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Saturday, April 7, 2012

ग्रामजीवनक सत्‍यक संवाहक- अर्द्धांगि‍नी :: डॉ. योगानन्‍द झा


श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल बहुआयामी रचनाकारक रूपमे मैथि‍ली जगतमे प्रसि‍द्ध छथि‍। कथा-कवि‍ता-नाटक-उपन्‍यासादि‍ वि‍धाकेँ ई अपन स्‍वर्णलेखनीसँ सजबैत रहलाह अछि‍। हि‍नक समस्‍त रचना हि‍नका मि‍थि‍ला-मैथि‍लक लोकजीवनक प्रत्‍यक्षदर्शी ओ व्‍याख्‍याताक रूपमे प्रस्‍तुत करैत रहलनि‍ अछि‍। लोकजीवनक यथार्थकेँ यथावत् चि‍त्रि‍त कए मानवीय संवेदनाकेँ उद्बुद्ध करब हि‍नक रचना सबहक प्रधान वि‍शष्‍टता रहलनि‍ अछि‍। प्रति‍भा, व्‍युत्‍पत्ति‍ ओ अभ्‍यास ऐ तीनू कारकसँ सम्‍बलि‍त हि‍नक रचनावलीमे मि‍थि‍ला-मैथि‍लक समस्‍या ओ तकर समाधानक दि‍शा भेटैत अछि‍। वर्त्तमान जीवनमे होइत नि‍त्‍य नूतन परि‍वर्त्तनक खण्‍ड चि‍त्रकेँ यथावत् प्रस्‍तुत करब हि‍नक कथाक वि‍षय-वस्‍तु रहलनि‍ अछि‍ जकरा ई सहज रीति‍यें प्रस्‍तुत करैत रहल छथि‍।

मण्‍डलजीक कथा सभ मि‍थि‍लाक माटि‍-पानि‍क कथा थि‍क। हि‍नक कथा सभमे मि‍थि‍लाक ग्राम्‍य जीवनक आशा-नि‍राशा, सुख-दु:ख, हर्ष-उल्‍लास आ जीवन-संघर्षक व्‍याख्‍या भेटैत अछि‍। मि‍थि‍लाक सामाजि‍क-आर्थिक ओ राजनीति‍क जीवनमे होइत परि‍वर्त्तन सभकेँ सूक्ष्‍म मनोवैज्ञानि‍क वि‍श्लेषण द्वारा ई अपन कथा सभकेँ प्रवाहमयता, रोचकता ओ वि‍श्वसनीयताक संग प्रस्‍तुत करबामे सि‍द्धहस्‍त कलाकारक रूपमे प्रति‍ष्‍ठि‍त भेलाह अछि‍।

हि‍नक कथासंग्रह अर्द्धांगि‍नी बीस गोट कथाक समुच्‍चय थि‍क। ऐ‍ कथा सभमे नोकरि‍हाराक जीवनक संत्रास, परि‍श्रमी कृषकक उल्‍लास, सांस्‍कृति‍क पावनि‍-ति‍हारमे पैसल अन्‍धवि‍श्वासक प्रति‍ जुगुप्‍सा, ग्राम्‍य जीवनमे जातीय व्‍यवसायक महत्‍व, क्रमश: टुटैत सम्‍बन्‍ध-बन्‍ध, सामाजि‍क जीवनक वि‍भि‍न्न समस्‍या आदि‍क सूक्ष्‍म वि‍श्लेषणपूर्वक लोकमंगलक कामना देखि‍ पड़ैत अछि‍। युगीन समस्‍या ओ समस्‍याक कारण एवं तकर समाधानक प्रति‍ चि‍न्‍तनशीलता हि‍नक वस्‍तु-वि‍न्‍यासकेँ प्रेरक-प्रभावकारी बनौने रहलनि‍ अछि जइमे परम्‍परि‍त कथाधाराक आदर्शोन्‍मुख यथार्थवादी दृष्‍टि‍कोण स्‍पष्‍ट रूपेँ प्रस्‍फुटि‍त देखि‍ पड़ैछ। मि‍थि‍लाक लोकजीवनक उत्‍थानक प्रति‍ सम्‍वेदनात्‍मक अभि‍व्‍यक्‍ति‍ कौशलक कारणे मण्‍डलजीक कथा सभ हि‍नका आधुनि‍क कथाकार लोकनि‍क अग्रि‍म पंक्‍ति‍‍मे ठाढ़ कऽ देलकनि‍ अछि‍।

ऐ‍ संग्रहक पहि‍ल कथा थि‍क दोहरी मारि‍। ऐ कथामे पुरुष पात्र गुलाबक मनोवैज्ञानि‍क वि‍श्लेषण भेल अछि‍। अवकाश प्राप्‍त प्रोफेसर गुलाब कतोक वर्षसँ डाइबीटीज ओ ब्‍लड-प्रेसर सदृश बेमारी सभसँ ग्रसत्‍ छथि‍। गामक घर-घराड़ी पर्यन्‍त बेचि‍ शहरमे बनाओल मकानमे पति‍-पत्नी एकाकी रहैत छथि‍। बेटा-पुतोहु परदेशमे रहैत छन्‍हि‍ तँए हि‍नकालोकनि‍क सुधि‍ लेनि‍हार कि‍यो नै छन्‍हि‍। नागर जीवनक चाकचि‍क्‍यसँ सम्‍मोहि‍त भऽ ई शहरी जीवनमे बसि‍ तँ गेल छथि‍, मुदा चोरी-डकैती, लूट-पाट, अपहरण, गंदगी आदि‍ समस्‍यासँ ग्रस्‍त शहरी ग्राम्‍य  जीवनक सौहार्दपूर्ण वातावरणक प्रति‍ आकर्षण जगैत छन्‍हि‍। हद तँ तखन भऽ जाइत अछि‍ जखन पुत्र द्वारा ई समाद भेटैत छन्‍हि‍ जे पौत्रक मूड़न घरपर नै भऽ कऽ वैष्‍णो देवीमे होएतनि‍, जइ लेल हुनकोलोकनि‍केँ ओहीठाम एबाक आमंत्रण भेटैत छन्‍हि‍ आ ओ अपनाकेँ अशक्‍य बूझैत छथि‍।

