Pages

Saturday, April 7, 2012

पोथी समीक्षा- मौलाइल गाछक फूल


पोथी  समीक्षा-
मौलाइल गाछक फूल

दुर्गानन्‍द मण्‍डल
सहायक शि‍क्षक-
उ.वि‍.झि‍टकी बनगामा (मधुबनी)

जेना लगातार पाँच-सात सालक प्रचंड रौदी भेलाक बाद जौं रोहनि‍ नक्षत्रमे एकटा कसगर अछार हुअए तँ गि‍रहत सभहक मोन फूलकोका जकाँ खि‍ल उठैत छैक। सभ कि‍यो खेत-पथार जोति‍, तामि‍-कोरि, खढ़-पतार सभ बाले-बच्‍चा मि‍ल ओलि‍-पालि‍ कऽ देबे सेबे बि‍हनि‍ खसबैत छैक। गोर दसे दि‍नक पछाति‍ हरि‍अरकंच बि‍हैनक टेम बि‍रारमे नि‍कलए लगैत अछि‍। गि‍रहत सभ पोखरि‍-झाखरि‍ दि‍स दि‍सा-मैदान करैत बॉसक उभ्‍भीबला दतमनि‍ करैत लोटा नेनहि‍ बि‍रार दि‍स चल जाइत छथि‍। बि‍रारमे उपजल हरि‍यरकंच बि‍हैन देख आत्‍मा जुड़बैत छथि‍। देखते-देखते बि‍हैन पैघ भऽ जाइत अछि‍। गि‍रहत सभ ऐ आशामे पाँच-सात सालसँ बर्खो नै भेल जौं ऐबेर समए संग देत तँ बाले-बच्‍चा मि‍ल खूब जतनसँ खेती करब आ ऐ रौदीसँ छुटकारा भेट जाएत।

दि‍न दसे-पनरेहक बाद अारदारा चढ़ि‍ते खूब कसगर बर्खा भेल। आ गि‍रहत सभक आत्‍मा गूलाबक फूल जकाँ खि‍ल उठल। कि‍नको खुशीक कोनो सि‍मा नै। सभ बाले-बच्‍चे लाठी-बहि‍ंगा (पटै), हर-कोदारि‍, चौकी आदि‍ लऽ खेती करए लेल खेत दि‍स चललाह। आ कृपा महादेवक जे ऐ साल समए नीक रहल, संग देलक आ मनसंम्‍फे उपजा भेल। सभ आनंदि‍त छथि‍। एकटा नव उत्‍साह आ आनंदक संग दोहाइ दै छथि‍न परमपि‍ता परमात्‍माकेँ।
ठीक तहि‍ना उपन्‍यासकार जगदीश प्रसाद मंडल जीक द्वारा लि‍खल उपन्‍यास मौलाइल गाछक फूलसँ पाप्‍त  भेल खुशी आत्‍माकेँ तृप्‍ति‍ कऽ देलक। प्रो. हरि‍मोहन झा जीक बाद बुझू जे मैथि‍ली साहि‍त्‍याकासमे बड़का रौदी नै अपि‍तु अकाल पड़ि‍ गेल छल। पाठक-बन्‍धु हक्कोपरास छलाह, उपन्‍यास नामक वस्‍तु पाठककेँ हेरने नै भेटैत छलनि‍। आत्‍मा तँ उपन्‍यास पढ़ए लेल सदि‍खन व्‍याकुल रहैत छल। जइ कमीकेँ मण्‍डलजी दूर कऽ देलनि‍। लगातार एक-सँ-एक चि‍क्कन-चूनमुन उपन्‍यास लि‍ख ने मात्र भारते उपि‍तु आनो-आन देशमे रहएबला मैथि‍ली भाषीक नजरि‍मे ख्‍याति‍ पौलन्‍हि‍। अपन देशक कथे कोन नेपालक जनकपुरसँ लऽ तराइ क्षेत्रमे सेहो हि‍नक लि‍खल पोथी, उपन्‍यास, कथा संग्रह, कवि‍ता संग्रह, नाटक, एकांकी इत्‍यादि‍ साहि‍त्‍यक सभ वि‍धा केर पोथी सहजताक संग उपलब्‍ध अइ। पोथी उपलब्‍ध सेहो मैथि‍ली साहि‍त्‍य लेल एक नवीन बात थि‍क। ओना ऐ लेल हम श्रुति‍ प्रकाशनकेँ अलगसँ धन्‍यवाद देत छि‍यन्‍हि‍।

