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Saturday, April 7, 2012

अवतारवाद :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


अवतारवाद

जीव आ ईश्वर- जे कि‍यो शरीर धारण करैत आ छोड़ैत, जन्‍म लैत आ मरैत, ओ संसारी जीव होइत अछि‍। मुदा जे सर्वत्र व्‍याप्‍त, सर्वशक्‍ति‍मान, सर्वरक्षक गुणसँ मंडि‍त होइत ओ ईश्वर होइत। शास्‍त्रमे जे लक्षण ईश्वरक देल गेल अछि‍ आेइ‍ अनुसार ओ सबहक प्रति‍पालक सेहो होइत छथि‍। हुनक स्‍वभाव क्रुर भइये ने सकैत छन्‍हि‍। ि‍कएक तँ ओ महादयालु होइत छथि‍। संगहि‍ ओ सर्वत्र प्‍याप्‍त छथि‍ तँए कतौ अबै-जाइक जरूरते केना हेतनि‍।
प्रश्न उठैत अछि‍ जे ओ माछ आ काछुक रूप ि‍कअए धारण केलनि‍? ऐ‍ रूपमे एबाक की प्रयोजन भेलनि‍। मत्‍स्‍यावतार लऽ कऽ ि‍कअए शंखासुरक हत्‍या केलनि‍? जे स्‍वयं सर्वपालक सर्वव्‍यापी आ महादयालु छथि‍। हुनका ि‍कअए केकरोसँ द्वेष भेलनि‍? ि‍कअए ओ सुअर बनि‍ ि‍हरण्‍याक्षसँ पृथ्‍वी छीन अपना मुँहमे रखि‍ लेलनि‍। की पृथ्‍वी धि‍या-पुता खेलैक गेन्‍द सदृश अछि‍ जे ओ मुँहमे रखि‍ इतर पृथ्‍वीपर ठाढ़ भऽ हुनकासँ लड़ैत रहलाह आ अंतमे हत्‍या कऽ देलखि‍न। एतबे नै‍, नरसि‍ंह अवतार लऽ लोहाक खंभा फाड़ि‍ हि‍रण्‍यकश्‍यपुकेँ पेट फाड़ि‍ हत्‍या केलनि‍। की ईश्वर सभसँ पैघ हत्‍यारा छथि‍? वामन रूप धारण कऽ राजा बलि‍सँ तीन‍ डेग जमीन मांगि‍ सौंसे राज्‍य हड़ैप लेलनि‍, की दुनि‍याँमे सभसँ पैघ धोखावाज वएह छलाह? एहेन धोखावाजक आराधना केलासँ कहेन फल भेटत अपनो वि‍चारि‍ सकै छी। भीख मांगब मायावी, असमर्थ जीबक (मनुष्‍यक) काज छी नै‍ कि‍ कर्मठ, ऐश्वर्यवान पुरुषक। ऐ‍ रूपे देखलापर झि‍‍ पड़ैत जे मनक माया, कल्‍पना आओर अज्ञानता सभकेँ भरमा देने अछि‍। ततबे नै‍, परशुराम बनि‍ हैहय-वंशीय क्षत्रि‍एकेँ एक्केस बेर‍‍ सामूहि‍क हत्‍या केलनि‍। जहन एकबेर‍ वंश नाश कऽ देलखि‍न तहन दोहरा कऽ कतएसँ फेर क्षत्रि‍ए आबि‍ गेलाह जे दोहरबैत, तेहरबैत एक्‍कैस बेर‍‍ पहुँचि‍ गेलाह। अनन्‍त वि‍श्व- ब्रह्माण्‍डक रचैता ईश्वर दशरथक बेटा राम बनि‍ सीतासँ बि‍आहो कऽ लेलनि‍ आ हरण भेलापर गाछो-वृक्षसँ कानि‍-कानि‍ पता पुछलथि‍न। बि‍ना ओर-छोड़क समुद्रमे पाथरक पुलो बनबा देलखि‍न। इत्‍यादि‍-इत्‍यादि‍, अनेको प्रश्न वि‍चारणीय अछि‍। हम सभ एक्‍कैसम शताब्‍दीक समर्थ चेतना छी नै‍‍ कि‍‍ सोलहम शताब्‍दीक बाल चेतना।

