Pages

Saturday, April 7, 2012

लोकक जत्‍थाक-जत्‍था पड़ाइनकेँ रोकल जा सकैत अछि‍ :: डॉ. कैलाश कुमार मि‍श्र


पोथी समीक्षा- 
गामक जि‍नगी 

समाजमे परि‍वर्तन किंवा परि‍स्‍थि‍ति‍क अनुसार कुनो अल्‍टरनेटि‍व उपायक ब्‍यौंत करक हेतु हमेशा कुनो अवतार, पैगम्‍बर, महान पुरूष, वि‍द्वान, राजा राममोहन राय अथवा  महात्‍मा गान्‍धीक जरूरत नै। अनेको परि‍स्‍थि‍ति‍मे ऐ तरहक कार्य कि‍योक- गामक सामान्य एवं नि‍रक्षर महि‍ला, रि‍क्‍शा चलबैबला, बारह बर्खक बालि‍का, चाह बेचैबला युवक, गामक लोककेँ बेर वि‍पत्ति आ पावनि‍-ति‍हारमे कार्य आबए वाली वृद्ध महि‍ला, पोखरि‍मे माछक धंधा करैबला मल्‍लाह कऽ सकैत अछि‍। प्रकृति‍ आ संस्‍कृति‍मे सामंजस्‍य कए कऽ मनुष्‍य रहि‍ सकैत अछि‍। जापानमे बेर-बेर भुकम्‍प होइत छैक। तकर मतलब तँ ई नै जे जापानक लोक जापाने छोड़ि‍ दि‍अए! जापानक  लोक अपना देशसँ बड्ड सि‍नेह रखैत छथि‍। ओइ भूमि‍क रचना आ भुकम्‍पकेँ देखैत घरक रचना एवं संस्‍कृति‍क वि‍कास करैत छथि‍। जापान वि‍श्‍वमे एक चमकैत आ उदीयमान नक्षत्र अछि‍। तहि‍ना अपन 19 गोट कथाक माध्‍यमसँ जगदीश प्रसाद मण्‍डल कहए चाहैत छथि‍ जे बाढ़ि‍,  रौदी एवं अन्‍य प्राकृति‍क वि‍पदाक समाधान अगर मि‍थि‍लाक लोक चाहथि‍ आ लगनसँ कार्य करथि‍ तँ स्‍थानि‍य तौरपर कएल जा सकैत अछि‍। लोकक जत्‍थाक-जत्‍था पड़ाइनकेँ रोकल जा सकैत अछि‍। कथामे गामक परि‍वेश आ परि‍स्‍थि‍ति‍केँ सटीक वर्णन कएल गेल अछि‍। अपन छोट-छोट कथासँ लेखक पाठकेँ सोचबाक लेल वि‍वश कऽ दैत छथि‍। ऐ कथा-संग्रहक नाम थीक- गामक जि‍नगी। गामक जीवनक लगभग प्रत्‍येक परि‍स्‍थि‍ति‍क चर्चा अलग-अलग रूपेँ अलग-अलग कथाक माध्‍यमसँ कएल गेल अछि‍।

पहि‍ल कथा थीक भैंटक लावा। ऐ कथाक तुलना कुनो भाषाक कुनो कालजयी लेखक केर कथासँ कएल जा सकैत अछि‍। भयंकर बाढ़ि आ बाढ़ि‍क वि‍भाषि‍का संगहि‍-संग बाढ़ि‍क बाद जे लोककेँ समस्‍याक समना करए पड़ैत छै तकर बेजोड़ वर्णन। एहि‍ना स्‍थि‍ति‍मे सामान्‍यतया साहि‍त्‍यकार लोकनि‍ जखन कुनो जमि‍न्‍दारक चरि‍त्रक वर्णन करैत छथि‍ तँ ओकरा क्रूर, नृशंस, हृदएहीन बना मात्र  ओकर व्‍यक्‍ति‍त्‍वक गलत पक्षक वर्णन करैत छथि‍। लेकिन मंडलजी त सामंजस्य स्थापित करबा में माहिर छथि। एहि कथा में महाजनों ओतबे परेशां अछि जतेक कुनो आन ग्रामीण.।  बल्कि महाजन ज्यादे परेशान अछि- कोना अपन इज्जत आ कोना गामक लोक सबहक भारपन राखत? कथा में माहाजन श्रीकान्‍त परेशान जे बाढ़ि‍सँ धानक फसलि‍ सुड्डाह। एक्को धुर धान नहि‍ बंचल अछि जे अगहनोक आशा होइत। जे सभ दि‍न कीनि‍-बेसाहि‍ कऽ खाइत अछि‍ ओकरा तँ कोनो नै मुदा हमरा लोक की कहत? चाह-पीबि‍ते-पीबि‍ते श्रीकान्‍तकेँ चौन्‍ह आबए लगलन्‍हि‍। मन पड़लनि‍ जे बाबा कहने रहथि‍ जे दरबज्‍जापर जँ क्‍‍यो दू-सेर वा दू-टाका मांगए लेल आबए तँ ओकरा ओहि‍ना नहि‍ घुमबि‍हक। ओहि‍सँ लक्ष्‍मी पड़ाइ छथि‍।‍ लेखक माहाजनक वेदनाकेँ सेहो उजागर करैमे सफल छथि‍। समान्‍यतया अन्‍य लेखक लोकनि‍ ऐ तरहक भावनाकेँ नै व्‍यक्‍त कऽ सकैत छथि‍। श्रीकान्त बजै छथि‍- जहि‍ना सभ कि‍छु बाढ़ि‍मे दहा गेल तहि‍ना जँ अपनो सभ तुर भसि‍ जइतहुँ, से नीक होइत। जाबे परान छुटैत, ततबे काल ने दुख होइत। आगू तँ दुख नहि‍ काटय पड़ैत।‍

