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Friday, May 25, 2012

“माँझ आंगनमे कतिआएल छी” मुन्नाजीक रुबाइ आ गजल संग्रह- समीक्षक गजेन्द्र ठाकुर

“माँझ आंगनमे कतिआएल छी” मुन्नाजीक रुबाइ आ गजल संग्रहक नाम अछि। कतिआएल आ सेहो माँझ आंगनमे! की कबीरक उलटबासीक प्रभाव अछि ई आकि गजलक स्वभाव अछि ई? नहिये ई कबीरक उलटबासीक प्रभाव अछि नहिये ई गजलक स्वभाव अछि, ई एकटा यथार्थ अछि। मुन्नाजी सन कतेको लोक कतिआएल छथि, प्रतिभा अछैत हेराएल छथि। मुदा गजलकार सभटा दोख अपनेपर लऽ लै छथि। 

आब तँ माँझ आँगनमे कतिआएल छी 

अपने चालिसँ आब बेरा गेलहुँ हम 

आ सएह कारण अछि जे ओ नोरक सुख भोगऽ लागै छथि। 

नोर तँ खसैए मुदा मजा सन लगैए केहन नीक प्रेमक दुख लेलहुँ हम 

बड़का खाधिमे खसै छथि आ तहू लेल अपनेकेँ दोखी मानै छथि: 

छोटको ठेससँ नै सबक लेलहुँ हम तँए बड़का खाधिमे खसि गेलहुँ हम 

तँ की गजलकार प्रेमक महत्व बिसरि गेल छथि, नै प्रेम तँ सभकेँ चाही। 

सभ उमेर वर्गकेँ प्रेम चाही 

मरितो धरि कुशल-छेम चाही 

आ हिनका जँ कोस दू-कोस मात्र चलबाक रहितन्हि तखन ने, हिनका तँ बहुत आगाँ बढ़बाक छन्हि तेँ प्रेम चाही। 

डाहसँ पहुँचब कोस-दू कोस 

आगू बढ़बा लेल तँ प्रेम चाही 

आ से सभ ठाम। एकटा हमर संगी छल, एकटा परीक्षामे टॉप केलक तँ बाजल- नै कम्पीट करै छी तँ नै करै छी, आ करै छी तँ टॉप करै छी। ओ गजलकार नै छल जँ रहिते तँ अहिना लिखितए: 

बदरी लादल रहै कोनो बात नै जदि बरसी तँ बरिसात बनि कऽ 

आ नजरि-नजरिक फेर आ हाफ ग्लास फुल ई दुनूटा अवधारणा ऐ रूपमे ओ राखै छथि: 

नजरि उठा कऽ देखबै तँ खाली बुझाएत ई दुनियाँ 

नजरि गरा कऽ देखबै तँ सभ देखाएत ई दुनियाँ 

समालोचना आ विरोध दुनूकेँ गजलकार नीक मानै छथि। 

पक्षधरसँ राखू अपनाकेँ बचा कऽ 

विपक्षीक सभ बातकेँ नै तीत बुझू 

महगाइसँ लोक बेकल अछि मुदा तकरा लेल झुमैत मचानक बिम्ब देखू: 

महगाइसँ खूने नै हड्डियो सुखाइए 

आब झुलैत मचान सन लगैए लोक 

आ ई उलटबासी देखू, बिम्ब नव, भावना शाश्वत: 

हम तँ घूर जड़ेलौ गर्मी मासमे 

मिझाएल आगिसँ पसाही कहियो 

ई कोन गोष्ठी छी जे अछि कोन पत्रिकाक प्रायोजित चिट्ठी छपबाक राजनीति सन, ई रुबाइ देखू: 

मोन भए उठल दुखित होहकारीसँ 

उठि दर्शक भागल मारामरीसँ 

प्रायोजक तँ पथने रहल कान अपन 

कर्ता देखार भेला जतियारीसँ 

मुदा बाढ़िक विषय जँ मैथिली गजलक अंग नै बनए तँ बुझू जे गजलकार समाजसँ कतिआएल छथि। मुदा से नै अछि। 

धार एखन धरि तँ उफानपर अछि 

लोक ताका-ताकी करैत बान्हपर अछि 

आब पड़ाइन घटल अछि, मिथिलासँ पड़ाइन। बाहरी लोक बिहारीकेँ मजदूर आ श्रमिकक पर्यायवाची मानि लेने छथि। तहूपर गजलकारक कलम चलल अछि। 

बिहारक सिरखारी बदलि गेल सन लगैए आब 

श्रमिक घटलासँ कंपनी-मालिक लगै बिहारी जकाँ 

मुन्नाजीक गजल आ रुबाइ स्वच्छन्द रूपसँ बमकोला जेकाँ बहल अछि। शेरक स्वभाव होइ छै जे जँ ओकरा नेकासँ कहल जाए तँ आह-बाह लोक करिते अछि। मैथिलीमे गजल-रुबाइ जइ तरहेँ प्रसारित भऽ रहल अछि से देखि कऽ यएह लागि रहल अछि जे जतेक ई विधा अपनाकेँ पसारि रहल अछि तइसँ बेशी मैथिली लाभान्वित भऽ पसरि रहल अछि। 

--गजेन्द्र ठाकुर १९ मइ २०१२

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