Pages

Saturday, April 7, 2012

आस्‍था, जि‍जीवि‍षा ओ संघर्षक प्रवाह :: डॉ. योगानन्‍द झा


श्री जगदीश प्रसाद मंडल कृत गामक जि‍नगी‍ हि‍नक उन्नैस गोट कथाक संग्रह थि‍क। एहि‍ कथा सभमे मि‍थि‍लाक ग्राम्‍य जीवनक मौलि‍क ओ अकृत्रि‍म छवि‍ अभि‍व्‍यक्त भेल अछि‍। आजुक संक्रमणशील युगमे मि‍थि‍लाक गाम कोन तरहेँ अपन परम्‍परि‍त जीवन पद्यति‍, आस्‍था ओ वि‍श्‍वासक संग प्रबल जि‍जीवि‍षाक बलेँ नि‍रन्‍तर संघर्ष पथपर आरूढ़ संग रूपायि‍त कएल गेल अछि‍।

संग्रहक तीन गोट कथा क्रमश: भैँटक लावा, बि‍साँढ़पीराड़क फड़ मि‍थि‍लामे उपलब्‍ध प्राकृति‍क उपादानक उपयोगि‍तापर वि‍मर्श प्रस्‍तुत करैत अछि‍। बाढ़ि‍ आ सुखारसँ पीड़ि‍त मि‍थि‍लाक जनसमुदाय अपन जीवन रक्षाक हेतु कोन तरहेँ भैँट, वि‍साँढ़, पीरार आदि‍केँ अपन मेहनति‍क बलेँ साद्य पदार्थक रूपमे ग्रहन करैत रहल अछि‍ तथा एहि‍ठामक प्राकृति‍क संसाधनक उपयोग द्वारा कोना मि‍थि‍लाक भूखमरी ओ बेरोजगारीकेँ दूर कएल जा सकैछ, एकर आर्थिक वि‍कास कएल जा सकैछ तकर चि‍त्र एहि‍ तीनू कथामे भेटैत अछि‍। श्रमपर वश्‍वास, इमानदार प्रयास, कर्मण्‍यता ओ चातुर्यक संबलसँ वि‍पन्नतापर वि‍जयक ई गाथा सभ मि‍थि‍लाक लोकजीवनमे व्‍याप्‍त उत्‍साह ओ संघर्षक मर्मस्‍पर्शी चि‍त्र प्रस्‍तुत करैत अछि‍।

संग्रहक अन्‍यान्‍य कथा सभमे वि‍भि‍न्न प्रकारक समस्‍या सभपर वि‍मर्श प्रस्‍तुत भेल अछि‍ आ एक गोट आदर्श ग्राम्‍य समाजक परि‍कल्‍पना प्रस्‍तुत भेल अछि‍। दहेजक सामाजि‍क समस्‍याक उन्‍मूलनक दृष्‍टि‍ए घरदेखि‍या कथा अत्‍यन्‍त हृदयस्‍पर्शी अछि‍। मि‍थि‍लाक उच्‍चवर्गीय समाजमे धनलोलुपताक कारणे उत्‍पन्न एहि‍ समस्‍याक कुफल नारी प्रताड़नाक अति‍रेकक रूपमे अत्‍यन्‍त गर्हित स्‍थि‍ति‍ प्राप्‍त कएने अछि‍ जकर कारणे कन्‍याक वि‍वाह एकटा पैघ समस्‍या बनल रहल अछि‍ आ एकर कोनो ठोस समाधान अद्यावधि‍ समक्ष नहि‍ आबि‍ सकल अछि‍। मण्‍डलजी एहि‍ समस्‍याक समाधान लोकजीवनक वैचारि‍क परि‍वर्त्तनकेँ मानैत छथि‍ आ सर्वहारा वर्गक अति‍शय दीन पात्र लुखि‍यासँ कहबैत छथि‍- नै। हम ककरो बेटीकेँ पाइ लऽ कऽ अपना घर नै आनब।‍ लुखि‍याक एही वाक्‍यमे दहेज समस्‍याक प्रति‍ समाधानक दि‍शा-बोध होइत अछि‍।

