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Saturday, April 7, 2012

आदर्शक उपस्‍थापन- मौलाइल गाछक फूल :: डॉ. योगानन्‍द झा


श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल बहुआयामी रचनाकार छथि‍। कथा, उपन्‍यास, नाटक आदि‍ वि‍भि‍न्न वि‍धामे प्रभूत रचना द्वारा ई आधुनि‍क मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे बेछप स्‍थान बना चुकल छथि‍। मौलाइल गाछक फूल हि‍नक औपन्‍यासि‍क कृति‍ थि‍कनि‍। आदर्शवादी वि‍चारधारासँ ओतप्रोत हि‍नक एहि‍ उपन्‍यासमे मण्‍डलजीक उदात्त सामाजि‍क चि‍न्‍तनक प्रक्षेपण भेल अछि‍।
      एहि‍ उपन्‍यासक अधि‍कांश चरि‍त्र उदार ओ सज्‍जन प्रकृति‍क छथि‍। हुनका लोकनि‍क हृदय पवि‍त्र छनि‍ आ स्‍वार्थ ओ वासनासँ फराक रहि‍ समाज उत्‍थानक हेतु चि‍न्‍तन करैत देखि‍ पड़ैत छथि‍। स्‍वभावत: एहन चरि‍त्र सबहक अनुगुम्‍फनसँ ई उपन्‍यास एक गोट पि‍रष्‍कृत सामाजि‍क चि‍न्‍तनक मार्ग प्रशस्‍त करैत देखि‍ पड़ैत अछि‍।
      एहि‍ उपन्‍यासक केन्‍द्रीय पात्र छथि‍ रमाकान्‍त। उपन्‍यासक अधि‍कांश घटना हि‍नके परि‍त: आघूर्णित होइत अछि‍। ई जमीन्‍दार छथि‍ आ सुभ्‍यस्‍त सेहो। उदार वि‍चार, इमानमे गंभीरता, मनुक्‍खक प्रति‍ सि‍नेह हि‍नक चारि‍त्रि‍क वि‍शि‍ष्‍टता छनि‍। हि‍नकामे ने सूदि‍खोर महाजनक चालि‍ छनि‍ ने धन जमा कएनि‍हार लोकक अमानवीय व्‍यवहारे छनि‍। नीक समाजमे जेना धनकेँ जि‍नगी नहि‍ अपि‍तु जि‍नगीक साधन बुझल जाइत अछि‍, सएह रमाकान्‍तोक परि‍वारमे छनि‍। उपन्‍यासक आरम्‍भहि‍मे हि‍नक उदात्त चरि‍त्रक परि‍चए भेटि‍ जाइत अछि‍। गाममे अकाल पड़ि‍ जाइत छैक। आ लोक सभ अन्न बेत्रेक मरब शुरू कऽ दैत अछि‍। मुदा रमाकान्‍त लग बखारीक बखारी अन्न पड़ल छनि‍। लोकक प्रति‍ सहानुभूति‍सँ द्रवि‍त भऽ रमाकान्‍त अपन बखार फोलि‍ दैत छथि‍ आ काजक बदला अनाज कार्यक्रम शुरू कऽ अपन पोखड़ि‍केँ उरहबा लैत छथि‍। एहि‍सँ एक दि‍स जँ लोककेँ अकर्मण्‍यतापूर्वक खराती अन्न लेबासँ परहेज करबैत छथि‍ तँ दोसर दि‍स अन्नाभावमे लोककेँ मरबासँ बचबैत छथि‍।
