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Sunday, April 8, 2012

स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र ’यात्री’


स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र यात्री” (१९११-१९९८):स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र यात्रीकेर जन्म १९११ ई. मे अपन मामागाम सतलखामे भेलन्हि जे हुनकर पैतृक गाम तरौनीक लगेमे अछि। यात्री जी अपन गामक संस्कृत पाठशालामे पढ़ए लगलाह, फेर वाराणसी आ कलकत्ता सेहो गेलाह आ संस्कृतमे साहित्य आचार्यक उपाधि प्राप्त केलन्हि। तकर बाद ओ कोलम्बो लग कलनिआ स्थान गेलाह पाली आ बुद्ध धर्मक अध्ययनक लेल। ओतए ओ बौद्ध धर्ममे दीक्षित भऽ गेलाह आ हुनकर नाम पड़लन्हि -नागार्जुन। मुदा बादमे पुनः गाममे यज्ञोपवीत कऽ ब्राह्मण धर्ममे घुरलाह।
यात्रीजी मार्क्सवादसँ प्रभावित छलाह, १९२९ ई. क अन्तिम मासमेमे मैथिली भाषामे पद्य लिखब शुरू कएलन्हि। १९३५ ई.सँ हिन्दीमे सेहो लिखए लगलाह। स्वामी सहजानन्द सरस्वती आ राहुल सांकृत्यायनक संग ओ किसान आन्दोलनमे संलग्न रहलाह आ १९३९ सँ १९४१ धरि ऐ क्रममे विभिन्न जेलक यात्रा कएलन्हि। हुनकर बहुत रास रचना जे महात्मा गाँधीक मृत्युक बाद लिखल गेल छल, प्रतिबन्धित कऽ देल गेल। भारत-चीन युद्धमे कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चीनकेँ देल समर्थनक बाद कम्युनिस्ट पार्टीसँ मतभेद भेलन्हि। जे.पी. अन्न्दोलनमे भाग लेबाक कारण आपात्कालमे हिनका जेलमे ठूसि देल गेल। यात्रीजी हिन्दीमे बाल साहित्य सेहो लिखलन्हि। हिन्दी आ मैथिलीक अतिरिक्त बांग्ला आ संस्कृतमे सेहो हिनकर लेखन आएल। मैथिलीक दोसर साहित्य अकादमी पुरस्कार १९६९ ई. मे यात्रीजीकेँ हुनकर कविता संग्रह पत्रहीन नग्न गाछपर भेटलन्हि। १९९४ ई.मे ओ साहित्य अकादमीक फेलो -हिन्दी आ मैथिली कविक रूपमे- भेलाह।
यात्रीजी जखन २० वर्षक छलाह तखन १२ वर्षक कान्यासँ हिनकर विवाह भेल। हिनकर पिता गोकुल मिश्र अपन समाजमे अशिक्षितक गनतीमे रहथि आ चरित्रहीन छलाह। यात्रीजीक बच्चाक स्मृतिमे छन्हि जे हुनकर पिता कोना हुनकर अस्वस्थ आ ओछाओन धएल मायपर कुरहड़ि लऽ मारबाक लेल उठल छलाह, जखन ओ बेचारी हुनकासँ कुमार्ग छोड़बाक गुहारि कऽ रहल छलीह। यात्रीजी मात्र छह वर्षक छलाह जखन हुनकर माए हुनका छोड़ि प्रयाण कऽ गेलीह। यात्रीजीकेँ अपन पिताक ओ चित्र सेहो रहि-रहि सतबैत रहलन्हि जइमे हुनकासँ मातृवत प्रेम करएवाली हुनकर विधवा काकीक, हुनकर पिताक अवैध सन्तानक गर्भपातमे, लगभग मृत्यु भऽ गेल छलन्हि। के एहन पाठक होएत जे यात्रीजीक हिन्दीमे लिखल रतिनाथ की चाचीपढ़बाक काल बेर-बेर नै कानल होएत। पिता-पुत्रक ई घमासान एहन बढ़ल जे पुत्र अपन बाल-पत्नीकेँ पिता लग छोड़ि वाराणसी प्रयाण कए गेलाह।
कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप
हम टा संतति, से हुनक पाप
ई जानि ह्वैन्हि जनु मनस्ताप
अनको बिसरक थिक हमर नाम
माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम! (काशी/ नवंबर १९३६)
काशीसँ श्रीलंका प्रयाण, “कर्मक फल भोगथु बूढ़ बापई कहि यात्रीजी अपन पिताक प्रति सभ उद्गार बाहर कऽ दैत छथि। १९४१ ई. मे यात्रीजी अपन पत्नी, अपराजितालग आबि गेलथि। १९४१ ई. मे यात्रीजी दू टा मैथिली कविता लिखलन्हि- बूढ़ वर”  विलापआ एकरा पाम्फलेट रूपमे छपबाए ट्रेनक यात्री लोकनिकेँ बेचलन्हि। जीविकाक ताकिमे सौँसे भारत दुनू प्राणी घुमलाह। पत्नीक जोर  देलापर बीच-बीचमे तरौनी सेहो घुमि कऽ आबथि। आ फेर आएल १९४९ ई., अपना संग लेने यात्रीजीक पहिल मैथिली कविता-संग्रह चित्रा। १९५२ ई. धरि पत्नी संगमे घुमैत रहलथिन्ह, फेर तरौनीमे रहए लगलीह। यात्रीजी बीच- बीचमे आबथि। अपराजितासँ यात्रीजीकेँ छह टा सन्तान भेलन्हि, आ सभक भार पत्नी अपना कान्हपर लेने रहलीह। यात्रीजी दमासँ परेशान रहैत रहथि।
हम जखन दरभंगामे पढ़ैत रही तँ यात्रीजी ख्वाजा सरायमे रहैत छलाह। हमरा मोन अछि जे मैथिलीक कोनो कार्यक्रममे यात्रीजी आएल छलाह आ कम्युनिस्ट पार्टीबला सभ एजेन्डा छीनि लेने छल। अगिले दिन यात्रीजी अपनाकेँ ओइ धोधा-धोखीमे गेल सभाक कार्यवाहीसँ हटा लेलन्हि। एमर्जेन्सीमे जेल गेलाह तँ आर.एस.एस. क कार्यकर्ता लोकनिसँ जेलमे भेँट भेलन्हि आ जे.पी.क सम्पूर्ण क्रान्तिक विरुद्ध सेहो जेलसँ बाहर अएलाक बाद लिखलन्हि यात्रीजी। यात्रीजी मैथिलीमे बैद्यनाथ मिश्र "यात्री" आ हिन्दीमे नागार्जुनक नामसँ रचना लिखलन्हि।
पृथ्वी ते पात्रं१९५४ ई. मे वैदेहीमे प्रकाशित भेल छल, हमरा सभक मैट्रिकक सिलेबसमे छल। यात्रीजी लिखैत छथि-
आन पाबनि तिहार तँ जे से। मुदा नबान निर्भूमि परिवारकेँ देखार कए दैत छैक। से कातिक अबैत देरी अपराजिता देवीक घोघ लटकि जाइन्हि। कचोटेँ पपनियो नहि उठा होइन्ह ककरो दिश! बेसाहल अन्नसँ कतउ नबान भेलइए”?

