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Saturday, April 7, 2012

जाइ सँ पहि‍ने- वनदेवी आ नारी अस्‍मि‍ताक गाथा- योगानन्‍द झा


डाॅ. योगानन्‍द झा
वनदेवी आ नारी अस्‍मि‍ताक गाथा
कथा, उपन्‍यास, नाटक आदि‍ वि‍भि‍न्न वि‍धामे गरि‍मामय लेखनक हेतु प्रख्‍यात, आधुनि‍क मैथि‍ली महि‍ला लेखनमे अग्रि‍म पाङक्‍तेय आ डा. श्रीमती उषा कि‍रण खानक जाइ सँ पहि‍ने एक गोट गद्यात्‍मक खण्‍डकाव्‍य थि‍क। ऐमे सीताक व्‍याथा-कथाकेँ उपजीव्‍य बनाए नारी-अस्‍मताक अन्‍वेषण कएल गेल अछि‍। स्‍वभावत: पौराणि‍क पात्रक आश्रए लऽ अत्‍याधुनि‍क युगीन वृत्ति‍क प्रतीक्षा साकांक्ष दृष्‍टि‍ ऐ काव्‍यक महत्‍वपूर्ण उपलब्‍धि‍ थि‍क।
मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम आ सती शि‍रोमणि‍ सीताक कथा भारतीय जीवनादर्शनक प्रतीक बनल रहल अदि‍। सीता अदौसँ मि‍थि‍लाक पहचान बनलि‍ रहलि‍ छथि‍। मुदा भूमि‍जा सीताक उत्तरचरि‍तमे ग्रथि‍त सीता-वनवासक कथा मैथि‍ल मानसकेँ सदति‍ उद्वेलि‍त कएने रहलैक अछि‍। एतऽ धरि‍ जे सीताक वि‍वाहक दि‍न वि‍वाह पंचमीकेँ एखनो धरि‍ लोक सरि‍ भऽ कऽ अपन बेटीक वि‍वाहक दि‍वसक रूपमे स्‍वीकार करबामे धखाइत रहल अछि‍। सीताक जन्‍म वि‍रोगहि‍ गेल लोककंठमे हुनका प्रतीक्षा सहानुभूति‍क रूपमे वि‍द्यमान अछि‍। ऐ ठामक सन्‍त परम्‍परामे एकटा समुदाय तँ एतबो धरि‍ मानबाक लेल तत्‍पर नै जे सीता द्वि‍रागमनक बाद अपन सासुर अयोध्‍यो गेलीह आ तत:पर कखनो राम वनवासक कारणे तँ कखनो अपन वनवासक कारणे दु:ख भरल जीवन बि‍तबैत रहलीह। हि‍नकालोकनि‍क तँ ई मान्‍यता छन्‍हि‍। जे वि‍वाहोपरान्‍त दुल्‍लह श्रीराम सभ दि‍नक हेतु मि‍थि‍लेक बनल रहि‍ गेलाह आ मि‍थि‍लाक सखी-लोकनि‍ हुनक दुलार-मलार करैत हुनका सासुरेमे छेकने रहि‍ गेलखि‍न। सीताक दु:खक जीवन-प्रसंगकेँ ओलोकनि‍ ऐ माध्‍यमे बि‍सरबाक आयोजन कएलनि‍।
मैथि‍ली दधीचि‍ पं. सुरेन्‍द्र झा सुमन अपन सीतावन्‍दनामे अत्‍यन्‍त कटु शब्‍दें सीता वनवासक प्रति‍ अपन आक्रोश प्रकट कएलनि‍-
कि‍ए बनलि‍ वनवासि‍नी
पति‍-पद-रेणु सुता हमर।
ज्‍वालामुखी न थीक ई
ज्‍वलि‍त प्रश्‍न धरणी उरक।।
वस्‍तुत: पत्नीक रूपमे सीता पति‍-पद- अनुगमनक भारतीय आदर्श प्रस्‍तुत कएलनि‍ तथापि‍ राजधर्म हुनका वनवासक दण्‍ड दऽ प्रताड़ि‍त कएने छल, जकरा हुनक माता पृथ्‍वी आइयो धरि‍ पचा नै सकलीह अछि‍ आ हुनक आक्राेश आइयो ज्‍वालामुखीक रूपमे प्रकट अछि‍। ई केवल कवि‍कल्‍पने नै, मैथि‍ल मानसक आक्रोशो थि‍क।