प्रस्‍तुत उपन्‍यासमे अपने अपना अनुसारे कतौ कोनो तरहक कोनो तरहक कमी नै रखने छी। अपि‍तु सागरमे गागर भरि‍ समाजक सभ वर्ग, सभ जाति‍, स्‍त्री-पुरूष, ऊँच-नीच, छोट-पैघ, नीक-बेजाए, धनीक-गरीब, नेना-भुटका, जवान-जुआनक लेल एकटा अलग संदेस छोड़एमे कतौ कमी नै रखलनि‍। जे पाठककेँ एक सांसमे उपन्‍यास पढ़ि‍ जेबाक लेल बाघ्‍य कऽ दैत अछि‍। हमरा अनुसारे ई एकटा बड्ड पैघ उपन्‍यासकारक सार्थकता सि‍द्ध भऽ रहल अछि‍। यर्थाथवादी रूपमे गाममे रहि‍तौं उपन्‍यास पढ़ए काल एहन लगैत अछि‍ जे हम गाम नै अपि‍तु मद्रासमे छी। मुदा मद्रासक चािल-वाणि‍, रहब-सुतब, लोक सबहक बाजब-भुकब, पैघ-पैघ कोठा-सोफा, अति‍आधुनि‍क पैखाना घर आदि‍ रहलाक बादो अपने अपना गामक माटि‍क यादि‍ नै बि‍सरि‍ सकलौं। जे रामाकान्‍त बाबू अपन गामक सोन्‍हगर माि‍टक सुगंधक सि‍नेहकेँ स्‍पष्‍ट करैत कहैत छथि‍- हौ जुगे, बि‍ना माटि‍ये हाथ कोना मटि‍याएब?”

उपन्‍यासक पात्रक नामक अनुसार गुणक वि‍लक्षण समाबेस करब अपने कतौ नै बि‍सरलौं। नामक अनुसारे कामकेँ अपने स्‍पष्‍ट देखौने छी। समाजक जे जेहन लोक जेहन पदपर पदस्‍थापि‍त छथि‍। ओइ कार्यक लेल समर्पण उपन्‍यासक विशेषता बतबैत अछि‍। ठाम-ठाम अध्‍यात्‍म, दर्शन, अपना संस्‍कृति‍ आदि‍केँ दर्शादा देब सभ पाठकक लेल मोन राखक योग्‍य बुझना गेल। यथा- ई भूमि‍ जनकक राज मि‍थि‍ला थि‍क। तेँ मि‍थि‍लावासीकेँ जनकक रास्‍ता पकड़ि‍ हमरा लोकनि‍केँ चलक चाही, जाहि‍सँ प्रति‍ष्‍ठा सभ दि‍न बरकरार रहत।

ऐ उपन्‍यासक प्राय: सभ पात्रक चरि‍त्र अति‍ पवि‍त्र, सामजि‍क समरसतासँ भरल बुझना जाइत अछि‍। हुनका लोकनि‍क सहज सज्‍जनता प्रकृत प्रदत्त बुझाइत अछि‍। समाज सुधारक जौं कोनो कथा हुअए तँ प्राय: सभ एक-दोसराक प्रति‍ ओतबे जि‍म्‍मेवार स्‍वभावत: बुझना गेल जे एकटा सुसभ्‍य समाजक सामाजि‍क चि‍ंतनक प्रति‍ कर्त्तव्‍यनि‍ष्‍ठ बुझना जाइत छथि‍। उपन्‍यासक केन्‍द्रीय पात्र रामाकान्‍त बाबू छथि‍। जे एकटा नीक जमीनदार होइतो सामाजि‍क कर्त्तव्‍यपरायणता, इमानदारी, समाजक सभ जाति‍क प्रति‍ सि‍नेह, उदारचि‍त्त वि‍चारधारा, वास्‍तवि‍क मानवतावादक चि‍त्र, मानवक प्रति‍ कर्त्तव्‍य ओकर दुख-सुख, मरनी-हरनीमे संग पुरब, हि‍नक चारि‍त्रि‍क वि‍शि‍ष्‍टता स्‍पष्‍ट देखबा योग्‍य अछि‍।

