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Wednesday, August 15, 2012

प्रीति ठाकुरक- मि‍थि‍लाक लोकदेवता ::समीक्षक शिव कुमार झा टिल्लू


मि‍थि‍लाक लोकदेवता ::

कोनो साहि‍त्‍यक समृद्धि‍क आधार महाकाव्‍य, प्रवेध काव्‍य उपन्‍यास वा कथाक उत्तर आधुनि‍क वि‍वेचनकेँ मानल जाइत अछि‍। ऐ दि‍शामे मैथि‍ली एखन बड़ पाछू अछि‍ कि‍एक तँ समग्र साहि‍त्‍य वि‍धाक परम्‍परागत रूपसँ ई भाषा बाझल मानल जा सकैछ। साहि‍त्‍यक वि‍कास तखने संभव जखन भाषाक दीर्घकालीन संभावना परि‍लक्षि‍त होएत। पुरना पि‍ढ़ी झखड़ि‍ रहल छथि‍ आ नवका पि‍ढ़ीमे शि‍क्षाक माध्‍यम अंग्रेजी तखन मैथि‍लीक अस्‍ति‍त्‍वपर अपने आप प्रश्‍नचि‍न्‍ह लागब दर्शनीय। गाम-घरक नेना-भुटकाकेँ जौं छोड़ि‍ देल जाए तँ मैथि‍ल परि‍वारक शैशवक मातृभाषा नि‍श्चि‍त रूपेँ बदलि‍ रहल।
प्रारंभि‍क शि‍क्षाक माध्‍य अंग्रेजी आ हि‍न्‍दी थि‍क। ऐ दशामे साहि‍त्‍यसँ बेशी आवश्‍यक अछि‍ भाषाकेँ बचाएब। मैथि‍ली तखने अपन आस्‍ति‍त्‍वकेँ दृढ़ रूपेँ राखि‍ सकतीह जखन नवका पि‍ढ़ीमे मातृ आ वात्‍सल्‍य सि‍नेहक वेदना हुअए। एे लेल आवश्‍यक अछि‍ बाल मनोवि‍ज्ञानकेँ स्‍पर्श करएबला बाल साहि‍त्‍यक प्रोत्‍साहन।

