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Saturday, April 7, 2012

गौरवशाली परम्‍पराक प्रारम्‍भ- जीवन संघर्ष :: डॉ. कैलाश कुमार मि‍श्र


श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डलक उपन्‍यास ‘‍जीवन संघर्ष’ एक नीक रचना थि‍क। एहेन रचना अगर मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे लगातार हो आ ऐ तरहक रचनाक प्रचार-प्रसार नीकसँ कुनो जाति-पाति‍, वर्ग, सम्‍प्रदाय, स्‍थानीयता आदि‍क दुर्भावनासँ दूर भऽ कएल जाए तँ मैथि‍ली साहि‍त्‍य महि‍मा-मण्‍डि‍त भऽ एक गौरवशाली परम्‍पराकेँ प्रारम्‍भ कऽ सकैत अछि‍।

हम शि‍क्षा, व्‍यवसाय आ स्‍वभावसँ मंथरगति‍क पाठक छी। नीकसँ नीक पोथी चाहे ओ कोनो वि‍षएसँ सम्‍बन्‍धि‍त कि‍एक ने‍ हो, हम एक बैसारमे पच्‍चीस पन्नासँ अधि‍क नै‍ पढ़ि‍ सकैत छी। एक दि‍न अनायास कमप्‍युटरपर बैसबासँ पूर्व इच्‍छा भेल जे जगदीश प्रसाद मण्‍डल जीक ऐ रचनाकेँ ऊपर-झापर देखि‍ ली। यएह सोचि‍ पढ़ए लगलौं। आ जखन पढ़ए लगलौं तँ एतेक मग्‍न भऽ गेलौं जे एक्के‍ बैसारमे १०९ पन्नाक ऐ‍‍ पोथीकेँ आदि‍सँ अन्‍त तक पढ़ि‍ गेलौं। बुझना गेल जेना कुनो समाजशास्‍त्र किंवा मानवशास्‍त्रक घोर अवलोकनार्थी अपन वि‍धाक ट्रेनिंग लए एक समाजमे रहि‍ सघन सहभागी अवलोकन करैत आेइ‍ समाजक एथनोग्रॉफी लि‍ख रहल होथि‍। एतबे नै‍‍ ओ स्‍वयं समाजक सदस्‍य होमाक मादे अगर कुनो समस्‍याकेँ उजागर करैत छथि‍ तँ ओकर समाधानक हेतु इन्‍टरवेन्‍सन सेहो करैमे नै‍‍ सकुचाइत छथि‍।

