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Sunday, April 8, 2012

कालीकान्त झा ’बूच’ क कलानिधि -एक टा अभिशप्त कवि : बूच बाबू-रवि भूषण पाठक


एक टा अभिशप्त कवि : बूच बाबू
ऐ आलेखक आरंभ सर्वप्रथम गाम करियनमे कविक छविसँ करैत छी। गाममे ई कविजीक रूपमे ख्यात रहलाह मुदा हिनकर उपेक्षाक कथा सेहो गामेसँ प्रारम्भ होइत अछि। प्रख्यात दार्शनिक उदयनाचार्यक भूमिमे जनमल ई कवि ने गाममे न्याय पओलक ने बाहर। गंभीर लेखनकेँ मान्यता नै भेटैत देखि कवि गामक व्याहमे अभिनंदन पत्र लेखनमे सेहो रूचि लिअ लागलाह। एहि काजसँ ने हुनका गाममे केओ रोकलक ने बाहर केओ ।सौभाग्य ई जे एहि हीन साहित्यिक वृत्तिमे रमलाक बादो कवि मैथिलीक सर्वश्रेष्ठ स्वागतगान लिखलन्हि। प्रत्यक्षदर्शी कहैत छथि जे गाम वैद्यनाथपुरमे ऐ गानक समए कतेको मंचस्थ माननीय तिलमिला उठलाह। ई गान मिथिला सहित मैथिलीक दुर्दशाक व्यथागीत बनि गेल-
उल्लासक गीत कतऽ सगरो करूणा क्रन्दन
उपटि रहल विपटि रहल मैथिलीक नन्दन वन
भ्रमरझुण्ड प्यासल छथि, वृहगवृन्द बड़ भूखल
मुरूझल छथि आम-मऽहू, रऽसक सरिता सूखल
बबुरे वन कवि कोकिल, लाजे मरै छी
आउ आउ आउ सब के स्वागत करै छी
कवि दोसर अनुच्छेदमे मैथिली मानुसक उत्सवप्रियतापर व्यंग्य करै छथि। हम सभ विद्यापति समारोह, हिन्दी दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयन्तीकेँ सत्यनारायण भगवानक कथाबला रीतिनिष्ठासँ मना लैत छिऐ आ समारोहक उच्च उद्देश्य ओहिना उपेक्षित रहि जाइत अछि ।
मात्र ई समारोही गोष्ठीसँ की हेतै?
स्थिति जहिना तहिना, संवत एतै जेतै
मुरदा जगाउ लाउ पैर पकड़ै अछि
आउ आउ सब के स्वागत करै छी
ई गान साहित्यक उद्देश्यपर सेहो विचार करैत अछि। कोनो खंडन मंडनक गुंजाइश नै छोड़ैत, ई स्पष्ट कहैत अछि-
काव्यपाठ करू मुदा कान्ह पर लिअ लाठी
एक हाथ रसक श्रोत, दोसरमे खोरनाठी
पुरना किछु त्यागि त्यागि, पकड़ू किछु नऽव ढ़ंग
मोंछो पिजाउ बाउ श्रृंगारक संग संग
अहाँ गीत गाउ मुदा हम हहरै छी
रसश्रोतक संगे खोरनाठी लऽ कऽ चलएबला ई कविता साधारण नै अछि। पाश्चात्य काव्यशास्त्र ई मानैत अछि जे महान साहित्य कोनो एक भाव लऽ कऽ नै चलैत अछि। ई साहित्यमे विविध आ कखनो कखनो परस्पर विरोधी भावक संश्लेष करैत अछि। बूच बाबूक कवितामे विरूद्धक ई सामंजस्य हमरा चकित करैत अछि।
हिंदी आलोचक राम चन्द्र शुक्ल विरूद्धक सामंजस्यकेँ एकटा बड़का काव्योपकरण मानैत छथिन्ह। बूच बाबूक एकटा आर कवितामे एकर दर्शन होइत अछि।
‘सोनदाय’ कविताकेँ ध्यानसँ पढ़ू।सर्वप्रथम एकरामे श्रृंगारिक लक्षण बुझाइत अछि।
रहतौ ने हास बहि जेतौ विलास गय
दुइ दिवसक जिनगीसँ हेवे निराश गय
भरमक तरंग बीच मृगतृष्णा जागल छौ
मोहक उमंग बीच प्राण किएक पागल छौ
चलि जेतौ सुनें कंठ लागल पियास गय
दुइ........
कवितामे दू टा भाव स्पष्ट अछि। प्रथम प्रेम निवेदन आ दोसर विरागक स्वीकृति। आ दूनू मिलि कऽ विषादक विराट रूपकेँ जन्म दैत छैक। जे ऐ कवितामे कोनो एकटा भाव रहितै, तखन ई कोनो विलक्षण कविता नै बनि सकैत छल।
एहि वैशिष्ट्यकेँ बूच बाबू कवितामे कोना आनैत छथि, ई बात बेस रूचिगर अछि। कवितामे विद्वान लक्षणा आ व्यंजनाकेँ पैघ बूझैत छथिन्ह मुदा कवि बूच अभिधापर निर्भर छथि। हुनकर कवितामे अलंकारक सेहो कतहु विशेष उपयोग नै अछि। तखन ऐ वैशिष्ट्यक श्रोत की अछि? एकर श्रोत अछि हुनकर विराट जीवनानुभव। अपन समृद्ध अनुभवक आधारपर ओ शब्दक नव जाल बूनैत छथि आ अपन रचनात्मक शक्तिकेँ यादि करैत ओकरा दृढ़ आ सुरेबगर बनबैत छथि।
एकटा अध्यापकक घरमे जन्म लेनिहार ई कवि सौन्दर्यक विविध रूपक साक्षात्कार कएलक। कखनहु जेठक उद्धत नदी करेह एकर मोनकेँ मोहैत अछि-
ई इन्होर पानि चमकै छौ
मोर मोरपर भौरी दै छौ
काटि काटि डीहक करेजकें
तऽरे तऽरे समाइ छौ
इएह कवि नागार्जुनक कविता ‘एक फांक आंख’ जकाँ नायिकाक ठोरक रस्तासँ अभिनव सौंदर्य देखैत अछि-
कि जहिना कुरकुर पानक ठोर
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर
लगौलह बातक पाथर चून
सजौलह कऽथ कपोलक खून
कि रहलह एक्के बातक चूक
कतऽ छह प्रेमक पुंगी हूक?
ई कवि भारतक ग्राम्य सुषमाक अनन्य प्रेमी अछि। महानगरीय कृत्रिमताक स्थानपर ई सहज सौंदर्यकेँ वरेण्य मानैत अछि-
ईडेन गार्डेन सँ सुन्नर अछि
कोशी कातक बोन गय
इएह प्रेम एकटा प्रेमिकाक ह्रदयसँ निकलैत अछि-
प्रियतम चलि आबू पटनासँ गाम
ऐ प्रेमक ठोस आधार अछि। कवि नगरीय जीवन, शहरीकरण आ प्रशासनिक भ्रष्टाचारकेँ निशाना बनबैत अछि-
घूसखोर मच्छर उड़ीस जकाँ जीवै छै
शोनित तँ ओ अवशिष्ट पीवै छै
हड्डी सुखायल अछि तैयो ओ अधिकारी
खगले केर तीरै छै चाम
कुत्ता जहिना हड्डी सँ मांस,खून आ रस खींचैत अछि, तहिना सरकारी अधिकारी वर्ग सेहो आम जनताक संग करैत अछि। कवि स्वयं बिहार सरकारक राज्य कर्मचारी छलाह, ताइ दुआरे ऐ अनुभवसँ ओ नित्य प्रति गुजरैत हेताह।
मैथिली कवितामे हिंदी कविताक तुलनामे बेटीक ब्याह, दहेज आदिक बेशी चिंता रहलैक अछि। यद्यपि ई चिंता सीता, पार्वतीक ब्याहक रूपमे धार्मिक आयाम लैत अछि, तथापि एकर मूलाधार सामाजिक अछि। अन्य मैथिल कविक संगे हुनको गौरी आ सीताकेँ कुमारी रहबाक दर्द छन्हि-
चामक सेज, कुगामक वासी
खन कैलाश, खनेखन काशी
लागथि बुत्त भुताह हे, गौरी रहथु कुमारी !
ई मिथिला अंचल मे व्याप्त दहेज आ समएसँ बेटीक व्याह नै हेबाक चिंता अछि। कवि सेहो ऐ चिंतासँ जूझैत अछि आ बेटीक लेल एकटा अद्भुत रूपक खोजैत अछि।‘फूलडाली‘ क रूपमे बेटीक कल्पना करैत कवि बेटीमे तमाम पवित्रता आ दैवत्वकेँ रूपांतरित करैत अछि-
फूलडाली सन बेटी बनलै
माथे परक पहाड़
एक कवितामे कवि कोनो बेटाक बापकेँ चारिटा बेटी होएबाक व्यंग्यात्मक कल्पना करैत अछि-
तोरेा कुमारि चारि दाय हो
मोन पड़ि जयतह नानी
एक अन्य कवितामे वरक खानदानकेँ व्यापारी देखाओल गेल अछि-
बबा दलाल बाप बड़दक व्यापारी,
बेटा बछौड़ बीकि गेलै हजारी
कविक ख्याति हास्य आ भक्ति कविक रूपमे रहल मुदा कविक फूलडालीमे सभ तरहक फूल छलए। फूल नाममात्रक नै काव्य उपवनक सभसँ मधुर, सुगंधित आ पवित्र फूल। कवि अपन दैन्य आ निराशाकेँे भक्ति गीतमे व्यक्त कएलक, ई गीत बहुत बेसी मात्रामे अछि मुदा मात्र एक गीतक चर्चा हम करैत छी, लागैत अछि जेेना विद्यापति पदावलीक कोनो पद होअए-
जननि हय, जीवन हमर कठोर
अध्यावधि सुख-शांति न भेटल
पयलहँू विपति अघोर
जननि हय जीवन हमर कठोर
बूच बाबू अपन जिनगी आ कवितामे काव्यशास्त्रीय रूढ़िक पालन नै केलाह ने ओ कोनो काव्यात्मक आंदोलनसँ जुड़ि कुकुरमुतिया काव्यक रचना केलाह। ओ ह्रदएसँ कविता करैत छलाह, ताइ दुआरे हुनकर आलोचना सेहो ह्रदएसँ हेबाक चाही। बिझिआइल हाँसूसँ भरिगर गाछ नै कटत। बूच बाबूक काव्यक आलोचना सोचि समझि कऽ होएबाक चाही। यद्यपि ओ कोनो तत्कालीन आंदोलनमे रूचि नै लेलाह, परन्तु हुनकर कविता भाव आ शिल्प दुनू दृष्टिसँ रचनात्मक अछि। रचनात्मकता आ मौलिकताक औजारसँ हुनका परखल जाए तँ ओ मैथिली कविताक इतिहासमे किछु शीर्ष कविमे गणनीय छथि। मुदा हुनकर कविताक विषयमे बहुत भ्रांति अछि। कखनहु छपलाक दृष्टिसँ तँ कखनहु पुरस्कारक दृष्टिसँ हुनकर अवहेलना होइत चलि जाइत अछि। केओ आलोचक कविताक संख्याक दृष्टिसँ सेहो आपत्ति कऽ सकैत छथि! किएक तँ ई अभिनवगुप्त आ मम्मटक देश नै अछि। ई शतक आ सहस्रकम लिखएबलाक देश अछि! विडम्बना ई अछि जे कविक सुपुत्र श्री शिव कुमार झा सेहो मैथिली आलोचनासँ जुड़ल छथि आ अपन आलोचनामे ककरो निराला आ ककरो प्रसाद बनाबैत छथिन्ह मुदा मर्यादावश वा जे कारण हो पिताक रचनात्मकतापर ओ श्रद्धा तँ व्यक्त करैत छथिन्ह मुदा खुलि कऽ सोझाँ नै आबैत छथिन्ह। हम ऐठाम इएह कहब जे ओ निराला आ प्रसाद नै, ओ बूच छलाह, मैथिलीक बूच। हुनका मात्र ऐ रूपमे सम्मान दऽ हम मैथिली आलोचनाक तर्पण कऽ सकैत छी ।
कविक रचनात्मकताक दूटा संदर्भ आर अछि। कविक रचना ‘अकाल’ संभवतः नागार्जुनक हिंदी कविता ‘अकाल और उसके बाद’ क बाद भेलए। मुदा दुनूक दू संदर्भ आ दृश्य। नागार्जुन जाइ ठाम पशु पक्षी आ मानवक स्थितिक चित्र दऽ रहल छथि, ओइ ठाम बूच बाबूू गुजराती उपन्यासकार पन्नालाल पटेलक रचना ’मानभीनी भवाई’ जकाँ काल देवताक याद करैत छथि।
ई अकाल नहि महाकाल अछि
भूखक उक बान्हि नांगरिसँ
चारेपर ठोकैत ताल अछि।
..............................................
बीसहूँ आँखि ओनारि दसानन
घुटुकि घुटुकि हिलबैत भाल अछि
बूच बाबू अपन एक अन्य कविता ’राम प्रवासी’मे रामकेँ वनवासीक बदला प्रवासी कहैत छथि। मात्र ऐ शब्दक द्वारे ई कविता अपन पौराणिक केंचुलकेँ त्यागि आधुनिकता दिस संक्रमित होइत अछि।
धिक धिक जीवन दीन अहाँ बिनु
बीतल बरख मुदा जीवै छी
जीर्ण-शीर्ण मोनक गुदड़ीकें
स्वार्थक सुइ भोंकि सीबै छी
निष्ठुर पिता पड़ल छथि घर मे
कोमल पुत्र विकल वनवासी
आउ हमर हे राम प्रवासी

