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Saturday, April 7, 2012

प्रीति ठाकुरक मैथि‍ली चि‍त्रकथा पर शिव कुमार झा ’टिल्लू’


मैथि‍ली चि‍त्रकथा
आठ वर्ख पहि‍ने ‘मैथि‍ली’ भारतीय संवि‍धानक अष्‍टम अनुसूचीमे शामि‍ल कएल गेल। कति‍पय हर्षित भेलहुँ जे हमरो भाखाकेँ वैधानि‍क अस्‍ति‍त्‍व देल गेल। मोने-मोन ओहि‍ सभ गोटेक प्रति‍ कृतज्ञता आ मंगल कामना करैत छलहुँ जनि‍क प्रयाससँ ई काज भेल। मुदा! एकटा कचोट अर्न्‍तमनकेँ हि‍लकोरि‍ रहल छल जे आगॉं की हएत? अपन भाखाक भवि‍ष्‍य नीक नहि‍ देखि‍ रहल छलहुँ।
एहि‍ व्‍यथाक सभसँ पैघ कारण छल हमरा सबहक भाषा साहि‍त्‍यकमे कोनो क्रांति‍क आश नहि‍ नजरि‍ आवि‍ रहल छल। वर्तमान पीढ़ी मातृभाषासँ दूर भऽ रहल छलाह। अगि‍ला पीढ़ीक गप्‍प की कहू? कतेक नेनाकेँ ओलती, चि‍नुआर, थान, छान-पग्‍घाक अर्थ बूझल अछि‍? जौं कोनो अभि‍भावकसँ पूछैत छी जे नेनासँ अपन वयनामे गप्‍प कि‍ए नै करैत छी तँ जवाब भेटैत अछि‍ जे स्‍कूल जाएत तँ हि‍न्‍दी आ अंग्रेजी नहि‍ बूझत तेँ अखनेसँ सि‍खा रहल छी। नेनोमे चेतना नहि‍ कि‍एक तँ वाल-साहि‍त्‍य मैथि‍लीमे लि‍खले नहि‍ गेल। जौं कि‍छु अछि‍ तँ ओकर अर्थ कतेक नेना बूझैत छथि‍। महान लेखक वा कवि‍क श्रेष्‍ठ भाषामे लि‍खल रचना हम नहि‍ बूझैत छी तँ हमर धीया-पूता कोना बूझतथि‍? एहि‍ मध्‍य मैथि‍लीमे वि‍देह-सदेहक पदार्पण भेल। नव रूप, नवल सोच आ सकारात्‍मक दृष्‍टि‍कोणक संग। मौलि‍क वि‍न्‍दुपर रचना होअए लागल। उपेक्षि‍तकेँ नव आश भेटल। साहि‍त्‍य आन्‍दोलनक एकटा परि‍णामक चर्च हम पाठकसँ कऽ रहल छी- मैथि‍ली चि‍त्रकथा- श्रुति‍ प्रकाशन दि‍ल्‍ली द्वारा वि‍देहक सौजन्‍यसँ ई पोथी सन् २००८मे बहराएल। एहि‍ पोथीक लेखि‍का छथि‍ श्रीमती प्रीति‍ ठाकुर। हि‍नक ई दोसर रचना थि‍क। वि‍षय पूर्णत: नव, बाल साहि‍त्‍यक चि‍त्रकथा। हम एहि‍सँ पूर्व एहि‍ वि‍षयक पोथी मैथि‍लीमे नहि‍ देखने छलहुँ। एकरा रचना नहि‍ कहल जा सकैछ, कि‍एक तँ एहि‍मे कोनो साहि‍त्‍यक सृजन नहि‍, लोक कथा आ जन-श्रुति‍ जे मि‍थि‍लामे पहि‍नेसँ सुनल जा रहल छल ओकरा चि‍त्रक संग चर्च कएल गेल अछि‍। एहि‍ प्रकारक