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Sunday, April 8, 2012

कालीकान्त झा ’बूच’ क कलानिधि -एक टा अभिशप्त कवि : बूच बाबू-रवि भूषण पाठक


एक टा अभिशप्त कवि : बूच बाबू
ऐ आलेखक आरंभ सर्वप्रथम गाम करियनमे कविक छविसँ करैत छी। गाममे ई कविजीक रूपमे ख्यात रहलाह मुदा हिनकर उपेक्षाक कथा सेहो गामेसँ प्रारम्भ होइत अछि। प्रख्यात दार्शनिक उदयनाचार्यक भूमिमे जनमल ई कवि ने गाममे न्याय पओलक ने बाहर। गंभीर लेखनकेँ मान्यता नै भेटैत देखि कवि गामक व्याहमे अभिनंदन पत्र लेखनमे सेहो रूचि लिअ लागलाह। एहि काजसँ ने हुनका गाममे केओ रोकलक ने बाहर केओ ।सौभाग्य ई जे एहि हीन साहित्यिक वृत्तिमे रमलाक बादो कवि मैथिलीक सर्वश्रेष्ठ स्वागतगान लिखलन्हि। प्रत्यक्षदर्शी कहैत छथि जे गाम वैद्यनाथपुरमे ऐ गानक समए कतेको मंचस्थ माननीय तिलमिला उठलाह। ई गान मिथिला सहित मैथिलीक दुर्दशाक व्यथागीत बनि गेल-
उल्लासक गीत कतऽ सगरो करूणा क्रन्दन
उपटि रहल विपटि रहल मैथिलीक नन्दन वन
भ्रमरझुण्ड प्यासल छथि, वृहगवृन्द बड़ भूखल
मुरूझल छथि आम-मऽहू, रऽसक सरिता सूखल
बबुरे वन कवि कोकिल, लाजे मरै छी
आउ आउ आउ सब के स्वागत करै छी
कवि दोसर अनुच्छेदमे मैथिली मानुसक उत्सवप्रियतापर व्यंग्य करै छथि। हम सभ विद्यापति समारोह, हिन्दी दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयन्तीकेँ सत्यनारायण भगवानक कथाबला रीतिनिष्ठासँ मना लैत छिऐ आ समारोहक उच्च उद्देश्य ओहिना उपेक्षित रहि जाइत अछि ।
मात्र ई समारोही गोष्ठीसँ की हेतै?
स्थिति जहिना तहिना, संवत एतै जेतै
मुरदा जगाउ लाउ पैर पकड़ै अछि
आउ आउ सब के स्वागत करै छी
ई गान साहित्यक उद्देश्यपर सेहो विचार करैत अछि। कोनो खंडन मंडनक गुंजाइश नै छोड़ैत, ई स्पष्ट कहैत अछि-
काव्यपाठ करू मुदा कान्ह पर लिअ लाठी
एक हाथ रसक श्रोत, दोसरमे खोरनाठी
पुरना किछु त्यागि त्यागि, पकड़ू किछु नऽव ढ़ंग
मोंछो पिजाउ बाउ श्रृंगारक संग संग
अहाँ गीत गाउ मुदा हम हहरै छी
रसश्रोतक संगे खोरनाठी लऽ कऽ चलएबला ई कविता साधारण नै अछि। पाश्चात्य काव्यशास्त्र ई मानैत अछि जे महान साहित्य कोनो एक भाव लऽ कऽ नै चलैत अछि। ई साहित्यमे विविध आ कखनो कखनो परस्पर विरोधी भावक संश्लेष करैत अछि। बूच बाबूक कवितामे विरूद्धक ई सामंजस्य हमरा चकित करैत अछि।
हिंदी आलोचक राम चन्द्र शुक्ल विरूद्धक सामंजस्यकेँ एकटा बड़का काव्योपकरण मानैत छथिन्ह। बूच बाबूक एकटा आर कवितामे एकर दर्शन होइत अछि।
‘सोनदाय’ कविताकेँ ध्यानसँ पढ़ू।सर्वप्रथम एकरामे श्रृंगारिक लक्षण बुझाइत अछि।
रहतौ ने हास बहि जेतौ विलास गय
दुइ दिवसक जिनगीसँ हेवे निराश गय
भरमक तरंग बीच मृगतृष्णा जागल छौ
मोहक उमंग बीच प्राण किएक पागल छौ
चलि जेतौ सुनें कंठ लागल पियास गय
दुइ........