जीता जी हुनकर कोनो किताब नै छपल। मरलाक बाद हुनकर ९८ टा कविताक संग्रह श्रुति प्रकाशनसँ आबि रहल अछि। निन्नानबेक फेरमे हमरा जनैत कवि कहियो नै पड़लाह। जिनगीक ऐश्वर्य आ प्रेमकेँ कवि खूब नीक जकाँ भोगलाह। परन्तु ई सभ मृगतृष्णा बनि कविक जिनगीमे आबैत जाइत रहल-
कयलहुँ जहिना किछु आलिंगन
चुभि गेल अनेको वक्रशूल
उड़ि गेल गगन दुर्लभ सुगंध
झड़ि गेल धरा मकरंद प्रीत
सौन्दर्यक भूमि मरूभूमि भेल
रमणीय देवसरि सुखा गेल
कवि जिनगीकेँ ऊँच-नीचक कविता जकाँ देखलखिन्ह अर्थात विभिन्न भाव आ रससँ परिपूर्ण। कोनो एक रस आ भावमे रमनाइ ओ नै सिखलन्हि। संभवतः काल देवता स्वयं हुनकर कीर्तिक सोझाँ आबि गेलाह अन्यथा हुनकासँ कम सामर्थ्यक कविगण बेशी यश, पुरस्कार आ सम्मानक भागीदार बनलाह। ई अभिशाप कविक कम आ मैथिली आ भारतीय साहित्य आ आलोचनाक बेसी अछि।


राजदेव मण्डलक अम्बरा- गजेन्द्र ठाकुर



कविता: कविता लोक कम पढ़ैत अछि। संस्कृतसन भाषाक प्रचार-प्रसार लेल कएल जा रहल प्रयासक अंतर्गत सम्भाषण-शिविरमे सरल संस्कृतक प्रयोग होइत अछि। कथा-उपन्यासक आधुनिक भाषा सभसँ संस्कृतमे अनुवाद होइत अछि मुदा कविता ओहि प्रक्रियामे बारल रहैत अछि। कारण कविता कियो नै पढ़ैत अछि आ जै भाषा लेल शिविर लगेबाक आवश्यकता भऽ गेल अछि, तै भाषामे कविताक अनुवाद ऊर्जाक अनर्गल प्रयोग मानल जाइत अछि। मैथिलीमे स्थिति एहन सन भऽ गेल अछि, जे गाम आइ खतम भऽ जाए तँ ऐ भाषाक बाजएबलाक संख्या बड्ड न्यून भऽ जाएत। लोक सेमीनार आ बैसकीमे मात्र मैथिलीमे बजताह। मैथिली-उच्चारण लेल शिविर लगेबाक आवश्यकता तँ अनुभूत भइए रहल अछि। तँ एहि स्थितिमे मैथिलीमे कविता लिखबाक की आवश्यकता आ औचित्य ? समयाभावमे कविता लिखै छी, एहि गपपर जोर देलासँ ई स्थिति आर भयावह भऽ सोझाँ अबैत अछि। एहना स्थितिमे आस-पड़ोसक घटनाक्रम, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, आक्षेप आ यात्रा-विवरणी यएह मैथिली कविताक विषय-वस्तु बनि गेल अछि। मुदा ऐ सभ लेल गद्यक प्रयोग किए नै ? कथाक नाट्य-रूपान्तरण रंगमंच लेल कएल जाइत अछि मुदा गद्यक रूपान्तरण कवितामे कोन उद्देश्यसँ। समयाभावमे लिखल जा रहल ऐ तरहक कविता सभक पाठक छथि गोलौसी केनिहार समीक्षक लोकनि आ स्वयं आमुखक माध्यमसँ अपन कविताक नीक समीक्षा केनिहार गद्यसँ पद्यमे रूपान्तरकार महाकवि लोकनि ! पद्य सर्जनाक मोल के बूझत ! व्यक्तिगत लौकिक अनुभव जे गहींर धरि नै उतरत तँ से तुकान्त रहला उपरान्तो उत्कृष्ट कविता नै बनि सकत। पारलौकिक चिन्तन कतबो अमूर्त रहत आ जे ओ लौकिकसँ नै मिलत तँ ओ सेहो अतुकान्त वा गोलौसी आ वादक सोंगरक अछैतहुँ सिहरा नै सकत। मनुक्खक आवश्यक अछि भोजन, वस्त्र आ आवास। आ तकर बाद पारलौकिक चिन्तन। जखन बुद्ध ई पुछै छथि जे ई सभ उत्सवमे भाग लेनिहार सभ सेहो मृत्युक अवश्यंभाविताकेँ जनै छथि? आ से जे जनै छथि तखन कोना उत्सवमे भाग लऽ रहल छथि। से आधुनिक मैथिली कवि जखन अपन भाषा-संस्कृतिक आ आर्थिक आधारक आधार अपना पएरक नीचाँसँ विलुप्त होइत देखै छथि आ तखनहु आँखि मूनि कऽ ओहि सत्यताकेँ नै मानैत छथि, तखन जे देश-विदेशक घटनाक्रमक वाद कवितामे घोसियाबए चाहै छथि, देशज आ दलित समाज लेल जे ओ उपकरि कऽ लिखऽ चाहै छथि, उपकार करऽ चाहै छथि, तँ ताहिमे धार नै आबि पबै अछि। मुदा जखन राजदेव मंडल कविता लिखै छथि-
....
टप-टप चुबैत खूनक बून सँ
धरती भऽ रहल स्नात
पूछि रहल अछि चिड़ै
अपना मन सँ ई बात
आबऽ बाला ई कारी आ भारी राति
कि नहि बाँचत हमर जाति...?
तँ से हमरा सभकेँ सिहरा दैत अछि। कविक कवित्वक जाति, ओइ चिड़ैक जाति आकि..। कोन गोलौसी आ आत्ममुग्ध आमुखक दरकार छै ऐ कविताकेँ। कोन गोलौसीक आ पंथक सोंगर चाही ऐ सम्वेदनाकेँ। तँ कविताकेँ उत्कृष्टता चाही। भाषा-संस्कृतिक आधार चाही। ओकरा खाली आयातित विषय-वस्तु नै चाही, जे ओकरापर उपकार करबाक दृष्टिएँ आनल गेल छै। ओकरा आयातित सम्वेदना सेहो नै चाही जे ओकर पएरक नीचासँ विलुप्त भाषा-संस्कृति आ आर्थिक आधारकेँ तकबाक उपरझपकी उपकृत प्रयास मात्र होअए। नीक कविता कोनो विषएपर लिखल जा सकैत अछि। बुद्धक मानवक भविष्यक चिन्ताकेँ लऽ कऽ असञ्जाति मनकेँ सम्बल देबा लेल सेहो, नै तँ लोक प्रवचनमे ढ़ोंगी बाबा लेल जाइते रहताह। समाजक भाषा-संस्कृति आ आर्थिक आधारक लेल सेहो, नै तँ मैथिली लेल शिविर लगाबए पड़त। बिम्बक संप्रेषणीयता सेहो आवश्यक, नै तँ कवि लेल पहिनेसँ वातावरण बनाबए पड़त आ हुनकर कविताक लेल मंचक ओरिआओन करए पड़त, हुनकर शब्दावली आ वादक लेल शिविर लगा कऽ प्रशिक्षण देल जएबाक आवश्यकता अनुभूत कएल जाएत आ से कवि लोकनि कइयो रहल छथि !
मिथिलाक भाषाक कोमल आरोह-अवरोह, एतुक्का सर्वहारा वर्गक सर्वगुणसंपन्नता, संगहि एतुक्का रहन-सहन आ सांस्कृतिक कट्टरता आ राजनीति, दिनचर्या, सामाजिक मान्यता, आर्थिक स्थिति, नैतिकता, धर्म आ दर्शन सेहो साहित्यमे अएबाक चाही। आ से नै भेने साहित्य एकभगाह भऽ जाएत, ओलड़ि जाएत, फ्रेम लगा कऽ टंगबा जोगड़ भऽ जाएत। कविता रचब विवशता अछि, साहित्यिक विवशता। जहिया मिथिलाक लोककेँ मैथिली भाषा सिखेबा लेल शिविर लगाओल जएबाक आवश्यकता अनुभूत होएत, तहिया कविताक अस्तित्वपर प्रश्न सेहो ठाढ़ कएल जा सकत। आ से दिन नै आबए तै लेल सेहो कविकेँ सतर्क रहए पड़तन्हि।
आ से राजदेव मंडल सतर्क छथि आ तैँ हिनकर कविता-संग्रह अम्बरा एक्कैसम शताब्दीक पहिल दशकक सर्वश्रेष्ठ मैथिली कविता संग्रह बनि आएल अछि।                                    

मैथिली नाटक आ आधुनिक रंगमंच- गजेन्द्र ठाकुर


मैथिली नाटक आ आधुनिक रंगमंच
नाट्य शास्त्रमे वर्णन अछि जे नाटकक उत्पत्ति इन्द्रक ध्वजा उत्सवसँ भेल।
मैथिली नाटक आ रंगमंचक इतिहास ज्योतिरीश्वरक धूर्त समागम आ अंकिया नाटसँ प्रारम्भ होइत अछि।
कोलकातामे १८५० ई.क आसपास आधुनिक रंगमंच- ब्रिटिश क्लबमे शुरू भेल, मुदा बाहरी लोकक प्रवेश ओतए नै छल।
पूर्व पीठिका:
अंकिया नाटमे सेहो प्रदर्शन तत्वक प्रधानता छल। कीर्तनियाँ एक तरहेँ संगीतक छल आ एतहु अभिनय तत्वक प्रधानता छल। अंकीया नाटकक प्रारम्भ मृदंग वादनसँ होइत छल।
शास्त्रीय आधार:
मोहनजोदड़ो सभ्यतासँ प्राप्त कांस्य प्रतिमा नृत्यक मुद्राक संकेत दैत अछि, वर्तमान कथक नृत्यक ठाठ मुद्रा सदृश, दहिन हाथ ४५ डिग्रीक कोण बनेने आ वाम हाथ वाम छाबापर, संगहि वाम पएर किछु मोड़ने। ऋगवेदक शांखायन ब्राह्मणमे गीत, वाद्य आ नृत्य तीनूक संगे-संग प्रयोगक वर्णन अछि, ऐतरेय ब्राह्मणमे ऐ तीनूक गणना दैवी शिल्पमे अछि। ऋगवेद १०.७६.६ मे उषाक स्वर्णिम आभा कविकेँ सुसज्जित ऋषिक स्मरण करबैत छन्हि। ऋगवेदमे लोक नृत्यक (प्रान्चो अगाम नृतये) सेहो उल्लेख अछि। महाव्रत नाम्ना सोमयागमे दासी सभक (३-६ दासीक) सामूहिक नृत्यक वर्णन अछि। शांखायन १.११.५ मे वर्णन अछि जे विवाहमे ४-८ सुहागिनकेँ सुरा पियाओल जाइत छ्ल आ चतुर्वार नृत्य लेल प्रेरित कएल जाइत छल। वैदिक साहित्यमे विवाह विधिमे पत्नीक गायनक उल्लेख अछि। सीमन्तोन्नयन विधिमे पति वीणावादकसँ सोमदेवक वादयुक्त गान करबाक अनुरोध करैत छथि। अथर्ववेदमे वसा नाम्ना देवताक नृत्य ऋक्, साम आ गाथासँ सम्बन्धित होएबाक गप आएल अछि, सोमपानयुक्त ऐ नृत्यमे गन्धर्व सेहो होइत छलाह, से वर्णित अछि। अथर्ववेद १२.१.४१ मे गीत, वादन आ नृत्यक सामूहिक ध्वनिक वर्णन अछि। वैदिक कालमे साम संगीतक अलाबे गाथा आ नाराशंसी नाम्ना लौकिक गाथा-संगीतक सेहो प्रचलन छल। ऋक १,११५,२ मे उषाकालक सूर्योदयक बिम्ब सुन्दरीक पाछाँ जाइत युवकसँ भेल अछि। ऋक १,१२४,११ मे अरुणोदयमे लाल आभा आ बिलाइत अन्हारक संग, चूल्हिमे आगि वर्णन अछि आ बिम्ब अछि- गामक तरुणी रक्त वर्णक गाएकेँ चरबाक लेल छोड़ैत छथि। अथर्ववेद ४,१५,६ मे सामूहिक नाराक वर्णन अछि। यजुर्वेद ४०,१६ मे वर्णन अछि- सूर्यमण्डल सुवर्णपात्र अछि जे सूर्यकेँ आवृत्त कएने अछि। यजुर्वेद १७,३८-४१ मे संग्राम लेल बाजा संग जाइत देवसेना आ यजुर्वेद १७,४९ मे कवचक मर्मर ध्वनि वर्णित अछि। ऋगवेद १,१६४,२ आ यास्क ४,२७ मे संवत्सर, चक्रक वर्णन अछि। वृहदारण्यक उपनिषद २,,३ मे सोमरसक उत्सक वर्णन अछि। वृहदारण्यक उपनिषद २,,४ ओकर तटपरसात ऋषि आँखि, कान आदि अछि। अथर्ववेद १०,,३१ मे शरीरकेँ अयोध्या कहल गेल अछि, गीता ५,१३ मे शरीरकेँ पुर कहल गेल अछि।
यजुर्वेदमे नाट्य: यजुर्वेदमे किछु पारिभाषिक शब्दक विवरण अछि जेना सूत, शैलूष, चित्रकारिणी, ऐसँ लगैत अछि जे नाट्यमंडपक कल्पना छल।
कला, साहित्य आ संगीतक समाज लेल कोन प्रयोजन, एकर नैतिक मानदण्ड की हुअए, ऐ दिस सेहो प्राच्य आ पाश्चात्य विचारक अपन विचार राखलन्हि। प्लेटो कहै छथि जे कोनो कला नीक नै भऽ सकैए किएक तँ ई सभटा असत्य आ अवास्तविक अछि। मुदा कला, संगीत आ साहित्य कखनो काल स्वान्तः सुखाय सेहो होइत अछि, एकरा पढ़ला, सुनला, देखला आ अनुभव केलासँ प्रसन्नता होइत छै, मानसिक शान्ति भेटै छै तँ कखनो काल ई उद्वेलित सेहो करैत छै। एरिस्टोटल मुदा कहै छथि जे कलाकार ज्ञानसँ युक्त होइ छथि आ विश्वकेँ बुझबामे सहयोग करै छथि। शब्दोचारण आ कला निर्माणक बाद बोध्य बौस्तुक उत्पत्ति होइ छै। शब्द आ ध्वनि, रूप, रस, राग, छन्द, आ अलंकारसँ ओकर औचित्य सिद्ध होइत छै।
तखन मन्दिरक उत्सव आ राजाक प्रासादमे होइबला नाटक स्वतंत्र भऽ गेल आ एकर उपयोग वा अनुप्रयोग दोसर विषयकेँ पढ़ेबामे सेहो होमए लागल।

