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Wednesday, August 15, 2012

कथा कि‍रणमे यथार्थवोध ओ नारी वि‍मर्श- समीक्षक शिव कुमार झा टिल्लू




मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे समग्र वि‍धाक रचनाक आधारपर डाॅ. ब्रज-कि‍शोर वर्मा मणि‍पद्मकेँ पहि‍ल सम्‍पूर्ण साहि‍त्‍यकार मानल जाइत अछि‍। मुदा जौं जन्‍म क्रमांकक आधारपर ि‍नर्णए कएल जाए तँ काॅचीनाथ झा ‘कि‍रण’ पहि‍ल सम्‍पूर्ण साहि‍त्‍यकार छथि‍। मणि‍पद्म जकाँ कि‍रणजी सेहो साहि‍त्‍यक समग्र वि‍धा उपन्‍यास, वालकथा, एकांकी, नाटक, कवि‍ता संग्रह, महाकाव्‍य, ि‍नबंध संग्रह आ कथा संग्रहक रचना कएलनि‍। पराशर महाकाव्‍य लेल साहि‍त्‍य अकादमी पुरस्‍कार आ ‘कथा कि‍रण’ कथा संग्रहक लेल वैदेही सम्‍मानसँ सम्‍मानि‍त कएल गेलनि‍।

मूलत: काव्‍यात्‍मक प्रवृति‍ ओ अभि‍रूचि‍ राखएबला ऐ साहि‍त्‍यकारक पहि‍ल कथा संग्रह ‘कथा कि‍रण’ सन् 1988ईं.मे भाखा प्रकाशन द्वारा प्रकाशि‍त भेल। सन् 1989ईं.मे कि‍रण जीक देहावसान भऽ गेलनि‍। सन् 1991-92 ईं.मे बि‍हार सरकार द्वारा मैथि‍लीकेँ बि‍हार लोक सेवा आयोगसँ नि‍कालि‍ देल गेल। जइसँ ऐ भाषाक वाचक ओ पाठक लोकनि‍क मध्‍य अस्‍ति‍त्‍व डगमगाए लागल। फलस्‍वरूप महावि‍द्यालय स्‍तरपर मैथि‍ली पढ़एबला छात्रक कमी भऽ गेल। जकर परि‍णाम ई भेल जे ऐ अवधि‍क कि‍छु आगाँ-पाछाँ प्रकाशि‍त रचनाक ओ महत्‍व नै भेटल जकर ओ अधि‍कारी छल।
’कथा कि‍रण’ सम्‍बन्‍धत: ऐ अर्न्‍तद्वन्‍द्वक सभसँ बेशी शि‍कार भेल। कि‍एक तँ हि‍नक ऐ संग्रहसँ पहि‍ने प्रकाशि‍त कि‍छु रचनाकेँ छोड़ि‍ समाजक वि‍भि‍न्न ऊँच-नीच, सि‍नेह-द्वेष आ समन्‍वयवादकेँ स्‍पर्श करएबला कथा साहि‍त्‍य मैथि‍लीमे नै लि‍खल गेल छल। जौं कि‍छु कथाकार ऐ परि‍धि‍सँ ऊपर उठबाक प्रयासमे सफल भेलथि‍ तँ मात्र कि‍छुए कथामे। सम्‍पूर्ण समाजक जर्जर व्‍यवस्‍था दि‍स कि‍नको नजरि‍ पड़बो केलनि‍ तँ कतौ-कतौ। सम्‍पूर्ण कथा संग्रहमे मानवीय मूल्‍यक अवलोकन कथा ि‍करणसँ पहि‍ने हरि‍मोहन झाक चर्चरी, मनमोहन झाक अश्रुकण, ललि‍तक प्रति‍नि‍धि‍, रामदेव झाक एक खीरा तीन फाँक, रमानन्‍द रेणुक कचोट, रमेश नारायणक पाथरक नाव, धूमकेतुक अगुरवान, शेफालि‍का वर्माक अर्थयुग आदि‍मे भेटैत अछि‍ परंच ऐ सभ कथा संग्रहक सभटा कथाकेँ ऐ दृष्‍टि‍सँ सेहो प्रासंगि‍क नै मानल जाए। प्रयोगवादी कथाकार राजकमल जीक ि‍कछु कथा जेना ललका पाग, सॉझक गाछ, उपराजि‍ता आदि‍ मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे अपन बेछप्‍प आधुनि‍क रूप नेने प्रवेश तँ कएलक मुदा हुनको कि‍छु कथा मैथ्‍ज्ञि‍ली साहि‍त्‍यकेँ शि‍ल्‍प आ प्रयोगवादक वि‍श्लेषणक क्रममे अन्‍हार घर नेने चलि‍ गेल।