उपन्‍यासक आरम्‍भहि‍ंमे जखन कि‍ गाममे अकाल पड़ि‍ जाइत छैक। लोक सभ अन्न बेतरे मरए लगैत अछि‍। जनकेँ काज कतौ नै भेटैत छै, खेती-खोलाक कतौ थाह-पथाह नै, लोकक घरमे दि‍नक-दि‍न चुल्हि‍ नै पजरै छै। इनारोक पानि‍ ससरि‍ ततेक नि‍चाँ चल गेलैक जे उगहनि‍यो सभ छोट भऽ गेलैक। आ एम्‍हर बौएलालक प्राण भुखसँ छुटै-छुटैपर छल। तेहने दुरूह समैमे रामाकान्‍त बाबू द्वारा बड़की पोखरि‍ उराहब, समाजक प्रति‍ साहानुभूति‍ हुनक हृदैक महानता देखल जाइत अछि‍। ऐ तरहेँ एक तँ लोककेँ वि‍भि‍न्न प्रकारक अकर्मणयतासँ बचा कऽ दोसर दि‍स, अन्नाभावसँ ग्रस्‍त लोकक मरबासँ सेहो बचबैत छथि‍। रमाकान्‍तबाबूक अवधारणा ई जे सर्वे भवन्‍तु सुखि‍न: सर्वे सन्‍तु नि‍रामया:, सर्वे भद्राणि‍ पश्‍यन्‍तु मा कश्‍चि‍द् दु:खभाग भवेत्क ‘‘अथवा सबए भूमि‍ गोपाल की’’ सपष्‍ट कऽ दैत अछि।‍ तँए रामाकान्‍तबाबू सामाजि‍क समरसता लेल ि‍तयागक मि‍शाल स्‍वरूप अपन दू सय वि‍धा जमीन गामक भूमि‍हीन परि‍वारक बीच वि‍तरण करबा दैत छथि‍न। ठीक ओहि‍ना जहि‍ना चीम राजा चेन्‍पौ कएने रहथि‍। जइसँ गामक सभ व्‍यक्‍ति‍ सुखी भऽ जाइ छथि, आ गाधीवादी वि‍चारधारकेँ आरो मजगूती भेट जाइत अछि‍। अर्थात् व्‍यक्‍ति‍गत खुशी वा सुख-शांति‍सँ एकटा समाज सुखी नै भऽ सकैत अछि‍। बल्‍कि‍ सामाजि‍क सुख-शांति‍क लेल व्‍यक्‍ति‍गत सुख-शांति‍क ति‍याग करब मनुष्‍यक अहम कर्त्तव्‍य थि‍क। स्‍पष्‍ट अछि‍।

मनुष्‍य एक समाजि‍क प्राणी थि‍क, जे सोनेलाककेँ वि‍पति‍ पड़लापर फुदि‍या द्वारा कहल गपसँ स्‍पष्‍ट होइत अछि‍। जे भाय, तोरा जे हमर खूनक काज हेतह, हम सेहो देबह। स्‍पष्‍ट अछि‍ जे समाजमे एहि‍ना सबहक काज सभकेँ होइत छैक। उपन्‍यासक मध्‍यमे मण्‍डलजी गाम-घरमे पसरल धर्मभि‍रूताक चि‍त्रण करब सेहो नै बि‍सरलाह। जे सोनेलालक आंगनवालीकेँ बि‍मारीसँ ठीक भेलापर आयोजि‍त भंडारामे दू साधू दलक द्वारा जे एकटा वैष्‍णम आ कबीरपंथसँ सोनेलाल कोना लुटल जाइत अछि‍। उपन्‍यासकार एहन समस्‍याक प्रति‍ समाजकेँ सचेत करै छथि‍।

आजुक मशीनक युग हमरा समाजकेँ कोन तरहेँ जोंक जकाँ पकड़ने अछि‍ जे तरे-तर शोणि‍त पीब रहल अछि‍ मुदा पता तक नै चलै छै। ई स्‍पष्‍ट करबामे शत-प्रति‍शत सफल छथि‍। कोन तरहेँ खून अपना खूनकेँ चि‍न्‍हबामे असमर्थ अछि‍ एकदम स्‍पष्‍ट अछि‍ जे महि‍न्‍द्रक पुत्र रमेश होस्‍टलसँ आबि‍ अपन पि‍ताकेँ गोड़ लागि‍ ठकुआ कऽ आगाँमे ठाढ़ भऽ जाइत अछि‍, बाबा-दादीकेँ नै चि‍न्‍हैत अछि‍। बादमे पि‍ताक कहलापर रमेश तीनू गोटेकेँ गोड़ लगलकनि‍। ऐ तरहेँ संयुक्‍त परि‍वारक महत्‍व जे मि‍थि‍लाक धरोहरि‍ छल। ओकरा एकल परि‍वार बूझु जे झकझौरि‍ कऽ राखि‍ देलक। जे मानवीय सि‍नेहक नष्‍ट होइत स्‍वरूप थि‍क।