आजुक युग तकनीकक युग थि‍कैक। नि‍त्‍य नूतन तकनीकक वि‍कासक कारणेँ जे केओ अपन तकनीकी ज्ञानमे अद्यतन बनल नहि‍ रहि‍ सकत, ओ जीवन-सघर्षमे पाछाँ धकेलि‍ देल जाएत। एहि‍ तथ्‍यसँ अवगत करएबाक उद्देश्‍य मण्‍डलजीक दुनू गोट कथा- दूटा पाइहारि‍-जीतमे अभि‍व्‍यक्‍त भेल अछि‍। दूटा पाइक फेकुआ नूतन फैशनक अनुरूप सि‍आइक काज सि‍खबामे असमर्थ रहैत अछि‍ तेँ ओकरा शहरो छोड़ए पड़ैत छैक आ जीवि‍कासँ हाथो धो लैत अछि‍ जखन कि‍ हारि‍-जीत कथाक रामदत्त कुम्‍हारक व्‍यवसायमे होइत नि‍त्‍य परि‍वर्त्तनक अनुरूप अपन व्‍यवसायोमे परि‍वर्त्तन कऽ मूत्ति‍कार बनि‍ जीवि‍कोपार्जनमे समर्थ बनल रहि‍ पबैत अछि‍। ओकरा जीवि‍कापर एहि‍ परि‍वर्त्तनक कोनो असरि‍ नहि‍ पड़ि‍ पबैत छैक जे घरैया बासनमे माटि‍क बदला धातुक प्रयोग होमए लगैत छैक आ खपराक घरक स्‍थान एस्‍बेस्‍ट्स शीटक मकान लऽ लैत छैक। एहि‍ तरहेँ ई दुनू कथा युग-परि‍वर्त्तनक संग चलबाक शि‍क्षा प्रदान करैत अछि‍।

उपयोगि‍तापर आधारि‍त व्‍यवहारपरक एहि‍ युगमे लोक स्‍वार्थ मात्र दि‍स ततेक झुकि‍ गेल अछि‍ जे वृद्ध माता-पि‍ताक प्रति‍ कुभेला एकटा सामान्‍य बात भऽ गेल अि‍छ। आइ मातृ देवो भव, पि‍तृ देवो भव, लोक संस्‍कारसँ वि‍लुप्‍त भेल जा रहल छैक। श्रवण कुमारक आदर्शसँ लोक बान्‍हल नहि‍ रहि‍ सकल अछि‍। जाहि‍ भारतमे कृतज्ञता वशात् लोक गाछ पर्यन्‍तक पूजक अछि‍, ततहि‍ पालि‍-पोसि‍, पढ़ा-लि‍खा कऽ समर्थ बनौरि‍हार माताे-पि‍तोक प्रति‍ कृतज्ञ रहबामे संकोच भऽ रहल छैक। समाजमे आएल एहि‍ परि‍वर्त्तनकेँ रेखांकि‍त कऽ मंडलजी दू गोट कथामे एहि‍पर वि‍मर्श प्रस्‍तुत कएलनि‍ अछि‍ जकर नाम अछि‍ क्रमश: भैयारीबहि‍नभैयारीक कुसुमलाल अपन जेठ भाय दीनानाथक परि‍श्रमक बलपर उपार्जित पाइसँ जखन पढ़ि‍-लि‍खि‍ कऽ नोकरी करए लगैत अछि‍ तँ गामक अपन हि‍स्‍साक सम्‍पत्ति‍ बेचि‍ शहरी जीवन व्‍यतीत करए लगैत अछि‍। ओकरा अपन लकवाग्रस्‍त पि‍ता आ वृद्धा माताक कोनो ध्‍यान नहि‍ रहैत छैक। तेँ जखन ओ दारूक सेवनक कारणेँ असमय कालकवलि‍त होएबापर वृत्त भऽ जाइत अछि‍  आ माएकेँ ई समाद भेटैत छनि‍ जे ओ ओकर अन्‍ति‍म दर्शन कऽ लेथि‍ तँ माएक एहि‍ उक्‍ति‍मे वृद्धा माता-पि‍ताक वैकल्‍य अभि‍शापक रूपमे प्रकट होइत अछि‍- कुसुमा हमर बेटा थोड़े छी जे मुँह देखबै। उ तँ ओही दि‍न मरि‍ गेल जइ दि‍न हमरा दुनू परानीकेँ छोड़ि‍ चलि‍ गेल। आइ बीस बर्खसँ अइ हाथ-पाएरक बलेँ बीमार पति‍केँ जीवि‍त राखि‍ अपन चूड़ी आ सि‍नूरक मान रखने छी।‍