भरतक  नाट्यशास्त्र:
भरत नाट्यशास्त्रक अनुसार रंगमंचक परिकल्पना: ड्रॉइंग श्रीमती एस. एस. जानकी

नाटक दू प्रकारक लोकधर्मी आ नाट्यधर्मी, लोकधर्मी भेल ग्राम्य आ नाट्यधर्मी भेल शास्त्रीय उक्ति। ग्राम्य माने भेल कृत्रिमताक अवहेलना मुदा अज्ञानतावश किछु गोटे एकरा गाममे होइबला नाटक बुझै छथि। लोकधर्मीमे स्वभावक अभिनयमे प्रधानता रहैत अछि, लोकक क्रियाक प्रधानता रहैत अछि, सरल आंगिक प्रदर्शन होइत अछि, आ ऐ मे पात्रक से ओ स्त्री हुअए वा पुरुष, तकर संख्या बड्ड बेसी रहैत अछि। नाट्यधर्मीमे वाणी मोने-मोन, संकेतसँ, आकाशवाणी इत्यादि; नृत्यक समावेश, वाक्यमे विलक्षणता, रागबला संगीत, आ साधारण पात्रक अलाबे दिव्य पात्र सेहो रहै छथि। कोनो निर्जीव/ वा जन्तु सेहो संवाद करऽ लगैए, एक पात्रक डबल-ट्रिपल रोल, सुख दुखक आवेग संगीतक माध्यमसँ बढ़ाओल जाइत अछि।
नाट्यधर्मक आधार अछि लोकधर्म। लोकधर्मीकेँ परिष्कृत करू आ ओ नाट्यधर्मी भऽ जाएत।
लोकधर्मीक दू प्रकारक- चित्तवृत्यर्पिका (आन्तरिक सुख-दुख) आ बाह्यवस्त्वनुकारिणी (बाह्य- पोखरि, कमलदह)। नाट्यधर्मी-सेहो दू प्रकारक कैशिकी शोभा (अंगक प्रदर्शन- विलासिता गीत-नृत्य-संगीत) आ अंशोपजीवनी (पुष्पक विमान, पहाड़ बोन आदिक सांकेतिक प्रदर्शन)।
सम्पूर्ण अभिनय- आंगिक (अंगसँ), वाचिक(वाणीसँ), सात्विक(मोनक भावसँ) आ आहार्य (दृश्य आदिक कल्पना साज-सज्जा आधारित)। आंगिक अभिनय- शरीर, मुख आ चेष्टासँ; वाचिक अभिनय- देव, भूपाल, अनार्य आ जन्तु-चिड़ैक भाषामे; सात्विक- स्तम्भ(हर्ष, भय, शोक), स्वेद (स्तम्भक भाव दबबैले माथ नोचऽ लागब आदि), रोमंच (सात्विकक कारण देह भुकुटनाइ आदि), स्वरभंग ( वाणीक भारी भेनाइ, आँखिमे नोर एनाइ), वेपथु (देह थरथरेनाइ आदि), वैवर्ण्य (मुँह पीयर पड़नाइ), अश्रु (नोर ढ़ब-ढ़ब खसनाइ, बेर-बेर आदि), प्रलय (शवासन आदि द्वारा); आ आहार्य- पुस्त (हाथी, बाघ, पहाड़ आदिक मंचपर स्थापन), अलंकार (वस्त्र-अलंकरण), अंगरचना (रंग, मोंछ, वेश आ केश), संजीव (बिना पएर-साँप, दू पएर-मनुक्ख आ चिड़ै आ चारि पएरबला-जन्तु जीव-जन्तुक प्रस्तुति)द्वारा होइत अछि।
 दूटा आर अभिनय- सामान्य (नाट्यशास्त्र २२म अध्याय) आ चित्राभिनय (नाट्यशास्त्र २२म अध्याय): चतुर्विध अभिनयक बाद सामान्य अभिनयक वर्णन, ई आंगिक, वाचिक आ सात्विक अभिनयक समन्वित रूप अछि आ ऐ मे सात्विक अभिनयक प्रधानता रहैत अछि। चित्राभिनय आंगिकसँ सम्बद्ध- अंगक माध्यसँ चित्र बना कऽ पहाड़, पोखरि चिड़ै आदिक अभिनय विधान।
 नाट्य-मंचन आ अभिनय: कालिदासक अभिज्ञान शाकुन्तलम् नाट्य निर्देशकक लेल पठनीय नाटक अछि। रंगमंच निर्देश, जेना, रथ वेगं निरूप्यसूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं, इति शरसंधानम् नाटयति, वृक्ष सेचनम् रुपयति, कलशम् अवरजायति, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति, शकुन्तला परिहरति नाट्येन, नाट्येन प्रसाधयतः, कहि कऽ वास्तविकतामे नै वरन् अभिनयसँ ई कएल जाइत अछि। नाट्येन प्रसाधयतः, एतए अनसूया आ प्रियम्वदा मुद्रासँ अपन सखी शकुन्तलाक प्रसाधन करै छथि कारण से चाहे तँ उपलब्ध नै अछि, चाहे तँ ओतेक पलखति नै अछि। तहिना वृक्ष सेचनम् रुपयति सँ गाछमे पानि पटेबाक अभिनय, कलशम् अवरजायति सँ कलश खाली करबाक काल्पनिक निर्देश, रथ वेगं निरूप्य सँ तेज गतिसँ रथमे यात्राक अभिनय, इति शरसंधानम् नाटयति सँ तीरकेँ धनुषपर चढ़ेबाक निर्णय, सूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं सँ हरिणकेँ मारि खसेबाक दृश्य देखबाक निर्देश, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति सँ दुश्यन्तक शकुन्तलाक मुँहकेँ उठेबाक इच्छा, शकुन्तला परिहरति नाट्येन सँ शकुन्तला द्वारा दुश्यन्तक ऐ प्रयासकेँ रोकबाक अभिनयक निर्देश होइत अछि।
भरतक रंगमंच: ऐ मे होइत अछि- पाछाँक पर्दा, नेपथ्य (मेकप रूम बुझू), आगमन आ निर्गमनक दरबज्जा, विशेष पर्दा जे आगमन आ निर्गमन स्थलकेँ झाँपैत अछि, वेदिका- रंगमंचक बीचमे वादन-दल लेल बनाओल जाइत अछि, रंगशीर्ष- पाछाँक रंगमंच स्थल; मत्तवर्णी-आगाँ दिस दुनू कोणपर अभिनय लेल होइत अछि आ रंगपीठ अछि सोझाँक मुख्य अभिनय स्थल।
अभिनय मूल्यांकन: अध्याय २७ मे भरत सफलताकेँ लक्ष्य बतबै छथि, मंचन सफलतासँ पूर्ण हुअए। दर्शक कहैए, हँ, बाह, कतेक दुखद अन्त, तँ तेहने दर्शक भेलाह सहृदय, भरतक शब्दमे, से ओ नाटककार आ ओकर पात्रक संग एक भऽ जाइत छथि।
 नाट्य प्रतियोगिता होइत छल आ ओतए निर्णायक लोकनि पुरस्कार सेहो दै छलाह।
भरत निर्णायक लोकनि द्वारा धनात्मक आ ऋणात्मक अंक देबाक मानदण्डक निर्धारण करैत कहै छथि जे-
१.ध्यानमे कमी, २.दोसर पात्रक सम्वाद बाजब, ३.पात्रक अनुरूप व्यक्तित्व नै हएब, ४.स्मरणमे कमी, ५.पात्रक अभिनयसँ हटि कऽ दोसर रूप धऽ लेब, ६.कोनो वस्तु, पदार्थ खसि पड़ब, ७.बजबा काल लटपटाएब, ८.व्याकरण वा आन दोष, ९.निष्पादनमे कमी, १०.संगीतमे दोष, ११.वाक् मे दोष, १२.दूरदर्शितामे कमी, १३.सामिग्रीमे कमी, १४.मेकप मे कमी, १५. नाटककार वा निर्देशक द्वारा कोनो दोसर नाटकक अंश घोसियाएब, १६.नाटकक भाषा सरल आ साफ नै हएब, ई सभ अभिनय आ मंचनक दोष भेल।
निर्णायक सभ क्षेत्रसँ होथि, निरपेक्ष होथि। नाटकक सम्पूर्ण प्रभाव, तारतम्य, विभिन्न गुणक अनुपात, आ भावनात्मक निरूपण ध्यानमे राखल जाए।
स्टेजक मैनेजर- सूत्रधार- आ ओकर सहायक परिपार्श्वक- नाटकक सभ क्षेत्रक ज्ञाता होथि। मुख्य अभिनेत्री संगीत आ नाटकमे निपुण होथि, मुख्य अभिनेता- नायक- अपन क्षमतासँ नाटककेँ सफल बनबै छथि।अभिनेता- नट- क चयन एना करू, जँ छोट कदकाठीक छथि तँ वाणवीर लेल, पातर-दुब्बर होथि तँ नोकर, बकथोथीमे माहिर होथि तँ बिपटा, ऐ तरहेँ पात्रक अभिनेताक निर्धारण करू। संगीत-दलक मुखिया- तौरिक- केँ संगीतक सभ पक्षक ज्ञान हेबाक चाही जइसँ ओ बाजा बजेनहार- कुशीलव- केँ निर्देशित कऽ सकथि।
नाट्य-मंचन आ अभिनय
कालिदासक अभिज्ञान शाकुन्तलम् नाट्य निर्देशकक लेल पठनीय नाटक अछि। रंगमंच निर्देश, जेना, रथ वेगं निरूप्यसूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं, इति शरसंधानम् नाटयति, वृक्ष सेचनम् रुपयति, कलशम् अवरजायति, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति, शकुन्तला परिहरति नाट्येन, नाट्येन प्रसाधयतः, कहि कऽ वास्तविकतामे नै वरन् अभिनयसँ ई कएल जाइत अछि। नाट्येन प्रसाधयतः, एतए अनसूया आ प्रियम्वदा मुद्रासँ अपन सखी शकुन्तलाक प्रसाधन करै छथि कारण से चाहे तँ उपलब्ध नै अछि, चाहे तँ ओतेक पलखति नै अछि। तहिना वृक्ष सेचनम् रुपयति सँ गाछमे पानि पटेबाक अभिनय, कलशम् अवरजायति सँ कलश खाली करबाक काल्पनिक निर्देश, रथ वेगं निरूप्य सँ तेज गतिसँ रथमे यात्राक अभिनय, इति शरसंधानम् नाटयति सँ तीरकेँ धनुषपर चढ़ेबाक निर्णय, सूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं सँ हरिणकेँ मारि खसेबाक दृश्य देखबाक निर्देश, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति सँ दुश्यन्तक शकुन्तलाक मुँहकेँ उठेबाक इच्छा, शकुन्तला परिहरति नाट्येन सँ शकुन्तला द्वारा दुश्यन्तक ऐ प्रयासकेँ रोकबाक अभिनयक निर्देश होइत अछि। भारत आ पाश्चात्य नाट्य सिद्धांतक अध्ययनसँ ई ज्ञात होइत अछि जे मानवक चिन्तन भौगोलिक दूरीकक अछैत कतेक समानता लेने रहैत अछि। भारतीय नाट्यशास्त्र मुख्यतः भरतक नाट्यशास्त्रआ धनंजयक दशरूपकपर आधारित अछि। पाश्चात्य नाट्यशास्त्रक प्रामाणिक ग्रंथ अछि अरस्तूक काव्यशास्त्र। भरत नाट्यकेँ कृतानुसार” “भावानुकारकहैत छथि, धनंजय अवस्थाक अनुकृतिकेँ नाट्य कहैत छथि। भारतीय साहित्यशास्त्रमे अनुकरण नट कर्म अछि, कवि कर्म नहि। पश्चिममे अनुकरण कर्म थिक कवि कर्म, नटक कतहु चरचा नहि अछि। अरस्तू नाटकमे कथानकपर विशेष बल दैत छथि। ट्रेजेडीमे कथानक केर संग चरित्र-चित्रण, पद-रचना, विचार तत्व, दृश्य विधान आ गीत रहैत अछि। भरत कहैत छथि जे नायकसँ संबंधित कथावस्तु आधिकारिक आ आधिकारिक कथावस्तुकेँ सहायता पहुँचाबएबला कथा प्रासंगिक कहल जएत। मुदा सभ नाटकमे प्रासंगिक कथावस्तु होअए से आवश्यक नहि, पश्चिमी रंगमंचक नाट्यविधान वास्तविक अछि मुदा भारतीय रंगमंचपर सांकेतिक। जेना अभिज्ञानशाकुंतलम् मे कालिदास कहैत छथि- इति शरसंधानं नाटयति। भरत:- नाटकक प्रभावसँ रस उत्पत्ति होइत अछि। नाटक कथी लेल? नाटक रसक अभिनय लेल आ संगे रसक उत्पत्ति लेल सेहो। रस कोना बहराइए? रस बहराइए कारण (विभाव), परिणाम (अनुभाव) आ संग लागल आन वस्तु (व्यभिचारी)सँ। स्थायीभाव गाढ़ भऽ सीझि कऽ रस बनैए, जकर स्वाद हम लऽ सकै छी