भैंटक लावा कथाक दोसर आ मुख्य आधार या वि‍शेषता एक नि‍रक्षर महि‍ला- मलाहि‍न द्वारा भैंटक खोज अनाजक रूपमे करब थीक। कोना भैंटि‍क दानाकेँ जमा करब, कुटब, छाँटब आ लावा भुजबक प्रक्रि‍या  जे जीबछी मलाहि‍न करैत अछि‍ से पाठककेँ एको क्षण कथासँ भटकऽ नै दैत अछि‍। भैंटक दानाक लावा गामक लोककेँ जीबाक एक पैघ सामग्री बनि‍ जाइत अछि‍ आ ओकर श्रेय जीबछीकेँ जाइत छै। जीबछीक लावाकेँ चीखैत श्रीकान्‍त पत्नीसँ कहैत छथि‍- एत्ते सुन्नर वस्‍तुकेँ एखन धरि‍ जनि‍तहुँ नहि‍ छलहुँ। धन्‍य अछि‍ जीबछीक ज्ञान आ लूरि‍ जे एहेन सुन्नर हराएल वस्‍तुकेँ ऊपर केलक। साक्षात देवी छी जीबछी। जाउ, सन्‍दुकमे सँ एक जोड़ी‍ साड़ी आ आंगी नि‍कालने आउ। जीबछीकेँ अपना ऐठामसँ पहि‍रा कऽ वि‍दा करब। गरीब-दुखि‍याक देवी छी जीबछी।”‍ ऐसँ ई पता चलैत अछि‍ जे लेखक समाजक सभ वर्गक लोककेँ ध्‍यानमे रखैत अपन रचनाकेँ आगा बढ़बैत छथि‍। जीबछीक ज्ञानक सम्मान होइएत अछि आ जीब्ची एकता क्रांति लाबैत अछ। आहें क्रांति जे समाज में एकटा जीवन जीबाक आधार देत अछि ।

नारी ज्ञान आ बि‍पत्ति‍क क्षणमे नारीक सुझाएल ओरि‍यात जइसँ रौदीकेँ, वि‍भि‍षि‍काकेँ सामाना कएल जा सकैत अछि‍ केर ज्ञान बि‍साँढ़ कथाक माध्‍यमसँ होइत अछि‍। कथाक पात्र डोमन केर पत्नी सुगि‍या द्वारा ई कहब जे, जकरा खाइ-पीबैक ओि‍रयान करैक लूरि‍ बुझल छैक ओ कथीक चि‍न्ता करत? ऐ बातक प्रमाण अछि‍। लगातार तीन-चारि‍ वर्ष रौदी हेबाक कारणे गामक गाम लोक खाली कऽ परदेश भागि‍ गेल। मुदा सुगि‍याक सोझाएल  ओि‍रयाॅनसँ ओकर पति‍ डोमनकेँ जखन ऐ बातक भान होइत छैक जे पुरैनि‍क जड़ि‍मे बि‍साँढ़ फड़ैत छैक। अल्हुए जकाँ। आ ओ अपन कार्यमे लागि‍ जाइत अछि‍। कोदारि‍ चलाबैमे जखन परेशानी होइत छै तँ डोमनकेँ सुगि‍या ई कहि‍ कार्य करबाक प्रति‍ जोश उत्पन्न करैत छैक- हमर चूड़ी-साड़ी पहीर लि‍अ आ हमरा धोती ि‍दअ। तखन कोदारि‍ पाड़ि‍ कऽ देखा दै छी।‍ पुरुषक दंभ ओकरा गतिमान बना देत छैक  फेर जोशमे आबि‍ डोमन कोदारि‍ भांजय लगैत अछि‍। तकर परि‍णाम ई जे बि‍साँढ़क जड़ि‍ भेटलैक। बि‍साँढ़क वर्णन जे लेखक करैत छथि‍ तँ यात्रीक कटहरक वर्णनक स्‍मरण होमय लगैत अछि‍! बि‍साँढ़क वर्णन ने देखू- उज्‍जर-उज्‍जर। नाम-नाम। लठि‍आहा बाँस जेकाँ। गोल-गोल, मोट। हाथी दाँत जेकाँ चि‍क्कन, बीत भरि‍सँ हाथ भरि‍क। पाव भरि‍सँ आध सेर धरि‍क।‍ लागत एना जेना बि‍साँढ़क जड़ि‍सँ उत्म खाद्य पदार्थ दुनि‍यामे कुनो नै! बातो सैह अगर लोक के किछु खेबाक लेल नहि  उपलब्ध हेतैक त किछु त चाही जाही स प्राणरक्षा भा सके।  ओहो खोज एहेन जे लोकक दोसर ठाम जेनइए रोकि दे । ‍बि‍साँढ़ एक उत्तम उपाय अथवा व्योंत बनि जाएत अछि।  

