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Saturday, April 7, 2012

मैथि‍ली उपन्‍यास साहि‍त्‍यमे दलि‍त पात्रक चि‍त्रण- शिव कुमार झा



उपन्‍यास कोनो गद्य साहि‍त्‍य रूपी व्‍यष्‍टि‍क आत्‍मा मानल जाइत अछि‍। मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे लगभग सए वर्ख पूर्व धरि‍ उपन्‍यास वि‍धाक रचना लगभग शून्‍य छल। 
एे‍‍ कारण ओइ‍‍ अवधि‍ धरि‍ मैथि‍लीकेँ पूर्ण साहि‍त्‍यि‍क भाषा नै‍‍ मानल जाइत छल। जनसीदन जी एे‍‍ भाषा साहि‍त्‍यक पहि‍ल मान्‍य उपन्‍यासकार छथि‍। हि‍नक पाँच गोट उपन्‍यासक पश्‍चात् एखन धरि‍ देसि‍ल वयनामे साहि‍त्‍यक समग्र वि‍धाक चि‍त्रण करैत बहुत रास उपन्‍यास पाठक धरि‍ पहुँचल अछि‍। परंच एे‍‍ साहि‍त्‍यक संग सभसँ पैघ बि‍डम्‍वना रहल जे पछाति‍क समाज जकरा सामाजि‍क शब्‍दमे दलि‍त कहल जाइत अछि‍, ओकर महि‍मामंडनक गप्‍प तँ दूर प्राय: एे‍‍ साहि‍त्‍यमे अकस्‍मात् अवांछि‍त अभ्‍यागत्तक रूपमे क्षणप्रभा जकाँ कतौ-कतौ चर्चित अछि‍। दलि‍त वर्ग तँ सामाजि‍क, सांस्‍कृति‍क आ शैक्षणि‍क रूपेँ सम्‍पूर्ण आर्यावर्त्तमे पि‍छड़ल छथि‍ मुदा मि‍थि‍ला-मैथि‍लीमे हि‍नक स्‍थानक वि‍वेचन हि‍नका सबहक जाति‍ जकाँ अछोप अछि‍। एकर प्रमुख कारण मि‍थि‍लामे धर्मसुधार आन्‍दोलन, वि‍धवा वि‍वाहक सकारात्‍मक दृष्‍टकोण प्राय: मृतप्राय रहि‍ गेल। दार्शनि‍क उदयानाचार्य, भारती-मंडन, आयाचीक एे‍‍ भूमि‍पर सनातन संस्‍कृति‍क पुनरूद्वार तँ भेल मुदा एे‍‍ पुनरूद्वारपर आडंवर धर्मी व्‍यवस्‍थाक अमरतत्ती मूल संस्‍कृति‍क बि‍म्‍बकेँ सुखा देलक। समाजक साम्‍यवादी सोच भगजोगि‍नी बनि‍ सवर्ण-दलि‍तक मध्‍य भि‍न्न सामाजि‍क दशाक मध्‍य मात्र टि‍मटि‍माइत रहल। एे‍‍ कारण सम्‍यक दृष्‍टि‍कोण रहि‍तहुँ मैथि‍ली भाषाक स्‍थापि‍त रचनाकारक लेखनी व्‍यथि‍त आ शोषि‍त दलि‍तक मर्मस्‍पर्शी जीवन गाथाकेँ प्रकाशि‍त नै‍‍ कऽ सकल। कथा-कवि‍ता आ गल्‍पमे तँ दलि‍तक चि‍त्रण भेटैत अि‍छ मुदा उपन्‍यासमे अत्‍यल्‍प। अपन व्‍यथाक वि‍वेचन दलि‍त वर्गक साहि‍त्‍यकार सेहो नै‍‍ कऽ सकलाह, कि‍एक तँ हि‍नक संख्‍या एखन धरि‍ नगन्‍य अछि‍। संभवत: दलि‍त रचनाकारक उपन्‍यास अपन वयनामे मैथि‍लीकेँ एखन धरि‍ नै‍‍ भेटलनि‍।