ऐ दि‍शामे कहबाक लेल तँ बहुत रास कार्य भेल अछि‍ परंच वास्‍तवि‍क बाल साहि‍त्‍यमे आधुनि‍क पि‍ढ़ीक रचनाकारक समूहमे अग्रगन्‍या छथि‍ श्रीमती प्रीति‍ ठाकुर। हि‍नक तेसर पोथी मि‍थि‍लाक लोक देवताश्रुति‍ प्रकाशनक सौजन्‍यसँ 2010ईं.मे बहार भेल।
टी.एस. इलि‍यटक Tradition and the individual talent (1917 AD) क अनुसार कोनो कवि‍, कथाकार वा कलाकार स्‍वयंमे पूर्ण अर्थ नै स्‍पष्‍ट करैत छथि‍। हुनक कलाक तुलना मृत कवि‍ वा कलाकारक रचनासँ कएलाक बादे हुनक मूल्‍यांकन कएल जा सकैछ। जौं ऐ मतकेँ प्रासंगि‍क मानल जाए तैयो प्रीति‍जी अतुलनीय छथि‍ कि‍एक तँ हि‍नकासँ पूर्व ऐ प्रकारक चि‍त्रात्‍मक आ लयात्‍मक शैलीमे बाल गद्य पहि‍ने मैथि‍लीमे लि‍खल नै गेल। ई अक्षरश: सत्‍यो थि‍क कि‍एक तँ आदि‍ पुरुषक माथपर पाग रखबाक साहस कि‍यो नै कऽ सकल। संगहि‍ ऐ तथ्‍यकेँ जानब सेहो आवश्‍यक जे अन्‍य भाषा समूहसँ तुलनाक बाद प्रीति‍जी कतए छथि‍?
सामा चकेबा परम्‍परागत जनश्रुति‍ आ पौराणि‍क कथाक आधारपर मि‍थि‍लाक गाम-गाममे प्रचलि‍त कार्तिक पूर्णमासीक पावनि‍ ि‍थक। ऐ कथाकेँ ऐ पोथीमे सम्‍मि‍लि‍त कऽ प्रीति‍जी कोनो नव रचनात्‍मक कार्य नै कएलनि‍ परंच अनचोकेमे नवका पि‍ढ़ीकेँ अपन संस्‍कृति‍सँ अवश्‍य अवगत करा देलखि‍न। अनचाेेके शब्‍दक प्रयोग ऐ दुआरे कएलौं कि‍एक तँ बहुत रास गामसँ ई पावनि‍ लुप्‍त भऽ रहल अछि‍ शहरमे तँ एकर अस्‍ति‍त्‍वक कल्‍पना करब सेहो असंभव। आन ठाम जकाँ मि‍थि‍लामे सेहो पलायनवाद हाबी भऽ गेल छैक। कोनो आवश्‍यक नै जे पलायनक बाद लोक अपन संस्‍कृि‍तकेँ दड़भंगि‍या प्रभावमे झाँपि‍ कऽ राखि‍ सकथि‍। तँए एहेन पावनि‍क चर्च आधुनि‍क पि‍ढ़ी लग आवश्‍यक। जखन चर्च हएत तँ भऽ सकैछ जे प्रवासी नेनामे ऐ प्रकारक संस्‍कृति‍सँ जुड़ल रहबाक प्रेरणा जागए। मधुश्रावणी वा कोजगराक सदृश सामा चकेबा कोनो जाति‍ वि‍शेषक पावनि‍ नै थि‍क वरन् ई सम्‍पूर्ण मि‍थि‍लाक प्रति‍नि‍धि‍त्‍व कएने अछि‍।
साहि‍त्‍यानुरागी लोकनि‍ ऐ पोथीकेँ रचनात्‍मक कथा (creative story) नै मानताह ई ध्रुव सत्‍य कि‍एक तँ एकर कथा सभा नूतन कल्‍पना नै भऽ कऽ परम्‍परागत शैली आ कथाक प्रति‍रूप थि‍क। ऐ दुआरे रचनाकारक आलोचना सेहो संभव अछि‍। मुदा ई धि‍यान राखब सेहो आवश्‍यक जे अबोध नेनाकेँ क्‍लि‍ष्‍ट साहि‍त्‍यसँ कोनो सि‍नेह नै होइछ। आे तँ महाकाव्‍यक पाँति‍सँ बेसी आनी-मूनी हम नै जानीसदृश अर्थहीन पाँति‍सँ सि‍नेह रखैत अछि‍। तँ चालनि‍ बाढ़नि‍ डेढ़ बि‍तना, जेहन करनी, चारि‍ बटोही बगि‍याक गाछ आदि‍ जनश्रुति‍सँ संबंधि‍त कथानककेँ बाल मनोवि‍ज्ञानसँ संबंधि‍त माननाइ उचि‍त हएत। लेखि‍का पहि‍नहि‍ इमानदारीसँ ई स्‍वीकार कएने छथि‍ जे बाल कालमे बूढ़-पुरानक मुखसँ जे सुनने छलीह तकरा अपन शब्‍दमे कथाक रूप दऽ देलखि‍न।
ऐ पोथीक सबल पक्ष अछि‍ कथा चि‍त्रात्‍मक वि‍वेचन। मोती सायर, लालवन बाबा, गरीबन बाबा, बि‍हुला, सीता आ सुग्‍गा, आयाची मि‍श्र, पक्षधर मि‍श्र आ उगना सन कथा चि‍त्रकेँ तैयार करबामे कतेक मेहनति‍ आ समए लागल हेतनि‍ ओ तँ लेखि‍के कहि‍ सकैत छथि‍। परंच ई चि‍त्र अपन वि‍वि‍ध मूक शैलीमे नेना-भुटकाक संग अवश्‍य वार्तालाप करत। आलोचनात्‍मक पक्षसँ जौं देखल जाए तँ एकरा आन भाषा साहि‍त्‍यक कॉमि‍क्‍ससँ बेसी नै मानल जाएत। मुदा एहेन दीर्घसूत्री आलोचके कऽ सकै छथि‍। कि‍एक तँ ई कोनो कम्‍प्‍यूटरक खेल नै अपन मस्‍ति‍ष्‍कमे उपजल बालउद्वोधनक चि‍त्रात्‍मक शैली थि‍क जे समालोचनाक भयसँ मुक्‍त रहैत लेखि‍का मात्र नेनाक लेल कएने छथि‍।
रंग समंजन सेहो नीक लागल। अंति‍म कि‍छु चि‍त्र श्वेत-स्‍याम रूपेँ देल गेल जइमे नेना स्‍वयं रंगरोगन कऽ सकैत छथि‍।
ऐ पोथीक कथानक परम्‍परागत अछि‍ मुदा शैली आ चि‍त्रांकन नव तँए अपन उद्देश्‍यमे रचनाकार सफल छथि‍।
दुर्बल पक्ष जे चि‍त्रक संग जे कि‍छु कथा देल गेल अछि‍ ओकरा आर वि‍स्‍तृत कएल जा सकैत छल। जेना मोती सायरसँ लऽ कऽ मीरा साहेब धरि‍क चि‍त्रकथामे कथानक एकाएक बदलि‍ जाइत अछि‍। जे सारंश जकाँ लगल। मुदा आशा करैत छी जे नेना सभकेँ नीक लागि‍ रहल होएतनि‍। 

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