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Saturday, April 7, 2012

गामक जि‍नगी पर शिव कुमार झा ’टिल्लू’


अपन जन्‍म कालहि‍सँ “मैथि‍ली‍” समाजक अग्र आसनपर बैसल वाचकगण द्वारा महि‍मामंडि‍त होइत रहलीह। स्‍वाभावि‍क अछि‍ शि‍क्षि‍त लोक ऐ वर्गसँ संबंध रखैत छलथि‍। आर्य परि‍वारक सभ भाषा समूहक जननी संस्‍कृत मानल जाइत अछि‍ तँए मैथि‍ली कोना तत्‍समसँ बचथि‍? सरि‍पहुँ मैथि‍लीक अधि‍ष्‍ठाता ब्राह्मण आ कर्ण-कायस्‍थ रहल छथि‍, तँए काव्‍य, महाकाव्‍य, कथा वा नाटक हुअए सभ साहि‍त्‍य पल्‍लवक उदय तत्‍सम मिश्रि‍त मैथि‍लीसँ भेल।
आि‍दकवि वि‍द्यापति‍क पदावली पुरान-रहि‍तौं एे रूपेँ अपवाद अछि‍ मुदा हुनक पुरूष परीक्षा संस्‍कृतक आवरणसँ बाहर नै नि‍कलि‍ सकल।
संभवत: मैथि‍लीक कथाक आरंभ पुरूष परीक्षाक मैथि‍ली अनुवाद कऽ चन्‍दा झा कएलनि‍। प्रथम मैथि‍लीक मौलि‍क कथा वि‍द्यासि‍न्‍धुक कथा, कथा संग्रह थि‍क। तत्‍पश्‍चात् स्‍वतंत्र रूपेँ मैथि‍लीमे कथा लि‍खब प्रारंभ भऽ गेल। भुवन जीसँ लऽ कऽ वर्त्तमान युगक कथा यात्रामे कि‍छु एहेन कथाकार भेल छथि‍ जनि‍क यात्रासँ ऐ भाषाकेँ स्‍थायी स्‍तंभ भेटल। ऐमे कुमार गंगानंद सि‍ंह, नगेन्‍द्र कुमर, मनमोहन झा, शैलेन्‍द्र मोहन झा, रामदेव झा, हंसराज, व्‍यास, कि‍रण, रमानंद रेणु, गौरी मि‍श्र, लि‍ली‍ रे, नीरजा रेणु, रूपकान्‍त ठाकुर, रमेश, धीरेन्‍द्र धीर, अशोक, मन्‍त्रेश्वर झा, धूमकेतु, वि‍भूति‍ आनंद, चि‍त्रलेखा देवी, रामभरोस कापड़ि‍ भ्रमर, श्‍यामा देवी, शेफालि‍का वर्मा, कमला चौधरी, कामि‍नी कामायनी, प्रदीप बि‍हारी, हीरेन्‍द्र, ललन प्रसाद ठाकुर, गौरीकान्‍त चौधरी कान्‍त, अरवि‍न्‍द ठाकुर, अशोक मेहता, राजाराम सि‍ंह राठौर, परमेश्वर कापड़ि‍, वि‍जय हरीश, उमानाथ झा, योगानंद झा, सुधांशु शेखर चौधरी, गोवि‍न्‍द झा, राधाकृष्‍ण बहेड़, मणि‍पद्म, मायानंद मि‍श्र, जीवकान्‍त, राजमोहन झा, प्रभास कुमार चौधरी, इन्‍द्रकान्‍त झा, ि‍दनेश कुमार झा, नरेश कुमार वि‍कल, सुभाष चन्‍द्र यादव, केदार कानन, बलराम, अमर, चन्‍द्रेश, रमाकान्‍त राय 'रमा', कुमार पवन, सि‍याराम झा सरस, रामभद्र, रौशन जनकपुरी, राजेन्‍द्र वि‍मल, रमेश रंजन, सुजीत कुमार झा, जि‍तेन्‍द्र जीत, नारायणजी, शैलेन्‍द्र आनन्‍द, अनमोल झा, उग्रनारायण मि‍श्र कनक, राजदेव मण्‍डल, कपि‍लेश्वर राउत, वीणा ठाकुर, कैलाश कुमार मि‍श्र, देवशंकर नवीन, महाप्रकाश, धीरेन्‍द्र नाथ मि‍श्र, साकेतानंद, सोमदेव, अशोक अवि‍चल, रवि‍न्‍द्र चौधरी, वि‍द्यानाथ झा 'वि‍दि‍त', शि‍वशंकर श्रीनि‍वास, मानेश्वर