आब जखन कि‍ ‘जीवन संघर्ष’ पोथीकेँ अद्योपान्‍त पढ़ि‍ चूकल छी तँ अनेक तरहक वि‍चार मोनमे हिलोड़ लऽ रहल अछि‍। होइत अछि‍ अगर कुनो कुशार्ग-बुद्धि‍बला शोध-वि‍द्यार्थी भेटत तँ ओकरा उत्‍साहि‍त करबैक जे जगदीश प्रसाद मण्‍डलक रचनाशैली, जीवन-क्रम आ व्‍यक्‍ति‍गत इति‍हास तीनूकेँ समेटैत मैथि‍लांचलक समाजक सन्‍दर्भमे एक समाजशास्‍त्रीय अध्‍ययन करए। हम ऐ बातकेँ नीक जकाँ बुझैत छी जे हमर ऐ‍‍ तरहक टि‍प्‍पणीसँ कि‍छु आलोचक आ मैथि‍ली साहि‍त्‍य केर सुयोग्‍य वि‍द्वान लोकनि‍ वि‍फरि‍ जेताह आ हम्‍मरा इम्‍मेचीओर आ कि‍छु आनो तरहक उपमासँ बजेताह। मुदा हम ई बात बि‍ना कारणे नै‍‍ कहि‍ रहल छी। मण्‍डलजी ऐ उपन्‍यासक प्रारंभ बँसपुरा गामक परि‍प्रेक्ष्‍यसँ करैत छथि‍। बॅसपुरा गामक एक नव बि‍याहल अट्ठारह-बीस बर्खक लड़की जे मात्र तीनि‍ये मास सासुरसँ बसल छलि‍ गामसँ एक कोस दूर बसल सि‍सौनीमे दुर्गापूजाक मेला देखए गेल छलि‍। ओतए आेइ‍ लड़कीकेँ पूजा कमि‍टीक तीन गोटे फुसला कऽ भंडार घर लऽ गेल। मेला- गनगनाइत। नाच-तमाशाक लाउड-स्‍पीकर चरि‍ कोसीक नीन उड़ौने। तीनू गोटे आेइ‍ लड़कीक संग दुरबेवहार केलक। बेवस भऽ ओ लड़की सभ कि‍छु बरदास केलक। चारि‍ बजे भोर ओकरा सभ छोड़ि‍ देलक। मेला भरि‍ ओ कि‍छु नै‍‍ बाजलि‍। मुँह-कान झाँपि‍ मेलासँ नि‍कलि‍ सोझे गामक रस्‍ता  धेलक। गामक सीमापर पहुँचतहि‍ छाती चहकि‍ गेलइ। छाती चहकि‍तहि‍ हबो-ढकार भऽ कानए लागलि‍। भि‍नसुरका कानब सुनि‍ एक्के-दुइये गामक लोक घर-आंगनसँ नि‍कलि‍ रास्‍तापर आबि‍-आबि‍ देखए लगल। टोल प्रवेश करि‍तहि‍ एका-एकी लोक पूछए लगलै। कानि‍-कानि‍ अपन बीतल घटना सुनबए लागलि‍। बि‍ना कि‍छु पुछनहि‍ माए, बेटीकेँ कनैत देखि‍, छाती पीटि‍-पीटि‍ कनवो करए आ दुनू हाथे पँजि‍या कऽ पुछलक- की भेलौ, हम माए छि‍यौ, हमरा ने कहमे ते केकरा कहवीही।‍
जेना-जेना माए बेटीक मुँहक बात सुनैत तेना-तेना देहमे आगि‍ सुनगए लगलै। सुनैत-सुनैत बमकि‍ कऽ पति‍केँ कहलक - जहि‍ना हमर बेटीक इज्‍जत सि‍सौनीबला लुटलक तहि‍ना सि‍सौनीक दुर्गास्‍थानमे मनुक्‍खक बलि‍ पड़त।‍
फेर की छल! समस्‍त बॅसपुराक लोकमे प्रति‍शोधक ज्‍वाला धधकए लागल। सि‍सौनी गाममे आक्रमण कए कचरमवद्ध करबाक प्‍लान बनए लागल। मुदा उपन्‍यासकारक सोझराएल मोन देखू। जखन समस्‍त गामक लोक कचरमबध करबाक योजनाकेँ लगभग ध्‍वनि‍मतसँ स्‍वीकृति‍ दऽ देने छल तइ‍काल गाममे एक-आध एहेन व्‍यक्‍ति‍क प्रवेश होइत अछि‍ जे दुनू गामक बीच सामंजस्‍य स्‍थापि‍त करैत छथि‍। गामक सभसँ बुजुर्ग- मनधन बाबाक प्रवेश लोकक भीड़केँ एक दोसर दि‍शामे लऽ जाइत छैक। परम्‍परागत मि‍थि‍ला समाजमे आइयोक समैमे बूढ़-पुरान आ अनुभवी लोकक बड्ड सम्‍मान छैक। एकर प्रमाण ऐ सन्‍दर्भसँ भेटैत अछि‍ जे जखन मनधन बाबा लोककेँ दुनू गाममे झगड़ा नै‍‍ करबाक अपन वि‍चार दैत छथि‍न ताहि‍खन बेटीक इज्‍जतक बदला लेबाक लेल बदलाक आगि‍मे जड़ैत आेइ‍ लड़कीक माए पवि‍त्री सेहो मानि‍ जाइत अछि‍। पवि‍त्री बोम फाड़ि‍ कानैत कहैत छैक- बाबा, ई तँ गामक मेह छथि‍न तँए हि‍नकर बात मानि‍ लेलि‍एनि‍। नै तँ आइ सि‍सौनीमे आगि‍ लगौने बि‍ना छोड़ि‍ति‍ऐ। जखैनसँ बेटी आइलि‍ तखैनसँ एक्को बेर‍‍ मुँह उठा नै तकैए। कनैत-कनैत दुनू आँखि‍ डोका जकाँ भऽ गेलै। सदि‍खन एक्केटा रट लगौने अछि‍ जे जीवि‍ये कऽ की हएत? जखन इज्‍जत चलि‍ये गेल तखैन कोन मुँह समाजकेँ देखाएब।‍

