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Friday, July 13, 2012

पोथी समीक्षा: गामक जिनगी : आधुनिकताक समस्या ( आलोचना ) :समीक्षक आशीष अनचिन्हार

जागरण, पुनर्जागरण वा नवजागरण दुनियाँक हरेक हिस्सामे अपना समय पर होइत एलैए मुदा ओकर व्याख्या हरेक समयमे अलग-अलग ढ़गसँ होइत छै। एकटा घटना जकरा पहिल लोक जागरण मानैत अछि तँ दोसर ओकरा पुनर्जागरण मानैत अछि तँ तेसर नवजागरण। आ एही तीनूक दृष्टिकोणक व्याख्यासँ आधुनिकताक सूत्रपात होइत छै।

पश्चिमक पुनर्जागरणसँ प्रभावित मनुख सभ सुविधाकेँ अपना नाम कए लेलक। ई पुनर्जागरण मात्र सुविधा नै बल्कि हमर सभहँक मान्यता, भावना, विचार, आचरण, व्यवस्था आदिमे सेहो परिवर्तन केलक। एही पुनर्जागरणक कारण परस्पर विरोधी संस्था आ व्यवस्थाक जन्म भेल। राष्ट्रीय आ अंतरराष्ट्रीय सत्ता एवं नियंत्रणक चालि-चलन आएल। आ एही कारणें परंपरागत आस्था आ प्रेर मूल्यमे कमी आएल।साहित्य आ कलाक क्षेत्रमे अतियथार्थवादक जन्म भेल, साझी आश्रमक विघटन भेल आ मनुख एकौर भए गेल जाहि कारणें मनुखक विवेक आ आत्मनियंत्रणमे कमी आएल।

महानगरसँ होइत नग्र आ गामक संबंध जटिल बनि गेल छै। जीबनमे नीरसता, असुरक्षा, दुश्चिन्ता, विक्षिप्ता आदि बढ़ि गेल छै। नव-नव बेमारी उपकि रहल छै खास कए हृद्य रोग,बल्डप्रेसर आ अनिन्द्रा। तहिना लोकक रुचि सेहो बदलि गेल छै। जतेक तेज गीत-संगीत बाजत ओतेक नीक मानल जाइत अछि। तेनाहिते साहित्यमे सेहो अभूतपूर्व परिवर्तन भेल अछि। अपराध कथा, सत्यकथा, आ मनोहर कहानी सन साहित्य केर डिमांड जोर पर अछि। आ ऐ तरहें मनुखक जीवन शैलीमे सेहो परिवर्तन भए रहल अछि। संगे संग मनोवृतिमे बहुत बेसी। आजुक समयमे मनुख लग ने सहनशीलता छै आ ने बात बुझबाक समय। आ एही दुआरे आब लोक बात-बात पर हतोत्साहित भए जाइत अछि। आशा,उम्मेद जाहि कौआ केर नाम छै से आब केकरो टाट पर नै कुचरैए।



एखन हम साल 2006मे बनल आ मे गिब्सन द्वारा निर्देशित फिल्म एपोक्लिप्टो बाइसम बेर देखि कए उठलहुँ अछि। ई फिल्म मेक्सिको केर भाषामे जकर नाम Yucatec छै आ "माया" सभ्यता पर आधारित छै। ऐ फिल्मक शुरुआतमे एकटा कबीला अपना गाममे शांतिपूर्वक खा-पीक आनंद मना रहल अछि। तखने दोसर कबीला दिससँ हमला भेलै। पहिल कबीला हारि गेल आ ओकर गामकेँ जरा देल गेलै। नायक सहित अधिकांश आदमीकेँ बन्ही बना लेल गेलै। मुदा गर्भवती नायिका अपन एक मात्र बच्चाक संग बचि निकलैत अछि आ सुरक्षा लेल गँहीर खत्तामे शरण लैत अछि। बंदी बनेलाक बाद विजेता बंदी सभकेँ अपना कबीला लए जाइत अछि। भाट भरि नायक अपनाकेँ आ अपन संगीकेँ बचेबाक प्रयास करैत अछि मुदा से सफल नै होइ छै।