      रमाकान्‍तक ई अवधारणा छनि‍ जे संसारक यावन्‍तो मनुक्‍ख अछि‍ सभकेँ जीबाक अधि‍कार छैक। सभकेँ सभसँ सि‍नेह होएवाक चाहि‍ऐक। मुदा जाहि‍ परि‍वेशमे हमरालोकनि‍ जीवि‍ रहल छी, जाहि‍ठाम व्‍यक्‍ति‍गत सम्‍पत्ति‍ आ जबाबदेहीक बीच मनुक्‍ख चलि‍ रहल अछि‍, ओहि‍ठाम सि‍नेह खंडि‍त होएबे करतैक आ सि‍नेह खंडि‍त भेने पारस्‍परि‍क द्वेष ओ लड़ाइ-दंगाकेँ कोनो शक्‍ति‍ रोकि‍ नहि‍ सकैत छैक। तेँ नूतन समाजक नि‍र्माणक हेतु, सामाजि‍क समरसता हेतु त्‍याग भावनाक आवश्‍यकता छैक आ छैक पारस्‍परि‍क सहयोग भावनाक वि‍स्‍तारक आवश्‍यकता। तेँ ओ अपन दू सए बीघा जमीन गामक भूमि‍हीन परि‍वार सबहक बीच वि‍तरणक नि‍र्णए लैत छथि‍ जाहि‍सँ गामक सभ व्‍यक्‍ति‍ सुखी आ सम्‍पन्न भऽ सकथि‍। यद्यपि‍ रमाकान्‍तक एहि‍ प्रकारक अति‍शय उदारता जमीन्‍दारक प्रवृत्ति‍ ओ समसामयि‍क यथार्थक दृष्‍टि‍ये सर्वथा अवि‍श्‍वसनीय प्रतीत होइत अछि‍, तथापि‍ ई उदात्त लेखकि‍य कल्‍पना उपन्‍यासकारक एहि‍ उद्देश्‍यकेँ प्रति‍पादि‍त करैत अछि‍ जे यावत् समाजमे एक दि‍स अति‍ वि‍पन्न आ दोसर दि‍स अति‍ सम्‍पन्न लोकक वास रहत, ताधरि‍ सामाजि‍क समरसताक बात स्‍वप्‍ने बनल रहत।
      रमाकान्‍त उदारताक अति‍रंजि‍त वर्णन उपन्‍यासमे अनेक स्‍थलमे देखि‍ पड़ैत अछि‍ यथा ओ शशि‍शेखर नामक युवकक उच्‍च शि‍क्षाक हेतु सहायता प्रदान करैत छथि‍, गाममे स्‍कूल स्‍थापि‍त होएबा काल शि‍क्षकक भोजनादि‍क व्‍यवस्‍थाक भार अपना पर लऽ लैत छथि‍, टमटमबलाक दु:खि‍ताहि‍ घरवालीक ईलाजक हेतु ओकरा पर्याप्‍त टाका दऽ सहायता करैत छथि‍, आदि‍।
      एहि‍ उपन्‍यासमे मण्‍डलजी मि‍थि‍लाक ग्राम्‍य जीवनमे पसरल धर्मभीरूताक समस्‍याक यथार्थवादी चि‍त्रण कएलनि‍ अछि‍। एहि‍ समस्‍याक चि‍त्रण हेतु ओ सोनेलाल नामक पात्रक अवतारणा करैत छथि‍। सोनेलालक पत्‍नी दु:खि‍त पड़ि‍ जाइत छथि‍न। ओ ओकरा अस्‍पतालमे देखएबाक हेतु अपन जमीन भरनापर दऽ दैत छथि‍। उपचार भेलापर हुनक पत्‍नी स्‍वस्‍थ भऽ जाइत छथि‍न। मुदा ताही क्रममे ओ साधु भण्‍डाराक कबुला कऽ लैत छथि‍। एहि‍ कबुलाकेँ पूर करबाक हेतु साधुक दूटा दल नि‍मंत्रि‍त कएल जाइत छथि‍। हि‍नकालोकनि‍क हेतु सोनेलाल पर्याप्‍त भोज्‍य पदार्थ जुटबैत छथि‍। मुदा साधुक दुनू दलमे एकटा वैष्‍णव सम्‍प्रदायक तथा दोसर कबीरपन्‍थी सम्‍प्रदायक रहैत अछि‍ आ दुनू दल अपन-अपन साम्‍प्रदायि‍क अभि‍वमानसँ ग्रस्‍त रहैत अछि‍ जकर कारणे