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Monday, September 3, 2012

बेचन ठाकुरक नाटक छीनरदेवी -आशीष अनचिन्हार



ऐ नाटकक मादें किछु कहबासँ पहिने ओ गप्प कही जे प्रायः-प्रायः अंतमे कहल जाइ छै। श्रुति प्रकाशन एकटा बड़का काज ठानि लेने अछि- हीरा-मोती-माणिककेँ चुनबाक। आ ऐ मे ई कतेक सफल भेल तकर निर्धारण भविष्य करत, वर्तमान नै, कारण वर्तमान समयक नीति-निर्धारकक इमान शून्य स्तरपर पहुँचि गेल अछि। मुदा एहन-एहन समस्याक अछैतो हमर शुभकामना ऐ प्रकाशनक संग अछि आ विश्वास अछि जे जेना ई धारक दूरी पार केलक अछि तेनाहिते आब ई समुद्रक दूरी पार करत। आ संगहि-संग ऐ नाटककेँ पर अनबामे जनिकर कनेकबो योगदान छन्हि से अशेष धन्यवादक पात्र छथि।
जहिया सनातन धर्ममे पुराण-उपनिषद आगमन भेल रहै, तहिया देवी-देवताक संख्या ३३ करोड़ रहै। आजुक समयमे जखनकि पौराणिक समय बितला बहुत दिन भगेल तखन देवी देवताक संख्या कतेक हएत? हमरा बुझने ३३ करोड़सँ बेसिए। तथापि सुविधाक लेल एकरा यथावत् मानू। आ एतेक देवी-देवताक अछैतो छीनरदेवीक आविर्भाव किए?
उत्तर हम नै देब कारण ई गप्प सभ जनैत छथि मुदा लोक ऐ उत्तरकेँ नुका कऽ रखैत अछि। आ संभवतः छीनरदेवीक ऐ रूपकेँ छिनरधत्त कहल जाइत छै। ओना एकरा बादमे हम निरुपित करब। ओइसँ पहिने एकटा आरो महत्वपूर्ण प्रश्नपर चली। जँ अहाँ श्री बेचन ठाकुर कृत ऐ नाटककेँ नीकसँ पढ़ब तँ ई बुझबामे कोनो भागठ नै रहत जे ऐ नाटकक मूल स्वर अंधविश्वासपर चोट करब छै। आ जखने अहाँ ऐ निष्कर्षपर पहुँचब, अहाँकेँ तुरंते प्रो. हरिमोहन झा मोन पड़ि जेताह, से उम्मेद अछि। आ जखने अहाँकेँ प्रो. झा मोन पड़ताह तखने हमरा मोनमे ई प्रश्न उठत जे प्रो. झा जइ प्रबलतासँ अंधविश्वासपर कलम चलेने छलाह तकरा बाबजूदो ६०-७० साल बाद बेचन जीकेँ ऐपर कलम चलेबाक जरूरति किए पड़लनि? एकर दूटा कारण भऽ सकैत अछि, पहिल जे प्रो. झाक प्रहारक बाबजूदो अंधविश्वास मेटाएल नै (हम ई नै कहि रहल छी जे ई प्रो. झाक हारि थिक कारण हरेक लेखकक एकटा सीमा होइ छै) आ दोसर कारण भऽ सकैत अछि जे बेचन जीकेँ कोनो बिषए नै भेटल होइन्ह आ मजबूरीमे ओ ऐपर कलम उठेने होथि। मुदा आइ जखन गामे-गाम घूमै छी आ ओकर आंतरिक स्थितिकेँ परखैत छी तँ दोसर कारण अपने-आप खत्म भऽ जाइत अछि। आइयो गाम आ अर्धशहरी इलाकामे एलोपैथीक संगे-संग भस्म-विभूति आ ब्रम्हथानक माटि उपचारमे लाल जाइत अछि। आ एकरा संगे ईहो स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे प्रो. झाक बादो ई अंधविश्वास मरल नै। आ एहने समयमे हमरा लग ई प्रश्न विकराल रूप धऽ आबि जाइत अछि जे प्रो. झाक बाद जे नाटककार भेलाह (चूँकि बेचन ठाकुर जीक विधा नाटक छन्हि तँए हम नाटकेक दृष्टिसँ गप्प करब) से एतेक दिन धरि की करैत छलाह?
आब हम ऐ प्रश्न सबहक उत्तर ऐठाम नै लिखब। एकर कारण अछि जे हमरा सदासँ विश्वास रहल अछि जे साहित्यिक संदर्भमे वर्तमान समयक उत्तर जँ भविष्यमे प्राप्त हुअए तँ ओ बेसी सटीक आ सार्थक होइ छै। अस्तु श्री बेचन ठाकुर जीसँ मैथिली मंचकेँ बड्ड आस छै आ तइ आसकेँ पूरा करबाक तागति भगवान हुनका देथिन्ह तइ आशाक संग चली हम प्रेक्षक समूहमे।
कोनो नाटक पहिने लिखल जाइए आ तकर बाद ओ टाइप होइए वा सोझे टाइप कएल जाइए आ तकर बाद कखन छपैए, मंचनक बाद वा मंचनक पहिने; ऐ सभमे आब कोनो अन्तर नै रहलै। जॉर्ज बर्नार्ड सॉ शॉर्टहैण्डमे लिखै छलाह आ हुनकर स्टेनो ओकरा लौंगहैण्डमे टाइप करै छलीह। बिनु छपने मैथिली धूर्तसमागम मैथिलीक पहिल पोस्ट मॉडर्न अबसर्ड नाटक अछि। ई तर्क जे छपलाक पहिने मंचन भेलासँ बहुत रास कमी दूर भऽ जाइए, ऐ सन्दर्भमे मलयालम कथाकार बशीरक उदाहरण अछि जे सभ नव छपल संस्करणमे अपन कथामे नीक तत्व अनबाक दृष्टिसँ संशोधन करै छलाह, ई कथामे सम्भव तँ नाटकमे तँ आर सम्भव। तँ सिद्ध भेल जे लिखल जेबाक वा छपि गेलाक बादे नाटकक मंचन हएत से नै; आ मंचनक बाद लिखल वा छपल दुनूमे सुधार सम्भव अछि। बेचन ठाकुरजी रंगमंच निर्देशक सेहो छथि आ विगत २५ बर्खसँ अपन गाममे मैथिली रंगमंचकेँ जियेने छथि बिना कोनो संस्थागत (सरकारी वा गएर सरकारी) सहयोगक। हिनकर रंगमंचपर हिनकर दर्जनसँ बेसी नाटकक अतिरिक्त गजेन्द्र ठाकुर आ जगदीश प्रसाद मण्डलक नाटक, एकांकी आ बाल नाटकक मंचन सेहो भेल अछि।

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