पीरारक फड़ कथामे मण्‍डलजी एक पात्र धनि‍याक माध्‍यमसँ पीरारक फड़'क वि‍शेषताक वर्णन करैत छथि‍। कोना धनि‍या अपन पति‍ पि‍चकुन केर सहायतासँ पीरारक फड़ तोरि‍-तोरि‍ हाटे-हाटे गामे-गामे बेचैत अछि‍ आ पि‍चकुन अनेरूआ माछ मारि‍ बेचबो करैत अछि‍ आ खाइतो अछि‍। धनि‍या अपन युक्ति‍सँ पीरारक फड़ आ अनेरूआ माछसँ अपन आर्थिक तंगीकेँ दूर करैत अछि‍ आ जीवनमे सभ कि‍छु जोड़बाक प्रयास। अगर मनुष्य लगन स कार्य करे त सब किछु संभव छैक । अनेरे गाम या मिथिला स पड़ा गेने समस्याक समाधान नहि भा सकैत अछि ।

अनेरूआ बेटा एक एहेन गरीब गृहस्‍तक थीक जे लगभग पचासक बयसमे अएलाक बादो संतानहीन छल गंगाराम। हाटसँ आबएकाल जखन एकटा जनमौटी अनेरूआ बच्‍चाकेँ कोरामे लऽ कऽ गंगाराम घर अबैत अछि आ घरवालीकेँ कहैत छैक- आइ भगवान खुश भऽ एकटा बेटा देलनि‍।‍ दुनू परानी प्रसन्न भऽ ओइ बेटाकेँ पोसए लागल। गंगाराम आ विशेष रूप स ओकर पत्नीक ओही अनेरुआ शिशुक प्रति प्रेमक अपूर्व सोहनगर दृश्य उत्पन्न करैत अछि ई कथा। शरीरसँ खि‍न्न होमाक कारने गंगाराम कि‍छु उपार्जन करबा जोकरक नै रहल। बेटा मंगल कि‍छु  पढलक  बाद  आर्थिक वि‍पन्नताक कारणे पढ़ाइ छोड़ि‍ चाहक दोकान खाेि‍ल लैत छै। मंगल अपन पढ़ाइ चाहक दोकानोमे रहि‍ करैत अछि‍। मरै काल गंगाराम मंगलकेँ ओकर जन्‍मक कथा बता देने रहैक। मंगल कि‍ताबक संग-संग समाजक बेबहारक अध्‍ययन सेहो करैत अछि‍। मंगलक कथा एकटा पत्रकार सुनैत छथि‍ आ ओकरा छापि‍ दैत छथि‍न्‍ह। मंगलक एहने कथा पढ़ि‍ सुनयना नामक एक पढ़लि‍ नायि‍का मंगल लग अबैत छथि‍ आ मंगलक प्रति‍भासँ प्रभावि‍त भऽ सुनयना अपन वकील पि‍तासँ दलि‍ल दऽ मंगलसँ वि‍वाह करए लेल पि‍ताकेँ तैय्यार कऽ लैत छथि‍। आ अंततः मंगल आ सुनयनाक वि‍वाह भऽ जाइत छैक। बिम्बक दृष्टिकोने ई कथा उत्तम संगही अहि कथा केर मध्यम स लेखक समाजक दू वर्गके जोडबक प्रयास केलन्हि अछि। परिवेशक वर्णन यथार्थ आ उत्तम बुझना जायत। एहनो बात नहि जे एहि तरहक कथा पूर्व में नहि लिखल गेल हो मुदा ए कथा एकटा नव परिव्षक जन्म देत अछि, चीज के लिखबाक एकटा सहज आ सुन्दर शैली प्रस्तुत करैत अछि।  

दूटा पाइ कथा ओइ तरहक नवयुवकपर कटाक्ष करैत अछि‍ जे दि‍ल्‍ली, मुम्‍बई जा कऽ ओतए केर चकाचौंधमे अपन जड़ि‍केँ बि‍सरि‍ जाइत अछि‍। मुदा माइयक ममत्‍व तँ अथाह समुद्र होइत छैक। फेकुआ अपन कमाइकेँ वस्‍त्र आ फैशनमे बरबाद कऽ लैत अछि‍। बि‍सरि‍ जाइत अछि‍ जे ओकर वि‍धवा माए गाम में कोना जीबैत हेतैक। माए बेटा परदेश गेल अछि‍ आ वापस आएत तँ कमा कऽ ढौआ लाओत तकर ख्‍याली पोलाव बनबैत छैक।
परन्‍तु जखन ओकरा बेटाकेँ यर्थाथक पता चलैत छैक तखनो ओ अर्थात  माए अपन महानताक परि‍चए देबए मे बाज नै अबैत छैक। माए बेटाकेँ कहैत छैक- तों वापस गाम आबि‍ जो। हमरा तोहर कमाइक जरूरत नहि‍ अछि‍। भाड़ा नहि‍ छौक तँ ककरोसँ पैंच लऽ ले, अतय अएलापर दऽ देबै।

