Pages

Saturday, April 7, 2012

तरेगन पर शिव कुमार झा ’टिल्लू’



समीक्षा- तरेगन

वर्त्तमान युगक मानव-जीवन “अर्थनीति‍‍”क उक्‍खड़ि‍मे तेना कऽ कुटा रहल अछि‍ जे गॉधी आ लेलि‍नक सि‍द्धान्‍त मटि‍यामेट भऽ गेल। नीि‍त आ धर्मक गप्‍प केनि‍हार लोक अति‍वादी आ कर्महीन मानल जाइत छथि‍। एे‍‍ भागमभाग भरल जीवनमे “साहि‍त्‍य‍” सन शब्‍द हास्‍यास्‍पद जकाँ बुझा रहल। स्‍वाभावि‍के छैक, बि‍नु दाम सभ सुन्न! एे‍‍ परि‍स्‍थि‍ति‍मे साहि‍त्‍यि‍क अवधारणा सेहो बदलि‍ रहल अछि‍। आब महाकाव्‍य पढ़नि‍हार लोक बड़ अल्‍प छथि‍ कि‍एक तँ सबहक जीवनमे समयाभाव छैक। हमहूँ एे‍‍ गप्‍पकेँ मध्‍यकालि‍क राति‍मे लि‍ख रहल छी, कि‍एक तँ दि‍नमे लि‍खब तँ खाएब की?
       एे‍‍ सभ कारणसँ लघुकथा आ लघुकवि‍ताक अनि‍वार्यता प्रतीत भऽ रहल। साहि‍त्‍य समागममे लघुकथाक स्‍थान बड़ महत्‍वपूर्ण मानल जाइछ। मैथि‍लीमे एखन धरि‍ परंपरा जकाँ रहल जे छोट कथा चाहे ओ बि‍म्‍बि‍त हुअए वा नै‍‍ “लघुकथा‍” थि‍क। कि‍छु साहि‍त्‍यकार मात्र एे‍‍ दि‍शामे संकलन कऽ सकलाह। जइ‍मे मनमोहन झा अग्रगन्‍य छथि‍। तारानंद वि‍योगी जीक लघुकथा संग्रह “शि‍लालेख‍” आ अमरनाथ रचि‍त “क्षणि‍का‍” उत्तम श्रेणीक मैथि‍ली लघुकथा संग्रह अछि‍। मुदा जौं साहि‍त्‍यक सकल अवधारणा वा वि‍धाक बि‍म्‍बि‍त छायाक चर्च कएल जाए तँ श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल लि‍खि‍त लघुकथा संग्रह “तरेगन‍” मैथि‍ली साहि‍त्‍यक प्रथम सम्‍पूर्ण लघुकथा मानल जाएत। एे‍‍ पोथीमे एक साए दस लघुकथा देल अछि‍।
       छोट-छोट ताराकेँ मैथि‍लीमे “तरेगन‍” कहल जाइत अछि‍। राति‍मे चि‍त भऽ कऽ वसुन्‍धरापर लेटि‍ स्‍वतंत्र गगनकेँ दि‍व्‍यदर्शन कएलापर तरेगनक समूह सबहक मध्‍य स्‍थापि‍त संबंधकेँ देखल जा सकैत छैक। लगैत अछि‍ जे एक तरेगन दोसर तारासँ सटल छैक मुदा वि‍ज्ञानक अनुसंधानसँ ई स्‍पष्‍ट भऽ सकल जे अकाशक तरेगनक समूहक बीचक दूरी पृथ्‍वी आ अाकाशक बीचक दूरीसँ बेसी छै। ओहि‍ना एे‍‍ कथा संग्रहमे लि‍खि‍त सभटा कथा एक दोसरसँ सटल रहि‍तहुँ एक-दोसरसँ बहुत दूर अछि‍। न्‍याय, कर्म, मीमांसा नीति‍ आ बाल मनोविज्ञान सन बि‍म्‍बकेँ अनचोकेमे जगदीशजी एक संग बान्‍हि‍ देलनि‍। मैथि‍लीमे नैति‍क शि‍क्षाक अभावकेँ तरेगन बहुत हद धरि‍ पूर्ण करबाक प्रयास कएलक।
       मूल रूपसँ ई संग्रह नेना सबहक लेल लि‍खल गेल अछि‍ मुदा बयसो जौं एे‍‍ सि‍द्धान्‍तक अनुपालन करथि‍ तँ समाजक वि‍गलि‍त मनोवृत्ति‍क रूपमे परि‍वर्त्तन अवश्‍यांभावि‍त अछि‍। कोनो पोथीक समीक्षात्‍मक वि‍वरणमे सम्‍पूर्ण रचनाक चि‍त्रण करब अनि‍वार्य नै‍‍ मुदा रचनाक समाजमे प्रभावक दर्शन कराएब वांछि‍त होइत छैक।