एे प्रकारेँ उपन्‍यास मौलाइल गाछक फूलमे सामाजि‍क जि‍नगीक वि‍भि‍न्न प्रकारक समस्‍या आ ओकर समुचि‍त समाधान तकबाक पूर्ण प्रयत्‍न केलनि‍ अछि‍। मनुष्‍यसँ परि‍वार बनैत अछि‍ आ परि‍वारसँ समाज। जँ परि‍वार ठाढ़ भऽ जाए तँ समाज स्‍वत: आगू बढ़ए लागत। मण्‍डलजीक सामाजि‍क भावना आदर्शवादी भावनाक रूपमे परि‍लक्षि‍त होइत अछि‍। जकरा धि‍यानमे रखैत मद्रासमे डाक्‍टरी करैत डॉ. महेन्‍द्रकेँ गाममे एकटा स्‍वास्‍थ्‍य  केन्‍द्रक स्‍थापनाक वि‍चार गामवासीक सेवा लेल देखाओल गेल अछि‍। उपन्‍यासमे जाति‍-पाति‍, धर्म-सम्‍प्रादयमे खंि‍डत भेल गाम-समाजमे छूआ-छूत, ऊँच-नीचक खाधि‍केँ रामाकान्‍तबाबू द्वारा भजुआ डोमक ऐठाम जा कऽ भोजन करब समाजक बीच समरसता स्‍थापना आ छूआ-छूतक अंत कऽ एकटा आदर्शवादी पूर्ण समाधान देखौलनि‍ अछि‍। जेकरा अशि‍क्षासँ उत्पन्न लाइलाज बि‍मारीकेँ वि‍चार मात्रमे परि‍वर्त्तन कऽ एकसूत्रमे बन्‍हबाक प्रयास, वरदान सावि‍त भेल अछि‍।

उपन्‍यासक समस्‍त नारी पात्र यथा- रधि‍या, श्‍यामा, सुगि‍या, सोनेलालक बहि‍न आदि‍मे पति‍परायणता सुख-दुखमे संग साथ देब। भारतीय नारीक मर्यादा स्‍पष्‍ट चि‍त्र उपस्‍थि‍त करबामे पूर्णत: सफल भेल छथि‍। सुमि‍त्राक पढ़ि‍-लि‍ख नीक नर्स बनब आ सुजाताकेँ पढ़ि‍-लि‍ख नीक डाक्‍टर बनब, नारीक अबला नै अपि‍तु सबला रूप देखबामे अबैत अछि‍। एतबे नै, उपन्‍यासक मादे मण्‍डलजी स्‍पष्‍ट दर्शा देलनि‍ अछि‍ जे गरीबो-गुरबामे ओ क्षमता छै जेकरा जँ कनि‍को सहयोग भेट जाए तँ ओ बहुत आगाँ बढ़ि‍ सकैत अछि‍। नारीक एकटा अलग स्‍वरूप काली-दुगाँ आदि‍ शक्‍ति‍क रूप सि‍ति‍या केर चरि‍त्र देखेबामे सफल रहलाह अछि‍। जखन आवारा छौड़ा ललबा ओकरा इज्‍जति‍ लुटए चाहै छै तखन सि‍ति‍या ललबाकेँ लाते-मुक्के थुरि‍-थारि‍ कऽ राखि‍ दैत छै। बात ओतइ नै खतम होइछ अपि‍तु जखन ललबाक गौआँ सभ हसेरी बान्‍हि‍ सि‍ति‍या गामपर हमला करैत अछि‍ तखन सि‍ति‍या झांसीक रानी बनि‍ सभकेँ परास्‍त कऽ दैत छै।
ऐ तरहेँ मौलाइल गाछक फूल उपन्‍यासमे सहजता, समरसता, यथार्थवाद, आदर्शवाद, धर्मभि‍रूता, एकल एवं संयुक्‍त परि‍वारक रूप-रेखा खि‍ंच एकटा मनोवैज्ञानि‍क वि‍श्लेषण रूपमे उपन्‍यासकार हमरा लोकनि‍क मध्‍य  उपस्‍थि‍त छथि‍। हुनक ई ि‍वधासँ उपन्‍यास जगतमे एक्केठाम सभ तरहक सुख, आनंदक अनुभव होइत छन्‍हि‍। आजुक समाज जे सभ तरहेँ मौलाएल अछि‍। अपना उपन्‍यासक मादे उपन्‍यासकार मात्र एक आदमी रामाकान्‍तबाबू हृदए परि‍वर्त्तन कऽ समाजमे एकटा नवका फूल खि‍लेबामे सश-प्रति‍शत सफल भेला अछि‍। रामाकान्‍त बाबू द्वारा अपन दू सए बीघा जमीन- सबहक माथपर एकहक बीघा खेत अर्थात् जेकरा सात गो बेटा ओकरा सात बीघा दऽ सभकेँ एकटा नव जि‍नगी प्रदान करैत छथि‍। एक नव जि‍नगी जे पूर्णत: मौलाएल छल ओइमे फूल खीला दैत छथि‍। हमरा आशा नै अपि‍तु वि‍श्वास अछि‍ जे श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डलजी सन उपन्‍यासकार होथि‍ आ रामाकान्‍तबाबू सन नायक तँ अपन समाज रूपी मौलाएल गाछ मौलाएल नै अपि‍तु डगडगीसँ भरल गाछ बनि‍ फूलसँ लदि‍ सकैत अछि‍।

(())

No comments:

Post a Comment