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Sunday, April 8, 2012

अनलकान्त (गौरीनाथ) सँ साक्षात्‍कार :: मुन्‍नाजी


हिन्दी-मैथिली साहित्यक सेतु सदृश बहुआयामी व्यक्तित्वक धनिक युवा रचनाकार श्री गौरीनाथसँ युवा विहनि कथाकार मुन्नाजी द्वारा भेल गप्प-सप्पक प्रमुख अंश :-

मुन्नाजी: गौरीनाथजी नमस्कार। सर्वप्रथम भारतीय भाषा परिषद, कोलकाताक सम्मानक लेल बधाइ। अहाँक साहित्यिक क्रियाकलापक मोटामोटी दू दशक बीत रहल अछि, अपन प्रारम्भिक रचनात्मक सक्रियताक पूर्ण जनतब दी।

अनलकान्त (गौरीनाथ): अहांक ऐ‍ हार्दिकताक लेल धन्‍यवाद। अपन लेखनक मूल्यांकन अपने नै कऽ सकै छी।

मुन्नाजी: अहाँक सृजन-रथ कथायात्रासँ प्रारम्भ भेल छल, प्रारम्भसँ एखन धरि अपन कथायात्राकेँ कोन दृष्टिये देखै छी। ऐ बीच कथा आ कथानकमे कोन बदलाव देखबामे आएल?

अनलकान्त (गौरीनाथ): अपन कथायात्राक बारेमे हम पहिनहि कहलौं जे स्‍वयं किछु नै कहब। एकर सही मूल्‍यांकन दोसर लेखक, पाठक वा आलोचक कऽ सकै छथि। ओना मैथिलीमे आलोचक तँ छथिये नै तहन सहृदए पाठक आ दोसर लेखक एकर निर्णायक भऽ सकै छथि। ओना मैथिली कथामे बदलावक गप्प कहबै तँ समैक जे दवाब छै से तँ अबै छै मुदा जतेक एबाक चाही से हमरा मैथिली साहित्यमे नै देखबामे अबैए।

मुन्नाजी: अहाँ अपनाकेँ साम्यवादी रूपेँ स्थापित करबाक प्रयास केलौं। सातम-आठम दशकमे उठल साम्यवादी विचारधाराक हो-हल्लाक बाद एहेन कोनो विचारधारा मैथिली मध्य बनि सकल?

अनलकान्त (गौरीनाथ): नै हमरा ई गलत लगैए जे सातम आकि आठम दशकमे हो हल्ला भेल। बाबा नागार्जुन जखन रचनात्मक शुरुआत केलनि आजादीक पूर्वे, ओइ समैक जे हुनकर लेख देखबनि ओ जे राजघरानाक विरुद्ध प्रश्न उठेलनि, से की छल? ओ किसान आन्दोलन, कम्यूनिष्‍ट आन्दोलनक समर्थक तइ जमानासँ छलाह। जहिया मार्क्सवादी विचार नै छलै तहिया न्‍यायक प्रश्न नै छलै की? हँ, सातम-आठम दशकमे नक्सलबाड़ी आन्दोलनक बाद मैथिलीमे अग्नि पीढ़ी आगू भऽ एलै आ तहिया जे सामाजिक दवाब छलै- ओइमे रामलोचन ठाकुर, अग्निपुष्प, कुणाल, नरेन्‍द्र आदि हस्‍तक्षेप कएलनि। हँ ओ एहेन दवाब छलै जाइमे जे ओइ धाराक समर्थक नहियो रहएबला अनेक दृष्टिसंपन्‍न लेखक ऐ‍ पीढ़ि‍क संग समान धर्मेटा नै, सहमना रूपमे सेहो सोझा अएलाह। आइ आेइ धारामे कुमार पवन, सारंग कुमार, विद्यानंद झा, कामिनी आदि सन अनेक युवा रचनाकार भेटताह।

मुन्नाजी: अहाँ मैथिली-हिन्दी मध्य समान रूपेँ सक्रिय छी, दुनू मध्य की समानता-भिन्नता अनुभव करै छी?

अनलकान्त (गौरीनाथ): एकटा हमर मातृभाषा छी, दोसर हमर रोजी-रोटीक भाषा। हमरा दुनूमे कोनो द्वैध नै बुझाइ अछि।

मुन्नाजी: अहाँ प्रकाशकीय गतिविधि (प्रकाशन आ वितरण)मे सेहो सक्रिय छी। तँ कहू मैथिलीमे श्रेष्ठ रचनाक की स्थिति अछि, पाठकक भेल वृद्धि कते महत्व रखैत अछि?

अनलकान्त (गौरीनाथ): पाठकक मैथिलीमे अभाव भेलैए। १९९९-२०००मे जतेक पत्रिका-किताब बि‍का जाइत छलै आब से स्थिति नै छै।

मुन्नाजी: अहाँ अपना जनतब कहू जे मैथिली पत्रकारिता वा प्रकाशन कतए अछि, ई आर्थिक लाभमे जा सकैए?

अनलकान्त (गौरीनाथ): निश्चित रूपसँ आर्थिक लाभ भऽ सकै छै, ओइ लेल आवश्यक छै पैघ प्रकाशन संस्थाक, जतए पर्याप्‍त पूजी संग व्‍यावसायिक सूझ-बूझ सेहो होइ। हमरा सभकेँ ओते संसाधन नै अछि। हमरा सभकेँ आर्थिक लाभ नै भेल, मुदा घाटामे सेहो नै रहलौं। ओइ रूपमे हम बजारकेँ गलत नै कहै छिऐ। आब हम एक बेर कतौसँ विज्ञापन आनि लेलौं तँ हमरा लाभ भऽ गेल, मुदा तकरा ऐ‍ व्‍यवसायक स्‍थायी भाव तँ नै कहबै? हमसभ किछु खास नै केलौं, एकदम छोट प्रयास अछि हमरा सबहक...

मुन्नाजी: अहाँ अंतिकासँ किछु रचनाकारकेँ बेरा कऽ रखैत रहलौंहेँ, तकर की कारण, विचारधाराक अभाव की रचनाक स्तरक अभाव?

अनलकान्त (गौरीनाथ): हमरा नै कोनो नाओं मोन पड़ैत अछि, जिनका हमसभ बेरा कऽ रखने होइ। अंतिकामे हमरासभ जते लोककेँ छपने छी तकर नाओं नुकाएल नै छै। तकर अलाबे के बारल छथि तकर नाआंे अहीं कहि सकैत छी...

मुन्नाजी: अपन समतुरिया रचनाकारकेँ कतए राखए चाहब, ओइ भीड़ मध्य अपनाकेँ कतए पबै छी?

अनलकान्त (गौरीनाथ): हम अपन समकक्ष सभ रचनाकारकेँ अपनासँ आगू मानै छी। ओइ भीड़मे हम सभसँ पाछू छी।

मुन्नाजी: मैथिली साहित्य बभनौटी (ब्राह्मणवादक) शिकार रहल अछि। मुदा नव सदीमे सक्रिय गएर ब्राह्मण रचनाकारक प्रवेशकेँ अहाँ कोन तरहेँ देखै छिऐ?

अनलकान्त (गौरीनाथ): ब्राह्मणेत्तर जे छथि, हुनका लग भोगल पीड़ा छन्‍हि तँए हुनके स्‍वर सभसँ विश्वसनीय हएत।

मुन्नाजी: अपन अमूल्य समए दऽ उतारा देबा लेल बहुत-बहुत धन्यवाद।

अनलकान्त (गौरीनाथ): अहूँकेँ धन्‍यवाद।

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