जड़-चेतनात्‍मक वि‍श्वसन्‍ताक वास्‍तवि‍क बोध नै‍‍ रहने पहि‍ने ि‍कछु गोटे जगतकर्त्ता ईश्वरक जाल ठाढ़ केलनि‍ आ पछाति‍ अपन स्‍वार्थ सि‍द्ध करए लेल नाना अवतारक कल्‍पना केलनि‍। छल करब, जोर-जबरदस्‍ती करब, यती-सतीक चरि‍त्र भ्रष्‍ट करब, की ईश्वरक काज थि‍क। ई सभ जाल-फरेबी मनुक्‍खक छी। एतबे नै‍‍ ईश्वरक नाओंपर मनुष्‍यक खून सेहो बहाओल गेल अछि‍। सेहो खून सि‍र्फ मानवेत्तर जीवेक नै‍‍ बल्‍कि‍ मूक, मासूम मनुष्‍यक सेहो। धनबल, शरीरबल, वि‍द्याबलादि‍सँ सेहो सदैव गरीब आदमी अत्‍याचारीक शि‍कार बनैत रहल अछि‍। जे अखनो आँखि‍क सोझमे दि‍न राति‍ भऽ रहल अछि‍।

श्रीमद्भागवतक स्‍कन्‍ध-१, अध्‍याय-३, श्‍लोक-५ सँ लऽ कऽ २५म श्‍लोक धरि‍ अवतारवादक व्‍याख्‍या अछि‍। जइमे नि‍म्न प्रकारक चर्चा अछि‍- (१) सनक, सन्नदन, सनातन, सनत्‍कुमार-ब्रह्मचर्य पालनक लेल, (२) सुअर-पृथ्‍वीकेँ रसातलसँ आनवाक लेल, (३) नारद-उपदेशकक लेल, (४) नर-नारायण-तपक लेल, (५) कपि‍ल-सांख्‍य  शास्‍त्रक उपदेश देबा लेल, (६) दत्तात्रेय-उपदेश देबा लेल, (७) यज्ञ रूचि‍प्रजापति‍क पत्नी आकूति‍सँ उत्‍पन्न भेल स्‍वायम्‍भुक मन्‍वन्‍तरक रक्षाक लेल, (८) ऋृषभदेव-परमहंसक आदर्श देखेबा लेल, (९) पृथु-पृथ्‍वीसँ औषधि‍ दोहनक लेल, (१०) मत्‍स्‍य-डूमल पृथ्‍वीकेँ नि‍कालबाक लेल जे शंखासुर वेदकेँ चोरा नेने रहए। जेकरा मारि‍ कऽ मत्‍स्‍य वेदक उद्धार केलक, (११) कच्‍छप-समुद्र मथैमे सहयोगक लेल, (१२) धन्‍वन्‍तरि‍-समुद्रसँ अमृतक घैल लऽ प्रकट भेला, (१३) मोहि‍नी-देवता-दानवक झगड़ा फड़ि‍छबैक लेल, (१४) नृसि‍ंह-हि‍रण्‍यकश्‍यपुकेँ मारए लेल, (१५) वामन-बलि‍केँ ठकैक लेल, (१६) परशुराम-क्षत्रि‍एकेँ सामूिहक हत्‍याक लेल, (१७) व्‍यास-वेदक ि‍वभाजन करए लेल, (१८) श्रीराम-रावणकेँ मारए लेल, (१९-२०) बलराम-कृष्‍ण- पृथ्‍वीक भार उतारए लेल, (२१) कल्‍कि‍-पृथ्‍वीक भार उतारए लेल। ऊपर वर्णित बाइस अवतार संग-संग आन-आन शास्‍त्रमे हंस आ हयग्रीवक चर्चा सेहो अछि‍। सनकादि‍केँ उत्तर देबा लेल हंस आ मधुकैटभक हत्‍याक लेल हयग्रीवक चर्च अछि‍।