यात्री एकटा मिथ छथि? की यात्री एकटा मिथ छथि? ओ मुख्यतः हिन्दीक लेखक रहथि, मैथिलीमे ओ हिन्दीक दशमांशो नै लिखलन्हि। जे लिखबो केलन्हि तइमे सँ बेशी स्वयं द्वारा हिन्दीसँ अनूदित। मैथिली आ मिथिला क्षेत्रक शब्दावली आ संस्कृति हिन्दीक लोककेँ अबूझ आ तेँ रुचिगर लगलै मुदा तइमे सेहो ढेर रास कमी रहै जेना एकटा उदाहरण यात्री समग्रसँ- ।     यात्री समग्र-पृ.२२० जेठ सुदी चतुर्दशी कऽ रहनि पीसाक वर्षी। पहिले वर्षी..पृ.. २२२- ..कहाँ जे एको दिनक खातिर जाइ, कर्ता बना, अषाढ़ बढ़ि तृतियाक तिथिपर पहिल।
एहेन बेमारी आनो मैथिली-हिन्दी लेखकमे छन्हि। ई ऐतिहासिक लिखित तथ्य अछि जे गोनू झा १०५०-११५० मे भेलाह मुदा उषा किरण खान विद्यापतिसँ हुनकर शास्त्रार्थ करबै छथि (हिन्दीक ऐतिहासिक उपन्यास सिरजनहार, भारतीय ज्ञानपीठ, मे) वीरेन्द्र झा कहै छथि जे गोनू झा ५०० साल पहिने भेला आ तारानन्द वियोगी गोनू झा केँ ३०० साल पहिने भेल मानै छथि (दुनू गोटेक हिन्दीमे प्रकाशित गोनू झापर पोथी, क्रमसँ राजकमल प्रकाशन आ नेशनल बुक ट्रस्टसँ प्रकाशित) तँ विभा रानीक गोनू झापर हिन्दी पोथी (वाणी प्रकाशन) मे कुणाल गोनू झाकेँ भव सिंहक राज्यमे (१४म शताब्दी) भेल मानैत छथि। जखन पंजीमे उपलब्ध लिखित अभिलेखन गोनू झाकेँ विद्यापतिसँ दस पीढ़ी पहिने अभिलेखित करैत अछि, तखन ई हाल अछि। मिथिला क्षेत्रक शब्दावली आ संस्कृतिक- जे हिन्दीक लोककेँ अबूझ आ तेँ रुचिगर लगैे छै- तथ्यमे ई मैथिली-हिन्दी लेखक सभ अपन अज्ञानतासँ ढेर रास गलत तथ्य पड़सि रहल छथि, साम्प्रदायिक लेखक लोकनि गोनू झाक कथामे मुस्लिम तहसीलदारक अत्याचार घोंसिया रहल छथि (मुस्लिम लोकनि मिथिलामे गोनूक समए मे रहबे नै करथि)!
यात्री समग्रमे बलचनमा नै लेल गेल कारण ओ हिन्दीक कृति अछि, ओकर मैथिली अनुवाद सेहो भ्रष्ट अछि लगैए जेना अदहा अनुवाद केलाक बाद मैथिली लेल हुनका लग समयाभाव भऽ गेल होइन्ह। यात्री समग्रमे नवतुरिया लेल गेल, ओहो मूल हिन्दी अछि, किए मूल मैथिली कहि कऽ लेल गेल तकर जबाब सम्पादक देताह। मैथिलीमे प्रूफ रीडरकेँ सम्पादक कहेबाक सख छन्हि आ लोक ग्रियर्सन धरिक रचनाक रिप्रिन्ट अपन सम्पादकत्वमे करबा रहल छथि। एकटा दोसर उदाहरणमे पी.सी.रायचौधुरीक दरभंगा जिला गजेटियरक तेसर अध्यायक चारिटा उपशीर्षकक अंग्रेजी रचनाकेँ मोहन भारद्वाज अपन सम्पादकत्वमे रमानाथ झा रचनावलीमे -किनको कहलासँ सत्य मानि- रमानाथ झाक रचना मानि घोसिया देलन्हि, जखन की लिखित आ वैयाकरणिक शिल्पक आधारपर ओ रचना पी.सी.रायचौधुरीक अछि। यात्री स्वयं कहै छथि जे ओ मैथिली बलचनमा पहिने लिखलन्हि आ तकर हिन्दीमे अनुवाद केलन्हि। मुदा हिन्दी बलचनमामे ओ ई नै लिखै छथि आ ओकरा हिन्दीक पहिल आंचलिक उपन्यास कहै छथि। ई बेमारी आइयो मैथिलीक लेखककेँ गरोसने अछि आ यात्री जीक ऐ मे सायास-अनायास योगदान दुखदायी अछि।
राजकमल यात्रीकेँ अमर-सुमन सन पुरान ढर्राक कवि कहै छथि, प्रायः यात्रीक छन्दक प्रति सजगतासँ राजकमलकेँ ई भ्रम भेल छलन्हि।
रामविलास शर्मा आ यात्रीजीक मैथिली बोली अछि आकि भाषा, ऐ विषयक सम्वादक भाषा विज्ञानक दृष्टिएँ कोनो खास महत्व नै छै। रामविलास शर्मा बहुत पैघ साम्यवादी चिन्तक रहथि आ हुनकर कविता, आलेख सँ बेसी प्रभावी हुनकर कएकखण्डक भारतक इतिहास विवेचन अछि.। मैथिलीकेँ भाषाक रूपमे स्थापित करबामे सुभद्र झा, रामावतार यादव, योगेन्द्र यादव, सुनील कुमार झा आदि भाषाशास्त्री काज केने छथि, रामविलास शर्मा आ यात्रीजीक सम्वाद गपाष्टक मात्र अछि।