कथा कि‍रणमे 19 गोट कथा संकलि‍त अछि‍, अलग-अलग कालमे ि‍लखल गेल ऐ कथा सभकेँ शि‍वशंकर श्रीनि‍वासक प्रयाससँ 1988ईं.मे भाषा प्रकाशन द्वारा प्रकाशि‍त कएल गेल अछि‍। आमुख शि‍वशंकरजी लि‍खने छथि‍, जइमे एकटा चर्चित समीक्ष समीक्षक द्वारा आमुखसँ बेसी कि‍रण जीक मनोदशा आ रचना प्रकाशन करएबाक क्रममे कथाकारपर श्री नि‍वास जीक उपकार परि‍लक्षि‍त भेल। वास्‍तवमे समीक्षा वा आमुख ऐ रूपेँ नै लि‍खबाक चाही। आमुखमे एकटा कमी आर देखएमे आएल जे श्रीनि‍वास लि‍खैत छथि‍- कि‍रण जीक प्रारंभि‍क कथा कथ्‍यक स्‍तरपर जतेक धारदार ओतेक सुन्‍दर शि‍ल्‍प नहि‍। मैथि‍ली साहि‍त्‍यक संग ई दुर्भाग्‍यपूर्ण वि‍डंम्‍बना रहल जे मानसि‍क वि‍लासि‍ताकेँ स्‍पर्श करएबला कथाकारकेँ अइठाम शि‍ल्‍पी मानल जाइत छन्‍हि‍। वास्‍तवमे कथाक दू गोट प्रमुख तत्‍व ि‍थक- बि‍म्‍ब आ शि‍ल्‍प। बि‍म्‍बक अर्थ कोनो घरक नेआें आ शि‍ल्‍पक अर्थ ओकर चार, कोरो आ श्रंृगार- चून पालि‍श। जौं बि‍म्‍ब काल्‍पनि‍क तँ शि‍ल्‍प कल्‍पनाशील अवश्य हएत। जखन कल्‍पने करबाक हएत तँ गामक खोपड़ीक कल्‍पना नै कऽ कऽ आगराक ताजमहलक कल्‍पना कएल जाए। कि‍रणजी मात्र यएह अपराध कएने छथि‍ जे आगराक ताज महलकेँ छोड़ि‍ मि‍थि‍लाक गामक मचानपर अपन रचनोमे जीवंत रहलाह, तँए ‘शि‍ल्‍पी’ नै छथि‍। साहि‍त्‍यकार कल्‍पनाशील होइत छैक, मुदा जौं कखनो मोनकेँ धरातलपर आनि‍ कऽ लि‍खैत अछि‍ तँ यथार्थवोधक बि‍म्‍ब समाजक सत्‍यकेँ वृति‍चि‍त्रक रूपमे देखैत अछि‍। कि‍रणजी संभवत: वएह श्रेणीक ययार्थवोधी कथाकार छथि‍।

