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Wednesday, August 15, 2012

कृष्‍णजन्‍म - समीक्षक शिव कुमार झा टिल्लू


कृष्‍णजन्‍म :: कथाकाव्‍यक सूत्रपात

मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे महाकाव्‍यक पहि‍लुक छाँह रति‍पति‍ भगतक गीत-गोवि‍न्‍दसँ सन 1723ई.क लगि‍चमे देखएमे आएल। जइ छाहरि‍केँ स्‍पष्‍ट बि‍म्‍बक रूप मनवोध द्वारा 18म शताब्‍दीक मध्‍यमे कृष्‍ण जन्‍म स्‍वरूपे देल गेल। मनबोध मध्‍यकालीन मैथि‍लीक वि‍शि‍ष्‍ट रचनाकार मानल जाइत छथि‍।

जौं पदावलीकेँ छोड़ि‍ देल जाए तँ ज्‍योति‍रीश्‍वर आ वि‍द्यापति‍क अधि‍कांश रचना तत्‍समसँ लीपि‍त छल। मनबोधक प्रवेश मैथ्‍ज्ञि‍ली काव्‍य जगतमे अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण कि‍एक तँ कृष्‍णजन्‍म तत्‍सम परम्‍पराकेँ तोड़लक मात्र नै संग-संग चन्‍दा झा रचि‍त मि‍थि‍ला भाया रामायणसँ आधारशीला सेहो प्रदान कएलक। डाॅ. ग्रि‍यर्सनक मते कृष्‍णजन्‍म महाकवि‍ वि‍द्यापति‍ आ आधुनि‍क मैथि‍लीक हर्षनाथ झा आर तत्‍कालीन अन्‍य महाकाव्‍यक योजक कड़ी थि‍क। ई ि‍नर्विवाद सत्‍य जे कृष्‍णजन्‍मक भाषा ओ शैली संस्‍कृत, प्राकृत, अपभ्रंश ओ अवहट्ठसँ वि‍लग जनभाषामे रचत पहि‍लुक काव्‍य थि‍क। रति‍पति‍ भगतक गीत-गोवि‍न्‍दक वि‍परीत कृष्‍णजन्‍मक व्‍यापक प्रचार-प्रसार भेल कि‍एक तँ कतौ भाषामे क्‍लि‍ष्‍टता नै। तँए प्राय: सभ समालोचक एक मतेँ स्‍वीकार करैत छथि‍ जे तुलसीकृत रामचरि‍त मानस जकाँ कृष्‍णजन्‍म मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ प्रबंध काव्‍यक पहि‍लुक सबल स्‍तंभ प्रदान कएलक। वि‍द्यापति‍क रचना रीति‍काव्‍यात्‍मक मुदा मनवोध ऐ परम्‍पराकेँ तोड़ि‍ जे नवल बि‍म्‍ब ओ शैलीक सृजन कएलनि‍ ओइसँ चन्‍दा झा अवश्‍य प्रेरि‍त छथि‍।