चतुरानन मिश्र आ जगदीश प्रसाद मंडल कम्यूनिस्ट आन्दोलनसँ जुड़ल छथि, प्रायोगिक रूपमे, पार्टी स्तरपर, मुदा हिनकर दुनू गोटेक उपन्यास देखला उत्तर हमरा ई कहबामे कनेको कष्ट नै होइत अछि जे जइ रूपमे यात्री आ धूमकेतु मार्क्सवादक बैशाखी लऽ उपन्यासकेँ ठाढ़ करै छथि तकर बेगरता एहि दुनू उपन्यासकारकेँ नै बुझना जाइत छन्हि। मार्क्सवादक असल अर्थ हिनके दुनूक रचनामे भेटत। कतौ पार्टीक नाम वा विचारधाराक चर्च नै मुदा जे असल डायलेक्टिकल मैटेरियलिज्म छैक तकर पहिचान, जिनगीक महत्वपर विश्वास, द्वन्दात्मक पद्धतिक प्रयोग आ ई तखने सम्भव होइत अछि जखन लेखक दास कैपिटल सहित मार्क्सवादक गहन अध्ययन करत आ प्रायोगिक मार्क्सवादपर कताक दशक चलत।
आ अन्तमे यात्रीजीक संस्कृत पद्य:-
वासन्ती कनकप्रभा प्रगुणिता
पीतारुर्णेः पल्लवैः
हेमाम्भोजविलासविभ्रमरता
दूरे द्विरेफाः स्ता
यैशसण्डलकेलिकानन कथा
विस्मरिता भूतले
छायाविभ्रमतारतम्यतरलाः
तेऽमी चिनारद्रुमाः॥
-बसंतक स्वर्णिम आभा द्विगुणित भऽ गेल अछि पीयर-लाल कोपड़सँ। स्वर्णकालक भ्रममे भौरा सभ एकरासँ दूर-दूर रहैत अछि। नन्दनवनक विहारकेँ जे पृथ्वीपर बिसरा दैत अछि, छाह झिलमिल घटैत-बढ़ैत जकर डोलब अछि चंचल आ तरल। ओइ चिनारकेँ हम देखने छी अडिग भेल ठाढ़।

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