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Sunday, April 8, 2012

ग्राम्‍य-जीवनक अनुभवक बखाड़ी :: धीरेन्‍द्र कुमार


जगदीश प्रसाद मंडलक कथा संग्रह- गामक जि‍नगी’ 

गामक जि‍नगी सम्‍पूर्ण रूपसँ गामक समस्‍यापर आधारि‍त आ ओकर समाधानक दि‍शापर रचि‍त जगदीश प्रसाद मंडल जीक कथा संग्रह अछि‍।

समस्‍त कथा संग्रहमे उन्नैसटा कथा अछि‍। वर्तमान कथा प्रवाहसँ भि‍न्न कथा-प्रवाह अछि‍। वर्तमानमे समस्‍याक प्रवाह अछि‍। कथाकार समस्‍याकेँ सोझा राखि‍ पाठक माने समाजकेँ बोध करबैत अछि‍। समाधान ताकक दायि‍त्‍व पाठकपर होइत अछि‍। यर्थाथक नाङटि‍ चि‍त्रण मानवीय कुरूपता, असंवेदनशीलता आ साहि‍त्‍यक नाओंपर अश्‍लीलता पसरल जाइत अछि‍ ओतहि‍ प्रस्‍तुत कथा संग्रह गाममे पसरल छोट-छोट वस्‍तुक उपयोगि‍तासँ समाजक समस्‍याक समाधान प्रस्‍तुत करैत अछि‍- भैंटक लावा, बि‍‍साँढ़, पीरारक फड़। हि‍नकर कथा मोनमे कचोट नै वरन् उन्‍मुक्त आ आशात्‍मक सनेस दैत अछि‍। आजुक कथा जकाँ दमघोटू वातावरण तैयार‍ नै करैत अछि‍ वरन् भोरूका स्‍वच्‍छ हवा प्रदान करैत अछि‍- बोनि‍हारि‍न मरनी, ठेलाबला, रि‍क्‍शाबला, घरदेखि‍या कथा।

वर्णनात्‍मक शैलीमे समस्‍त कथा अछि‍। कथाकार समस्‍याकेँ पकड़ब, उठाएब आ समाधान दि‍स लऽ जाएबमे सि‍द्धस्‍त छथि‍। ई गुण आ फलक हि‍नकर व्‍यक्‍ति‍गत जीवन श्रेष्‍ठताक कारणसँ अबैत छन्‍हि‍। सर्वकल्‍याणक नजरि‍क कारणसँ अबैत छन्‍हि‍। कथामे अवि‍छि‍न्न प्रवाह अछि‍ कतौ कथा संयोजन ठमकल नै भेटत। कथाक उद्गम होइत अछि‍ ओ बढ़ि‍ जाइत अछि‍।

कथाक आवश्‍यक तत्‍वमे जे आवश्‍यक तत्‍व होइत अछि‍ से अवस्‍से भेटत। शीर्षक कतौ असम्‍बद्ध नै‍‍ भेटत।
उल्‍लेखनीय कथा अछि‍- घरदेखि‍या। लुखि‍याक जि‍ज्ञासा आ भलमनसाहत प्रसंसनीय अछि‍ कथाक प्रवाह अवि‍चल अछि‍ आओर संपूर्ण कथामे आगाँ की हेतै से सदि‍खन जानबाक प्रवल्‍ता बनल  रहैत अछि‍। कथामे ऐ‍ तत्‍वक आवश्‍यकता मानल जाइत अछि‍। घरक एक-एकटा ओरि‍आओन, घरक हालति‍ आ लुखि‍याक प्रयास सहज अछि‍। कतौ नाटकीयता नै झलकैत अछि‍। मि‍थि‍लाक हँसी-मजाक कथाकेँ मि‍थि‍लाक माटि‍-पानि‍सँ सम्‍वद्ध कऽ दैत अछि‍।

लुखि‍या समैधसँ पाइ लऽ कनि‍याँ आनक पक्षमे नै अछि‍ तँए ओ बजैत अछि‍- ककरो बेटीकेँ पाइ लऽ कऽ अपन घर नै आनब‍। नागेसर ऐ पक्षमे नै‍‍ छथि‍ मुदा भौजीक कहल काटब ओकरासँ संभव नै‍‍ अछि‍। कथाक समापन ऐ उक्‍ति‍सँ अछि‍। समापन नागेसरकेँ झकझोड़ि‍ दैत अछि‍। कथाकार ई स्‍पष्‍ट करैत अछि‍ जे नागेसर की करताह? मुदा लुखि‍याक कथन आजुक समाजक लेल सोचनीय उक्‍ति‍क रूपमे प्रश्नवाचक अछि‍। कथाक ई उत्‍कर्ष अछि‍ आ पाठककेँ आकर्षणमे बान्‍हि‍ लैत अछि‍।