कवितामे दू टा भाव स्पष्ट अछि। प्रथम प्रेम निवेदन आ दोसर विरागक स्वीकृति। आ दूनू मिलि कऽ विषादक विराट रूपकेँ जन्म दैत छैक। जे ऐ कवितामे कोनो एकटा भाव रहितै, तखन ई कोनो विलक्षण कविता नै बनि सकैत छल।
एहि वैशिष्ट्यकेँ बूच बाबू कवितामे कोना आनैत छथि, ई बात बेस रूचिगर अछि। कवितामे विद्वान लक्षणा आ व्यंजनाकेँ पैघ बूझैत छथिन्ह मुदा कवि बूच अभिधापर निर्भर छथि। हुनकर कवितामे अलंकारक सेहो कतहु विशेष उपयोग नै अछि। तखन ऐ वैशिष्ट्यक श्रोत की अछि? एकर श्रोत अछि हुनकर विराट जीवनानुभव। अपन समृद्ध अनुभवक आधारपर ओ शब्दक नव जाल बूनैत छथि आ अपन रचनात्मक शक्तिकेँ यादि करैत ओकरा दृढ़ आ सुरेबगर बनबैत छथि।
एकटा अध्यापकक घरमे जन्म लेनिहार ई कवि सौन्दर्यक विविध रूपक साक्षात्कार कएलक। कखनहु जेठक उद्धत नदी करेह एकर मोनकेँ मोहैत अछि-
ई इन्होर पानि चमकै छौ
मोर मोरपर भौरी दै छौ
काटि काटि डीहक करेजकें
तऽरे तऽरे समाइ छौ
इएह कवि नागार्जुनक कविता ‘एक फांक आंख’ जकाँ नायिकाक ठोरक रस्तासँ अभिनव सौंदर्य देखैत अछि-
कि जहिना कुरकुर पानक ठोर
कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर
लगौलह बातक पाथर चून
सजौलह कऽथ कपोलक खून
कि रहलह एक्के बातक चूक
कतऽ छह प्रेमक पुंगी हूक?
ई कवि भारतक ग्राम्य सुषमाक अनन्य प्रेमी अछि। महानगरीय कृत्रिमताक स्थानपर ई सहज सौंदर्यकेँ वरेण्य मानैत अछि-
ईडेन गार्डेन सँ सुन्नर अछि
कोशी कातक बोन गय
इएह प्रेम एकटा प्रेमिकाक ह्रदयसँ निकलैत अछि-
प्रियतम चलि आबू पटनासँ गाम
ऐ प्रेमक ठोस आधार अछि। कवि नगरीय जीवन, शहरीकरण आ प्रशासनिक भ्रष्टाचारकेँ निशाना बनबैत अछि-
घूसखोर मच्छर उड़ीस जकाँ जीवै छै
शोनित तँ ओ अवशिष्ट पीवै छै
हड्डी सुखायल अछि तैयो ओ अधिकारी
खगले केर तीरै छै चाम
कुत्ता जहिना हड्डी सँ मांस,खून आ रस खींचैत अछि, तहिना सरकारी अधिकारी वर्ग सेहो आम जनताक संग करैत अछि। कवि स्वयं बिहार सरकारक राज्य कर्मचारी छलाह, ताइ दुआरे ऐ अनुभवसँ ओ नित्य प्रति गुजरैत हेताह।
मैथिली कवितामे हिंदी कविताक तुलनामे बेटीक ब्याह, दहेज आदिक बेशी चिंता रहलैक अछि। यद्यपि ई चिंता सीता, पार्वतीक ब्याहक रूपमे धार्मिक आयाम लैत अछि, तथापि एकर मूलाधार सामाजिक अछि। अन्य मैथिल कविक संगे हुनको गौरी आ सीताकेँ कुमारी रहबाक दर्द छन्हि-
चामक सेज, कुगामक वासी
खन कैलाश, खनेखन काशी
लागथि बुत्त भुताह हे, गौरी रहथु कुमारी !