ऐ ‍ कथाक माध्‍यमे मण्‍डलजी साम्‍प्रति‍क जीवनमे उपकल वि‍स्‍थापनक समस्‍याक कारणे अवस्‍था दोषग्रस्‍त  बुजुर्ग पीढ़ीक व्‍यथाकेँ अभि‍व्‍यक्‍ति‍ प्रदान कएलनि‍ अछि‍। ऐ‍ समस्‍याक कारणे नोकरी-चाकरी भेला उत्तर लोक शहरमे बसि‍ ग्राम्‍यजीवनक सौहार्दसँ तँ वञ्चि‍त होइते छथि‍ संगहि‍ वृद्धावस्‍थामे जखन परि‍वारोक लोक हुनक संग छोड़ि‍ दैत छथि‍न तँ अपनाकेँ वंचि‍त अनुभव करए लगैत छथि‍।

एही समस्‍याकेँ संग्रहक दोसर कथा केना जीब मे सेहो उठाओल गेल अछि‍। एकर पुरूष पात्र सेहो अवकाशप्राप्‍त प्रोफेसर छथि‍। ई बेटाकेँ पढ़ा-लि‍खा कऽ वि‍देश पठयबामे सफल तँ होइत छथि‍ मुदा बेटा वि‍देशी सभ्‍यता ओ संस्‍कृति‍क रंगमे रमि‍ जाइत छन्‍हि‍ आ हि‍नकालोकनि‍क खोजो-पुछारि‍ नै कऽ पबैत छन्‍हि‍। परि‍णामत: दुनू परानी एकाकी जीवन बि‍तएबाक हेतु बाध्‍य होइत छथि‍। एहन स्‍थि‍ति‍मे हि‍नकालोकनि‍क लग एकमात्र अवलम्‍ब बचि‍ जाइत छन्‍हि‍- जि‍जीवि‍षा ओ संघर्ष। यएह जि‍जीवि‍षा ओ संघर्ष करबाक मानसि‍कता ऐ‍ कथाक युग जीवनक अनुकूल संदेश थि‍क जे एकरा पूर्व कथासँ भि‍न्न आ स्‍तरीय बनबैत अछि‍। ऐ‍ कथाक वृद्ध दम्‍पत्ति‍ कखनो हताश आ नि‍राश नै देखि‍ पड़ैत छथि‍।

संग्रहक तेसर कथा ग्राम्‍य जीवनक परि‍श्रमी कृषकक गाथा थि‍क जे अपन परि‍श्रमक बलेँ अपन भाग्‍यवि‍धाता बनल अछि‍। नवान शीर्षक ऐ‍ कथामे मि‍थि‍लाक लोक जीवनक वि‍भि‍न्न खण्‍डचि‍त्र उपस्‍थि‍त कएल गेल अछि‍ यथा वृक्ष-लतादि‍क पहि‍ल फड़ देवताकेँ चढ़ायब, गाए बि‍आएलापर महादेवकेँ दूधसँ अभि‍षेक करब आदि‍। ग्राम्‍य जीवनमे पसरैत जातीय ओ साम्‍प्रदायि‍क वि‍द्वेष दि‍स सेहो ऐमे संकेत कएल गेल अछि‍। मुदा ऐ कथामे मि‍थि‍लाक लोकजीवनक आर्थिक स्‍थि‍ति‍केँ बदहाल करएबला जइ समस्‍यापर वि‍शेष दृष्‍टि‍नि‍क्षेप कएल गेल अछि‍, से थि‍क बाढ़ि‍क समस्‍या। ऐ‍ समस्‍याक कारणे मि‍थि‍लाक ग्राम्‍य जीवनक आर्थिक व्‍यवस्‍था अस्‍त-व्‍यस्‍त  भऽ जाइत अछि‍। तथापि‍ ऐ‍ कथाक नायक आधुनि‍क वैज्ञानि‍क पद्धति‍ अपनाए नव कि‍स्‍मक धान उगबय लगैत अछि‍, तीमन-तरकारीक नगदी फसि‍ल उपजाबय लगैत अछि‍ आ नूतन नस्‍लक माल-जाल पोसि‍ अपन जीवनकेँ खुशहाल बना लैत अछि‍, वस्‍तुत: ऐ वैज्ञानि‍क पद्धति‍ द्वारा मि‍थि‍लाक कृषक जीवनक समुन्नति‍ भऽ सकैत अछि‍, से संदेश देब कथाकारक उद्देश्‍य छन्‍हि‍।