कथाकार ग्राम्‍य जि‍नगीक चि‍त्रणमे माहि‍र छथि‍‍ आ हुनका ग्राम्‍य-जीवनक अनुभवक बखाड़ी छन्‍हि‍। कुम्‍हारक सामग्रीक वि‍वेचन देखल जाए- कूड़, हाथी, ढकना, कोशि‍या, दीप, पांडव, गणेश, लछमी, मटकूर, छांछी, डाबा, घैल, सामा-चकेबा, पुरहर, अहि‍वात, कोहा, फुच्‍ची, सीसी, सरबा, सीसी, भरहर, आहूत, धुपदानी, पात्ति‍ल, तौला, मलसी....। ओहि‍ना बाबी कथा मि‍थि‍लाक पर्व त्‍योहारक वि‍स्‍तृत आख्‍यान अछि‍। कखन कोन पर्व होएत ओकर वि‍धि‍-वि‍धान बाबीक माध्‍यमसँ व्‍यक्त होइत अछि‍। सभसँ आश्चर्यक गप्‍प जे सजीव चि‍त्रण कथाकार केने छथि‍। कथाक अंतमे ई नै बुझना जाइए जे हम छठि‍ पावनि‍क घाटपर उपस्‍थि‍‍त नै‍‍ छी। छठि‍क मर्यादा आ शुद्धतापर सभसँ बेसी धि‍यान देल जाइत छैक तँए ओहू घटनाकेँ कथाकार पकड़ि‍ नेने छथि‍।- बाबी देखथुन जे ई छौंड़ा तेहन अगि‍लह अछि‍ जे हाथीकेँ पटकि‍ देलकै। ई तँ गुण भेल जे एकेटा टांग टुटलै नै तँ टुकड़ी-टुकड़ी भऽ जाइत।‍

प्रस्‍तुत कथा संग्रहमे सभ कथा अपन-अपन वि‍शेषता रखैत अछि‍ आ सभ कथाक समस्‍या भि‍न्न अछि‍। सबहक समाधान अछि‍। कथ्‍य भि‍न्न आ वस्‍तु वि‍शेष नव-नव।

कथाक शीर्षक कथासँ संबंधि‍त आ भाषा जन- जनभाषा अछि‍। अधि‍संख्‍य लोक जे भाषा बजैत अछि‍ टीसनपर, हाटपर, यात्रामे, गाममे आ घरमे, से भाषाक प्रयोग अछि‍। वि‍षय-वस्‍तु आ भाषा बीचक संबंध ई स्‍पष्‍ट करैत अछि‍ जे कथाकार जमीनी हकीकतकेँ उपस्‍थि‍त केलनि‍हेँ। मैथि‍ली साहि‍त्‍य लेल ई एकटा सौभाग्‍यक बात थि‍क।
कथामे सूक्ति‍‍ वाक्‍य, सैद्धांति‍क वाक्‍यक संरचनासँ प्रेमचंद अवस्‍य  स्‍मरण होइत अछि‍ मुदा, मुहावरा आ लोकोक्ति‍क अभाव सेहो भेटैत अछि‍।
कथामे वर्णनात्‍मक शैली रहि‍तहुँ कतौ-कतौ कथाकार कथोपकथनक प्रयोग सेहो केने छथि‍। कथाक वि‍श्वसनीयता आ साधारणीकरण प्रक्रि‍यामे आवश्‍यक तत्व एकटा एकरो अहमि‍यत होइत अछि‍ मुदा कथाकारकेँ हम सचेष्‍ट करए चाहब जे पात्रक भाषा पात्रक शैक्षि‍क स्‍तरसँ सम्‍बद्ध रहने, ओकर मानसि‍कता, परि‍वेशसँ मेल खाइत होमक चाही।
कथाकारकेँ हम धन्‍यवाद देबनि‍ जे हि‍नकर कथा राति‍क बाद अकासमे चमकैत भोरूकबा अछि‍। जयशंकर प्रसादक शब्‍दमे- तुमुल कोलाहल कलह में, मैं मलय की बात रे मन।‍ अछि‍।



धीरेन्‍द्र कुमार-१९५४
नि‍र्मलीसुपौल, बि‍हार।
(वरीय व्‍याख्‍याता, हि‍ंदी वि‍भाग, सी.एम. बी. कॉलेजडेवढ़मधुबनी)

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