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Sunday, April 8, 2012

मि‍थि‍लाक लोक संस्‍कृति‍क संवाहक उपन्‍यास ‘जि‍नगीक जीत’ :: प्रो. वीणा ठाकुर


प्रो. वीणा ठाकुर-१९५४
अध्‍यक्ष, मैथि‍ली वि‍भाग
ल.ना.मि‍.ि‍वश्व वि‍द्यालय दरभंगा।

जगदीश प्रसाद मण्‍डल केर जि‍नगीक जीत उपन्‍यास

श्री जगदीश प्रसाद मंडलक उपन्‍यास जि‍नगीक जीत पढ़बाक अवसर भेटल। उपन्‍यास पढ़ि‍ बुझाएल जे ई उपन्‍यास तँ वास्‍तवमे मि‍थि‍लाक संस्‍कृति‍क जीत थि‍क, जीवनक जीत थि‍क, संस्‍कारक जीत थि‍क। जौं एक शब्‍दमे कहल जाए तँ यएह कहल जा सकैत अछि‍ जे ई लोक’क जीत थि‍क। जखनहि‍ लोकक जीत थि‍क तँ स्‍वभावि‍क अछि‍ जे ऐ‍‍ उपन्‍यासक मध्‍य लोक साहि‍त्‍यक सुगन्‍ध चतुर्दिक पसरल हएत।
उपन्‍यासक कथा मि‍थि‍लाक एकटा गाम कल्‍याणपुरक थि‍क, जतए जीवि‍काक मुख्‍य साधन थि‍क कृषि‍, जतए आधुनि‍क वैज्ञानि‍क युगक प्रकाश नै‍‍ पहुँचल अछि‍। जतए उच्‍चतम शि‍क्षाक लक्ष्‍य थि‍क बी.ए. पास करब आओर जतए एकैसम शताब्‍दी एखन धरि‍ नै‍‍ आएल अछि‍ आओर नै‍‍ आएल अछि‍ शाइनि‍ंग इंडि‍याक प्रकाश। उपन्‍यासकारक प्रमुख पात्र छथि‍ नायक बचेलाल, नायि‍का रूमा, मुख्‍य पात्र छथि‍ बचेलालक माए सुमि‍त्रा, अछेलाल, अछेलालक पत्नी मखनी इत्‍यादि‍।

कथा अछि‍ बचेलालक द्वन्‍द्व एवं द्वन्‍द्वसँ उपजल अवसादक एवं जीवन संघर्षक, सुमि‍त्राक मि‍थि‍लाक नारीक गरि‍माक अछेलालक कर्त्तव्‍यनि‍ष्‍ठताक, संगहि‍ मानवीय संघर्षक, द्वन्‍द्वक आओर भवि‍ष्‍यक आशा-आकांक्षाक। नायकक मानसि‍क द्वन्‍द्व जौं जीवनक सार्थकता लेल अछि‍ तँ नायकक माए सुमि‍ताक दृष्‍टि‍ स्‍पष्‍ट मानवीय गरि‍मासँ युक्‍त अछि‍। नायकसँ एक डेग आगाँ बढ़ि‍ द्वन्‍द्वसँ मुक्‍ति‍क वाट देखबैत प्रकाश पुंज मध्‍य अछि‍। नायकक पत्नी रूमाक चरि‍त्रपर प्रकाश नै‍‍ देल गेल अछि‍, तइ‍ कारणे रूमा उपन्‍यास मध्‍य गौण पात्र भऽ गेल छथि‍।
कोनो समाजक जातीय मनीषा, सामुदायि‍क चेतना, जातीय बोध मानवीय मूल्‍य आओर जीवन दर्शनक वि‍वि‍ध पक्षमे अवगत होएबाक लेल ओकर लोककेँ बुझब आवश्‍यक। उपन्‍यासकार ऐ‍‍ उपन्‍यास मध्‍य अत्‍यन्‍त इमानदारी पूर्वक अपन समाज, मि‍थि‍लाक समाज, रहन-सहन, आशा-आकांक्षा एवं समैक सत्‍य लि‍खने छथि‍। समाजक नि‍म्न वगर्क, कृषक वर्गक जीवनक चि‍त्रण अत्‍यन्‍त इमानदारी पूर्वक कएने छथि‍। उपन्‍यासकार मि‍थि‍लाक वास्‍तवि‍क चि‍त्रण करबामे सफल भेल छथि‍, मि‍थि‍लाक तात्‍कालीन दशाक चि‍त्रण कएने छथि‍ तँ मात्र और मात्र अपन भाषा, देश एवं सामाि‍जक दायि‍त्‍व समाजक प्रति‍ प्रेम एवं प्रति‍बद्धताक कारणे हि‍नकासँ ई उपन्‍यास लि‍खबा लेने अछि‍। यद्यपि‍ कथाक प्रवाह अवरूद्ध अछि‍ तथापि‍ कथा अपन अंकमे देश-समाज, मानव, प्रकृति‍, संस्‍कृति‍, वि‍कृति‍ आदि‍केँ समेटि‍ अपन लक्ष्‍यपर पहुँचबामे सफल भऽ गेल छथि‍। हि‍नक उपन्‍यासमे हि‍नक व्‍यक्‍ति‍त्‍व पाठकक समक्ष स्‍पष्‍ट प्रतीत भेल अछि‍।