       सम्‍पूर्ण पोथीक अवलोकन कएलापर एकरा मात्र नेना-भुटकाक कथा संग्रह नै‍‍ मानल जा सकैछ। पहि‍ल कथा -उत्‍थान पतन-मे नीति‍ शि‍क्षा नेना भुटकाक संग-संग गृहस्‍थ धर्मी लोकक लेल प्रेरणादायी लागल। संयम जीवन जीबाक कलासँ धर्म, अर्थ, काम आ मोक्षक अवलंबन सहज होइत अछि‍। -प्रति‍भा- लघुकथामे डॉ. राममनोहर लोहि‍याक माध्‍यमसँ जगदीश जी ज्ञान आ समैक मध्‍य तारतम्‍य स्‍थापि‍त करबाक प्रयास कएलनि‍। एे‍‍ कथाकेँ मौलि‍क रचना (Creative writing) नै‍‍ मानल जा सकैत अछि‍, कि‍एत तँ कोनो महापुरूषक जीवन शैलीक चर्च कोनो पोथी पढ़ि‍ कऽ कएल गेल अछि‍। मुदा नीक लागल जे जगदीश बाबू साम्‍यवादी प्रवृत्ति‍क मनुक्‍ख छथि‍ आ लोहि‍या समाजवादी छलाह। ओना तँ समाजवादेसँ साम्‍यवादी धाराक परि‍कल्‍पना कएल जा सकैछ, परंच सैद्धान्‍ति‍क रूपसँ भारत वर्षमे दुहू राजनैति‍क धारामे वि‍लग नीति‍ अछि‍। अपन अध्‍ययनशीलतासँ सम्‍पूर्ण मानव जाति‍केँ एकसूत्रमे बँधवाक जगदीश जी प्रयास कऽ रहल छथि‍। मर्म‍ कथाक बि‍म्‍ब पढ़लासँ स्‍वामी वि‍वेकानंदक सरल राजयोगक सि‍द्धान्‍तक दर्शन होइत अछि‍। हेलैक कलासँ सांसारि‍क जीवन जीवाक तुलना, वैभवक कुप्रावक छोट मुदा वि‍शेषार्थ प्रस्‍तुति‍ नीति‍ अनुपालनमे सफल प्रयास कहल जाए। अज्ञ नीक नै‍‍ तँ खराब सेहो नै‍‍, सर्वज्ञ कि‍ओ नै‍‍ भऽ सकैत अछि‍ बहुज्ञ समाजक पथ प्रदर्शक परंच अल्‍पज्ञ जकरा देसि‍ल वयनामे “अधखड़ुआ‍” कहल जाइत अछि‍ ओ समाजक वि‍कासमे वाधक होइत छथि‍।
       अंग्रेजी साहि‍त्‍यक प्रखर हास्‍य रचनाकार सर एलेक्‍जेंडर पोप सेहो कहने छथि‍- little knowledge is a dangerous thing. अर्थात अर्द्धज्ञान बड़ खतरनाक वस्‍तु होइत छैक। -पहि‍ने तप तखन ढलि‍हेँ- शीर्षक लघुकथामे कुम्‍हारक आचार्य रूपक आ माटि‍केँ शि‍ष्‍य मानि‍ नैति‍क वि‍श्‍लेषण नीक लागल। नीति‍-धर्म आ शैक्षणि‍क दर्शनसँ भरल दोहासँ एे‍‍ कथाक तुलना अपेक्षि‍त भऽ सकैछ-     
       गुरूवार कुम्‍हार शि‍श कुम्‍ह है, गढ़ि‍-गढ़ि‍ काढ़े खोट
       अंतर हाथ सहार दे, बाहर मारे चोट।