सभसँ जनप्रि‍य उपन्‍यासकार हरि‍मोहन झाक साहि‍त्‍यमे दलि‍त वर्ग अनुपस्‍थि‍त जकाँ छथि। यात्रीक बलचनमा ओना एे‍‍ वर्ग दि‍स संकेत करैत अछि‍ ओहि‍ना जेना ललि‍तक पृथ्‍वीपूत्र, धूमकेतुक मोड़ पर आ रमानंद रेणुक दूध-फूल। यात्रीक पारो आ नवतुरि‍या वि‍षएक चयनक कारण दलि‍त वर्ग दि‍स धि‍यान नै‍‍ दऽ सकल। धीरेश्‍वर झा धीरेन्‍द्रक कादो ओ कोयला छोट लोकक वि‍रनीक कथा कहैत अछि‍ तँ हुनकर ठुमकि‍ बहू कमलामे दलि‍त वर्गक संघर्षक कथा ठीठर आ रामकि‍सुनक माध्‍यमसँ कहल गेल अछि‍। मणि‍पद्ममक उपन्‍यासक राजा सहलेस दलि‍त दुसाधक नायक सहलेसक कथा कहैत अछि‍ तँ लोरि‍क वि‍जय उपन्‍यासक नायक तँ यादव छथि‍ मुदा हुनका मि‍त्र वर्गमे बंठा चमार, वारू पासवान, राजल धोबी, ई सभ दलि‍त वर्गक छथि‍- लोरि‍कक कि‍छु वि‍रोधी सेहो दलि‍त वर्गक शासक छथि‍- मोचलि‍- गजभीमलि‍, हरवा आदि‍ बंठाक संहार परि‍स्‍थि‍ति‍वश करैत छथि‍ आ तइसँ लोरि‍क वि‍जयमे दलि‍त कथाक ढेर रास प्रसंग आएल अछि‍। नैका बनि‍जारामे सेहो नैकाक पत्नी फुलेश्‍वरीकेँ कि‍नवाक वर्णन अछि‍। हुनकर फुटपाथ भि‍खमंगा सबहक कथा कहैत अछि‍ तँ लि‍लीरेक पटाक्षेप भूमि‍हीनक नक्‍सलवाड़ी आन्‍दोलनक कथा कहैत अछि‍।
आधुनि‍क कालक प्रसि‍द्ध उपन्‍यासकार वि‍द्यानाथ झा वि‍दि‍तजी एे‍‍ वि‍षएपर अपन लेखनीकेँ कोशीक भदैया धार जकाँ झमाड़ि‍ कऽ प्रयोग कएलनि‍। ओना तँ वि‍दि‍त जी एखन धरि‍ आठ-नौ गोट उपन्‍यासक रचना कएलनि‍ अछि‍, परंच हि‍नक तीन गोट उपन्‍यासमे दलि‍तक दशाक चि‍त्रण मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल अपूर्व नि‍धि‍ मानल जा सकैछ। हि‍नक वि‍प्‍लवी बेसराक कथामे आदि‍वासीक कथा धौना, टेकू सुफल, बांसुरी, मोहरीलाल, गौरी, मारसक संग सफलता पूर्वक कहल गेल अछि‍। कौसि‍लि‍या उपन्‍यासमे तँ फुलि‍या चमैनक पात्रताक चि‍त्रण अनुपमेय अछि‍। वि‍दि‍त जीक तेसर उपन्‍यास मानव कल्‍पमे मि‍थि‍ला, अंग आ झारखंडक ऑचरमे बसल लगभग सम्‍पूर्ण दलि‍त समाजक वि‍वेचन कएल गेल।