भण्‍डारामे अनेक वि‍संगति‍ उत्‍पन्न होइ छैक। मुदा सर्वाधि‍क कष्‍टकर स्‍थि‍ति‍ तखन बनैत छैक जखन वैष्‍णव सम्‍प्रदायक महन्‍थ भण्‍डाराक बाद स्‍थानक हेतु एक सए एक, अपना हेतु एक सए एक, भजनि‍या सभक हेतु एकावन-एकावन आ भनसीयाक हेतु एकासी-एकासी टाका दक्षि‍णाक मांग कऽ बैसैत छथि‍। मराभवमे पड़ि‍तहुँ धर्मभीरू सोनेलालकेँ ओ रकम चुकता कऽ देबऽ पड़ैत छनि‍। तत:पर दोसर दल सेहो हुनका ओतबे दक्षि‍णा देबाक हेतु दबाब दैत छनि‍ आ सेहो हुनका चुकता करऽ पड़ैत छनि‍। एहि‍ तरहेँ धर्मभीरू लोक पाखंडी साधु समाज द्वारा कोना लूटल जाइत छथि‍, तकर वर्णन कए उपन्‍यासकार एहि‍ समस्‍याक प्रति‍ लोकदृष्‍टि‍केँ सचेत करबाक उपदेश दैत छथि‍। अवश्‍ये दोसर मंडली द्वारा दक्षि‍णाक रकम घुरा देलासँ सोनेलालकेँ थोड़ैक राहत भेटैत छनि‍ आ ओहि‍ मंडलीक प्रति‍ लोक जगतमे सहानुभूति‍ जगैत छैक।
      मि‍थि‍लाक अनेक लोकव्‍यवहार सेहो लोकजीवनक अभ्‍युन्नति‍मे बाधक रहल अछि‍, ताहू दि‍स मण्‍डलजी संकेत कएलनि‍ अछि‍। एहि‍ हेतु ई शशि‍शेखर नामक पात्रक अवतारणा कएलनि‍ अछि‍। शशि‍शेखर कृषि‍ कओलेजमे प्रवेश पाबि‍ जाइत अछि‍। ओ एहि‍ प्रवेशसँ अपन भावी सुखी जीवनक परि‍कल्‍पना कऽ अत्‍यन्‍त आनन्‍दि‍त होइत अछि‍। ओकर पि‍ता सेहो खेत बेचि‍यो कऽ ओकर पढ़ाइ पूरा करएबाक संकल्‍प लैत छथि‍। मुदा कि‍छु दि‍नक बाद पि‍ता बीमार पड़ि‍ जाइत छथि‍न। शशि‍शेखर खेत बेचि‍यो कऽ हुनक इलाज करबैत छनि‍ मुदा ओ कालकवलि‍त भऽ जाइत छथि‍न। तत:पर अपन बूढ़ि‍ माताक सेवा करैत शशि‍शेखर अपन आगूक पढ़ाइ कोना जारी राखि‍ सकत ताहि‍पर बि‍न्‍दु वि‍चार कएने खेते बेि‍च कऽ पि‍ताक श्राद्धो कऽ लैत अछि‍। परि‍णामत: ओकरा कओलेज छोड़बाक बाध्‍यता होइत छैक। एहि‍ तरहेँ मण्‍डलजी लोकजगतमे व्‍याप्‍त अन्‍धवि‍श्‍वास ओ लोकव्‍यवहारसँ बचले उत्तर समाजक कल्‍याणक दि‍शानि‍र्देश करबैत देखि‍ पड़ैत छथि‍। अन्‍तत: रमाकान्‍तक सहायतासँ शशि‍शेखरकेँ अपन पढ़ाइ पूर करबाक संबल भेटि‍ जाइत छैक मुदा श्राद्धादि‍त लोकव्‍यवहारक समस्‍याक प्रति‍ जुगुप्‍साक भाव अवश्‍य उत्‍पन्न भऽ जाइत छैक।