संग्रहक चारि‍म कथा थि‍क ति‍लासंक्रान्‍ति‍क लाइ ऐ‍ कथामे ग्राम्‍यजीवनमे पसरल अन्‍धवि‍श्वासपर प्रहार कएल गेल अछि‍। ति‍लासंक्रान्‍ति‍क एकटा एहन पर्व थि‍क जे सोत्‍साह मि‍थि‍लाक घर-घरमे मनाओल जाइत अछि‍। ऐ‍ दि‍नसँ सूर्य उत्तरायण भऽ जाइत छथि‍ आ क्रमश: शीत ऋृतु वसन्‍त आ गृष्‍म दि‍स बढ़य लगैत अछि‍। मि‍थि‍लाक प्रशस्‍त भोजन चूड़ा-दही ऐ‍ दि‍न गरीबो-गुरबा धरि‍ खाइते अछि‍। चूड़ा ओ मुरहीक लाइ, ति‍लबा आदि‍ देवताकेँ चढ़ाय प्रासाद रूपेमे ग्रहण करब ऐ‍ पावनि‍क कृत्‍य होइत छैक। शीत ऋृतु रहलाक बादो मि‍थि‍लाक ग्राम्‍यजीवन ऐ‍ पर्वक ओरि‍आओनमे मास दि‍न पूर्वहि‍सँ लागि‍ जाइत अछि‍। मुदा ऐ‍ पर्वक प्रसाद ग्रहण करबाक हेतु प्रात: स्‍नान जरूरी बूझल जाइत छैक। मि‍थि‍लामे ई अपवाद सेहो पसरल छैक जे ऐ‍ दि‍न जे कि‍यो  भोरे नदी वा पोखरि‍मे डूब दैत छथि‍ हुनका नदी-देवता तत्‍काले लाइ धरा दैत छथि‍न। एही अपवादपर वि‍श्वास कऽ गोपाल नामक एकटा नेना बारहे बजे राति‍मे नदीमे डूब देबए चल जाइत अछि‍ आ ठंढसँ ग्रस्‍त  भऽ जाइत अछि‍। ग्राम्‍यजीवनक अन्‍धवि‍श्वासी समाजकेँ ऐ‍ कथाक माध्‍यमसँ ई संदेश देल गेल अछि‍ जे वस्‍तुत: ई पावनि‍ प्रकृति‍-परि‍वर्त्तनपर आधारि‍त अछि‍ आ ऐमे बि‍नु पाखंड कएने लोककेँ अपन सामर्थ्‍यक अनुसार समैपर स्‍नान करबाक चाही, नै कि‍ अन्‍धवि‍ष्वासमे पड़ि‍ रोगग्रस्‍त भऽ जएबाक चाही। हरड़ीवालीक उक्ति‍- अहाँ जकाँ राति‍मे कुकुर घि‍सि‍यौने छलौं जे भोरे नहा कऽ पाक हएब अन्‍धवि‍ष्वासक प्रति‍ बेस प्रहार कएलक अछि‍। कथामे ऐ‍ पावनि‍क तैयारीमे जुटल लोकजीवन अत्‍यन्‍त सुन्‍दर चि‍त्र भेटैत अछि‍।

पाँचम कथा भाइक सि‍नेह भाइ-भैयारीक आपसी कलह ओ आर्त्‍यानक प्रेमक कथा थि‍क। शि‍ष्‍टदेव आ वि‍चारनाथ दुनू भँइ एक दोसराक प्रति‍ अगाध श्रद्धा, भक्‍ति ओ बन्‍धुत्‍वक भाव रखैत छथि‍ मुदा देयादि‍नी लोकनि‍क बीच खट-पटसँ परि‍वारमे भि‍न्न-भि‍नाउज भऽ जाइत छन्‍हि‍। भि‍न्न-भि‍नाउजक मूलमे अर्थसत्तापर कबजा रहैत अछि‍। मुदा जखन दुनूक मनमे परस्‍पर प्रेमक भाव जगैत छन्‍हि‍ तँ दुनू एकदोसराक दु:ख बँटबाक हेतु तत्पर भऽ जाइत छथि‍। ऐ‍ कथामे कृषक जीवनमे पारस्‍परि‍क सहयोग, सद्भाव ओ शक्‍ति‍क अनुकूल श्रमपर आधारि‍त संयुक्‍त परि‍वारक उपयोगि‍ताक परम्‍परि‍त अनुगायन देखि‍ पड़ैछ।

संग्रहक छठम कथा प्रेमी वस्‍तुत: प्रेमकथाक रूपमे लि‍खल गेल अछि‍ मुदा ऐ‍ कथामे रचनाकारक उद्देश्‍य  समाजि‍क जीवनमे व्‍याप्‍त दहेज प्रथाक कुरीति‍केँ समाप्‍त करबाक संदेश सएह अभि‍व्‍यक्‍त भेल अछि‍। पक्षधर आ ज्ञानचन्‍द दू गामक छथि‍। दुनूमे प्रगाढ़ दोस्‍ती छन्‍हि‍। ज्ञानचन्‍दक पौत्र परीक्षा देबाक हेतु पक्षधरक गाम अबैत छथि‍न जतए परीक्षावधि‍ धरि‍ ज्ञानचन्‍दक पौत्र लोचन आ पक्षधरक पौत्री सुकन्‍याक बीच संवाद होइत छन्‍हि‍ आ दुनू परस्‍परानुरक्‍त भऽ जाइत छथि‍। लोचनकेँ वि‍दा करबाक क्रममे सुकन्‍या ओकरे संग ओकरा घर धरि‍ चलि‍ जाइत अछि‍ जे ओहि‍ गाममे गुलञ्जरक वस्‍तु भऽ जाइत छैक। वि‍जातीय रहलाक बादो पक्षधर आ ज्ञानचन्‍द पारस्‍परि‍क मैत्रीकेँ सम्‍बन्‍धमे बदलि‍ एकटा आदर्शक स्‍थापना करैत छथि‍। पक्षधरक उक्‍ति‍- जइ समाजमे मनुक्‍खक खरीद-बि‍करी गाए-महींस, खेत-पथार जकाँ होइए ओइ समाजकेँ पञ्च तत्तवक बनल मनुक्‍ख कहल जा सकैत अछि‍? जँ से नै तँ हमर कि‍यो मालि‍क नै छी। कि‍यो अगुँरी देखाओत तँ ओकर अगुँरी काटि‍ लेबै। मे दहेज प्रथाक समर्थक ओ प्रेम-वि‍वाह, वि‍जातीय वि‍वाहक अवरोधक तत्वपर प्रहार कएल गेलैक अछि‍।