बौद्ध चर्यागीतक बाद महाराज नान्यदेव सरस्वती हृदयालंकार फेर विद्यापति आ संगीतज्ञ जयतक शिव सिंहक दरबारमे हेबाक लोकोक्ति। विद्यापतिक पुरुष परीक्षाक कथा सभमे पुरुषक कला संगीतक प्रेम ओकर पुरुषार्थ सन महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। शुभङ्कर ठाकुरक श्रीहस्तमुक्तावली सेहो मिथिलाक ग्रन्थ मानल जाइत अछि ओना पाण्डुलिपिक उपलब्धताक आधारपर किछु विद्वान एकरा असमक रचना मानैत छथि। ऐ ग्रन्थमे अभिनयसँ सम्बन्धित हस्त परिचालनक विषद विवरण उपलब्ध अछि। आइने अकबरीमे विद्यापतिक नचारीक चर्च।
विदेह नाट्य उत्सव २०१२ मे भरत नाट्य शास्त्र आधारित नाटक रंगमंच संकल्पना आधारित गजेन्द्र ठाकुर लिखित आ श्री बेचन ठाकुर निर्देशित उल्कामुखमंचित कएल गेल, जे मैथिलीमे ऐ तरहक पहिल प्रयास छल, ऐमे पेण अभिनेत्री लोकनिक माध्यमसँ नाटक मंचन भेल, ऐमे पुरुख पात्रक अभिनय सेहो महिला कलाकार द्वारा भेल। भरत नाट्यशास्त्रक आधारपर रंगमंचक ड्राइंग श्रीमती एस.एस.जानकीक छल। ऐ तरहक एकटा प्रयास संस्कृत रंगमंचपर चेन्नैमे कएल गेल छल।