मनूज, अनलकांत, श्रीधरम, सत्‍यानंद पाठक, मि‍थि‍लेश कुमार झा, नवीन चौधरी, आशीष अनचि‍नहार, वि‍रेन्‍द्र यादव, बेचन ठाकुर, गंगेश गुंजन, मनोज कुमार मण्‍डल, अकलेश कुमार मण्‍डल, संजय कुमार मण्‍डल, भारत भूषण झा, लक्ष्‍मी दास, नीता झा, उषा कि‍रण खान, रामकृपाल चौधरी 'राकेश', वि‍द्यापति‍ झा, ज्‍योत्‍सना चंद्रम, सुस्‍सि‍मा पाठक, शुभेन्‍द्र शेखर, कुसुम ठाकुर, दुर्गानन्‍द मण्‍डल, ज्‍योति‍ सुनीत चौधरी, शंकरदेव झा आ गजेन्‍द्र ठाकुर प्रमुख छथि‍।
ऐ बीछल कथाकारक समूहसँ वि‍लग कि‍छु एहेन कथाकार भेल छथि‍ जनि‍क सृजनशीलतासँ मैथि‍लीकेँ नव गति‍ भेटल। जइमे प्रो. हरि‍मोहन झा, ललि‍त आ राजकमलकेँ राखल जाए। हरि‍मोहनबाबू हास्‍य आ दर्शनसँ समाजक सत्‍यकेँ नाङट करैत इति‍श्री मर्म वा अनुशासि‍त मजाकसँ कएलनि‍। जइसँ हि‍नक गंभीर कथा बि‍म्‍बपर हास्‍य भारी पड़ि‍ गेल आ ओहीमे समाहि‍त दर्शन दि‍स समान्‍य पाठकक धि‍याने नै गेलनि‍। ललि‍त जीक कथामे सम्‍यक समाजक परि‍कल्‍पना तँ भेटैत अछि‍ मुदा समाजक कात लागल वर्गक वि‍वरण स्‍वातीक बून जकाँ कतौ-कतौ भेटैत अछि‍। राजकमल चौधरी प्रयोगवादी कथाकारक रूपेँ प्रसि‍द्ध छथि‍। जौं एकैसम शताब्‍दीक कथा ि‍वकासक चर्च कएल जाए तँ ऐ वि‍धामे संतान रहि‍तौं मैथि‍‍ली बॉझ जकाँ भऽ गेल छलथि‍। सन् २००१सँ २००८ईं. धरि‍क कथा वि‍कासक चर्च करब प्रासंगि‍क नै अछि‍।
सन २००८ईं.क उत्तरार्धमे मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ एकटा बेछप्‍प कथाकार भेटल। ओ मात्र कलमें वा वाचक रूपे नै वरण जीवनक सभ क्षेत्रमे, सम्‍यक चरि‍त्र रखैबला साम्‍यवादी साहि‍त्‍यकार श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल। हि‍नक पहि‍ल कथा भैंटक लावा आ बि‍साँढ़ घर-बाहरमे आ चूनवाली मि‍थि‍ला दर्शन पत्रि‍कामे प्रकाशि‍त भेल। मुदा घर बाहरमे हि‍नक रचनाक भाषामे तोड़-मरोड़, उनटा-पुनटा आ काट-छाँट सेहो कएल गेल, जइसँ भाषा-प्रदूषणक गंधसँ गनहा गेल। मैथिलीक किछु तथाकथित कथाकार-कवि हिन्दीक शब्द घोसिया-घोसिया कऽ मैथिलीकेँ प्रदूषित करैत रहल छथि, प्रायः जगदीशजीक खाँटी मैथिली हुनका लोकनिकेँ नै अरघलनि। मुदा तत्‍पश्‍चात वि‍देहक सौजन्‍यसँ हि‍नक प्रति‍पाद्य कथा बि‍साँढ़ वास्‍तवि‍क रूपरेखाक संग छपल। हम सेहो पढ़लौं। अनेक पाठकक संग श्रुति‍ प्रकाशनक नजरि‍ सेहो पड़लनि‍ आ तखन अवि‍कल रूपमे ई संग्रह छपल।
सन् २००९ईं.मे वि‍देहक संपादक श्री गजेन्‍द्र ठाकुरक प्रयाससँ श्रुति‍प्रकाशन दि‍ल्‍लीक अधि‍ष्‍ठाता श्री नागेन्‍द्र कुमार झा आ हुनक साहि‍त्‍य प्रेमी धर्मपत्नी श्रीमती नीतू कुमारी हि‍नक पहि‍ल कथा संग्रह गामक जि‍नगी प्रकाशि‍त कएलनि‍। संयोगसँ ऐ पोथीक प्रारंभ भैंटक लावा कथासँ कएल गेल।