सुभाषचन्‍द्र यादव लि‍खैत छथि‍ मनवोध कथाकाव्‍यक परम्‍पराक आरंभ कएलनि‍। श्रृंगारि‍क काव्‍य परम्‍पराकेँ वि‍राम दऽ कऽ ओ वात्‍सल्‍य भावसँ युक्‍त रचनामे वि‍शेष रूचि‍ देखैलनि‍। मनवोध वि‍षय आ शि‍ल्‍प दुनू स्‍तरपर परम्‍पराक अति‍क्रमण करैत छथि‍। वि‍षयक स्‍तरपर कृष्‍णक नेनपन आ पराक्रम हुनका आकृष्‍ट करैत छन्‍हि‍ तँ शि‍ल्‍पक स्‍तरपर चौपाइ। लोक भाषासँ सम्‍पृक्‍ति‍ सन वि‍द्यापति‍क परम्‍पराकेँ मनवोध अखुण्‍ण बनौने रखैत छथि‍।
दुर्गानाथ झा श्रीशक शब्‍दमे अठारहम शताब्‍दीक अंति‍म चरणमे मनवोध अवश्‍य कृष्‍णजन्‍मक रचना कएलनि‍ ओ अद्भुत लोक भाषात्‍मक प्रवाह ओ वि‍लक्षण संक्षि‍प्‍त मुदा सजीव वर्णनक दृष्‍टि‍सँ लोकप्रि‍य सेहो भेल। परन्‍च कृष्‍णजन्‍मसँ प्रबंधकाव्‍यक वि‍कास परम्‍परा स्‍थापि‍त नै भेल। ई स्‍थापि‍त भेल कवीश्‍वर चन्‍दा झाक मि‍थि‍ला भाषा रामायण एवं लालदासक रमेश्‍वर चरि‍त रामायणसँ। कृष्‍णजन्‍म झुझुआन काव्‍य तँए महाकाव्‍य वा प्रबंध काव्‍यक श्री गणेश श्रीष एकरा नै मानैत छथि‍ संग-संग महाकाव्‍यीय परम्‍पराक सर्ग वि‍भाजन ऐमे नै भऽ कऽ अध्‍यायमे बि‍भक्‍त अछि‍। एकर एकटा आर ि‍नर्वल पक्ष जे अठारह अध्‍यायमे वि‍भक्‍त ऐ कृति‍क पहि‍ल दस अध्‍याय मात्र मौलि‍क आ खॉटी मैथि‍लीमे रचि‍त अछि‍। अन्‍य आठ अध्‍याय जनभाषा ओ रचनाक दृष्‍टि‍ऍं वि‍वादि‍त तँए श्रीश जीक मत अंशत: सत्‍य मानल जाए मुदा महाकाव्‍यीय मरम्‍पराक पहि‍लुक अनुपालन कृष्‍णजन्‍ममे भेल तकर प्रणाण एकर पहि‍ल अध्‍यायक उल्‍लेखमे तँ मंगलाचनण नै थि‍क मुदा आर्यभाषाक महाकाव्‍यक मूल बि‍न्‍दु मंगलाचरणक छाँह ऐठाम अवश्‍य भेटैत अछि‍-

प्रणमो गि‍रि‍वर कूमारि‍-चरण
जे वल कवि‍ सभ त्रि‍भुवन वरन
हमहू कएल अछि‍ मन मड़ गोट
कृष्‍णजन्‍म परि‍णय नै छोट
कोनपर होएत तकर नि‍रवाह
एखन लगै अछि‍ अगम अथाह...
मनबोध सोलह कलासँ नि‍पुण कृष्‍णकेँ ऐमे कोनो अभि‍सार पथपर वि‍हुँसैत राधाक सि‍नेही नै बनौने छथि‍।
मनवोधक कृष्‍ण वास्‍तममे नायक छथि‍।
धर्म संस्‍थापनार्थाय सम्‍भामि‍ युगे-युगेक हुंकार भरैबला कृष्‍णक मात्र जन्‍म कथा नै, मात्र प्रीति‍ गाथा नै हुनक समग्र जीवन दर्शनक अभि‍प्राय थि‍क कृष्‍णजन्‍मभागवत ओ हरि‍वंश पुराणक कथापर आधारि‍त कृष्‍णजन्‍मक नायक कृष्‍ण राम जकाँ गंभीर, लक्ष्‍मण जकाँ मर्यादि‍त सि‍नेही, स्‍वंय कृष्‍ण जकाँ वात्‍सल्‍य भावसँ भरल शि‍शु आ नरसि‍ंह जकाँ आक्रोशि‍त दुष्‍ट नाशक छथि‍। ऐमे पहि‍लुक क्रांति‍ जे कृष्‍ण जीवन वृतांतक धार श्रृंगारसँ कर्त्तव्‍यवोध धरि‍ चलि‍ आएल। बाल मनोवि‍ज्ञानक वि‍श्लेशणक दृष्‍टि‍ऍं कृष्‍णजन्‍म पहि‍लुक वास्‍तवि‍क वाल्‍य शैलीसँ भल महाकाव्‍य थि‍क-
गुड़कल-गुड़कल भि‍डुकल जाए
जतय अछल दुइ ि‍वर्छ अकाय
जमला अर्जुन कनला-नाथ
जुगुति‍ उपारल छुइल न हाथ
खसल महातरू हँसल मुरारि‍
भेल अघात जगतपर चारि‍....

