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Saturday, April 7, 2012

अमरनाथसँ साक्षात्‍कार :: मुन्नाजी


कथा साहित्यक स्थापित रचनाकार एवं साहित्य अकादमीक (मैथिली परामर्शदातृ समिति) सदस्य माननीय अमरनाथ जीसँ मैथिलीक प्रतिनिधि लघुकथाकार एवं समालोचक मुन्नाजी द्वारा भेल गप्पसप्पक अंश प्रस्तुत अछि :

मुन्नाजी: अहाँक मोनमे मैथिलीक रचनात्मक विचार कोना प्रस्फुटित भेल, पहिल रचना (लिखल) आ पहिल प्रकाशित रचना कोन अछि, आ कतए कहिया छपल?

अमरनाथ: हमर जन्म एक एहन परिवारमे भेल, जतए अनेक तरहक विविधता छलैक। किछु घोर कर्मकाण्डी रहथि, तँ किछु शास्त्र-पुराणक विपरीत आचरण करथि खाद्य-अखाद्यमे विचार नै‍ करथि। भारत-चीनक युद्ध आ युद्धक चर्चासँ आहत बाल मन आ १९६२मे ज्यौतिषी द्वारा खण्ड प्रलय भूकम्प अथवा विनाशक भविष्यवाणीक कारणे घरक बाहर छोट-छोट शेडमे रहबाक विवशता मनकेँ उत्सुक बनौने रहए। तत्कालीन समाजमे अधिकांश तथाकथित समाज लोककेँ सोंगरपर ठाढ़ देखियनि। अर्थात् एकटा नौकर आ टहलू चाहियनि। आश्चर्य ई लागय जे जखन सभ मनुक्खे, तखन सम्बोधनमे यौ, हौ, रौ, हरौ अछि किएक? जे घाम चुबबैत अछि से न्यून किएक? एहन विडम्बनापूर्ण परिस्थितिमे हमर रचनात्मक विचार प्रस्फुटित भेल रहए। मिथिला शोध संस्थान, दरभंगासँ मैथिलीक लेखिका राजलक्ष्मीपर आधारित पुस्तक प्रकाशित भेल छल जइमे हुनक लिखल पोथीपर मुख्यतया अभिमत संकलित छल। आेइ पोथीमे आचार्य रमानाथ झा आदिक विचार छपल अछि। हमर अभिमत कवितामे छपल अछि, हमर वएह पहिल छपल रचना थिक।

मुन्नाजी : अहाँ सबहक रचनाक प्रारम्भिक कालमे मैथिली साहित्यक स्थिति की छल? अहाँक रचनात्मक प्रभाव केहेन रहल?

अमरनाथ : १९७४ ई.मे पटनासँ प्रकाशित मिथिला मिहिरक फगुआ अंकमे हमर पहिल हास्य व्यंग्य कथा स्वर्ण युगछपल रहए। १९७५ ई.मे क्षणिकालघुकथा संग्रह छपल, आचार्य सुरेन्द्र झा ‘सुमनआेइ पोथीक भूमिका लिखने छथि जइमे लघुकथाक औचित्यपर प्रकाश देने छथि। किरणजी, अमरजी, श्रीश जीक विचार छपल छन्‍हि। पछाति जयकांत मिश्र लिखलनि जे ऐ‍ संग्रहक प्रकाशनसँ मैथिली साहित्यक विकास भेल अछि। मिथिला मिहिर’, ‘द इण्डियन नेशन’, ‘आर्यावर्त्त’, ‘मैथिली प्रकाश’ (कोलकाता) मे क्षणिकाक समीक्षा छपल रहए। तइसँ ई अनुभूति भेल रहए जे कथाकारक रूपमे हमरा स्वीकार कऽ लेल गेल अछि। १९७४ ई.मे चाही एकटा द्रोपदी’ (कथा संग्रह) तथा १९७५ ई.मे ई क्षणिका’ (लघु कथा संग्रह) छपल रहए। हमरा अधिकांश श्रेष्ठ लेखक यथा रमानाथ झा, हरिमोहन बाबू, यात्री जी, किरण जी, सुमन जी आदिक सानिध्य आ सि‍नेह प्राप्त भेल रहए। मुदा हम बेसी हरिमोहन बाबूक लग रही आ तकर कारण रहए जे हम दर्शन शास्त्रक अध्ययन करैत रही आ मैथिलीमे लेखन दिस उन्मुख भेल रही। हरिमोहन बाबू संग बीतल क्षण हमर साहित्यिक जीवनकेँ गति प्रदान करबामे अत्यंत सहायक भेल छल।