एम्हर नायिका जे खत्तामे छै से नाना प्रकारक कष्ट सहैत बच्चा संग समय बितबैत अछि। एकाएक बर्खा अबैत छै आ सेहो झमटगर। नहुँ-नहुँ खत्ता भरए लागैत छै। पानि जखन डाँड़ भरि भए जाइत छै तखन नायिकाकेँ प्रसव पीड़ा होइत छै....................आ ओही पानिमे बच्चाक जन्म होइत छै। नायक अपन संगी सभहँक संग विजेताक राज्यमे आबि गेल अछि। राज्यक हाटमे किछु बंदीकेँ बेचल जाइत अछि आ किछुकेँ राजाक सामने देल जाइत अछि। राजाक सामने उपस्थित भेला पर राजपुरोहित द्वारा पर सूर्यपूजा केला बाद बलि लेल अयोग्य बंदी सभकेँ छाँटि योग्य बंदीकेँ नायकक सामने बलि चढ़ा देल जाइत छै। अंतमे नायककेँ वेदी पर सुताएल जाइत छै कि तखने...........................मेघ झाँपि लेलकै। आ तखने राजपुरोहित सूर्यकोप मानि ओहि दिन लेल बंद करबा देलक। आ नायक बलिसँ एना बाँचि गेल। मुदा मृत्यु एखनो लीखल छलै। नायक सहित सभ बाँचल अयोग्य बंदीकेँ एकटा मैदानमे आनल गेलै आ सभकेँ भागए कहलकै। आ भागैत बंदी सभकेँ निशाना साधि-साधि मारकल। मुदा नायक एतहुँ बाँचल आ भागि पड़ाएल। विजेता सभ ओकर पाँछा केलक आ करैत रहल मुदा नायक भागैत आ बाँचैत रहल। आ भागैत-भागैत नायक समुद्रक कछेरमे पहुँचैत अछि आ देखैत अछि जे ओम्हरसँ एकटा जहाज आबि रहल छै। नायक फेर पाछू तकलक, ओकरा पकड़बाक लेल विजेता तैयार मुदा ओहो सभ जहाजकेँ देखि सहमि गेल छल आ पाछू हटए लागल छल। आ एना नायक बाँचि गेल आ अपन परिवार लग पहुँचल।

ऐ फिल्ममे हमरा सभसँ नीक गप्प लागैए जे हरेक सीन, हरेक कथन आशासँ भरल छै। खास कए तीन ठाम पहिल- जखन खत्ताक पानिमे बच्चाक जन्म होइत छै, दोसर--जखन नायककेँ बलिवेदी पर सुताएल जाइत छै आ तेसर-- जखन नायक जहाज आ अपन दुश्मन बीचमे रहैत अछि।

ई कथानक पढ़लासँ आशाक कनेकबे दर्शन भेल हएत। फिल्म देखू हरेक शाट आशामे भीजल छै। ई फिल्म आधुनिक कालक थिक मुदा जखन कालिदास मेघदूत लिखला तखन की सोचि यक्ष द्वारा मेघकेँ दूत बनेलाह। मेघ निर्जीव छै ई बात कालिदासकेँ पता छलन्हि आ नायक यक्षकेँ सेहो। की ई आशावादक चरम नै थिक। आ जा धरि मेघ यक्षणी लग समाद लए पहुँचैत अछि ता धरि श्रापक समय खत्म। बात जखन मैथिल कोकिल विद्यापतिकेँ ( ओ विद्यापति जे की गीत लिखला) तखन हुनक गीतमे भक्ति आ श्रृंगार जतेक रहैए ताहिसँ बेसी आशा रहैत अछि। किछु भए जाए विद्यापति अपन आशाकेँ नै छोड़ै छथि। चाहे पति परदेशमे होथिन्ह मुदा ओ नायिकाकेँ जरूर कहै छथिन्ह जे चिन्ता नै करह तोहर प्रिय जरूर अबिते हेतह। एहन बहुत उदाहरण अछि, किछु देखल जाए----



1

लोचन धाय फोघायल हरि नहिं आयल रे !

सिव-सिव जिव नहिं जाय आस अरुझायल रे !१!

….......................................

सुकवि विद्यापति गओल धनि धइरज धरु रे !

