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Wednesday, August 15, 2012

आशु कवि‍त्‍वक हृदयांतरि‍क कि‍लोल- कलानि‍धि- समीक्षक शिवकुमार झा "टिल्लू"


महााकवि‍ वि‍द्यापति‍क वाद मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे आशु कवि‍क जे श्रृंखला काव्‍य साहि‍त्‍यकेँ गति‍मान केलक ओइमे वि‍वि‍ध कारणसँ कि‍छु काव्‍य प्रति‍भा झाॅपले रहि‍ गेल। ओहेन आशु कवि‍मे कालीकान्‍त झा बूचसेहो एकटा नाअों अछि‍। सन् 1934ईं.मे महान दार्शनि‍क उदयनाचार्यक जन्‍म ओ कर्मस्‍थली समस्‍तीपुर जि‍लाक करि‍यन गाममे जन्‍म नेनि‍हार कवि‍ कालीकान्‍त झा बूचअपन काव्‍य साधनाक श्रीगणेश हि‍न्‍दी साहि‍त्‍यसँ कएलनि‍, परंच कि‍छुए हि‍न्‍दी कवि‍ताक रचनाक पश्श्चात अपन मातृभाषामे लि‍खए लगलथि‍, फेर हि‍न्‍दीमे लि‍खबाक कोनो जि‍ज्ञासा नै, कोनो योजना नै। कवि‍ आ पाठकक मध्‍य रचनाक अभि‍व्‍यक्‍ति‍क साधन मि‍थि‍ला मि‍हि‍र, माटि‍-पानि‍ आ मैथि‍ली भाषा सन पत्रि‍का छल। ऐ पत्रि‍का सभकेँ बन्न भेलापर कवि‍क कवि‍ता गामक कि‍छु लोकक मध्‍य मनोरंजन मात्रक साधन रहि‍ गेल, कवि‍ता पन्ना फाटल आ कवि‍क रचना गुम्‍म। बहुत रास रचना अप्रकाशि‍त रहि‍ लुप्‍त भऽ गेलनि‍। जे कि‍छु उपलब्‍ध भऽ सकल ओकरा वि‍देहक सौजन्‍यसँ श्रुति‍ प्रकाशन द्वारा प्रकाशि‍त कएल गेल। दुभाग्‍य अछि‍ जे कवि‍क मृत्‍यु 2009ईं.मे आ कवि‍ता संग्रह 2010ईं.मे। एकरा ककर दुर्भाग्‍य मानल जाए मैथि‍ली साहि‍त्‍य वा कवि‍क एकर ि‍नर्णए पाठक कऽ सकैत छथि‍। कि‍एक तँ सन् 1970ईं.सँ 1984र्इं.क मध्‍य मि‍थि‍ला मि‍हि‍रक लोक प्रि‍य कवि‍मे जनि‍क गणना होइत छल ओकर रचनाक केतौ कोनो चर्च नै, कोनो प्रोत्‍साहन नै। एे सभ उपहासक दंशसँ आकुल भऽ कवि‍ गंभीर आ वि‍चारमूलक रचना लि‍खब छोड़ि‍ भक्‍ति‍, हास्‍य आ चुटुक्काक संग-संग गामक वि‍याह सबहक अभि‍नंदन पत्र लि‍खए लगलथि‍। जइ कवि‍केँ कहि‍ओ मधुपजी सन कवि‍ चूड़ामणि‍क प्रशंसा पत्र भेटैत छल ओ मैथि‍लीक लेल अछोप बनि‍ गेल। मात्र डाॅ. दुर्गानाथ झा श्रीश, डाॅ. वि‍द्यापति‍ झा, डाॅ. नरेश कुमार वि‍कल सन कि‍छु साहि‍त्‍यकार कतौ-कतौ हि‍नक चर्च केने छथि‍, जइ लेल मैथि‍ली साहि‍त्‍य हि‍नका सभसँ कृतज्ञ रहत।
      श्री गजेन्‍द्र ठाकुरक वि‍शेष प्रयाससँ जे हि‍नक कवि‍ता संग्रह प्रकाशि‍त भेल, ओकर नाओं अछि‍-कलानि‍धि‍ कलानि‍धि‍क अर्थ होइछ चन्‍द्रमा, ऐ संसारकेँ छोड़ि‍ देलाक बाद संग्रह आएल तँए अाकाशीय पि‍ंड जकाँ मात्र दर्शनीय नाओं देल गेल।
      आशु कवि‍क कोनो बंधन नै छैक आ ने ओ अतुकांत कवि‍ता जकाँ योजना बना कऽ कवि‍ता लि‍खैत अछि‍ तँए समीक्षक लोकनि‍क दृष्‍टि‍मे कि‍छु कवि‍ता अप्रासंगि‍क भऽ सकैत अछि‍।