सीता मि‍थि‍लाक बेटी छलीह। परवर्ती कालमे ओ अयोध्‍याक पुतहु बनलीह आ अपन कर्त्तव्‍य भावना ओ पति‍व्रत्‍य द्वारा एहेन आदर्श उपस्‍थि‍त कएलनि‍ जे भातीय लोकजीवनक आदर्शक रूपमे आइयो प्रथि‍त अछि‍। ओ नैहर आ सासुर दुनू कुलक मान रक्षाक हेतुक यज्ञमे ि‍नरन्‍तर आहुति‍ प्रदान करैत रहलीह। मुदा समाज हुनक चरि‍त्रपर आशंका करैत रहलनि‍। ऐ आशंकाक नि‍वारणर्थ हुनका सर्वसामान्‍यक बीच अग्नि‍ परीक्षा देबए पड़लनि‍। अग्‍नि‍ परीक्षाक बाद जखन ओ अयोध्‍या आपस आएलनि‍, तकर बादो पुनश्‍च हुनक चरि‍त्रपर आक्षेप कएल गेलनि‍ आ मर्यादापुरूषोत्तम राम राजधर्मक अनुदेशे हुनका वनवासक दण्‍ड प्रदान कऽ देलखि‍न सेहो एहन स्‍थि‍ति‍मे जखन ओ दुजीवा छलीह। अग्‍नि‍ परीक्षाक साक्षी राम, अक्षय अनुरागसँ संबलि‍त पति‍ राम हुनका प्रतीक्षा कएल गेल आक्षेपक कोनो प्रति‍रोध नै कऽ सकलखि‍न। नारीक प्रति‍ ई उपेक्षाभाव संभवत: सीताकेँ सहन नै भऽ सकलनि‍ जकर परि‍णाम पाताल-प्रवेशक रूपमे आएल जे आइयो पुरूष समाजक नारीक प्रति‍ हीन मनोभावनाक द्योतक थि‍क आ द्योतक थि‍क नारीक नारीक आक्रोश, वि‍रोध आ वि‍द्रोहक, जकरा श्रीमती खान अपन ऐ गद्य खण्‍डकाव्‍यमे रूपायि‍त कएलनि‍ अछि‍।
श्रीराम अयोध्‍याधि‍पति‍ छलाह। प्रजावत्‍सलता हुनक राजधर्म छलनि‍। ऐ राजधर्मक वशीभूत भऽ ओ धोबि‍ द्वारा लांछि‍त सीताकेँ, पूर्वहि‍ अग्‍नि‍ परीक्षि‍ता सीताकेँ वनवास देबाक दण्‍ड सुनौलनि‍। रामक ई मानसि‍कता मर्यादापुरूषोत्तमत्‍वक प्रति‍ हुनक भावनाक अति‍रेकक प्रदर्शन छल। ओ प्रजासँ वाहवाही पएबाक फेरमे एकटा सती सावि‍त्रीक आहि‍पर ध्‍यान नै दऽ सकल छलाह। हीरानन्‍द झा शास्‍त्री ऐ वाहवाहीक फेरमे पड़ल भीष्‍मक मानसि‍कताकेँ उजागर करैत अपन सोचो तो भीष्‍म दीर्धकवि‍तामे कहने छथि‍-
सुनते भी कैसे भीष्‍म
तुम तो थे
वाहवाही लूटने की धुन में
बड़ा तेज होता है, यह
वाहवाही लूटने का नशा
इस नशे में तो मनुष्‍य
सब कुछ भूल जाता है
बहरे हो जाते हैं, उसके कान
ि‍सर्फ एक ही शब्‍द सुनाई देता है
उसके कानों को
और शायद उसी शब्‍द को
वह सुनना भी चाहता है बार-बार
जानते हो, क्‍या है वह शब्‍द
वह शब्‍द है वाह वाह
अहंभाव का ही शायद
वि‍कृत रूप है, यह
जब मनुष्‍य अपने हर कार्य पर
लोगों के मुँह से ि‍सर्फ
वाह-वाह ही सुनना चाहता है।
भूमि‍जा, रामक ऐ अहंभावक परि‍तुष्‍टि‍क यज्ञाग्‍नि‍मे झोंकि‍ देल गेल छलीह। मुदा हुनको दि‍न फि‍रलनि‍। लव-कुश सन सन्‍तानक माता भेलाक बाद सीताक आत्‍मगौरव उद्दीप्र भेलनि‍। श्रीमती खान सीताक ओइ स्‍वरूपक चि‍त्रण करैत कहैत छथि‍-
मंजरायि‍ता गाछ
गदरायल माछ
बाधवाली गाय
आ सन्‍तानवती माय
के छथि‍?
सभ सि‍या सुकुमारि‍ये तँ छथि‍।

