एक्ैसम शताब्दीक दशांशक परिसमाप्तिक अवलोकन कएलापर परिणाम भेटल जे ऐ अवधिमे किछु एहेन तरूण रचनाकारक पदार्पण मैथिली साहित्यमे भेल जनिक रचना सभसँ हमर साहित्य पुलकित भऽ रहल अछि। श्री गजेन्द्र ठाकुर ऐ अत्याधुनिक पिरहीक लेल पथ प्रदर्शक छथि, जनिक कुशल नेतृत्वमे श्री विनीत उत्पल, श्री उमेश मण्डल, श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरी, श्रीमती प्रीति झा ठाकुर सन रचनाकारक मंडली मैथिलीकेँ नवल ज्योति प्रदान कऽ रहल।
सन २००९ई.मे विनीत उत्पल जीक पहिल कविता संग्रह “हम पुछैत छी” श्रुति प्रकाशनक सौजन्यसँ प्रकाशित भेल। विनीत जीक जन्म मधेपुरा जिलाक आनंदपुरा गाममे भेल। प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा मुंगेर आ स्नातक भागलपुरमे। व्यावसायिक पाठ्यक्रम नई लिल्लीसँ प्राप्त कऽ सम्प्रति राष्ट्रीय सहारा नोएडामे वरिष्ठ उपसंपादक छथि। मैथिली-मिथिलाक सांस्कृतिक गति विधि आ अभिव्यक्तिक समायोजनक आधारपर दरभंगा आ सहरसाकेँ मुख्य केन्द्र भूमि मानल जाइत अछि। दरभंगा जिलासँ विभक्त भेलापर उपेक्षाक जे दंश समस्तीपुर जिला वासीकेँ भेटलनि, वएह दंश मधेपुराक लोक सेहो अनुभव कऽ रहल छथि। कविक जन्म मधेपुरामे आ प्रारंभिक शिक्षा अंग प्रदेशमे, परंच कविता सभ खॉटी मैथिलीमे, अजगुत तँ अवश्य लागल मुदा विनीत जीक मातृभाषानुरागसँ तीत-भीज गेलहुँ।
ऐ कविता संग्रहक भूमिका सिद्धहस्त साहित्यकार श्री गंगेश गुंजनजी “कविक आत्मोक्ति : कविताक अएना” शीर्षक दऽ लिखने छथि। गुंजन जीक व्यक्तित्व आ कृतित्व मैथिली साहित्यक लेल कालजयी मुदा कविक आत्मोक्तिक विवेचनमे श्री गुंजनक लेखनी कनेक कंजूस बनि कऽ रहि गेल। हमरा मतेँ कोनो नवतुिरया रचनाकारकेँ हृदेसँ प्रोत्साहित करबाक चाही। ओहूमे जै भाषामे पाठकक संख्या लगातार घटि रहल हुअए।
पचास कविताक संग्रहमे पहिल कविता “ककर गलती” विधवाक अवस्थापर व्यथित कविक लेखनी मैथिली वर्गक कथाकथित आगाँक जातिक मध्य प्रश्न ठाढ़ करैत अछि। ठोप, चानन आ पाग मैथिलक सवर्ण समाजमे पुरूष कतेको बेर धारण कऽ सकैत छथि मुदा स्त्री तँ अवला....। विवाहक क्षणहिंमे जौं पतिक मृत्यु भऽ जाए तँ जीवन भरि सतीत्वक दंश झेलए पड़तनि। लार्ड विलियम बेंटिक केर सुधारवादी आन्दोलनमे बंगालक ब्राह्मण सुधरि गेलाह मुदा मैथिल ब्राह्मण अपन सनातन संस्कृतिक रक्षक छथि, अवलाकेँ सबला बनेबामे धर्म नष्ट भऽ जेतनि। नाओं गौरी दाइ मुदा समाजक लेल डाकिनी भऽ गेली-
की करती गौरी दाइ
किओ हुनका देवी कहतन्हि
तँ डाइन जोगिन कहवासँ
लोक वेद पाछुओ नै रहतन्हि।
कहबाक लेल तँ हमरा सबहक संस्कृतिमे शक्तिक उपासना प्रासंगिक अछि मुदा हम सभ अपने घरक शक्तिकेँ अपमानित आ मर्दित कऽ रहल छी। “मनुक्खो नै भेल” शीर्षक कवितामे भौतिकता आ बौद्धिकताक आड़िमे जीवन अवस्थाक अव्यवस्थित रूपक प्रदर्शन नीक लागल-
राति मे घर मे नहि रहैत छी
जखन कि चिड़ै चुनमुनी सेहो
साँझ पड़ैत घर घुरैत अछि
