उमेश पासवानक कविता संग्रह “वर्णित रस”
कविकेँ युवापर भरोस छन्हि, आ तेँ युवाकेँ सम्बोधितो करै छथि आ आह्वानो करै छथि।
“हम युवा” कवितामे
जाति-धर्म मजहब केर नामपर
षडयंत्र रचैए कियो
हमर देशकेँ भीतर आबि कऽ
आतंकवादक गाछ रोपैए कियो
आ तकर सम्बन्ध हुनकर “जीतक झण्डा” कवितामे
जरै जाउ वतनक दुश्मन
आगि सुनगाएल करू
देखबामे अबैए। ई जे दुश्मन अछि सएह फहरबाबइए जीतक झण्डा
जरै जाउ वतन केर दुश्मन
आगि सुनगाएल करू
जीत केर झंडा फहराएल करू
आ “हम युवा”मे सेहो ओ कहै छथि
आतंकवादक गाछ रोपैए कियो
भारतवासी शेर छी
शेरकेँ मादमे आबि कऽ
जगबैए कियो
कारण जे देशक युवा छथि से
ह म छी गोली, हम छी बारूद
हमही खंजर तलवार छी
तखन ऐ गोली लेल पेस्तौल, बारुद लेल आगि के छथि? ओ छथि युवा जे छथि खंजर आ तलवार।
तँ की दुश्मनी आधारित जोश छन्हि हुनकर कविता? नै से नै अछि-
जौं दोस्तीतक लेल हाथ बढ़ाएब
तँ हमही फूलक माला गला केर हार छी
कविकेँ टंगघिच्चा-घिच्चीक खेल नै पसिन्न छन्हि। आ कवि कहै छथि।
ऊपरसँ नूनू बौआ
भितरे-भितर कहैए बकलेल
बर्षोसँ देखि रहल छी
हर तरहसँ दलितक उपेक्षा
बाढ़िक प्रकोप कविकेँ कहबापर विवश करै छन्हि:
केना कऽ ऐबेर
खेतक आड़िपर जा कऽ
कहब सेर-बरोबरि
उखैर सन बीट
समाठ सन सिस
गबहा संक्रान्तिपर कविकेँ कहऽ पड़ै छन्हि:
केना कऽ गुजर चलत
उपजा कऽ कास-पटेर
ओ कोसीकेँ कहै छथि:
कऽ देलिऐ मिथिलाकेँ दू-भागमे अहाँ
पूबमे सहरसा-सुपौल
पछिममे मधुबनी-दरभंगा
बिचमे अगबे बालु आ धूल
मुदा फेर निर्मल्लीक पुल बनबाक चर्च:
कहू आब कतेक चुप रहब
ऐबेर हम बना देलौं पुल
पढ़ल-लिखल दलितक सामान्य दलितक प्रति व्यवहारपर जतेक अम्बेडकर दुखी रहथि ततबे चिन्ता उमेश पासवानकेँ सेहो छन्हि:
स्वयं दलित छी
दलितक दरद जनै छी
किछु व्यक्ति क किरदानीसँ
चकित छी
दलित भऽ कऽ ओ
व्यक्ति अपनो समाजकेँ बिसरि गेल
अप्पन भाषा-भेष छोड़ि कऽ
दोसरक रंग-ढंगमे ढलि गेल
ओ समाजसँ पुछै छथि:
हम दलित छी
मेहनति-मजदुरी कए कऽ
बितबै छी अपन जीवन
तैयो जरैत अछि
कवि, जगदीश प्रसाद मण्डल जी सँ प्रभावित छथि आ से ओ एकटा कविताक माध्यमे कहै छथि:
हम छी सेवक मैथिल
जगदीश बाबूक चेला नै
हमरा लड़ू खियौलनि
नै देलथि मिश्रीक ढेला
मुदा हास्यसँ ओ दूर नै गेल छथि:
झोटा झोटौबलि हेतौ नटिनिया
तोरा संग अही बेर गे
वसन्तक आगमनसँ मात्र फूल-पात नै आन-आन जीवनसँ सम्बन्धित वौस्तपर ध्यान जाइ छन्हि हुनकर:
गाछ-वृक्षमे नव कनोजरिक संग
मोजर फूल िनकलैत अछि
खेतमे गहुम-खेसारी तिसी-मसुरी तोरीक फूलसँ
समुच्चाू बाध गमकैत अछि
मधुमाछी लगौने सेनुरिया आमक गाछपर
छत्ता देखि कऽ लुक्खी डरैत अछि
अरहुलक फूल चूसि कऽ
फुलचोभी चिहुकैत अछि
कौआ आ कोइलीमे
भेल अछि कनाइर
पानि नै चलबाक गप नै बुझाइ छन्हि हुनका:
देहसँ देह केना छुबाइ छै
किएक नै चलैए हमर छुअल पानि यौ
कोन जुलुमक सजा हमरा
दऽ रहल छी किअए बुझै छी
हमरा अपमानी यौ
सुदामा आ कृष्णक दोस्तीकेँ सभ अलग कऽ देलक:
दुनू दोसकेँ अलग कऽ देलक लोक
अप्पन रास्ताक दिवार जकाँ
हँसैत खेलैत...।
आ ई दशा किए भेल?