मैथिली नाटकक एकटा समानान्तर दुनियाँ
रामखेलावन मंडार- गाम कटघरा, प्रखण्ड- शिवाजीनगर, जिला समस्तीपुर। हिनके संग बिन्देश्वर मंडल सेहो छलाह। उठैत मैथिली कोरस आ - माँ गै माँ तूँ हमरा बंदूक मँगा दे कि हम तँ माँ सिपाही हेबै- एखनो लोककेँ मोन छन्हि। एहि मंडली द्वारा रेशमा-चूहड़, शीत-बसन्त, अल्हा-ऊदल, नटुआ दयाल ई सभ पद्य नाटिका पस्तुत कएल जाइत छल।
मैथिली-बिदेसिया- पिआ देसाँतरक टीम सहरसा-सुपौल-पूर्णियाँसँ अबैत छल।
हासन-हुसन नाटिका होइत छल।
रामरक्षा चौधरी नाट्यकला परिषद, ग्राम- गायघाट, पंचायत करियन, पो. वैद्यनाथपुर, जिला- समस्तीपुर विद्यापति नाटक गोरखपुर धरि जा कऽ खेलाएल छल। एहि मंडली द्वारा प्रस्तुत अन्य नाटक अछि- लौंगिया मेरचाइ, विद्यापति, चीनीक लड्डू आ बसात।
मैथिली नाटकक समानान्तर दुनियाँकेँ सेहो अभिलेखित आ सम्मानित कएल जएबाक प्रयास होएबाक चाही।
नाट्य रंगमंच समिति सभ
भंगिमा, पटना ; चेतना समिति, पटना, जमघट-, मधुबनी; मिथिला विकास परिषद, कोलकाता; अखिल भारतीय मिथिला संघ, कोलकाता; मिथिला कला केन्द्र, कोलकाता; मैथिली रंगमंच, कोलकाता; कुर्मी-क्षत्रिय छात्रवृत्ति कोष, कोलकाता; आल इण्डिया मैथिल संघ, कोलकाता; कर्ण गोष्ठी:जयन्त लोकमंच, कोलकाता; मिथिला सेवा संस्थान, कोलकाता; मिथि यात्रिक, कोलकाता; वैदेही कला मंच, कोलकाता; कोकिल मंच, कोलकातामिथिला कल्याण परिषद, रिसरा, कोलकाता (निर्देशन मुख्य रूपसँ श्री दयानाथ झा द्वारा १९८२ ई.सँ। सम्प्रति श्री रण्जीत कुमार झा निर्देशन कऽ रहल छथि, ०८.०१.२०१२ केँ हुनकर निर्देशनमे तंत्रनाथ झा लिखित उपनयनक भोजमंचित भेल।) ; झंकार, कोलकाता; मिथिला सेवा समिति बेलुर, कोलकाता; उदय पथ, कोलकाता। मिथिला नाट्य परिषद (मिनाप), जनकपुर; रामानन्द युवा क्लब, जनकपुरधाम; युवा नाट्य कला परिषद (युनाप), परवाहा, धनुषा; आकृति (उपेन्द्र भगत नागवंशी), जनकपुर; रंग वाटिका, नेपाल; चबूतरा, शिरोमणि मैथिली युबा क्लब, गांगुली, भैरब, मैथिली सांस्कृतिक युबा क्लब, बौहरबा, श्री सरस्वती सांस्कृतिक नाट्य कला परिषद, गाम तिलाठी (सप्तरी, नेपाल); अरुणोदय नाट्य मंच, राजबिराज; सरस्वती नाट्य कला परिषद, मेंहथ, मधुबनी; मैथिली लोकरंग (मैलोरंग), दिल्ली; मिथिलांगन, दिल्ली। मधुबनीक पजुआरिडीह टोलमे श्रीकृष्ण नाट्य समिति श्री कृष्णचन्द्र झा रसिक, शिवनाथ झा आ गंगा झाक निर्देशनमे मैथिली नाटक मंचित होइत रहल अछि। सांस्कृतिक मंच, लोहियानगर, पटना; चित्रगुप्त सांस्कृतिक केन्द्र, जनकपुर; गर्दनीबाग कला समिति, पटना; मिथिलाक्षर, जमशेदपुर; मैथिली कला मंच, बोकारो; उगना विद्यापति परिषद, बेगूसराय; मिथिला सांस्कृतिक परिषद, बोकारो स्टील सिटी; भानुकला केन्द्र, विराटनगर; आंगन, पटना; नवतरंग, बेगूसराय; भारतीय रंगमंच, दरभंगा; भद्रकाली नाट्य परिषद, कोइलख, मिथिला अनुभूति दरभंगा, विदेह अंतर्राष्ट्रीय ई-जर्नलक नाट्य उत्सव।
निर्देशन: श्री कमल नारायण कर्ण (चीनीक लड्डू-ईशनाथ झा/ चारिपहर- मूल बांग्ला किरण मैत्र, मैथिली अनुवाद- निरसन लाभ), श्री श्रीकान्त मण्डल (चन्द्रगुप्त मूल बांग्ला डी.एल.राय, मैथिली अनुवाद- बाबू साहेब चौधरी/ पाथेय- गुणनाथ झा/ नायकक नाम जीवन- नचिकेता); श्री विष्णु चटर्जी आ श्री श्रीकान्त मण्डल (निष्कलंक- जनार्दन झा); प्रवीर मुखोपाध्याय; वीणा राय, मोहन चौधरी, बाबू राम सिंह, गोपाल दास, कुणाल, रवि देव, दयानाथ झा, त्रिलोचन झा, शम्भूनाथ मिश्र, काशी झा, अशोक झा, गंगा झा, गणेश प्रसाद सिन्हा, नवीन चन्द्र मिश्र, जनार्दन राय, श्री कृष्णचन्द्र झा रसिक, शिवनाथ झा, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अखिलेश्वर, सच्चिदानन्द, रमेश राजहंस, मोदनाथ झा, विभूति आनन्द, जावेद अख्तर खाँ, कौशल किशोर दास, प्रशान्त कान्त, अरविन्द रंजन दास, मनोज मनु, रोहिणी रमण झा, भवनाथ झा, उमाकान्त झा, लल्लन प्रसाद ठाकुर, रघुनाथ झा किरण, महेन्द्र मलंगिया, कुमार शैलेन्द्र, विनीत झा, किशोर कुमार झा, कुमार गगन, विनोद कुमार झा, के.अजय, छत्रानन्द सिंह झा, नीलम चौधरी, काजल, मनोज कुमार पाठक, आशनारायण मिश्र, श्री श्रीनारायण झा, प्रमिला झा, तनुजा शंकर, केशव नन्दन, ब्रह्मानन्द झा, संजीव तमन्ना, किसलय कृष्ण, प्रकाश झा, मुन्नाजी संजय कुमार चौधरी, कमल मोहन चुन्नू, अंशुमान सत्यकेतु, श्याम भास्कर, प्रेम कुमार, संगम कुमार ठाकुर, एल.आर.एम. राजन, भास्करानन्द झा, आशुतोष कुमार मिश्र, आनन्द कुमार झा, मनोज मनुज, संजीव मिश्र, स्वाति सिंह, स्वर्णिम, आशुतोष यादव अभिज्ञ, अशोक अश्क, दिलीप वत्स, तरुण प्रभात, माधव आनन्द, नरेन्द्र मिश्र, भारत भूषण झा, किशोर केशव, बेचन ठाकुर, उपेन्द्र भगत नागवंशी, अनिल चन्द्र झा, अंशुमान सत्यकेतु, आनंद कुमार झा, हेमनारायण साहू, रामकृष्ण मंडल छोटू, धीरेन्द्र कुमार,उत्पल झा, अभिषेक के. नारायण, चन्द्रिका प्रसाद।
नाटक: नाटककार
धूर्त्तसमागम तेरहम शताब्दीमे ज्योतिरीश्वर ठाकुर द्वारा रचल गेल। ज्योतिरीश्वर ठाकुर धूर्त्तसमागममे मैथिली गीतक समावेश कएलन्हि। ई प्रहसनक कोटिमे अबैत अछि।मैथिलीक अधिकांश नाटक-नाटिका श्रीकृष्णक अथवा हुनकर वंशधरक चरित पर अवलंबित एवं हरण आकि स्वयंबर कथापर आधारित छल। मुदा धूर्त्तसमागममे साधु आ हुनकर शिष्य मुख्य पात्र अछि। धूर्त्तसमागम सभ पात्र एकसँ-एक ध्होर्त्त छथि।ताहि हेतु एकर नाम धूर्त्तसमागम सर्वथा उपयुक्त अछि।प्रहसनकेँ संगीतक सेहो कहल जाइछ,ताहि हेतु एहि मे मैथिली गीतक समावेश सर्वथा समीचीन अछि।एहिमे सूत्रधार,नटी स्नातक,विश्वनगर,मृतांगार,सुरतप्रिया,अनंगसेना,अस्ज्जाति मिश्र,बंधुवंचक,मूलनाशक आऽ नागरिक मुख्य पात्र छथि।सूत्रधार कर्णाट चूड़ामणि नरसिंहदेवक प्रशस्ति करैत अछि।फेर ज्योतिरीश्वरक प्रशस्ति होइत अछि। एहिमे एक प्रकारक एब्सर्डिटी अछि,जे नितांत आधुनिक अछि।जे लोच छैक से एकरा लोकनाट्य बनबैत छैक। विश्वनगर स्त्रीक अभावमेब्रह्मचारी छथि।शिष्य स्नातक संग भिक्षाक हेतु मृतांगार ठाकुरक घर जाइत छथि तँ अशौचक बहाना भेटैत छन्हि। विश्वनगर शिष्य स्नातक संग भिक्षाक हेतु सुरतप्रियाक घर जाइत छथि। फेर अनंगसेना नामक वैश्याकेँ लय कय गुरु-शिष्यमे मारि बजरि जाइत छन्हि। फेर गुरु-शिष्य अनंगसेनाक संग असज्जाति मिश्रक लग जाइत छथि तँ ओतय मिश्रजी लंपट निकलैत छथि।... मिश्रजी लंपट निकलैत छथि।...जे जुआ खेलायब आपांगना संगम ईएह दूटा केँ संसारक सार बुझैत छथि। असज्जति मिश्र पुछैत छथि जे के वादी आके प्रतिवादी।स्नातक उत्तर दैत छथि-जे अभियोग कहबाक लेल हम वादी थिकहुँ आशुल्क देबाक हेतु संन्यासी प्रतिवादी थिकाह। विश्वनगर अपन शुल्कमे स्नातकक गाजाक पोटरी प्रस्तुत करैत छथि। विदूषक असज्जाति मिश्रक कानमे अनंगसेनाक यौनक प्रशंसा करैत अछि। असज्जाति मिश्र अनंगसेनाकेँ बीचमे राखि दुनूक बदला अपना पक्षमे निर्णय लैत अछि। एम्हर विदूषक अनंगसेनाक कानमे कहैत अछि, जे ई संन्यासी दरिद्र अछि, स्नातक आवारा अछि आई मिश्र मूर्ख तेँ हमरा संग रहू। अनंगसेना चारूक दिशि देखि बजैछ , जे ई तँ असले धूर्तसमागम भय गेल।
विश्वनगर स्नातकक संग पुनः सुरतप्रियाक घर दिशि जाइत छथि। एमहर मूलनाशक नौआ अनंगसेनासँ साल भरिक कमैनी मँगैछ। ओहुनका असज्जातिमिश्रक लग पठबैत अछि। मूलनाशक असज्जातिमिश्रकेँ अनंसेनाक वर बुझैत अछि। गाजा शुल्कमे लय असज्जति मिश्रकेँ गतानि कए बान्हि तेना मालिश करैत अछि जे ओबेहोश भय जाइत छथि। ओहुनका मुइल बुझि कय भागि जाइत अछि। विदूषक अबैत अछि, हुनकर बंधन खोलैत अछि आपुछैत अछि जे हम अहाँक प्राणरक्षा कएल अछि, जे किछु आन प्रिय कार्य होय तँ से कहू। असज्जाति कहल जे छलसँ संपूर्ण देशकेँ खएलहुँ, धूर्त्तवृत्तिसँ ई प्रिया पाओल, सेहो अहाँ सन आज्ञाकारी शिष्य पओलक, एहिसँ प्रिय आब किछु नहि अछि। तथापि सर्वत्र सुखशांति हो तकर कामना करैत छी।
ईशनाथ झा
उगना: ई नाटक सभ महाशिवरात्रिकेँ गौरीशंकर स्थान, जमथुरिमे खेलाएल जाइत अछि। विद्यापति शिव-भक्त, हुनकर गीत-नचारी सुनबा लेल सिव विद्यापतिक घरमे उगना नोकर बनि आबि गेला। एक बेर विद्यापति यात्रापर छला आ उगना संगमे छलन्हि। रस्तामे पियास लगलापर उगना जटाक गंगधारसँ पानि निकालि विद्यापतिकेँ पियेलन्हि मुदा विद्यापतिकेँ ओइमे गंगाजलक स्वाद भेटलन्हि आ ओ उगनाक केश भीजल देखि सभटा बुझि गेलाह। उगना अपन असल रूपमे एलाह। मुदा उगना कहलखिन्ह जे विद्यापति ई गप ककरो नै कहताह नै तँ ओ अन्तर्धान भऽ जेताह। पार्वती चालि चलन्हि, विद्यापतिक पत्नी उगनाकेँ बेलपत्र अनबा लेल पठेलन्हि आ देरी भेलापर ओ उगनापर बाढनि उसाहलन्हि, विद्यापथि भेद खोलि देलन्हि आ उगना बिला गेलाह.. चीनीक लड्डू: सुधाकांत-प्रेमकांतक पिता गुजरि जाइ छथि आ से देखभाल मामा धर्मानन्द ट्रस्टी जकाँ करै छथि आ हुनकर सभक समर्थ भेलाक बाद सुधाकांतकेँ भार दऽ घुरि जाइ छथि। सुधाकांतक मुंशी बटुआ दास प्रेमकांतक पत्नी चण्डिका आ खबासनी छुलहीक सहयोगसँ बखरा करबा दै छथि, सुधाकान्त अपनो हिस्सा प्रेमकान्तकेँ दऽ दै छथि। सुधाकांत, पत्नी सुशीला आ बेटा सुकमार घरसँ बाहर कऽ देल जाइ छथि। सुधाकांतकेँ टी.बी. रोग मारि दै छन्हि। बटुआ दासक संगति प्रेमकांतकेँ सेहो दरिद्र कऽ दैत अछि। माम धर्मानन्द सुकमारकेँ अपन सम्पति लिखि दै छथि कारण हुनका सन्तान नै छन्हि। प्रेमकांत आ बटुआ दास सुकुमारकेँ  मारबाक प्रयत्नमे बिख मिला कऽ चीनीक लड्डू सनेसमे सुकमारकेँ दै छथि मुदा ओइसँ बटुआ दास मरि जाइए, आ भेद खुजैए।
उदयनारायण सिंह नचिकेता
नायकक नाम जीवन : नवल नव विचारक अछि, शक्तिराय धनिक, कलुषित अछि आ अपन सहयोगी विनयपर चोरिक आरोप लगा ओकर बेटीक अपहरण आ बलात्कार करबैए। विनय आत्महत्या कऽ लैए। नवल आ ओकर मित्र प्रकाश आ दीपक सभटा भेद खोलैए। ओकर प्रेमिका बलात्कारक परिणामस्वरूप आत्महत्या करैए। नवल विक्षिप्त भऽ जाइए। एक छल राजा: एकटा राजा अभिमान कुमार देवक दिन मदिरा आ वैश्याक पाछाँ खराप भेलै। ओकरा एक्केटा बेटी मोहिनी छै, टकाक अभावमे ओकर बियाह नै भ्हऽ पाबि रहल छै। मुंशी विरंची, सेवक चतुरलाल आ धर्मकर्मवाली पत्नी संगे नाटक आगाँ बढ़ैए। मोहिनी आ शिक्षक शुभंकरक बीच प्रेम होइ छै। नो एण्ट्री: मा प्रविश: पोस्टमोडर्न ड्रामा, जकर एबसर्डिटी एकरा ज्योतिरीश्वरक धूर्त समागम लग घुरबै छै। स्वर्ग आकि नर्कक द्वारपर मुइल सभ अबै छथि आ खिस्सा-खेरहा सुनबै छथि, बादमे पता चलैए जे चित्रगुप्त/ धर्मराज सभ नकली छथि आ द्वारपर लागल अछि ताला, नो एण्ट्री।
गोविन्द झा 
बसात: कृष्णकांत पिता द्वारा ठीक कएल युवती पुष्पा संग विवाह नै करै छथि, ओ शिक्षितसँ विवाह करऽ चाहै छथि, लिलीसँ प्रेम करै छथि। हुनकर पिता घर त्यागि दै छथि। पुष्पा घर छोड़ि महिला जागरणमे लागि गेलथि। पिताकेँ ताकैमे कृष्णकान्त असफल होइ छथि, लिलीकेँ छोड़ि रेलगाड़ीसँ कटऽ चाहै छथि, आश्रमक लोक हुनका बचा लै छन्हि, ओतए पिता, पुष्पा सभसँ भेँट होइ छन्हि, लिली सेहो बताहि भेलि ओतऽ आबि जाइ छथि।
गुणनाथ झा
"लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकाक संचालन- सम्पादन केने छथि। मैथिलीमे आधुनिक नाटकक प्रणयन। हुनकर नाटक कनियाँ-पुतरा, पाथेय, ओ मधुयामिनी, सातम चरित्र, शेष नञि, आजुक लोक आ जय मैथिली सभक बेर-बेर मंचन भेल अछि। बाङ्गला एकाङ्की नाट्य-संग्रह
ऐमे बांग्लाक २४ टा नाटककारक २४ टा नाटकक संकलन ओ सम्पादन अजित कुमार घोष केने छथि आ तकर बांग्लासँ मैथिली अनुवाद श्री गुणनाथ झा द्वारा भेल अछि।
कनियाँ-पुतरा- गुणनाथ झा जीक ई पहिल पूर्णाङ्क नाटक थिक। नाटक बहुदृश्य समन्वित करैबला घूर्णीय मञ्चोपयुक्त अछि। कथा काटर प्रथापर आधारित अछि आ तकर परिणामसँ मुख्य अभिनेता आ मुख्य अभिनेत्री मनोविकारयुक्त भऽ जाइत छथि, तइ मनोदशाक सटीक चित्रण आ विश्लेषण भेल अछि।
मधुयामिनी: एकाङ्क नाट्य शैलीमे दूटा पात्र, पुरुष संयुक्त परिवारक पक्ष लेनिहार आ स्त्री तकर विरोधी। संयुक्त परिवारक पक्ष लेनिहारक सामंजस्यपूर्ण विजय होइत अछि। "लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकामे प्रकाशित।
पाथेय: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित, मुदा पूर्णाङ्कक सभ विशेषता ऐमे भेटत। मुख्य अभिनेता मिथिलाक अधोगतिसँ दुखी भऽ गामकेँ कर्मस्थली बनबैत छथि, स्वजन विरोध करै छथि। मुदा बादमे पत्नी हुनकर संग आबि जाइ छथिन्ह। भाषा मधुर आ चलायमान अछि।
लाल-बुझक्कर: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित। दाही रौदीसँ झमारल निम्न आ मध्य-निम्न वर्ग स्वतंत्रताक पहिनहियो आ बादो जीविकोपार्जन लेल प्रवास करबा लेल अभिशप्त छथि। माता-पिता विहीन लाल बुझक्करजी कनियाँकेँ नैहरमे बैसा कऽ आ सन्तानहीन पित्ती पितियैनकेँ छोड़ि नग्र प्रवास करै छथि।
सातम चरित्र: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित। मैथिली रंगमंचपर महिला अभिनेत्रीक अभाव, सातम चरित्रक प्रतीक्षामे पूर्वाभ्यास खतम भऽ जाइत अछि। "लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकामे प्रकाशित।
शेष नञि: आधुनिक सामाजिक पूर्णाङ्क नाटक। पिता-माताक मृत्युक बाद अग्रजक अनुजक प्रति पितृवत व्यवहार। अनुज चाकरी करै छथि, परिवर्तनशील सामाजिक परिस्थितिक शिकार भऽ अचिन्तनीय कार्यकलाप करै छथि आ अग्रज प्रतारित होइ छथि। मुदा अग्रज मरणासन्न पत्नीक प्राणरक्षार्थ साहसपूर्ण डेग उठा लैत छथि।
आजुक लोक: पूर्णाङ्क नाटक। विषय निम्नमध्यवर्गीय बेरोजगारी आ बियाहक दायित्वक बोझ।
जय मैथिली: पूर्णाङ्क नाटक। मिथिलाक भाषिक-सांस्कृतिक समस्या एकर कथावस्तु अछि।
महाकवि विद्यापति: विद्यापतिक नव विश्लेषण।

