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Sunday, April 8, 2012

प्रो. मायानन्द मिश्रक रमनगर कथामे लागल “मुदा”.. रमेश


रमेश

प्रो. मायानन्द मिश्रक रमनगर कथामे लागल मुदा...

माया बाबूक कथा-संसारक फलक व्यापक अछि।
ओ कथाक प्लॉट”क चयनमे माहिर आ आधुनिक छथि। ओ पैघ आ छोट सभ आकारक कथा लिखलनि अछि। कथा लेखनक क्रममे ओ पैघ कालखण्ड देखलनि आ भोगलनि अछि। ओ कएटा प्रसिद्ध कथाक यशभागी बनलाह अछि। ओ कए पीढ़ीक जीवनकेँ देखलनि आ लिखलनि अछि। हुनकर लेखनमे लक्षित वर्ग थिक मध्यवर्ग आ निम्न-मध्यवर्ग आ कौखनकेँ राजनीतिक आ पूँजीपति-वर्ग सेहो।
ओ नव पीढ़ीक अंडा प्रेम”, आधुनिकताक प्रति अति-उत्साह आ पुरान पीढ़ी (पिता)क पुरातनपंथी-नक-घोंकची, दुनूपर व्यंग्य केलनि अछि आ अपना हिसाबे देखार करबाक कोशिश केलनि अछि। दुनू पीढ़ीक सोचमे विकृतिकेँ बीछि-बीछि कऽ देखार करितो, प्राचीन शिक्षक पिताक प्रति सहानुभूति रखितो, नव पीढ़ीक दिक्कत बुझितो, आधुनिक आ प्रगतिशील सोचकेँ आत्मसात् नै कऽ सकलाह अछि। बेटाक नोकरीक लिलसामे मंत्रीक अभिनन्दनलिखएबला प्रोफेसरक दुर्दशाक खिस्सा मायानन्द मिश्रेटा लि‍ख सकैत छलाह। लक्ष्मीक आगू सरस्वतीक नत्-मस्तक हएब आ राजनीतिक समक्ष योग्यता, कला-संस्कृतिक पराजयक बोध मायाबाबू करौलनि। मुदा प्रोफेसरक विवशताक आगूक चरण छल- प्रोफेसरक विद्रोह- भाव आ संघर्षशीलता जे गुरु भइयो कऽ शिष्यक समक्ष प्रदर्शित नै कऽ पबैत छथि। पाठककेँ ई कथाकारोक वैचारिक सीमा बुझा सकैत अछि।
अपन भैरवकथामे एकटा युवा कविकेँ एकटा एम.एल.ए.क उप-ग्रह” (ओकर नारा सर्जकक रूपमे) चित्रित केलनि अछि मायाबाबू आ ओकरा विकृत यथार्थक स्थितिमे, ओही रूपमे छोड़ि, दुनूकेँ देखार करितो, यथास्थितिवाद लग ठमकि जाइत छथि। यएह भैरव” “माध्यम नामक कथामे बीडिओक भैरव” (महादेवक भैरव) बनि कऽ अबैत अछि।
भैरवमे युवा-कवि माध्यमबनि कऽ अबैत अछि आ माध्यममे बीडिओ साहेबक चम्मच (भैरव) बनि कऽ अबैत अछि। दुनू कथा, खलनायकगण (मुख्य, गौण आ बिचौलिया) केँ देखार करितो जनहितमे उपयोगी नै भऽ कऽ मात्र साहित्य-हितमे उपयोगी भऽ पबैत अछि, जे कला, मात्र कलाक लेल भऽ कऽ रहि जाइत अछि।
कथाक उद्देश्य मात्र विकृतिक वा संस्कृतिक चित्रण टा नै होइत अछि। चित्रणकेँ समाधान-संकेतक चासनीसँ बोरबाक कला चाही। जइ कथाकेँ कथाकार जनमानसक संग जोड़ि पबैत अछि, से कथा चिरायु भऽ पबैत अछि।
