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Thursday, May 17, 2012

रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’क उपन्यास ‘घरमुहाँ’ – प्रभाव आ प्रतिक्रिया- समीक्षक डा.राजेन्द्र विमल



कार्य–कारण–श्रृंखलामे सुगुम्फित ओहि गद्य कथानककेँ उपन्यास कहल जाइत अछि, जाहिमे अपेक्षाकृत अधिक विस्तारसं जीवने–जगतमे अनुभव कएल यथार्थकेँ कल्पनासँ रङि कए रसात्मक÷विचारोत्तेजक रुपमे प्रस्तुत कएल जाइछ । मैथिलीक ख्यातनामा आख्यानकरि श्री रामभरोस कापड़ि ‘भ्रमर’क पहिल उपन्यास ‘घरमुहाँ’ नेपालक मधेस–आन्दोलनसँ उपजल उमड़ल जनआकांक्षा, मोहभंग, विकृति, पीड़ा, भावनात्मक उद्वेलन, विक्षोभ आ जटिलताकें घोर यथार्थपरक चित्रावली उरेहैत समन्वय दर्शनसंग मर्मस्मर्शी इति पबैत अछि । 
आन्दोलन जखन एक गोट ऐतिहासिक उँचाई ल’ रहल होइत अछि तँ ओहिमे आन्दोलनकारीक छदम श्वेत भेष द्वारा सामाजिक प्रतिष्ठाक नकली खोल ओढ़बामे सफल गुन्डाक सरदार कामेश्वर–सन आपराधिक मनोवृत्तिक व्यक्ति सचक निरन्तर प्रवेश होबए लगैत छैक । हत्या, अपहरण, आतंक आ डर–धमकी द्वारा ई वर्ग खास कए पहाड़ी समुदायसँ पैसाक उगाही करैत अछि । अपन अधिकार, पहिचान आ विकसित मुद्दाक एहि विराट जनक्रान्तिमे शहादत दैत युवकसभक प्रत्येक दिन लहासपर लहास खासि रहल छै आ ओहर ई लुटेरा–तत्व पहाड़ीक दोकान सभमे आगि लगा रहल अछि, सामान लूटि रहल अछि, ओकरा सभक घरपर पाथर फेकि–आतङ्क पसारि रहल अछि । आतङ्कभरल एहि वातावरणमे पहाड़ी होइतो धोतीकुर्ताधारी मास्टर रमेश उपाध्याय अपना घरमे डरे दबकल रहैत छथि । मोन तँ मास्टरो साहेबक होइ छैन्हि जे – अपन मधेसी मित्र जगमोहन अधिकारी जेकाँ जुलुसमे जा जोर–जोरसँ नारा लगा आन्दोलनकेँ समर्थन दिऐक, मुदा सोचै छथि –“जे उन्माद एखन युवा सभमे छै ओ की हमर (पहाड़ी) अनुहारकेँ पचा सकत ?” अदंकसँ भरल मास्टर साहेबकेँ अपन घर ल’ अनबाक विचार जगमोहनकेँ होइत छन्हि, मुदा मास्टर रमेश एहि दुआरेँ अपन मधेश–आन्दोलनक अगुआ मित्र जगमोहनक घर जाएसँ अस्वीकार कए दैत छथि जे कलहु आन्दोलन कमजोर ने पड़ि जाइक । १ जून २००७, २५ जुलाई २००७, २८ जुलाई २००७, ५ अगस्त २००७ क वार्ता असफल भेलाक बाद ३० अगस्त २००७क’ २६ बूँदापर सहमति होएब मुदा कायान्वयनमे आनाकानीसँ आन्दोलनक फेर उग्र लपट ऊठब – ऐतिहासिक दस्तावेज अछि, जे उपन्यासमे प्रस्तुत भेल अछि । 
