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Monday, September 3, 2012

नव–नव क्षितिजक सन्धान करैत सुजीतक जिद्दी- डा.राजेन्द्र विमल



साहचर्य–सम्भूत रसोद्भावनाक चतुर, युवा कथाकार सुजीत कुमार झाक कथा मिथिलाञ्चलक महानगरोन्मुख शहरक विविधतापूर्ण परिवेश आ पात्रक स्थिति–मनस्थितिक सूक्ष्म चित्राङ्कन प्रस्तुत करैत अछि । प्रत्येक कथा कोनो एक गोट एहने शहरी पात्रक जीवनमे झटका नेने आएल कोनो निर्णायक मोड़क नाटकीय रुपमे जखन प्रत्यक्षीकरण करबैछ तऽ पाठक चिहँुकि उठैत अछि ।
सामान्य घटनासभक श्रृङ्खलासँ आरम्भ भेल कथा मध्यधरि अबैत–अबैत सूच्याग्र भऽ जाइत अछि आ अन्तमे एकटा ‘करेण्ट’ जेकाँ लगबैत अछि । – जेना सामान्य यात्रामे चलैत–चलैत केओ आगाँमे फँेच कढ़ने, नाङरिपर ठाढ़ गहुमन देखि नेने हो ! शिल्पक ई वैशिष्ठ्य हिनका मैथिलीक अन्य कथाकारसँ अलगहे फराक कए दैत अछि ।
महानगरोन्मुख समाजक चित्राङ्कनक संगहि कथा एक गोट मनोवैज्ञानिक सत्यक उद्घाटन करैत अछि । कथामे एक गोट एहन स्थल अबैत अछि जखन आश्चर्यचकित भेल पाठक सोचैत अछि, ‘ अरे ! ई की भऽ गेलै ?’ – आ तखने कथाक अन्त भऽ जाइ छै । अमेरिकी कथाकार ओ. हेनरीक स्मरण भऽ अबैछ । अवग्रहमे पड़ल पात्रक प्राण जेना अकस्मात् मुक्ति–पथ पाबि
लैछ !
कथाकार सुजीत कुमार झाक कथाकारिताक दोसर उल्लेखनीय निजत्व थिक – अनतिदीर्घता अर्थात् संक्षिप्तता । हिनक कथाक घटना–परिघटना ज्यामितीय चित्र जेकाँ एक–दोसरकेँ कटैत, ओझराइत–सोझराइत आगाँ नहि बढ़ैछ । कथाक तीर सनसनाइत जाइत अछि आ अर्जूनक लक्ष्य–भेद जेकाँ चिड़ैक आँखिटा देखैत ओकर भेदन करैत अछि आ कुशल धनुर्धरक धनुर्विद्याक सफलताक प्रमाणसँ धन्य भऽ जाइत अछि । तँए कथासभमे एकटा प्रभावान्वितियुक्त त्वरा छैक ।
हिनक सभ पात्र खाँटी मैथिल थिकाह – विभिन्न जाति, वर्गक मध्यवित्तीय मैथिल । सुजीत कुमार मध्यवित्तीय मैथिल जीवनक सफल कथाकार छथि । परम्परागत मूल्यक सिमेण्टसँ ठोस बनल संयुक्त परिवारमे देखल जाइत पारस्परिक स्नेह, विश्वास, वलिदान, सेवा, करुणा, अनुशासन आदि श्रेष्ठ मानवीय गुणमे लागल पश्चिमी सोचक नोनीसँ उत्पन्न दरार देखि कथाकारक हृदय दरकि जाइत छैन्हि आ हुनक लगभग प्रत्येक कथा खण्डित होइत एहि मूल्यकेँ पुनस्र्थापित करबाक कलात्मक चेष्टा बनि जाइत अछि ।
सहज–स्वभाविक कथोपकथनक मुक्तावलीसँ बनल–बूनल ई कथा सभक कथाकारक अपन परिवेशक भोगल यथार्थ सभक चित्रावलीसँ सजाओल सुन्दर ‘अलबम’ थिक ।