डाॅ. चेतकर झाक शब्‍दमे वस्‍तुत: ई पौराणि‍क महाकाव्‍य मात्र थि‍क आकि‍ महाकाव्‍य ई अखन चरि‍ वि‍द्वत समाजमे वि‍वादक वि‍षय बनल अछि‍। वि‍वादक वि‍षय ईहो अछि‍ जे अठारह अध्‍यायमे वि‍भक्‍त कृष्‍णजन्‍म सम्‍पूर्ण रूपेँ मौलि‍क अछि‍ आकि‍ मात्र दस अध्‍याय धरि‍।
समालोचकक मन्‍तव्‍य जे होन्‍हि‍ मुदा ई अक्षरश: सत्‍य जे कृष्‍णजन्‍मक रीति‍ नीति‍ आधार-वि‍चार, खान-पान, बात-वि‍चारक संग-संग व्‍यवहार मि‍थि‍लाकसँ प्रभावि‍त अछि‍। लगैछ जेना कृष्‍णक कथा गोकुलक कथा नै मि‍थि‍लाक कोनो भूभागक कथा थि‍क। गाम भरि‍ हकार, चुमाओन, तेल-सेनूर, नाच-गान, भदवा, सोहर, वटगवनी, झटहा आ ठेंपा फेंकब, टेलवा टेलइक खेल खेलाएब सन खाँटी मैथि‍ल परम्‍परा ऐ काव्‍यकेँ मि‍थि‍ला धरापर जीवन्‍त कऽ देलक।
म. म. डाॅ. उमेश मि‍श्रक अनुसार ई कथा दशम अध्‍याय धरि‍ श्रीमद्भागवतक दशम स्‍कंधक पूर्वाधक आधारपर लि‍खल गेल अछि‍, एगारहमक अध्‍यायसँ अन्‍त धरि‍ हरि‍वंश वि‍ष्‍णुपर्वक आधारपर लि‍खल गेल अछि‍।

प्रो. रमानाथ झाक कहब छन्‍हि‍- मनवोध पहि‍ल कवि‍ छलाह जे अपन कृष्‍णजन्‍ममे श्रृंगार रससँ शून्‍य भक्‍ति‍ रसमय एकछन्‍द मे जे राग ताल प्रभृति‍ गीतक वि‍षयसँ रहि‍त अछि‍ अपन एक गोट नूतन शैलीमे काव्‍यक रचना कएलनि‍। ई छन्‍द आब चौपाइ कहल जाइत अछि‍ परन्‍तु ताहि‍ दि‍न ई गाहि‍क मेर बूझल जाइत छल।
राग-लय, गति‍, यति‍ ओ नि‍यति‍क रचनात्‍मक मर्यादा जे हुअए अपि‍तु ई अक्षरश: सत्‍य जे कृष्‍ण जन्‍मक महाकाव्‍यीय सृजनतामे वएह मौलि‍क स्‍थान जे स्‍थान संस्‍कृत साहि‍त्‍यमे वेदव्‍यास ओ वाल्‍मीकि‍क अछि‍। अर्थातृ वेद व्‍यास ओ वाल्‍मीकि‍ हदृश मनवोध मैथि‍ली महाकाव्‍यक शलाका पुरुष छथि‍।

सुमन जीक शब्‍दमे प्रकृति‍ वर्णन, भने ओ जड़ प्रकृति‍ होअ अथवा मानव प्रकृति‍ मनवोधक रचनामे सहज, सुबोध एवं हृदयावर्जक बनल अछि‍। संज्ञा, क्रि‍या वि‍शेषण, नामधातु ओ अनुध्‍वनि‍क वि‍लक्षण प्रयोग ऐमे भेटैत अछि‍।
मैथि‍ली काव्‍यमे गीत-शि‍ल्‍पक जे परम्‍परा छल तकरा लागि‍ स्‍वतंत्र कथा-काव्‍यक पहि‍ल प्रयोग कृष्‍णजन्‍ममे भेल। बाल साहि‍त्‍यक दृष्‍टि‍सँ जौं देखल जाए तँ प्रयोगकेँ वादक धरातलपर आनि‍ महाकाव्‍यक रूप रेखामे बाल मनोवि‍ज्ञानकेँ पूर्णत: स्‍पर्श मनबोधसँ पूर्व कि‍यो नै कऽ सकलाह। शब्‍द-शब्‍दमे प्रवाह हास्‍य स्‍पर्शी ओ सजीव अछि‍। तँए दशम अध्‍याय धरि‍ उत्तर आधुनि‍क काव्‍यक लेल सेहो अनुगामी तँ रचनाकालमे एकर महत्‍व की हएत ई मंथनक वि‍षय थि‍क।

तँए ई सत्‍य मानल जाए जे मात्र एक छन्‍दमे लि‍खल समस्‍त महाकाव्‍यक शैलीक ई मैथि‍लीक प्रयोग ग्रंथ थि‍क जे भाषा वि‍न्‍यासक संग-संग बि‍म्‍बक मौलि‍क स्‍पर्श आ बाल साहि‍त्‍यक लेल अखन धरि‍ उपयोगी अछि‍।

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