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Saturday, April 7, 2012

क्‍लासिकी परम्‍पराक पृष्‍ठभूमि :: रवि‍ भूषण पाठक


भैंटक फड़ देख बिहुसैत नर-नारी, बिसाँढ़क लेल पताल कोरैत मैथिलजन, चुन बनएबा आ बेचबाक कठिन उपक्रम करैत लोक आ बदलैत तकनीकीसँ तालमेल बैसबैत, उपार्जनक लेल गाम, राज्‍य छोड़ैत जनसमुद्र। संयुक्‍त परिवार, वर्णव्‍यवस्‍था  आ गामक पारंपरिक अर्थव्‍यवस्‍थाकेँ छेदैत विभिन्‍न  कोटिक परिवर्तन। कोनो ब्राहमण आ कुम्‍हारक ढहैत जजमानी। ताड़ी कीनए बेचए आ पीबैक अनंत अंर्तकथा। पोखरि, गाछी, खेत आ गाममे  पसरल मिथिलाक अनंत आ दिव्‍य सौंदर्यक एकसाथ दर्शन।

इतिहासक प्रश्‍न
गामक जिनगी’क पहिल तीनटा कथा भैंटक लावा, बिसाँढ़’, पीरारक फड़ अकालक समैमे मिथिलावासीकेँ पेट भरबाक साधन रहैत अछि, आ ई बात लेखकक सजग दृष्टि आ सामाजिक प्रतिबद्धताकेँ स्‍पष्‍ट करैत अछि। पुस्‍तकक संग उपलब्‍ध संक्षिप्‍त टिप्‍पणीमे गजेन्‍द्र ठाकुर जगदीश जीक कथाक ऐतिहासिक भूमिकाकेँ रेखांकित करैत छथिन्‍ह। बात केवल विषय चयनक दृष्टिसँ नइ अछि, बल्कि समग्र पुस्‍तकमे मिथिलाक निम्‍न मध्‍यवर्गक जिनगीक जतेक गहराइसँ देखल गेल अछि, ओ अन्‍यत्र दुर्लभ अछि। कथाकार मिथिलाक गाममे जइ गंभीरतासँ भ्रमण करैत छथिन्‍ह, ई साहित्‍येटाक लेल नै अपि‍तु इतिहास आ अर्थशास्‍त्रक लेल सेहो प्रामाणिक सामग्री उपलब्‍ध करैत अछि।

नॉस्‍टेल्जियाक सच
की जगदीशजी अतीत मोहसँ ग्रस्‍त छथि। प्रस्‍तुत संग्रहमे लेखक मिथिलाक ग्राम आ ग्राम्‍य जीवनक प्रति खास अनुराग व्‍यक्‍त करैत छथि। एतबे धरि नै ओ शहरीकरण, शहरमे प्रवास आदिक प्रति खास वितृष्‍णा व्‍यक्‍त करैत छथि। भैयारी’ कथामे कुसुमलाल कोर्टमे नौकरी करैत छथि आ मधुबनीमे रहैत छथि। आ हुनकर पैघ भाय दीनानाथ गामेमे रहैत छथिन्‍ह। आ गामोमे रहैत दीनानाथ अपन जिनगीक गाड़ी नीक जकाँ चलबैत छथि, मुदा कुसुमलालक गाड़ी लसकि जाइत छैक। शराब पीबैत-पीबैत हुनकर लीवर गलि गेलै। सौंसे देहमे घाव भ गेलै। आ घरवाली सेवा करए केर बदला गरियाबै आ बड़का बेटा कहए- पप्‍पा जी, महकता है’।’
निस्‍संदेह गामक सहजता, सरलताक प्रति लेखकमे एकटा खास किस्‍मक सि‍नेह अछि, ताहि‍ दुआरे ओ डेग-डेगपर गाममे रहनाइ, गामक धन्‍धा-पानिकेँ गौरवान्वित केनाइ नै बिसरैत छथिन्‍ह।