संग्रहक सातम कथा बपौती सम्‍पत्ति‍ कृषक जीवनमे जातीय व्‍यवसायक महत्तवक अवधारणापर आधारि‍त अछि‍। सम्‍प्रति‍ कृषक-मजदूरक पलायनसँ जे गामक अर्थ-व्‍यवस्‍था चरमरा गेल अछि‍ तकरा सुधारबाक हेतु ऐ‍ कथामे चि‍न्‍तनक एकटा दि‍शा भेटैत अछि‍। कथानायक गुलटेन अपन पि‍ताक सि‍खाओल व्‍यवसायसँ नीक जकाँ परि‍वारक परि‍पालन करबामे सक्षम अछि‍। तँए कथाकारक उद्देश्‍य ग्राम्‍य स्‍वावलम्‍बनकेँ पुन: स्‍थापि‍त करबाक हेतु मार्गदर्शन करब बुझना जाइत अछि‍।

आठम कथा डंका लोकजीवनक अवमूल्‍यनकेँ रेखांकि‍त करैत अछि‍। एकर मुख्‍य पात्र भैयाकाका गामक रक्षा करबाक संकल्‍प लऽ अपनो गाममे अखड़ाहाक प्रचलन शुरू करैत छथि‍ जइसँ पास-पड़ोसक गाम कि‍ंवा जमीन्‍दारक पहलमान हुनकालोकनि‍केँ अबल बूझि‍ प्रताड़ि‍त नै कऽ सकनि‍। ऐ‍ तरहेँ समस्‍त समाजक हि‍तकामनाक प्रति‍ हुनका व्‍यग्रता छन्‍हि‍ मुदा साम्‍प्रति‍क जीवनमे स्‍वार्थक प्रवेशसँ ओ ई जानि‍ वि‍चलि‍त भऽ जाइत छथि‍ जे आब गाम-घरक लोकक कल्‍याणक गप्‍प तँ दूर, लोक अपनो सर-सम्‍बन्‍धीक खोज-पुछारि‍ करबासँ कतरयबाक मूल्‍यरहि‍त संस्‍कार पालय लागल अछि‍। हि‍नक उक्‍ति‍- माए-बाप, भाए-बहि‍न सबहक संबंध आ शि‍ष्‍टाचार ऐ रूपे नष्‍ट भऽ रहल अछि‍ जे साधनाभूमि‍केँ मरूभूमि‍ बनब अनि‍वार्य छै मे समस्‍त  कथासार अभि‍व्‍यक्‍त भऽ जाइत अछि‍।‍

नवम कथा संगी शि‍क्षा जगतमे भेल अद्य:पतनक कथा थि‍क जइमे स्‍कूल-कओलेजमे शि‍क्षाक व्‍यवसायीकरणक फलस्‍वरूप सामान्‍य जनसँ छीनल जाइत शि‍क्षाक समस्‍यापर वि‍मर्श भेल अछि‍, जकर समाधानक हेतु दूटा संगी पारस्‍परि‍क परि‍णयपूर्वक क्रान्‍ति‍क शंखनाद करैत देखि‍ पड़ैत छथि‍। कथाक घटनाक्रम आकस्‍मि‍कताक दोषसँ ग्रस्‍त बुझना जाइछ, जे प्रभावान्‍वति‍केँ कमजोर करैत अछि‍।

ठकहरबा पूर्णत: राजनीति‍क कथा थि‍क। ऐमे स्‍वातंत्र्योत्तर भारतमे पुलि‍स ओ नेतालोकनि‍क भ्रष्‍ट चरि‍त्र, मतदानमे गड़बड़ी आदि‍क चि‍त्रण करैत लोकजगतमे क्रमश: पसरैत भ्रष्‍टाचारक अति‍रेकक चि‍त्रण भेल अछि‍ जइसँ कोनो वस्‍तुक वि‍श्वासनीयतापर प्रश्नचि‍न्ह लागि‍ गेल अछि‍। ई कथा लोकतंत्रमे लोक आ तंत्र दुनूक स्‍खलनपर सोचबाक हेतु वि‍वश करैत अछि‍।

अतहतहमे मि‍थि‍लाक वैवाहि‍क प्रथामे बरि‍याती पक्ष द्वारा सरि‍याती पक्षकेँ देखार करबाक हेतु खाद्य वस्‍तुपर जोर देबाक परि‍ष्‍कारक रूपमे सरि‍याती पक्ष द्वारा तकर बदला लेबाक कथा कहल गेल अछि‍। ऐ‍ कथामे बरि‍याती पक्षकेँ पानि‍क संग दबाइ पि‍आय ओकरा सभकेँ देखार करबाक प्रयास कएल गेल अछि‍ जे लोकसंस्‍कृति‍क प्रति‍कूल होएबाक कारणे प्रतीयमान नै भऽ सकल अछि‍। अवश्‍ये ऐमे वर पक्षमे शराब पीबि‍ कऽ बरि‍याती जएबाक आधुनि‍क प्रचलनक वि‍रुद्ध आक्रोशक अभव्‍यक्‍ति‍ भेल अछि‍। मण्‍डलजीक ई कथा कन्‍यादान-वरदानमे दुहू पक्षक सम्‍मान रक्षाक पारस्‍परि‍क दायि‍त्‍वक प्रति‍ कान्‍तासम्मि‍त उपदेश दैत अछि‍।