कवि‍ बूचकवि‍ताक रचना प्राय: गाबि‍ कऽ करैत छलाह, जखन जे फुरेलनि‍ गीत जकाँ लि‍खि‍ देलनि‍। तँए गोष्‍ठीक मंचपर सेहो मात्र गबैए  रहि‍ गेला। श्रृंगार, हास्‍य, वि‍रह, भक्‍ति‍ ओ वि‍चार मूलक कवि‍ता सभमे कोनो कालक बंधन नै अछि‍। भक्‍ति‍काल, रीति‍कालसँ लऽ कऽ उत्तर आधुनि‍क साहि‍त्‍यकाल धरि‍क परि‍वेशकेँ बूच अपन कवि‍ता सभमे समेटने छथि‍। तँए कि‍छु रचनाकेँ घसल-पि‍टल सेहो मानल जा सकैछ।
अपन काव्‍य रचनाक श्री गणेश कवि‍ गंभीर लेखनसँ कएने छलाह, मुदा ऐठाम सरस्‍वती वंदनासँ कएल गेल। भक्‍ति‍ रसमे कवि‍ बहुत रास कवि‍ता लि‍खने छथि‍। रामचरि‍त मानसक हि‍नका वि‍शेष ज्ञान छलनि‍ तँए भक्‍ति‍ मूलक कवि‍तामे ओइ युगक घटना स्‍वभावि‍क अछि‍, मुदा मि‍थि‍लाक भक्‍ति‍ शक्‍ति‍ अराधना तँ मातृगीतकेँ वि‍शेष महत्‍व देल गेल। भऽ सकैछ ऐ प्रकारक वकि‍ता उत्तर आधुनि‍क मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल वि‍शेष महत्‍वपूर्ण नै हुअए मुदा जइठाम भाषा सुशुप्‍त भऽ गेल हो ओइठाम भक्‍ति‍ मूलक गीत भाषाक समृद्धि‍क लेल अनि‍वार्य, कि‍एक तँ आर्य परि‍वारक सभ लग्‍नमे स्‍त्रीगण देवोपराधनाकेँ वि‍शेष महत्‍व दैत छथि‍। यएह कारण अछि‍ जे मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे सभसँ लोकप्रि‍य पद्य वि‍द्यापति‍क बाप प्रदीप मैथि‍ली पुत्र जीक जगदम्‍ब अहीं अवलम्‍ब हमरभेल अछि‍। कवि‍श्चकेँ सीताराम झा वा प्रदीप मैथि‍लीपुत्र जकाँ लोकप्रि‍यता नै भेटल मुदा हि‍नक भक्‍ति‍ पद्य सभमे जे झंकार अछि‍ ओकर अपन अलग अस्‍ति‍त्‍व मानल जाए-
सद्य: सुधा सि‍न्‍धु स्‍नात, मॉजल गंगा जलसँ गात
सेवक खाति‍र तजलनि‍ नवरतनक रजधानी अय
मणि‍द्वीपक महरानी अय ना.....।
जेना रवि‍ भूषण जी आमुखमे लि‍खने छथि‍ जे कवि‍ रामकेँ प्रवासी कहलनि‍ बनवसी नहि‍, ऐ प्रकारक दृष्‍टि‍कोण पि‍तृ: आज्ञा पालनाय अर्थात पि‍तृभक्‍ति‍ आ संबंधक मर्यादामे क्रांति‍कारी दृष्‍टि‍कोणकेँ वि‍शेष महत्‍व देवाक लेल आदरनीय मानल जाए-
भ्‍क्‍ति‍ मूलक एकटा गजलमे राधा कृष्‍णक सि‍नेह केर अनुशासि‍त चि‍त्रण गजलमे भक्‍ति‍क बोर मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे वि‍रले भेटैछ-
श्‍याम होइछ परक प्रेम अधलाह हे,
तेँ वि‍सरि‍ जाह हमरा वि‍सरि‍ जाह हे।
कवि‍क श्रृंगार मूलक पद्यमे वि‍चार, अनुशासि‍त सि‍नेह, वैराग्‍य आ जीवन दर्शन मर्म स्‍पर्शी अछि‍। कतौ कोनो अवांछि‍त प्रेमकेँ प्रोत्‍साहन नै, कतौ अशोभनीय शब्‍द नै। भाषा सरल आशुगीत मुदा लोकप्रि‍यता लेल लि‍खल गेल चलन्‍त नै। अतुकांत कवि‍तामे बि‍म्‍ब वि‍श्लेषण करबाक लेल व्‍यवधान नै होइत छैक कि‍एक तँ ताल-मात्राक बंधन नै। आशु कवि‍तामे बंधन रहि‍तो जौं बि‍म्‍ब वि‍श्‍लेषण बोधगम्‍य आ हृदयान्‍तरि‍क स्‍पर्श करैत हुअए तँ कवि‍ता आर लोकप्रि‍य कि‍एक नै मानल जाए-
जाहि‍ बाटकेँ नित्‍य बहारी
हम तीतल ऑचरसँ झारी
जकरा अपनामे रखने अछि‍
हमर आँखि‍ ई कारी-कारी
आइ ताहि‍ पर कि‍एक अलासि‍त गति‍सँ आबै छी   
रातु बीच चान पर तपि‍-तपि‍ ध्‍यान लगाबै छी...।

