Pages

Sunday, August 26, 2012

जगदीश प्रसाद मंडलक “गामक जि‍नगी‍”- धनाकर ठाकुर


श्री जगदीश प्रसाद मंडलक “गामक जि‍नगी‍” कथा संग्रहमे १९ कथा छन्हिद। कथा सबहक शीर्षक बहुत छोट राखब लेखकक वि‍शेषता छन्हि। मुदा ऐ‍‍ कारणे ई मुख्यक पात्र प्रधान रहि‍ जाइत अछि‍।
गामक जि‍नगी केना शहरसँ अलग अछि‍ संभवत: लेखक एकरहि‍ प्रदर्शित करक प्रयास वि‍वि‍ध कथामे केने छथि‍। औद्यौगि‍क क्रांति‍क बाद बनल शहर, गामहि‍सँ उपटल लोकसँ बसल अछि‍ गामहि‍सँ जीवि‍काक खोजमे गेल लोकसँ जे बादमे क्रमश: गाम छोड़ि‍ देलनि‍। गाम छोड़ि‍ कोनो शहरमे जेबाक कारण प्रारम्भिा‍क अवस्थालमे औद्यौगि‍क पूंजी हुअए जइ‍‍मे गामक वर्णवैषम्यिक भाव भऽ नै‍‍ रहल हुअए मि‍थि‍लाक लेल कोसी-कमला समेत अनेक नदीमे अबएबला बाढ़ि‍ कारण रहल अछि‍ ओना बाढ़ि‍ स्वियं सेहो बड़का औद्यौगि‍क देशक सामान बेचक प्रकरण-उपकरणमे बनएबला बड़का बैराज-बांध आदि‍क कारणहि‍ अछि‍।

लेखककेँ मनमे कचोट छन्हिअ जे लोक कि‍एक गाम छोड़ि‍ बाहर जाइत अछि‍। पंजाब तक जकर परिणाम होइत छन्हिो बादमे नाव चलबैत, वा गामपर रि‍क्शाह चलबैत लगक कसबा वा स्टेनशनसँ जे पात्र कहैत छन्हिप- “हमर गामक लोक पंजाब नै‍‍ जाइत अछि‍।‍”

कि‍छु वर्ष पूर्व घोघरडीहा वा जयनगर सन स्टेशनसँ पंजाब आदि‍क छपल टि‍कट भेटैत छलैक जे एक दि‍नमे एक-एक स्टेँशनसँ लाख- लाख टाकाक कटि‍ जाइत छलैक जइपर पंजाबमे हरित क्रांति‍ अओलैक।

प्रति‍नि‍धि‍ कथा “डाक्टेर हेमन्तआ‍”, स्वियं डाक्टपर होइक चलते हम
सर्वप्रथम पढ़लौं। एक डाक्टइरक बेटा डाक्ट र हेमन्तर प्राय: दरभंगामे
काज करैत “लक्ष्मीकपुर‍” (बाढ़ि‍क गाम नि‍र्मली लग) जाइत अछि अधि‍कारीक आदेशसँ। चूँकि‍ ओ स्वटयं एक गामसँ नि‍कलल अछि‍ पि‍ताजीक उपार्जित धनक बंटबारामे मुकदमेबाजीसँ त्रस्त् अछि। डाक्टरर हेमन्तर तँ मि‍थि‍लेक शहरमे रहलाह। जतए कि‍ प्रमंडल एखन तक सहरसा या शहर सन कहबैत अछि‍। जतए कोनो शहर शहर सन‍ नै‍ अछि‍ बल्किो‍ गामहि‍क एक प्रति‍रूप अछि‍। मुदा हुनक बेटा कोनो दोसर प्रांतक शहरमे नौकरी लेल चलि‍ गेलखि‍न‍। डाक्टकर नै‍‍ बनलखि‍न यद्यपि‍ कहानीमे ई लि‍खल नै‍‍ अछि‍ कि‍एक मुदा संभवत: आब डाक्ट‍री पढ़नाइ कम टाका दऽ भऽ गेल अछि‍ तँए। कि‍छु वर्ष पहि‍ने तकक बि‍हारक गुंडाराजमे फि‍रौती अपहरणक कथा सामान्यस छल जकर धमकी स्वेरूप लाख टाका वा मौतक धमकी हेमन्त्केँ सेहो भेटलनि‍ मुदा ओहूसँ पैघ धमकी बाढ़ि‍ क्षेत्रमे काज करए जाउ वा जेल जे सामान्यखत: सुनल नै‍‍ गेल अछि‍ मुदा शासनक आतंक चोर-गुंडासँ कम नै‍‍ तकर उदाहरण अछि‍ ऐ‍‍मे। फि‍रौतीक माँगसँ बँचबाक लेल यदि‍ बाढ़ि‍-ड्यूटीकेँ हेमन्ति अंतमे धन्य वाद दैत तँ कथाक पूर्णतामे एक डेग होइत आ तहि‍ना बाढ़ि‍मे कतौसँ आएल कोनो परि‍वारमे पालिता सुकन्याय सुलोचनाक प्रति
डाक्ट रक मनोभावक वि‍कास कथामे नै‍‍ भऽ पएल। सुन्दलरी सुलोचनाक आयु कि‍छु बढ़ा नवयौवना बना आेइप‍र कामुक मनोदशाक चि‍त्र खि‍ंचल जा सकैत छल वा एक छोट कन्या क रूपमे बालि‍का सुलोचनाक प्रति‍ वात्सेल्य ताक जे मैथि‍ल
परम्प रा अनुसार होइत- “चलू दरभंगा ओतहि‍ पढ़ब अहाँ।‍” कि‍एक तँ वि‍देशी मनोदृष्टिा‍जन्यद कामव्याकधि‍सँ छोट बालि‍कामे कामुकता तकनाइ हमरा सबहक अग्राह्य रहैत। वा, सुलोचना कि‍छु मास बाद दरभंगा कोनो बीमारी जेना सांपक वि‍ष (जकर चर्चा प्रारम्भ मे अछि‍, लऽ डाक्टीर हेमन्तगक क्लिव‍नि‍कपर आबि‍ बचि‍ जइतथि‍ वा एन्टीध-स्ने्क भेनमक अभावमे तँ कहुना पहुँचि‍यौ कऽ दम तोड़ि‍ दि‍तथि‍ वा बँचलाक बाद आेइ‍ समए डाक्टिर हेमन्तरक नौकरीया बेटा
गामपर आएल रहैत आ ओकरा बि‍याहि‍ बंगलोर लऽ जइतथि‍। मतलब जे कथामे बात उठए से पूर्ण हेबाक चाही। गामक पड़ाइन रूकि‍ जाए, दरि‍द्रा कम भऽ जाए आदि आ तहि‍ना भाषागत शुद्धता हि‍न्दीजसँ लेल शब्दह लेल सेहो समान “सामान‍” जकाँ ग्रहण करब उचि‍त लेखककेँ। कि‍ताबक छपाइ नीक मुदा फोन्ट“ पैघ हेबाक छल आ दाम कि‍छु कम उपेक्षि‍त छल जे प्रकाशकीय धर्मक अनुरूप होइत।

No comments:

Post a Comment