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Monday, September 3, 2012

पृथ्‍वीपुत्र -शि‍वकुमार झा ‘टि‍ल्‍लू’



अति‍क्रमण सबल व्‍यक्‍ति‍ वा समूहक अमानुषि‍क प्रवृति‍ रहल अछि‍। वैज्ञानि‍क मान्‍यताक अनुसारे सेहो अस्‍ति‍त्‍वक लेल संघर्ष आ ओइ संघर्षमे योग्‍यतमक उत्तरजीवि‍ता कालक्रममे होइ रहल अछि‍। जखन सम्‍पूर्ण सृष्‍टि‍मे बौद्धि‍क चेतनासँ युक्‍त मानव अस्‍ति‍त्‍वक लेल बेवस्‍थाक वि‍रूद्ध संघर्ष केवल तखन मि‍थि‍लाक माटि‍-पानि‍ कोना अछोप रहए।

समाजक ऊँच-नीच आ जय-पराजयक वृत्ति‍-चि‍त्रक रूपेँ ललि‍तेश मि‍श्र ललि‍त जीक उपन्‍यास पृथ्‍वी-पुत्र पुस्‍तकाकार सन् 1965 ई.मे प्रकाशि‍त भेल। जेना की आमुखमे स्‍वयं उपन्‍यासकार लि‍खने छथि‍ जे ई उपन्‍यास हंसराज जीक तगेदामे लि‍खल गेल, तँए ऐमे रचनाकारक सम्‍पूर्ण आत्‍मीयता देखब भ्रामक सि‍द्ध हएत। हमरा सबहक संग ई दुर्भाग्‍य रहल जे आत्‍मि‍क भाषामे रचनाकार अपन आशुत्‍वसँ बेशी तगेदाक कारणेँ रचना करैत रहलाहेँ।



रचनाक कारण जे हुअनि‍ मुदा एतबा तँ अवश्‍य प्रासांगि‍क आ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल वरदान मानल जाए जे पृथ्‍वीपुत्र उपन्‍यासक माध्‍यमसँ उपन्‍यसकार मि‍थि‍लाक माटि‍-पानि‍मे समाहि‍त सभसँ अंति‍म वर्गक समाज धरि‍ पहुँचि‍ गेल छथि‍ जे सोझ मानसि‍क प्रवृत्ति‍क द्योतक अछि‍। ओना ललि‍तक कथा “रमजानी” सेहो समाजक दलि‍त वा पछड़ल लोकक वृत्ति‍चि‍त्र थि‍क। स्‍वाभावि‍के छैक रचनाकार प्रशासनि‍क सेवामे रहल छथि‍,, समाजक ऊँच-नीच कृत्‍य-कुकृत्‍य आ वर्गक वि‍षमताक दर्शन बरोबरि‍ होइत हेतनि‍ तँए अपन दैनन्‍दि‍नीक अनुभवकेँ कल्‍पनाक सरोवरि‍मे बोरि‍ यथार्थवादी रूप देबाक प्रयास कएलनि‍ जइमे अंशत: सफल सेहो भेलाह।



उपन्‍यासक गाथा व्‍यावसायि‍क चलचि‍त्र जकाँ मध्‍यसँ प्रारंभ होइत अछि‍। घटनाक गर्त्तमे गेलासँ ई उपन्‍यास दलि‍त समाजमे सामन्‍तवादी शोषणक वि‍रूद्ध वर्ग संघर्षक चलचि‍त्र थि‍क।