कल्‍पना करू एक माए केर आवेश आ वेदनाकेँ! आ आेइ‍ समाज आ गामकेँ जकर ब्‍याहल जवान लड़कीक इज्‍जतक संग कुनो पड़ोसी गामक लफन्‍दर सभ मिलि‍ खेलबार केने होइक!! सभ लड़-मरऽक लेल अमादा!! मुदा एक अनुभवी बुजुर्गक प्रति‍ गामक लोकक आश्चर्यजनक सम्‍मान। जकरा कारण अपन खूनक घूँघट पीब‍ सभ शान्‍त भऽ जाइत अछि‍। एक नव वातावरणक संचार होमए लगैत अछि‍। लेखक ऐ कार्यकेँ एक मांजल साहि‍त्‍यकार जकाँ उत्तम ढंगसँ करैत छथि‍।

उपन्‍यासक समस्‍त क्रि‍या-कलाप बॅसपुरा गामक इर्द-गीर्द घुमैत समस्‍त मि‍थि‍ला समाजक समस्‍याक चि‍त्रण करए लगैत अछि‍- लोकक पलायण केर समस्‍या, सरकारी मदति‍ आ कार्यक्रमकेँ ठीकसँ नै‍‍ पहुँचबाक समस्‍या, मल्‍लाह-पोखरि‍ (जलकर) आ सोसाइटीक समस्‍या, कि‍सान बोनि‍हारक समस्‍या, कोशीक कहरक समस्‍या, एक वि‍धवा जकर पति‍ कमे वएसमे मरि‍ जाइत छैक, बेटी ब्‍याहलि‍ छैक आ बेटा नौकरी करए लेल जे प्रदेश गेलै से तीन बरख धरि‍ गाम नै‍‍ अएलैक, तकर समस्‍या, मि‍थि‍लाक वि‍धवा सबहि‍क समस्‍या आ वि‍धवा सबहि‍क सामाजि‍क वैज्ञानि‍क जकाँ वि‍भि‍न्न श्रेणीमे वि‍भक्‍त कए आेइ‍ श्रेणी सबहक समस्‍या, कोशी नदीकेँ कटाब कोना बॅसपुरा गामक लोककेँ मातृभूमि‍ केर परि‍भाषासँ दूर करैत अछि‍ तकर समस्‍या, एक कुमहार आ ओकर सपनाकेँ सही अर्थमे साकार करबाक समस्‍या, दू-गामक लोकक बीच उपद्रवी तत्‍व द्वारा समस्‍या उत्‍पन्न करब आ गामक समझदार लेल अथक प्रयास करबाक समस्‍या, आदि‍-आदि‍। एना बुझाएत जे बॅसपुरा गाम उपन्‍यासकार, जगदीश प्रसाद मण्‍डल जीक प्रयास द्वारा एकटा मि‍नि‍एचर मि‍थि‍ला बनि‍ गेल अछि‍।
पोथीक एक-एक पांति‍-पोथि‍क नामकरण जीवन संघर्ष केँ सटीक प्रमाणि‍त करैत आगाँ बढ़ैत अछि‍। पाठक उपन्‍यासक संग जीवनसँ संघर्ष करए लागैत अछि‍ : हँसैत, बाजैत, जुझैत, कानैत आ फेर उपन्‍यासकारक प्रयाससँ नव उत्‍साह आ नव चेतना पाबि‍ जीवनकेँ पुन: सार्थक सि‍द्ध करबाक योजनामे संलग्‍न होमए लगैत अछि‍। मण्‍डलजी भेरचाल चलएबला उपन्‍यासकार आ साहि‍त्‍यकारसँ हटि‍ अपन स्‍वतन्‍त्र अस्‍ति‍त्‍व बनबैत एक दि‍स तँ समस्‍याक वर्णन करैत छथि‍ आ दोसर दि‍स समस्‍यासँ घबराइत नै‍‍ छथि‍। कुनो वैमनस्‍यता किंवा बदलाक भावनासँ ग्रसि‍त नै‍‍ छथि‍। समस्‍याक नि‍दान जे कि‍ यथार्थवादी नि‍दान सेहो प्रस्‍तुत करैत छथि‍। आ उपन्‍यास बि‍ना कुनो अवरोधकेँ आगाँ बढ़ल जाइत अछि‍।