मुन्नाजी : छठ्ठम/सातम दशकमे किछु रचनाकार मैथिलीमे साम्यवादी विचारक हो-हल्ला केलनि। अहाँक नजरिमे सत्यतः मैथिलीमे एहेन कोनो विचारधारा बनलै? अहाँपर एकर केहेन प्रभाव पड़ल?
अमरनाथ : एकटा सम रहैक जइमे संसारक जन समुदाय साम्यवादी विचार धारा दिस आकर्षित भेल रहए। सम्पूर्ण विश्वमे पक्ष-विपक्षमे बहस प्रारम्भ भेल रहैक। कतौ-कतौ क्रांतियो भेलैक, क्रांति सफलो भेलैक। मुदा मैथिली साहित्यिक परिप्रेक्ष्यमे अहाँ ठीके कहलौं जे हो-हल्लाभेलैक। हमहूँ मानैत छी जे मैथिली साहित्यमे साम्यवादी विचारधाराक जड़ि नै‍ जमि सकलैक। मैथिलीमे जे कि‍यो अपनाकेँ साम्यवादी कहि कऽ प्रचारित करैत छथि से पाखंडी छथि। ई बात कने कटु अछि मुदा सत्य अछि कारण हुनक जीवनक सूक्ष्म निरीक्षणसँ परिलक्षित होएत जे ओ जातीय अहंकारसँ मुक्त नै‍ भेल छथि आ परम्परागत संस्कारमे लिप्त छथि। जि‍नकामे साम्यवादी चिंतन धारामे अग्रसर होएबाक अर्हते नै‍ छन्‍हि से भला वर्ग-संघर्ष, सर्वहारा, मैनिफेस्टो आ दास कैपिटल धरि कोना पहुँचताह। हँ, मैथिली साहित्यमे साम्यवादकेँ संगठित प्रचारक लेल आ आत्म-विज्ञापनक लेल हथकंडाक रूपमे इस्तेमाल कएल गेल अछि।
मैथिली साहित्यमे हमरा जनैत कोनो ठोस विचार धारा नै‍ पनपि सकलैक आ तकरा कारण ई भेलैक जे बीसम शताब्दीक महत्वपूर्ण लेखक लोकनिपर, संस्कृत अथवा बांग्ला साहित्यक प्रभाव पड़ल रहनि। किछु लेखकपर अंग्रेजी साहित्यक प्रभाव सेहो पड़ल रहनि। स्वतंत्रताक पश्चात् मैथिली साहित्य बहुलांशमे हिन्दी साहित्यक छत्र छायामे चलि आएल। मैथिलीक साहित्यकार नामवर सिंह आ मैनेजर पांडेय दिस देखय लगलाह। ई दु:खद स्थिति अछि, मुदा सत्य यएह अछि। मात्र तीन गोट साहित्यकार हरिमोहन झा, यात्री आ राजकमल विचार धाराक दृष्टियेँ टिकल रहलाह। यात्री समतामूलक समाजक स्थापना लेल अग्रसर भेलाह आ परम सत्यधरि पहुँचि अस्तित्ववादी भऽ गेलाह। मानववाद हुनक कवितामे अंतर्निहित छन्‍हि। यात्री लिखैत छथि-
सत्य थिक संसार
सत्य थिक मानव समाजक क्रमिक उन्नति
क्रमिक वृद्धि-विकास
सत्य थिक संघर्षरत जनताक ई इतिहास
सत्य धरती, सत्य थिक आकाश
परम सत्य मनुक्ख अपनहि थिक