जंगी पासवानक पुत्र वि‍सेखी पासवान कर्मसँ वैड-कैरेक्‍टरक चोर अछि‍। जकरा अपन दुनू पुत्र गेनालाल आ सरूपसँ बेशी अपन शि‍ष्‍य छतरपर वि‍श्वास छैक। गेनालाल जेकरा गेनमा कहल जाइछ ओकर चरि‍त्र भकलोल-मनुख मुदा कर्मशील मजूरक छैक। सरूप ऐ उपन्‍यासक नायक थि‍क। जकरा कतौ उपन्‍यासकार दलि‍त समाजक क्रांति‍-वीर वनएबाक प्रयास करैत छथि‍ तँ कतौ अपन बहि‍न बि‍जलीक कल्‍पनाथ मि‍श्र उर्फ कलपू मि‍श्रक संग अनैति‍क सि‍नेहक प्रोत्‍साहक वा साक्षी। सरूपक चि‍त्रक ई अर्न्‍तद्वन्‍द्व दलि‍त समाजक जीवन शैलीमे वि‍राधाभास मानल जाए। गेना लालक अर्द्धागि‍नी बेनी अपन पति‍क मृत्‍युक पश्चात् पारि‍वारि‍क सहमति‍ आ उत्तरदायि‍त्‍वक कारणे अपन देओर सरूपसँ बि‍आह कऽ लैत अछि‍। उपन्‍यास गाथाक वि‍चि‍त्र पात्र छथि‍ बि‍जुली वा बि‍जो बि‍जुरी आ बि‍जुरि‍या सन छद्म नामसँ वि‍भूषि‍त बि‍सेखी पासवानक कन्‍या “बि‍जली”। कौमार्यक आंगनमे प्रवेश करि‍ते बि‍जलीकेँ गामक पंडि‍त कुलमे जनमल कल्‍पनाथ मि‍श्रसँ प्रेम भऽ जाइत अछि‍। कलपू मि‍सर वि‍वाहि‍त छथि‍ मुदा पहि‍ल प्रसव पीड़ाक क्रममे हि‍नक कनि‍याँक देहान्‍त भऽ गेलनि‍। ऐ अनर्गल आ ि‍नष्‍कर्ष रहि‍त प्रेमक आभास दलि‍त समाजकेँ लागि‍ जाइत अछि‍। फलत: रेलवेमे पेटमेन हीरालालसँ बि‍जलीक बि‍आह कऽ देल गेल। रीति‍-प्रीति‍ आरंभे कालसँ साहि‍त्‍यक महत्‍वपूर्ण बि‍न्‍दु रहल छैक। ओइ मार्गदर्शनपर आगाँ बढ़ैत ललि‍त जी उपन्‍यासमे आकर्षणक सोमरस घोरबाक प्रयास करैत ऐ वि‍चि‍त्र पात्राकेँ ऐमे समाहि‍त कएलनि‍। दू-तीन बेरि‍ पेटमेन हीरा लालक सानि‍ध्‍यसँ बि‍जली पड़ा कऽ गाम आबि‍ गेलीह। मान-मनोबलक बाद फेर पति‍क क्‍वाटरमे गयलाक बाद कोयला सन धुरधुर घऽर आ बऽर नीक नै लगलनि‍। हीरा लालकेँ बि‍जलीक चरि‍त्रक वास्‍तवि‍कताक भान भऽ जाइत अछि‍। पुरुष सभ कि‍छु बर्दास्‍त कऽ सकैत अछि‍ मुदा अपन दाराकेँ दोसर पुरुषक सन आत्‍मि‍क वा दैहि‍क वरण पुरुषक लेल घोंटव असंभव। बि‍जलीक प्रति‍ हीरा लालक व्‍यवहार कर्कश भऽ जाइत अछि‍।



अंति‍म परि‍णति‍ भेल जे बि‍जली सभ दि‍नक लेल नैहर आबि‍ गेली। हीरा लाल पुनि‍ आएल मुदा ओकरा चरि‍त्रपर खलनायि‍का बि‍जली लांछना लगेबाक लेल सरुपकेँ उत्‍साहि‍त केलक। गामक मानि‍जन अर्थात् जति‍या राजा काी दासक अंति‍म ि‍नर्णय भेल जे बि‍जली आब हीरा लाल संगे नै जेतीह। ओना समाजक सभ पंच एकमत छलाह जे बि‍जलीक पुर्नवि‍वाह कराओल जाए, मुदा जखन रचनाकार मात्र उपन्‍यासक आकर्षक लेल ऐ चरि‍त्रक ि‍नर्माण कएने छथि‍ तँ क्रांति‍क आश असंभव। कल्‍पनाथ मि‍श्र आ बि‍जलीक सि‍नेह पत्रहीन नग्‍न गाछ जकाँ मानल जाए जकर अस्‍ति‍त्‍व नै। एक दि‍स जखन सरूप पुछैत अछि‍ बि‍जलीसँ-

“पाहुन मोन पड़लौ की....?” तँ बि‍जलीक उत्तर दार्शनि‍क जकाँ भेटल तँ दोसर दि‍स बि‍जली कलपू मि‍सर द्वारा दोहरि‍ मोड़ि‍ कऽ देबए काल बलजोरी शब्‍द सुनि‍ बजैत अछि‍- तोरा संग कुश्‍तम पटकममे डाँड़ तँ नै हएत हमरा....।