एक सए पैंसठ पृष्‍ठक ऐ संग्रहमे १९ गोट कथा संग्रहीत अछि‍। आमुख देसि‍ल वयनाक सि‍द्धहस्‍त कथाकार सुभाष चन्‍द्र यादव जी लि‍खने छथि‍। जेना-तेना सुभाषबाबू कथाकारक महि‍मामंडन तँ कएलनि‍, परंच ऊपर मोने आ हि‍यासँ लि‍खल आमुखमे भि‍न्नता होइत अछि‍, जेकर ि‍नर्णए प्रबुद्ध पाठकपर छोड़ि‍ देल जाए।
बंगभाषीकेँ कोलकाता सन महानगर, मागधीकेँ पाटलि‍पुत्र ऐति‍हासि‍क शहर, भोजपुरी लोकनि‍केँ गोरखपुर आ वाराणसी सन धाम भेटल। मैथि‍ली भाषीकेँ गनि‍-गुथि‍ कऽ दरि‍भंगा आ सहरसा सन ग्राम्‍य नगरी। तखन भाषाक शहरीकरण आ आदान-प्रदानक सपनों देखब उचि‍त नै। भारतवर्ष जौं गामक देश तँ मि‍थि‍ला महागामक भूि‍म। एक वर्ष बाढ़ि‍ तँ दोसर वर्ष सुखाड़। कोनो उद्योगक साधन नै, शि‍क्षा, स्‍वास्‍थ्‍य आ सड़क सन मौलि‍क समस्‍या मकड़जालमे ओझराएल अछि‍। परि‍णाम पलाएन अर्थात पड़ाइनक रूप लऽ रहल। भोजपुरी लोक सेहो पलाएन कएलनि‍ परंच अपन भाषाक संग, दृष्‍टि‍कोण नीक लगैत अछि‍। अपन देशकेँ के कहए माॅरीशस आ फि‍जी धरि‍ अपन बोली धेने छथि‍।
अपन जीवन-आचारकेँ हाइटेक बनेबाक क्रममे मैथि‍ल संस्‍कृति‍क दोहन भऽ रहल अछि‍। आनक कोन कथा? कि‍छु एहेन साहि‍त्‍यकार भेलाहेँ जि‍नका साहि‍त्‍य आकादमी पुरस्‍कार तँ मैथि‍ली भाषाक लेल भेटल मुदा हुनक परि‍वारक नेना-भुटका गलति‍योसँ मैथि‍ली नै बजै छथि‍। कथा जगतक प्रयोगवादी शि‍ल्‍पी राजकमल जीक कथा रीति‍-प्रीति‍क समागमसँ ओत-प्रोत छन्‍हि‍। ललका पाग, साँझक गाछ, कादम्‍वरी उपकथा सन बहुत रास कथामे सि‍नेहक मर्मस्‍पर्शी चि‍त्रण कएल गेल अि‍छ। परंच कतौ-कतौ राजकमल जी सेहो भटकि‍ कऽ अनैति‍क प्रेमकेँ चलन्‍त साहि‍त्‍यक रूप देलनि‍। जेना घड़ी शीर्षक कथा कोनो रूपेँ समाजमे नीक संदेशक वाहक नै भऽ सकैत अछि‍। ऐमे उल्‍लेख तँ समाजक एकात लागल जहूरनीक कएल गेल परंच की अनुशासि‍त सि‍नेहक प्रदर्शन राजकमल जी कऽ सकलाह? जखन प्रांजल आ प्रवीण कथाकारक ई दशा तँ आनक वि‍षएमे की लि‍खल जाए।
एक अर्थमे कि‍छु जनवादी साहि‍त्‍यकार अपन कथा सोतीमे मैथि‍ली पाठककेँ आनन्‍दि‍त अवश्‍य कएलनि‍ ओइमे प्रभाष कुमार चौधरी, रामदेव झा आ कांचीनाथ झा कि‍रणक संग-संग धूमकेतु, कुमार पवन, कमला चौधरी आ डॉ. शेफालि‍का वर्माकेँ राखल जा सकैछ।