जीवन दर्शन आओर आध्‍यात्‍मसँ लऽ कऽ मनुष्‍यक समस्‍त राग-वि‍राग लोकमे वि‍द्यमान अछि‍। मि‍थि‍लाक लोक संस्‍कृति‍ संवाहक उपन्‍यास जि‍नगीक जीतमे उपन्‍यासकार जीवनक आेइ‍ सत्‍यकेँ आत्‍मसात् करबाक प्रयास कएने छथि‍ जइ‍‍मे जीवनक समस्‍त सार नुकाएल अछि‍। उपन्‍यासक मध्‍यमे उपन्‍यासकार मनुष्‍य जीवनक समस्‍त राग-वि‍राग, आशा-आकांक्षा, दीनता-हीनता, उत्‍कर्ष-अपकर्षक चि‍त्रि‍त करैत वस्‍तुत: जीवनक शाश्वत तथ्‍य- जीवाक इच्‍छाकेँ उजागर करबामे सफल भेल छथि‍। वस्‍तुत: ई उपन्‍यास भाषा अथवा वोलीमे जातीय स्‍मृति‍क आ साहि‍त्‍यि‍क रूप थि‍क जे हमर जातीय चेतना अथवा जातीय वोधकेँ सुरक्षि‍त राखने अछि‍। मि‍थि‍लाक सूच्‍चा चि‍त्र अंकि‍त करैत उपन्‍यासकार अपन जीवनानुभवसँ संचि‍त कएल सार आओर सत्‍यकेँ अभि‍व्‍यक्‍त कएने छथि‍। वस्‍तुत: ई उपन्‍यास मि‍थि‍लाक संस्‍कृति‍क प्रतीक थि‍क आओर एकर सार थि‍क शाश्वत। उपन्‍यास मध्‍य प्रकृति‍, परि‍वेश, आध्‍यात्‍म, समरसता आओर समन्‍वयक छवि‍ आओर छटा सर्वत्र दृष्‍टि‍गोचर होइत अछि‍।

वर्तमान साहि‍त्‍यमे ई प्रवृति‍ प्रमुख अछि‍- एक समाजोन्‍मुख दोसर व्‍यक्‍तिनि‍ष्‍ठा तथा आत्‍मकेन्‍द्रि‍त। उपन्‍यासकारक प्रवृति‍ समाजोन्‍मुख अछि‍। सम्‍पूर्ण उपन्‍यास मध्‍य मि‍थि‍लाक गामक लोकक रहन-सहन, अचार-वि‍चारक चि‍त्रण एतेक सजीव अछि‍ जे पाठककेँ आेइ‍ लोकमे लऽ जाइत अछि‍, जि‍नका गाम छूटि‍ गेल छन्‍हि‍। उपन्‍यास मध्‍य  मि‍थि‍लाक समाजक चि‍त्र एतेक वास्‍तवि‍क रूपमे चि‍त्रि‍त्र भेल अछि‍ जे मि‍थि‍लाक माि‍ट-पानि‍क सुगन्‍धसँ पाठकक हृदए सहजहि‍ आह्लादि‍त भऽ जाइत अछि‍। वर्तमान समैमे गामक लोकक पड़ाइन शहर दि‍स‍‍ भऽ गेल अछि‍, गाम पाछाँ छूटल जा रहल अछि‍। मुदा पाठक उपन्‍यास पढ़ि‍ पुन: गाम घुि‍र जाइत अछि‍, गामक स्‍मृति‍सँ पाठक बान्‍हल रहि‍ जाइत अछि‍।