दोसर पद्य वि‍रहि‍नीमे कृष्‍णक अवाहनक आशमे अश्रुउच्‍छवाससँ आकुल राधाक व्‍यथा रीति‍-प्रीति‍क हि‍लकोरसँ भरल मानल जाए-
अहँक रूप राखि‍ नैन युग-युगसँ जागलि‍ छी
मुरलीक मधुर बैन गुनि‍-गुनि‍ कऽ पागलि‍ छी
परकीया पति‍ता हम प्रेमक पुजारि‍नकेँ
नहि‍ चाही गीताक ज्ञान
आऊ-आऊ रूसल हमर भगवान....।

एकदि‍श कवि‍ तोहर ठोर कवि‍ताक माध्‍यमसँ प्रेमि‍काक सौन्‍दर्यक गुणगान ठोरकेँ केन्‍द्र बि‍न्‍दु बना कऽ करैत अछि‍। प्रेमी प्रेमि‍काक ठोरकेँ स्‍पर्थ जौं नैति‍क रूपसँ नै कऽ सकत तँ राहुक रूप धारण कऽ जबरदस्‍ती करत एहूमे जौं सफलता नै तँ भगवानसँ प्रार्थना कऽ कऽ पुर्नजन्‍ममे धान बनि‍ प्रेमि‍का पातपर चि‍ष्‍टान्न अर्थात् भात वा खीरक रूपेँ पड़त आ प्रेमि‍का स्‍वत: प्रेमी रूपी भातकेँ ठोरसँ सटा लेतीह-
बनव हम पुर्नजन्‍ममे धान,
धानसँ भऽ जाएब चि‍ष्‍टान्न
पड़ब पुनि‍ अहँक प्रतीक्षापात
अछि‍ंजलसँ सद्य: स्‍नात....।

दोसर दि‍स कवि‍ समाजकेँ सि‍नेहमे मर्यादाक सीमा नै लंघबाक ि‍नर्देश सेहो दैत छथि‍-
नहि‍ श्रंृगार रौद्र हुंकारे
हम एहि‍ पार अहाँ ओहि‍ पारे
दुहूक बीच कठोर कर्तव्‍यक
भरल अथाह भयंकार नाला
सुरभि‍त अहँक सि‍नेहक माला...।