सभसँ पहि‍ने अवतारवादक भावना शतपथ ब्राह्मणमे भेटैत अछि‍। जेना ि‍क एच.याकोवी- इनकारनेशन, इन्‍साइक्‍लोपीडि‍या ऑफ रि‍लीजन एण्‍ड इथि‍क्‍स भाग ७१मे लि‍खने छथि‍। संग-संग एम. माेनि‍एर वि‍लि‍यम्‍स- द. वि‍जडम पृष्‍ट ३८१मे सेहो लि‍खने छथि‍। एच.राय चौधरी- अर्लि हि‍स्‍ट्री ऑफ बैष्‍णव सेक्‍टमे पृष्‍ट ९६मे सेहो लि‍खने छथि‍।

शुरूमे वि‍ष्‍णुक अपेक्षा प्रजापति‍केँ ि‍वशेष महत्‍व छलनि‍। शतपथ ब्राह्मणक अनुसार प्रजापति‍ये मत्‍स्‍य (१/८/१/१) कूर्म (कौछु) (७/५/१/५) आओर वराहक (१४/१/२/११) अवतार लेलनि‍। प्रजापति‍केँ बराह रूपक कथाक चर्च तैत्तीरीय संहि‍ता (७/१/५/१) तैत्तरीय ब्राह्मण (१/१/३/६) तैत्तरीय आरण्‍यक (१०/१/८) आओर काठक संहि‍ता (८/१)मे प्रारंभि‍क रूपमे वि‍द्यमान अछि‍। जेकर चर्च डॉ. कामि‍ल बुल्‍के रामकथा अनुच्‍छेद १४०मे केने छथि‍।

ऐ‍ रूपे देखैत छी जे मत्‍स्‍य, कूर्म वराहक अवतार शुरूमे प्रजापति‍सँ छलनि‍। ि‍कन्‍तु पछाति‍ आबि‍ िवष्‍णुक महत्‍व बढ़लापर तीनूक संबंध ि‍वष्‍णुसँ भऽ गेलनि‍। महाभारतक नारायणी उपाख्‍यान (१२/३२६/७२) आ (१२/३३७) आ हरि‍वंश पुराण (४/४१)मे बराह आ वि‍ष्‍णुक संबंध मानि‍ लेल गेल। आगू आबि‍ तीनूक नाओंसँ एक एकटा महापुराण सेहो लि‍खल गेल। जइ‍मे तीनूक संबंध वि‍ष्‍णुसँ कए देल गेल अछि‍।

वामनावतार आ नृसि‍ंह अवतार शुरूहेसँ ि‍वष्‍णुसँ संबंधि‍त अछि‍। वामनावतारक चर्चा तैत्तीरीय संहि‍ता (२/२/३/१) शतपथ ब्राह्मण (१/२/५/५) तैत्तीरीय ब्राह्मण (१/७/१७) आओर ऐतरेय ब्राह्मण (६/३/७)मे भेल अछि‍। नारायणी उपाख्‍यान (१२/३२६/७३) आओर हरि‍वंशपुराण (१/४१)मे सेहो उल्‍लेख अछि‍। ि‍वष्‍णु पुराणमे (१/१६) नृसि‍ंहक कथाक वर्णन सेहो अछि‍।