ई सि‍नेह कोन तरहक मानल जाए ई ि‍नर्णए करब सर्वथा असंभव।



उपन्‍यासगाथामे कथाक्रमानुसारे वि‍कराल वर्ग संघर्ष देखार होइत अछि‍। सर्वे एलाक बाद गरीबक जमीन कागतपर तँ आपि‍स होइत अछि‍ मुदा जंग बहादुर सि‍ंह सन जमीन्‍दार दुसाध आ मुसहर समाजकेँ जमीन देबाक लेल तैयार नै अछि‍। वर्ग संघर्ष करबाक लेल सरूप उद्यत भेल। सरूपक दलमे जजाति‍ कटबाक लेल गेनालाल सन माटि‍क पूत मात्र छल। जंग बहादुरक हँसेरीदल लोहा सि‍ंहक नेतृत्‍वमे सरूपपर हमला कऽ देलक। अनुजकेँ वचेबाक क्रममे गेनमा मारल गेल। ऐ वर्ग संघर्षक अंत औचि‍त्‍वहीन लगैत अछि‍। सन् 1965 ई.मे भारत आजाद भऽ गेल छल। तखन दलि‍त समाजक एकटा माटि‍क लाल सामन्‍तवादी तत्‍वक आगाँ लुप्‍त भऽ गेल आ जंगबहादुर सन सामन्‍तीक ओइठाम पुलि‍स पहुँचल नै हएत...। ई अत्‍यन्‍त हास्‍यास्‍पद लगैत अछि‍। जौं ऐ तरहक घटना भेलो हएत तैयो उपन्‍यासकारकेँ ऐमे क्रांति‍ अनबाक प्रयास करबाक छलनि‍। साम्‍यवादी लेखनीसँ ि‍नकसल उपन्‍यासक अंश अत्‍यन्‍त ि‍नर्बल मानल जाए।



ऐ घटनासँ पूर्व बि‍जलीक चरि‍त्रपर आधात दुर्योधन सि‍ंह सन सि‍पाही करैत अछि‍। ओकरा सरूप काटि‍ दैत अछि‍। पुत्रकेँ जेहलसँ बचएबाक लेल बि‍सेखी सभ दोख अपना ऊपर लऽ जहल चलि‍ जाइत अछि‍ जइठाम संग्रहणी सन बेमारीसँ ओकर मृत्‍यु भऽ गेल।



बिसेखीक चरि‍त्रक काल-क्रमानुसार परि‍वर्त्तन उपन्‍यासक सबल पक्ष मानल जाए। पहि‍ने जखन चोर छल तँ ओकरा कि‍छु नै भेल आ जखन कि‍छु नै केलक तँ पुत्रमोह आ पारि‍वारि‍क मर्यादाक कारणेँ सजा भेटल। बी.सी. कैरेक्‍टरक चोरसँ मुक्‍ति‍ पाबए लेल कलक्‍टरक आगाँ सप्‍पत खेने छल। ओइ सप्‍पत खेबामे घुरन दुसाध, मंडर पाण्‍डे, खख्‍खन जट्ट, रौदी खलीफा आ बुच्‍ची झा सन चोर सेहो छल। उपन्‍यासकार द्वारा चोरक नाम चयन करबामे ई स्‍पष्‍ट भऽ गेल चोरक कोनो जाति‍ नै होइत छैक, समाजक अग्र आसन बैसैबला लोककेँ सेहो कुकर्मी समाजमे स्‍थान छन्‍हि‍। ई उपन्‍यासकारक समन्‍वयवादी सोच मानल जाए।