बोनि‍हारि‍न मरनी कथा मार्मिक ढंगे लि‍खल गेल अछि‍।  बरबस सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला क स्मरण हरियर भा जेट अछि: वह तोडती  पत्तथर इलाहाबाद के पथ पर/  कथाक एक-एक पांति‍ अर्थपूर्ण लागत बिना कुनो बनबत के यथार्थ के जोड़ैत सत्य के बाचैत। कथाक मुख्‍य पात्र पचास वर्षक मरनीक पति‍, बेटा आ पुतोहू तीनू बज्र खसलासँ गाछक तरमे खून बोकरि‍ कऽ मरि‍ जाइत छै। असहाय अबला लाचार भऽ पाँच वर्षक पोता आ आठ वर्षक पोतीक आशाक संग जीब रहल अछि‍। मरनीक देह आ जीबनक वि‍वरण देबामे लेखकक जवाब नै- कारी झामर एक हड्डा देह, ताड़-खजुरपर बनाओल चि‍ड़ैक खोंता जेकाँ केश, आंगुर भरि‍-भरि‍क पीअर दाँत, फुटल घैलक कनखा जेकाँ नाक, गाइयक आँखि‍ जेकाँ बड़का-बड़का आँखि‍, साइयो चेफड़ी लागल साड़ी, दुरंगमनि‍या आंगी फटलाक बाद कहि‍यो देहमे आंगीक नसीब नहि‍ भेल। बि‍ना साया-डेढ़ि‍याक साड़ी पहि‍रने। यएह छी मरनी।‍ राष्‍ट्रीय राजमार्गक पक्की सड़कक ि‍नर्माणमे जखन मरनीकेँ गि‍ट्टी फोड़ैक कार्य भेटैत छै तँ अपन थाकल आ जीर्न शरीर लऽ सेहो अपन छोट-छोट बच्‍चा सभ लेल ओ ओइमे तल्‍लीन भऽ जाइत अछि‍। लेखक गि‍ट्टी फोड़ैत मरनीक बड़ा सजीब आ कारूणि‍क वर्णन करैत छथि‍ : पचास वर्खक मरनी जे देखैमे झुनकुट बूढ़ि‍ बूझि‍ पड़ैत। सौंसे देहक हड्डी झक-झक करैत। खपटा जेकाँ मुँह। खैनी खाइत-खाइत अगि‍ला चारू दाँत टूटल। गंगी-जमुनी केश हवामे फहराइत। तहूमे सड़कक गरदासँ सभ दि‍न नहाइत। मुदा तैयो मरनी अपन आँखि‍ बचेने रहैत। जखन पुरबा हवा बहै तँ पछि‍म मुँहे घुरि‍ कऽ गि‍ट्टी फोड़ए लगैत आ जखन पछवा बहए लगैत तँ पूब मुँहे घुरि‍ जाइत। बीच-बीचमे सुसताइयो लैत आ खैनि‍यो खा लैत। मुदा तैयो ओकर मुँह कखनो मलि‍न नै होइ। कि‍एक तँ हृदएमे अदम्‍य साहस आ मनमे असीम वि‍श्‍वास सदि‍खन बनल रहैत। तेँ सदि‍खन हँसि‍ते रहए।‍

मुदा मरनीमे आत्‍मबल छैक। जखन ठीकेदार मरनीसँ बात करैत छैक तँ अाेकर मन कानय लगैत छैक। ई लेखकक महानता कहल जा सकैत अछि‍। ठीकेदार की सोचैत अछि‍ से देखू- एत्ते भारी काज केनि‍हारक देहपर कारी खट-खट कपड़ा छै, तहूमे सइयो चेफड़ी लागल छै, काज करै जोकर उमेर नै छै, तैपर एते भारी हथौरी पजेबापर पटकैत अछि‍। ठी‍केदारक मन दहलि‍ गेलै।‍ फेर लेखक द्वारा ठीकेदार मनोदशाक चि‍त्रण देखू : जहि‍ना आकास आ पृथ्‍वीक बीच क्षि‍ति‍ज अछि‍, जाहि‍ठाम जा चि‍ड़ै-चुनमुन्नी लसकि‍ जाइत अछि‍, तहि‍ना ठीकेदारक मन सुख-दुखक बीच लसकि‍ गेल। जेना सब कुछ मनक हरा गेलै। शून्न भऽ गेलै। ने आगूक बाट सूझै आ ने पाछुक। मरनीसँ आगू की पूछब से मनमे रहबे ने केलै। साहस बटोरि‍ पुछलक- भरि‍ दि‍नमे कते रूपैया कमाइ छी? ठीकेदारक प्रश्‍न सुनि‍ मरनीक मोनमे झड़क उठलै। बाजलि‍- कते कमाएब! जेहने बैमान सरकार अछि‍ तेहने ओकर मनसी छै। चारि‍ दि‍न एकटा पजेबाक ढेरी फोड़ै छी तँ तीन-बीस रूपैया दैए। आइसँ तीन तूरक पेट भरत? भरि‍ दि‍न ईंटा फोड़ैत-फोड़ैत देह-हाथ दुखाइत रहैए मुदा एकटा गोटि‍यो कीनब से पाइ नै बॅचैए।‍