वि‍रह, श्रंृगारक स्‍पंदन होइत छैक, जौं वि‍रह नै हुअए तँ मि‍लन आनंदक अनुभूि‍त कोना कराएत। ऋृतु वर्णनकेँ मूलाधार बना कऽ कवि‍ वसन्‍ते-वि‍रहि‍नीकवि‍ता लि‍खलक, अचल जीव अर्थात् गाछ-वृक्ष वसंतक नशामे मॉतलि‍ छथि‍ मुदा पति‍सँ दूर वि‍रहि‍नीक लेल वसंतक कोन प्रयोजन-
रहलहुँ शेष राति‍ भरि‍ जागलि‍,
हुनक दोष की हम अभागलि‍
रसक अथाह सि‍न्‍धु छल उछलल
प्राण मुदा बुन्ने लय वि‍ह्वल
घर-घर अकाशे चन्ना धरती अन्‍हार गय.....।

अर्न्‍तमनक जुआरि‍केँ कि‍यो झाँपि‍ सकैत अछि‍, कवि‍क दृष्‍टि‍ भनहि‍ रवि‍क प्रकाशसँ दूर चालि‍ जाए, मुदा कवि‍ता जौं शान्‍तचि‍त्त भऽ कऽ पढ़ल जाए तँ अपन व्‍यक्‍ति‍गत जीवनकेँ कवि‍सँ झाँपब असंभव। उदासीशीर्षक कवि‍तामे कवि‍ कि‍ए उदास अछि‍, चानक मुख ि‍कए मलीन भऽ गेल ई तँ नहि‍ कहल जा सकैत मुदा ककरो देल व्‍यथासँ कवि‍क मोन अवश्‍य हहरि‍ गेल छन्‍हि‍-
ककरा पर रूपसि‍ करी आश
ई कल्‍पो वि‍टप बबूर भेल
रोपल अभि‍सि‍चि‍ंत वर प्रवाल
बढ़ि‍ जेठक ठुट्ठ खजूर भेल...।

यात्री, आरसी आ चन्‍द्रभानु जकाँ कवि‍ भौति‍कतामे अपन समाजक मध्‍य शि‍खर स्‍थान नै रखलक, अर्थयुगक देल पीड़ा एकरा इमानदार साधारण कर्मचारी लेल असहनीय तँए करूण गीतबनि‍ उपटि‍ गेल-
कटि‍ रहल कि‍ए ई कला इन्‍दु
घटि‍ रहल कि‍ए जीवन प्रकाश
रजनीक रूदन वि‍गलि‍त प्रभात
कऽ रहल कि‍ए अति‍शय उदास.....।

हि‍नक वि‍चार मूलक कवि‍ता सभमे सेहो सि‍नेहसँ वेशी वैराग्‍यक बोध होइत अछि‍। जीवनक अंति‍म अवस्‍था धरि‍ कवि‍ पारि‍वारि‍क र्धमे बान्‍हल रहल कोनो दबाबमे नै, अपन आत्‍मीयतासँ समाजकेँ सर्वे भवन्‍तु नि‍रामया रूपेँ ेदेखलक मुदा व्‍यक्‍ति‍गत जीवनमे ठोप-ठोप चारक चुआठकेँ ऑगुरसँ उपछैत रहल छीलि‍खबाक कि‍ए आवश्‍यकता पड़ल? हास्‍य कवि‍ता पाठ सुनि‍ पाठक हँसैत छथि‍, वा मर्म स्‍पर्शी रचनापर कनैत छथि‍ परंच कवि‍सँ कि‍यो नै पुछैत अछि‍ जे ओ ऐ प्रकारक पद्य कि‍ए लि‍खलनि‍। बूचक व्‍यथा सेहो झॉपले चलि‍ गेल मुदा एतेक तँ हम नि‍श्‍चि‍त रूपेँ कहि‍ सकैत छी जे अपन जीवनक व्‍यक्‍ति‍गत संघर्षक संग-संग कवि‍ साहि‍त्‍यकार मंडलीमे अपन महत्‍व नै देख- एकला चलो रेक आधारपर अपन साहि‍त्‍यि‍क कृति‍केँ सेहो एकात कऽ लेलक-
दुनि‍या हमर एकातक गहवर
भेल जीअत मुरूतक स्‍थापना एहि‍ जीवनमे...।