तहिना राजकमल साहित्य वर्जनाकेँ तोड़ैत तथाकथित धर्मात्मापाखंडीसबहक प्रताड़नासँ कुहरैत, नोरसँ भीजल मिथिलाक नारीक जीवंत चित्रण केलनि। एही सन्दर्भमे हरिमोहन झाक नाओं उल्लेखनीय अछि। खट्टर ककाक तरंग बुद्धिवादी चिंतन धाराक लेल गीतासदृश अछि। सभसँ महत्वपूर्ण बात ई अछि जे हरिमोहन झा, यात्री जी आ राजकमलक मोसि कमला-गंडकी-वाग्मती-कोसीक पानिसँ बनल छलनि तँए हुनकर साहित्यमे मिथिलाक सोहनगर माटिक सुगंधिक अनुभव होइत अछि। बीसम शताब्दीक वृहत्रयीमे यएह तीन साहित्यकार हरिमोहन झा, यात्री जी आ राजकमल छथि जे कालजयी छथि।
हमरापर कोन विचार धाराक प्रभाव पड़ल तकर विवेचन आ मूल्यांकनक दायित्व अहाँ सन युवा रचनाकारपर छोड़ि दैत छी।

मुन्नाजी: अहाँ अपन रचनाकालक प्रारम्भसँ एखन धरि लेखनक निरंतरता बनौने छी, मुदा आइ धरि ककरो द्वारा कोनो ठोस मूल्यांकन आ पुरस्कृत नञि भेलासँ केहेन अनुभव करैत छी?

अमरनाथ: मुन्नाजी, मैथिलीमे मूल्यांकन होइ नै‍ छै, करबए पड़ैत छै। आेइ लेल मैनेजमैंट चाही। ई मैनेजमैंट ने करए अबैत अछि आ ने हम सीखए चाहै छी। रहल गप्प पुरस्कारक। एकर अपन गणित छै। मैट्रिक धरि गणित आ विज्ञान रहए। प्रथम श्रेणी भेटल रहए। मुदा दर्शनशास्त्र प्रिय लागल। गणित छोड़ि देलिऐ। फेरसँ सीखल होएत? तखन अहीं कहू, पुरस्कार कोना भेटत? मुन्नाजी, हम कहि सकैत छी जे देशक विभिन्न भागसँ हमरा पाठकक सि‍नेह भेटल अछि। ई की पुरस्कार नै‍ भेलै? हमर पोथीक तीन-तीन संस्करण भेल अछि। चारिम संस्करण प्रेसमे अछि। मैथिली लेखकक लेल ई की कम भेलै?

मुन्नाजी: कथा साहित्यमे अहाँ द्वारा लघुकथापर जमि कऽ लेखन भेल। मैथिलीक पहिल लघुकथा संग्रह क्षणिकादेलाक बाबजूद अहाँ लघुकथाकारक रूपमे हेराएल आ बेराएल रहलौं, एकरा पाछू समूहवाजी आ आर किछु कारण अछि?

अमरनाथ: ऐ‍मे हमर अपन दोष अछि। १९७५ ई.मे क्षणिकाछपल रहए। हाथो हाथ बिका गेल। ऐ‍ घटनाक पैंतीस वर्ष भेलैक। हमरा दोसर संस्करण करएबाक चाहै छल। से नै‍ भेलैक। मैथिली पुस्तकक हेतु कोनो नीक पुस्तकालय नै‍ छैक। जखन पोथी नै‍ उपलब्ध होएतैक, तखन कोन आधारपर चर्चा लोक करतैक? तथापि जे नीक समालोचक होइत छथि से अंवेषण करैत छथि, पोथी उपलब्ध करैत छथि आ तखन मूल्याकंन करैत छथि। से कएलनि मैथिलीक सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. रामदेव झा, पटना विश्वविद्यालय द्वारा यू.जी.सी.क सौजन्यसँ आयोजित सेमिनारमे। अपन आलेखमे क्षणिकाक सम्बन्धमे स्पष्ट विचार रखलनि। मुदा मैथिलीमे कतेक रामदेव झा छथि।

मुन्नाजी: अहाँक प्रारम्भिक रचनाकालमे मूलतः कथा कविता लेखनपर धि‍यान देल जाइत छल। अहाँक ओइसँ इतर लघुकथा लेखनक प्रति उत्सुकता आ रचनाशीलता कोना आएल।