लेखक कथाक नि‍ष्‍कर्ष बड्ड संक्षेपमे करैत छथि‍ : ठीकेदारक आँखि‍मे नोर आबि‍ गेलै। मनुष्‍यता जागि‍ गेलै। मुदा ई मनुष्‍यता कते काल जि‍नगीमे अँटकतै? जि‍नगी तँ उनटल छै। जाहि‍मे मनुष्‍यता नामक कोनो दरस नहि‍ छैक।

हारि‍-जीत कथा Internal innovation  केर संदेश दैत अछि‍। एकटा कुम्‍हारक परि‍वार जकर गाम कोसीक बाढ़ि‍सँ कोसीमे धँसि‍ जाइत छैक। अपन जरूरी समान लऽ अन्‍तहीन दि‍शा ि‍दस बढ़ैत अछि‍। रस्‍तामे लछमीपुरक एक बटोही भेट जाइत छै। लछमीपुरमे कुम्‍हार नै रहैत छैक। सोमन ओही गाममे बैस जाइत अछि‍ धंधा चलि‍ पड़ैत छैक। लेखककेँ वि‍शेषता ई जे कुम्‍हारक चाकसँ सम्‍बन्‍धि‍त तमाम प्रक्रि‍याक बनाएल समाग्रीक सेहो पैघ फेररि‍हत प्रस्‍तुत करैत छथि‍। लागत जेना कुनो कुम्‍हार अपन वि‍वरण प्रस्‍तुत कऽ रहल अछि‍। खएर : कथा आगाँ बढ़ैत छैक कुम्‍हारक एक छोट बेटा मेलामे हेरा जाइत छैक। बादमे नै भेटैत छैक। स्‍टील आ आन तरहक वर्त्तन अएलाक कारणे परम्‍परागत वर्तन केर मांग खत्‍म भऽ जाइत छैक। अहि‍ना स्‍थि‍ति‍मे दुनू प्राणी इहो गाम छोड़बाक प्रण करैत अछि‍। सभ ब्‍यौंत कऽ लैत अछि‍। ठीक ओही समएमे बि‍छुरल बेटा जवान भऽ आबि‍ जाइत छैक। समएक अनुसारे ओ नव-नव चीज बनाएब सीख आएल छैक। तँए पुन: कुम्‍हारक धंधा चलि‍ जाइत छैक। लेखक कथाक अन्‍तमे शायद ई कहबाक प्रयास केलन्‍हि‍ अछि‍ जे परम्‍पराकेँ नूतन परि‍प्रेक्ष्‍यमे अपने-आपकेँ मि‍लान कऽ कऽ चलक चाही। अगर समय अनुसरे परंपरा में परिवर्तन आनब त परंपरा कहिओ नहि मरत। कुनो बस्तुक उपाय जरुरी भागने कही कल्याण संभव छैक?

ठेलाबला कथा एक सिद्धान्‍तक जन्‍म दैत अछि‍। भोला नौकरीक तलाशमे कलकत्ता जाइत अछि‍। ओतय ठेला चलबए लगैत अछि‍। दूटा बेटा गामपर  छैक तकरा कष्टों काटि‍ पढ़बैत अछि‍। मैट्रि‍क पास केलाक बाद दुनू भाँइ के अपन पीटक पारिस्थितिक आभाष होइत छैक। पैसाक तंगीक कारण आगाँ नै पढ़ि‍ पबैत छैक, परन्‍तु गामक स्‍कूलमे शि‍क्षा-मि‍त्रक नौकरी दुनू भाँइकेँ लागि‍ जाइत छैक। जखन भोलाकेँ दुनू पुत्र हुनका पत्र लीख कऽ कहैत छन्‍हि‍ जे आब गाम आबि‍ जाऊ तँ भोला गाम आबि‍ जाइत छथि‍। बेटाक पत्र पढ़लाक बाद भोलाक मनोदशाक चि‍त्रण बड्ड मार्मिक लगैत अछि‍ : समाजसँ नि‍कलि‍ छातीपर ठेला घीचि‍, दूटा शि‍क्षक समाजकेँ देलि‍ऐक, की ओहि‍ समाजक आरो ऋृण बाकी छैक?” ए कथ्य अपना आप में अभूत किछु छैक!

जीवि‍का कथाक माध्‍यमसँ परम्‍परासँ जुड़ल मानक परि‍वेशसँ सि‍नेह, परि‍वारक दायि‍त्‍वक ि‍नर्वाह करक संदेश देल गेल अछि‍। लोक शहरीकरणक नकलमे अपन अहि‍तत्‍वक आ संस्‍कार कोना समाप्‍त कऽ लैत अछि‍, तकर चि‍त्रण कएल गेल अछि‍। माता-पि‍ताक प्रति‍ दायि‍त्‍वक ि‍नर्वाह केने कोन लाभ भऽ सकैत अछि‍ तकर वर्णन।

रि‍क्‍साबला कथा ई संदेश दैत अछि‍ जे सम्‍पति‍ अथवा पैसा आ भोग-वि‍लासक वस्‍तुसँ लोक प्रसन्न नै रहि‍ सकैत अछि‍। प्रसन्न रहबाक लेल आत्‍मसंतोष भेनाइ जरूरी। कथाक रचना प्रभावकारी आ उद्देश्‍यपूर्ण। पात्रकेँ कथा आदि‍सँ अंत धरि‍ अपनामे सराबोर केने रहैत अछि‍।