पहि‍लुक कथा ‘करूणा’ करूणाक नैहरमे स्‍वच्‍छन्‍द जीवनसँ प्रारंभ होइत ओइठाम तक पहुँच जाइत अछि‍ जतए धरि‍ साधारण शि‍ल्‍पी नै पहुँच सकैत छथि‍। यामि‍नीकान्‍त बाबूक सुकन्‍या करूणाक वि‍वाह सुन्‍दरबाबू सँ भेल। नैहरक भगजोगि‍नी कर्त्तव्‍य पथपर भाटक संग सासुरमे आगाँ बढ़ैत छलि‍, वृद्ध पि‍तामही सासु आ मातृ पि‍तृ वि‍हीन जाउत नरेन्‍द्रक संग....। तीन मासक भीतर अजि‍या सासुक देहावसान आ ओकर दू मास बाद श्वसन ज्‍वरसँ पति‍क देहान्‍तक पश्चात करूणा टूटि‍ गेलीह। प्राचीन आर्य संस्‍कृति‍ जकरा जनभाषामे सनातन कहल जाइछ, रूढ़ि‍वादि‍ताक आवरणसँ अखन धरि‍ ओझराएल अछि‍। जे लोक समाजक मुख्‍य धारासँ कात लागल छथि‍, ओ ऐ कथा कथि‍त सनातन संस्‍कृति‍क आधारपर संस्‍कार तँ करैत छथि‍, मुदा ओइमे ओझराएल नै‍। ऐ दृष्‍टि‍सँ समाजक पछाति‍क लोककेँ बेसी वि‍चारवान मानल जाए। अगि‍ला लोकमे बाहरी आडंवरकेँ मनवाक क्रममे कि‍छु कुव्‍यवस्‍था उत्‍पन्न भऽ गेल। संभवत: ई कथा सनातनधर्मी ब्राह्मण परि‍वारकेँ धि‍यानमे राखि‍ कऽ लि‍खल गेल। भऽ सकैछ कथाकारक र्इ कल्‍पना हुअनि‍, मुदा ऐ प्रकारक घटना वास्‍तवमे एखन धरि‍ होइत अछि‍ जे सवर्ण परि‍वारक वाल वि‍धवा सुकन्‍याकेँ सेहो पुनर्विवाह करबाक समाजमे मान्‍यता नै गेल, जइ समैमे ई कथा लि‍खल गेल ओइ समैमे स्‍थि‍ति‍ तँ आर दयनीय छल।

‘करूणा’ कथा वि‍षम पि‍रस्‍थि‍ति‍मे आगाँ बढ़ैत अछि‍। एकटा वालि‍का नरेन्‍द्रकेँ तकैत करूणा घर पहुँचलि‍। नरेन्‍द्र अपन मातृकमे छल। करूणा एकसरि‍ छली। वालि‍का चकि‍त होइत प्रश्न कएलनि‍, ‘एकसरि‍ डऽर नहि‍ लगैत अछि‍। अपन जीवनकेँ जीवन्‍त लहासक रूपमे करूणा वाजलि‍- ककर डऽर वास्‍तवमे भूत-परेत एकटा भावनात्‍मक रूपसँ शून्‍य प्रणीक लेल डरक साधन नै बनि‍ सकैछ। की छन्‍हि‍ जे चोर आओत? मुदा बालि‍का प्रश्न कएल जे जौं अपने उठा लि‍ए?  प्रकारक प्रश्नसँ करूणा स्‍तब्‍ध भऽ गेली। एकटा नारीक मर्यादा समाजक दृष्‍टि‍मे जे महत्‍व राखए, मुदा ओकरा लेल सर्वोपरि‍। समाजक उदाहरण यएह लेल जे ऐ समाजक नीच लोकसँ लऽ कऽ वि‍चारवान वर्गक कि‍छु लोक सेहो अवलाक चरि‍त्र हननसँ वाज नै आएल अछि‍। करूणा भवि‍ष्‍यक डरसँ काँपि‍ अपन सुन्नर रूपकेँ भयावह बनएबाक लेल उद्धत भऽ गेली। परि‍स्‍थि‍ति‍ सेहो संग देलकनि‍ जे बच्‍चाबाबूक माथ परक चाम उज्‍जर देख करण पुछलनि‍ तँ पता चललनि‍ जे सल्‍फ्यूरि‍क एसि‍ड अर्थात् तेजाप प्रयोगशालामे पड़ि‍ गेल।