      अशि‍क्षा ग्राम्‍यजीवनक दैन्‍यक अन्‍यतम कारण अछि‍ एखनो मि‍थि‍लाक नि‍म्‍नवर्गीय समाजमे शि‍क्षाक सर्वथा अभाव छैक जकर कारणे सामाजि‍क अन्नति‍ बाधि‍क छैक। मुदा अहू समस्‍याक समाधान सामाजि‍क लोकनि‍क जागरूकतासँ संभव छैक। मसोमातक दान कएल जमीनपर वि‍द्यालयक स्‍थापना, हीरानन्‍द द्वारा बौएलाल ओ बौएलाल द्वारा सुमि‍त्राकेँ शि‍क्षि‍त कऽ ओकरा सबहक स्‍तरीय जीवनक चि‍त्रण मौलाइल गाछक फूल उपन्‍यासक एही उद्धेश्‍यपरक दृष्‍टि‍कोणक परि‍चायक थि‍क।
      आजुक ग्राम्‍य समाजक ई वि‍डम्‍बना छैक जे पढ़ल-लि‍खल धि‍यापुता पाइ कमएबाक अन्‍ध दौड़मे शामि‍ल भऽ गेल छैक। तेँ ओ सभ अपन गाम-समाजकेँ छोड़ि‍ हजारो मीलक दूरीपर नोकरी करऽ चलि‍ जाइत छैक। परि‍णामत: बूढ़ माता-पि‍ताक परि‍चर्या कएनि‍हार केओ रहि‍ नहि‍ पबैत छैक। पारि‍वारि‍क वि‍घटनक फलस्‍वरूप सामाजि‍क जगतमे पसरल एहि‍ वि‍संगति‍क कथा रमाकान्‍त ओ हुनक डाक्‍टर पुत्र सबहक कथामे भेटैत अछि‍। मण्‍डलजी एहू वि‍डम्‍बनासँ समाजकेँ बचबाक संकेत एहि‍ उपन्‍यासक माध्‍यमे कएलनि‍ अछि‍। हुनक भावना सुबुधक एहि‍ उक्‍ति‍मे साकार भेल अछि‍- आइक जे एकांगी परि‍वार अछि‍ ओ कुम्‍हारक घराड़ी जकाँ बनि‍ गेल अछि‍। बाप-माए कत्तौ, बेटा-पुतोहु कत्तौ आ धि‍या-पुता कत्तौ रहऽ लागल अछि‍। मानवीय सि‍नेह नष्‍ट भऽ रहल अछि‍। यद्यपि‍ ई भावना कृषक युगीन होएबाक कारणे साम्‍प्रति‍क यथार्थक दृष्‍टि‍ जे पुरातन पद्धति‍क अछि‍ तथापि‍ एकटा वैचारि‍क द्वन्‍द्वकेँ ठाढ़ करैत अछि‍।
      मण्‍डलजी रमाकान्‍तक दुनू डाक्‍टर पुत्रक मद्रासमे नोकरी करबाक लाथे कि‍छु ग्रामेतर समस्‍या सबहक चि‍त्रण सेहो कएलनि‍ अछि‍। एहि‍मे सर्वाधि‍क प्रमुख अछि‍ धनलि‍प्‍सामे व्‍यस्‍त समाजक बेचैनी। महेन्‍द्रक एहि‍ कथनसँ ई प्रति‍भासि‍त होइत अछि‍ जे ग्रामेतर समाजमे अत्‍यधि‍क सुवि‍धा सम्‍पन्न लोकोक जीवन असामान्‍य भऽ गेल छैक- अपनो सोचै छी जे एते कमाइ छी, मुदा िदन राति‍ खटैत-खटैत चैन नहि‍ भऽ पबैत अछि‍। कोन सुखक पाछू बेहाल छी से बुझि‍ये ने रहल छी। टी.भी. घरमे अछि‍, मुदा देखैक समये ने भेटैत अछि‍। खाइले बैसै छी तँ चि‍ड़ै जकाँ दू-चारि‍ कौर खाइत-खाइत मन उड़ि‍ जाइत अछि‍ जे फल्‍लांकेँ समए देने छि‍ऐक, नहि‍ जाएब तँ आमदनी कमि‍ जाएत। तहि‍ना सुतइयोमे होइत अछि‍। मुदा एते फ्रीसानीक लाभ की भेटैत अछि‍? सि‍र्फ पाइ। की पाइये जि‍नगी छि‍ऐक?