मि‍थि‍लामे डोका, सि‍तुआ कि‍ंवा खूरचन आदि‍सँ चून बनेबाक प्रथा प्राचीन छल। ऐ कार्यक सम्‍पादन करैत छलीह मल्‍लाह वर्गक महि‍ला लोकनि‍ आब लगभग ई प्रथा समाप्‍त भऽ गेल। ओकरा बदला लोक आब एक्केठाम बजारसँ चून कीन कऽ लऽ अबैत अछि‍। सुखल चून। जकरा सहजतासँ गील कय वएह मलाह सभ बजारे-बजारे आ घरे-घरे बेचैत अछि‍। एे कथाकेँ पढ़लासँ समाप्‍त प्राय परम्‍परापर दृष्‍टि‍ देबाक एक प्रयास कएल गेल अछि‍।

शि‍क्षा आ संस्‍कार अलग-अलग चीज थीक। गामसँ पढ़ इन्‍जि‍ीनीयर बनि‍ गलत-सलत पैसा कमा जतय गामक दू पि‍तयौत भाय अवकाश प्राप्‍त करबाक बाद गाममे रहि‍ फइलसँ मकान बनबए लेल सीमि‍त घरारीमे सँ धुरफन्‍दी कय 10 धूर जमीन ज्‍यादे लेबाक ब्‍यौंतमे लागल छथि‍।  डिहक  बटबारा कथामे गामक लोक हुनका दुनूकेँ ऐ गलत मंसाकेँ बुझि‍ जाइत अछि‍ आ दुनूसँ पैसा ठकि‍ लैत अछि‍। अंन्‍तत: जमीन दुनूमे बहि‍स्‍सा बराबर बॅटैत अछि‍। ने ककरो कम आ ने ककरो बेसी। गामक लोकक दृष्‍टि‍मे पढ़ला-लि‍खलाक बादो दुनू इन्‍जि‍नीयर चरि‍त्रहीन आ गामक वातावरणकेँ प्रदुषि‍त केनि‍हार मानल जाइत छथि‍। लेखक ऐ परम्‍पराकेँ मर्मज्ञतासँ उजागर करैत छथि‍।

भैयारी कथा शहरी जीवनक चकाचौंधसँ लोककेँ सावधान करैत अछि‍। जे ऐ बातकेँ नहि बुझैत छथि‍ आ अपन परम्परा आ संस्‍कारकेँ नै  ध्यान में राकेट गामक जमीन जत्‍था बेच, गामक जड़ि‍ के समाप्त कए जे शहरमे बैस जाइत अछि‍ तकर परि‍णाम नीक नै होइत अछि‍। ई कथा लेखक केर आत्‍मासँ नजदि‍क छन्‍हि‍।

बहीन कथाक माध्‍यमसँ मण्‍डलजी कहए चाहैत छथि‍ जे केबल माइयक कोरासँ जन्‍म लेने बहि‍न या माए नै भऽ सकैत अछि‍। एक दि‍स जतऽ अपन बेटी अपना कार्यमे अतेक लीन अछि‍ जे मरनासन्न माएकेँ देखबाले समए नै नि‍कालि‍ पाबि‍ रहल अछि‍ अोतहि‍ दोसरठाम माइयक एक मुसलमान सखी हल्‍ला-फंसाद रहि‍तहुँ राति‍मे चोरा कऽ माएकेँ देखए अबैत अछि‍। ई कथा हि‍न्‍दु-मुसलमानक संग आपसी प्रेमक गंगा-जमुनी प्रवाह कहल जा सकैत अछि‍। मैथि‍लीमे ऐ तरहक कथाक रचना हेवाक चाही।

मण्‍डल जीक रचनाक एक वि‍शेषता हमरा जनैत पात्रक नामकरण छन्‍हि‍। हरेक नामक  प्रति‍ साकांक्ष रहै छथि‍ आ उद्देश्‍यपूर्ण ढंगसँ नाम रखैत छथि‍। एकर उत्तम उदाहरण थीक एक कथा पीहुआ। पात्रक नाओं पीहुआ कि‍एक पड़लैक तकर वि‍वरण सुनू : छठि‍यार राति‍, दाइ-माइ पुहुपलाल नामकरण केलखि‍न। जखन ओ आठ-दस बर्खक भेल, तखन जाड़क मास बाधमे फानी लगबए लागल। गहींर खेत सभमे सि‍ल्‍लि‍यो आ पीहुओ आबि‍-आबि‍ धान चभैत। जकरा ओ फानी लगा-लगा फॅसबैत। अपनो खाइत आ बेचबो करैत। कि‍छु दि‍नक बाद स्‍त्रीगण सभ पीहुआबला कहए लगलैक। फेर कि‍छु दि‍नक पछाति‍ भौजाइ सभ पीहुआ कहए लगलैक। तँए पुहुपलाल बदलि‍ पीहुआ भऽ गेल।‍