आ सन्‍तानवती वनदेवीक पुत्र द्वय राजा रामक अश्‍वेमेध यज्ञक घोड़ाकेँ रोकि‍ लैत छन्‍हि‍, हुनक सैन्‍य समूहकेँ पराजि‍त कऽ दैत छन्‍हि‍। सीता हस्‍क्षेप कऽ कऽ यज्ञक ओइ घोड़ाकेँ ि‍वमुक्‍त करबैत छथि‍। महर्षि वाल्‍मीकि‍ द्वारा सीताक पाति‍व्रत्‍य अभ्‍यर्थनापर राम अपन कृत्‍यपर लज्‍जि‍त होइत छथि‍ आ सीताकेँ वाल्‍मीकि‍ आश्रमसँ अयोध्‍या लऽ चलबाक हेतु तैयार भऽ जाइत छथि‍। रामक उक्‍ति‍ श्रीमती खानक शब्‍दमे द्रष्‍टव्‍य अछि‍-
बदलि‍ देब सभटा
जे हेबाक छैक से होएत
जे नि‍यत छैक से नहि‍
वि‍धि‍क वि‍धान हम
तहस नहस कए देब।

मुदा सीता अयोध्‍या आपस होएब स्‍वीकार नै करैत छथि‍ आ भूमि‍ पुत्रीमे भूमि‍मे बि‍ला जाइत छथि‍। हुनक भूमि‍मे जयबा सँ पहि‍ने'क उद्घोष ऐ खण्‍डकाव्‍यक परि‍णति‍ थि‍क आ नारी अस्‍मि‍मताक उत्‍कर्षक द्योतक सेहो-
हम नहि‍ छी पाषाणी अहल्‍या
वातभक्षा नि‍राहारा
जनकर कयल प्रभू उद्धार
मि‍लाओल स्‍वामी गौतक सँ
हम छी सशक्‍त, स्‍वयंपूर्ण सीता
श्रीमती खान ऐ खण्‍डकाव्‍यमे सीता धरि‍तक अनुगायनक माध्‍यमे सासुरवास बेटीक मनोभावकेँ अत्‍यन्‍त मनोरम ढंगे प्रस्‍तुत करैत भाव व्‍यक्‍त कएने छथि‍-
वि‍आह होइत देरी नारीक स्‍तरीयतामे आकस्‍मि‍क परि‍वर्त्तन भऽ जाइत छैक। ओकर अस्‍मि‍ताकेँ जेना बाकसमे बन्न कऽ देल जाइत छैक, ओकर स्‍वातंत्र्यकेँ बेढ़ि‍ देल जाइत छैक।
हुनकहि‍ शब्‍दमे-
बि‍सरलहुँ छल्‍हि‍गर दही, हरि‍यर चूड़ा
सपना भेल भुन्नाक पेटी, रहूक मूड़ा
छूटल एकछि‍न्ना नूआ
नौगज्‍जीमे हेरायल तनुक धूआ
घरे-घर, गलि‍ये गली, जतय मोन करय ततय चली
एतय कनक मन्‍दि‍रक चतुष्‍कोण देहरि‍ के कहय
साधंस कतय कि‍ कक्ष कौखन पार करी