शुरूमे परशुरामक अवतार वि‍षयक कथाक चर्च नै‍‍ भेटल अछि‍। मुदा नारायणी उपाख्‍यान (१२/३२६/७७) हरि‍वंश पुराण (१/४१/११२/१२०) आ वि‍ष्‍णु पुराण (१/९/१४३)मे वि‍ष्‍णुक अवतार मानल गेल अछि‍।
ऐ‍ रूपे प्राचीन साहि‍त्‍यमे अवतारवादक चर्चा होइतहुँ वि‍शेष पूजाक चलनि‍ नै‍‍ भेल आ ने वि‍ष्‍णुक प्रधानते भेल रहए। कृष्‍णावतारक संग-अवतारवादक ि‍वकासमे महत्‍वपूर्ण परि‍वर्तन प्रारंभ भेल। आेइ‍ समैसँ अवतारवाद भक्‍ति‍भावसँ जुड़ि‍ फुलैत-फड़ैत आजुक रूप धेने अछि‍।
वासुदेव कृष्‍ण भागवतक इष्‍टदेव छलाह। शुरूमे ि‍वष्‍णुक संग हुनक संबंध नै‍‍ छलनि‍। हेमचन्‍द राय चौधरीक अनुसार तेसर शताब्‍दी ई. पू. वासुदेव कृष्‍ण आ वि‍ष्‍णुक अभि‍न्नताक भावना उत्‍पन्न भेल।

अवतारवादक प्रक्रि‍यामे बौद्धधर्म जुड़ि‍ गेल। बौद्धधर्म आ भागवत सम्‍प्रदायक भक्‍ति‍मार्ग समान रूपसँ ब्राह्मण साहि‍त्‍यक कर्मकांड आ यज्ञ प्रधान धर्मक प्रति‍क्रि‍याक रूपमे उत्‍पन्न भेल आ वि‍कास केलक। जइ‍ कारणे धर्मक क्षेत्रमे ब्राह्मणक एकाधि‍कार ढील भेल। बौद्धधर्मक अधि‍काधि‍क प्रचार-प्रसार देखि‍ भागवत समर्थक अपना दिस‍‍ आकर्षित करए लेल भागवतक इष्‍टदेव वासुदेव कृष्‍णकेँ ि‍वष्‍णु-नारायणक अवतार मानि‍ लेलनि‍। तैत्तीरीय आरण्‍यक (१०/१/६)मे वासुदेव आ ि‍वष्‍णुक अभि‍न्नताक चर्च सभसँ पहि‍ने भेल अछि‍।
ऐ‍सँ अवतारवादककेँ भरपुर बल भेटल। संग-संग ि‍वष्‍णुक महत्‍व  सेहो बढ़ए लगल। जइ‍सँ अवतारवादक पूर्ण भावना रसे-रसे ि‍वष्‍णु-नारायणमे केन्द्रि‍त हुअए लगल। आ वैदि‍क साहि‍त्‍यक आन-आन अवतारक क्रि‍या-कलाप वि‍ष्‍णुमे आरोपि‍त भऽ गेल।

एक दिस‍ अवतारवाद बढ़ि‍ रहल छल तँ दोसर दिस‍ रामक आदर्श चरि‍त्र जनमानसक बीच प्रबल भऽ रहल छल। रामायणि‍क संग-संग रामक महत्‍व सेहो तेजीसँ बढ़ि‍ रहल छल। रामक वीरताक वर्णनमे अलौकि‍कताक मात्रा सोहो बढ़ए लगल। एक दिस‍ रावण पाप आ दुष्‍टताक प्रतीक बनि‍ जनमानसक बीच आएल तँ दोसर दिस‍ पुण्‍य  आ सदाचारक प्रतीक राम बनलाह। जेकर फल भेल जे कृष्‍णे  जकाँ रामो ि‍वष्‍णुक अवतारक श्रेणीमे आ‍बि‍ गेलाह। भरि‍सक पहि‍ल शताब्‍दी ई. पूर्वेसँ राम ि‍वष्‍णुक अवतार मानए जाय लगलाह। महाभारतक संग-संग वायु, ब्रह्माण्‍ड, वि‍ष्‍णु, मत्‍स्‍य, हरि‍वंश इत्‍यादि‍ पुराणमे अवतारक तालि‍कामे राम सेहो छथि‍।

अवतारवादक पहि‍ल कल्‍पना शतपथ ब्राह्मणमे अछि‍। जे ईसासँ एक हजार वर्ष पूर्वक रचना मानल जाइत अछि‍। शतपथ ब्राह्मणमे कहल गेल अछि‍ जे प्रजापति‍ये माछ, कछुआ आ सूअरक अवतार धारण केलनि‍। जे शुद्ध कल्‍पनाश्रि‍त झि‍‍ पड़ैत अछि‍।