पछताबा एक एहेन कथा थीक जकरा माध्‍यमसँ ई कहक प्रयास कएल गेल अछि‍ जे आधुनि‍क आ तकनीकि‍ शि‍क्षा प्राप्‍त कए लोक बाहर भागि‍ जाइत अछि‍। बाहर जाए जीवन मशीन भऽ जाइत छैक। रघुनाथ कि‍छु एहने कार्य केलन्‍हि‍। चलि‍ गेलाह अमेरि‍का। मुदा अन्‍तमे अपन गलतीक अनुभव भेलन्‍हि‍ आ अपने-आपकेँ बोनि‍हार-मजदुरसँ नि‍षि‍ह मानए लेल तैय्यार भेलाह- हमरासँ सइयो गुना ओ नीक छथि‍ जे अपना माथापर घैल उठा मातृभूमि‍क फुलवाड़ीक फूलक गाछ सींचि‍ रहल अछि‍। अपन माए-बाप समाजक संग जि‍नगी बि‍ता रहल छथि‍। आइ जे दुनि‍याँक रूप-रेखा बनि‍ गेल अछि‍ ओ कि‍छु गनल-गूथल लोकक बनि‍ गेल अछि‍। जि‍नगीक अन्‍ति‍म पड़ावमे पहुँचि‍ आइ बुझि‍ रहल छी जे ने हमरा अपन परि‍वार चि‍न्‍हैक बुद्धि‍ भेल आ ने गाम समाजकेँ।‍

डॉ. हेमन्‍त प्रति‍नि‍धि‍त्‍व करैत छथि‍ ओइ तमाम डाक्‍टर समुदायकेँ जे अपन वि‍धाकेँ मर्यादा बि‍सरि‍ शहरी जीवन जीबैत अछि‍, पैसा कमाइत अछि‍, गाम-घर कि‍ंवा दुर्गम स्‍थानमे जेनाइ जहल जेनाइ कि‍ंवा कालापानीक सजा बुझैत अछि‍। जखन डाॅ.  हेमन्त कोसि‍कन्‍हामे बसल बाढ़ि‍सँ प्रभावि‍त गाम जाइत छथि‍ तँ एक बारह वर्षक कि‍शोरी सुलोचना अपन व्‍यवहार आ गामक लोकक सि‍नेह पाबि‍ ओ कृत-कृत भऽ जाइत छथि‍। अभावक सि‍नेह कतेक रमनगर आ सुअदगर भऽ सकैत अछि‍। सुलोचनाक मुँहसँ गाम आ शहरी जीवनक तुलना मि‍रचाइ आ चीनीक कीड़ासँ कए लेखक कहानीमे नव बि‍म्‍वक रचना करैमे सफल होइत छथि‍। कथामे सुलोचना डॉ. हेमन्‍तकेँ कहैत छन्‍हि‍- हम तँ बच्‍चा छी डाॅक्‍टर सहाएब तेँ बहुत नै बुझै छी। मुदा तइयो एकटा बात कहै छी। जहि‍ना चीनी मीठ होइत अछि‍ आ मि‍रचाइ कड़ू। दुनूमे कीड़ा फड़ै छै आ ओइमे जीवन-यापन करैत अछि‍। मुदा चीनीक कीड़ीकेँ जँ मि‍रचाइमे दऽ देल जाइए तँ एको क्षण नै जीबि‍त रहल। उि‍चतो भेलै। मुदा की मि‍रचाइक कीड़ाकेँ चीनीमे देलाक बाद जीबि‍त रहत? एकदम नहि‍ रहत। तहि‍ना गाम आ बाजारक जि‍नगी होइत।‍

बाबी कथाक माध्‍यमसँ लेखक एक एहेन सामाजि‍क महि‍लासँ परि‍चए करबैत छथि‍ जे ओना तँ अपन नाओं लि‍खऽ नै जनैत छथि‍ परन्‍तु व्‍यवहार आ बुद्धि‍सँ समास्‍त गाममे पूज्या थीकी। गामक लोक कुनो कार्य हुनका पुछने बि‍ना नै करैत अछि‍। बाबी सबहक लेल छथि‍ आ सभ बाबी लेल तत्‍पर। कथाक प्रारम्‍भमे एकटा उपमा खाटी देसी आ औरि‍जनल लगैत अछि‍ काति‍क मासक वर्णन करैत बाबी कहैत छथि‍ जे ई एहेन मास थि‍क जैमे लुंगि‍या मि‍रचाइक घौंदा जकाँ पावनि‍क घौंदा अछि‍। एहेन उपमा हमरा अन्‍यत्र नै भेटल अछि‍। अही कथामे ‍पथि‍यामे दूटा नारि‍यल, पान छीमी केरा, दूटा टाभ नेबो, दूटा दारीम, दूटा ओल, दूटा अड़ुआ, दूटा टौकुना, दूटा सजमनि‍, एक मुट्ठी गाछ लागल हरदी, एक मुट्ठी आदी नेने रहमतक माए आंगन पहुँचि‍ बाबीक आगूमे रखि‍ बाजलि‍- बाबी अपनो डालीले आ हि‍नकोले नेने एलि‍एनि‍हेँ। ई कथा हि‍न्‍दु-मुसलमानक बीच प्रेम आ सांस्‍कृति‍क एकताक कड़ी थीक। अपन बेटा रहमत जे कि‍ बच्‍चामे बीमार भऽ गेलैक आ बाबी ओकरो लेल छठि‍ मइयासँ कबुला कऽ देलथि‍न्‍ह, तँए ओकर माए बाबीक माध्‍यमसँ पाँच वर्ष धरि‍ नि‍ष्‍ठाक संग छठि‍ मनबैत अछि‍। ओहि‍ना उपास, सभ चीजक पालन, छठि‍क प्रति‍ आस्‍था। बाबी जखन खरनाक खीरक प्रसाद रहमतक माएकेँ दैत छथि‍न्‍ह तँ ओ खुशीसँ नाचि‍ उठैत अछि‍। छठि‍ इमयाकेँ गोर लगैत छन्‍हि‍ आ बेटाकेँ ि‍नरोग जि‍नगी जीबैक आशा सेहो लगा लैत अछि‍।