एकर परि‍णाम स्‍वरूप कवि‍ मैथि‍लीक अस्‍ति‍त्‍वपर सेाहे प्रश्नचि‍न्‍ह लगा देलक-
चन्‍दा सुमन यात्री मधुपक
जुनि‍ करू ओ आबि‍ रहल अछि‍
हेती मैथि‍ली सभसँ कात......।

वास्‍तवमे कवि‍ मि‍थि‍ला-मैथि‍लीमे जाति‍, क्षेत्र आदि‍क आधारपर परसल भेदभावसँ आहत अछि‍, जाति‍वाद तँ सम्‍पूर्ण आर्यावत्तक अस्‍तत्‍वक कलंकि‍त कएने अछि‍, मुदा कोनो भाषामे जौं जाति‍क आधारपर भेद हएत तँ एकरा की कहल जाए? मैथि‍ली ऐ भंवरजालमे एना ओझरा गेल छथि‍ जे ब्राह्मणोमे भलमानुष आ जयवारक मध्‍य अभि‍व्‍यक्‍ति‍क अंतर आन जाति‍केँ रूढ़ि‍वादी भाषाधि‍कारी लोकनि‍ कोना मोजर देथि‍।  कवि‍ 1978ईं.मे जागरणगान लि‍ख अपन वयनानुरागकेँ पसरबाक प्रयास कएलनि‍-
असम वंग पंजाव गुजरात जागल
अहीं टा पड़ल छी उठू औ अभागल
हरण भऽ रहल अछि‍ हमर मीठ वयना
कोना कऽ सि‍खत आन बोली ई मयना....।

स्‍वागत गानक वि‍षयमे आमुखमे रि‍व भूषणजी आ गजेन्‍द्र ठाकुरजी वि‍शेष चर्च केनहि‍ छथि‍। संभवत: ऐ प्रकारक स्‍वागतगान जकरा व्‍यथागान सेहो कहल जा सकैत छैक मैथि‍लीमे तँ नि‍श्चि‍त नै लि‍खल गेल हएत। गजेन्‍द्रजी कवि‍ बूचकेँ वि‍द्यापति‍क बाद सभसँ लयात्‍मक कवि‍ मानलनि‍ ऐ गप्‍पपर समालोचक लोकनि‍ नि‍श्चि‍त प्रश्न ठाढ़ करताह मुदा एतेक तँ अवश्‍य सत्‍य अछि‍ जे आरसी आ यात्रीक पश्चात एहेन समन्‍ववादी आशुकवि‍ मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे नै भेटत।
एखन कि‍छु लोक मि‍थि‍ला राज्‍यक लेल पगहा तोड़ि‍ कऽ चि‍चि‍आ रहल छथि‍। समाजक मध्‍य समन्‍वयवाद नै रहत तँ मि‍थि‍ला राज्‍यक कल्‍पना करब सेहो असंभव। अगि‍ला आसनपर बैसल लोककेँ समाजक कात लागल वर्ग जकर संख्‍या बारह आना अछि‍, मि‍थि‍ला राज्‍यक पुरौधा कोना मानत, कि‍एक तँ ऐ उपेक्षि‍त लोक सभकेँ मैथि‍ल मानले नै गेल। ऐ वि‍षयपर कवि‍ 30 वर्ष पहि‍नहि‍ मि‍थि‍ला दु:दशानाओंसँ कवि‍ता लि‍खलक-
राज्‍यक की बात कठि‍न पाॅचोटा गाॅव गय....।