सामाजि‍क प्रश्नक प्रती सजग उपन्‍यासकार अपन ऐ‍‍ रचनामे सामाजि‍क जीवनक अर्न्‍तवि‍रोध, वि‍संगति‍ एवं परि‍वेशक चि‍त्रण करैत, सामाजि‍क प्रश्नक नि‍दान मूलत: व्‍यक्‍ति‍मे ताकबामे सफल भऽ गेल छथि‍। मि‍थि‍लाक ग्रामीण समाजक, नि‍म्न वर्गक एवं कृषक समुदायक मान्‍यता एवं परम्‍पराकेँ प्रस्‍तुत करैत उपन्‍यासकार उपन्‍यासकेँ अत्‍यन्‍त संवेदय बना देने छथि‍ संगहि‍ एकटा नव संदेश- आशाक संदेश, भवि‍ष्‍य नि‍र्माणक संदेश देबाक सेहो प्रयास कएने छथि‍। ऐ‍‍ संदेशकेँ उपन्‍यासकार लोकक भाषामे व्‍यक्‍त करैत संकीर्ण एवं अव्‍यवहारि‍क पक्षकेँ मानवीय सरोकारसँ जोड़ैत कल्‍पनाशीलता एवं संवेदन शीलताकेँ केन्‍द्रमे राखि‍ अपन उदेश्‍यकेँ चि‍त्रि‍त करबामे सफल भऽ गेल छथि‍। बहुजन हि‍ताय बहुजन सुखायक ध्‍वनि‍ बुलंद करैत उपन्‍यासकार दया, ममता, आस्‍था, त्‍याग, परोपकार सदृश मानवीय गुणक पक्षधर प्रतीत होइत छथि‍। दोसर दि‍स‍‍ ऐ‍‍ गुणकेँ प्राप्‍ति‍क दि‍स नि‍र्देश सेहो कएने छथि‍। आधुनि‍क बुद्धि‍जीवी मानवक कार्य, ज्ञान आओर इच्‍छाक बीच तालमेलक अभाव आधुनि‍क जीवनक वि‍डम्‍बना थि‍क। मुदा उपन्‍यासकार मि‍थि‍लाक सरल, नि‍श्‍छल एवं सहज लोकक चि‍त्रण करैत वस्‍तुत: मि‍थि‍ला शुद्ध, पवि‍त्र एवं सत्‍यस्‍वायनक चि‍त्रण कएने छथि‍।

उपन्‍यासक सभसँ पैघ वि‍शेषता थि‍क समाजक नि‍म्नवर्गक बोलचालक भाषा, लोक संवाद एवं लोकोक्‍ति‍क प्रयोगक संग समाजक वि‍षमता एवं वि‍संगति‍पर प्रहार करब। अपन जीवनानुभवकेँ अलग शैली एवं शि‍ल्‍पक माध्‍यमसँ नि‍रूपि‍त करबामे उपन्‍यासकार सफल छथि‍। संगहि‍ इहो सत्‍य जे उपन्‍यासकारक अर्न्‍तमन अत्‍यन्‍त कोमन तन्‍तुसँ नि‍र्मित छन्‍हि‍ तँए हि‍नक उपन्‍यास मध्‍य रि‍सेप्‍टीवि‍टीक स्‍तर बहुत गाढ़ भऽ गेल छन्‍हि‍। उपन्‍यासकार प्रमाणि‍त कऽ देने छथि‍ जे सहज लोक भाषाक माध्‍यमसँ ने‍ मात्र अपन अन्‍तर्परि‍ष्‍करण सम्‍भव अछि‍ अपि‍तु प्रकारान्‍तरसँ मानवीय दायि‍त्‍वक नि‍र्वहन सेहो।

संवंधक अभावमे मनुष्‍य सुखा जाइत अछि‍। मनुष्‍य अपनामे बंद होएबा लेल नै‍‍ बनल अछि‍। मनुष्‍यमे जतेक जे अछि‍, सभ ओकरा अन्‍यसँ माने दोसरसँ जोड़ैत अछि‍ आ प्रसन्नताकेँ बाँटैत अछि‍। सम्‍भत: यएह उपन्‍यासकारक इष्‍ट छन्‍हि‍। हम हि‍नक मंगलमय भवि‍ष्‍यक कामना करैत अंतमे मैथि‍ली साहि‍त्‍यक भंडारकेँ समृद्ध करबा हेतु साधुवाद दैत छि‍यनि‍।
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पोथीक नाओं- जि‍नगीक जीत (उपन्‍यास)
उपन्‍यासकार- जगदीश प्रसाद मंडल
प्रकाशक- श्रुति‍ प्रकाशन, राजेन्‍द्र नगर दि‍ल्‍ली।
मूल्‍य- २५० टाका मात्र।
प्रकाशन वर्ष- सन् २००९
पोथी पाप्‍ति‍क स्‍थान- पल्‍लवी डि‍स्‍ट्रीब्‍यूटर्स,
वार्ड न.६, नि‍र्मली, सुपौल, मोवाइल न. ९५७२४५०४०५

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