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Saturday, May 26, 2012

उमेश पासवानक कविता संग्रह “वर्णित रस” -समीक्षक गजेन्द्र ठाकुर

उमेश पासवानक कविता संग्रह “वर्णित रस” 

कविकेँ युवापर भरोस छन्हि, आ तेँ युवाकेँ सम्बोधितो करै छथि आ आह्वानो करै छथि। 

  “हम युवा” कवितामे 
  जाति‍-धर्म मजहब केर नामपर 
षडयंत्र रचैए कि‍यो हमर देशकेँ भीतर आबि‍ कऽ 
आतंकवादक गाछ रोपैए कि‍यो 
  तकर सम्बन्ध हुनकर “जीतक झण्डा” कवितामे 
  जरै जाउ वतनक दुश्मन 
  आगि‍ सुनगाएल करू 
  देखबामे अबैए। ई जे दुश्मन अछि सएह फहरबाबइए जीतक झण्डा 
  जरै जाउ वतन केर दुश्मन 
  आगि‍ सुनगाएल करू 
  जीत केर झंडा फहराएल करू 
  “हम युवा”मे सेहो ओ कहै छथि 
  आतंकवादक गाछ रोपैए कि‍यो 
  भारतवासी शेर छी 
  शेरकेँ मादमे आबि‍ कऽ 
  जगबैए कि‍यो 
  कारण जे देशक युवा छथि से 
छी गोली, हम छी बारूद 
  हमही खंजर तलवार छी 
  तखन ऐ गोली लेल पेस्तौल, बारुद लेल आगि के छथि? ओ छथि युवा जे छथि खंजर आ तलवार। 
  तँ की दुश्मनी आधारित जोश छन्हि हुनकर कविता? नै से नै अछि- 
  जौं दोस्तीतक लेल हाथ बढ़ाएब 
  तँ हमही फूलक माला गला केर हार छी 
  कविकेँ टंगघिच्चा-घिच्चीक खेल नै पसिन्न छन्हि। आ कवि कहै छथि। 
  ऊपरसँ नूनू बौआ 
  भि‍तरे-भि‍तर कहैए बकलेल 
बर्षोसँ देखि‍ रहल छी 
  हर तरहसँ दलि‍तक उपेक्षा 
  बाढ़िक प्रकोप कविकेँ कहबापर विवश करै छन्हि: 
  केना कऽ ऐबेर 
  खेतक आड़ि‍पर जा कऽ 
कहब सेर-बरोबरि‍ 
  उखैर सन बीट 
  समाठ सन सि‍स 

  गबहा संक्रान्तिपर कविकेँ कहऽ पड़ै छन्हि: 
  केना कऽ गुजर चलत 
  उपजा कऽ कास-पटेर 
  कोसीकेँ कहै छथि: 
  कऽ देलि‍ऐ मि‍थि‍लाकेँ दू-भागमे अहाँ 
  पूबमे सहरसा-सुपौल 
  पछि‍ममे मधुबनी-दरभंगा 
  बि‍चमे अगबे बालु आ धूल 

  मुदा फेर निर्मल्लीक पुल बनबाक चर्च: 
कहू आब कतेक चुप रहब 
ऐबेर हम बना देलौं पुल 

  पढ़ल-लिखल दलितक सामान्य दलितक प्रति व्यवहारपर जतेक अम्बेडकर दुखी रहथि ततबे चिन्ता उमेश पासवानकेँ सेहो छन्हि: 
  स्वयं दलि‍त छी 
  दलि‍तक दरद जनै छी 
  कि‍छु व्यक्ति ‍क कि‍रदानीसँ 
  चकि‍त छी 
  दलि‍त भऽ कऽ ओ 
  व्यक्ति अपनो समाजकेँ बि‍सरि‍ गेल 
  अप्पन भाषा-भेष छोड़ि‍ कऽ 
दोसरक रंग-ढंगमे ढलि‍ गेल 
  समाजसँ पुछै छथि: 
  हम दलि‍त छी 
  मेहनति‍-मजदुरी कए कऽ 
  बि‍तबै छी अपन जीवन 
  तैयो जरैत अछि‍ 

  कवि, जगदीश प्रसाद मण्डल जी सँ प्रभावित छथि आ से ओ एकटा कविताक माध्यमे कहै छथि: 
  हम छी सेवक मैथि‍ल 
जगदीश बाबूक चेला नै 
  हमरा लड़ू खि‍यौलनि‍ 
  नै देलथि‍ मि‍श्रीक ढेला 

  मुदा हास्यसँ ओ दूर नै गेल छथि: 
झोटा झोटौबलि हेतौ नटि‍नि‍या 
  तोरा संग अही बेर गे 
  वसन्तक आगमनसँ मात्र फूल-पात नै आन-आन जीवनसँ सम्बन्धित वौस्तपर ध्यान जाइ छन्हि हुनकर:
  
