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Saturday, April 7, 2012

कि‍स्‍त-कि‍स्‍त जीवन-शेफालि‍का वर्मा पर शिव कुमार झा ’टिल्लू’


कि‍स्‍त-कि‍स्‍त जीवन-शेफालि‍का वर्मा-(समीक्षा)
साहि‍त्‍य समाजक दर्पण होइत अछि‍ आ साहि‍त्‍यकार ओहि‍ दर्पणक शि‍ल्‍पी। शि‍ल्‍प जतेक वि‍लक्षण हएत छाया ततेक साफ। कोनो साहि‍त्‍यक अध्‍ययनसँ रचनाकारक मनोवृत्ति‍ स्‍पष्‍ट होइत अछि‍। मैथि‍ली साहि‍त्‍यक संग ई वि‍डंवना रहल जे एहि‍मे वाल साहि‍त्‍य, अर्थनीति‍ आ आत्‍मकथाक वि‍रल लेखन भेल। मात्र कि‍छु साहि‍त्‍यकार एहि‍ वि‍धामे अपन लेखनीक प्रयोग कएलनि‍। ओहि‍ वि‍रल साहि‍त्‍यकारक गुच्‍छमे एकटा नाम अछि‍- डॉ. शेफालि‍का वर्मा।
शेफालि‍का जीक रचना सभमे पारदर्शिता रहल ओ जे हृदएसँ सोचैत छथि‍ ओकरा अपन कृति‍ उतारि‍ दैत छथि‍। हुनक रचनामे अर्न्‍तमनक ध्‍वनि‍ स्‍पष्‍ट सुनल जा सकैत अछि‍। कतहु अर्न्‍तद्वन्‍द्व नहि‍, कतहु पूर्वाग्रह नहि‍। हुनक कि‍छु कृति‍- वि‍प्रलब्‍धा, अर्थयुग स्‍मृति‍ रेखा, यायावरी आ भावांजलि‍ पढ़लाक वाद हुनक जीवनक वास्‍तवि‍क रूपक दर्शन कएल जा सकैत अछि‍। अपन रचना सभकेँ एकसूत्रमे सहेजि‍ कऽ अपन आत्‍मकथा लि‍खलन्‍हि‍ “कि‍स्‍त-कि‍स्‍त जीवन‍” अप्रत्‍याशि‍त मुदा, प्रासंगि‍क नाम। जीवनक कतेक रूप होइत अछि‍, बाल, वयस्‍क, प्रौढ़.... सुख-दुख, काम नि‍ष्‍काम यएह थि‍क एहि‍ रचनाक सार। अपन करूणामयी जीवनक बून-बूनकेँ ऑंजुरमे एकत्रि‍त कऽ आत्‍मकथा लि‍खलन्‍हि‍।
आमुखसँ स्‍पष्‍ट होइत अछि‍ जे ओ नि‍त डायरी लि‍खैत छथि‍ तेँ अपन कि‍स्‍त-कि‍स्‍तक अनुभवकेँ वटोरि‍ लेलनि‍। वाल-कालक गणि‍त वि‍षयक समस्‍या हो वा संगीत शि‍क्षक पंडि‍त वाजपेयी जीक व्‍यवहारक मूक वि‍श्‍लेषण सभ वि‍न्‍दुपर पोथि‍क फुजल पन्ना जकॉं स्‍पष्‍ट प्रस्‍तुति‍। युवती वएसमे प्रवेश करैत काल कोनो अनचि‍नहार युवकक नजरि‍ देखि‍ कऽ अपन ब्रह्मास्‍त्रक (थूक फेकवाक) प्रयोग करैत छलीह। ओना एहि‍ अस्‍त्रक शि‍कार वि‍वाहसँ पूर्व ललन बावू सेहो भेल छलाह, जि‍नका संग ओ दाम्‍पत्‍य सूत्रमे बान्‍हल गेलीह। नव प्रकारक रक्षा सूत्रक वि‍षए मे पढ़ि‍ अकचका गेलहुँ, नीक नहि‍ लागल मुदा, एहि‍सँ रचनाक प्रासंगि‍कतापर प्रश्‍नचि‍न्ह नहि‍ लगाओल जा सकैत अछि‍।