क्‍लासिकी परम्‍पराक पृष्‍ठभूमि
कोनो भाषाक प्रतिनिधि कथाकार भाषा, साहित्‍य आ समाजक वर्तमानक दबाव ग्रहण करितहुँ प्रतिकारक व्‍यक्तित्‍व राखैत अछि, आ ऐ प्रतिकारेमे मौलिकता छैक। वरिष्‍ठ कथाकार सुभाषचन्‍द्र यादव गामक जिनगी’पर संक्षिप्‍त टिप्‍पणी करैत कहैत छथिन्‍ह-  हुनक कथा घटना बहुलता आ ऋजुसँ युक्त अछि। आब प्रश्‍न ई अछि जे घटना बहुलता तँ कथाक नीक लक्षण नै मानल गेलइ तखन ऐ टिप्‍पणीक की मतलब?
कहानी वा कथा जखन घटना केंद्रित संरचना त्‍यागि क मनोवैज्ञानिकता वा मनोविश्‍लेषण दिस प्रस्‍थान केलक तखन ई मानल गेलइ जे कथाक पहिल चरण समाप्‍त भेलइ आ कथा विकासक दोसर सोपन दिस बढ़ल। मुदा ऐ विकासक साँचाकेँ जगदीशजी सँ जोड़नइ जगदीशजीक संग अन्‍याय होयत, कारण जे जगदीशजी घटना बहुलतापर निर्भर नै छथि। बहुतो कहानी लेखकक कवितामयी व्‍यक्तित्‍व, हुनकर गंभीर मनोविश्‍लेषण आ सक्‍कत विचारसँ लैश अछि
पिछला बाढ़ि‍ मोन पड़तहि देह भुटुकि जाइत अछि। रोइयाँ-रोइयाँ ठाढ़ भऽ जाइत अछि। बाढ़ि‍क विकराल दृश्‍य आँखिक आगू नाचए लगैत अछि। घोड़ोसँ तेज गतिसँ पानि दौगैत। बािढ़यो छोटकी नहि, जुअनकी नहि, बुिढ़या। बुिढ़या रुप बना
नृत्‍य करैत। ककरा कहू बड़की धार आ ककरा कहू छोटकी, सभ अपन-अपन चिन्‍ह-पह‍चिन्‍ह मेटा समुद्र जेकाँ बनि गेल। जेम्‍हर देखू तेम्‍हर पाँक घोराएल पानि, निछोहे दछिन मँुहे दौगल जाइत। कतेक गाम-घर पजेबाक नहि रहने घर-विहीन भ गेल। इनार, पोखरि, बोरिंग, चापाकल, पानिक तरमे डुबकुनियाँ काटए लगल।’
ऐ प्रकृति दृश्‍यकेँ देखल जाओ, प्रकृतिक स्‍वाभाविक लीलादर्पणमे मानवक कठिन भविष्‍य देखाओल गेल अछि। कथामे आगू बाढ़ि‍जनित भुख आ दरिद्रताक मर्मस्‍पर्शी चित्रण अछि। निश्चित रूपेण जगदीशजी मैथिली कथाकेँ क्‍लासिकी परम्‍परा दिस बढ़बैत छथिन्‍ह आ मैथिली कथा एकटा गौरवशाली युगक दुआरिपर अछि।
                                                                                                                                                 
आंचलिकताक भ्रम
कथा संग्रहमे ग्राम्‍य जीवनक विराट उपस्थिति ऐ भ्रमकेँ उत्‍पन्‍न करैत अछि, कि जगदीश जी आंचलिक शैलीक लेखक छथि। तद्भव आ देशज शब्‍दक बाहुल्‍य, एक खास वर्ग वा जातिक ग्राम्‍य जीवनक प्रसंगक बहुविधि चर्चा। चुनवाली’मे चुन बनबएबला मिथिलाक एकटा जातिक संघर्षक चर्चा अछि।
डाॅ. धीरेन्‍द्र वर्मा कहैत छथिन्‍ह- आंचलिकताक सिद्धिक लेल स्‍थानीय दृश्‍य, प्रकृति, जलवायु, पाबनि, लोकगीत, बातचितक विशेष ढ़ंग, मुहावरा, लोकोक्ति, उच्‍चारणक विकृति, आमजनक स्‍वभावगत आ व्‍यवहारगत विशेषता, हुनकर अपन रोमांस, नैतिक मान्‍यता आदिक समावेश अत्‍यंत सतर्कता आ सावधानीसँ कएल जाइछ।’

