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Friday, May 25, 2012

“रथक चक्का उलटि चलै बाट” -रामवि‍लास साहु जीक कविता, हाइकू, शेर्न्यू आ टनका संग्रह -समीक्षक गजेन्द्र ठाकुर

“रथक चक्का उलटि चलै बाट” ई रामवि‍लास साहु जीक कविता, हाइकू, शेर्न्यू आ टनका संग्रहक नाम अछि। खाँटी शब्दावलीक प्रयोग आ ओइ माध्यमसँ तीन पाँतिक हाइकू आ पाँच पाँतिक टनकामे हिनकर प्रकृति-प्रेमक माध्यमसँ भावोद्गार एतेक रास तथ्य सोझाँ अनैए, समस्या आ समाधान तकैए जे पढ़निहार बाजि सकैए, हँ ई हम किए नै सोचि सकलौं, मुदा आब सोचि सकब। 
रथक चक्का 
उलटि‍ चलै बाट 
चाक चलै छै 
ठामे ठाम नचैत 
दुनु करै दू काम 
जापानक बाशो नै मोन पड़ि जाइ छथि रामविलास साहु जीक ऐ टनकासँ: 

सावन मास 
जलक बुन्नद पड़ै 
समानसँ 
बेंगक बाजा बजै 
खन्ता डबरा भरै 
हिनकर मानव आ प्रकृतिक मेल कतेक अद्भुत लगैत अछि: 
कारी काजर 
मुखड़ा ि‍बगारैत 
कारी कोइली 
मधुर गीत गबै 
सभकेँ ललचाबै 
मुदा कारी काजरक उपमा एतै खतम नै भेल अछि: 
कारी काजर 
आँखि‍ देत सुखाय 
कारी बादल 
बरखासँ डुबाय 
मुखरा देत बि‍गाड़ि‍ 
रौदक गुण तँ प्रकृति-प्रेमी कवि पढ़ि लैए, वसन्त आ हेमन्त वर्णनासँ की ई कम अछि? 
चैतक रौद 
तपाबै माटि‍-पानि‍ 
पछि‍या हवा 
पकाबै चना-गहुम 
बहारै धूर-कण 
कविता कहैमे कवि सेहो पाछाँ नै छथि, कोसी धार हुनका हिलोरै छन्हि: 
जि‍नगी बनल अछि‍ हमर कंगाल 
झौआ, पटेर, काश खगरा हमरासँ करैए रगड़ा 
बाल बच्चा क जि‍नगी बाउलमे समाएल 
अन्धविश्वासपर कविक कलम चलै छन्हि: 
गाेसाँइ खेले भगता-भगति‍नि‍याँ 
छत्तीस देवी चौदहो देबान 
अखन छौ देहपर ि‍वरजमान 
जे मांगब से पूरा करतौ 
कारनीक सभ रोग वि‍याधि‍ हरतौ 
फूल-अच्छतसँ वरदान देतौ 
बि‍गरल काज मनोकामना 
चुट्की बजि‍ते पूरा करतौ 
बदलामे लड्डु-छागर-पाठी मांगतौ 
कवि किसान छथि तँ किसानी कोना बिसरताह: 
बि‍हानेसँ गजार कदबा 
हुअए लगल खेत 
हर जोतैत हरबाह 
बि‍रहा गाबैत 
  फेर… 
“हरक नाश आ 
  खेतक चासपर 
पेट भरबाक अछि‍ 
सभकेँ आश।” 
तखन…… 
गहुमक दाना कोठीमे भरलौं 
भूसीकेँ भुसकाँरमे टलि‍येलौं 
चारि‍ मासक गहुमक फसलि‍ 
दि‍न-राति‍ खटि‍ कऽ घर केलौं 
साल-भरि‍ रोटि‍यो खाए जीअब 
गामक शब्दावली फकरा-कहबीक माध्यमसँ बहुत रास गप कहि जाइ छथि कवि: 
हाटक चाउर बाटक पानि‍ 
बनि‍याँ घरक तरजूकेँ 
नै होइ छै कोनो माइन 
कारण.. हाटक चाउर बाटे बि‍लाएल घाटक पानि‍ घाटे सुखाएल 
देशी इलाज आ रोगक रोकथाम सेहो कविकेँ बुझल छन्हि: 
इचना, पाेठी माछक चटनी 
संगे जे खाइ मरूआ रोटी 
नहि‍ बनत रोगी मोटी 
रक्त चाप, मधुमेह, जलोदर 
रामवि‍लास साहु जी चैतावर गबै (लिखै) छथि, बिरहा सुनै छथि, धनरोपनीपर आ किसानीपर कविता कहै छथि। आ ऐ सभ विषयपर हिनकर कविताक जोड़ा साहित्यमे भेटब कठिन। ई सभ विषय मैथिली कविताकेँ विस्तार देलक अछि, आ ओइपर लिखबाक सामर्थ्य रामवि‍लास साहु जीमे छन्हि, ओकर भीतरमे ढुकि कऽ लिखबाक सामर्थ्य रामवि‍लास साहु जीमे छन्हि। 

-गजेन्द्र ठाकुर १८ मइ २०१२

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