      एतावता मौलाइल गाछक फूलमे लोकजीवनक वि‍वि‍ध समस्‍या ओ तकर समाधानक मार्ग तकबाक प्रयत्‍न भेल अछि‍। अपन जि‍नगीकेँ जि‍नगी देखैत परि‍वार, समाजक जि‍नगी देखब जि‍नगी थि‍क। मण्‍डल जीक आदर्शवादी चि‍न्‍तनक रूपमे प्रति‍फलि‍त भेल अछि‍। प्राय: एही तथ्‍यकेँ ध्‍यानमे रखैत महेन्‍द्र द्वारा गामहि‍मे स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र स्‍थापना कऽ वि‍चार अभि‍व्‍यक्‍त कराओल गेल अछि‍ जतऽ ओकर परि‍वारक एकटा डाक्‍टर नि‍त्‍य मरीजक सेवा, ग्रामवासीक सेवाक हेतु उपलब्‍ध रहि‍तैक।
      सामाजि‍क समन्‍वयक प्रति‍ पक्षधरता एहि‍ उपन्‍यासमे भजुआक कथामे भेटैत अछि‍। जाति‍-पाति‍मे बँटल ग्राम्‍य समाजमे छूताछूत, ँच नीचक वि‍चार अदौसँ रहलैक अछि‍। गाँधीजीक स्‍वतंत्रता आन्‍दोलनक समए अछूतोद्धारक प्रति‍ हुनक चेष्‍टा ओ स्‍वातंत्र्योत्तर कालमे समाजक बदलैत रीति‍-नीति‍क कारणे यद्यपि‍ ग्रामो समाजमे अस्‍पृश्‍यताक प्रति‍ भाव बदललैक अछि‍ तथापि‍ सहभोजनक दृष्‍टि‍ये अखनो जाति‍-पाति‍क बीच दूरी बनले छैक। रमाकान्‍त द्वारा डोम भजुआक ओहि‍ठाम जाए भोजन करबाक कथाक माध्‍यमे मण्‍डलजी समाजक एहि‍ समस्‍याक आदर्शपूर्ण समाधान देखौलनि‍ अछि‍। अवश्‍ये एहि‍मे इहो संकेत देल गेल अछि‍ जे समरसताक बाधक तथाकथि‍त अस्‍पृश्‍य लोकनि‍क शुचि‍ताक प्रति‍ प्रतबद्धताक अभाव रहलनि‍ अछि‍। जे अशि‍क्षाजन्‍य अछि‍ तथा शि‍क्षा द्वारा ओकरो बदलल जा सकैत छैक।
      मण्‍डलजीक एहि उपन्‍यासमे नारी वि‍षयक चि‍न्‍तनमे प्राचीन भारतीय नारीलोकनि‍क आदर्शेक उपस्‍थापन भेल अछि‍। हि‍नक अधि‍कांश नारी पात्र यथा रधि‍या, श्‍यामा, सुगि‍या, सोनेलालक बहि‍न आदि‍मे पति‍परायणा भारतीय नारीक चि‍त्रांकन भेल अछि‍। नारी-शि‍क्षाक प्रति‍बद्धता सेहो मण्‍डलजीक एहि‍ उपन्‍यासमे सुमि‍त्राक माध्‍यमे अभि‍व्‍यक्र भेल अछि‍ जे पढ़ि‍-लि‍खि‍ कऽ नीक परि‍चारि‍काक रूपमे गामक हेतु एकटा सम्‍पत्ति‍ बनि‍ जाइत अछि‍। सुजाता सेहो एहने नारी पात्र छथि‍ जे श्रमि‍क परि‍वारमे जन्‍म लेलाक बादो महेन्‍द्रक सहायता पाबि‍ डाक्‍टरनी बनि‍ जाइत छथि‍ आ महेन्‍द्रक भावहु सेहो भऽ जाइत छथि‍। मुदा शि‍क्षि‍ताक संगहि‍ मंडलजी जाहि‍ नारीस्‍वरूपक परि‍कल्‍पना एहि‍ उपन्‍यासमे रूपायि‍त कएलनि‍ अछि‍, से थि‍क नारीक सबला रूप। नारीक एहि‍ स्‍वरूपक चि‍त्रांकन सि‍ति‍याक चरि‍त्रमे भेल अछि‍। ओ नहि‍ केवल अपन इज्‍जति‍पर हाथ उठौनि‍हार ललबाकेँ थूरि‍ कऽ राखि‍ दैत अछि‍ अपि‍तु जखन ललबाक गामक लोक ओकरा गामपर आक्रमण कऽ दैत छैक, तँ नारीलोकनि‍क सेनानायि‍का बनि‍ ओकरो सभकेँ परास्‍त कऽ दैत अछि‍।