बच्‍चाबाबूकेँ अपन घरसँ वि‍दा करैत देरी तखापर राखल स्‍ल्‍फ्यूरि‍क एसि‍ड अपन मुँहपर ठाढ़ि‍ करूणा रूपवतीसँ जीवि‍त पि‍चाशक रूपमे आबि‍ गेलीह?
आब प्रश्न उठैत अछि‍ जे करूणाकेँ एना कएलासँ की भेटल? भेटबाक प्रश्न तँ नै मुदा हुनक चरि‍त्रहरणक आशंका हुनका मोने समाप्‍त भऽ गेल। जौं एकटा मातृ-पि‍तृ वि‍हीन बालकक दायि‍त्‍व नै रहतनि‍ तँ आत्‍महत्‍या सेहो कऽ सकैत छलीह। यएह थि‍क देवी भक्‍ति‍क केन्‍द्र मि‍थि‍लामे देवीक दशा। नारी ि‍वमर्शक एकरूपक यथार्थचि‍त्रण कि‍रणजी कएलनि‍। कनेक कमी जे कथाक प्रारम्‍भ सरल शब्‍दमे सेहो कएल जा सकैत छल मुदा साहि‍त्‍यक पुरा रूपक शब्‍दमे कथाकेँ प्रवेश करा कऽ कि‍रणजी ओइ वि‍चारवान समीक्षकक दृष्‍टि‍मे अपन स्‍थान बनएलनि‍ जनि‍क मान्‍यता छन्‍हि‍ जे भाषा उच्‍च कोटि‍क हुअए, जकर अर्थ सभ मैथि‍ल नै लगा सकथि‍ ओ वास्‍तवि‍क रचना थि‍क। भऽ सकैत अछि‍ जे कथाकार ऐ प्रकारक शब्‍द सभसँ कथाक सहज रूपेँ कएने होथि‍, वा मूलत: कवि‍ रहनि‍हार कि‍रण अपन काव्‍यात्‍मक प्रवृति‍केँ नै झाँपि‍ कवि‍ताक बि‍म्‍बकेँ कथाक रूप दऽ देने होथि‍। जौं ई कथा काव्‍य रहि‍तए तँ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल वि‍स्‍मयकारी क्षण होइतए जखन करूणा.... महाकाव्‍यक नायि‍का बनि‍ मि‍थि‍लाक मानस पटलपर वि‍चरण करि‍तथि‍। दोसर जे कनेक नकारात्‍मक वि‍न्‍दु भेटल ओ अछि‍ करूणाक अपन आभा नष्‍ट करबाक दृष्‍टि‍कोण। यथार्थबोधी कथाकारकेँ अइठाम क्रांति‍वादी दृष्‍टि‍कोण स्‍पष्‍ट करबाक चाहि‍यनि‍, मुदा कि‍रणजी सन सि‍द्धहस्‍त रचनाकारक सोच सेहो समाजमे क्रांति‍ नै सोचि‍ सकल।

हम सम मि‍थि‍लामे रहैत छी, एकटा उतर आधुनि‍क सोच की कहल जाए आधुनि‍क दृष्‍टि‍कोणसँ दूर मि‍थि‍ला.... जइठाम एखनो वि‍धवाकेँ पुनर्विवाह की कहल जाए कोनो आन कन्‍याक वि‍वाह संस्‍कारक ऐहब नै बनाओल जाइत अछि‍। फ्रांसक राज्‍यक्रांति‍ हुअए वा यूरोपक धर्म सुधार आन्‍दोलन सभमे साहि‍त्‍यक अपन महत्‍व अछि‍, मुदा ई आर्यावर्त्त थि‍क अइठाम साहि‍त्‍य मनोरंजन मात्रक साधन मानल जाइत अछि‍, प्रेरणाक स्रोत नै। वास्‍तवि‍कता सेहो छैक जे साहि‍त्‍यकारकेँ अपन लेखनीक दृष्‍टि‍कोणकेँ अपन जीवनमे सेहो जोड़ि‍ देवाक चाही, नै तँ समाज मान्‍यता कोना देतनि‍ वा ओ साहि‍त्‍य प्रेरक कोना हएत? कि‍रणजी करूणा सन दृष्‍टि‍कोण रखैत हेताह कि‍एक तँ हुनकाे जन्‍म अही समाजमे तँए क्रांति‍वादी नै बनि‍ ‘करूणा’क नाश देखा देलनि‍। ओइ प्रकारक नाश जे जइसँ नीक मृत्‍यु। मुदा सम्‍यक सोचबला कि‍रणजी केँ अइठाम कनेक क्रांति‍वादी बनि‍ करूणाक पुनर्विवाह देखएबाक चाहि‍यनि‍। यथर्थादोषी साहि‍त्‍यकारकेँ सेहो समाजमे वि‍चार उत्पन्न करएबाक लेल क्रांति‍वादी बनब साहि‍त्‍यक लेल अनि‍वार्य नै तँ आडंवरकेँ समर्थन करएबला ऐ प्रकारक साहि‍त्‍यकेँ पढ़नि‍हार लोक दोष साहि‍त्‍यकारेपर देत।