 एे‍‍ प्रसंगमे ज्ञानपीठ पुरस्‍कारसँ पुरस्‍कृत हि‍न्‍दी साहि‍त्‍यक प्रांजल कवि‍ श्री नरेश मेहताक कवि‍ता -मृत्ति‍का-क चर्च करब अनुकूल लागल। नरेश जीक रचनाक अनुसार माटि‍ कहैत छथि‍- हम तँ मात्र माटि‍ छी, जखन अहाँ अपन चरणसँ पददलि‍त करैत छी आ हऽरक फाढ़सँ चीड़ दैत छी तखन हमरामे मातृत्‍वक वोध होइत अछि‍ आ मातृत्‍वक प्रेरणा आ संसर्गसँ शस्‍य श्‍यामला धन धान्‍य अन्न हरि‍यरीक रूपेँ संसारकेँ जीवन प्रदान करैत अछि‍।' कर्मपथपर क्रि‍याशील मनुक्‍खक लेल कालक आ प्रहरक कोनो बान्‍ह नै‍‍ होइत छैक। -जखने जागी तखने परात- शीर्षक लघुकथामे डॉ. क्रोनि‍नक जीवन दर्शनक माध्‍यमसँ रचनाकार नेना-भुटकामे काकचेष्‍टा आ श्‍वान नि‍द्राक झॉपल दर्शन करएवाक लेल आतुर छथि‍। जे व्‍यक्‍ति‍ सत्‍य कर्मी होइत छथि‍ ओ सदि‍खन सत्‍यकेँ जि‍तएबाक लेल प्रयास करैत छथि‍। महाभारतक कथाक गर्भसँ एहेन कालजयी बि‍म्‍बकेँ नि‍कालि‍ कऽ -उग्रधारा- कथाक रूप देबाक कलासँ जगदीश जीकेँ हंस मानल जा सकैत अछि‍। जेना हंस नीर दुग्‍ध मि‍श्रणमे सँ क्षीरकेँ सोंटि‍ लैत अछि‍ आ नीर पात्रेमे रहि‍ जाइछ ठीक ओहि‍ना महा भारतक सम्‍पूर्ण कथा बि‍म्‍बकेँ नीर, अमि‍य आ मधु मानल नै‍‍ जा सकैत अछि‍। अर्जुनकेँ वि‍जयी बनएवाक लेल श्रीकृष्‍ण अपन पांजरपर हनुमानक अगम देह भारकेँ रोकि‍ “भारत‍”केँ वि‍जयी बनौलनि‍। ई कथा छात्रक संग-संग शि‍क्षकक लेल अनुकरणीय अछि‍। व्‍यवहारि‍क, समर्पण, देवता, पाप आ पुण्‍य शीर्षक कथामे उदयनाचार्यक न्‍याय कुसुमांजलि‍क क्षणि‍क स्‍पर्शक अनुभव बुझना गेल।
       अढ़ाइ आखरक शब्‍द प्रेमक रूप वास्‍तवि‍क जीवनमे अर्थनीति‍क आहि‍मे अप्रासंगि‍क भऽ गेल हुअए मुदा रचनामे एखन धरि‍ जीवि‍त अछि‍। हि‍न्‍दी साहि‍त्‍यमे प्रेमचन्‍द्र रचि‍त कथा ईदगाह, नागार्जुन रचि‍त कवि‍ता गुलाबी चूड़ि‍याँ आ माखनलाल चतुर्वेदी रचि‍त कवि‍ता प्रेमकेँ पढ़ि‍ कऽ ति‍रपि‍त होइत तँ छलहुँ परंच हरि‍वंश राय बच्‍चन जीक 'आ रहि‍ रवि‍ की सवारी' अंति‍म पद्य मोन पड़ि‍ते क्षणहि‍ंमे अकुला जाइत छलहुँ जे हि‍न्‍दी वि‍जयी भऽ रहल छथि‍ सूर्यक समान मुदा मैथि‍ली उषाकालक चन्‍द्रमा सन झॅपा रहलीह। जगदीश जीक 'प्रेम' पढ़ि‍ गुमानक अनुभव भऽ रहल अछि‍ जे हमरा सभक भाषामे एे‍‍ बि‍म्‍बपर जे कथा लि‍खल गेल अछि‍ ओ कतऽ कतऽ आन भाषामे भेटत, हेरबाक चाही? ओना ई कथा मौलि‍क रचना नै‍‍ भऽ कऽ अंग्रजीक प्रख्‍यात लेखक ओ.हेनरीक एकटा कथापर आधारि‍त अछि‍। श्रमक सम्‍मान तखन भऽ सकैत अछि‍ जखन श्रमजीवी सम्‍मानि‍त कएल जाइथ। वंश, ति‍याग, सद्वि‍चार, साहस, वरदास्‍त, भूल, धैर्य, मनुष्‍यक मूल्‍य, मेहनतक दरद सन भाववाचक संज्ञाक दर्शन मात्र दार्शनि‍के कऽ सकैत छथि‍ मुदा एे‍‍ पोथीमे पाठक सेहो देख‍ सकैत छथि‍।