अचिरे मिलत तोर बालमु पुरत मनोरथ रे !४!



2

कान्ह हेरल छल मन बड़ साध !

कान्ह हेरइत भेलएत परमाद !१!

…...................

विद्यापति कह सुनु बर नारि !

धैरज धरु चित मिलब मुरारि !७!



3

के पतिआ लय जायत रे, मोरा पिअतम पास !

हिय नहि सहय असह दुखरे, भेल माओन मास !१!

…........................

विद्यापति कवि गाओल रे, धनि धरु मन मास !

आओत तोर मन भावन रे, एहि कातिक मास !४!

ई मात्र किछु उदाहरण अछि। उपर जतेक गीत हम देलहुँ ताहिमे गौर कए देखू भक्ति आ श्रृगांर तँ मात्र बहन्ना छै। मूल बात तँ छै आशा देब, केकरो नोर पोछब। भक्ति आ श्रृगांर विद्यापतिक गीतमे मात्र साधन अछि साध्य नै। साध्य तँ छै निराशाकेँ हटाएब। विद्यापतिक गीतकेँ बहुत आलोचना भेलभक्ति आ श्रृगांरक चश्मा लगा मुदा आशावादक दृष्टिकोणसँ संभवतः ई पहिल आलोचना अछि ( जँ पहिले केओ केने हेताह आ प्रकाशित हेतै तँ एकरा हमर अज्ञानता बूझल जाए)। आ तँए विद्यापति हमर प्रिय कवि छथि। बात जखन लोकगीतक करी तँ एही आशा केर कारण " सोहर " हमर प्रिय गीत अछि। आ जखन हमरा लग किछु नै बचैत अछि तखन बेर-बेर हम विद्यापति गीत पढ़ैत-सुनैत छी। सोहर सुनैत छी, मेघदूतक यक्ष बनि जेबाक प्रयास करैत छी आ एपोक्लिप्टो देखैत छी।



आइसँ तीन साल पहिने हमरा गामक जिनगी पढ़बाक मौका भेटल छल। लेखक छथि जगदीश प्रसाद मंडल आ ऐमे कुल 19टा कथा अछि। ऐ पोथीकेँ जाहि तरीकासँ हम पढ़लहुँ से रोचक प्रसंग अछि। भए सकैए जे ई प्रसंग अहाँ सभ लेल नीरस हो आ एकरा आलोचनाकेँ कमजोर कड़ी सेहो मानी मुदा हमरा बुझने आलोचना तखने सार्थक होइत छै जखन की कोनो पोथी मात्र " पाठक "क दृष्टिकोणसँ पढ़ला बाद आलोचकीय विवेकसँ लिखाइत हो। ऐठाम तँ किछु समीक्षक पोथीक नाम लिखै छथि, कथा पात्रक नाम आ घटना लीखै छथि आ अंतमे प्रकाशक नाम, पोथीक दाम आदि लीखि आपना आपकेँ समीक्षक मानि लै छथि। वस्तुतः ऐ प्रकारक आलेखकेँ पोथी परिचय तँ मानल जा सकैए मुदा समीक्षा वा आलोचना नै।

तँ आबी कने अपन प्रसंग पर। अपान कम्पनीक टेन्डर भरबाक लेल हरिद्वार गेल छलहु भेल( BHEL ) मे। मात्र भरबाके नै छल बल्कि पूरा रेट हमरे तय करबाक छल। हम अपन बुद्धि हिसाबें रेट तय कए टेन्डर जमा कए देलिऐ। लगभग दस बजे रातिमे जखन टेन्डर खुजलै तखन पता लागल जे ओ हमरा हाथसँ निकलि चुकल अछि। हमर कम्पटीटर हमरासँ पाँच लाख कम रेट देने रहै। कुल मिला ओहि समयमे हम हतोत्साहित भए गेल छलहुँ। ई अलग बात जे तखनसँ एखन धरि हम 118टा टेन्डर जमा कए चुकल छी आ ओहिमेसँ 44टामे सफल सेहो भेलहुँ। मुदा हरिद्वारमे हम असफल भेल छलहुँ। मोन दुखी छल। मुदा ऐ घटना पर हमर कोनो वश नै छल। कुल मिला दू बजे रातिमे बस पकड़लहुँ। निन्न हेबाक प्रश्ने नै। हारि-थाकि कए ई पोथी निकाललहुँ ( हमर बैगमे हरदम किताब, हाजमोला आ मंच नामक चाकलेट रहैए ) आ सोझे-सोझ बीचक कथा " चूनबाली"क अंतिक पन्ना नजरि पर पड़ल आ ताहूमे अंतिमे पाँति सभ पर............................" फुलियोक नजरि मटकुरियाकेँ मुसकियाइत देखलक। एकटकसँ एक दोसराक आँखि गरौने अपन जिनगी देखए लगल"