जौं सम्‍पूर्णताक चर्च करी तँ जगदीशबाबूकेँ एकैसम शताब्‍दीक सर्वश्रेष्‍ठ कथाकार माननाइ यथोचि‍त। कि‍एक तँ ओलती आ चि‍नुवार बि‍सरैबला मैथि‍ली प्रेमीकेँ भैंटक लावा, बि‍साँढ़, पीरार, करीन आ मरूआसँ परि‍चए करौलनि‍। मैथि‍ली भाषाकेँ नव-नव शब्‍द देलनि‍। पाग पहि‍र कऽ सभामे आगाँ बैसैबला लोकसँ लऽ कऽ मुसहर धरि‍क प्रति‍ सम्‍यक सि‍नेह हि‍नक कथाक वि‍शि‍ष्‍टता अछि‍। जगदीश जी समाजक ओइ वर्गसँ अबै छथि‍ जकरा अखन धरि‍ मंचपर आसन ि‍दअमे हमरा सभकेँ संकोच होइत अछि‍। परंच कतौ हि‍नक कथामे व्‍यक्‍ति‍गत द्वेष आ पूर्वाग्रहक प्रदर्शन नै। जगदीश जी समाजक आगाँक पि‍रहीकेँ सम्‍मानि‍त करैत सम्‍यक ज्‍योति‍ जगेबाक आश अपन कथा सभमे रखने छथि‍।
गामक जि‍नगी'क पहि‍ल कथा भैंटक लावा मि‍थि‍लाक बाढ़ि‍क दशाकेँ केन्‍द्रि‍त कऽ कऽ लि‍खल गेल अछि‍। भैंटक लावाक संदर्भमे हमरा सबहक गाम-गाममे एकटा कहबी चर्चित छैक- “बड़-बड़ जनकेँ भैंटक लावा पदनोकेँ मि‍ठाइ।‍” ऐसँ प्रमाणि‍त होइछ जे सोती, मुरदैया, पोखरि‍, धनखेतामे जलमग्‍नक परि‍णाम स्‍वरूप जनमल भैंटक लावा-नि‍घृष्‍ठ भोज्‍य पदार्थ थि‍क। भोज्‍य पदार्थ मात्र समाजमे रहि‍तौं यायावरी जीवन व्‍यतीत करैबला लोक लेल। ऐ कथाकेँ पढ़ि‍ एकर प्रयोजन कनेक वि‍स्‍मि‍त करएबला परंच उपयोगी लागल। कथा मुसना ओकर अर्द्धांगि‍नी जीबछी आ दुनू बच्‍चाकेँ बाढ़ि‍क जीवन दशासँ जोड़ि‍ बि‍‍म्‍बि‍‍त कएल गेल अछि‍। अपना ऐठामक लोक संतान प्राप्‍ति‍क लेल जीबछ घाटमे मनौती मनैत अछि‍। जौं पुत्र लेलक तँ जीबछा आ जौं बेटी आएलि‍ तँ जीबछी। ऐ जीबछीक तँ नेनकाल नै देखाओल गेल, ओहेन मॉगल-चाॅगल छथि‍यो नै मुदा साहस देखनुक। मुसनाकेँ सर्पदंशक काल जीबछी साहस नै छोड़ली। झाड़-फूक सन भ्रांति‍केँ ऐ कथामे देखाओल गेल परंच परि‍णाम सकारात्‍मक- “मुदा ढोढ़ सॉप कटने रहए तेँ बि‍ख लगबे नै‍‍ केलै।‍” ऐसँ रचनाकारक ग्राम्‍य जीवनक मनोदशाकेँ परि‍वर्तन करबाक उद्देश्‍य प्रमाणि‍त होइत अछि‍।
श्रीकान्‍त सन गामक छड़ीदारकेँ बाढ़ि‍ उद्देश्‍य पूरा नै करए देलक। जौं अन्न रहि‍तनि‍ तँ सूदि‍खोरी चैलतनि‍ मुदा अपने खएबाक लेल नै तँए आगाँ की सोचथि‍.....?
जीवछी हुनके आश्रममे कुटौनी करति‍ छलीह, श्रीकान्‍तबाबूकेँ सोगाएल देख जीबछीक कथन- “एक्केटा बाढ़ि‍मे चि‍न्‍ता करै छथि‍ कक्का, कनी नीक की कनी अधलाह, दि‍न तँ बि‍तबे करतनि‍।‍” मे साहसक संग-संग यथार्थबोध होइत अछि‍। अभावक नाहमे सवार व्‍यक्‍ति‍केँ भासि‍ जएबाक कोनो चि‍न्‍ता नै, ओ तँ ई सोचि‍ कऽ जल-यात्रा करैत अछि‍ जे अथाह पानि‍मे नाह डूबबे करत। तँए हेलबाक कला पहि‍ने सीख लेल जाए। दीन-हीन आ साधन वि‍हीन मानवीय जीवनमे वि‍चलन नै होइत छैक। मुसना अर्थात मकसूदन मूसक तीमन आ धुसरी चाउरक भातमे जीबछीक सि‍नेह आ दुखनीक आश देख अमृत मानि‍ कऽ ग्रहण कऽ लेलक। रातुक कोनो