वामन अवतारक कल्‍पना तैत्तीरीय संहि‍तमे अछि‍। हजार वर्ष पूर्व एकरो रचना मानल जाइत अछि‍। ओना वामन अवतारक कल्‍पना ऋृग्‍वेदक प्रथम मंडलक बाइसम सूक्‍तक अंति‍म (१६/२१) छह मंत्रसँ सेहो उद्भुत मानल जाइत अछि‍।
इदं वि‍ष्‍णुवि‍चि‍क्रमे त्रेधा ि‍नदधे पदम। समूलमस्‍य पांसुरे।
त्रीणि‍ पदा वि‍चक्रमे वि‍ष्‍णुर्गोपा अदाभ्‍य: अतो धर्माणि‍ धारयन्। (ऋृग्‍वेद- १/१२/१७-१८) टीका रामगोवि‍न्‍द ि‍त्रवेदी। वि‍ष्‍णु सूर्यक प्रतीक छथि‍। हुनक ि‍करण पएर ि‍छयनि‍। पृथ्‍वी, अंतरि‍क्ष आ दयुलोकमे कि‍रण माने रोशनी पड़ब तीन पएर पड़ब छि‍यनि‍। जे प्राय: सभ वैदि‍क जनै छथि‍। मुदा पाछू आबि‍ ऐ‍ सूत्रकेँ कथा गढ़ि‍ ि‍वष्‍णु वामनक कथा बनि‍ गेल अछि‍। कथा अछि,‍ ि‍वष्‍णु वामन बनि‍ राजा बलि‍केँ ठकि‍ कऽ तीन डेग भूमि‍ मांगि‍ सौंसे राज्‍ये नापि‍ लेलनि‍। प्रश्न उठैत जे एहेन-एहेन ठककेँ जनमानस केना ईश्वर मानि‍ लेलक‍? पुराणक अनुसार ि‍वष्‍णुु इन्‍द्रक छोट भाए कहल गेल छथि‍। जे अपन जेठ भाय इन्‍द्रक गद्दी स्‍थापि‍त करए लेल बलि‍केँ धोखा देलनि‍।

मत्‍स्‍य, कच्‍छम, वराह, नृसि‍ंह, वामन, परशुराम इत्‍यादि‍ जे कि‍यो अवतारक श्रेणीमे एलाह, ि‍कयो पूजनीय नै‍‍ भऽ सकलाह। अवतारक अंति‍म छोरपर उदि‍त रामे आ कृष्‍णेटा पूजनीय भेलाह।

वस्‍तुत: श्रमणक (बौद्ध-जैन) उत्तारवादक प्रति‍क्रि‍यामे अवतारवादक कल्‍पना भेल। महावीर आ बुद्धदेव महापुरुष छलाह। (उत्तारक अर्थ-सामान्‍य जीवकेँ दोसरसँ ऊपर उठब होइत अछि‍ जखन कि‍ अवतारक अर्थ महान सत्ताकेँ ऊपरसँ नि‍च्‍चाँ उतरब होइत अछि‍)। अवतारवादक परम्‍पराक अनुसार परमात्‍मा उतरि‍‍ कऽ साधारण मनुष्‍य बनि‍ गेलाह। पहि‍ने कृष्‍णकेँ अवतार मानल गेलनि‍। जि‍न‍कर पूर्ण वि‍कास गीताक कृष्‍णवतारमे भेलनि‍। ताधरि‍ राम अवतारक श्रेणीमे नै‍‍ आएल छलाह। केवल धनुर्धारी वीर मानल जाइत छलाह। गीताकार कृष्‍णक मुँहसँ रामक संबंधमे कहबौलनि‍- राम: शस्‍त्रभृतामहम।

इसाक सौ वर्ष पूर्व धरि‍ चारू भाँइ रामकेँ वि‍‍ष्‍णुक अंशावतारे मानल जाइत छल‍ि‍न। रामकेँ पूर्ण परब्रह्म ईसाक बाद अध्‍यात्‍म रामायणसँ शुरू भेल। ऐ‍ रूपे अवतारवादक गुन्‍जाइस माने अँटावेश वेदमे नै‍‍ पछाति‍ भेल।
प्रश्न उठैत जे अवतारवाद की थि‍क?