ओना तँ श्रीमती शेफालि‍का वर्मा जी मानव धर्मी रचनाकार छथि‍। हि‍नक समग्र साहि‍त्‍यि‍क कृति‍मे जाति‍ शब्‍द भूमंडलीकृत अछि‍। नाग फांस उपन्‍यासमे जाति‍वादी व्‍यवस्‍थासँ शेफालि‍का जी बचबाक प्रयास कएलनि‍, परंच एे‍‍ उपन्‍यासक एकटा पात्र आकाशक पत्नी तरंगक प्रकृति‍सँ बुझना जाइत अछि‍, जे ओ दलि‍त छथि‍।
कहबाक लेल तँ सभ साहि‍त्‍यकार अपनाकेँ साम्‍यवादी कहैत छथि‍ मुदा साम्‍यवादी जीवन शैलीक जौं चर्च कएल जाए तँ संभवत: मैथि‍लीक सर्वकालीन साहि‍त्‍यमे ध्रुवताराक स्‍थान श्री जगदीश प्रसाद मंडल जीकेँ भेटबाक चाही। हि‍नक सभ उपन्‍यास (मौलाइल गाछक फूल, जि‍नगीक जीत, जीवन-मरण, जीवन-संघर्ष, उत्‍थान-पतन)मे दलि‍तक चि‍त्रण अनायास भेटि‍ जाइत अछि‍। लि‍खबाक शैली ओ बि‍म्‍बक चयन ततेक पारदर्शी जे सवर्ण- दलि‍तक मध्‍य कोनो खाधि‍ नै‍‍। सम्‍पूर्ण समाजमे सकारात्‍मक तारतम्‍य स्‍थापि‍त करबाक जगदीश जीक स्‍वप्‍न मात्र उपन्‍यासमे नै‍‍ रहत, एे‍‍सँ मि‍थि‍लाक समाजि‍क परि‍स्‍थि‍ति‍मे भवि‍ष्‍यमे सर्वे भवन्‍तु सुखि‍न:....। सि‍द्धान्‍तक स्‍थापना अवश्‍य हएत। हि‍नक अवि‍रल मर्मस्‍पर्शी आ प्रयोगधर्मी कृति‍ मौलाइल गाछक फूलमे दलि‍त समाजक महादलि‍त मुसहर जाति‍क रोगही, बेंगवा, कबुतरीक मनोदशा आ नि‍त्‍यकर्मसँ समाजमे शांति‍क ज्‍योति‍ जगएबाक कल्‍पना अनमोल अछि‍। दड़ि‍भंगाक प्‍लेटफार्मपर सँ भंगी डोमक मानवीय भावनाक मारीचि‍का एकठॉ भक्क दऽ उगि‍ जाइत अछि‍। भजुआ, झोलि‍या आ कुसेसरी सभ सेहो डोम जाति‍क छथि‍ जि‍नकर सहायता सम्‍यक सोचबला ब्राह्मण रमाकान्‍त जी करैत छथि‍। एे‍‍ कृति‍क सभसँ अजगुत पात्र छथि‍ रमाकान्‍त जी। हि‍नक छोट पुत्र कालक डाँगसँ अधमरू वनि‍ता सुजाता जे धोवि‍न छथि‍ ति‍नकासँ वि‍वाह कऽ लैत छथि‍। वि‍वाहे टा नै‍‍ वि‍वाहसँ शि‍क्षा ग्रहन करबाक लेल प्रेरणा आ अर्थ सेहो सुजाताकेँ भेटलनि‍ जइसँ ओ डाॅ. सुजाता बनि‍ गेली। गाममे रहनि‍हार आ अपन मातृभूमि‍क प्रति‍ असीम श्रद्धा रखनि‍हार रमाकान्‍त बाबूकेँ अपन पुत्र महेन्‍द्रक एे‍‍ नि‍र्णएसँ कोनो पीड़ा नै‍‍ भेलनि‍। हि‍नक सम्‍पूर्ण परि‍वार एे‍‍ नि‍र्णएकेँ सहृदए स्‍वीकार कऽ लेलकनि‍।