अमरनाथ: हम १९७३ ईं.क गर्मीमे एक मास औद्योगिक नगरी बोकारो रहि बितौने रही। ओतए हम पहिल बेर लगसँ मशीनक घरघड़ाहटिकेँ सुनने रहिऐक, लोककेँ दोगैत देखने रहिऐक। हमरा लागल रहए जे आब जे समए आबि रहल अछि, तइमे मनुष्यकेँ समैक प्रबन्धन करए पड़तैक। कहि सकैत छी जे समएलोकक वएह अत्यंत महत्वपूर्ण भऽ जयतैक। एहन स्थितिमे महाकाव्य अथवा दीर्घ कथा/ उपन्यास पढ़ऽ लेल समए नै‍ रहतैक। मुदा तथापि लोक साहित्य पढ़ए चाहत। आ तँए पैघसँ पैघ बात कहबा लेल हम छोट-छोट कथा लिखए लगलौं। पछाति सकल क्षणिका’ ‘लघु कथासंग्रहक रूपमे प्रकाशित भेल।

मुन्नाजी: अहाँ चारि दशक पहिने लघुकथाक प्रति एतेक क्रियाशील रहिऐ, आइयो ई निरंतरता बनौने छी। तहन अहाँक अकादमीमे स्थान पौलाक पछाति लघुकथापर कोनो काज किएक नञि भेल, अकादमीक स्तरपर उदासीनता किए? आगामी समैमे लघुकथाक लेल अकादमी द्वारा कोनो स्वतंत्र क्रियाकलापक (यथा-लघुकथा संग्रहक प्रकाशन/कोनो कार्यशालाक आयोजन) योजना अछि आ समायोजन करबाक विचार अछि?

अमरनाथ: एकरा उदासीनता नै‍, प्राथमिकता कहबाक चाही। अकादमी द्वारा कतेक कार्य भेल अछि, भऽ रहल अछि। अगिला परामर्शदातृ समितिक बैसकमे लघुकथापर विशेष धि‍यान देल जाएत। लघुकथाक सन्दर्भमे विमर्श, पुस्तक आदिक प्रकाशनपर विचार होएत, आ से ऐ‍ द्वारे नै‍ जे हम स्वयं लघुकथा लिखैत छी। ई आवश्यक ऐ‍ हेतु अछि जे ऐ‍पर एखन धरि विचार नै‍ भेल अछि।

मुन्नाजी: मैथिलीक क्षेत्र छोट छै। तैयो रचनाकारक समूहबाजी एकरा गरोसने जा रहल अछि। ई एखनो सार्वभौमिक नञि अछि। आ से चीज पुरस्कारक हेतु चयन आ वितरणमे सेहो देखार होइत अछि। अहाँ ऐ‍सँ कतेक धरि सहमत वा असहमत छी?

अमरनाथ: मुन्नाजी, हमहूँ अहीं जकाँ लेखक छी। जे कि‍नो समूहमे नै‍ छी, स्वतंत्र लेखक छी, स्वाभिमानक संगे लि‍ख रहल छी, ऐ‍ यंत्रणाक दंशकेँ सहि रहल छी। मुदा मैथिलीक संसार आब छोट नै‍। श्री गजेन्द्र ठाकुरजी मैथिलीकेँ विदेहपत्रिका द्वारा सम्पूर्ण संसारमे पहुँचा देलनि। मिथिला दर्शनमैथिलीक भविष्य बाँचि रहल अछि, आ अहाँ सन संघर्षशील युवा रचनाकारक हाथमे मशाल अछि। आब अहीं कहू, ‘कूप-मंडुकक आवाज कते दूर धरि जाएत?

मुन्नाजी: साहित्य अकादमी द्वारा बड्ड रास पुरस्कार (विभिन्न विधापर) देबाक घोषणा कएल गेल अछि, मुदा आेइ सभ विधा आ स्तरपर उत्कृष्ट रचना आ रचनाकारक अभाव सन अछि तथापि पुरस्कार दऽ देल जाइत अछि। तकर पछाति ऐ‍ निर्णयपर पक्षपातक आरोप लगैत रहल अछि किएक?