चि‍न्‍ता नै जीबछी साक्षात आर्या बनि‍ ठाढ़ छलीह- “ककरो कि‍छु होउ जकरा लूरि‍ रहतै ओ जीबे करत।” बाढ़ि‍सँ सभ कि‍यो तबाह कमला‍ महरानीकेँ दीप बाड़ि‍ अपन प्रभाव कम करबाक प्रार्थना सभ ि‍कयो करैत छल। यएह थि‍क मि‍थि‍लाक गामक जीवन केर मनोवैज्ञानि‍क रहस्‍य। हम-सभ भगवतीक आगाँ बलि‍ प्रदानो कऽ सकैत छी तँ कखनो प्रकृत पूजन सेहो। जखन पानि‍ कम भेल तँ सभ कि‍यो अपन डूबल खेत-पथारक गलल डाॅटकेँ गनऽ मे लागि‍ गेलाह मुदा जीबछीक पारखी दृष्‍टि‍ भैंटक कोखि‍केँ देखबामे मग्‍न छल। श्रीकान्‍तबाबूसँ आज्ञा लऽ कऽ हुनक खेतसँ भाँटि‍केँ उजाड़ि‍ अन्न नि‍का लऽ लगलीह। लावाक सुगंधसँ जीबछीक कल्‍पनामे चारि‍ चान लागि‍ गेल बाढ़ि‍केँ जीवनक उपहार मानि‍ कमला-कोसीकेँ धन्‍यवाद दि‍अ लगलीह। ऐ प्रकारक सोचसँ कि‍यो वि‍स्‍मि‍त भऽ सकैत अछि‍- बाढ़ि‍ कखनहुँ लाभकारी कोना होएत? मुदा जीबछीकेँ डूबैक लेल तँ कि‍छु रहबे नै करए धास-पातक घर फेर बनि‍ जाएत।‍ महींस नहि‍यो तँ गाइये कीनबाक योजना बनाबऽ लगलीह।
स्‍वाभावि‍क अछि‍ कर्मठ लोककेँ दुआरि‍ ताकए नै पड़ैत अछि‍। कथाक सभसँ नीक प्रसंग लागल जे पहि‍लुक भैंटक चाउर श्रीकान्‍तबाबूकेँ देबामे जीबछीक दृष्‍टि‍कोण। गरीब कखनहुँ वि‍श्‍वासधात नै कऽ सकैत अछि‍। संग-संग कथाक आकर्षण घटना चक्रक क्रममे जखन ठेंगी मुसनाक भरि‍ पोख खून पीब लेलक तखन मुसनाक शंकाग्रस्‍त हएब जे जीबछी हुनक मरबाक कामना करैत अछि‍ कि‍एक तँ दोसर पुरूष भेंट जेतनि‍। समाजक दाबल वर्गमे नारी शोषण नै‍, कि‍एक तँ नारी पुरूषक संग-संग जीवनक वाहनकेँ गति‍ देवामे गति‍शील रहैत छथि‍। ओ दोसरो वि‍वाह करबाक लेल स्‍वतंत्र छथि‍। आगाँक जाति‍ तँ नारीकेँ आब अधि‍कार दि‍अ लागल पहि‍ने तँ अो अंगनक लक्ष्‍मी मात्र छलीह। ऐ कथाकेँ पढ़बाक क्रम सोचऽ मे अबैत अछि‍ जे अागाँ कि‍नका मानल जाए मुसना सन मुसहरकेँ वा हमरा सन......।
रचनाकारक एकटा आर दृष्‍टि‍कोण नीक मानल जाए जे समाजक दूटा अलग-अलग वर्गक कथा कहि‍तहुँ वर्ग संघर्ष नै वरन् सि‍नेहि‍ल भाव। श्रीकान्‍त लावा तँ स्‍वीकार करै छथि संगहि‍ जीबछीकेँ नव-वस्‍त्रक संग वि‍दाइ सेहो दै छथि‍ ऐमे सामाजि‍क सामंजस्‍यकेँ बढ़ेबाक प्रयास देखएमे आएल।‍
ऐ कथा संग्रहक दोसर कथा “बि‍साँढ़” भैंटक लावाक वि‍परीत सुखारक स्‍थि‍ति‍क मध्‍य घुमैत अछि‍। प्रकृति‍ प्रदत्त वि‍पदामे सभसँ बशी प्रभावि‍त समाजक पेटकान लाधल वर्ग रहै छथि‍। कथाक नायक डोमन चारि‍ बर्खक रौदीसँ तप्‍त छथि‍। हि‍नका खेत-पथार नै। अपन कनि‍याँ सुगि‍याक संग मेहनति‍ मजूरी कऽ कऽ कहुना जीवन वसर करैत छलाह मुदा जखन गि‍रहस्‍ती