नारीकेँ पुरूषक समकक्ष कि‍ंवा पुरूषहुसँ अधि‍क सबला स्‍वरूपमे प्रस्‍तुत करबाक भावाभि‍व्‍यक्‍ति‍क कोनो अवसर श्रीमती खान ऐ खण्‍डकाव्‍यमे छोड़लनि‍ नै अछि‍ जे नारी अस्‍मि‍ताक अन्‍वेषणक प्रति‍ हि‍नक साकांछ दृष्‍टि‍क द्योतक अछि‍।
ऐमे एक गोट प्रसंग अछि‍ धनुष यज्ञक। धनुष वास्‍तवमे अनेकानेक बलशाली राजालोकनि‍क द्वारा टकसाओलो नै भेल छलनि‍ तकरा राजा राम सहजहि‍ं तोड़ि‍ देलनि‍। मुदा तैसँ हुनक अपौरूषेय बलवि‍क्रम बूझि‍ पुरूष समाजकेँ गर्व करबाक कोनो कारण नै छल, कारण सीता अत्‍यन्‍त सहज रूपसँ ओकरा उठा कऽ प्रति‍दि‍न ठाँव कऽ लेल करैत छलीह। श्रीमती खान कहने छथि‍-
केहन केहन मोँछबला अयलाह अएलाह
धोंछ भेल मुँह गेलाह
एकहु रत्ती कहाँ टसकलनि‍
धनुषा.....
कमल नाल सन कोमल कान्‍त कि‍शोर
सहजहि‍ उठाओल
जनु फूल सि‍ंगरहारक हो
हल्‍लुक
गे दाइ! ताहू सँ कोमल हमर सि‍या सुकुमारि‍
उठबथि‍ नि‍त दि‍न ठाँव करैक काल
जेना सि‍मरक फाहा होइक

एही प्रकारक दोसर प्रसंग अछि‍ सहस्रबाहु वधक जैमे अद्भुत रामायणक अनुरूप ई कथा आएल अछि‍ जे सहस्रबाहु राजा रामकेँ अपन बलसँ परास्‍त करबामे सक्षम छल, युद्धभूमि‍मे राजा राम अचेत भऽ गेल छलाह। तखन सीता कालीक रूप धऽ सहस्रबाहुकेँ पराजि‍त करबामे अपन सामर्थ्‍य देखैने छलीह। श्रीमती खान द्वारा अहू कथाक समावेशसँ हुनक काव्‍यमे अभि‍व्‍यक्‍त नारी-भावनाक परि‍चए भेटैत अि‍छ।
श्रीमती खानक ऐ खण्‍डकाव्‍यमे वाल्‍मीकीय रामायणमे उद्धतृ ओहू अंशक सवि‍शेष उल्‍लेख अछि‍ जैमे राम द्वारा लंका वि‍जयक उपरान्‍त सीताकेँ परि‍त्‍याग कऽ देबाक कथा अनुस्‍यूत अछि‍ आ जकर मार्जन अग्‍नि‍ परीक्षासँ होइत अछि‍। ऐ सन्‍दर्भमे वाल्‍मीकि‍क कि‍छु श्‍लोकक भावराशि‍केँ श्रीमती खान यथावत् पि‍रगृहीत कऽ लेलनि‍ अछि‍ जे हुनक बहुश्रुति‍क प्रतीक थि‍क यथा-
ि‍वदि‍तश्चस्‍तु भद्रं ते योऽ यं रण परि‍श्चम:।
सुतीर्ण: सुहृदां वीर्यान्न त्‍वदर्थ मया कृत:।।
रक्षता तु मया वृत्तपवादं च सर्वत:।
प्रख्‍यातस्‍यात्‍म वंशस्‍ न्‍याङ्गं च परि‍मार्जिता:।।
लक्ष्‍मणे वाथ भरते कुरू बुद्धि‍ यथासुखम्।।
शत्रुध्‍ने वाथ सुग्रीवे राक्षसे वा वि‍भीषणे।
नि‍वेशय मन: सीते यथा वा सुखमात्‍मना।।6/115/।