महेन्द्र मलंगिया
एक कमल नोरमे: माला पति राजेशकेँ सन्तान लेल दोसर बियाह लेल आग्रह करैएमुदा पति मना करै छै, ओकर सासु ज्योतिषक संग मिलि मालाक दोसराक संग बेहोशीमे अश्लील फोटो लैए आ राजेशकेँ देखबैए। राजेश मालाकेँ घरसँ बहार कऽ दैए आ ज्योतिषीक पुत्रीक बियाह राजेशसँ भऽ जाइ छै। माला आत्महत्या करैए। जुआयल कनकनी: जीबू अपन माता-पिता द्वारा आत्महत्या लेल काकीकेँ दोषी मानैए मुदा बादमे जखन ओ बुझैए जे बैजू ओकर बहिनक शील भंग केलक। फेर बदला आ पश्चाताप। ओकरा आँगनक बारहमासा: बारह मासमे बोनिहारकक जिनगीक विवरण। छुतहर/ छुतहर घैल/ छुतहा घैल
छुतहा घैल महेन्द्र मलंगियाक नवीन नाटकक नाम छन्हि। ऐ छोटसन नाटकक भूमिका ओ दस पन्नामे लिखने छथि।
पहिने ऐ भूमिकापर आउ।  हुनका कष्ट छन्हि जे रमानन्द झा रमणहुनका सुझाव देलखिन्ह जे छुतहर घैलकेँ मात्र छुतहरकहल जाइ छै। से ओ तीन टा गप उठेलन्हि- पहिल-
तों कहियो पोथी के लेखी,
हम कहियो अँखियन के देखी।
दोसर- यात्री जीक विलाप कविता-
काते रहै छी जनु घैल छुतहर
आहि रे हम अभागलि कत बड़।
आ कहै छथि जे ओइ कविताक विधवा आ ऐ नाटकक कबूतरी देवीकेँ शिवक महेश्वरो सूत्र आ पाणिनीक दश लकारसँ (वैदिक संस्कृत लेल पाणिनी १२ लकार आ लौकिक संस्कृत लेल दस लकार निर्धारित कएने छथि..खएर…) कोन मतलब छै?
तेसर ओ अपन स्थितिकेँ कापरनिकस सन भेल कहैत छथि, जे लोकक कहलासँ की हेतै आ गाम-घरमे लोक छुतहर घैलबजिते छैक!!
मुदा ऐ तीनू बिन्दुपर तीनू तर्क मलंगियाजीक विरुद्ध जाइ छन्हि। अँखियन देखीआ लोकव्यवहार छुतहरमात्र कहल जाइत देखलक आ सुनलक अछि, घैलचीपर छुतहरकेँ अहाँ राखि सकै छी? लोइटसँ बड़ैबमे पान पटाओल जाइ छै तखन मलंगियाजीक हिसाबे ओकरा लोइट घैलकहबै। घैल, सुराही, कोहा, तौला, छुतहर, लोइट, खापड़ि, कुड़नी, कुरवाड़, कोसिया, सरबा, सोबरना ऐ सभ बौस्तुक अलग नामकरण छै। फूलचन्द्र मिश्र रमण” (प्रायः फूलचन्द्रजी छुतहा घैलशब्दक सुझाव हँसीमे देने हेथिन्ह, आ जँ नै तँ ई एकटा नव भाषाक नव शब्द अछि!!)क सुझाव मानैत मलंगिया जी छुतहर घैलकेँ छुतहा घैलकऽ देलन्हि, ई ऐ गपक द्योतक जे हुनका गलतीक अनुभव भऽ गेलन्हि मुदा रमानन्द झा रमणक गप मानि लेने छोट भऽ जइतथि से खुट्टा अपना हिसाबे गाड़ि देलन्हि। आ बादमे रमानन्द झा रमणचेतना समितिसँ ओइ पोथीकेँ छपेबाक आग्रह केलखिन्ह आ, चेतना समिति मात्र २५टा प्रति दैतन्हि तेँ ओ अपन संस्थासँ एकरा छपबेलन्हि, ऐ सभसँ पठककेँ कोन सरोकार? आब आउ यात्रीजीक गपपर, यात्रीजीकेँ हिन्दी पाठकक सेहो ध्यान राखऽ पड़ै छलन्हि, हुनका मोनो नै रहै छलन्हि जे कोन कविता हिन्दीमे छन्हि, कोन मैथिलीमे आ कोन दुनूमे, से ओ छुतहर घैल लिखि देलन्हि, एकर कारण यात्रीजीक तुकबन्दी मिलेबाक आग्रहमे सेहो देखि सकै छी। आ फेर आउ कॉपरनिकसपर, जँ यात्री जी वा मलंगिया जी घैल छुतहर”, “छुतहर घैलवा छुतहा घैललिखिये देलन्हि तँ की नेटिव मैथिली भाषी छुतहरकेँ   घैल छुतहर”, “छुतहर घैलवा छुतहा घैलबाजब शुरू कऽ देत। से कॉपरनिकस सेहो मलंगियाजीक विरुद्ध छथिन्ह।
कॉपरनिकसक किंवदन्तीक सटीक प्रयोग मलंगियाजी नै कऽ सकलाह, प्रायः ओ गैलिलीयो सँ कॉपरनिकसकेँ कन्फ्यूज कऽ रहल छथि, कॉपरनिकसक सिद्धान्तक समर्थन पोप द्वारा भेल छल आ कॉपरनिकस पोप पॉल-३ केँ अपन हेलियोसेन्ट्रिक सिद्धान्तक चालीस पन्नाक पाण्डुलिपि समर्पित केने रहथि। खएर मलंगियाजीक विज्ञानक प्रति अनभिज्ञता आ विज्ञानक सिद्धान्तकेँ किवदन्तीसँ जोड़बाक सोचपर अहाँकेँ आश्चर्य नै हएत जखन अहाँ हुनकर खाँटी लोककथा सभक अज्ञानताकेँ अही भूमिकामे देखब।
अली बाबा आ चालीस चोर”- सम्पूर्ण दुनियाँकेँ बुझल छै जे ई मध्यकालीन अरबी लोककथा अछि जे अरेबियन नाइट्स (१००१ कथा)मे संकलित अछि आ ओइमे विवाद अछि जे ई अरेबियन नाइट्समे बादमे घोसियाएल गेल वा नै, मुदा ई मध्यकालीन अरबी लोककथा अछि, ऐ मे कोनो विवाद नै अछि। बलबनक अत्याचार आदिक की की गप साम्प्रदायिक मानसिकता लऽ कऽ मलंगिया जी कहि जाइ छथि से हुनकर लोककथाक प्रति सतही लगाव मात्रकँण देखार करैत अछि। मिथिला तत्व विमर्शवा रमानाथ झाक पंजीक सतही ज्ञान बहुत पहिनहिये खतम कऽ देल गेल अछि, आ तेँ ई लिखित रूपसँ हमरा सभक पंजी पोथीमे वर्णित अछि। गोनू झा विद्यापति सँ ३०० बर्ख पहिने भेलाह, मुदा मलंगियाजी ५० साल पुरान गप-सरक्काक आधारपर आगाँ बढ़ै छथि। हुनका बुझल छन्हि जे गोनूकेँ धूर्ताचार्य कहल गेल छन्हि मुदा संगे गोनूकेँ महामहोपाध्याय सेहो कहल गेल छन्हि से हुनका नै बुझल छन्हि!! गोनू झाक समयमे मुस्लिम मिथिलामे रहबे नै करथि तखन तहसीलदारक दाढ़ीकतऽ सँ आओत। लोकक कण्ठमे छुतहर छै ओकरा छुतहा घैलकऽ दियौ, लोकक कण्ठमे कर ओसूलीकरैबलाक दाढ़ी छै ओकरा तहसीलदारक दाढ़ी कहि  साम्प्रदायिक आधारपर मुस्लिमकेँ अत्याचारी करार कऽ दियौ, आ तेहेन भूमिका लिखि दियौ जे रमानन्द झा रमणआ आन गोटे डरे समीक्षा नै करताह। एकटा पैदल सैनिक आ एकटा सतनामी (दलित-पिछड़ल वर्ग द्वारा शुरू कएल एकटा प्रगतिवादी सम्प्रदाय)क झगड़ासँ शुरू भेल सतनामी विद्रोह औरंगजेबक नीतिक विरोधमे छल आ ओइमे मस्जिदकेँ सेहो जराओल गेलै, मुदा गोनू झाक कर ओसूली अधिकारी मुस्लिम नै रहथि, लोककथामे ई गप नै छै, हँ जँ साम्प्रदायिक लोककथाकार कहल कथामे अपन वाद घोसियेलक आ लिखै काल बेइमानी केलक तँ तइसँ मैथिली लोककथाकेँ कोन सरोकार? फील्डवर्कक आधारपर जँ लोककथाक संकलन नै करब तँ अहिना हएत।
महेन्द्र नारायण राम लिखै छथि जे लोककथामे जातित-पाइत नै होइ छै, मुदा मलंगियाजी से कोना मानताह। भगता सेहो हुनकर कथामे एबे करै छन्हि। आ असल कारण जइ कारणसँ ई मलंगिया जीक नाटकक अभिन्न अंग बनि जाइत अछि से अछि हुनकर आनुवंशिक जातीय श्रेष्ठता आधारित सोच। हुनकर नाटकमे मोटा-मोटी अढ़ाइ-अढ़ाइ पन्नाक घीच तीरि कऽ सत्रहटा दृश्य अछि, जइमे पन्द्रहम दृश्य धरि ओ छोटका जाइतक (मलंगियाजीक अपन इजाद कएल भाषा द्वारा) कथित भाषापर सवर्ण दर्शकक हँसबाक, आ भगताक भ्रष्ट-हिन्दीक माध्यमसँ छद्म हास्य उत्पन्न करबाक अपन पुरान पद्धतिक अनुसरण करै छथि। कथाकेँ उद्देश्यपूर्ण बनेबाक आग्रह ओ सोलहम दृश्यसँ करै छथि मुदा बाजी तावत हुनका हाथसँ निकलि जाइ छन्हि। आइ जखन संस्कृत नाटकोमे प्राकृत वा कोनो दोसर भाषाक प्रयोग नै होइत अछि, मलंगियाजीक भरतकेँ गलत सन्दर्भमे सोझाँ आनब संस्कृतसँ हुनकर अनभिज्ञताकेँ देखार करैत अछि आ भरत नाट्यशास्त्रपर हिन्दीमे जे सेकेण्डरी सोर्सक आधारपर लोक सभ पोथी लिखने छथि, तकरे कएल अध्ययन सिद्ध करैत अछि।
मलंगियाजीक ई कहब अछि जे नाटक जँ पढ़बामे नीक अछि तँ मंचन योग्य नै हएत, वा मंचन लेल लिखल नाटक पढ़बामे नीक नै लागतहुनकर संस्कृत पाँतीकेँ उद्घृत करबासँ तँ यएह लगैत अछि। जँ नाटक पढ़बामे उद्वेलित नै करत तँ निर्देशक ओकर मंचनक निर्णय कोना लेत? आ मंचीय गुण की होइ छै, अढ़ाइ-अढ़ाइ पन्नाक सत्रहटा दृश्य, तथाकथित निम्न वर्गकेँ अपमानित करैबला जातिवादी भाषा, भगताक बुझता है कि नहीं?” बला हिन्दी आ ऐ सभक सम्मिलनक ई स्लैपस्टिक ह्यूमर”? आ जे एकर विरोध कऽ मैथिलीक समानान्तर रंगमंचक परिकल्पना प्रस्तुत करत से भऽ गेल नाटकक पठनीय तत्त्वक आग्रही आ जे पुरातनपंथी जातिवादी अछि से भेल नाटकक मंचीय तत्वक आग्रही!! की २१म शताब्दीमे मलंगियाजीक जाति आधारित वाक्य संरचना संस्कृत, हिन्दी वा कोनो आधुनिक भारतीय भाषाक नाटकमे (मैथिलीकेँ छोड़ि) स्वीकार्य भऽ सकत? आ जँ नै तँ ऐ शब्दावली लेल १८०० बर्ष पुरनका संस्कृत नाटकक गएर सन्दर्भित तथ्यकेँ, मूल संस्कृत भरत नाट्यशास्त्र नै पढ़ैबला नाटककार द्वारा, बेर-बेर ढालक रूपमे किए प्रयुक्त कएल जाइए? माथपर छिट्टा आ काँखमे बच्चा जँ कियो लेने अछि तँ ओ निम्न वर्गक अछि? ओकर आंगनक बारहमासामे ओ ऐ निम्न वर्गकेँ राड़ कहै छथि, कएक दशक बाद ई धरि सुधार आएल छन्हि जे ओ आब ओइ वर्गकेँ निम्न वर्ग कहि रहल छथि, ई सुधार स्वागत योग्य मुदा ऐ दीर्घ अवधि लेल बड्ड कम अछि। बबाजी कोना कथामे एलै आ गाजा कोना एलै आ ओइसँ बगियाक गाछक बगियाक कोन सम्बन्ध छै? मलंगियाजी अपन जाति-आधारित वाक्य संरचना, आ भ्रष्ट-हिन्दी मिश्रित वाक्य रचना कोना घोसिया सकितथि जँ भगता आ निम्न वर्गक छद्म संकल्पना नै अनितथि, ई तथ्य ओ बड्ड चतुराइसँ नुकेबाक प्रयास करै छथि, आ तेँ ओ मेडियोक्रिटीसँ आगाँ नै बढ़ि पबै छथि। आ तेँ हुनकामे ऐ नाट्य-कथाकेँ उद्देश्यपूर्ण बनेबाक आग्रह तँ छन्हि मुदा सामर्थ्य नै आबि पबै छन्हि।
सुधांशु शेखर चौधरी 
भफाइत चाहक जिनगी: महेश बेरोजगार अछि, ओ चाह दोकान खोलैए ओ कवि सेहो अछि।इंजीनियर उमानाथक पत्नी चन्द्रमा दोकानपर देखलन्हि जे पुकार महेश कविता पाठ लेल जाइए, चन्द्रमा चाह बेचऽ लगै छथि, उमानाथ तमसा जाइ छथि। महेशक संगी सरिता, जे आइ.ए.एस.क पत्नी छथि, आबै छथि। लेटाइत आँचर: दीनानाथक एकेटा मात्र पुत्री ममताकेँ पति काटरक कारणसँ छोड़ि दै छन्हि। मुदा पुत्र मोदनाथक विवाहमे दहेज लेबाक प्रयत्नपर पुत्र हुनका रोकै छन्हि।
जगदीश प्रसाद मण्डल
मि‍थि‍लाक बेटी-प्रथम दृश्‍य- महगीक वि‍रोधमे कर्मचारीक हड़ताल। महगीक कारण- नोकरी दि‍स झुकने, खेतीक ह्रास। भू-सम्‍पत्ति‍क ह्रास, दान दहेज झर-झंझटक बढ़ोतरी। वि‍याहक लाम-झाम। पैसाक दुरूपयोग। कला प्रेमी धन सम्‍पत्ति‍केँ तुच्‍छ बुझैत। कौरनेटि‍याक संग कओलेजक लड़की, जे नाच-गान सि‍खैत, चलि‍ गेलि‍। झर-झंझटमे पोकेटमारी सेहो।सरकारी पदाधि‍कारीकेँ बाजैपर रोक। अपहरणक बढ़ोत्तरी, रंग-वि‍रंगक अपहरणोक कारण ि‍सर्फ पाइये नै जानोक खेलवाड़। सरकारी अफसरक नैति‍क ह्रास। चम्‍मछक घटना। सरकारी तंत्र कमजोर भेने असुरक्षाक वृद्धि‍।समाजक वि‍घटनमे जाति‍, सम्‍प्रदाय इत्‍यादि‍क योगदान, जइसँ इज्‍जत-आवरू धरि‍ खतरामे।सि‍नेमा, खेल-कूदक प्रभावसँ नव पीढ़ी अपन सभ कि‍छु- कुल, खनदान, वेवहार, छोड़ि‍, वाहरी हवाक अनुकरणमे पगला रहल अछि‍। ढहैत सामंतमे संस्‍कारक छाप। इनार-पोखरि‍ स्‍त्रीगणक झगड़ाक अड्डा। मि‍थि‍ला नारी शक्‍ति‍क प्रतीक सीता। दहेजक मारि‍मे जाति‍-पाँति‍क नास। धन-सम्‍पत्ति‍ आचार-वि‍चार नष्‍ट करैत कोट-कचहरीक चपेटमे समाज, आपसी झगड़ाक कुप्रभाव। नवयुवकमे आत्मवलक अभाव नारीक बीच असीम धैर्य-वाल-वि‍धवा मनुष्‍यपर समाजक प्रभाव। पढ़लो-ि‍लखल कारगरो लड़कीक मोल दहेजक आगू चौपट अछि‍। ओना पुरूषक अपेक्षा नारीक महत्‍व, पुरूष प्रधान व्‍यवस्‍थामे कम रहल गहना-जेबर सेहो अहि‍तकर। नव पीढ़ीक नारीमे नव उत्‍साहक जरूरत। नव-नव काज सि‍खैक हुनर। दोसर अंक- सामंती व्‍यसन- भाँग। नव पीढ़ी सेहो प्रभावि‍त। श्रम चोर मि‍हनतसँ मुँह चोराएब। भाग्‍य-भरोसपर वि‍सवास। धनक प्रभावसँ परि‍वारक वि‍खरब। पि‍ता-पुत्रक बीच मतभेद बलजोरी वा फुसला कऽ लड़का-लड़की वि‍याह...। खेतक लेन-देनमे घोखाधड़ी। जबूरि‍या, दोहरी रजि‍स्ट्री। घुसखोरी कमाइ प्रति‍ष्‍ठा। माइयो-वापक इच्‍छा रहैत जे बेटा घुस लि‍अए। नोकरीक वि‍रोध... पुरूष प्रधान व्‍यवस्‍थामे नारीक रंग-वि‍रंगक शोषण। पढ़ौने आरो समस्‍या। तेसर अंक - बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनीक कृषि‍पर दुष्‍प्रभाव, देशी उत्‍पादनक अभाव। दहेज समर्थक समाज आ दहेज वि‍रोधी समाज दू तरहक समाज। परम्‍परा आ परम्‍परा वि‍रोधी नव जाग्रत समाज। खण्‍ड-पखण्‍डमे समाज टूटल। नव मनुष्‍यक सृजन नव तकनीक नव सोच आ नव काज पकड़ने बहुराष्‍ट्रीय प्रभावसँ परि‍वार, समाज आ कला संस्‍कृति‍पर दुष्‍प्रभाव, बेबस्‍था बदलने समाज बदलत। चारि‍म अंक- पाइ भेने वि‍चारोमे बदलाव। जाहि‍सँ नव समाजक सूत्र पात-जन्‍म सेहो होइत। रामवि‍लास (मि‍स्‍त्री) मनुष्‍यक महत्‍व दैत जइसँ दहेजकेँ धक्का लगैत। पहि‍नेसँ मि‍थि‍लांचलक लोक वंगल, असाम, नेपाल, ढाका, धरि‍ ध्‍न कटनी, पटुआ कटनीक लेल जाइत छल। शि‍क्षाक वि‍संगति‍। ओकरा मेटाएब। पाँचम अंक- आदर्श वि‍याह। नव चेतनाक जागरण जे बेबस्‍था बदलत। 
कम्‍प्रोमाइज- सामंती समाजमे टुटैत कृषि‍ आ कि‍सानी जीवन, नब पूँजीवादी समाजमे कृषि‍केँ पूँजी बनेबाक बेबस्‍था, बुद्धि‍जि‍वी आ श्रमिकक पलायनसँ गामक बि‍गड़ैत दशा, समन्‍वयवादी वि‍चार-दर्शन।
झमेलि‍या बि‍आह- मि‍थि‍लाक समाजमे अबैत बि‍आह-संस्‍कारक प्रक्रि‍यामे रंग-बि‍रंगक बाहरी प्रभाव, बाहरी प्रभावसँ रंग-बि‍रंगक वि‍वाद, झमेलक जन्‍म, झमेलि‍याक रूपमे बि‍आह प्रक्रि‍यामे होइत वि‍वादक वि‍षद चर्च।
बि‍रांगना- ग्रामीण जीवनक बजारोन्‍मुख हएब, सस्‍ता श्रम-शक्‍ति‍ भेटलासँ पूँजीपति‍ वर्ग द्वारा शोषण, श्रमक लूटसँ ग्रामीण लोक जानवरोसँ बत्तर जि‍नगी जीबए लेल मजबूर, रूपैयाक लालचमे नीच-सँ-नीच काज करबाक लेल तैयार लोक।
तामक तमघैल- ढहैत सामंती समाजमे छि‍न्न-भि‍न्न होइत परि‍वार, रीति‍-नीति‍ एवं परि‍वारि‍क सम्‍बन्‍ध, छि‍न्न-भि‍न्न होइत परि‍वारक आर्थिक आधार।
सतमाए- कोनो संबंध दोषपूर्ण नै होइत छै बल्‍कि‍ मनुष्‍यक बेबहार आ वि‍चारमे दोष होइत छैक तही बेबहार आ वि‍चारक सम्‍यक चर्च करैत सतमाएक आदर्शरूप प्रस्‍तुत कएल गेल अछि‍।
कल्‍याणी- दि‍न-देखारे होइत अन्यायक प्रति‍ सजगताक उल्लेख करैत नारी जागरणक चि‍त्रण, बुनि‍यादी समस्‍या दि‍स इशारा करैत समस्‍याक समाधान हेतु पैघ-सँ-पैघ दाम चुकबए पड़ैत अछि, तेकर चि‍त्रण।
समझौता- समाजमे कृषि‍केँ पूँजी बनेबाक लेल टुटैत कृषि संस्‍कृति‍क बुनि‍यादी समस्‍याक वर्णन आ तकर नि‍दान लेल समझौता हेतु सम्‍यक सोचक जरूरति‍पर प्रकाश दैत ओकर महत्व ओ आवश्‍यकताक वर्णन।