कथाकार सुजीत कुमारक कथाक सेहो एक गोट प्रमुख तत्व थिक सहज मानवीय राग–बन्ध । सुप्रसिद्ध आलोचक ई.एम.एलब्राइड लिखने छथि जे कथा–साहित्यक समस्त भावात्मक तत्वमे एकटा प्रेमे एहन थिक जकर सर्वाधिक प्रयोग भेल अछि, कारण प्रेम मानव–स्वभावक सर्वव्यापक तत्व थिक ।
‘पूmल फुलाइएकऽ रहल’ कथाक उच्च कुलशीला, सुशिक्षिता नायिका पिंकी अन्तद्र्वन्द्वक भंवरमे फँसि उबडुब करैत मुक्तिक हेतु तखन हाथ पएर भाँजऽ लगैत छथि । जखन हुनका पता लगैत छैन्हि जे जाहि पुरुषकेँ सहायक स्टेशन मास्टर कहि हुनक विवाह रचाओल गेल छल आ जकरा अपन सम्पूर्ण संचेतना समर्पण दऽ ओ इन्द्रधनुषी कल्पनाक इन्द्रजालमे ओझराएलि अपन सुधिबुधि हेरा चुकलि छलीह से सहायक स्टेशन मास्टर नहि एकटा साधारण पैटमैन अछि जे वस्तुतः अपन मालिक स्टेशन मास्टर आ सहायक स्टेशन मास्टरक घरलए बजारसँ झोड़ाक भोड़ा तरकारी कीनिकऽ अनैत अछि तऽ ओ सातम आसमानसँ खसैत छथि । मुदा, ई स्वयंसिद्ध नायिका अग्निकेँ साक्षी राखि लेल गेल पतिब्रत्य संकल्पकेँ स्मरण कए एकटा नव अवतार लैत छथि – अपन चिताक छाउरसँ पुनः उड़ि आसमानकेँ छुबैत मिथकीय पन्छी ‘स्फिङ्स’ जेकाँ ! नायककेँ एम.ए.धरि पढ़बैत छथि । अन्ततः नायक सहायक स्टेशन मास्टरक पदपर प्रतिष्ठित होइत छथि ।
‘नयाँ व्यपार’–क रोगग्रस्त नायक जितेन्द्र प्रसादक हँसैत–खेलैत गार्हस्थ जीवन महत्वकांक्षाक बबण्डरमे उधियाकऽ तहस–नहस भऽ गेल अछि । स्वयं रोगशैय्यापर पड़ल छथि, बच्चासभ अपन–अपन व्यवसाय–संसारमे हेराएल अछि आ पत्नी साधना सड़कपर चलैत लोकक आँखिमे गरदा झोंकैत, मिश्राजीक स्कूटरपर बैसि, अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवसमे सहभागी होएबाक लेल उड़ि जाइत छथि । कथा वर्तमान पारिवारिक जीवनक विद्रूपता आ विसङ्गतिकेँ रेखाङ्कित करैत अछि ।
‘खाली घर’–क नायक जयचन्द्र आ नायिका जानकी रेलक पटरी जेकाँ जीवन पर्यन्त समानान्तर चलैत छथि, मुदा कहियो, कखनो मीलि ने पबैत छथि । तकर कारण छैक पतिकेँ आदेश–अनुवर्तिनी ‘रोवोट’ नारीक चाहिऐन्हि, सासु–ससुरकेँ पुतहुक पटमासि कएल बहिकिरनीक बेगरता छैन्हि । मुदा पति अपन ‘स्व’–क संग जीवाक आकांक्षिणी छथि । एकटा शीतयुद्धमे जीवन बीति जाइत अछि, रीति जाइत अछि ।
‘लाल किताब’ परामनोविज्ञानपर आधारित रहस्य–रोमाञ्चसँ भड़ल कथा थिक । सेवक प्रसाद यादवजी १८ गतेकेँ अपन कक्षमे एकसरि बैसलि कथा नायिका मित्रपत्नीकेँ अत्यन्त अनुराग पूर्वक एक गोट लाल डायरी भेंट कऽ गेल रहै छथि । मित्रपत्नीकेँ जबर्दस्ती हाथ पकड़ि ओ अपना लग बैसबै छथि–हाथ अकल्पित रुपें सर्द–हेमाल किए लगै छल से ओ बूझि नहि पबैत छथि । मुदा जखन मित्रक मृत्युपर शोकविह्वल भेल नायिका पति बाहरसँ आबिकऽ सेवक प्रसादक मृत्यु सत्रहे गते भऽ गेल होएबाक सूचना दै छथिन्ह तऽ ओ काँपि उठैत छथि ।