समाप्‍त भऽ गेल तँ नीक-नहाँति‍ गुजर करबाक कल्‍पनो असंभव। परंच सुगि‍या तँ छथि‍ मैथि‍ल नारी, ओइ समाजक नारी जतए पुरूषसँ बेसी परि‍वारक भार नारि‍येपर रहैछ। हाि‍र कोना मानतीह। डोमनकेँ दुखि‍त देख नूतन ओि‍रयान करबाक लेल अद्यत भऽ गेली। बड़का-बड़का मजाहन जेना नेङरा काका अपन महाजनी बन्न कऽ लेलनि‍। ओ अपन झाँपल अन्न-पानि‍केँ अगि‍ला साल उच्‍च भाउपर बेचबाक तैयारी कऽ रहल छथि‍। गाए-बरदकेँ मरनासन्न देख कि‍सान तँ अरण्‍यरोदन करैत अछि‍ मुदा गि‍द्ध प्रसन्नचि‍त्त मुक्‍त गगनमे मॅडराइत रहैछ, यएह हाल छन्‍हि‍ बौकी काकीकेँ, अपन महाजनीक लेल राखल चाउरकेँ मातृनवमीमे नि‍कालतीह। हाय रे हमरा सबहक संस्‍कृति‍ नेना भूखसँ कल्हाइत छथि‍ मुदा मातृनवमीमे मरल पूर्वजक स्‍मृति‍मे अरबा चाउर पंडि‍त केर पातपर देल जाएत। सरि‍पहुँ यथास्‍थि‍ति‍ जे हुअए परंच दुर्गापूजा, कोजगरा, दीवाली, गोवर्धनपूजा, भरदुति‍या छठि‍‍ आदि‍केँ मि‍थि‍लाक संस्‍कृति‍ पर्व मानि‍ रचनाकार सम्‍यक दृष्‍टि‍कोणक परि‍चय देलनि‍। जगदीशजीक जन्‍म एहेन परि‍वार वा वंशमे भेल जइठाम कोजगरा मनाएब असंभव मुदा ब्रह्मण आ कर्ण कायस्‍थ सन अपेक्षाकृत कम गणनाक जाति‍केँ सेहो आत्‍मसात् कऽ लेलनि‍। ऐसँ पूर्व कोनो ब्राह्मण साहि‍त्‍यकार गोवर्धनपूजा वा सलहेसपूजाकेँ मि‍थि‍लाक पावनि‍ मात्र मंचेटा पर मानने हेताह।
कथाक इति‍श्री सुखारक मध्‍य एहेन फलक शोधक रूपमे कएल गेल जकर वि‍षयमे बहुत कम लोक सोचने हेताह। सुक्‍खल पोखरि‍केँ डाँड़ भरि‍ कोरि‍ उज्‍जर-उज्‍जर अल्हुआ सन फर देख सुगि‍याक भुक्‍खल आत्‍मा जुरा गेल ओतऽ पुरान व्‍यथाक मध्‍य वर्त्तमान सुखद अनुभूति‍क तुलना करए लगलीह वि‍कल जीक गजल- “शेषांशपर रोदन करू गीत उदि‍त भानपर....।” उपर बि‍साँढ़ आ नीचाँ सि‍ंगही माछ जौं वनस्‍पति‍ शास्‍त्री रहती छल तँ पुरस्‍कार नि‍श्चि‍त, मुदा गरीबक शोध तँ पेट खाति‍र होइत अछि‍, एकरा अपन समाजमे मोजर नै, आनठाम के देत।
धनि‍या आ पि‍चकुनक प्रेम आ वैवाहि‍क जीवनमे भैंटक लावा वा बि‍साँढ़ सन एकटा तेसर उपेक्षि‍त फल- पीरारक फड़ सि‍नेह वृष्‍टि‍ करैत अछि‍।
जगदीश जीक कथा सभमे बि‍म्‍ब वि‍स्‍मयकारी, शि‍ल्‍प समाजक जीवन शैलीक वि‍षम परि‍पेक्ष्‍यक वि‍वेचन करैत छन्‍हि‍, मुदा एकटा कमी जे देखल गेल ओ अछि‍ अलंकार आ हास्‍यक अभाव। वास्‍तवमे ऐ कथाक प्रति‍ आकर्षण ओकरामे भऽ सकैत अछि‍ जेकर जीवन अछोप हुअए। जौं पातपर भात नै तँ चटनीक कोन प्रयोजन। हि‍नक कथा ओइठामक समाजकेँ हि‍लकोरि‍ देलक जतए धरि‍ पंडि‍त हरि‍मोहन झा सन मॉजल साहि‍त्‍यकार कहि‍यो नै पहुँच सकलथि‍, आनक कोन गप्‍प?