वि‍श्व अनंत देश आ काल-व्‍यापी अछि‍। वि‍श्वक मुख्‍य दू घटक- जड़ आ चेतन अछि‍। ओइमे अपन-अपन गुण-धर्म नि‍हि‍त अछि‍। जइसँ जगतक बेवस्‍था अनादि‍कालसँ अवाधगति‍ये चलि‍ रहल अछि‍। ऐ‍सँ  हटि‍ दोसर ईश्वरक कल्‍पना तथ्‍यसँ अलग होएब अछि‍। कहल गेल अछि‍ जे शंखासुर नामक राक्षस छलाह। ओ ब्रह्मा अोइ‍ठाम पहुँचि‍ वेद चोरा कऽ समुुद्रमे नुका कऽ रखि‍ लेलक। जेकरा पुन: प्राप्‍त  करए लेल वि‍ष्‍णु मत्‍स्‍यावतार धारण कए समुद्रमे शंखासुरकेँ मारि‍ वेद लऽ अनलनि‍। प्रश्न उठैत अछि‍- कि‍ ईश्वरक काज हत्‍या करब थि‍क? जे सर्वज्ञ, दयालु छथि‍ हुनकर एहने कि‍रदानी हेतनि‍। ओ तँ अपना सत्‍प्रेरणासँ केकरो बदलैत छथि‍। एहि‍ना हि‍रण्‍याक्षक संबंधमे सेहो अछि‍। हि‍रण्‍याक्ष पृथ्‍वीकेँ चोरा कऽ टट्टीमे नुका रखलक। जेकरा वि‍ष्‍णु सुअरक अवतार लऽ थुथुनसँ पृथ्‍वीकेँ टट्टीसँ नि‍कालि‍, ि‍हरण्‍याक्षकेँ माि‍र ऊपर अनलनि‍। जइसँ पृथ्‍वीक उद्धार भेल। प्रश्न उठैछ- जखन पृथवीयेक चोरी भऽ गेल तँ ओकरा राखल कतए गेल। अपन गुरुत्‍वाशक्‍ति‍सँ पृथवी स्‍वयं धारि‍त अछि‍।

एहने कथा हि‍रण्‍यकश्‍यपु आ प्रह्लादक सेहो अछि‍। प्रह्लाद वि‍ष्‍णुक भक्‍त रहथि‍ जे हि‍रण्‍यकश्‍यपुकेँ पसि‍न नै‍‍ रहनि‍। जइसँ बान्‍हि‍ देलखि‍न। प्रह्लादक दुख देखि‍ ईश्वर (वि‍ष्‍णु) नर आ नारायणक ि‍मश्रि‍त रूप बना खूॅटा फाड़ि‍ कऽ नि‍कलि‍ हि‍रण्‍यकश्‍यपुकेँ मारलनि‍। प्रश्न उठैत अछि‍- एक प्रह्लादक लेल ईश्वर खूँटा फाड़ि‍ नि‍कललाह मुदा, चंगेज खाँ, नादि‍रशाह, ि‍मलाबटखोर, जमाखोर, धूसखोर शोषकक लेल नि‍न्न नै‍‍ टुटैत छन्‍हि‍?

वामन रूप बनि‍ बलि‍सँ भीख मंगलनि‍। भीख मांगब, छल करब मायावी मनुक्‍खक काज छी नै कि‍ ईश्वरक!!
जखन परशुराम हैहय क्षत्रि‍ए वंशकेँ सामूहि‍क हत्‍या केलनि‍ तँ फेर दोहरा-तेहरा, एते तक ि‍क एक्‍कैस बेर‍‍ कऽ केकर हत्‍या केलनि‍। जँ एहेन-एहेन हत्‍यारा ईश्वर होथि‍ तँ अपराधी केकरा कहबै?