नमकहराम” (जे कि निमकहरामहेबाक चाहैत छल)मे चौठियाकेँ अगुरवानबना कऽ सफलतापूर्वक परसल गेल अछि। मायाबाबूक शिल्प-शैली तँ कमाले अछि। ओ व्यंग्यात्मक शीर्षक चुनैत छथि आ ताही भाषा-शैलीक उपयोग करैत छथि। व्यापारी वर्ग द्वारा आम जनताक प्रति कएल गेल निमकहरामीक चित्रण नीक जकाँ करैत सभ प्रकारक दुरभिसन्धिकेँ देखार करैत छथि। ई व्यापार तकनीक, व्यापार-समझौता, कालाबजारीक बीजमंत्र पाठक भये प्रकट कृपालामे खुबे पढ़ैत अछि। बोगलाजीक मृत्यु-महत्ताक सजीव वर्णन करितो कथाकार बोगलाजीक शार्टकट रस्तासँ महा-उत्थानक जे अन्तर्कथा कहैत छथि- सएह कथाक प्राण थिक। व्यंग्यात्मक टोन पाठककेँ बोरहेबासँ बचबैत अछि।
तहिना दीन दयालाराजनैतिक कुचक्र, मंत्री-मुख्यमंत्री, एम.एल.ए.-हाकिमक दुरभि संधि, भ्रष्टाचार-आवरण, योजना, ड्राइंग रूम मैनेजमेंट, पी.ए. टाइप लोकक पी.ए. गीरी आदि नव मुदा घृणित दुनियाँसँ मैथिली साहित्यकेँ परिचित करबितो, ओइ दुनियाँक प्रखर विरोध कथाकारसँ नै भऽ पबैत अछि। फेर कौशल्या हितकारीबनितो स्वास्थ्य-मंत्रीक इस्तीफामात्र मूक-विरोध संकेतित कऽ पबैत अछि आ एकटा पड़ाइन-भावक प्रदर्शन कथान्तमे होइत अछि। कौशल्याक शील-हरण स्थायी-विद्रोहक सृष्टि नै कऽ पबैत अछि आ कएटा गर्भपाती क्रान्ति जकाँ शिथिल इतिहास दोहरा जाइत अछि।
उपर्युक्त कथा सबहक प्रकाशन-कालो आ आइयो, संक्रान्तियेकाल थिक। भारतीय सामाजिक आ राजनैतिक-व्यवस्था विकृतिक पराकाष्ठापर अछि आ समाज लहालोट भऽ रहल अछि। मुदा संगहि-संग विकृत-चेतना, सु-संस्कृत चेतना, विकृतिक प्रति जनमानसमे घृणा-भाव आ चेतन-लोकमे विद्रोह-भाव, सभ किछु एक्के संग अस्तित्वमे अछि आ विचारधाराक संघर्षक श्रृंखला सु-स्पष्ट अछि। एहना स्थितिमे कला-चातुर्यसँ परिपूर्ण सक्षम कथाकारक दायित्व थिक जे यथास्थितिपर आनि कऽ कथा, पात्र वा पाठककेँ नै छोड़थि। हुनका नकारात्मक विकृतिक चित्रणमे अपन ऊर्जा नै खपा कऽ सकारात्मक बाट, नकारात्मक विकृतिक लहासक बीचसँ निकालबाक इमानदार आ श्रमपूर्ण प्रयास करबाक छलनि। सकारात्मक चेतनाकेँ ऑक्सीजन देबाक काज साहित्यकारे टा करैत छथि। शेष संवर्गकेँ विधात्मक सीमा होइत छन्‍हि।
मायाबाबूकेँ समस्त सामाजिक आ राजनैतिक विकृति बुझल छन्‍हि। हुनका पैघ दुनियाँसँ परिचए छन्‍हि। ओ अपना-आपकेँ मैथिली कथा-साहित्यक त्रिपुण्डकएकटा पुण्डमानलनि अछि। मुदा ललित-राजकमलक विद्रोह-चेतना वा समकालीन सोचक टन-टन आवाज हिनका कथा साहित्यसँ लुप्तप्राय अछि। से आश्चर्यजनक आ सत्य सेहो अछि। अपन कथा सभमे प्लॉटक स्तरपर नव आ आधुनिक लगितो, कथ्य (थीम)क स्तरपर मायाबाबू कोनो तेहेन सन आगू नै जा पबैत छथि। मनोरम शिल्प, सुन्दर ट्रीटमेन्टआ भाषाधिकार, कथा-कलाक मेंही-मेंही तत्वसँ सराबोर मायाबाबूक आकर्षक कथा-संसार, मिथिलाक नव पीढ़ीकेँ मात्र सुधारवादी-संशोधनवादी संदेश दऽ पबैत अछि आ कोनो नव रस्ता नै देखा पबैत अछि, जखनकि समकालीन वैचारिक मुख्यधारा मायाबाबूक पाठक आ नव-पीढ़ीकेँ पहिनहिसँ बुझल छैक।
मायाबाबूक कथामे तथाकथित हरिजन नेतावा एमेले, बड़जन-मुख्यमंत्रीक नाङरि बनि कऽ पाछू-पाछू चलैत अछि- हा हुसैनकमुद्रामे। ई बिहारक कांग्रेसी मंत्रीमण्डलमे होइते छल। डॉ. जगन्नाथ मिश्र अपना मंत्रीमण्डलमे कोनो-ने-कोनो बिलट पासवानकेँ रखिते छलाह। मायाबाबूक कथा-संसारमे नारी आ दलित-वर्गक मात्र दुर्दशेटा आएल अछि, से ओइ दिनक समए आ मायाबाबू दुनूक सीमा थिक। सेहो दुर्दशा-वर्णन गरिमायुक्त भऽ कऽ नै आएल अछि।
मायाबाबूक कथा-कला प्रभासेजी जकाँ धनीकअछि। सेहो राजमोहन झाक नागर-भाषामे नै, अपितु खाँटी भाखामे। हिनकर कथा-लोक रमणीक आ रसगर चित्रणसँ भरल-पुरल अछि। वर्णन कखनो उस्सठ नै होइत अछि हिनकर। मिथिलाक पारिवारिक आ सामाजिक सम्बन्धक हिनका गहींर अवधारणा छन्‍हि- से कएटा कथा साबित करैत अछि। उपन्यासोमे से आएल अछि।
हिनकर बहुआयामी व्यक्तित्व मिथिला-मैथिलीकेँ अत्यंत समृद्ध केलक अछि आ मैथिली-कथामे हिनकर अवदानकेँ कमजोर केलक अछि। हिनकर मंचीय व्यक्तित्व, गरिमाक प्रति तृष्णा, भोगक प्रति लालसा- हिनक कथाक प्रति परिश्रम, समर्पण आ अन्ततः कथाक धारकेँ भोथ केलक अछि। मैथिली आन्दोलनमे हिनकर संघर्षशीलता जेहेन रहल तेहेन संघर्षशीलता कथा लेखनमे द्रष्टव्य नै अछि, यद्यपि जइ कालखण्डमे ई कथा सभ लिखल गेल छल, “नवीनमानल गेल छल। मुदा आइ नवीन तत्व सबहक परीक्षण केलापर कथा सभ रमणीकबुझाइतो ततेक नव आ धरगर नै बुझाइत अछि। तहिना अभिव्यंजनाक काव्य-श्रृंखलाक कविता सभ खूबे नवीनमानल गेल छल। मुदा आधुनिकताक टन-टनाटन ध्वनि जे यात्री-राजकमलक काव्यमे आएल- से हिनक काव्यमे विलुप्तप्राय रहल। कथे जकाँ हिनकर उपन्यासोमे आधुनिकता आ पात्रक संघर्षशीलता कोनो तेहन जगजियार नै भऽ सकल। फेर हिनकर गीत, गीतल आ मंच-संचालनमे खूबे रस आ नवीनता अछि, मुदा सेहो मात्र शिल्प आ प्रयोगेक स्तरपर। वस्तुतः संघर्षशीलता आ जिजीविषा प्रायः सभ विधामे विलुप्तप्राय अछि।