मायक सह पाबि गिन्नी पढ़ाइ छोड़ि नृत्यमे प्रशिक्षित भऽ आय दिन नव–नव ‘पब्लिक शो’ करऽ लगलीह । बाप अपन बेटीकेँ ग्लैमर दिशि आकृष्ट देखि चिन्तामग्न रहै छथि, मुदा जिदाहि पत्नीक आगाँ विवश रहै छथि । परिणामतः जखन पता चलल जे गिन्नी व्यसनी, व्यभिचारिणी आ गर्भिणी भऽ गेलि छथि तऽ वातावरण हाक्रोशकऽ उठैत अछि । ताबत बहुत बिलम्ब भऽ गेल रहैत छैक ।
‘जादू’ कथाक नायिका सिम्मी घरपर जा कम्पनीक उत्पाद बेचऽबाली सेल्सगर्ल छलीह, मुदा हुनक मधुरवाणी आ शिष्ट व्यवहारक जादू रेणु आ हुनकर पतिक दिमागपर एना ने चढ़ल जे रेणुक पति हुनका अपन कम्पनीक नीक पदक हेतु अफर दऽ देलथिन्ह ।
परम्परावादी मूल्यक खण्डहरपर ठाढ़ होइत बलुआही पारिवारिक संरचनापर कठोर प्रहार अछि कथा– ‘ आदर्श’ परम्परावादी पति आ सासुकेँ लात मारि घर छोड़ि चलि तऽ अबै छथि अद्र्धआधुनिका शिक्षिका नायिका, मुदा पन्द्रह वर्षक पश्चात् जखन अपन कक्षामे एक गोट भविष्णु युवकक नाम ‘ आदर्श’ सूनि ओ चिहुँकि उठै छथि जेना ककोड़विच्छा अनचोकेमे डंक मारि देने होइक । आदर्शक पिताक नाम छै – अरुण, जिला न्यायाधीश, अर्थात् ओकर पूर्वपति । स्टाफ रुममे आबिकऽ धम्म दऽ बैसि जाइत छथि, मस्तिष्कमे अन्हड़–विहाड़ि नेने । एहि स्थलपर आबि विखण्डनवादी मूल्य हारि जाइत अछि आ संयुक्त परिवारक परम्परावादी मूल्य विजय घोष करैत अछि ।
‘अर्थहीन यात्रा’क नायिका नेहा अपन पति माधवसँ एहि दुआरे असन्तुष्ट रहैत छथि जे ओ महत्वकांक्षाक उन्मादसँ ग्रस्त नहि छथि, पार्टी–क्लवक सौखीन नहि छथि, भौतिक चमक दमकमे विश्वास नहि करैत छथि, नेहाक लेल ‘ गिप्mट’ नहि अनैत छथि आदि । तलकालए ओ जानकीरामसँ विवाह करैत छथि, बेटी तेजिकऽ । फेर ओ जानकी रामकेँ छोड़ि अन्य पुरुष संगे रहए लगैत छथि – पति पत्नीवत्, मुदा अविवाहित । पश्चिमसँ आएल ‘लिविङ्ग टूगेदर’–क चपेटिमे पड़लि नेहा अन्ततः अपनहि लेल निर्णायक कारण पश्चातापक आगिमे धू–धूकऽ जरऽ लगैत छथि । प्रस्तुत कथा सेहो पछबा हवाक विरोध आ पुरवाक समर्थनमे देवाल जेकाँ ठाढ़ अछि ।