जगदीश बाबूक दोसर उपन्‍यास जीवन-मरणमे हेलन-गुदरी डोम दम्‍पति‍क चर्च कएल गेल अछि‍। जीबछ, छीतन, रंगलाल चमार जाति‍सँ सम्‍बन्‍ध रखैत छथि‍। जि‍नगीक जीत उपन्‍यासमे पलहनि‍क नेपथ्‍यक पात्रता दर्शित अछि‍।
गजेन्‍द्र ठाकुरक सहस्‍त्रबाढ़नि‍मे दम्‍माक जड़ी एकटा आदि‍वासी द्वारा आनव आ ि‍कछु वर्ख बाद ओ जड़ी जंगलमे नै भेटब वोन कम होएवा दि‍स संकेत करैत अछि‍ तँ हुनकर सहस्‍त्रशीर्षा मि‍थि‍लाक लगभग सभ दलि‍त जाति‍क वि‍ष्‍तृत वि‍वेचना करैत अछि‍। तीनटा घरक रहलोपर धोवि‍या टोली एकटा टोल बनि‍ गेल अछि‍। झंझारपुर धरि‍ मारवाड़ीक कपड़ा एतए साफ कएल जाइत अछि‍। महि‍सवार ब्रह्मण सभ जे बरि‍यातीमे बेलवटम झाड़ि‍ कऽ सीटि‍-सीटि‍ कऽ नि‍कलैत छथि‍ से कोनो अपन कपड़ा पहि‍रि कऽ। बैह मंगनि‍या कपड़ा, महगौआ मारवाड़ी सभक। मारवाड़ी सभक ई कपड़ा रजक भाय दू दि‍न लेल भाड़ापर हि‍नका सभकेँ दैत छथि‍न्‍ह। कोरैल बुधन आ डोमी साफी, धोवि‍। डोमी साफी आब डोमी दास छथि‍, कारण कबीरपंथी जोतै छथि‍। फेर एकटा आर टोल, चमरटोली अछि‍। चमार- मुखदेब राम आ कपि‍लदेव राम। पहि‍ने गामसँ बाहर रहए, बसबि‍ट्टीक बाद। मुदा आब तँ सभ बाॅस काटि‍ कऽ उपटाए देने अछि‍ आ लोकक वसोबास बढ़ैत-बढ़ैत एे‍‍ चमरटोली धरि‍ आबि‍ गेल अछि‍। घरहट आ ईंटा-पजेबा सभ अगल-बगलमे खसि‍ते रहैत अछि‍। ढोलहो देबासँ लऽ कऽ सि‍ंगा बजेबा धरि‍मे हि‍नकर सबहक सहयोग अपेक्षि‍त। गाए-माल मरलाक बाद जा धरि‍ ई सभ उठा कऽ नै‍‍ लऽ जाइत छथि‍ लोकक घरमे छुतका लागले रहैत अछि‍। भोला पासवान आ मुकेश पासवान, दुसाध। गेना हजारीक नि‍चुलका खाड़ीक संबंधी। वएह गेना हजारी जे कुशेश्‍वर स्‍थानमे एकटा कुशपर गाए द्वरा आबि‍ कऽ दूध दैत देखने रहथि‍ तँ ओइ‍‍ स्‍थानकेँ कोड़ए लगलाह, महादेव नीचाँ होइत गेलाह, सीतापुत्र कुश द्वारा स्‍थापि‍त ई महादेव गेना हजारीक ताकल।
मुकेश पासवानक बेटी मालती बैंक अधि‍कारी छथि‍न्‍ह आ जमाए मथुरानंद डी.पी.एस. स्‍कूलक प्रचार्य छथि‍, वसंत-कुंज लग फार्म हाउसमे रहै जाइ छथि‍। भोला पासवान आ मुकेश पासवान गामेमे रहै जाइ छथि‍।