      स्‍वातंत्र्योत्तर भारतमे भ्रष्‍टाचार एक गोट कोढ़क रूपमे देखि‍ पड़ैत अछि‍ जे राष्‍ट्रीय जीवनकेँ कुण्‍ठि‍त जीवन जीबाक बाध्‍यता होइत छैक। मास्‍टरक बहालीमे हीरानन्‍दक आक्रोशक माध्‍यमे मण्‍डलजी सरकारी स्‍तरपर होइत भ्रष्‍टाचारक यथार्थकेँ अभि‍व्‍यक्‍ति‍ प्रदान कएलनि‍ अछि‍।
      मि‍थि‍लाक आर्थिक समृद्धि‍क हेतु एहि‍ठाम जलकरक सदुपयोग करबाक चि‍न्‍तन सेहो एहि‍ उपन्‍यासमे अभि‍व्‍यक्त भेल अछि‍।
      मौलाइल गाछक फूकक भाषा अत्‍यन्‍त सरल, सहज ओ गमैया मैथि‍ली थि‍क। मण्‍डलजी अपन कल्‍पि‍त संसारकेँ मूर्त्त, वि‍श्‍वसनीय ओ सजीव रूपमे प्रस्‍तुत करबाक हेतु लेखनक अनेक प्रवि‍धि‍केँ एहि‍ उपन्‍यासमे समाहि‍त कएने देखि‍ पड़ैत छथि‍। अनेक ठाम हि‍नक नाटकीय भाषा प्रयोग अत्‍यन्‍त तीब्रता ओ सहजताक संग भेल अछि‍, यथा-
  की कहैले ऐहल?
  नत दैले एलौं।
  कोन काज छि‍अह?
  काज-ताज नै कोनो छी। ओहि‍ना अहाँ चारू गोरेकेँ खुअबैक वि‍चार भेल इत्‍यादि‍।
      अनेकठाम ई संस्‍मरणात्‍मक भाषाक सुष्‍ठु प्रयोग कएने छथि‍ यथा- एहि‍ गाममे पहि‍ने हम्‍मर जाति‍ नै रहए। मुदा डोमक काज तँ सभ गामेमे जनमसँ मरन धरि‍ रहै छै। हमरा पुरखाक घर गोनबा रहै। पूभरसँ कोशी अबैत-अबैत हमरो गाम लग चलि‍ आएल। अखार चढ़ि‍ते कोसी फुलेलै। पहि‍लुके उझूममे तेहेन बाढ़ि‍ चलि‍ आएल जे बाधक कोन गप्‍प जे घरो सभमे पानि‍ ढूकि‍ गेल। तीन-दि‍न तक ने मालजाल घरसँ बहराएल आ ने लोके। पीह-पाह करैत सभ समए बि‍तौलक। मगर पहि‍लुका बाढ़ि‍ रहै, तेसरे दि‍न सटकि‍ गेल। इत्‍यादि‍।
      परि‍वेश ओ वातावरणक नि‍र्माणक हेतु मण्‍डलजी अभि‍धा शक्‍ति‍सँ संपुष्‍ट भाषाक प्रयोग द्वारा सटीक ओ वि‍श्‍वसनीय बि‍म्‍ब ठाढ़ करबामे समर्थ देखि‍ पड़ैत छथि‍ यथा- दू साल रौदीक उपरान्‍त अखाढ़। गारमीसँ जेहने दि‍न ओहने राति‍। भरि‍-भरि‍ राति‍ बीअनि‍ हौँकि‍-हौँकि‍ लोक सभ बि‍तबैत। सुतली राति‍मे उठि‍-उठि‍ पानि‍ पीबए पड़ैत। भोर होइते घाम उग्र रूप पकड़ि‍ लैत। जहि‍ना कि‍यो ककरो मारैले लग पहुँचि‍ जाइत, तहि‍ना सुरूजो लग आबि‍ गेलाह। रस्‍ता-पेराक माटि‍ सि‍मेंट जकाँ सक्कत भऽ गेल अछि‍। इत्‍यादि‍।