रमेसरा दि‍ल्‍लीसँ वापस आबि‍ आब गामेमे अनेक तरहक समानक दोकान खोलने अछि‍। समानमे लोहा आ लकड़ी दुनू वस्‍तु छैक : ‍हँसुआ, खुरपी, टेंगारी, पगहरि‍या, कुड़हड़ि‍, खनती, चक्कू, सरौत, छोलनीक संग चकला, बेलना, कत्ता, रेही, दाइब, खराम.......।
दि‍ल्‍लीमे जे लोक जत्‍थाक जत्‍थामे मजदूरी करए अबैत अछि‍ तकरा बारेमे ओकर वि‍चार बड़ा सटीक छैक : ‍ि‍दल्‍ली सेट सभकेँ फुलपेंट, चकचकौआ शर्ट, घड़ी, रेडि‍यो, उनटा बावरी देखि‍ हमरो मन खुरछाही कटए लगल। गामपर ककरो कहबो ने केलि‍ऐ आ पड़ा कऽ चलि‍ गेलौं। अपने जाति‍क (बरही) अइठाम नौकरी भऽ गेल। तीन हजार रूपया महि‍ना दरमाहा आ खाइले दि‍अए। मुदा तते खटबे जे ओते जँ अपने गाममे खटी तँ कतेक बेसी होइए। घुरि‍ कऽ चलि‍ एलौं। जहि‍या सुनलि‍ऐ जे अपनो गाममे काली-पूजाक मेला हएत तहि‍यासँ एते समान बनौने छी। कहुना-कहुना तँ चारि‍-पाँच हजारक समान अछि‍। कोनो की सड़ै-पचैबला छी जे सड़ि‍ जाएत। तोरा सभकेँ ने झि‍ पड़ै छौ जे दि‍ल्‍लीमे हुन्‍डी गारल अछि‍। हम एक्के मासमे झि‍ गेलि‍ऐ। जखन अपना चीज-बौस बनबैक लूरि‍ अछि‍ तखन अनकर तबेदारी कि‍अए करब। अपन मेहनतसँ मालि‍क बनि‍ कऽ कि‍अए ने रहब। तँू सभ ने अनके कोठा आ सम्‍पत्ति‍केँ अपन बुझै छीही। मुदा ई बुझै छीही जे धनि‍कहा सभ तोरे मेहनत लुटि‍ कऽ मौज करैए। अखैन जो, कनी दोकान लगबै छी।
माटि‍सँ जुड़ल उपन्‍यासकार मण्‍डलजी रमेसराक माध्‍यमसँ मि‍थि‍लासँ पलायण करैत लोककेँ मि‍थि‍लेमे रहि‍ अल्‍टरनेटि‍व धन्‍धाक उक्ति‍ बता रहल छथि‍।

उपन्‍यास आगाँ बढ़ैत अछि‍। डोमक धंधा आ ओकर क्रि‍या-कलापक सजीव वर्णन एहेन जे सोझे गाम चलि‍ जाएब। बि‍ना कोनो नोन-मि‍रचाइ लगौने, सहज आ स्‍वभावि‍क। मण्‍डलजी जनसामान्‍यक बात आ परि‍स्‍थि‍ति‍क वर्णन जनवाणीमे करैत छथि‍। समस्‍त उपन्‍यासमे कुनो एहेन शब्‍द नै‍‍ भेटत जकर अर्थ एक साक्षर मात्रोकेँ बुझएमे दि‍क्कत हो। एक दि‍स यात्रीजी मि‍थि‍लाक परि‍स्‍थि‍ति‍सँ परेशान होइत जतए दि‍ल्‍ली अथवा आनठाम पलायण करबाक वि‍चार दैत स्‍वयं दि‍ल्‍ली चलि‍ जाइत छथि‍ : आब जँ तँू अतए रहवैं/ कहतौ लोक बताह/ तँए हम्‍मर बात मान आ सोझे दि‍ल्‍ली जाह/ कहै छथि‍ ठीक एकर वि‍परीत मण्‍डलजी परि‍स्‍थि‍ति‍सँ सामना करबाक लेल अपन पात्रककेँ ब्‍यौंत बुझबै छथि‍। चाहे ओ मि‍ठाइ बनाबैबला हो, लोहार हो, कुम्‍हार हो, अथवा कि‍यो आर हो। मण्‍डलजी कथनी आ करनीमे सामंजस्‍य रखै छथि‍ आ स्‍वयं गामेपर रहै छथि‍। कहि‍यो चाकरीक खोजमे मि‍थि‍लासँ बाहर नै‍‍ गेलाह।

उपन्‍यास आगाँ बढ़ैत अछि‍। भगता जहल कि‍एक गेल रहै तकर वर्णन शायद समाजक अन्‍ध व्‍यवस्‍थापर प्रहार थि‍क। केना ओ एकटा कलकतामे नोकरी करनि‍हारक घरवालीक संग मध्यरात्रिमे गलत कार्य करबाक कोशि‍श केलक आ भण्‍डा-फोरी भऽ गेलै, तकर नीक वर्णन पोथीमे भेटैत अछि‍।