१९६७ई.क अकालमे जखन सभटा पोखरि‍, गड़खै सुखा गेल मुदा डकही पोखरि‍ नै‍‍ सुखाएल प्रधानमंत्री आएल रहथि‍ तँ हुनका देखेने रहन्‍हि‍ सभ जे कोना एतए सँ बि‍सॉढ़ कोड़ि‍ कऽ मुसहर सभ खाइत छथि‍। चर्मकार मुखदेव रामक बेटा उमेश सेहो ओइ‍‍ मुक्‍ताकाश सैलूनक बगलमे अपन असला-खसला खसा लेने अछि‍, रहैए मुदा कि‍शनगढ़मे। चप्‍पल, जुताक मरो-म्‍मति‍क अलावे तालाक डुप्‍लीकेट चाभी बनेबाक हुनर सेहो सीख‍ लेने अछि‍। कुंजी अछि‍ तँ ओकर डुप्‍लीकेट पंद्रह टाकामे। कुंजी हेरा गेल अछि‍ तँ तकर डुप्‍लीकेट सए टाकामे। आ जे घर लऽ जएवन्‍हि‍ तँ तकर फीस दू सए टाका अति‍रि‍क्‍त। मुसहर बि‍चकुन सदायक बेटा रघुवीर ड्राइवरी सीख‍ लेने अछि‍। वसंत कुंजक एकटा व्‍यवसायीक ओइ‍‍ठाम ड्राइवरी करैए आ रहैत अछि‍ कि‍सनगढ़मे। डोमटोलीक बौधा मल्‍लि‍क बेटा श्रीमंत सेक्‍टरक मेन्‍टेन्‍सक ठेका लेने छथि‍। हुनका लग दू सए गोटे छन्‍हि‍ जे सभ क्‍वार्टरक कूड़ा सभ दि‍न भोरमे उठेवाक संग रोड आ पार्किगक भोरे-भोर सफाइ करै छथि‍। एे‍‍मे सँ कि‍छु गोटे वि‍शेष कऽ नेपालक भोरे-भोर लोकक शीसा महि‍नवारी दू सए टाकामे पोछै छथि‍ आ अखबारक हॉकर बनल छथि‍। रहै छथि‍ कि‍शनगढ़मे मुदा अपन मकानमे- मुसहर बि‍चकुन सदाय।
दलि‍त संस्‍कृति‍क प्रति‍ उदासीनताक मुख्‍य कारण अछि‍ समाजमे पसरल छूति‍ व्‍यवस्‍था। ओना तँ एे‍‍ प्रकारक अवस्‍था प्राय: सम्‍पूर्ण आर्यावर्त्तमे रहल अछि‍, परंच आन ठामक जनभाषासँ दोसर धर्मक लोकक हृदेगत स्‍पर्शक कारण दलि‍त संस्‍कारक चि‍त्रण आन भाषामे मैथि‍लीसँ बेसी भेटैत अछि‍। मि‍थि‍लामे तँ इस्‍लाम धर्मी छथि‍, परंच मातृभाषा मैथि‍ली रहलाक वादो हुनका सबहक मध्‍य साहि‍त्‍यक सृजनशीलता उदासीन रहल। एकरा मैथि‍लीक दुर्भाग्‍य मानल जा सकैत अछि‍ जे एखन धरि‍ एे‍‍ भाषामे दलि‍त वर्गसँ उपजल साहि‍त्‍यकार उपन्‍यास नै‍‍ लि‍ख‍ सकलनि‍। प्राय: यएह स्‍थि‍ति‍ इस्‍लाम धर्मी साहि‍त्‍यकारक संग सेहो अछि‍। फजलुर रहमान हासमी, मंजर सुलेमान सन साहि‍त्‍यकार तँ मैथि‍लीकेँ आत्‍मसात कएलनि‍ परंच उपन्‍यासकार नै‍‍ बनि‍ सकलाहेँ। ई लि‍खबाक तात्‍पर्य जे इस्‍लाममे जाति‍वादी व्‍यवस्‍था सनातन सांस्‍कृति‍क अपेक्षाकृत न्‍यून अछि‍।