आनंद कुमार झा
टाटाक मोल : काटर प्रथापर आधारित नाटक। गरीबनाथ आ सुमि‍त्राक 'पुत्र कामनार्थ' पॉच गोट कन्‍या‍। पहि‍ले बेटीक वि‍वाहमे हुनकर बहुत खेत बि‍का गेलनि‍। दोसर बेटीक कन्‍यादानक लेल मात्र बारह कट्ठा जमीन बॉचल छन्‍हि‍। बेटी प्रभा कॉलेजमे पढ़ैत छथि‍, अपन बहि‍नक देओर प्रभाकरसँ सि‍नेह करै छथि‍, छोट मांगल-चांगल भाए महीस चरबैत छन्‍हि‍।
कलह :  आकाश बेरोजगार छथि‍। वि‍भाता सुमि‍त्रा अपन पुत्र राजीव लेल ज्‍येष्‍ठ पुत्रक संग यातना दैत छथि। एकटा अबोध नेनाक जन्‍म भेल.....।
बदलैत समाज :  एकटा ब्‍लड कैंसर पीड़ि‍त घूरन जी अपन बीमार पुत्रक वि‍आह करा दैत छथि‍। हुनका ओना बूझल नहि‍ छलनि‍ जे पुत्र अवधेश ब्‍लड-कैंसरसँ पीड़ि‍त अछि‍। भजेन्‍द्र मुखि‍याक पुत्र अवधेशक मृत्‍युक भऽ गेलनि‍। अंतमे वि‍धवा शोभाक एकटा सच्‍चरि‍त्र युवक वीजेन्‍द्रसँ पुर्नवि‍वाहक कल्‍पना कएल गेल।
धधाइत नवकी कनि‍याॅक लहास :  कि‍छु गहनाक खाति‍र शि‍खाक आत्‍महत्‍याक प्रयास।
हठात् परि‍वर्त्तन : देशभक्‍ति‍ नाटक।

गजेन्द्र ठाकुर
उल्कामुख: पहिल मंचनक निर्देशक रहथि बेचन ठाकुर। जादू वास्तवितावादी ऐ नाटकमे इतिहासक एकटा षडयंत्रकेँ उघारल गेल अछि , मंच परिकल्पना रहए भरतक नाट्यशास्त्रक अनुसार। आचार्य व्याघ्र, आचार्य सिंह, आचार्य सरभ, शिष्य साही, शिष्य खिखिर, शिष्य नढ़िया, शिष्य बिज्जी  ऐ मे पात्र छथि। पहिलसँ चारिम कल्लोल धरिक पात्र बदलि जाइ छथि, दोसर रूपमे पाँचम कल्लोलसँ ४ टा स्त्री पात्र बढ़ि जाइ छथि: रुद्रमति (माधवक माए) सोहागो (गंगाधरक माता), आनन्दा (गंगाधरक बहिन), मेधा (हरिकर- सेनापतिक बेटी)। गंगेश आ वल्लभाक प्रेम ऐ नाटकक विषय अछि। मुदा पहिल दू अंकक बाद तेसर आ चारिम अंक जादू वास्तविकतावादक उदाहरण बनि जाइए। आ आबि जाइ छथि सोझाँ उदयन, दीना, भदरी, आचार्य व्याघ्र, आचार्य सिंह, आचार्य सरभ, शिष्य साही, शिष्य खिखिर, शिष्य नढ़िया, शिष्य बिज्जी। आ शुरू भऽ जाइए इतिहासक एकटा षडयंत्रक अनुपालन। मुदा चारिम कल्लोलक अन्तमे भगता कहि दै छथि अपन शिष्यकेँ एकटा रहस्य.......जे विस्मरणक बादो आबि जाएत स्मरणमे।...बनि उल्कामुख... - पाँचम कल्लोलसँ संकेतक बदला वास्तविकता, कल्पनाक बदला सत्य... -पहिलसँ चारिम कल्लोल धरि मंचपर शतरंजक डिजाइन बनाएल घन राखल रहत, पाँचम कल्लोलसँ भूत आ कल्पनाक प्रतीक ओइ संकेतक बदला वास्तविकताक प्रतीक गोला राखल रहत। गंगेशक तत्त्वचिन्तामणिपर ढेर रास टीका उपलब्ध अछि, गंगेशकेँ कहल जाइ छन्हि तत्वचितामणिकारक गंगेश; मुदा हुनकर कविता भऽ गेल छन्हि "उल्कामुख"!!!
संकर्षण: ऐ नाटकमे एकटा पात्र, जे गाममे कहबैका आ दुष्ट-चलाक प्रवृत्तिक मानल जाइत अछि, दिल्ली एलापर (रस्ते सँ ओकर बुद्धि हेरेनाइ शुरू होइ छै) अपनाकेँ मूर्ख बुझैत अछि- बीचमे भारतक हरियाणाक एकटा कुकुरसँ सम्बन्धित लोककथा सेहो समाहित अछि।
भऽ जाएब छू- (बाल चौबटिया-सड़क नाटक)- पर्यावरण आ विज्ञानकेँ सडक नाटकक माध्यमसँ पसारबाक अभियान।

बेचन ठाकुर
बेटीक अपमान आ छीनरदेवी: भ्रूण हत्या, महिला अधिकार आ अन्धविश्वासपर आधारित दुनू नाटक मैथिली नाटककेँ नव दिशा दैत अछि।
अधिकार: इन्दिरा आवास योजनाक अनियमितताकेँ आर.टी.आइ.(सूचनाक अधिकार) सँ देखार करैबला आ रिक्शासँ झंझारपुरसँ दिल्ली जाइबला असली चरित्र मंजूरक कथा अछि।
विश्वासघात: नेशनल हाइवेक जमीनक मुआवजामे ढेर रास पाइ देल जाइ छै आ ओकरा हड़पै लेल पारिवारिक सम्बन्धक बलि चढ़ि जाइ छै।

स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र ’यात्री’