बहीन कथामे सरोजनी नामक वृद्धाक कथा अछि‍ जनि‍क मृत्‍युक अवसरपर बजौलो उत्तर हुनक पुत्री रीता हुनक अन्‍ति‍म दर्शनक हेतु नहि‍ अबैत छथि‍ आ व्‍यस्‍त होएबाक लाथ लगा दैत छथि‍ जखन कि‍ परजाति‍क मुसलमानि‍ बहि‍ना शबाना हुनका देखबाक हेतु अबैत छथि‍न। राधेश्‍यामक एहि‍ चि‍न्‍तनमे सम्‍बन्‍ध-बन्‍धक वास्‍तवि‍कताकेँ उद्घाटि‍त करैत कहल गेल अछि‍- दुनि‍याँमे बहि‍नि‍क कमी नहि‍ अछि‍। लोक अनेरे अप्‍पन आ वीरान बुझैत अछि‍। ई सभ मनक खेल थि‍क। हँसी-खुशीसँ जीवन बित‍बैमे जे संग रहए वएह अप्‍पन।‍ माता-पि‍ताक प्रति‍ धि‍यापुताक कुभेलाक संगहि‍ एहि‍ कथामे मानवतावादक प्रति‍पादन मंडल जीक लक्ष्‍य बुझना जाइत अछि‍।

उच्‍च शि‍क्षा प्राप्‍त वर्गमे सम्‍प्रति‍ वि‍देश गमनक लि‍लसा प्रबल देखल जाइत अछि‍। एहि‍ प्रवृत्ति‍क कारणे ओ लोकनि‍ स्‍वदेश सेवासँ तँ वंचि‍त एहि‍ये जाइत अछि‍, अपनो जीवनक परि‍वेश संकुचि‍त बना लैत छथि‍। पछतावा कथा शि‍क्षि‍त वर्गक एही अध:पतनक कथा थि‍क। एकर प्रमुख पात्र रघुनाथक एहि‍ पश्‍चात्तापपूर्ण उक्‍ति‍मे एहन लोकक मानसि‍कताक अभि‍व्‍यक्‍ति‍ कएल गेल अछि‍- हमरासँ सइओ गुना ओ नीक छथि‍ जे अपना माथपर पानि‍क घैल उठा मातृभूमि‍क फुलवारीक फूलक गाछ सीचि‍ रहल छथि‍‍। अपन माए-बाप, समाजक संग जि‍नगी बि‍ता रहल छथि‍। जि‍नगीक अन्‍ति‍म पड़ावमे पहुँचि‍ आइ बुझि‍ रहल छी जे ने हमरा अपन परि‍वार चि‍न्‍हैक बुद्धि‍ भेल आ ने गाम-समाजक।