नारी मनोविज्ञानक सुन्दर आ यर्थाथवादी विश्लेषण प्रस्तुत करैत कथा ‘व्यर्थक उड़ान’–क नायक कार्यालयक काजसँ जे विराटनगर गेलाह तऽ दू–चारि दिन विलम्ब की भेलैन्हि नायिका ऊनी स्वेटर जेकाँ मोनमे लहराइत भावक रंग–विरंगी लच्छाकेँ ओझरबैत–सोझरबैत जँ दुर्भाग्यसँ वैधव्यक पहाड़ टूटि पड़ल होइन्हि तऽ शेष यात्रा कमलसंग बितएबाक, ओकरा संग हनीमून मनएबाधरिक कल्पनामे डूबि जाइ छथि कि धम्म दऽ पति जूमि जाइत छथिन्ह । ओ पतिकेँ भरि पाँज पजियाकऽ हबोढ़कार भऽ कानऽ लगै छथि ।
‘निष्ठा कि देखाबा’ एक गोट घोर यथार्थवादी मार्मिक कथा अछि । नीमाक पति सोहनक दुनू किडनी सड़ि गेल छैक जकर प्रत्यारोपण डाक्टरक सलाह अनुसार भेल्लोरमे जा करएबाक बदला ओ पतिकेँ जल्दीसँ जल्दी गाम एहि दुआरे लऽ जाइत छथि जे सम्पति सम्बन्धी कागजात सभपर हुनकर हस्ताक्षर लेल जा सकए । पतिकेँ मरबाक चिन्ता नहि, सम्पति डुबबाक चिन्ता बेसी घेरने छैन्हि । मुदा भाग्यक व्यंग्य ई थिक जे अन्तिम साँसधरि पति हुनका पतिपरायणा मानैत छथि ।
‘केहन सजाय’ एक गोट टुग्गरि बालिका चमेलीक कथा अछि । जकरा कोनो सन्तानहीन सम्भ्रान्त दम्पती गोद नेने छल, मुदा जखन ओहि दम्पतीकेँ अपन औरसँ सन्तान जनमि जाइत छैक, चमेली ओहि घरमे नहि, ‘महिला सदन’मे पठा देल जाइत छथि । ओ तऽ धन्य कही संस्थाक नव अध्यक्षा आ पूर्व प्रधानाध्यापिका कामिनी मैडमकेँ जनिक करुणापूर्ण प्रयाससँ ओ रितेशक संग परिणय सूत्रमे बन्हा जीवनक भसिआइत नाओक लेल किनार पाबि लैत छथि ।
मेनकाक कोमल नारी हृदयकेँ हँथोड़ैथि ‘मेनका’ जीवन झँझावातक आघात–प्रतिघातसँ नारी हृदय समुद्रमे उठैत उत्ताल तरङ्गक विक्षोभकारी कथा थिक । मेनका परित्यक्ता थिकीह । हुनक पति चन्द्रभूषण सुन्दरी युवती नीनाक मोहपाशमे ओझरा हुनकर परित्यागकऽ देने छलथिन । नारी–अहंपर चोट लगैत अछि । मेनका प्राध्यापन सेवामे संलग्न छथि, जतऽ हिनक सम्पर्क विवाहित सहकर्मी राजीव सरसँ होइत छैन्हि । राजीव सरक व्यक्तित्वक चुम्बकीय प्रभावमे मेनकाक व्यक्तित्व लौहकण जेकाँ आकृष्ट होइत अछि, मुदा जखन ओ सोचै छथि जे राजीवपत्नी आरतीक हेतु हुनक प्रणय–लीला नीना–कर्मसँ कम हिंसक किंवा घृणित नहि होएत तऽ ओ अपनामे सिमटिकऽ कठोर लौहपिण्ड बनि जाइत छथि, जे चुम्बककेँ घीचि सकैत अछि, मुदा चुम्बकसँ घिचा नहि सकैत अछि ।
कथाकार सुजीत कुमार झाक कथाक विषय– चयन, बनाबट आ बुनाबट, भाषा शैली आ कलात्मक उच्चतामे उत्तरोत्तर प्रौढ़ता अबैत जाएत आ ओ मैथिली कथाक हेतु एहिना विषय आ शिल्पक नव–नव क्षितिजक सन्धान करैत नव प्रतिमानक स्थापनामे सफल होएताह, हमर विश्वास अछि ।

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