अनंत वि‍श्वव्‍यापी जगत स्रष्‍टा ईश्वर (राम) दशरथक बेटा बनि‍ सीतासँ बि‍आह करए औताह। ततबे नै‍‍ हरण भेलापर कानि‍-कानि‍ गाछ-वृक्ष सभकेँ पता पुछथि‍न। गाए-चरबए लेल कृष्‍ण वृन्‍दावन आबि‍ नारी संग रास करए औताह। की यएह लक्षण ईश्वरक वेद कहैत अछि‍?

वि‍श्वमे मुख्‍य दू तत्‍व-जड़ आ चेतन अछि‍। जेकरा पुराकालसँ सांख्‍य दर्शन प्रकृति‍ आ पुरुष कहैत आएल अछि‍। जड़ प्रकृति‍मे अनेक तत्‍व अछि‍। जे सभ अनादि‍-अनंत अछि‍। ओइमे अपन-अपन स्‍वभाव सि‍द्ध गुण-धर्मक क्रि‍या, ओकर सम्‍पत्ति‍ छि‍ऐ। जइ‍सँ सृष्‍टि‍ नि‍रंतर वि‍द्यामान रहैत अछि‍। जँ से नै‍‍ तँ पूरबा आकि‍ पछबा हवा जे बहैत अछि‍, ओकरा ि‍कयो पूब कि‍ पछि‍म जा कऽ ठेलैत अछि‍ आकि‍ अपन दबाबक नि‍अमक अनुसार हवा स्‍वयं चलैत अछि‍। तहि‍ना बरखो होइत अछि‍। पानि‍ बरि‍सैक जे प्राकृति‍क नि‍अम छै, अनुकूल भेलापर बरखा होइत अछि‍। प्रकृति‍ जड़ छी। ओ ई नै बुझैए जे रौदी, कम बरखा कि‍ बेसी बरखा केकरो नोकसान करत आकि‍ लाभ पहुँचाओत।

एक दिस‍ १९८७ ईं.क पानि‍ (बरखा) मि‍थि‍लांचलकेँ दहा देलक तँ दोसर दिस‍ राजस्‍थान, गुजरात, उड़ीसा इत्‍यादि‍ राज्‍यमे रौदी भऽ गेल। की एहने काज सर्वज्ञ, दयालु आ सर्वशक्‍ति‍मान ईश्वरक छि‍यनि‍?

झरनासँ पानि‍ नि‍कलब, धार बहब कि‍ ईश्वरेक प्रेरणासँ होइत अछि‍। चान, सुरूज, तरेगण हुनके माने ईश्वरेक कृपासँ चमकैत अछि‍। फूल वएह फुलबैत छथि‍। अजीव-अजीव अंधवि‍श्‍वासू कल्‍पना ठाढ़ कऽ अज्ञानी मनुष्‍यकेँ अदौसँ चालबाज सभ लुटैत आएल अछि‍!
जे मनुष्‍य ज्ञान अर्जन कऽ पवित्र आचरण बना स्‍वरूप स्‍थि‍ति‍ प्राप्‍त कऽ लैत, वएह ऐ‍ जीवनकेँ सार्थक बना मुक्‍ति‍क अधि‍कारी बनैत छथि‍। जनि‍का लेल अलगसँ केनाे कल्‍पि‍त ईश्वरक प्रयोजन नै‍‍ छन्‍हि‍।
बीजकमे कबीर कहै छथि‍-
ज्ञान हीन कर्ताकेँ भरमें, माये जग भरमाया।