ई मिथिला अंचल मे व्याप्त दहेज आ समएसँ बेटीक व्याह नै हेबाक चिंता अछि। कवि सेहो ऐ चिंतासँ जूझैत अछि आ बेटीक लेल एकटा अद्भुत रूपक खोजैत अछि।‘फूलडाली‘ क रूपमे बेटीक कल्पना करैत कवि बेटीमे तमाम पवित्रता आ दैवत्वकेँ रूपांतरित करैत अछि-
फूलडाली सन बेटी बनलै
माथे परक पहाड़
एक कवितामे कवि कोनो बेटाक बापकेँ चारिटा बेटी होएबाक व्यंग्यात्मक कल्पना करैत अछि-
तोरेा कुमारि चारि दाय हो
मोन पड़ि जयतह नानी
एक अन्य कवितामे वरक खानदानकेँ व्यापारी देखाओल गेल अछि-
बबा दलाल बाप बड़दक व्यापारी,
बेटा बछौड़ बीकि गेलै हजारी
कविक ख्याति हास्य आ भक्ति कविक रूपमे रहल मुदा कविक फूलडालीमे सभ तरहक फूल छलए। फूल नाममात्रक नै काव्य उपवनक सभसँ मधुर, सुगंधित आ पवित्र फूल। कवि अपन दैन्य आ निराशाकेँे भक्ति गीतमे व्यक्त कएलक, ई गीत बहुत बेसी मात्रामे अछि मुदा मात्र एक गीतक चर्चा हम करैत छी, लागैत अछि जेेना विद्यापति पदावलीक कोनो पद होअए-
जननि हय, जीवन हमर कठोर
अध्यावधि सुख-शांति न भेटल
पयलहँू विपति अघोर
जननि हय जीवन हमर कठोर
बूच बाबू अपन जिनगी आ कवितामे काव्यशास्त्रीय रूढ़िक पालन नै केलाह ने ओ कोनो काव्यात्मक आंदोलनसँ जुड़ि कुकुरमुतिया काव्यक रचना केलाह। ओ ह्रदएसँ कविता करैत छलाह, ताइ दुआरे हुनकर आलोचना सेहो ह्रदएसँ हेबाक चाही। बिझिआइल हाँसूसँ भरिगर गाछ नै कटत। बूच बाबूक काव्यक आलोचना सोचि समझि कऽ होएबाक चाही। यद्यपि ओ कोनो तत्कालीन आंदोलनमे रूचि नै लेलाह, परन्तु हुनकर कविता भाव आ शिल्प दुनू दृष्टिसँ रचनात्मक अछि। रचनात्मकता आ मौलिकताक औजारसँ हुनका परखल जाए तँ ओ मैथिली कविताक इतिहासमे किछु शीर्ष कविमे गणनीय छथि। मुदा हुनकर कविताक विषयमे बहुत भ्रांति अछि। कखनहु छपलाक दृष्टिसँ तँ कखनहु पुरस्कारक दृष्टिसँ हुनकर अवहेलना होइत चलि जाइत अछि। केओ आलोचक कविताक संख्याक दृष्टिसँ सेहो आपत्ति कऽ सकैत छथि! किएक तँ ई अभिनवगुप्त आ मम्मटक देश नै अछि। ई शतक आ सहस्रकम लिखएबलाक देश अछि! विडम्बना ई अछि जे कविक सुपुत्र श्री शिव कुमार झा सेहो मैथिली आलोचनासँ जुड़ल छथि आ अपन आलोचनामे ककरो निराला आ ककरो प्रसाद बनाबैत छथिन्ह मुदा मर्यादावश वा जे कारण हो पिताक रचनात्मकतापर ओ श्रद्धा तँ व्यक्त करैत छथिन्ह मुदा खुलि कऽ सोझाँ नै आबैत छथिन्ह। हम ऐठाम इएह कहब जे ओ निराला आ प्रसाद नै, ओ बूच छलाह, मैथिलीक बूच। हुनका मात्र ऐ रूपमे सम्मान दऽ हम मैथिली आलोचनाक तर्पण कऽ सकैत छी ।