श्रीमती खानक शब्‍दमे ऐ भावकेँ ऐ रूपेँ उपस्‍थापि‍त कएल गेल अि‍छ-
सीत हम अहाँक लेल नहि‍ कयलहुँ
युद्ध
रावण केँ करक परास्‍त
देवसत्ता केँ स्‍थापि‍त करक
पत्नी जनि‍कर हरण भेल
ताहि‍ राजाक कलंक मेटब
छल अभि‍ष्‍ट
से भेल सि‍द्ध
तेँ कयल युद्ध
हे सीते, आइ अहाँकेँ कएलहुँ मुक्‍त पत्नी धर्मसँ
रहू लंका मे
कि‍ंवा जाउ भारतवर्ष
भरत कि‍ंवा शत्रुध्‍न आि‍क लक्ष्‍मण
जकरा संग रहबाक हो रहू-

रामक ई प्रसंग अत्‍यन्‍त कारूणि‍क अछि‍। अहूठाम ि‍नर्दोष सीतापर रामक वचन वाणक प्रहार भेल अछि‍ जकरा नारी अस्‍मि‍तापर प्रहार कहल जा सकैछ। महात्‍मा तुलसीदासकेँ श्रीरामक ई कटूक्‍ति‍पूर्ण वचनसँ ततेक अप्रि‍य बुझना गेलनि‍ जे ओ अपन रामकथामे वस्‍तुक आग्रहेँ ऐ घटनाक अल्‍पतम शब्‍दावलीमे उल्‍लेख कऽ कऽ आगू बढ़ि‍ गेलाह-
सीता प्रथम अनल मुह राखी।
प्रकट कीन्‍ह चह अंतर साखी।।
तेहि‍ कारण करूणानि‍धि‍ कहे कछुक दुर्बाद।
युपत जातु धानी सब लागी करै वि‍षाद।।

मुदा ऐ प्रसंगमे वाल्‍मीकि‍क सीतामे जै अपार ऊर्जाक दर्शन होइत अछि‍, तकर श्रीमती खानक खण्‍डकाव्‍यमे अभाव देख पड़ैत अछि‍, जकरा आश्‍चर्यजनक कहल जा सकैछ। वाल्‍मीकि‍कि‍ सीता अग्‍नि‍ परीक्षासँ पूर्व प्रगल्‍यतार्वक अपनापर कएल गेल शंकाक प्रति‍वाद करैत छथि‍ जे नारी अस्‍मि‍ताक
प्रति‍ हुनक दृढ़ भावनाक प्रति‍क थि‍क यथा-
कि‍ं माम सदृशं वाक्‍यमीदृशं शोकदारूणम्।
रूक्षं प्रावयसे वीर प्रकृत: प्राकृतामि‍व।।
पृथक्‍स्‍त्रीणां प्रचारेण जाति‍त्‍वं परि‍शङ्कसे।
परि‍त्‍यजैनां शंङ्कं तु यदि‍ तेऽहं परीक्षि‍ता।।
यदहं गात्रसंस्‍पर्शं गतास्‍मि‍ वि‍वशा प्रभो।
कामकारो न मे तत्र दैवं दत्राापराध्‍यति‍।।
सह संवृद्धभावेन संसर्गेण च मानद।
यदि‍ तेऽहं न वि‍ज्ञाता हता तेनास्‍मि‍ शाश्‍वतम्।।
त्‍वया तु नृपशार्द्ल शेषमेवानुवर्तता।
लघुनेव मनुष्‍येण स्‍त्रीत्‍वमे पुरस्‍कृतम्।।
न प्रमाणीकृत: पणि‍र्बाल्‍ये मम नि‍पीडि‍त:।
मम भक्‍ति‍श्‍च शीलंच सर्वं ते पृष्‍टत: कृतम्।। इत्‍याति‍।