सहलौं सभ किछु सलहेशक संतान रहितो
जहिया तक चुप रहलौं हम
आ कहै छथि:
कतेक लिखब दलितक बेथा
सलहेश गामक संदेश।
मुदा की मिथिलाक भाषा संस्कृति ककरो अनकर छी? नै ई तँ हमर छी आ तै पर गर्व करै छथि कवि:
हरक पाछाँ बगुला घुमैए
हरबाहा जोरसँ बरदकेँ
बाबू भैया कहि हँकैए
देशक विकास आ नेता पर हुनका आक्रोश छन्हि:
ऐठामक नेता छै माला-माल
रोड-सड़ककेँ देखियौ तँ
कदबा गजार सन छै थाल
आ जे बड़का-बड़का राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाइवे, एन.एच.) छै से तकर विवरण किछु एना छै:
मौतक चौराहा बनल अछि
एन.एच भुतहा मोड़।
आ लोकक दशा-दिशापर मुर्दा सेहो चिन्तित अछि:
गारल मुर्दा छटपटा रहल अछि
भितरसँ अंगुरी
अप्पन उठा रहल अछि
नारीक कर्मनिष्ठ स्वभावपर हिनकर लेखनी खूब चलल छन्हि:
ओमहर बिआ जे उखारै छै
महिला जन कोइ करै छै,
सासु-ननदिक निना-बिना
कोइ गबै छै सोहर-समदाैन
कवि तुकमिलानीमे सेहो ढेर रास गप कहि जाइ छथि, पंजाबमे होइत मजदूरक पलायनक चर्च देखू:
जौं अखार महिनामे बुढ़ बड़द,
पजरामे दरद
पंजाबमे मरद अछि
तँ समझू हे गेलहे घर छी।
ओ आह्वान करै छथि:
साहित्यक दलिदर
कतेक जुलुम करैए हमरापर
कियो तँ बाजू
कियो हमरा दिससँ
अवाज उठाउ
आ अधिकार तँ चाहबे करी:
अप्पन सोल्हनी बला रसा
आब नै सुनब हम
बर्खा तोड़ि दैए बान्हकेँ आ बना दैए गाम केँ कोसी आ कमला:
लधने छल सतहिया
ढौसाबेंग किड़ी-मकौड़ी
करै छल सोर भुरुकुबा
कनी उगल छल चुह-चुहिया
तँ की कहल जाए ऐ “वर्णित रस” सभकेँ। की कविक वसन्त मात्र फूल-पात देखैए जे मात्र सुगन्ध दैए, आँखिकेँ सुख दैए, मुदा जरल पेटकेँ से नीक लगतै? ते कविक वर्णित वसन्तक रस ओ फल विहीन सुन्दर फूल नै भऽ सकैए, आ से नहिये अछि। दलित विमर्श दलित द्वारा, आ ओइ दलित द्वारा जेकर धुआधजा छै सलहेश सन, नै बिसरल अछि अपन संस्कृति, बोली-वाणी, नै बिसरल अछि सोहर-समदौन। आ से छथि उमेश पासवान। आ जे हुनकर वसन्तकेँ देखबाक, एन.एच.क चौराहाकेँ देखबाक दृष्टि फराक अछि तेँ हुनकर कविता सेहो फराक अछि।
-गजेन्द्र ठाकुर १८ मइ २०१२
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