“की फर्क पड़ैत अछि” शीर्षक कविता बौद्ध संस्कृतिक केन्द्र वैशालीसँ तथागतक संदर्भमे लिखल गेल। बिम्ब तँ नीक मुदा विश्लेषण स्पष्ट नै भऽ सकल। सभ पाठक तँ इतिहास विद् आ दार्शनिक नै छथि तँए कविताकेँ उपयुक्त आ पूर्ण नै मानल जा सकैछ। िवनीत जीकेँ कनेक फरिछा कऽ लिखबाक चाही छल। पहिने समाज दाणवीर कर्णकेँ सुतपुत्र मानैत छल जखन महाबली भऽ गेलाह तँ सूर्यपुत्र मानल गेलाह। वास्तविकता जे हुअए मुदा अंग प्रदेशकेँ कर्णक कर्मभूमि मानल जाइत अछि। कविक प्रारंभिक शिक्षा मुंगेरमे भेलनि तँ अपन कर्मभूमिक वर्तमान अवस्थासँ मर्मािहत छथि-
दल मलित होइत अछि
अंग प्रदेशक आत्मा
आ बजबैत अछि
तारणहार केँ...।
अपन संस्कृतिक रक्षाक तादात्म्यमे हम सभ अनसोहांत काज सेहो करैत छी। धार्मिक आडंम्बरक एकटा प्रमाण अछि- मधुश्रावणी। कहबाक लेल तँ ऐ पर्वकेँ मिथिलाक संस्कार पर्व मानल जाइत अछि मुदा वास्तवमे मैथिल ब्राह्मण आ मैथिल कर्ण कायस्थक मध्य मधुश्रावणी पर्व मनाओल जाइत अछि। “परीक्षा” शीर्षक कविताक माध्यमसँ कवि ऐ पावनिमे पतिब्रताक प्रमाणपत्र- टेमी प्रथापर प्रहार केलनि। पुरूष भेलाक पश्चात् सेहो कवि परीक्षासँ डेराइत छथि तखन नारीकेँ अहिल्या जकाँ बेर-बेर परीक्षा किए लेल जाइत अछि।
“गाम डूबि गेल” शीर्षक कविता बाढ़िक विनाश लीलाक औसत प्रदर्शन मात्र मानल जा सकैछ।
संग्रहक सभसँ कलात्मक आ प्रासंगिक कविता- हम पुछैत छीकेँ मानल जाए। वास्तविक सेहो जे जै कविताक शीर्षककेँ कविता संग्रहक शीर्षक दऽ देल गेल ओइ कवितामे कविक आंतरिक जुआरि अवश्य हेतनि। ऐ कविताक माध्यमसँ कवि समाजक समीक्षाक लेल उद्यत छथि। समाजक सभटा व्याधिपर कविक लेखनी स्वच्छन्द भऽ विचरण केलक।
सरिपहुँ विनीत जी पत्रकार छथि देशकालक दशाक विवेचन नित्य करैत छथि तखन रचना झाँपल कोना रहत। “मनुख आ माल” एवं “समाजक ई रूप” वर्तमान मनुक्खक ओझराएल मानसिकताकेँ देखबैत अछि। अर्थनीति विलोकित भऽ गेल, भौतिकता समाजकेँ बॉटि रहल अछि, अधिक प्राप्तिक आशमे कुकर्म बढ़ि रहल अछि। एवं प्रकारे ऐ दुनू कविताक दृष्टिकोण नीक लागल। “मरलाक बाद” शीर्षक कवितामे दर्शनशास्त्रक अनुभूित होइत अछि। पुष्कर कवितामे भारतीय इतिहास आ अपन संस्कृतिक शीतल वातसँ गौरवान्वित भेलहुँ।
ऐ कविता संग्रहक सबल पक्ष अछि बिम्बक चयन आ िवश्लेषण। भाषा सेहो सरल आ मैथिलीक खाॅटी शब्दसँ ओत प्रोत अछि। मुदा दुर्बल पक्ष भेटल प्रवाहक कमीक रूपमे। कविता आशु कविता हुअए वा अतुकांत- छंदक लेपन आवश्यक होइत छैक। ऐ कविता संग्रहमे छंदक समायोजन समुचित रूपेँ नै कएल गेल कोनो-कोनो कविता तँ गद्य जकाँ बुझना गेल। कविकेँ आगाँ एे बिन्दुपर धियान राखए पड़तनि। निष्कर्षत: तरूण कविक प्रांजल मुदा प्रवीण प्रस्तुति, विनीत जीकेँ कोटि-कोटि साधुवाद.....।
पोथीक नाओं- हम पुछैत छी
प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन
मूल्य- १६० टाका मात्र
वर्ष- २००९
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