दोसर कथा ‘एहि‍ चारि‍ खूनक खोज केनि‍हार के?’ अर्थनीति‍केँ धि‍यानमे राखि‍ कऽ लि‍खल गेल। कथाक प्रारंभमे कथाकार ब्राह्मणवादी व्‍यवस्‍थापर कनेक कटाक्ष कएलनि‍, ‘पंडि‍त जे कहथि‍ से करी मुदा जे करथि‍ से नहि‍ करी’ अर्थात् अग्रसोची समाजक धर्मपालक जाति‍क कर्म आ कथनमे भि‍न्नता अछि‍। वास्‍तवि‍कता सेहो अछि‍‍ पंडि‍त वि‍द्याध्‍ययन आ नीति‍ अध्‍ययनक आधारपर उचि‍त वचन तँ अपन मुखसँ वजैत छथि‍, मुदा मात्र होसराक लेल अपन लेल नै।
एे कथामे सेहो एकटा सत्‍कर्मी परेमा अपन स्‍वाभि‍मानक संग जीवन तँ प्रांरभ कएलक मुदा सम्‍पति‍यासँ वि‍वाहक वाद साधनहीन परेमाक स्‍वाभि‍मान परि‍स्‍थि‍ति‍वश डगमगा गेल। अपन नेनाकेँ जीवि‍त रखबाक लेल हलुआइक दोकानमे कि‍छु भोजन सामग्री तकैत पकड़ल गेल। पुलि‍स अपन काज कएलक एकटा भोजन चोरि‍ करबाक प्रयास करैबला चोरकेँ डकैत बना कऽ सातवर्ष कठोर कारावास दि‍आ देलक। न्‍यायालयमे परेमाकेँ न्‍याय नै भेटल कि‍एक तँ ओकर गप्‍प सुनत के?