दलि‍त वर्गक संख्‍या मि‍थि‍लामे लगभग आठ आना अछि‍, संपूर्ण समाजक मातृभाषा मैथि‍ली मुदा शि‍क्षा-चेतनाक अभावक कारण एे‍‍ वर्गमे मैथि‍ली साहि‍त्‍यक प्रति‍ सृजनात्‍मक दृष्‍टि‍कोण नै‍‍ पनपि‍ सकल। आगॉक जाति‍मे सम्‍यक् ि‍वचारक अभाव रहल अछि‍, कि‍छु साहि‍त्‍यकार एे‍‍ परि‍धि‍सँ तँ बाहर छथि‍ परंच वर्गक बीचक खाधि‍ लक्ष्‍मण रेखा बनि‍ हुनको सभमे जनभाषा वाचकक प्रति‍ सि‍नेह नै‍‍ आबए देलक। संभवत: मैथि‍ली आर्यभाषा समूहक पहि‍ल जनभाषा थि‍क जकरापर जाति‍वादी कलंक लागल अछि‍। संस्‍कृतक संग यएह वि‍डंवना रहल परंच ओ कहि‍ओ जनभाषा नै‍‍ रहल। जखन कि‍ मैथि‍ली वर्तमान कालमे सवर्णसँ बेसी दलि‍त-पछाति‍क मातृभाषा अछि‍। पलायन तँ सभ जाति‍ समूहमे भऽ रहल अछि‍ परंच मजदूरी केनि‍हार दलि‍त प्रवासमे सेहो मैथि‍लीकेँ आत्‍मसात कएने छथि‍। एकर वि‍परीत मि‍थि‍लामे रहनि‍हार सवर्ण परि‍वारक आधुनि‍क पि‍रहीक नेना वर्गमे मातृभाषाक स्‍थान हि‍न्‍दी लऽ रहल अछि‍। ज्‍योति‍क-कोखि‍ अन्‍हार जकाँ मातृभाषाक वास्‍तवि‍क संरक्षकक वि‍वेचन एे‍‍ साहि‍त्‍यक उन्नयनक नै‍‍ कऽ रहल छथि‍। उतर वि‍हारक बेस रास स्‍थानमे पसरल मैथि‍ली तँ कखनो-कखनो मात्र मधुबनी दड़ि‍भंगाक मातृभाषा प्रमाणि‍त कएल जाइत अछि‍।
रचनाकारक दृष्‍टि‍कोण रचनामे कि‍छु आर आ वास्‍तवि‍क जीवनमे कि‍छु आर रहल। साम्‍यवादी व्‍यवस्‍थापर सि‍याहीक प्रयोग केनि‍हार उपन्‍यासकारमे वास्‍तवि‍कता जौं रूढ़ि‍वादी रहत तँ सम्‍यक समाजक कल्‍पनो करब असंभव। व्‍यथा वएह बूझि‍ सकैत ‍अछि‍ जकरामे जीवन्‍त अवि‍रल हृदए हो वा स्‍वयं व्‍यथि‍त हुअए।
नि‍ष्‍कर्षत: आशक संग-संग विश्‍वास अछि‍ जे वर्तमान युगक साहि‍त्‍यकार समाजक कात लागल वर्गक प्रति‍ सि‍नेही बनि‍ मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ गरि‍मामयी बनाबथु। पूर्वाग्रहकेँ अनुगृहीत करबाक पश्‍चात एहेन कल्‍पना-वास्‍तवि‍क भऽ सकैत अछि‍। जौं अपमानि‍त अछोपकेँ सम्‍मानि‍त कएल जाए तँ मि‍थि‍ला पुनि‍ ओइ‍‍ मि‍थि‍लामे परि‍णत भऽ सकैत अछि‍ जतए राजा जनक परि‍वार, समाज आ राज्‍यहि‍तमे धर्मक पालनक हेतु राजासँ हरबाह बनि‍ गेलनि‍।

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