एही तरहेँ बोनि‍हारि‍न मरनीमे सर्वहाराक प्रति‍ करूणा, ठेलाबलामे सर्वहाराक संघर्ष, जीि‍वकामे जनवि‍तरण प्रणालीमे व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार, रि‍क्‍शाबलामे सर्वहाराक उन्‍मुक्‍त जीबन आ सम्‍पत्ति‍शाली वर्गक नारीक कुंठा, चूनवालीमे सर्वहारावर्गक स्‍नेह-सम्‍बन्‍ध आदि‍केँ आधार बना कऽ कथा गढ़ल गेल अछि‍ जे अत्‍यन्‍त रोचक भेल अछि‍। अनेरूआ बेटा लोकजगतमे शि‍क्षाक आवश्‍यकतापर बल दैत अछि‍ तँ डाक्‍टर हेमन्‍त सुदूर देहातमे स्‍वास्‍थ्‍य सुवि‍धाक व्‍यवस्‍थाकेँ रेखांकि‍त करैत अछि‍। बाबी कथाक माध्‍यमे मंडलजी हि‍न्‍दू-मुस्‍लि‍म एकताकेँ छठि‍ पाबनि‍क आधारपर दृढ़ता प्रदान करबाक राष्‍ट्रीय दायि‍त्‍वक प्रतीक्षा सतर्कता दर्शौलनि‍ अछि‍। डीहक बॅटबारा भ्रष्‍टाचार पूर्वक धन अर्जन कएनि‍हार समाजक अधोगति‍क चि‍त्रांकन करैछ।

मंडलजीक अधि‍कांश कथा वर्णनात्‍मक शैलीमे लि‍खल गेल अछि‍। एहि‍ शैलीक कारणें हि‍नक कथा सभमे उपन्‍यासि‍क आनन्‍द भेटैत अछि‍ मुदा एके कथामे अनेक उपकथा सभक सम्‍मि‍श्रणक कारणें बहुधा लघुकथाक क्षि‍प्रता ओ सघनता बाधि‍त देखि‍ पड़ैत अछि‍। हि‍नक वर्णनमे अवश्‍ये चारूताक दर्शन होइत अछि‍ आ पाठक समक्ष समग्र चि‍त्र रूपायि‍त भऽ जाइत अछि‍ यथा- पछि‍ला चारि‍ सालक रौदी भेने गामक सुरखि‍ये बेदरंग भऽ गेल। जे गाम हरि‍यर-हरि‍यर गाछ-बि‍रीछ, अन्नसँ लहलहाइत खेत, पानि‍सँ भरल इनार-पोखरि‍, सैकड़ो रंगक चि‍ड़ै-चुनमुनी, हजारो रंगक कीट-पतंगसँ लऽ कऽ गाए, महींस आ बकरीसँ भल रहैत छल ओ मरणासन्न भऽ गेल। सुन्न-मसान जेकाँ। वीरान। सबहक मनमे एक्केटा वि‍चार अबैत जे आब ई गाम नै रहत। जँ रहबो करत तँ माटि‍येटा। कि‍एक तँ जाहि‍ गाममे खाइक लेल अन्न नहि‍ उपजत, पीबैक लेल पानि‍ नहि‍ रहत, ताहि‍ गामक लोक की हवा पीबि‍ कऽ रहत।‍ इत्‍यादि‍।