परेमा जहलसँ छूटल तँ अर्थहीन परि‍वारक सभ जन समाप्‍त......।
अर्थनीति‍क ई कथा समाजक अंति‍म व्‍यक्‍ति‍पर प्रारंभ भऽ ओकर अंतसँ समाप्‍त भेल। कि‍रण जीक ई कथा यथार्थबोधी मानल जा सकैत अछि‍। अइमे क्रांति‍क कोनो गुंजाइश नै कि‍एक तँ शि‍क्षा आ भौति‍क साधनसँ वि‍हीन मानब सरकारी तंत्रक वि‍रूद्धमे कोना आन्‍दोलन करए, वादमे परेमा कतए जाए कि‍एक तँ ओ वि‍क्षि‍प्‍त भऽ गेल।
‘काल ककरो छोड़त’ एकटा राजपरि‍वारक कथा थि‍क। महाराज दीर्घवाहु अपन मृत्‍युकालमे अपन राज्‍य आ अपन पाँच वर्षक वालक सुन्‍दर अपन छोट भाए वीरवाहुकेँ सौंपि‍ ऐ संसारसँ वि‍दा भेलनि‍। कालान्‍तरमे वीरवाहु अपने वास्‍तवि‍क राजा कहएबाक लेल अपन भाति‍जकेँ मारि‍ देलनि‍। ई दृश्य वीरवाहुक पुत्र शंकर देखलक आ पि‍तृहन्‍ता बनि‍ गेल। शंकरक स्‍त्री राधा दोसर पड़ोसी युवक रमेशसँ प्रेम करैत छलि‍, ओ सेहो ‘महाजनोयेन गत: स पंथा’क आधारपर शंकरक हत्‍या कऽ देलथि‍न। अंतमे कथाकार ई प्रश्न छोड़ि‍ कथाक इति‍श्री कएलनि‍- ‘काल की राधाकेँ छोड़तनि‍? वास्‍तवमे एकरा कथा नै मानल जाए ई थि‍क कथाकारक वि‍राट जीवन दर्शन ओ शैक्षणि‍क योग्‍यताक एकटा चि‍त्र। इति‍हास साक्षी अछि‍ धनलोलुपता ओ राजपदक आशमे कतेक शासक संबंधक मर्यादाकेँ ि‍वसरि‍ गेल छलथि‍। लोभ पापक कारण होइछ। लोभ माली अपन फूलवारीक फूलसँ सेहो करैत अछि‍, एकटा पति‍ अपन पत्नीक सौन्‍दर्यसँ सेहो करैत अछि‍ मुदा ओ ि‍थक मर्यादापूर्ण अधि‍कारक लोभ। अमर्यादि‍त ओ अवांछि‍त लोभक परि‍स्‍थि‍ति‍मे लोक अपने नाश करैत अछि‍। प्रलाप, समाजक चि‍त्र, धर्मरत्नाकर, चनटा, जाति‍ पाँति‍क जाड़ू आदि‍ कथा सेहो समाजक अग्रआसनपर बैसल लोकक समाजक अंति‍म व्‍यक्‍तक प्रति‍ दृष्‍टि‍कोणकेँ स्‍पष्‍ट करबैत अछि‍। ऐ प्रकारक कथा जइमे सम्‍पूर्ण समाजक स्‍थि‍ति‍क चर्च हुअए ललि‍त आ जगदीश प्रसाद मंडलकेँ छोड़ि‍ कि‍रण जकाँ केओ नै कएलक। मुदा सभटा कथा यथार्थचि‍त्रण तँए श्रीनि‍वासजी हि‍नका शि‍ल्‍पीक संज्ञा दइमे संकोच कएलनि‍। वास्‍तवि‍कता अर्थात् इजोतसँ डर कल्‍पना अर्थात अन्‍हारसँ प्रेम मैथि‍ली साहि‍त्‍यक प्रवृति‍ रहल छैक तँए कि‍रणकेँ ओ स्‍थान नै भेटल जकर ओ अधि‍कारी छथि‍। ऐ संग्रहक सभसँ वि‍लक्षण कथा थि‍क- मधुरमनि‍। अपन साहि‍त्‍यक ि‍कछु चर्चित कथामे एकर स्‍थान अछि‍। एकटा नि‍म्नवर्गीय समाजक मुँहजोरि‍ मुदा स्‍वस्‍थ आ कर्मशील नारी मधुरमनि‍ अपन शरीरसँ असमर्थ पति‍क प्रति‍दायि‍त्‍व रखैत अछि‍। मधुरमनि‍क कठोरवाणीसँ उद्वि‍ग्‍न भऽ ओकर पति‍ मोचन घरसँ पड़ा गेल। मधुरमनि‍ पोटि‍ कऽ फेर ओकरा घरमे आनि‍ लेलक। सतना माय जखन मोचनक आलोचना मधुरमनि‍ लग करैत अछि‍ तँ मधुरमनि‍ सतना मायपर तीक्ष्‍ण शब्‍दवाण चला कऽ ओकरा चुप करा दैत अछि‍। ‘पि‍ट्ठा पहलमान लऽ कऽ हम की करब जे भरि‍ दि‍न डेङवि‍ते रहत।’ वास्‍तवमे सतना मायक शरीरसँ मजगूत पति‍ खूब पि‍टाइ करैत छल। यएह थि‍क हमरा सबहक समाजक नारीक पति‍क प्रति‍ सि‍नेह ओ अपन पति‍केँ कि‍छु कहि‍ सकैत छथि‍, मुदा दोसर कि‍ए कहत? अइमे अधि‍कार आ सि‍नेह दुनू भेटैत अछि‍।

ऐ प्रकारे वि‍हनि‍ कथाक ऐ संग्रहकेँ युगान्‍तकारी तँ नै मानल जा सकैत अछि‍ मुदा समाजक वास्‍तवि‍क दशाक वि‍वेचन आ तर्कपूर्ण शैलीसँ ई संग्रह अपन अलग स्‍थान रखैत अछि‍।


पोथीक नाअाें- कथा कि‍रण
रचनाकार- डाॅ. कान्‍चीनाथ झा ‘कि‍रण’
प्रकाशक- भाषा प्रकाषन पटना
वर्ष- 1988ईं.     

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