अमरनाथ: अहाँक पीड़ा हम बुझैत छी। वएह पीड़ा हमरो मनमे अछि। एहन-एहन पुरस्कृत पोथी जँ आन-आन भाषामे अनूदित होएत तँ लोक हँसत हमरा सभपर, मैथिली साहित्यपर। तँए हमर स्पष्ट मंतव्य अछि जे उत्कृष्ट पोथी नै‍ रहैक तँ उचित थिक जे आेइ वर्ष मैथिलीकेँ पुरस्कार नै‍ भेटैक।

मुन्नाजी: साहित्य अकादमी पुरस्कारक चयनक आधार की अछि, व्यक्तित्व आ कृतित्व आकि भाय-भैय्यारीमे लिप्त भऽ एकरा परोसि/ बाँटि देल जाइत अछि।

अमरनाथ: बहुलांशमे जे होइत रहलैक अछि, सएह अहाँ कहलौं अछि। परंतु से ने उचित अछि आ ने मैथिलीक हितमे अछि। निश्चित रूपसँ लेखकक कृतिपर पुरस्कार भेटबाक चाही। ई धि‍यान राखब आवश्यक अछि जे अकादमीक पुरस्कार पुस्तकपर भेटैत छैक। अकादमी ने तँ लाइफ टाइम एचीवमेंटपुरस्कार दैत छै आ ने सांत्वना पुरस्कार। ऐ‍ सम्बन्धमे साहित्य अकादमीमे मैथिलीक प्रतिनिधि डॉ. विद्यानाथ झा विदितकेँ विशेष साकांक्ष रहबाक चाहियनि।

मुन्नाजी: आ अमरनाथबाबू, अंतमे अपनेसँ साहित्य आ अकादमी दुनू अनुभवक आधारपर नवरचनाकारक वास्ते कोनो संदेश चाहब जइसँ आगू निश्शन रचना आ रचनाकारे मैथिलीमे उपलब्ध हुअए।

अमरनाथ: अकादमीक अनुभव कोनो नीक नै‍ अछि। मैथिलीक विकासक सुनियोजित योजनाक प्रारूप नै‍ बनि सकलैक। तखन संघर्ष करैत छी, ठठै छी, मान-अपमानपर धि‍यान नै‍ दैत छी। तकर परिणाम अछि जे मैथिलीक व्यापक हितमे किछु काज भेल अछि आ किछु काज भविष्यमे होएत। मैथिलीक प्रतिनिधि डॉ. विद्यानाथ झा विदितक नेतृत्वमे एतबा भेल अछि जे ई आब मुट्ठी भरि लोकक परिक्रमा नै‍ कऽ विशाल जनसमुदाय आ लेखक बीच ई पहुँचल अछि।
साहित्यिक जीवनक अनुभवसँ हम उत्साहित होइत रहलौं अछि। तकर कारण अछि जे पाठकक सि‍नेह हमर मनकेँ लिखबा लेल प्रेरित करैत रहल अछि। तखन सन्देश! युवा लेखकक प्रति हम आस्थावान छी। आलोचककेँ धि‍यानमे राखि कऽ साहित्य नै‍ लिखबाक चाही आ ने आन भाषा-साहित्यक अनुकरण होएबाक चाही।
युवा लेखककेँ विभिन्न भाषाक महत्वपूर्ण ग्रंथ पढ़बाक चाहियनि, विश्वमे आबि रहल साहित्यक विभिन्न धारासँ परिचित होइत रहबाक चाहियनि आ बीच-बीचमे पर्यटन-परिभ्रमण करैत रहबाक चाहियनि। मुन्नाजी, जे किछु लिखैत छी तकरा आत्मसात कऽ लिखबाक चाही। कथा, कविता, उपन्यास, नाटक अथवा कोनो आन विधाक रचना कल्पित नै‍ होइत छैक आ ने गढ़ले जाइत छैक। लेखन सेहो ईमानदारी मंगैत छै। क्षमा करब मुन्नाजी, हम उपदेशक नै‍ बनए चाहै छी, मुदा अहाँक प्रश्ने तेहन छल!
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