यदि ऐ मानकपर देखी तखन गामक जिनगीक अधिकांश कथा आंचलिकता दिस झुकाव देखबैत अछि। मुदा ई बात सदिखन स्‍पष्‍ट रहबाके चाही कि मिथिलाक प्रति अनुरक्ति देखेबाक बावजूद ऐ संग्रहक कथा आंचलिक नै अछि। किएक तँ लेखक कोनो कथामे मिथिला अंचलक नायक नै बनेने छथि आ ई विशेषता हिनका किछु-किछु यात्री जीसँ जोड़ैत अछि आ रेणुसँ अलग करैत अछि। ई बात उल्‍लेखनीय अछि कि लेखक मिथिला क्षेत्रक परंपरा, लोकोक्ति, गीत-नाद, नाच तमाशाक वर्णनक प्रति कोनो अतिरिक्‍त राग प्रदर्शित नै करैत छथि। अर्थात ई तत्‍व कथामे ओतबे अछि जते कि कोनो प्रगतिशील लेखकक कृतिमे होइछ। आंचलिकताक एकटा अन्‍य पहलू विचारनीय अछि। मिथिलाक निम्‍न आयवर्ग जीवनक जते प्रभावशाली चित्रण अइठाम अछि, ओ अन्‍यत्र दुर्लभ अछि। आ ई चित्रण जत्‍ते पूर्ण अछि ततबे प्रामाणिक। ऐ दृष्टिसँ चुनवाली ‘रिक्‍साबला हारि-जीतक विश्‍लेषण आवश्‍यक अछि।

जीवन संघर्षक कथाकार
सुभाषचन्‍द्रजी जगदीशजीकेँ जनवादी आ प्रकृतिवादी कथाकार नै मानैत छथिन्‍ह, बल्कि जीवन-संघर्षक कथाकार मानैत छथिन्‍ह। ऐ विचारमे निहित जनवाद आ प्रकृतिवाद सन पारिभाषिक शब्‍दक विवेचनसँ बचैत ई कहब आवश्‍यक अछि जे जगदीश जीक यथार्थवाद कोनो सुपरिभाषित यथार्थवादक साँचामे सेट नै होइत छैक आ सेट करबाक प्रयासो नै करबाक चाही। भारतीय साहित्‍यमे यथार्थवादक एकाधिक मॉडल उपलब्‍ध अछि, आ जगदीश जी ककरो अनुकरण करबाक स्‍थानपर नव मार्ग बनेबाक लेल प्रयासरत छथि।
ग्रामीण जीवनकेँ विषय बनेबाक लेल पाथेर पांचाली गणदेवतामैला आँचल गोदान सन कतेको क्‍लासिक उपलब्‍ध अछि। ई स्‍पष्‍ट नै अछि कि ओ ऐ मे कोन पढ़ने छथि आ कोन नै, मुदा ई स्‍पष्‍ट अछि कि ओ अपन विशेष दृष्टिसँ स्‍वीकृतकेँ अतिक्रमणक लेल कटिबद्ध छथि। जगदीशजी दुखकेँ गौरवान्वित करबामे विश्‍वास नै करैत छथिन्‍ह, ओ अनंत दुख आ दुखमयी विश्‍वक धारणामे विश्‍वास नै करैत छथिन्‍ह। ओ प्रचण्‍ड आशावादक लेखक छथि, ताहि दुआरे बाढि़, सुखार, अकाल, महामारी आ विभिन्‍न व्‍यक्तिगत आपदाक बीच आदमी जीवैत आ जीतैत छथि।

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