  गाछ-वृक्षमे नव कनोजरि‍क संग 
  मोजर फूल ि‍नकलैत अछि‍ 
  खेतमे गहुम-खेसारी ति‍सी-मसुरी तोरीक फूलसँ 
  समुच्चाू बाध गमकैत अछि‍ 
  मधुमाछी लगौने सेनुरि‍या आमक गाछपर 
छत्ता देखि‍ कऽ लुक्खी डरैत अछि‍ 
  अरहुलक फूल चूसि‍ कऽ 
फुलचोभी चि‍हुकैत अछि‍ 
  कौआ आ कोइलीमे 
  भेल अछि‍ कनाइर 
  पानि नै चलबाक गप नै बुझाइ छन्हि हुनका: 
  देहसँ देह केना छुबाइ छै 
  कि‍एक नै चलैए हमर छुअल पानि‍ यौ 
  कोन जुलुमक सजा हमरा 
  दऽ रहल छी कि‍अए बुझै छी 
  हमरा अपमानी यौ 
  सुदामा आ कृष्णक दोस्तीकेँ सभ अलग कऽ देलक: 
दुनू दोसकेँ अलग कऽ देलक लोक 
अप्पन रास्ताक दि‍वार जकाँ 
  हँसैत खेलैत...। 
  ई दशा किए भेल? 
  सहलौं सभ कि‍छु सलहेशक संतान रहि‍तो 
जहि‍या तक चुप रहलौं हम 
  कहै छथि: 
  कतेक लि‍खब दलि‍तक बेथा 
  सलहेश गामक संदेश। 
  मुदा की मिथिलाक भाषा संस्कृति ककरो अनकर छी? नै ई तँ हमर छी आ तै पर गर्व करै छथि कवि: 
  हरक पाछाँ बगुला घुमैए 
  हरबाहा जोरसँ बरदकेँ 
  बाबू भैया कहि‍ हँकैए 
  देशक विकास आ नेता पर हुनका आक्रोश छन्हि: 
ऐठामक नेता छै माला-माल 
रोड-सड़ककेँ देखि‍यौ तँ 
कदबा गजार सन छै थाल 
  आ जे बड़का-बड़का राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाइवे, एन.एच.) छै से तकर विवरण किछु एना छै: 
  मौतक चौराहा बनल अछि‍ 
एन.एच भुतहा मोड़। 
  लोकक दशा-दिशापर मुर्दा सेहो चिन्तित अछि: 
  गारल मुर्दा छटपटा रहल अछि‍ 
  भि‍तरसँ अंगुरी 
  अप्पन उठा रहल अछि‍ 
  नारीक कर्मनिष्ठ स्वभावपर हिनकर लेखनी खूब चलल छन्हि: 
  ओमहर बि‍आ जे उखारै छै 
  महि‍ला जन कोइ करै छै, 
  सासु-ननदि‍क नि‍ना-बि‍ना 
  कोइ गबै छै सोहर-समदाैन 
  कवि तुकमिलानीमे सेहो ढेर रास गप कहि जाइ छथि, पंजाबमे होइत मजदूरक पलायनक चर्च देखू: 
  जौं अखार महि‍नामे बुढ़ बड़द, 
  पजरामे दरद 
  पंजाबमे मरद अछि‍ 
  तँ समझू हे गेलहे घर छी। 
  आह्वान करै छथि: 
  साहि‍त्यक दलि‍दर 
  कतेक जुलुम करैए हमरापर 
  कि‍यो तँ बाजू 
  कि‍यो हमरा दि‍ससँ 
  अवाज उठाउ 
  अधिकार तँ चाहबे करी: 
  अप्पन सोल्हनी बला रसा 
  आब नै सुनब हम 
  बर्खा तोड़ि दैए बान्हकेँ आ बना दैए गाम केँ कोसी आ कमला: 
  लधने छल सतहि‍या 
  ढौसाबेंग कि‍ड़ी-मकौड़ी 
  करै छल सोर भुरुकुबा 
  कनी उगल छल चुह-चुहि‍या 
  तँ की कहल जाए ऐ “वर्णित रस” सभकेँ। की कविक वसन्त मात्र फूल-पात देखैए जे मात्र सुगन्ध दैए, आँखिकेँ सुख दैए, मुदा जरल पेटकेँ से नीक लगतै? ते कविक वर्णित वसन्तक रस ओ फल विहीन सुन्दर फूल नै भऽ सकैए, आ से नहिये अछि। दलित विमर्श दलित द्वारा, आ ओइ दलित द्वारा जेकर धुआधजा छै सलहेश सन, नै बिसरल अछि अपन संस्कृति, बोली-वाणी, नै बिसरल अछि सोहर-समदौन। आ से छथि उमेश पासवान। आ जे हुनकर वसन्तकेँ देखबाक, एन.एच.क चौराहाकेँ देखबाक दृष्टि फराक अछि तेँ हुनकर कविता सेहो फराक अछि।
-गजेन्द्र ठाकुर १८ मइ २०१२

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