बारहम कथा अर्द्धांगि‍नी ऐ‍ पोथीक नामकरणक आधार बनल अछि‍। ऐ‍ कथामे अवकाशप्राप्‍त शि‍क्षकक अत्‍यन्‍त  सूक्ष्‍म मनोवि‍श्लेषण भेल अछि‍। अपन कमाइक बलें ओ आजीवन अपन पत्नीक दासीसँ आगू बुझबाक हेतु तैयार नै होइत छथि‍ मुदा जखन नोकरी समाप्‍त भऽ जाइत छन्‍हि‍ तखन पत्नीक आवयकतापर धि‍यान जाइत छन्‍हि‍ आ अर्द्धांगि‍नीक महत्तव बूझि‍ पबैत छथि‍। लेखक नारीक सेवि‍का स्‍वरूपकेँ मर्यादि‍त कए ओकरा पुरुषक समानान्‍तर मूल्‍य प्रदान करबाक पक्षपाती छथि‍, जकर अभि‍व्‍यक्‍ति‍ ऐ‍ कथाक लक्ष्‍य बुझना जाइत अछि‍।

तेरहम कथा थि‍क ऑपरेशन ऐ‍ कथामे मइटुग्गर नेनाक सामाजि‍क स्‍थि‍ति‍पर वि‍मर्श कएल गेल अछि‍। जखन कोनो नेनाक माय असमए कालकवलि‍त भऽ जाइत छैक, तँ समाज ओकरा अलच्‍छ कऽ कऽ बूझय लगैत छैक आ ककरो ओकर शारीरि‍क ओ मानसि‍क वकासक चि‍न्‍ता नै रहैत छैक। मुदा जँ ओहि‍ बच्‍चाक पि‍ता दोसर वि‍वाह कऽ ओकर प्रति‍पालनक हेतु, स्‍थानापन्न माताक व्‍यवस्‍था करैत छथि‍ तँ वएह समाज बेर-बेर ई जनबाक प्रयास करैत अछि‍ जे सतमाय ओकर पालन नीक जकाँ कऽ रहल छैक वा नै। समाजक ई व्‍यवहार ओकर क्रूर मानसि‍कताक परि‍चय दैत अछि‍ जइसँ नेना आ ओकर पि‍ता आहत होएबाक लेल बाध्‍य होइत छथि‍। लेखक समाजक ऐ‍ वि‍रूपि‍त मानसि‍कतापर व्‍यंग्‍य करब ऐ‍ कथाक उद्देश्‍य रखलनि‍ अछि‍। एही माध्‍यमसँ अस्‍पतालक दुर्व्‍यवस्‍था तथा प्राइवेट प्रैक्‍टि‍सक कारणपर सेहो वि‍मर्श कएल गेल अछि‍।

चौदहम कथा धर्मनाथ ढहैत जमींदार परि‍वारक गाथा थि‍क। ऐ‍मे दहेज प्रथाक उन्‍मूलनक हेतु सामाजि‍क जागरण कथाकारक उद्देश्‍य बुझना जाइत अछि‍। एकर नायक धर्मनाथ जमीन्‍दार परि‍वारक छथि‍ आ पि‍ताक अमलदारीमे धरि‍ हुनक परि‍वार देहेजक संतोषक रहल अछि‍ आ खेत बेचि‍-बेचि‍ कन्‍यादान करैत अपन कुलाभि‍मानक रक्षा करैत रहल अछि‍। मुदा ई मि‍थ्‍याभि‍मान जमीन्‍दारी उन्‍मूलनसँ क्षत-वि‍क्षत भऽ गेल छैक आ धर्मनाथ ऐ‍ स्‍थि‍ति‍मे नै रहि‍ पबैत छथि‍ जे पुत्रीक वि‍वाह जमीन्‍दारे परि‍वारमे करबाक हेतु धन जुटा पाबथि‍। अन्‍तत: ओ प्रो. रामरतन सन दहेजवि‍रोधी व्‍यक्‍ति‍क सहायतासँ एकटा कर्मयोगी बालकसँ अपन बेटीक वि‍वाह ठीक कऽ लैत छथि‍ आ मि‍थ्‍या प्रति‍ष्‍ठाकेँ चुनौती दैत छथि‍। परि‍णामत: हुनक पि‍ता अपन कुलाभि‍मानपर प्रहार होइत देखि‍ मृत्‍युकेँ प्रात्र कऽ लैत छथि‍। धि‍या-पुताक थपड़ी बजा-बजा ई कहब जे- बाबा मुइलाह- पूरी-जि‍लेबीक भोज खायब.. वस्‍तुत: परम्‍परा आ अन्‍धवि‍श्वासँ जकड़ल सामाजि‍क व्‍यवस्‍थाक वि‍नाशक प्रति‍ उत्‍सव थि‍क जे दहेज प्रथाक उन्‍मूलनकेँ सकेति‍त करैत ई ईंगि‍त करैत अछि‍ जे जँ लोक मि‍थ्‍याभि‍मानक त्‍याग नै करताह आ दहेज देब-लेबकेँ सामाजि‍क प्रति‍ष्‍ठाक मानदंड बनौने रहताह तँ अद्य: पतन अवश्‍यम्‍भावी अछि‍।