कवि‍क पोटरीमे पलायनवादक वि‍रोध सेहो अछि‍। बाल साहि‍त्‍य सन वि‍षयपर दीनक नेनासन मर्म स्‍पर्शी आ पोताक अट्ठाहाससन हास्‍य कवि‍ता लि‍ख कवि‍ प्रमाणि‍त केलक जे बाल साहि‍त्‍य ओछ वि‍षय बि‍म्‍ब नै थि‍क। भऽ सकैछ कि‍छु हास्‍य कवि‍ताकेँ लोक मात्र मंचक गबैयाक गीत बुझथु मुदा ओहू सभमे गंभीर दृष्‍टि‍कोण झापल छैक- मात्र अपन संस्‍कृति‍क वि‍स्‍मयकारी वि‍षय दृष्‍टि‍कोणपर कवि‍ प्रहारेटा नै केलक आ मात्र काटर प्रथा सन कलंककेँ उघारे नै केलक संग-संग अपन संस्‍कृति‍क सि‍क्कड़ि‍केँ सेहो अप्‍पन मि‍थि‍लाकवि‍तामे पि‍जौलक, परंच ओइमे लागल जगपर कवि‍ व्‍यथि‍त सेहो भेल-
गंगो दीदी चाह बनावथि‍,
कमला बेटी पान लगावथि‍
कोशी वहि‍ना धान कुटै छथि‍
वागमती सि‍दहा फटकै छथि‍
घऽरक लक्ष्‍मी वि‍हुंसथि‍ मॉझ ओसार अप्‍पन मि‍थि‍ला.....।

ओना ई गप्‍प ओतबे सत्‍य सेहो अछि‍ जे कवि‍ कि‍दु नि‍रर्थक कवि‍ता सेहो लि‍खने छथि‍। जकर देशकालक दशासँ कोनो संबंध नै। जेना डहकन, हमर गाम अादि‍। ऐ प्रकारक कवि‍ताकेँ साहि‍त्‍यक वि‍कासमे कोनो योगदान नै, वरन् व्‍यर्थ अपन कवि‍त्‍वकेँ नष्‍ट करब मानल जाए, मुदा इहो गप्‍प ओतबे सत्‍य जे आशु कवि‍क कोनो सीमा नै होइत छैक।
बहिर्मुखी व्‍यक्‍ति‍त्‍वक बूच अपन रचनामे अर्न्‍तमुखी बनि‍ वि‍शेष अर्थ राखएबला कवि‍ता सभ लि‍खैत छलाह। मुदा हि‍नक अन्‍तर्तममे स्‍वांग नै अछि‍ कतौ कि‍लोल नै कएलनि‍ जे हमहूँ कवि‍ छी, मुदा अपन समन्‍वयवादी दृष्‍टि‍कोणकेँ अात्‍मामे नुका कऽ नै राखि‍ सकलथि‍‍ आ हृदयांतरि‍क कि‍लोल कवि‍ताक माध्‍यमेँ बाहर नि‍कलि‍ गेल।
वि‍देहक सम्‍पादक गजेन्‍द्र ठाकुर, सह सम्‍पादक उमेश मण्‍डल आ श्रुति‍ प्रकाशन धन्‍यवादक पात्र छथि‍ जे ऐ उपेक्षि‍त अभि‍शप्‍त कवि‍क बचल-खुचल रचनाकेँ प्रकाशमे अनलनि‍, नै तँ अगि‍ला पीढ़ीक गप्‍प के कहए वर्तमान पीढ़ीक कि‍छु लोकेँ छोड़ि‍ ई कि‍यो नै जनैत अछि‍ जे बूचमैथि‍लीक कवि‍ छलाह। ऐ लेल ककरा दोष देल जाए कवि‍क अथवा साहि‍त्‍यक हथि‍यार नेने मैथि‍लीक रथपर सवार महारथी लोकनि‍केँ? एकर ि‍नर्णय पाठक कऽ सकै छथि‍।

पोथीक नाअों- कलानि‍धि‍
रचनाकार- कालीकान्‍त झा बूच
प्रकाशक- श्रुति‍ प्रकाशन
प्रकाशन वर्ष- 2010
दाम- 150 टाका मात्र।  

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