“अनेरूआ बेटा” कथामे एकटा संतानहीन दंपति‍केँ दोसरक फेंकल पूतक पोषण मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे क्रांति‍वादकेँ आगाँ बढ़एबाक प्रयास मानल जाए। गंगाराम आ भुलि‍याक वरदपूत मंगल कथानायक छथि‍। ओ मात्र साक्षर भेला उत्तर चाहक दोकानदार बनि‍ गेलाह। मंगल, धर्ममाता आ पालक पि‍ताक मृत्‍युक पश्चात अपन पेटसँ लड़ैत-लड़ैत कोना साहि‍त्‍यकार भऽ गेलथि‍ संभवत: जगदीशजी लेखनी उठबैसँ पहि‍ने नै सोचने हेताह।
एकटा प्रसंग कनेक अनसोहाँत लागल जे गंगारामक स्‍त्री अबोध मंगलकेँ दुग्‍धपान करएबाक लेल अपन पि‍ति‍औत दि‍यादि‍नी कबूतरी लग पहुँचै छथि‍। कबूतरी वि‍स्‍मि‍त नै भऽ कऽ भुलि‍यासँ कहलनि‍ जे हि‍नक बुढ़ाढ़ीक नेना कतेक पोरगर। मातृत्‍वक अवधि‍ नौ मासक होइत अछि‍ जखन पहि‍ने भुलि‍यामे कोनो एहेन लक्षण नै तँ कबूतरीक ऐ प्रकारक संवाद रचनामे कल्‍पनाशीलता भरबाक असफल प्रयास मात्र मानल जाए। भऽ सकैछ कथाकार कबूतरीकेँ हँसी-ठठाबला प्रवृत्ति‍क कलाकार बनबैत लि‍खने होथि‍।
मंगलकेँ साहि‍त्‍यकार बनेबामे रूपचन सन खि‍सक्करक बड़ पैघ हाथ छल। कहि‍यो राजा-रानी तँ कहि‍यो रानी-सरंगा तँ कहि‍यो रजनी-सजनीसँ लऽ कऽ गोनू झा, डाकक कथा, अल्‍हा रूदल, दीना-भदरी, लोरि‍क आ सलहेसक कथाक संग-संग गामक लोकक मुँहसँ सेहो सुनि‍-सुनि‍ कऽ चाह वि‍क्रेता मंगल कथाकार बनि‍ गेलथि‍‍। ऐ प्रकारक कथा नाट्य रूपमे “भफाइत चाहक जि‍नगी”मे शेखरजी लि‍खने छथि‍। समग्र समाजक प्रति‍ सम्‍यक दृष्‍टि‍कोण रखैत अर्थनीति‍केँ रचनाक मूल वि‍षय वस्‍तु बनएबामे जगदीश जीक कोनो जोड़ मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे नै भेटत। कलान्‍तरमे वकील साहेबक पुत्री सुनएना मंगलसँ प्रभावि‍त भऽ हि‍नका अपन जीवन संगी बनएबाक लेल आतुर भऽ गेली। ऐ ि‍नर्णएमे वकील साहेब सुनयनाक संग छथि‍। कथाक अंत धरि‍ ि‍नष्‍कर्ष नै नि‍कलि‍ सकल मुदा एकटा प्रश्न हमरा सबहक माथपर रचनाकर लादि‍ देने छथि‍- ओ अछि‍ जाति‍, धर्मसँ ऊपर उठि‍ कऽ आत्‍मि‍क मि‍लनक आधारपर वि‍वाह करबाक ि‍नर्णए। भऽ सकैत अछि‍ जे कथाकार अपन व्‍यक्‍ति‍गत जीवनमे एहेन क्रांति‍कारी कदमक वि‍रोधी होथि‍, मुदा हम अपन छठम ज्ञानेन्‍द्रि‍य अनुभूति‍क आधारपर कहि‍ सकै छी अगि‍ला पचास वर्षक अंदर हि‍नक रचना आर्यावर्त्तमे क्रांति‍क सूत्रपात करैत बदलैत दृष्‍टि‍कोणक प्रत्‍यक्षदर्शी रहत।
समग्र ग्राम्‍य जीवन शैलीकेँ छुबैत एकसँ बढ़ि‍ कऽ एक कथाक संग्रह “गामक जि‍नगी” मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल बेछप्‍प संकलन थि‍क।
“डीहक बटवारा”मे शहरी जीवनकेँ जीबि‍‍ अंति‍म अवस्‍थामे पि‍तृभूमि‍केँ अपन शेखी ओ शानक भूमि‍ बनएबाक अवि‍रल प्रस्‍तुति‍ कएल गेल अछि‍। गामकेँ खराब शहरी लोक कऽ दैत छथि‍। “बाबी”कथामे बाबी मुरूख रहि‍तहुँ गामक पथ प्रदर्शक महि‍ला छथि‍। छठि‍मे एकटा छोट नेना पूजासँ पूर्व पाकल केरा खा गेल सभ ओकरा मारए लागल मुदा बाबी सि‍नेह देखबैत भगवानकेँ श्रद्धासँ प्रसन्न करबाक प्रयास करए लगलीह। आडंवरपर मूर्ख महि‍लाक वि‍जयी उद्घोष ऐसँ नीक शि‍ल्‍प कतए-कतए देखाओल गेल। रहमतक माए बाबीसँ खरनाक बासि‍ प्रसाद लऽ संध्‍या अर्घक लेल फल-फूल देलनि‍ आ बाबी हृदेसँ स्‍वीकार कऽ लेलथि‍न। वास्‍तवमे मि‍थि‍ला यएह छल, मुदा कि‍छु छद्म स्‍वार्थी तत्‍व एकरा जाति‍ धर्मक खाधि‍मे ठाम-ठाम खसा देलक। संध्‍या अर्ध्‍यमे रहमतक माए कि‍छु देरीसँ औतीह कि‍एक तँ हटि‍या जएबाक छन्‍हि‍। “कर्म प्रधान विश्व करि‍ राखा”, बाबी हि‍नक ि‍नर्णएसँ सि‍नेहि‍ल छथि‍ कि‍एक तँ भगवान प्रेमक भुक्‍खल, श्रद्धा कि‍यो अखनहुँ प्रकट कऽ सकैत छथि‍।
कामि‍नी कथाक प्रारंभ अर्थक वि‍जय मुदा अंतमे टकासँ कीनल वर द्वारा अर्धांगि‍नीक प्रताड़नासँ भेल। अंतमे प्रश्ने रहि‍ गेल “कामि‍नी कतए गेली?”