पोथीमे जखन जोगि‍नदर अपन ग्रह ठीक करबाक लेल वि‍वि‍ध रूपेँ दान पूण्‍य करबाक वि‍चार करैत अछि‍ तँ मंगलसँ बात करैत मसोमात सभकेँ मदति‍ करबाक हेतु तैयार भऽ जाइत अछि‍। अतय सेहो मण्‍डलजी सरकारी सुवि‍धा आ मसोमातपर मंगलक मुँहसँ समाजि‍क परि‍स्‍थि‍ति‍पर प्रहार करैत लि‍खैत छथि‍- अपना अहि‍ठाम दू तरहक मसोमात अछि‍, एक तरहक सरकारी अछि‍ आ दोसर तरहक समाजक अछि‍। सरकारी मसोमात ओ छी जे सरकारक देल सभ सुवि‍धा पबैत अछि‍। आ समाजि‍क वि‍धवा ओ छी जेकरा ने सरकार जनै छै आ ने ओ सरकारकेँ जनैत अछि‍। कि‍छु गनल सरकारी मसोमात अछि‍ जे ओकर पोसुआ छी। जे कोनो सरकारी सुवि‍धा मसोमात सबहक लेल आओत ओ ओकरे भेटतैक। अजीब खेल सरकारो आ मसोमातोक अछि‍। आेहि‍ पोसुआ मसोमातकेँ इन्‍दि‍रो आवासक घरो छै आ बाढ़ि‍-बरखामे घरखस्‍सीक रूपैआ सेहो भेटतै आ बाढ़ि‍सँ क्षति‍ फसलक क्षति‍पूर्तिक रूपैआ सेहो ओकरे भेटतै। ततबे नहि‍, वृद्धावस्‍था पेंशन सेहो ओकरे भेटतै आ रोजगार चलबैक नाओंपर सबसीडी सेहो भेटतै। तँए सरकारी मसोमात छोड़ि‍ जे नि‍रीह समाजक मसोमात अछि‍, जँ ओकरा जीबैक उपाए भऽ जाए तँ उपाय केनि‍हारकेँ अइसँ बेसी दान-पुनक फल कतए भेटतै। धन्‍यवाद आेइ‍ माए-दादीकेँ दी जे सत्तर-अस्‍सी बर्खक बि‍तौलाक बादो जेठक दुपहरि‍या, भादवक झाँट आ माघक शीतलहरीमे, जी-जानसँ मेहनत करैत अछि‍। धन्‍यवाद आेहि‍ अस्‍सी बर्खक मैयाकेँ दी जे माथपर धान, गहूम, मकैक बोझ लऽ कऽ दुलकी चालि‍मे गीत गुनगुनाइत खेतसँ खरि‍हान अबैत छथि‍।..... तँए पहि‍ने जा कऽ आेहि‍ मैया सभकेँ गोड़ लागि‍ कहि‍हक बाबी, समाजरूपी परि‍वारक अहूँ छी आ हमहूँ छी, तँए कमाइबलाक ई दायि‍त्‍व बनि‍ जाइत अछि‍ जे परि‍वारमे वृद्ध आ बच्‍चाक सेवा इमानदारीसँ होय। हम अहाँकेँ मदति‍ सेवाक रूपमे दऽ रहल छी। तखन ओ वेचारी हँसि‍ कऽ असि‍रवाद देथुन।‍

साहि‍त्‍यकेँ समाजक दर्पण कहल जाइत अछि‍। दर्पण तखन जखन साहि‍त्‍यकार पारखी होथि‍। समाजक संग चलथि‍। सामाजि‍क व्‍यवस्‍थाकेँ समैक संग वि‍वेचना करथि‍। साहि‍त्‍य सृजनक धर्मकेँ बुझथि‍। मण्‍डलजी ऐ कार्यकेँ इमानदारीपूर्वक केलनि‍ अछि‍। ऐ‍‍ उपन्‍यासकेँ हि‍न्‍दी, अंग्रेजी इत्‍यादि‍ भाषामे अनुवादि‍त कए प्रचार-प्रसार होमाक चाही। ई रचना समाजक दर्पण अछि‍। एक नि‍श्चल आ आशावान वि‍चारधाराकेँ प्रतिपादित करैत अछि‍। जगदीश प्रसाद मण्‍डल अपन कृति‍मे Native intelligence केर अभूतपूर्व प्रमाण दैत छथि‍। पुस्‍तक केर साज सज्‍जा, आवरण इत्‍यादि‍ नीक अछि‍। प्रकाशक सेहो धन्‍यवादक पात्र छथि‍।
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