सरोजि‍नी प्रेमवि‍वाहपर आधारि‍त कथा थि‍क। नायि‍का सरोजि‍नी जमीन्‍दार घरक कन्‍या छथि‍। हि‍नक भाय हृदयनारायण बि‍लैति‍न कन्‍यासँ प्रेमवि‍वाह कऽ लेने छथि‍न। इहो अपन बालसखा रमेशक संग वि‍वाह कऽ लैत छथि‍। रमेश हि‍नके नोकर घूरनक शि‍क्षि‍त पुत्र छथि‍। आर्थिक ओ सामाजि‍क दुनू स्‍तरपर असमान लोकक वि‍जातीय वि‍वाहक समर्थनक ई आधार जे अपन मालि‍क हम स्‍वयं छी। अखन धरि‍ जाति‍क पहाड़ जे अपना समाजमे बनल अछि‍, ओकरा मेटाएब। जे समाज भूखलकेँ ने पेट भरैत अछि‍, ने नाङटकेँ वस्‍त्र दैत अछि‍, ने बेघरकेँ घरे। एतए धरि‍ जे मूर्खकेँ पढ़ा नै सकैत अछि‍, लूटैत इज्‍जतकेँ बचा नै सकैत अछि‍, ओहि‍ समाजकेँ वि‍रोध करबाक कोन अधि‍कार?”
उपदेशात्‍मक ओ असहज तथा सि‍ने जगतक वस्‍तु जकाँ असहजतासँ प्रभावि‍त बुझना जाइत अछि‍। तथापि‍ कथाकार जातीय व्‍यवस्‍थापर आधारि‍त वैवाहि‍क पद्धति‍केँ गुण ओ प्रेमपर आधारि‍त करबाक समर्थन कऽ ऐ‍ प्रथामे युगानुरूप परि‍वर्त्तनक आकांक्षी बुझना जाइत छथि‍। वि‍श्रृंखलि‍त होइत वैवाहि‍क व्‍यवस्‍थाक प्रति‍ समाजक ध्‍यान आकृष्‍ट करब ऐ‍ कथाक उद्देश्‍य बुझना जाइत अछि‍।

संग्रहक सोलहम कथा सुभद्रा वि‍धवा वि‍वाहक समस्‍यापर आधारि‍त अछि‍। दैवयोगसँ सुभद्राक पति‍क देहान्‍त  हवाइ दुर्घटनासँ भऽ जाइत छन्‍हि‍। ओ अभि‍शप्‍त जीवन बि‍तएबाक हेतु बाध्‍य भऽ जाइत छथि‍। एकर कारण ई अछि‍ जे ओ जइ‍ जाति‍सँ अबैत छथि‍ तइमे वि‍धबा वि‍वाहकेँ मान्‍यता नै छैक। कथाकार रूपलाल बाबा नामक एक गोट गाँधीवादी चरि‍त्रक अवतारणा करैत छथि‍ जे नारी समुत्‍थानक प्रति‍ समर्पित छथि‍। हि‍नक मान्‍यता छन्‍हि‍ जे जहि‍ना पत्नीक मुइला उत्तर पति‍केँ दोसर वि‍वाह करबाक अधि‍कार छैक तहि‍ना पति‍क मुइला उत्तर पत्नीयोकेँ दोसर वि‍वाहक अधि‍कार भेटबाक चाही। रूपलाल बाबा सुभद्राक पि‍ताकेँ मानाय सुशील नामक युवकसँ ओकर वि‍वाह सम्‍पन्न करबैत छथि‍। ऐ तरहेँ समाजमे वि‍धवाकेँ मान्‍यता भेटैत छैक। आदर्शवादी संकल्‍पनापर आधारि‍त ई कथा वस्‍तुत: ऐ सामाजिक समस्‍याक प्रति‍ कथाकारक प्रगति‍वादी मूल्‍यकेँ उद्घाटि‍त करैत अछि‍।

सोनमा काका ऐ संग्रहक सतरहम कथा थि‍क। ई कथा मानव धर्मपर आधारि‍त अछि‍। एकर प्रधान पात्र सोनमा काका स्‍वयं पत्नीक बीमारीसँ त्रस्‍त छथि‍। ओकर इलाज करा जखन गाम घूमैत छथि‍ तँ रामकि‍सुन नामक एकटा बि‍गड़ैल व्‍यक्‍ति‍क मृत्‍युक समाचार भेटैत छन्‍हि‍। ओ व्‍यसनक चक्रमे पड़ि‍ ततेक ि‍नर्धन भऽ गेल छल जे ओकरा कफनो धरि‍क उपाय नै छलैक। सोनमा काका समाजक सहायतासँ ओकर संस्‍कार करबैत छथि‍ आ ओकर अनाथ बालककेँ अपन बेटीक संग वि‍वाह कराय ओकर जीवनकेँ सामान्‍य बनेबाक प्रयत्न करैत छथि‍। कथाकार ऐ आदर्श पुरूषक स्‍थापना कए ई सि‍द्धकरए चाहैत छथि‍ जे जँ समाज चाहय तँ केहनो पैघ समस्‍याक नि‍दान भऽ सकैत छैक।