मास्टर रमेश उपाध्यायक विपत्तिक तमिस्रा अओर सघन तखन अओर सघन भ’ जाइत छैन्हि जखन हुनका पता चलैत छैन्हि जे हुनकर बेटी किरण दछिनबरिया टोलक कामेश्वरक बेटा राजीवसँ पे्रम करैति अछि । ताबत ई ककरो ने बूझल छैक जे गामक सम्पन्न आ सम्भ्रान्त मानल जाएबला व्यक्तित्व कामेश्वर गाममे व्याप्त हत्या, अपहरण, चन्दा–आतंक आदिमे संलग्न गिरोहक मुख्य सूत्रधार आ खलनायक अछि । मास्टर महाविपत्तिक समुद्रमे उबडुब कैए रहल छथि कि बेटी किरणक अपहरण भए जाइ छैन्हि आ दश लाख टाका फिरौतीक लेल फोनसँ दिन–राति धमकी आबए लगैत छैन्हि । मास्टर अपन सम्पूर्ण सम्पत्ति बेचिकए विस्थापित होएबाक लेल बाध्य छथि ओमहर कामेश्वरक एकलौता बेटा राजीव अपन बापक कुकृत्यसँ परिचित भ’ जाइत अछि आ मायक माध्यमसँ किरणक मुक्तिक लेल दबाब बनबैत अछि । कामेश्वरकेँ ईं जानि ग्लानि होइत छैक जे ई उएह किरण थिक जकरा पुतहु बना घर अनबाक मोन हुनक परिवार बना चुकल अछि । बसमे चढ़ि चुकल मास्टर रमेश उपाध्यायक ओकर परम मित्र जगमोहन आ अपहरणकारी कामेश्वर गाम घुरा अनबामे सकल होइत छथि । 
आख्यानकार ‘भ्रमर’ अपना समयक प्रामाणिक खिस्सा आबएबला पीढ़ी–दर–पीढ़ीधरि सुनएबामे उत्सुक छथि । तेँ प्रस्तुत उपन्यास मूक इतिहासक मुखर सहोदर भए गेल अछि । राजनैतिक घटनाक्रमक धरातलपर कल्पनाक फट्ठा, मृत्तिका, सन्ढी, स’न आदिसँ समकालीन मधेसक जीवन्त मूर्ति तैयारक’ सामाजिक सम्बन्ध–बन्धक रागमयताक रंग ढ़ेउरल गेल अछि जे हृदयहारी अछि । उपन्यास ऐतिहासिक महत्वक दाबेदार एहू कारणें अछि जे ई पहिल नेपालीय मैथिली उपन्यास थिक जे समकालीन राजनैतिक घटनाक्रमपर आधारित अछि । 
रमेश उपाध्याय, जगमोहन, कामेश्वर, राजीव, किरण, बन्ठा, लुखिया आदि सभ वर्गीय प्रतिनिधि पात्र अछि । सम्बादमे स्वाभाविकता आ सजीवता छैक । भाषाशैलीक नाटकीयता आ चित्रात्मकताक कारण उपन्यास आदिसँ अन्तभरि सिनेमाक रीलजेकाँ चलैत अछि, जे पाठककेँ आरम्भसँ अन्तधरि बन्हने रहैत अछि । पहाड़ी–मधेसीक एकता संबर्धनक उद्देश्यसँ प्रणित एहि उपन्यासक यात्रा उबड़खाबड़, पहाड़–जंगल, खुरपेड़ियाक जटिल यात्रा नहि, सोझ–सपाट मैदानक सरल–सरस यात्रा थिक जे सरसराकए अपन गन्तव्यधरि पहुँचैत अछि । तेँ उपन्यासक संरचनामे पेँच–पाँच आ ओझराहटि नहि अछि । मधेस–मिथिलाक आम लोकक भाषामे प्रयुक्त ‘लल्हका’, ‘लभका’, ‘बढ़का’, ‘खुर्सीं’ आदि शब्दक सचेत उपयोग उपन्याक भाषाकेँ सहज स्वाभाविकता आ अभिनवता प्रदान करैत अछि । आख्यानकार श्री ‘भ्रमर’क ई सद्यःजात कृति नेपालीय मैथिली उपन्यास साहित्यक एक गोट उपलब्धि थिक, ताहिमे सन्देह नहि । 


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