प्रीति ठाकुरक दुनू चित्रकथापर धीरेन्द्र कुमार एक नजरि-
मैथिली साहित्यमे पहिल बेर श्रुति प्रकाशन, नई दिल्लीसँ
प्रकाशित िचत्रकथा उमेश जीक माध्यमसँ भेटल। साहित्य पूर्ण तखने होइत अछि जखन
साहित्य सभ विधामे लिखल जाए आ रचना प्रौढ़ होइ। हमर दृष्टिमे चित्रकथामे
प्रीति ठाकुरक रचना मैथिली चित्रकथा आ गोनू झा आन मैथिली िचत्रकथा, सफल रचना थिक।
लेखिका धन्यवादक पात्र छथि, ऐ कारणे जे मैथिली
दिस हुनक दृष्टि गेलनि। दोसर कारण ई जे मैथिलीक विरासतमे जे कथा लोकमुखमे
सुरक्षित अछि तकरा ओ लेखनिक रूप प्रदान कऽ मैथिलीक चित्रकथा विधा, जे नगण्य
सन अछि- तइकेँ समृद्ध करक प्रयास केलनि अछि।
मैथिली चित्रकथामे ‘मोती दाइ, राजा सजहेस, बोधि-कायस्थ, बहुरा गोढ़िन, नटुआ दयाल, अमता घरेन, दीना भदरी, जालिम सिंह, नैका
बनिजारा, रघुनी मरड़, विद्यापतिक
आयु अवसान दोसर पोथी- ‘गोनु झा आ आन मैथिली चित्रकथा’मे प्रकाशित अछि ‘गोनु झा आ माँ दुर्गा, गोनु आ स्वर्ग,
गोनु आ स्वर्ण चोर, गोनु झा आ विलाड़ि, गोनु झाक दूटा बरद, गोनु झाक महीस, गोनु झाक अशर्फी, गोनु झा आ कर अधिकारीक दाढ़ी,
गोनु झाक माए, रेशमा चूहड़मल, नैका बनिजारा, भगता ज्योति पजियार, महुआ घटबारिन, राजा सलहेस, छेछन
महराज, राजा सलहेस आ कालिदास।
सभटा कथा मिथिलाक धरतीसँ सम्बद्ध अछि आ एखन धरि
लोक मुखमे सुरक्षित अछि। समैक परिवर्तन संगे लोक रूचि आ लोक संस्कारमे परिवर्त्तन
सेहो होइत अछि। अपन देशक गप्प लिअ। आइ पोथीमे सुरक्षित अछि आयुर्वेद विद्या, यूनानी विद्या,
होमयोपैथी आ कतेक रास ज्ञानसँ समर्पित विद्या। जँ पोथीमे सुरक्षित
नै रहत तखन अगिला पीढ़ी ऐ विद्यासँ अनभिज्ञ रहि जाएत। तँए हमर मिथिलामे
जे कथा पसरल अछि ओकरा पोथी स्वरूपमे प्रदान कऽ प्रीतिजी प्रशंसनीय काज केलनि
अछि। वीरबलक कथा भऽ सकै छल जे लोक बिसरि जाइत मुदा पोथी स्वरूपमे रहलासँ आइ
धरि ओ लोक-मानसक रंजनक माध्यम बनल अछि।
चित्रकथाक अपन महत्व होइत अछि। वाह्य-संप्रेषणसँ
जे प्रभाव वंचित रहि जाइत अछि ओ संप्रेषित होइत अछि चित्रसँ। नाटकमे अभिनयसँ
जे संप्रेषित नै होइत अछि ओ संप्रेषित अछि रंग, ध्वनि आ
प्रकाशसँ तहिना चित्रकथामे सेहो होइत अछि।
बाल साहित्य लेल ई काज प्रति जीक सराहनीय छन्हि।
चारि बर्खक नेना जेकरा अक्षर बोध नहियो छै सेहो कथाकेँ परेख सकैए। चित्रक माध्यमसँ।
बाल साहित्यक जे अभाव अपना मैथिलीमे अछि तइपर बड़का-बड़का विद्वानक अछैत
थोड़ेकबो धियान नै देल गेल छल आ खास कऽ ऐ तरहक।
धीरेन्द्र कुमार-१९५४
निर्मली, सुपौल, बिहार।
(वरीय व्याख्याता, हिंदी विभाग, सी.एम. बी. कॉलेज, डेवढ़, मधुबनी)
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