अठारहम कथा दोती बि‍याह परि‍त्‍यक्‍ताक पुनर्विवाहपर आधारि‍त अछि‍। एकर प्रमुख पुरुष पात्र उमाकान्‍त  छथि‍ जे पचास वर्षक आयुमे पत्नीक देहावसानक कारणे एकाकी जीवन जीबाक हेतु बाध्‍य छथि‍। जीवन संगि‍नीक अभावमे हि‍नक दि‍न काटब पहाड़ भऽ गेल छन्‍हि‍। दोसर दि‍स यशोदि‍या नामक एकटा युवती छथि‍ जनि‍क पति‍ दि‍ल्‍लीमे नोकरी करैत छलथि‍न मुदा शहरी चाकचि‍क्‍यमे पड़ि‍ यशोदि‍याकेँ परि‍त्‍यक्‍त कऽ कतहु पड़ा जाइत छथि‍। नि‍स्‍सहाय यशोदि‍या गाम घूरि‍ अबैत अछि‍ आ हरि‍नारायण नामक एक गोट सम्‍भ्रान्‍त व्‍यक्‍ति‍क आश्रममे रहि‍ जीवन-यापन करए लगैत अछि‍। हरि‍नारायण उमाकान्‍तक स्‍थि‍ति‍केँ परखि‍ हुनका यशोदि‍या संग वि‍वाह करा दैत छथि‍न जइसँ दुनूकेँ अवलम्‍ब भेटैत छन्‍हि‍ आ दूटा उजड़ल परि‍वार बसि‍ पबैत अछि‍। ऐ कथाक माध्‍यमे कथाकारक ई उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट होइत छन्‍हि‍ जे मानव जीवनकेँ सन्‍तुलि‍त रखबाक हेतु पति‍-पत्नीमे कि‍यो जँ एकाकी जीवन जीबैत अछि‍, तँ ओ अनेक प्रकारक मानसि‍क व्‍यथामे पड़ल रहैत अछि‍ जकर ि‍नदानक हेतु समतूल युगल बनयबाक हेतु प्रयत्न होएबाक चाही।

उनैसम कथा पड़ाइन ग्राम्‍य जीवने पसरल अराजकताक कथा थि‍क जकरा कारणे बलगर लोक ि‍नर्बलकेँ सता कऽ ओकरा गामसँ उपटयबापर लागल रहैत अछि‍। ऐ कथाक पात्र चेथरू महाजनी अत्‍याचार, खेत-पथारमे बेइमानी-शैतानी, चाेरि‍, बलपूर्वक दोसरक जताति‍ नष्‍ट करब आ माय-बहि‍नि‍क इज्‍जतक संग खेलवाड़ करब आदि‍सँ त्रस्‍त भऽ गाम छोड़ि‍ दैत अछि‍ आ नेपाल जा कऽ बसि‍ जाइत अछि‍। ओतय परि‍श्रमपूर्वक अर्जित धनसँ सम्‍पत्ति‍शाली बनि‍ नीक जकाँ गुजर करऽ लगैत अछि‍। ऐ कथामे कथाकारक उद्देश्‍य ग्राम जीवनक कि‍छु समस्‍या सभकेँ इंगि‍त करब बुझना जाइत अछि‍ मुदा आधुनि‍क परि‍प्रेक्ष्‍यमे ऐमे स्‍वाभावि‍कताक अभाव बुझना जाइत अछि‍।

कतौ ने कथा संग्रहक अन्‍ति‍म कथा थि‍क जे वस्‍तुत: यात्रा-वृत्तान्‍त थि‍क। ऐमे जनकपुर यात्राक वर्णन आएल अछि‍। गामक एकटा टोली जनकपुरमे वि‍वाह पंचमीक मेला देखबाक हेतु प्रस्‍थान करैत अछि‍ मुदा वि‍वाह पंचमी दि‍न ई लोकनि‍ धनुषा दर्शन करबाक हेतु जाइत छथि‍ आ ओतए गाड़ी खराब भऽ जएबाक कारणे वि‍वाह पंचमीक राति‍मे पुन: जनकपुर घुमि‍ नै पबैत छथि‍ जइसँ हुनकालोकनि‍केँ जनकपुरक कार्यक्रम देखबाक अवसर नै भेटि‍ पबैत छन्‍हि‍। अन्‍तत: हारि‍-थाकि‍ कऽ सभ सोचैत छथि‍ जे कतए एलौं तँ कत्तौ ने। दुर्योगवशात् मनोरथपूर्त्तिमे बाधा होएबाक ऐ कथामे वस्‍तुत: जनकपुर यात्राक एक गोट मनोरम वृत्तान्‍त भेटैत अछि‍।

ऐ तरहेँ अर्द्धांगि‍नी कथा संग्रह मि‍थि‍लाक ग्राम्‍य जीवनक वि‍भि‍न्न आयाम ओ समस्‍या तथा तकर समाधान सबहक आदर्शोन्‍मुख यथार्थवादी व्‍याख्‍या थि‍क।

ऐ संग्रहक कथा सभ वर्णन-प्रधान देखि‍ पड़ैत अछि‍। कथाकारक शैली एहन छन्‍हि‍ जे ओ कोनो घटनाकेँ प्रस्‍तुत करबासँ पूर्व ओकर पूर्ववीठि‍काकेँ ततेक सघन कऽ दैत छथि‍ जे पाठक तइमे तल्‍लीन भऽ जाइत छथि‍। ऐ प्रकारक वर्णन-वि‍न्‍यास हि‍नक औपन्‍यासि‍क वृत्ति‍केँ स्‍पष्‍ट करैत अछि‍ जइमे वर्णनक हेतु पयाप्‍त अवसर रहैत छैक।