आब बि‍सेखीक परि‍वारमे पुरुष पात्रक रूपमे बचैत अछि‍- सरूप। सरूपकेँ ललि‍त पृथ्‍वीपुत्र बनेबाक कोनो अबसरि‍ नै छोड़ैत छथि‍। ऐ उपन्‍यासक ओ वास्‍तवि‍क नायक अछि‍। अपन पि‍ताकेँ चोरि‍ नै करबाक सप्‍पत खाइत काल लड़खड़ाइत देखि‍ ओ क्रोधि‍त भऽ जाइत अछि‍। ओकरा चोरि‍ करब कथमपि‍ पसि‍न्न नै। जंगबहादुरकेँ ललकारि‍ जजाति‍ काटि‍ लेबाक उपक्रममे शोषि‍त समाजक ओ “क्रांति‍वीर” बनि‍ जेबाक लेल उद्यत अछि‍। बहि‍नक आँचरपर दुर्योधन सि‍ंह सन सि‍पाहीक हाथ देखि‍ ओकर हत्‍या कऽ केलक। सरूप कर्मवादी सत्‍पुरुष अछि‍। जाधरि‍ बेनीकेँ सरूपक माय एकर अंक नै लगलन्‍हि‍ ताधरि‍ ओइ भाउजमे सरूप मात्र श्रद्धापूर्वक मातृत्‍व रूप देखलक। ऐ दलि‍त समाजक आदरणीय पात्रकेँ ललि‍त एकठाम कलंकी चरि‍त्र बना देलनि‍। कल्‍पनाथ मि‍सरक अनर्गल सि‍नेहसँ बँधलि‍ बि‍जलीकेँ सरूप आत्‍मसात केना केलक। एकठाम भाउजि‍क वि‍षक्‍त हँसी आ व्‍यंग्‍यवाणसँ आकुल भऽ सरूप बि‍जलीपर क्रोध तँ करैत अछि‍ मुदा सम्‍पूर्ण उपन्‍यासमे कलपू मि‍सरक प्रसंगमे पृथ्‍वीपुत्र चुप्‍प रहि‍ गेल। सि‍नेह कोनो अपराध नै, कि‍यो केकरोसँ कऽ सकैत अछि‍, मुदा ऐ सि‍नेहक कोनो नि‍ष्‍कर्ष नै। सरूप सन सोझ मानसि‍कताक पुरुष ऐ अनर्गल सि‍नेहकेँ केना समर्थन देलक। बि‍जली ठाम-ठाम औचि‍त्‍यहीन सि‍नेही जकाँ बेनीसँ अपन प्रेमकेँ सबलता प्रदान करबाक लेल नि‍रर्थक संवाद करैत अछि‍। ऐसँ इहए प्रमाणि‍त होइछ जे ऐ नारीकेँ अपन माता-पि‍ता आ भाइक मर्यादाक कोनो बोध नै। तखन एकठाम महान दार्शनि‍क जकाँ बि‍जलीकेँ दृष्‍टि‍ पटलपर राखब उपन्‍यासकारक अदूरदर्शिता छन्‍हि‍। जखन कलपू मि‍सर अपन माइक राखल अभरन बि‍जलीकेँ पहि‍रबाक अनुरोध करैत अछि‍ तँ ओ बजैत अछि‍ जे-

“ओ गहना पहि‍रब तँ हम जरि‍ जाएब। जखन बि‍जली एतेक बुद्धि‍मती महि‍ला अछि‍ तँ अपन मान-मर्यादा अपन बाप-पुरूखाक द्वारा बनाओल बेवस्‍था अर्थात् पाणि‍ग्रहण संस्‍कार द्वारा वरणेय हीरालालकेँ कि‍अए छोड़ि‍ देलक। ई नि‍श्चि‍त रूपे जातीय संकीर्णतासँ बान्‍हल उपन्‍यासकारक व्‍यक्‍ति‍गत अनर्गल सोच छन्‍हि‍।”



जौं ऐ उपन्‍यासमे वर्ग-संघर्ष देखाएब यथार्थबोध मानल जाए तैयो ऐमे कमजोरी अछि‍। वर्ग संघर्षमे हत्‍या आ ओइ हत्‍याक बाद केनि‍हारकेँ कोनो सजा नै, अत्‍यन्‍त ि‍नर्बल पक्ष थि‍क। कलपू मि‍सर आ बि‍जलीक ि‍सनेहमे बि‍सेखीक परि‍वारक कोनो तीक्ष्‍ण अवरोध नै देखाएब दलि‍त समाजक चेतनापर आधात मानल जाए। समाजक कात लागल वर्ग सवर्ण आ सामन्‍तवादी लग अपन घरक गणि‍काकेँ परसि‍ सकैत अछि‍... सर्वथा असंभव। दलि‍त समाजक नारीसँ सवर्ण समाजक पुरुष बेबाक गप्‍प तखने कऽ सकैत छथि‍ जखन हुनक वि‍चार आ चरि‍त्र वि‍श्वसनीय हुअए। भऽ सकैत अछि‍ बि‍जली सन कोनो वि‍शेष नारी एहेन मानसि‍कता रखैत छथि‍ वा होथि‍ मुदा परि‍वारक आन लोक ऐ तरहक िसनेहकेँ कथमपि‍ नै स्‍वीकार करत। जौं एकर अंत दुनूक बि‍आह देखा कऽ कएल जइतए तँ ई उपन्‍यास अवश्‍य दूरगामी होइतए। अंर्तद्वन्‍द्वसँ भरल समाजसँ ललि‍त कोनो अलग नै छथि‍ तँए सभ सकारात्‍मकताक आश राखब उचि‍त नै।