तथापि‍ श्रीमती खानक ऐ खण्‍डकाव्‍यक ई वि‍शि‍ष्‍टता थि‍क जे ऐमे मि‍थि‍लामे रामजानकी वि‍षयक रूढ़ि‍ सभकेँ सेहो महत्‍वपूर्ण स्‍थान देल गेल अछि‍। मि‍थि‍लामे प्रत्‍येक कन्‍याकेँ सीताक प्रतीक मानल जाइत छन्‍हि‍ आ मि‍थि‍लाक लोकगीतमे सीता प्रत्‍येक जनकक पुत्रीक रूपमे गृहीत छथि‍। मैथि‍ली लोकगीतमे सीताक वैवाहि‍क प्रसंगक बहुलय अछि‍ आ लोक सीताक व्‍यथा-कथाकेँ जेना बि‍सरि‍ गेल छथि‍। ऐ तथ्‍यकेँ श्रीमती खान ऐ शब्‍दें अभि‍व्‍यक्‍त कएने छथि‍-
सीकी खोंटैत
लि‍खि‍या करैत
सुआसि‍म लोकनि‍ गओतीह गीत
ढौरतीह कोबर
बि‍सरि‍ जयतीह सायास
सि‍या धि‍याक अनसोहाँत पीर।

श्रीमती खान नारी ओ पुरूषक समकक्षता ओ सहभवहि‍ केँ प्रेय रूपमे ऐ साहि‍त्‍यि‍क कृति‍मे प्रस्‍तुत कएलनि‍ अछि‍ जे ऐति‍हासि‍क-पौराणि‍क कथावस्‍तुकेँ अधुनातन युगजीवनक परि‍प्रेक्ष्‍यमे देखबाक अन्‍वेषक दृष्‍टि‍क काणे हि‍नका साहि‍त्‍यकार वरेण्‍य श्रेणीमे पाङ्केय सावि‍त करै छन्‍हि‍। द्रष्‍टव्‍य अछि‍ रामक प्रतीक्षा सीताक ई उक्‍ति‍-
हमरा लेल अहाँ प्राणहरि‍ छी राम
ने छी साध्‍य, ने साधन
अहाँ साक्षत वि‍जय थि‍कहुँ
हम मुदा
पराजय नहि‍ थि‍कहुँ
नहि‍ होइत छैक
प्रत्‍येक प्रति‍स्‍पर्द्धामे
जय आ पराजय

सहजता, सरलता ओ प्रसाद गुण सम्‍पन्नतासँ मण्‍डि‍त तत्‍सम् ओ तद्भवबहुल श्रीमती खानक ऐ खण्‍डकाव्‍यमे उपमा, उत्‍प्रेक्षादि‍ अलंकार सहजहि‍ं आकृष्‍ट करैत अछि‍ आ भवभूति‍क एको रस: करूण एवं प्रति‍ध्वनि‍त होइत देख पड़ैछ। ऐ पठनीय, मननीय ओ संग्रहणीय कृति‍क हेतु श्रीमती खान साधुवादक पात्र छथि‍। मैथि‍ली जगतक तँ सहजहि‍ं, रामकथाक प्रत्‍येक अध्‍येताकेँ हि‍नक ई खण्‍डकाव्‍य आकर्षित करतनि‍, से अपेक्षा कएल जएबाक चाही। कि‍छु परि‍मार्जनक संग ई कृति‍ कालजयीक श्रेणीमे गण्‍य होएबाक योग्‍यता रखैछ। मैथि‍ली रामकथाक आयामकेँ संवद्धि‍त करैबला ऐ कृति‍केँ वि‍भि‍न्न दृष्‍टि‍ये समीक्षा-समालोचनाक वि‍मर्श परक आयाम भेटक चाही।

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