      पात्रक परि‍चय दैत काल मण्‍डलजी ओकर रूपरेखा, वेश भूषा, आयु आदि‍क वर्णन अनेक ठाम ओहि‍ पात्रक ठोस व्‍यक्‍ति‍त्‍वकेँ अभि‍व्‍यक्त करबाक हेतु कएलनि‍ अछि‍। मुदा एहि‍ प्रकारक वर्णनक प्रति‍ हुनका प्रति‍बद्धता नहि‍ देखि‍ पड़ैछ। तथापि‍ जतऽ कतहु ओ पात्रक मनोभावक वर्णन कएने छथि‍ ओहि‍ठाम हुनक भाषा वि‍श्‍लेषणात्‍मक प्रकृति‍क देखि‍ पड़ैत अछि‍ जाहि‍सँ पात्रक हृदयगत भावक प्रति‍ पाठककेँ सुनि‍श्‍चि‍त आकलनक अवसर भेटि‍ जाइत छनि‍, यथा- ब्रह्मचारी जीक बात सुनि‍ रमाकान्‍तकेँ धनक प्रति‍ मोहभंग हुअए लगलनि‍। सोचए लगलाह जे हमरो दू सए बीघा जमीन अछि‍, ओते जमीनक कोन प्रयोजन अछि‍। जँ ओहि‍ जमीनकेँ नि‍र्भूमि‍क बीच बाँटि‍ दि‍ऐक तँ कते परि‍वार आ कत्ते लोक सुख-चैनसँ जि‍नगी जीबै लागत। जकरा लेल जमीन रखने छी ओ तँ अपने तते कमाइ छथि‍ जे ढेरि‍औने छथि‍। अदौसँ मि‍थि‍लाक ति‍यागी महापुरूषक राज रहल, कि‍एक ने हमहूँ ओहि‍ परम्‍पराकेँ अपना, परम्‍पराकेँ पुन:र्जीवि‍त कऽ दि‍ऐक।
      एहि‍ तरहेँ मौलाइल गाछक फूलमे भाषाक कुशल ओ रचनात्‍मक प्रयोग भेल अछि‍ जाहि‍सँ वर्णनमे सटीकता, सहजता, बि‍म्‍बधर्मिता, स्‍पष्‍टता ओ मनोवैज्ञानि‍क वि‍श्‍लेषणक क्षमता प्रदर्शित होइत अछि‍। अपन गुणक कारणेँ मण्‍डलजीक कथासंसारमे वि‍श्‍वसनीयता देखि‍ पड़ैत अछि‍ आ ओ अपन प्रौढ़ वि‍चार ओ अनुभूति‍केँ पाठकीय मानसमे स्‍थानान्‍तरि‍त करबामे सफल भेल छथि‍।
      अन्‍तत: महेन्‍द्रक उक्‍ति‍- समाज रूपी गाछ मौला गेल अछि‍, ओहि‍मे तामि‍, कोड़ि‍, पटा नव जि‍नगी देबाक अछि‍ जाहि‍सँ ओहि‍मे फूल लागत आ अनवरत फुलाइत रहतमे उपन्‍यासक उद्धेश्‍य स्‍फुट भेल अछि‍। स्‍वभावत: मण्‍डलजी एहि‍ कृति‍क माध्‍यमे ग्राम ओ ग्रामेतर जीवनक संगहि‍ व्‍यक्‍ति‍, परि‍वार, समाज ओ राष्‍ट्रक अभ्‍युन्‍नति‍क हेतु एकर प्रत्‍येक इकाइकेँ त्‍याग ओ त्‍याग ओ समर्पणक भावनासँ ओत प्रोत रहबाक आदर्श जीवन पद्धति‍ अपनयबाक संदेश देलनि‍ अछि‍। हि‍नक ई संदेश सर्वे भवन्‍तु सुखि‍न: सर्वे सन्‍तु नि‍रामया:, सर्वे भद्राणि‍ पश्‍यन्‍तु मा कश्‍चि‍द् दु:खभाग भवेत्क भावनाक पुन: उपस्‍थापन थि‍क।

कबि‍लपुर लहेरि‍यासराय
दरभंगा-८४६००१

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