मंडलजीक हृदयमे ग्राम्‍य जीवनक प्रति‍ अगाध नि‍ष्‍ठा छनि‍ आ मि‍थि‍ला ओ भारतक आदर्श ग्रामक परि‍कल्‍पना छन्‍हि‍। तेँ ओ ओहि‍ सभटा परि‍स्‍थि‍ति‍ दि‍स नजरि‍ खि‍रबैत देखि‍ पड़ैत छथि‍ जे ग्राम्‍य जीवनक सौन्‍दर्यक हेतु बाधक बनल अछि‍। एकटा पात्रक माध्‍यमे ओ कहैत छथि‍- गाममे ने पानि‍ पीबैक ओरि‍यान छै, ने खाइक लेल सभकेँ संतुलि‍त भोजन भेटै छै, ने भरि‍ देह कपड़ा भेटै छै, ने रहैक लेल घर छै, ओहि‍ देशकेँ मरल नै कहबै तँ की कहबै। एखनो लोक सड़ल पानि‍ पीबैत अछि‍, कहुना कऽ कि‍छु खा दि‍न कटैत अछि‍, गाछक नि‍च्‍चांमे आगि‍ तापि‍ समए बि‍तबैत अछि‍, हजारो रंगक रोग-व्‍याधि‍सँ घेरल अछि‍, ओहि‍ देशकेँ की कहबै? हजारो वर्षक मनुक्‍खक इति‍हासमे एखनो धरि‍ सरस्‍वतीक आगमन सभ मनुक्‍ख धरि‍ नै भेल अछि‍, ओहि‍ देशकेँ की कहबै? आदि‍। अवश्‍ये हुनक आदर्श गामक परि‍कल्‍पना सर्वथा सुवि‍धासम्‍पन्न, आर्थिक रूपेँ सबल आ सुशि‍क्षि‍त गामक छनि‍। जकर चर्चा बेर-बेर हुनक कथा सभमे अनायास आएल अछि‍।‍

अपन कथा सभमे मंडलजी कतहु कृत्रि‍मताक प्रवेश नहि‍ होमय देलनि‍ अछि‍। स्‍वभावत: हि‍नक भाषा, संवाद, वर्णन, वस्‍तु, चरि‍त्र आदि‍ समरत्त उपादानमे सहजताक दर्शन होइत अछि‍। हि‍नक अधि‍कांश कथा ग्राम्‍य जीवनसँ सम्‍बद्ध अछि‍ तेँ ई पात्रक नामावली सेहो ओही जीवनसँ लेने छथि‍ यथा- फुलि‍या, दुखनी, बेचन, सुगि‍या, धनि‍या, पि‍चकुन, पि‍हुआ, भुलि‍या, फेकुआ, लुखि‍या, सोमन, मरनी, रघुनी, बुचाइ, बचनू आदि‍, मुदा जखन ई नागर पात्रकेँ अपन कथामे प्रवेश दैत छथि‍ तँ वर्गीय नामोक प्रयोग करैत छथि‍ यथा- मुकुन्‍द, शि‍वनाथ, रूक्‍मि‍णी, शोभाकान्‍त, रागि‍नी, सुनयना आदि‍। पात्रक रंखाचि‍त्र पाठकक मानसमे उतारि‍ देबाक हि‍नक झमता मरनीक एहि‍ रूवरूप-वर्णनमे अत्‍यन्‍त उत्‍कृष्‍ट देखि‍ पड़ैछ- कारी झामर एकहड्डा देह, ताड़-खजूरपर बनाओल चि‍ड़ैक खोंता जेकाँ केश, आंगुर भरि‍-भरि‍क पीअर दाँत, फुटल घैलि‍क कनखा जेकाँ नाक, गाइयक आँखि‍ जेकाँ बड़का-बड़का आँखि‍, साइयो चेफड़ी लागल साड़ी, दुरगमनि‍या आँगि‍ फटलाक बाद कहि‍यो देहमे आंगीक नसीब नहि‍ भेल, बि‍ना साया-डेढ़ि‍याक साड़ी पहि‍रने। यएह छी मरनी।‍ मात्र ई वर्णन मरनीक प्रति‍ करूणा उत्‍पन्न करबामे सक्षम सि‍द्ध अछि‍।