मनोवि‍श्लेषण मण्‍डलजीक कथा सबहक अन्‍यतम वि‍शि‍ष्‍टता थि‍कनि‍। ई जइ कोनो पात्रकेँ प्रस्‍तुत करैत छथि‍ तकर अन्‍तस्‍तलमे प्रेवेश कए ओकर भावराशि‍केँ अभि‍व्‍यक्‍त कऽ दैत छथि‍ जइसँ पात्रक चरि‍त्र स्‍वत: स्‍फुट होमय लगैत अछि‍। उदाहरणार्थ बपौती सम्‍पत्ति‍ कथामे गुलटेनक मानसि‍क स्‍थि‍ति‍केँ अभि‍व्‍यक्‍त करैत ई पाँती द्रष्‍टव्‍य अछि‍- मनमे उठलै पुरने कपड़ा जकाँ परि‍वारो होइए। जहि‍ना पुरना कपड़ाकेँ एकठाम फाटल सीने दोसरठाम मसकि‍ जाइत अछि‍, तहि‍ना परि‍वारोक काजक अछि‍। एकटा पुराउ दोसर आबि‍ जाएत। मुदा चि‍न्‍ता आगू मुँहेँ नै ससरि‍ रुकि‍ गेलै। चि‍न्‍ताक अॅटकि‍ते मनमे खुशी भेलै। अपनापर ग्‍लानि‍ भेलै जे जइ धरतीपर बसल परि‍वारमे जन्‍म लेबाक सेहन्‍ता देवी-देवताकेँ होइत छन्‍हि‍ ओकरा हम मायाजाल कि‍अए बुझैत छी। ई दुनि‍याँ ककरा लेल छै? ककरो कहने दुनि‍याँ असत्‍य भऽ जाएत। ई दुनि‍याँ उपयोग करैक छैक नै कि‍ उपभोग करैक।

मण्‍डलजी कथाक भाषामे मैथि‍लीक गमैया बोली-वाणीक सहज स्‍वरूप अभि‍व्‍यक्‍त भेल अछि‍। ई पात्रानुरूप भाषाक प्रयोग कएलनि‍ अछि‍ जइसँ प्रत्‍येक पात्रक बौद्धि‍क ओ सामाजि‍क स्‍थि‍ति‍ स्‍पष्‍ट होइत चल जाइत अछि‍। हि‍नक कथा सभमे कथाकारक भाषा सेहो मैथि‍लीक लोकजगतक भाषाहि‍क अनुगमन करैत अछि‍ जइमे सहजता अछि‍। कनेको कृत्रि‍म प्रयोगसँ ई बचैत रहल छथि‍। हि‍नक भाषामे तद्भव ओ देशज शब्‍दक प्रचुर प्रयोग भेल अछि‍। युग्‍म शब्‍दक प्रयोग हि‍नक भाषाकेँ लालि‍त्‍य प्रदान करबामे आ ओकर प्रवाहमयतामे सहायक रहलनि‍ अछि‍। उदाहरणक हेतु माल-जाल, लेब-देब, दोकान-दौरी, चट्टी-बट्टी, ताड़ी-दारू, छहर-महर, चोरी-डकैती, बाल-बोध, बेटा-पुतोहु, भोज-काज, अन्‍हर-बि‍हाड़ि‍, दार-मदार, सुक-पाक, भुखल-दुखल, चीज-बौस, घुसका-फुसका आदि‍केँ देखल जा सकैछ।

मण्‍डलजी कथा भाषाक ई अन्‍यतम वि‍शि‍ष्‍टता थि‍क जे ई कोनो स्‍थि‍ति‍केँ पाठकक समक्ष अभि‍व्‍यक्‍त करबाक हेतु चमत्‍कारि‍क उपमानक प्रयोग करैत छथि‍ जइसँ वस्‍तुस्‍थि‍ति‍क स्‍पष्‍ट चि‍त्र पाठकक सोझाँ आबि‍ जाइत अछि‍ यथा-  जहि‍ना खढ़ाएल खेतमे हरबाहकेँ हर जोतब भरि‍गर बूझि‍ पड़ैत छैक तहि‍ना सुशीलक मन समस्‍याक बोनाएल रूप देखलक। जहि‍ना पहाड़सँ नि‍कलि‍ अनवरत गति‍सँ चलि‍ नदी समुद्रमे जाय मि‍लैत अछि‍ तहि‍ना ने टटघरक ज्ञान उड़ि‍ कऽ सर्वोच्‍च ज्ञानक समुद्रमे मि‍लत। आदि‍।

एतावता कहल जा सकैछ जे मण्‍डलजीक कथा वर्णनक दृष्‍टि‍ञे मि‍थि‍लाक ग्रामजीवनक यथार्थवादी चि‍त्र, घटनाक दृष्‍टि‍ञे आदर्शक प्रति‍ अभि‍भूत, सूक्ष्‍म मनोवि‍श्लेषणक प्रति‍ प्रति‍बद्ध तथा उद्देश्‍यक दृष्‍टि‍ञे लोक मंगलकारी अछि‍। मैथि‍लीक आधुनि‍क कथा लेखन हि‍नक रचना सभसँ सम्‍बलि‍त भेल अछि‍ आ एकर समाजोपयोगी तत्व सभ अनन्‍त काल धरि‍ मि‍थि‍लाक लोकजीवनकेँ प्रेरि‍त-प्रभावि‍त करैत रहत।

कबि‍लपुर, लहेरि‍यासराय
दरभंगा- 846001
(बि‍हार)

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