवरण नै भेलासँ ओइ विहनिक प्रयोग उपन्यासमे, दीर्घकथामे, लघुकथामे सेहो करैए। 

तखन मुन्नाजीक विहनि कथाक की विशेषता। मुन्नाजी हमर पड़ोसी सुरजु भाइ छथि, ओ बिराड़मे जतेक बीआ लगबै छथि ओकर दशो प्रतिशत अपन खेतमे नै लगा पबै छथि। बाढ़िक इलाका छै से लोकक खेत पड़ल रहि जाइ छै बिनु विहनिक। से सुरजू भाइक पड़ोसी ओइसँ लाभ उठबै छथि कारण बाढ़िमे कखनो काल तीन-तीन बेर धनरोपनी होइ छै, एक बेर रोपू बाढ़ि आएल, दोसर बेर रोपू फेर बाढ़ि आएल। आ सुरजू भाइ छथि तेँ लोक निश्चिन्त रहैए। आ मुन्नाजीक विहनि कथा सेहो निश्चिन्त करैए। “रेवाज” विहनि कथा लिअ। गाम घरमे मसोमातकेँ लोक डाइन कहै छै मुदा मुइलाक बाद घराड़ी लेल ओकरा आगि देबा लेल उपरौंझ होइ छै। एतऽ मुदा विहनि लेल जे बीआ छीटल गेल छै से कने उच्च स्तरक छै। एतऽ मृतककेँ बेटा नै छै मुदा पत्नी आ बेटी छै। से जखन मृतकक भाइ कोहा उठबऽ चाहैए तँ विधवा ओकरा रोकै छै आ बेटीकेँ कोहा उठबैले कहै छै। आ संग के देत ऐ नव रेवाजमे, जे आइयेसँ प्रारम्भ भेल अछि। तखन उत्तरो भेटैए- निपुतराहा सभ। 

तहिना “कमरुनिसा” विहनि कथा अछि। हसीना मंजिल सन एकटा आरो श्रेष्ठ उपन्यास ऐ विहनि कथा (सीड स्टोरी)सँ मुन्नाजी नै बना सकै छथि की? कमरुनिसाक पिता रहमान। लहठीक काज जेकाँ दम्मा सेहो ओकर सभक पुश्तैनी वौस्त छलै। कमरुनिसाक अब्बा-अम्मीक जान ई दम्मा लेलकै आ फेर कमरुनिसा… “जिया जरए सगर राति”मे एड्सक समस्या आ लिविंग रिलेशनक चर्च अछि तँ “दियाद”मे पनहीक ऊपरसँ चिक्कन चुनमुन हेबाक मुदा नीचाँसँ खलओदार केने जेबाक विवरण देल गेल अछि। “नपना” मे स्त्रीक काजक स्वरूप तय कएल गेल छै। अखनो जनगणना कालमे सरकार घरक काजकेँ आमदनीमे नै जोड़ैत अछि, आ ऐ कथामे अन्त होइए जखन एकटा स्त्रीक चर्च अबैए जे नोकरीयो करैए आ घरक काजो। 

आइ काल्हि जखन लोकक जिनगी गति पकड़ि लेने अछि तखन विहनि कथाक महत्व बढ़ि गेल अछि। मुन्नाजी विहनि कथा लेल समर्पित छथि आ ई संग्रह हुनकर ऐ समर्पणक गुणात्मक अभिव्यक्ति छन्हि। --गजेन्द्र ठाकुर १९ मइ २०१२

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