ग्राम्‍य जीवनक वर्णन करैत काल ओकर श्‍याम पक्षकेँ सेहो मंडलजी यथावत् राखि‍ कथाक सहजताकेँ अक्षुण्‍ण रखलनि‍ अछि‍। ग्राम्‍य जीवनमे ताड़ी-दारू, गाँजा-भांग, बीड़ी-सलाइ आदि‍क प्रयोगकेँ ई वि‍भि‍न्न कथामे सहजताक सृजनक हेतु प्रयुक्‍त कएलनि‍ अछि‍।

आस्‍था आ वि‍श्‍वास ग्राम्‍य जीवनक अंग थि‍क। मंडल जीक कथा सभमे अनेक ठाम लोक जीवनक जीवन्‍त आस्‍थाक चि‍त्रण भेल अछि‍ यथा- इन्‍द्र भगवानकेँ कोनो चीजक दुख भऽ गेल हेतनि‍। तेँ हुनका बौसब जरूरी अछि‍। यएह सोचि‍ कि‍यो भूखल-दुखलकेँ अन्नदान तँ कि‍यो कीर्तन-अष्‍टयाम-नवाह, तँ कि‍यो यज्ञ-जप चंडी, वि‍ष्‍णु तँ कि‍यो महादेव पूजा लि‍ंग इत्‍यादि‍ अनेको रंगक बौसक ओरि‍यान शुरू केलक। जनि‍जाति‍ सभ कमला-कोशीकेँ छागर-पाठी कबुला सेहो करए लगलीह। इत्‍यादि‍।‍      
ग्राम्‍य जीवन लाख अभाव-अभि‍योगक अछैतो जाि‍ह उत्‍साह ओ उमंगकेँ अङेजने रहैत अछि‍, से एकर अपार जि‍जीवि‍षाक प्रतीक थि‍क। मण्‍डल जीक कथा सभमे पात्रक चरि‍त्रमे कुंठा ओ संत्रास पर जि‍जीवि‍षाक वि‍जय देखाओल गेल अछि‍ जािहसँ हि‍नक कथा सभ नव आशाक संचार कय लोक जीवनक सोनहुल भवि‍ष्‍यक प्रति‍ आश्‍वस्‍त करैत अछि‍। द्रष्‍टव्‍य अछि‍ कि‍छु पाँती-
-अपन धन हएत, तइपर सँ मेहनत करब तँ कोन दरीदराहा दुख आबि‍ कऽ हम्‍मर सुख छीनि‍ लेत।‍
-   एक्केटा बाढ़ि‍मे एत्ते चि‍न्‍ता‍ करै छथि‍ काका, कनी नीक की कनी अधलाह, दि‍न तँ बि‍तबे करतनि‍।
-‍जकरा खाइ-पीबैक ओि‍रयान बूझल छैक ओ कथीक चि‍न्‍ता करत। इत्‍यादि‍।

एतवता मण्‍डल जीक गामक जि‍नगी कथा संग्रहमे ग्राम्‍य शब्‍दावलीक माध्‍यमे ग्राम्‍य जीवनक सौन्‍दर्य ओ समस्‍या तथा तकरा सबहक वि‍वेकपूर्ण नि‍दान दि‍स इंगि‍त करबाक प्रयास भेल अछि‍ जे मैथि‍ली कथा वि‍धामे अन्‍यतम याेगदानक रूपमे चर्चित-अर्चित होएबाक सार्मथ्‍य रखैत अछि‍।

      पोथीक नाम- गामक जिनगी
     वि‍धा- कथा संग्रह
     रचनाकार- जगदीश प्रसाद मंडल
     काँपी राइट- उमेश मंडल
     प्रकाशक- श्रुति‍ प्रकाशन राजेन्‍द्र नगर दि‍ल्‍ली
     मूल्‍य- २०० टाका मात्र
     प्रकाशन वर्ष- सन् २००९
     पोथी पाप्‍ति‍क स्‍थान- पल्‍लवी डि‍स्‍ट्रीब्‍यूटर्स, वार्ड न. ६, नि‍र्मली, सुपौल, मोवाइल

No comments:

Post a Comment