राजकमल जीक कथा जकाँ जगदीशजी सेहो प्रश्न छोड़ि‍ इति‍श्री कएलनि‍। प्रयोगवादि‍ताकेँ मैथि‍लीक धरातलपर दोसर बेर प्रयोग, मुदा राजकमलजी सँ नीक रूपेँ कएलनि‍। गामक जि‍नगीक कथाकार सभसँ पैघ जे वस्‍तु मैथि‍लीकेँ देलनि‍ ओ थि‍क नव-नव शब्‍द। ऐ प्रकारक शब्‍द कोनो अकाशसँ नै खसल, शोषि‍त समाज आ अगि‍ला पाति‍क गरीब समाजमे एखनो बाजल जाइत अछि‍, मुदा मैथि‍ली साहि‍त्‍यकारक रचना सभमे लुप्‍त।
मात्र कि‍रणजी, हरि‍मोहन झा, सोमदेव आ शेखरजी सन कि‍छु कथाकारक कि‍छुए रचनामे एहेन प्रकार शब्‍द भेटैत अछि‍। मुदा ओ सभ शब्‍द ओतेक रूपक नै जतेक जगदीशबाबूक रचनामे ठाम-ठाम प्रयोगमे अबैत अछि‍।
आब प्रश्न उठैत अछि‍ जे मैथि‍ली साहि‍त्‍यक सर्वश्रेष्‍ठ कथा संग्रह “गामक जि‍नगी”केँ कि‍एक नै मानल जाए। नि‍:संदेह हरि‍मोहन झा, कि‍रण, राजकमल, धूमकेतु, ललि‍त आदि‍ मैथि‍लीक सि‍द्धहस्‍त कथाकार छथि‍। हरि‍मोहनबाबू हास्‍य, दर्शन ओ मर्मक त्रि‍वेणीसँ कथा सभकेँ बोरैत सभसँ जनप्रि‍य कथाकार मानल गेलाह, मुदा हि‍नक कथामे हास्‍य समागमक क्रममे गंभीर लेखन सुशुप्‍त भऽ गेलनि‍। चर्चरीमे जौं गंभीरता अछि‍ तँ ओ मात्र समाजक अगि‍ला लोकक प्रति‍नि‍धि‍त्‍व करैत छन्‍हि‍, अगि‍ला लोक साहि‍त्‍यक अधि‍कारी तँ छथि‍, मुदा भाषासँ दूर भऽ रहल छथि‍। समाजक अंति‍म पाँति‍ धरि‍ हरि‍मोहनजी अधि‍कांश कथामे नै पहुँचलाह। कि‍रण जीक कि‍छु कथा जेना मधुरमनि‍ ऐ रूपक छन्‍हि‍, मुदा जगदीश जीक कथाक दर्शनसँ हुनको तुलना केनाइ उचि‍त नै। फनीश्वरनाथ रेणु जौं मैथि‍लीमे लि‍खतथि‍ तँ स्‍थि‍ति‍ थोड़े फराक भऽ सकैत छल। रेणुजी उपन्‍यासकारक रूपेँ हि‍न्‍दीक प्रेमचन्‍द्रक पश्चात सर्वश्रेष्‍ठ गद्यकार मानल जा सकैत छथि‍ मुदा कथाकारक रूपेँ हमरा सबहक जगदीश जीसँ आगाँ नै। पाठक जौं आत्‍मीय भऽ कऽ “गामक जि‍नगी” पढ़थि‍ तँ निश्चि‍त रूपेँ हम कहि‍ सकैत छी जे ई पोथी मैथि‍ली साहि‍त्‍यक एखन धरि‍क सर्वश्रेष्‍ठ कथा संग्रह थि‍क।

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