स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र यात्री” (१९११-१९९८):स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र यात्रीकेर जन्म १९११ ई. मे अपन मामागाम सतलखामे भेलन्हि जे हुनकर पैतृक गाम तरौनीक लगेमे अछि। यात्री जी अपन गामक संस्कृत पाठशालामे पढ़ए लगलाह, फेर वाराणसी आ कलकत्ता सेहो गेलाह आ संस्कृतमे साहित्य आचार्यक उपाधि प्राप्त केलन्हि। तकर बाद ओ कोलम्बो लग कलनिआ स्थान गेलाह पाली आ बुद्ध धर्मक अध्ययनक लेल। ओतए ओ बौद्ध धर्ममे दीक्षित भऽ गेलाह आ हुनकर नाम पड़लन्हि -नागार्जुन। मुदा बादमे पुनः गाममे यज्ञोपवीत कऽ ब्राह्मण धर्ममे घुरलाह।
यात्रीजी मार्क्सवादसँ प्रभावित छलाह, १९२९ ई. क अन्तिम मासमेमे मैथिली भाषामे पद्य लिखब शुरू कएलन्हि। १९३५ ई.सँ हिन्दीमे सेहो लिखए लगलाह। स्वामी सहजानन्द सरस्वती आ राहुल सांकृत्यायनक संग ओ किसान आन्दोलनमे संलग्न रहलाह आ १९३९ सँ १९४१ धरि ऐ क्रममे विभिन्न जेलक यात्रा कएलन्हि। हुनकर बहुत रास रचना जे महात्मा गाँधीक मृत्युक बाद लिखल गेल छल, प्रतिबन्धित कऽ देल गेल। भारत-चीन युद्धमे कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चीनकेँ देल समर्थनक बाद कम्युनिस्ट पार्टीसँ मतभेद भेलन्हि। जे.पी. अन्न्दोलनमे भाग लेबाक कारण आपात्कालमे हिनका जेलमे ठूसि देल गेल। यात्रीजी हिन्दीमे बाल साहित्य सेहो लिखलन्हि। हिन्दी आ मैथिलीक अतिरिक्त बांग्ला आ संस्कृतमे सेहो हिनकर लेखन आएल। मैथिलीक दोसर साहित्य अकादमी पुरस्कार १९६९ ई. मे यात्रीजीकेँ हुनकर कविता संग्रह पत्रहीन नग्न गाछपर भेटलन्हि। १९९४ ई.मे ओ साहित्य अकादमीक फेलो -हिन्दी आ मैथिली कविक रूपमे- भेलाह।
यात्रीजी जखन २० वर्षक छलाह तखन १२ वर्षक कान्यासँ हिनकर विवाह भेल। हिनकर पिता गोकुल मिश्र अपन समाजमे अशिक्षितक गनतीमे रहथि आ चरित्रहीन छलाह। यात्रीजीक बच्चाक स्मृतिमे छन्हि जे हुनकर पिता कोना हुनकर अस्वस्थ आ ओछाओन धएल मायपर कुरहड़ि लऽ मारबाक लेल उठल छलाह, जखन ओ बेचारी हुनकासँ कुमार्ग छोड़बाक गुहारि कऽ रहल छलीह। यात्रीजी मात्र छह वर्षक छलाह जखन हुनकर माए हुनका छोड़ि प्रयाण कऽ गेलीह। यात्रीजीकेँ अपन पिताक ओ चित्र सेहो रहि-रहि सतबैत रहलन्हि जइमे हुनकासँ मातृवत प्रेम करएवाली हुनकर विधवा काकीक, हुनकर पिताक अवैध सन्तानक गर्भपातमे, लगभग मृत्यु भऽ गेल छलन्हि। के एहन पाठक होएत जे यात्रीजीक हिन्दीमे लिखल रतिनाथ की चाचीपढ़बाक काल बेर-बेर नै कानल होएत। पिता-पुत्रक ई घमासान एहन बढ़ल जे पुत्र अपन बाल-पत्नीकेँ पिता लग छोड़ि वाराणसी प्रयाण कए गेलाह।
कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप
हम टा संतति, से हुनक पाप
ई जानि ह्वैन्हि जनु मनस्ताप
अनको बिसरक थिक हमर नाम
माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम! (काशी/ नवंबर १९३६)
काशीसँ श्रीलंका प्रयाण, “कर्मक फल भोगथु बूढ़ बापई कहि यात्रीजी अपन पिताक प्रति सभ उद्गार बाहर कऽ दैत छथि। १९४१ ई. मे यात्रीजी अपन पत्नी, अपराजितालग आबि गेलथि। १९४१ ई. मे यात्रीजी दू टा मैथिली कविता लिखलन्हि- बूढ़ वर”  विलापआ एकरा पाम्फलेट रूपमे छपबाए ट्रेनक यात्री लोकनिकेँ बेचलन्हि। जीविकाक ताकिमे सौँसे भारत दुनू प्राणी घुमलाह। पत्नीक जोर  देलापर बीच-बीचमे तरौनी सेहो घुमि कऽ आबथि। आ फेर आएल १९४९ ई., अपना संग लेने यात्रीजीक पहिल मैथिली कविता-संग्रह चित्रा। १९५२ ई. धरि पत्नी संगमे घुमैत रहलथिन्ह, फेर तरौनीमे रहए लगलीह। यात्रीजी बीच- बीचमे आबथि। अपराजितासँ यात्रीजीकेँ छह टा सन्तान भेलन्हि, आ सभक भार पत्नी अपना कान्हपर लेने रहलीह। यात्रीजी दमासँ परेशान रहैत रहथि।
हम जखन दरभंगामे पढ़ैत रही तँ यात्रीजी ख्वाजा सरायमे रहैत छलाह। हमरा मोन अछि जे मैथिलीक कोनो कार्यक्रममे यात्रीजी आएल छलाह आ कम्युनिस्ट पार्टीबला सभ एजेन्डा छीनि लेने छल। अगिले दिन यात्रीजी अपनाकेँ ओइ धोधा-धोखीमे गेल सभाक कार्यवाहीसँ हटा लेलन्हि। एमर्जेन्सीमे जेल गेलाह तँ आर.एस.एस. क कार्यकर्ता लोकनिसँ जेलमे भेँट भेलन्हि आ जे.पी.क सम्पूर्ण क्रान्तिक विरुद्ध सेहो जेलसँ बाहर अएलाक बाद लिखलन्हि यात्रीजी। यात्रीजी मैथिलीमे बैद्यनाथ मिश्र "यात्री" आ हिन्दीमे नागार्जुनक नामसँ रचना लिखलन्हि।
पृथ्वी ते पात्रं१९५४ ई. मे वैदेहीमे प्रकाशित भेल छल, हमरा सभक मैट्रिकक सिलेबसमे छल। यात्रीजी लिखैत छथि-
आन पाबनि तिहार तँ जे से। मुदा नबान निर्भूमि परिवारकेँ देखार कए दैत छैक। से कातिक अबैत देरी अपराजिता देवीक घोघ लटकि जाइन्हि। कचोटेँ पपनियो नहि उठा होइन्ह ककरो दिश! बेसाहल अन्नसँ कतउ नबान भेलइए”?

यात्री एकटा मिथ छथि? की यात्री एकटा मिथ छथि? ओ मुख्यतः हिन्दीक लेखक रहथि, मैथिलीमे ओ हिन्दीक दशमांशो नै लिखलन्हि। जे लिखबो केलन्हि तइमे सँ बेशी स्वयं द्वारा हिन्दीसँ अनूदित। मैथिली आ मिथिला क्षेत्रक शब्दावली आ संस्कृति हिन्दीक लोककेँ अबूझ आ तेँ रुचिगर लगलै मुदा तइमे सेहो ढेर रास कमी रहै जेना एकटा उदाहरण यात्री समग्रसँ- ।     यात्री समग्र-पृ.२२० जेठ सुदी चतुर्दशी कऽ रहनि पीसाक वर्षी। पहिले वर्षी..पृ.. २२२- ..कहाँ जे एको दिनक खातिर जाइ, कर्ता बना, अषाढ़ बढ़ि तृतियाक तिथिपर पहिल।
एहेन बेमारी आनो मैथिली-हिन्दी लेखकमे छन्हि। ई ऐतिहासिक लिखित तथ्य अछि जे गोनू झा १०५०-११५० मे भेलाह मुदा उषा किरण खान विद्यापतिसँ हुनकर शास्त्रार्थ करबै छथि (हिन्दीक ऐतिहासिक उपन्यास सिरजनहार, भारतीय ज्ञानपीठ, मे) वीरेन्द्र झा कहै छथि जे गोनू झा ५०० साल पहिने भेला आ तारानन्द वियोगी गोनू झा केँ ३०० साल पहिने भेल मानै छथि (दुनू गोटेक हिन्दीमे प्रकाशित गोनू झापर पोथी, क्रमसँ राजकमल प्रकाशन आ नेशनल बुक ट्रस्टसँ प्रकाशित) तँ विभा रानीक गोनू झापर हिन्दी पोथी (वाणी प्रकाशन) मे कुणाल गोनू झाकेँ भव सिंहक राज्यमे (१४म शताब्दी) भेल मानैत छथि। जखन पंजीमे उपलब्ध लिखित अभिलेखन गोनू झाकेँ विद्यापतिसँ दस पीढ़ी पहिने अभिलेखित करैत अछि, तखन ई हाल अछि। मिथिला क्षेत्रक शब्दावली आ संस्कृतिक- जे हिन्दीक लोककेँ अबूझ आ तेँ रुचिगर लगैे छै- तथ्यमे ई मैथिली-हिन्दी लेखक सभ अपन अज्ञानतासँ ढेर रास गलत तथ्य पड़सि रहल छथि, साम्प्रदायिक लेखक लोकनि गोनू झाक कथामे मुस्लिम तहसीलदारक अत्याचार घोंसिया रहल छथि (मुस्लिम लोकनि मिथिलामे गोनूक समए मे रहबे नै करथि)!
यात्री समग्रमे बलचनमा नै लेल गेल कारण ओ हिन्दीक कृति अछि, ओकर मैथिली अनुवाद सेहो भ्रष्ट अछि लगैए जेना अदहा अनुवाद केलाक बाद मैथिली लेल हुनका लग समयाभाव भऽ गेल होइन्ह। यात्री समग्रमे नवतुरिया लेल गेल, ओहो मूल हिन्दी अछि, किए मूल मैथिली कहि कऽ लेल गेल तकर जबाब सम्पादक देताह। मैथिलीमे प्रूफ रीडरकेँ सम्पादक कहेबाक सख छन्हि आ लोक ग्रियर्सन धरिक रचनाक रिप्रिन्ट अपन सम्पादकत्वमे करबा रहल छथि। एकटा दोसर उदाहरणमे पी.सी.रायचौधुरीक दरभंगा जिला गजेटियरक तेसर अध्यायक चारिटा उपशीर्षकक अंग्रेजी रचनाकेँ मोहन भारद्वाज अपन सम्पादकत्वमे रमानाथ झा रचनावलीमे -किनको कहलासँ सत्य मानि- रमानाथ झाक रचना मानि घोसिया देलन्हि, जखन की लिखित आ वैयाकरणिक शिल्पक आधारपर ओ रचना पी.सी.रायचौधुरीक अछि। यात्री स्वयं कहै छथि जे ओ मैथिली बलचनमा पहिने लिखलन्हि आ तकर हिन्दीमे अनुवाद केलन्हि। मुदा हिन्दी बलचनमामे ओ ई नै लिखै छथि आ ओकरा हिन्दीक पहिल आंचलिक उपन्यास कहै छथि। ई बेमारी आइयो मैथिलीक लेखककेँ गरोसने अछि आ यात्री जीक ऐ मे सायास-अनायास योगदान दुखदायी अछि।
राजकमल यात्रीकेँ अमर-सुमन सन पुरान ढर्राक कवि कहै छथि, प्रायः यात्रीक छन्दक प्रति सजगतासँ राजकमलकेँ ई भ्रम भेल छलन्हि।
रामविलास शर्मा आ यात्रीजीक मैथिली बोली अछि आकि भाषा, ऐ विषयक सम्वादक भाषा विज्ञानक दृष्टिएँ कोनो खास महत्व नै छै। रामविलास शर्मा बहुत पैघ साम्यवादी चिन्तक रहथि आ हुनकर कविता, आलेख सँ बेसी प्रभावी हुनकर कएकखण्डक भारतक इतिहास विवेचन अछि.। मैथिलीकेँ भाषाक रूपमे स्थापित करबामे सुभद्र झा, रामावतार यादव, योगेन्द्र यादव, सुनील कुमार झा आदि भाषाशास्त्री काज केने छथि, रामविलास शर्मा आ यात्रीजीक सम्वाद गपाष्टक मात्र अछि।

चतुरानन मिश्र आ जगदीश प्रसाद मंडल कम्यूनिस्ट आन्दोलनसँ जुड़ल छथि, प्रायोगिक रूपमे, पार्टी स्तरपर, मुदा हिनकर दुनू गोटेक उपन्यास देखला उत्तर हमरा ई कहबामे कनेको कष्ट नै होइत अछि जे जइ रूपमे यात्री आ धूमकेतु मार्क्सवादक बैशाखी लऽ उपन्यासकेँ ठाढ़ करै छथि तकर बेगरता एहि दुनू उपन्यासकारकेँ नै बुझना जाइत छन्हि। मार्क्सवादक असल अर्थ हिनके दुनूक रचनामे भेटत। कतौ पार्टीक नाम वा विचारधाराक चर्च नै मुदा जे असल डायलेक्टिकल मैटेरियलिज्म छैक तकर पहिचान, जिनगीक महत्वपर विश्वास, द्वन्दात्मक पद्धतिक प्रयोग आ ई तखने सम्भव होइत अछि जखन लेखक दास कैपिटल सहित मार्क्सवादक गहन अध्ययन करत आ प्रायोगिक मार्क्सवादपर कताक दशक चलत।
आ अन्तमे यात्रीजीक संस्कृत पद्य:-
वासन्ती कनकप्रभा प्रगुणिता
पीतारुर्णेः पल्लवैः
हेमाम्भोजविलासविभ्रमरता
दूरे द्विरेफाः स्ता
यैशसण्डलकेलिकानन कथा
विस्मरिता भूतले
छायाविभ्रमतारतम्यतरलाः
तेऽमी चिनारद्रुमाः॥
-बसंतक स्वर्णिम आभा द्विगुणित भऽ गेल अछि पीयर-लाल कोपड़सँ। स्वर्णकालक भ्रममे भौरा सभ एकरासँ दूर-दूर रहैत अछि। नन्दनवनक विहारकेँ जे पृथ्वीपर बिसरा दैत अछि, छाह झिलमिल घटैत-बढ़ैत जकर डोलब अछि चंचल आ तरल। ओइ चिनारकेँ हम देखने छी अडिग भेल ठाढ़।