एतेक तँ नि‍श्चि‍त जे पृथ्‍वीपुत्र शि‍ल्‍पमे बड़ नीक स्‍थान रखैत अछि‍। वि‍म्‍ब कोनो वि‍शेष नै मुदा समाजक अंति‍म वर्ग धरि‍ पहुँचल तँए व्‍यापक मानल जाए। जि‍तपुर मौजाक टोल बबुरबन्नाक गाथा, मुदा टोलमे खएरक बोन बबूरसँ बेसी मुदा नाओं बबुरबन्ना। वास्‍तवि‍कता अछि‍ सामर्थ्‍यवान लोक कम रहि‍तौ पूजनीय होइत छथि‍, उपन्‍यासकारक दृष्‍टि‍कोण सम्‍यक् आ समन्‍वयवादी ऐठाम तँ अवश्‍य लगैत अछि‍। भाषा ओ शैली गति‍मान आ खाँटी ग्रामीण आंचलि‍क मैथि‍लीमे लि‍खल गेल जे ललि‍तक योग्‍यताक प्रत्‍यक्ष प्रमाण थि‍‍क। आाचार्य रमानाथ झाक ऐ मतसँ हम सहमति‍ नै रखैत छी जे हास्‍य रसक अभावमे पृथ्‍वीपुत्र झुझुआन लगैत अछि‍। जखन स्‍थि‍ति‍ कनबाक हुअए तँ हास्‍य समागम संमव नै ऐ उपन्‍यासमे हास्‍य रसक समागम करब ि‍नरर्थक होइतए।



ऐ पोथीक सभसँ सकारात्‍मक पक्ष थि‍क समाजक यथार्थवादी बेवस्‍थाक मौलि‍क चि‍त्रण। जाति‍-पाति‍मे टुटल समाजक सत्‍यकेँ स्‍पष्‍ट देखबैत उपन्‍यासकार एकठाम एहेन साहस कऽ देलनि‍ जे संभवत: सबल समाजमे जनमल दोसर साहि‍त्‍यकारसँ अवश्‍य असंभव होइतए। पृथ्‍वीपुत्र पलायनवादक वि‍रोध करैत अछि‍। जमीन्‍दार कृषि‍कार्य स्‍वयं नै करताह, मुदा जमीनक सकल उत्‍पाद आ स्‍वामि‍त्‍व हि‍नके भेटनि‍, ऐ कटु सत्‍यसँ ललि‍त वि‍लग छथि‍। हि‍नक लेखनीसँ क्रांति‍क सुगंध पसरल जे जमीन ओकरे हएत जे एकरा जोतए। वास्‍तवि‍कता सेहो छैक साम्‍यवादी बेवस्‍थामे कर्म पुरुषकेँ कर्मक फल अवश्‍य भेटबाक चाही। जे संतान माए-बापक प्रति‍ अपन कर्त्तव्‍य पालन नै करए ओकरा मातृ-पि‍‍तृ सि‍नेह मंगबाक कोनो अधि‍कार नै। अपन पसेनासँ माटि‍ कोरि‍ जे मजूर धरतीकेँ बाँझ होएबासँ बचाबथि‍ हुनके ऐ माटि‍क स्‍वामि‍त्‍व भेटबाक चाही।

जौं ऐ प्रकारक सोचकेँ सबलता प्रदान कएल जाए तँ कृषि‍ प्रधान देशमे अपन मौलि‍क कर्मसँ लोक वि‍मुख भऽ पड़ाइन नै करताह। प्राकृति‍क संतुलनकेँ जीवन्‍त राखब सभक मौलि‍क कर्त्तव्‍य थि‍क। ऐ तरहक साम्‍यवादी दृष्‍टि‍कोण मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ अवश्‍य नव दि‍शा देलक। ि‍नष्‍कर्षत: पृथ्‍वीपुत्र कि‍छु अर्न्‍तद्वन्‍द्वसँ भरल रहलाक बादो मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे नव चेतना भरबाक लेल अनुगामी उपन्‍यास मानल जाए।

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