मायाबाबू अपना जीवनमे खूब सार्थक काज सभ केलनि अछि। हिनकर जीवनक उपलब्धिक प्रशंसनीय पथार लागल अछि। मुदा अपना समैक सीमाकेँ उपन्यास-कथा अथवा कवितोमे नै तोड़ि सकल छथि। ऐतिहासिक उपन्यासकेँ प्राचीने राष्ट्रवादी-गौरववादी दृष्टिकोणसँ लिखलनि अछि। कोनो आधुनिक संदर्भमे वैज्ञानिक मार्क्सवादी दृष्टिकोणसँ नहिए लि‍ख सकल छथि। मंत्रपुत्र, स्त्रीधन वा पुरोहितमे प्राचीन इतिहासक पुराने व्याख्या प्रस्तुत केलनिहेँ। प्राचीन भारत, प्राचीन समाज, पुरातन आ सनातन-व्यवस्थाक प्रति हिनकर नजरियापारम्परिक राष्ट्रवादी-गौरववादी-स्कूल जकाँ अछि, जइ स्कूलक यू.एन. घोषाल, के.पी. जायसवाल, आर.सी. मजूमदार, हेमचन्द्र रायचौधुरी, के.के.दत्त, राधाकृष्ण चौधरी, बाल गंगाधर तिलक आदि छलाह। ई लोकनि प्राचीन भारतक गौरव-वोधसँ ब्रिटिश साम्राज्यवादकेँ चकचोन्ही लगा कऽ निचैनसँ सूति रहैत छलाह आ इतिहासकेँ वैज्ञानिक पद्धतिसँ दूर कऽ मात्र ब्रिटिश विरोधक औजारमानैत छलाह। तकर बाद ऐतिहासिक यथार्थ सभ उपेक्षित भऽ जाइत छल। राजसत्ता आ प्राचीन-व्यवस्थाक यशोगानक अलावे प्रजाक दुःख-दर्द इतिहास-लेखनक ऐ तंत्रमे नै छल। एहने पुनरुत्थानवादी जीर्ण-शीर्ण अवधारणा, जकरा रामचैतन्य धीरज वैज्ञानिक ब्राह्मणवाद कहैत छथि, जकाँ, जँ उपन्यास-कथा लेखन हो तँ प्राचीन समाजकेँ नव सन्दर्भमे देखब असम्भव जकाँ भऽ जाइत अछि। इतिहासक घटना सबहक अध्ययन वा पात्र आ परिवेशक मनोरम चित्रण एक बात थिक आ वैज्ञानिक इतिहास दृष्टिसँ निष्कर्ष बहार कऽ समाजकेँ चेतना-सम्पृक्त करब दोसर बात थिक। इतिहास दृष्टिक विकास पाछू मुँहे नै होइत अछि आ ने हेबाक चाही। आगू मुँहे विकास ओ थिक जे रोमिला थापर, राम शरण शर्मा, डी.डी. कोशाम्बी, इरफान हबीब, डी.एन.झा, सतीश चन्द्रा, आदि इतिहासकारगण अपन-अपन कृति सभमे केलनि अछि। ओ लोकनि राजसत्ताक गौरव गाथाक उपेक्षा कऽ तत्कालीन समाजक अभगदशाकेँ देखार कऽ नव, जनवादी दृष्टिसँ ऐतिहासिक तथ्य सबहक परीक्षण आ तर्कसंगत व्याख्या केलनि आ प्राचीन इतिहासकेँ निस्सन वैज्ञानिकताक आधार देलनि। हिन्दी साहित्यमे इतिहास दृष्टि आधारित उपन्यास सभ बहुत प्रासंगिक बनल मुदा मैथिलीक ऐतिहासिक चेतना-सम्पृक्त उपन्यास पछुआएल विचारधारा आधारित भऽ गेल। ऐतिहासिक घटना सबहक नीक संयोजन, तथ्य, पात्र, संस्कृति-तत्व सभसँ परिपूर्ण रहितो, उपन्यास-तत्व आ कला-चातुर्यसँ धनीक रहितो, वैचारिक स्तरपर प्रगतिशील नै हेबाक कारणेँ मंत्रपुत्र अपन महत्वकेँ घटा लैत अछि, जखनकि एस.