कामि‍नी कथामे कामि‍नीक पि‍ता भैयाकाका कामि‍नीक वि‍वाहमे पाँच लाख टाका खर्च केलाक बादो ऐ बातकेँ स्‍वीकारैत छथि‍ जे ओ कंंजुसाइ केलन्‍हि‍। कि‍एक? तँ हुनका दस बीघा जमीन आ अन्‍य सम्‍पति‍। कामि‍नी तीन भाए-बहि‍न माने दू भाँइ आ एक बहिन। खेतक मात्र कीमत अस्‍सी लाख! तै हि‍साबे कामि‍नीक हि‍स्‍सा 25 लाख टाकासँ बेसी होमाक चाही मुदा खर्च भेलन्‍हि‍ पाँच लाख। ओ इहो मानैत छथि‍ जे हि‍नका लेल जेहने बेटा तेहने बेटी। तँए जखन कामि‍नीक पति‍ दोसर पत्नी आनि‍ लैत छथि‍ आ कामि‍नीक प्रति‍ हुनकर सौति‍न आ पति‍ कि‍छु प्‍लान बनबए लगैत छथि‍ तँ कामि‍नी अप्‍पन दूटा बच्‍चाकेँ लऽ सोझे गाम आबि‍ जाइत छथि‍।

सभ कथा प्रभावोत्‍पादक आ शि‍क्षाप्रद लागत। मण्‍डल जी लोक वि‍धा अथवा फाॅकलाेर केर नीक ज्ञाता छथि‍। गाम-घरक परि‍वेशक ठेठ उदाहरण, उपमा, कहावत, इत्‍यादि‍क समावेश देखब तँ मोन तीरपीत-तीरपीत भऽ जाएत। रौदीक वर्णन देखू : जे मूस अगहनमे अंग्रेजी बाजा बजा-बजा सत-सतटा वि‍आह करैत छल ओ या तँ बि‍लमे मरि‍ गेल वा कतऽ पड़ा गेल तेकर ठेकान नहि‍।‍
डोमनक मनमे आशा रहए जे जहि‍ना लुल्हि‍यो कनि‍याँ बेटा जनमा कऽ गि‍रथाइन बनि‍ जाइत, तहि‍ना तँ पानि‍ भेने परति‍यो खेत हएत कि‍ने।‍

पीरारक फड़क वर्णन करैत मण्‍डलजी लीखै छथि‍- सहतक कोथी जेकाँ चोखगर काँट, डारि‍ रूपी पहरूदारकेँ सजौने। छड़गर-छड़गर डाि‍रमे चौरगर-चौरगर पात जेना इन्‍द्रकमल वा तगड़ फूलक होइत। तहि‍ना फूलो।

आन उदाहरण जेना
अनकर पहीरि‍ कऽ साज-बाज छीनि‍ लेलक तँ बड़ लाज।‍
‍गांगाी-जमुनी केश हवामे फहराइत।
मेघनक दुआरे सतभैंयाँ झँपाएल। जेम्‍हर साफ मेघ रहए ओन्‍हुरका तरेगन हँसैत मुदा जेम्‍हर मेघौन रहए ओम्‍हुरका मलि‍न।‍

सुभाष चन्‍द्र यादव मण्‍डल जीक कथाक बारेमे लि‍खैत छथि‍ : हुनक कथाक सन्‍दर्भमे जे सर्वाधि‍क उल्‍लेखनीय बात अछि‍ से ई जे हुनक सभ कथामे औपन्‍यासि‍क वि‍स्‍तार अछि‍।‍ परन्तु हमर तँ मानब ई अछि‍ जे हि‍नक कथा अपने-आपमे सम्‍पूर्ण अछि‍ आ अपन सम्‍बाद या नि‍चाेरक सहजतासँ कहि‍ दैत अछि‍।
हलांकि‍ पोथीमे कतहुँ-कतहुँ छपबामे गलती सभ भेल अछि‍। जेना कि‍ डाक्‍टर हेमन्‍त कथामे हेमन्‍त केर स्‍थानपर हमन्‍त भऽ गेल अछि‍। मुदा पूरा पाथी अपने-आपमे एकटा उत्तम आ संग्रह योग्‍य वस्‍तु थीक। मैथि‍ली पाठककेँ ऐ तरहक कथाकेँ पढ़बाक आदति‍ लगेबाक चाहि‍एनि। 

No comments:

Post a Comment