आ कि हमरो अपन जिनगी देखाए लागल। पूरा कता पढ़ि गेलहुँ। आ तकरा बाद पलथी ( बसक सीट पर पलथी मारि बैसब खतरनाक होइ छै ) मारि शुरू केलहुँ आ गुड़गाम अबैत-अबैत खत्म। सभ कथा पढी गेलहुँ। एक-एक पाँति पढ़ि गेलहुँ। मुदा हरेक कथाक अंतिम दू-तीन पाँति बहुत नीक लागल। कारण ई पाँति सभ हमर नोर पोछबाक काज केने रहए। ओहन समयमे जखन की हम अपन असफलता पर दोसर नग्रमे कनैत रही तखन " बिसाँढ़"क पाँति आएल " सुगिया दिस.........................परानी विदा भेल "। जखन हम दोसरक आशा चाहैत रही तखन " पछताबा " केर पाँति आबि गेल " पतिक............. गिनगी देखए लगलीह"। जखन हम ई सोचैत रही जे आब हम अपन सीनीयर लग की कहबै तखन हमरा लग " भेंटक लावा " केर पाँति आएल " मुँहसँ ठहाका............कैंचा गनए लगल"। मतलब जे हरेक कथा हमर नोरकेँ पोछबाक काज केलक। हमर हाथ पकड़ि उठेबाक काज केलक। आ तँए हमरा ई पोथी मेघदूत, पदावली, सोहर आ एपोक्लिप्टो नाकम फिल्मक आधुनिक स्वरूप लगैए। अर्थात कहबाक ई मतलब अछि जे जगदीश प्र.मंडल कालिदास, विद्यापति, सोहर पदक अज्ञात रचनाकार आ मेल गिब्सनक आधुनिक अवतार छथि। ऐठाम प्रस्तुत पोथीक आर बहुत रास विशेषता छै। जँ अहाँ महात्मा गाँधीक स्वराज दर्शन बूझए चाहैत छी तँ " गामक जिनगी " पढ़ू। जँ राजाराम मोहन रायक कुरीति भगेबाक अवधारणा चाही तँ " गामक जिनगी " पढ़ू। जेना सरदार पटेल राज्यसँ राज्यकेँ जोड़लाह तेनाहिते जगदीश जी गामकेँ गामसँ जोड़लाह आ ताहूसँ बेसी ओ लोककेँ लोकसँ जोड़बाक पक्षमे छथि। जँ गीताक कर्तव्य चाही तैयो " गामक जिनगी " पढ़ू आ जँ सन्यासक क्रम बुझबाक हो तैयो " गामक जिनगी " पढ़ू। कुल मिला कए ई पोथी हमरा हिसाबें डिप्रेस्ड आदमीकेँ समान्य करबाक क्षमता रखैए।

आधुनिकतासँ जन्मल जते समस्या छै ताहिमे ई डिप्रेशन सभसँ बेसी खतरनाक छै ( कारण चाहे जे हो )। एहन समयमे जँ " गामक जिनगी " पढ़ल जाए तँ अपेक्षित लाभ भेटतै। ओना ई आशावादी दृष्टिकोण जगदीश जीक हरेक रचनामे भेटत आ ताहिमे एकटा प्रमुख नाम थिक हुनक उपन्यास " उत्थान-पतन "। तँए हम पाठक सभसँ ई अपेक्षा रखैत छी जे जगदीश जीक हरेक रचनाकेँ ऐ दृष्टिकोणसँ पढ़थि...... एना केलासँ निश्चित रूपें समाजक भलाइ हेतै।

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