छल करब, बलपूर्वक केकरो धन-इज्‍जत लुटब, ई सभ संसारी मनुष्‍यक काज छी नै कि‍ ईश्वरक। यती, सती-पति‍व्रता एवं सत्‍य बजनि‍हार आ सत्‍य बाटपर चलनि‍हारकेँ पथ-भ्रष्‍ट करब, पति‍त बनाएब, की‍ ई सभ वि‍वेकवान मनुष्‍यक काज छी?
अवतारक संबंधमे कबीर कहने छथि‍-
‘दश अवतार ईश्वरी माया, कर्ता कै जि‍न पूजा। कहहि‍ं कबीर सुनो हो सन्‍तो, उपजै खपै सो दूजा।’
अर्थात् दस या चौबीस अवतारक कल्‍पना ईश्वरीये माया छी। आेइ‍ कल्‍पि‍त अवतारक पूजा करब, सत्‍यज्ञानसँ रहि‍त मनुष्‍यक काज छी। जहि‍ना अवतार तहि‍ना अवतारी माने ईश्वर, दुनू लोकक मनक कल्‍पना छी। ि‍कएक तँ जन्‍म आ मृत्‍यु जगतक कर्ताकेँ केना भऽ सकैत अछि‍।

चौबीस अवतारमे श्रीराम, कृष्‍ण, महात्‍मा बुद्ध इत्‍यादि‍ ऐति‍हासि‍क महापुरुष छथि‍। बाकी सभ काल्‍पनि‍क थि‍क। ओना अवतार तँ उतरब आ जन्‍म लेबकेँ कहल जाइत अछि‍, जे प्राय: कर्मी जीवकेँ होइत अछि‍।

अवतारवाद मनुष्‍यमे हीनभावनाक जन्‍म दैत अछि‍। जँ से नै‍‍ तँ देश आ धर्मपर संकट एलापर अवतारी ि‍कएक ने नि‍वारण करैत अछि‍।  जखन वि‍धर्मी सोमनाथक मंदि‍र लूटि‍ लेलक तखन पुजेगरी सभ ि‍कएक मुँह तकैत रहि‍ गेल। ि‍कएक ने ईश्वरकेँ पुकारि‍ बचौलक।

ताधरि‍ मनुष्‍य उन्‍नति‍ नै‍‍ कऽ सकैत अछि‍ जाधरि‍ ओ ई नै‍‍ बूझत जे धरतीपर मनुष्‍य सभसँ बलशाली अछि‍। ईश्वर, देवी-देवता, अवतारक कल्‍पना मनुष्‍यक आेइ‍ अंधकार मस्‍ति‍ष्‍कमे जन्‍म लैत अछि‍ जइमे ओ अपन दुर्बलताकेँ संयोगि‍ अवकाशक सांस लैत अछि‍।

वस्‍तुत: आत्‍मा जखन महात्‍माक रूपमे वि‍कसि‍त होइत तखन परमात्‍मा स्‍वयं बनि‍ जाइत अछि‍। काम-क्रोध, राग-द्वेष इत्‍यादि‍ दुर्गुणपर जखन मनुष्‍य वि‍जय पाबि‍ जाइत अछि‍ तखन अपने-आपमे ईश्वर, परमात्‍मा, दैव आ ब्रह्मक रूप देखए लगैत अछि‍।
श्रीमद्भागवत-
दरि‍द्रो यस्‍त्‍वसन्‍तुष्‍ट: कृपणो योऽ जि‍तेन्‍द्रि‍य:।
गुणेष्‍वसक्‍तधीरीशो गुणसंगे वि‍पर्यय: /११/१९/४४
जेकरा चि‍त्तमे असन्‍तोष अछि‍ वएह दरि‍द्र छी। जे ि‍जतेन्‍द्रि‍य नै‍‍ अछि‍ वएह कृपण छी। समर्थ, स्‍वतंत्र आर ईश्वर वएह छथि‍ जि‍नकर चि‍त्त-वृत्ति‍ बि‍षए-भोगमे आसक्‍त नै‍‍ छन्‍हि‍। अहीक वि‍परीत जे वि‍षयमे आसक्‍त अछि‍ वएह सोलहन्‍नी पापी छी।        

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