प्रवेशि‍का उत्तीर्ण कएलाक पश्‍चात शेफालि‍का जी पढ़ए नहि‍ चाहैत छलीह। ललन बावूक वि‍शेष प्रेरणासँ जहि‍ना- तहि‍ना स्‍नातक धरि‍ शि‍क्षा ग्रहण कएलनि‍। तत्‍पश्‍चात् घर-गृहस्‍थी आ साहि‍त्‍य साधनामे लीन भऽ गेली। साहि‍त्‍यमे वि‍शेष योगदानक लेल दरभंगामे डॉ. दि‍नराजी शाण्‍डि‍ल्‍य द्वारा “वि‍द्या वारि‍धी‍” सम्‍मानसँ सम्‍मानि‍त कएल गेली। एहि‍ सम्‍मानकेँ पावि‍ भाव-वि‍भोर भऽ मि‍थि‍ला मि‍हि‍रकेँ अपन मनोदशा पठौलन्‍हि‍। मि‍थि‍ला मि‍हि‍र द्वारा हुनक हस्‍त-लि‍पि‍केँ यथावत् प्रकाशि‍त कए देल गेल। मि‍थि‍ला मि‍हि‍रक “होली वि‍शेषांक‍”मे हि‍नक रचनाक रचनाकारक नाम देल गेल “दि‍न राजी डॉ शेफालि‍का वर्मा‍।” एहि‍ मजाकसँ शेफालि‍का जी कॉपि‍ गेली आ 18 वर्खक मौनव्रतकेँ तोड़ि‍ पुन: शि‍क्षा ग्रहण करवाक लेल आतुर भऽ गेली। परि‍णाम सोझाँ अछि‍- एम.ए., पी.एच.डी प्राध्‍यापक डॉ. शेफालि‍का वर्मा। अपन सम्‍पूर्ण जीवनमे प्रेमकेँ जीवाक आधार मानि‍ जीवि‍ रहल छथि‍- रजनी जी। आरसी बावूक शेफालि‍का- कोना रजनीसँ शेफाली वनि‍ गेली एहि‍ रचनामे झॉंपल अछि‍। प्रेमक सभ रूपकेँ अर्न्‍तमनसँ स्‍वीकार करव हि‍नक जीवन दर्शन अछि‍। राजनीति‍सँ दूर रहलीह, जखन की कि‍छु प्रसि‍द्ध राजनीतिज्ञ हि‍नका लग नतमस्‍तक रहैत छलाह। डार्विनवार “उपार्जित लक्षणक वंशावलि‍‍”क आधारपर एना संभव भेल। पि‍ता स्‍व. मल्‍लि‍क साहि‍त्‍कार आ सरल व्‍यक्‍ति‍त्‍व छलाह। हि‍नक पति‍ ललन बावू साहि‍त्‍यकार तँ नहि‍ छलाह परंच शेफालि‍का जीक साहि‍त्‍यक सभसँ पैघ पाठक। अपन पति‍ द्वारा नि‍रंतर पग-पगपर संग देवाक कारण हि‍नका जीवनसँ कोनो शि‍काइत नहि‍ अछि‍। “जीवनक डोरि‍ फूजि‍ उड़ल व्‍योममे कातर प्राण मुदा जीवै छी।‍”
आव प्रश्‍न उठैत अछि‍ जे हुनक आत्‍मकथासँ समाजकेँ की भेटत वा की भेटल? कोनो व्‍यक्‍ति‍ ओ महान हो वा नहि‍ हो ओकर जीवनसँ शि‍क्षा लेल जा सकैत अछि‍। शेफालि‍का जी तँ मर्मज्ञ छथि‍ जीवनक मर्मज्ञ, साहि‍त्‍यक मर्मज्ञ आ सि‍नेहक मर्मज्ञ। पुरूष प्रधान समाजमे नारीक एहेन दृढ़ता देखि‍ वर्तमान कालक बालाकेँ अवश्‍य नव दि‍शा भेटत।
हुनक जीवन दर्शनकेँ कण-कणमे समा लेलहुँ, भाषा मनोरम आ प्रवाहमयी अछि‍।
एतेक अवि‍राम कृति‍ रहलाक पश्‍चात् एहि‍मे कि‍छु त्रुटि‍क दर्शन सेहो भेल। शेफालि‍का जी अपन जीवनक कचोटकेँ नुका लेली। ओ फूजल मानसि‍क प्रवृति‍क महि‍ला छथि‍, चरि‍त्र उत्तम मुदा, पारदर्शी। सहज अछि‍ जे एहि‍सँ हुनका कि‍छु सामाजि‍क उपहासक अनुभव अवश्‍य भेल हेतनि‍। साहि‍त्‍यकारक रूपमे उपेक्षाक शि‍कार अवश्‍य भेल हेती तकर मौन व्‍याख्‍या तँ कएल जा सकैत छल मुदा, नहि‍ कएल गेल। भऽ सकैत अछि‍ ओ मैथि‍ल समाजक मध्‍य कोनो अनुत्तरि‍त प्रश्‍न नहि‍ उठवए चाहैत छथि‍। सम्‍पूर्ण सार अछि‍ जे रचना सारगर्भित ओ सोहनगर लागल। शेष.....अशेष.......।
पोथीक नाम- कि‍स्‍त-कि‍स्‍त जीबन
रचनाकार- डॉ. शेफालि‍का वर्मा

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