जन श्रुति‍ गाम-गाममे बूढ़-पुरानक मुँहसँ बाजल जाइत छल मुदा आव वि‍लीन भऽ रहल अछि‍। ओहि‍ वि‍लुप्‍त वि‍षयपर चि‍त्रकथा लि‍खि‍ प्रीति जी‍ बड्ड नीक काज कएलनि‍। एहि‍ पोथीमे जे वि‍शेष आ नव सकारात्‍मक पक्ष देखलहुँ ओ अछि‍- वि‍षयक आ कथाक चयन। सम्‍पूर्ण मि‍थि‍ला एहि‍मे समाएल छथि‍। सभ जाति‍ समाजक लोक-कथाक चि‍त्रण कएल गेल अछि‍। मोती दाइ कथामे रजक जाति‍क नि‍ष्‍ठाक चि‍त्रण तँ राजा सलहेसमे दूधवंशीक भावनाक व्‍याख्‍या। मि‍थि‍ला दरवारक वोधि‍-कायस्‍थक गंगा लाभ मनोरम लागल। बहुरा गोधि‍‍न आ नटुआ दलाल बेगूसरायक लोक कथा थि‍क। पहि‍ने लोकक मानसि‍कता छल जे बेगूसरायक लोक मैथि‍ली भाषी नहि‍ छथि‍। हमरो मर्म होइत छल कि‍एक तँ हमर मातृक बेगूसरैए जि‍लामे अछि‍। एहि‍ कथाकेँ पढ़ि‍ ति‍रहुति‍या आ दछि‍नाहाक भेद हि‍यासँ मेटा गेल।
हमरा सबहक समाजक एकटा उपेक्षि‍त जाति‍ छथि‍- मुसहर। मुसहरोमे दूटा आदर्श पुरूष भेल छलाह दीना आ भद्री। ओहि‍ दीना भद्रीक कथा बड्ड नीक लागल। पहि‍ने बूझैत छलहुँ जे तपस्‍वी वनवाक लेल वौद्धि‍कता आ भौति‍कता पैघ मापदंड थि‍क, मुदा आव ई भ्रम दूर भऽ गेल। एहि‍ प्रकारे बहुत रास कथाक चि‍त्रण कएल गेल अछि‍।
एकबेरि‍ आदरणीय जगदीश प्रसाद मंडल आ बेचन ठाकुर जीक रचना पढ़ि‍ हम लि‍खने छलहुँ जे ‘वि‍देह मैि‍थली साहि‍त्‍य आन्‍दोलन’ मैथि‍ली पर लागल जाति‍वादी कलंककेँ धो देलक। जौं ई गप्‍प सत्‍य अछि‍ तँ ओहि‍मे एहि‍ पोथीक भूमि‍काकेँ नहि‍ नजरि‍ अंदाज कऽ सकैत छी। वर्तमान पीढ़ीक लेल प्रेरणादायी आ अगि‍ला पीढ़ीकेँ मैथि‍लीक प्रति‍ सि‍नेह जगावए लेल ई पोथी प्रासंगि‍क अछि‍। भाषा संपादन नीक लागल। ि‍चत्रक स्‍तर बड़ सुन्‍नर आ व्‍यापक अछि‍। श्रुि‍त प्रकाशन सेहो धन्‍यवादक पात्र छथि‍। नीक कागतक प्रयोग कएलन्‍हि‍ आ चि‍त्रक रंग संयोजन सेहो सेहंति‍त लागल।
अंतमे हम प्रीति‍ जीकेँ धन्‍यवाद दैत छि‍अनि‍ जे हमरा सबहक बीच एकटा झॉंपल वि‍षएपर लेखनीक प्रयोग कएलनि‍। आगाँ सेहो हम आशा करैत धन्‍यवाद ज्ञापन करैत छी।
पोथि‍क नाम- मैथि‍ली चि‍त्रकथा
प्रकाशन वर्ष- २००९

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