       एकाग्रता छात्र जीवनक धरोहरि‍ होइत अछि‍। भाषण तँ सभ केओ दऽ सकैत छथि‍ मुदा पाॅच पॉति‍ लि‍खबाक कला कतेक लोकमे छन्हि। हमरा वि‍श्‍वास अछि‍ जे 'एकाग्रचि‍त' बि‍म्‍बकेँ रचनाकार पढ़थु मति‍भ्रम दूर भऽ जेतनि‍। अनुभव, सौन्‍दर्य, धर्म आत्‍मबल सन मौन वि‍षएकेँ कथाक रूपमे बि‍म्‍वि‍त करब असंभव तँ नै‍‍ मुदा अाश्‍चर्यजनक। समाजमे क्रांति‍क दीप प्रज्‍वलि‍त करबाक लेल नेना-भुटकामे क्रांति‍दीप जराएब आवश्‍यक अछि‍। एे‍‍ लेल समाजक कुप्रथाक गर्भावलोकन करएवाक प्रयास प्रासंगि‍क मुदा कतेक रचनाकार मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे ई काज कएलनि‍। वि‍धवा वि‍वाह, देश सेवाक ब्रत, नारीक सम्‍मान, सादा जीवन, पत्नीक अधि‍कार, जाति‍ नै‍‍ पानि‍ शीर्षक कथा सभकेँ बाल मनोवि‍ज्ञानक मौलि‍क कथा मानल जाए।
       नि‍ष्‍कर्षत: जीवनकेँ जीवन्‍त बनएवाक लेल जतेक प्रकारक तारत्‍म्‍य होएबाक चाही जगदीश जी ओइ‍‍ सभ बि‍म्‍बकेँ बि‍म्‍वि‍त कएलनि‍। एे‍‍ पोथीमे दर्शनक सभ वि‍धाक सरल भाषामे चि‍त्रण केलनि‍। खटकल तँ मात्र एक अर्थमे जे बाल मनोवि‍ज्ञानक वि‍कास करबाक लेल जे सरस विश्‍लेषण होएवाक चाही ओ एे‍‍ पोथीमे नै‍‍ देल गेल। गरीबक दीनतामे हास्‍यक समागम सेहो होइत अछि‍। बाल साहि‍त्‍यमे दर्शनक वि‍श्‍लेषणमे कतौ-कतौ  रीति‍ आ प्रीति‍केँ हास्‍य रससँ बोरबाक चाही। पंडि‍त हरि‍मोहन झा तँ लघुकथा नै‍‍ लि‍खलनि‍ मुदा हुनक जे गद्य साहि‍त्‍य उपलब्‍ध अछि‍ ओइ‍‍ सभमे दर्शनक बि‍म्‍बपर हास्‍य आ श्रंृगारक माखन चढ़ल भेटैत अछि‍ जगदीश जीक रचना तँ अनुशासि‍त होइत छन्‍हि‍‍ मुदा 'तरेगन'मे बाल मनोवि‍ज्ञानक सरल प्रस्‍तुति‍ करि‍तहुँ कनेक चूकि‍ गेल छथि‍। एक अर्थमे ई पोथी मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल पथ प्रदर्शक पोथी अछि‍, तँए जगदीश बाबू प्रशंसाक पात्र छथि‍। सम्‍पूर्ण पोथीक अर्न्‍तदर्शनक लेल योग्‍य आचार्यक जि‍नकामे अनुशासनक संग-संग संतुलि‍त अनुशीलन हुअए अनि‍वार्यता प्रतीत होइत अछि‍। नि‍ष्‍कर्ष रूपेँ मैथि‍ली भाषा-साहि‍त्‍यमे 'तरेगन'केँ बेछप्‍प नैति‍क शि‍क्षाप्रद रचना मानल जाए। बालकथाक वास्‍तवि‍क रूप अछि‍ जे रचनाकारकेँ प्रश्‍नसँ बेसी समाधानपर धि‍यान देबाक चाही। एे‍‍ पोथीमे सभसँ नीक लागल जे रचनाकार प्रश्‍न ठाढ़े नै‍‍ कएलनि‍।

पोथीक नाओं- तरेगन

वि‍धा- बाल प्रेरक कथा संग्रह

रचनाकार- जगदीश प्रसाद मण्‍डल

प्रकाशक- श्रुति‍ प्रकाशन, दि‍ल्‍ली

पाेथी प्रप्‍ति‍ स्‍थान- पल्‍लवी डि‍स्‍ट्रीब्‍यूटर्स, ि‍नर्मली (सुपौल)

प्रकाशन वर्ष- २०१०

दाम- १००टाका मात्र

No comments:

Post a Comment