कविक रचनात्मकताक दूटा संदर्भ आर अछि। कविक रचना ‘अकाल’ संभवतः नागार्जुनक हिंदी कविता ‘अकाल और उसके बाद’ क बाद भेलए। मुदा दुनूक दू संदर्भ आ दृश्य। नागार्जुन जाइ ठाम पशु पक्षी आ मानवक स्थितिक चित्र दऽ रहल छथि, ओइ ठाम बूच बाबूू गुजराती उपन्यासकार पन्नालाल पटेलक रचना ’मानभीनी भवाई’ जकाँ काल देवताक याद करैत छथि।
ई अकाल नहि महाकाल अछि
भूखक उक बान्हि नांगरिसँ
चारेपर ठोकैत ताल अछि।
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बीसहूँ आँखि ओनारि दसानन
घुटुकि घुटुकि हिलबैत भाल अछि
बूच बाबू अपन एक अन्य कविता ’राम प्रवासी’मे रामकेँ वनवासीक बदला प्रवासी कहैत छथि। मात्र ऐ शब्दक द्वारे ई कविता अपन पौराणिक केंचुलकेँ त्यागि आधुनिकता दिस संक्रमित होइत अछि।
धिक धिक जीवन दीन अहाँ बिनु
बीतल बरख मुदा जीवै छी
जीर्ण-शीर्ण मोनक गुदड़ीकें
स्वार्थक सुइ भोंकि सीबै छी
निष्ठुर पिता पड़ल छथि घर मे
कोमल पुत्र विकल वनवासी
आउ हमर हे राम प्रवासी

जीता जी हुनकर कोनो किताब नै छपल। मरलाक बाद हुनकर ९८ टा कविताक संग्रह श्रुति प्रकाशनसँ आबि रहल अछि। निन्नानबेक फेरमे हमरा जनैत कवि कहियो नै पड़लाह। जिनगीक ऐश्वर्य आ प्रेमकेँ कवि खूब नीक जकाँ भोगलाह। परन्तु ई सभ मृगतृष्णा बनि कविक जिनगीमे आबैत जाइत रहल-
कयलहुँ जहिना किछु आलिंगन
चुभि गेल अनेको वक्रशूल
उड़ि गेल गगन दुर्लभ सुगंध
झड़ि गेल धरा मकरंद प्रीत
सौन्दर्यक भूमि मरूभूमि भेल
रमणीय देवसरि सुखा गेल
कवि जिनगीकेँ ऊँच-नीचक कविता जकाँ देखलखिन्ह अर्थात विभिन्न भाव आ रससँ परिपूर्ण। कोनो एक रस आ भावमे रमनाइ ओ नै सिखलन्हि। संभवतः काल देवता स्वयं हुनकर कीर्तिक सोझाँ आबि गेलाह अन्यथा हुनकासँ कम सामर्थ्यक कविगण बेशी यश, पुरस्कार आ सम्मानक भागीदार बनलाह। ई अभिशाप कविक कम आ मैथिली आ भारतीय साहित्य आ आलोचनाक बेसी अछि।


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