ए. डांगे साधु समाजवादकेँ तत्कालीन समाजक एक यथार्थमानने छथि। ओना ई तथ्य मायाबाबूक पक्षमे जाइत अछि जे ऐतिहासिक उपन्यासक मामिलामे दरिद्र मैथिलीक भण्डारक श्रीवृद्धि ई उपन्यास करैत अछि। आब आगरिमो हमरा कोनो आशा नै अछि जे प्राचीन इतिहास आधारित अपन अन्य उपन्यासमे मायाबाबूक पात्र सभ प्राचीन व्यवस्था विद्रोह धर्मक निर्वाह करत। आ ऐ बातक ग्लानि तँ अछिए जे पुरोहितस्त्रीधनमैथिलीक भण्डारसँ बाहरे रहल। वैदिक कालीन दासत्वपर मणिपद्मजी आदिम गुलामले लेखकीय नजरिया आ माटिक प्रति प्रतिबद्धता प्रस्तुत केलक, से मंत्रपुत्रक शास्त्रीय-एप्रोचप्रस्तुत नै कऽ सकल।
मायाबाबूक अपन कथा सभमे ऊपरी स्तरमे जे आधुनिक बुझाइत छथि, तेहेन वैचारिकताक स्तरपर प्रगतिकामी नै बुझाइत छथि। हुनकर वैचारिकता जहिना उपन्यासमे रहल तहिना कथोमे रहल, से स्वाभाविके छल। कोनो रचनाकार दू विधामे अलग-अलग विचारक हो, से ने तँ संभव अछि आ ने उचिते। व्यक्ति अपन जीवन, साहित्य आ सभ क्षेत्रमे प्रायः एक्के विचारधाराक रहए, सएह नीक आ सएह रहितो अछि। आ से नै रहलापर पकड़ाइयो जाइत अछि। मायाबाबू जे छथि से सभठाँ छथि- एक्के रंग। जीवनोमे रसगर, मंचोपर रसगर, उपन्यास-कथा-गीत-काव्य, सभठाँ रसगर। सभठाँ रमनगर वर्णन, सभ विधामे शिल्प-शैलीमे महारत प्राप्त। कला-चातुरी-युक्त सक्षम खेलाड़ी। सफलता प्राप्त करबाक बीज मंत्रक विशेषज्ञ। मुदा जीवनदर्शन आ वैचारिकतामे मयूरक पएर जकाँ सुखाएल। पुरान वैचारिकता, नृत्य-कौशल-प्रेमी दर्शककेँ, मयूरक पएर देखिते झूड़-झमान बना दैत अछि।
मायाबाबू यात्री-राजकमल-ललित-किसुनजीकेँ देखने-पढ़ने छलाह। किरणजीक परम्परा हुनका बुझल छलनि। तँए किछु बेसी अहू बिनूपर छल। हिनका सोनाक नैयारचए अबैत छलनि। माटिक लोकक सेहो हिनका परि‍चए छलनि। तँए माटिपर ठाढ़ लोकक जनवादी आ प्रगतिशील आँखिकेँ चीन्हि कऽ पात्र आ परिवेशक रचना करब अपेक्षित छल। कोनो साहित्यकारसँ आजुक लोक, समाज आ समए- ई आशा रखैत अछि। मुदा सर्वतोभावेन साहित्यिक सक्षमताक बावजूद दरभंगिया इसकूलकतेजगर छात्र बनबाक दुर्घटनाहिनको संग भइये टा गेल। से मात्र वैचारिकताक कारणेँ। अन्यथा, “दड़िभंगाक कएटा गुरु-घंटालसँ कतओक आगू जएबाक प्रतिभा हिनकामे छल। मात्र अहीटा बातकेँ छोड़ि कऽ मायाबाबू अपना कालखण्डक एकटा अत्यंत सक्षम बहुआयामी साहित्यकार छथि आ अपन समैक मिथिला-मैथिल-मैथिलीकेँ अपन असंख्य योगदानसँ परिपूरित केलनि अछि आ कऽ रहल छथि। हुनकर ऊर्जा स्तुत्य अछि। मुदा ऊर्जाक आउटपुट कलाक चरमोत्कर्षपर होइतो, वैचारिक रूपेँ आलोच्य अछि।
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