Pages

Saturday, April 7, 2012

गजेन्द्र ठाकुरक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पर डॉ. उदय नारायण सिंह नचिकेता


गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डमे विभाजित कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एकहि संग कठिनसँ कठिन विषयपर सुचिन्तित विश्लेषण भेटत आ उपन्यासक जटिल कथा केर गुत्थी सेहो भेटत सुलझाएल आ संगहि प्रेमक कविता आ प्रकृतिक गीत सेहो। सात खण्ड एहि प्रकार छन्हि-

खण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना
खण्ड-२ उपन्यास-(सहस्रबाढ़नि)
खण्ड-३ पद्य-संग्रह-(सहस्त्राब्दीक चौपड़पर)
खण्ड-४ कथा-गल्प संग्रह (गल्प गुच्छ)
खण्ड-५ नाटक-(संकर्षण)
खण्ड-६ महाकाव्य- (१. त्वञ्चाहञ्च आ २. असञ्जाति मन )
खण्ड-७ बालमंडली किशोर-जगत

सभसँ महत्वपूर्ण बात ई जे सभ विषयक पाठकक आ पाठिकाक लेल एतए किछु ने किछु भेटबे करत । पुछलियन्हि जे एहन संरचना किएक तँ जे किछु कहलन्हि ताहिसँ लागल जे ई हिन्दी केर तार-सप्तक आ तमिलक कुरुक्षेत्रम् केर बीच मे कतहु अपन जगह बनेबाक प्रयास कऽ रहल छथि । फराक एतबे जे हिन्दी आ तमिल मे कएक गोटे मिलि कए संकलित भेल छथि एकटा जिल्दमे, आ एतए कएक लेखकक द्वारा विभिन्न विधा केर रचना नहि रहि हिनके अपन रचना पोथीमे उपलब्ध कराओल गेल अछि ।


कतेको पंक्ति भरिसक पाठकक मोनमे ग्रंथित-मुद्रित भऽ जएतन्हि, जेना कि


“ढहैत भावनाक देबाल
खाम्ह अदृढ़ताक ठाढ़

आकांक्षाक बखारी अछि भरल
प्रतीक बनि ठाढ़
घरमे राखल हिमाल-लकड़ीक मन्दिर आकि
ओसारापर राखल तुलसीक गाछ
प्रतीक सहृदयताक मात्र”
अथवा , निम्नोक्त पंक्ति-येकेँ लऽ लिअ :

“सुनैत शून्यक दृश्य
प्रकृतिक कैनवासक
हहाइत समुद्रक चित्र

अन्हार खोहक चित्रकलाक पात्रक शब्द
क्यो देखत नहि हमर ई चित्र अन्हार मे
तँ सुनबो तँ करत पात्रक आकांक्षाक स्वर”

मिथिलेक नहि अपितु भारतक कतेको संस्कृतिक प्रभाव देखल जा सकैछ हिनक कथा-कवितामे। एहिसँ मैथिली क्रियाशील रचनाक परिदृश्य आर बढ़ि जाइछ, आ नव-नव चित्र, ध्वनि आ कथानक सामने आबि जाइत अछि ।

कवि कोन मन्दाकिनी केर खोजमे छथि जे कहैत छथि-

“मन्दाकिनी जे आकाश मध्य
देखल आइ पृथ्वीक ऊपर...”


अपन विशाल भ्रमणक छाप लगैछ रचनामे नीक जकाँ प्रतीत होइत अछि । आ आर एकटा बात स्पष्ट अछि कोषकार गजेन्द्र ठाकुर आ रचनाकार गजेन्द्र ठाकुर भिन्न व्यक्ति छथि, व्यक्तित्वमे सेहो फराक... जतए कोशकारितामे सम्पादकत्व तथा टेक्नोलोजी –सँ सम्बन्धित व्यक्तिक छाया भेटिते अछि, मुदा सृजनक मुहुर्तमे से सभटा हेरा जाइत छथि ।

एहिमे सँ कतेको टेक्स्ट ओ रखने छथि इन्टरनेटमे मैथिलीक बढ़ैत
पाठककेँ ध्यानमे राखि, जेना कि विदेह-सदेह अछि http://videha123.wordpress.com/ मे, आ देवनागरी आ तिरहुता दुन्नु लिपिमे । जे क्यो मिथिलाक्षरक प्रेमी छथि तनिका सब लेखेँ तँ ई विरल उपहारे रहत ।
अनेको रचनामे मात्र गोल-मटोल कथे नहि, राजनीतिक भाष्य सेहो लखा दैत अछि। ताहिमे हिनका कोनो हिचकिचाहटि नहि छन्हि। ओना देखल जाए तँ कुरुक्षेत्र क कतेको महारथी छलाह = प्रत्येक वीर-योद्धा अपन-अपन क्षेत्र आ विधाक प्रसिद्ध पारंगद व्यक्ति छलाह,–क्यो कतेको अक्षौहिणी सेनाक संचालनमे, तँ क्यो तीरन्दाजीमे, आदि आदि । सभ जनैत छलाह जे धर्म आ अधर्मक भेद की होइछ मुदा तैयो सभ क्यो जेना आसन्न विपर्यायक सामने निरुपाय भऽ गेल छलाह। आजुक सन्दर्भमे सेहो कथा मे तथा व्याख्यामे एहन परिस्थितिक झलक देखल जाइत अछि । सैह एहि महा-पाठ –क (मेटाटेक्सट) खूबी कहब। नहि तँ ओ कियेक लिखताह- –

“देखैत देशवासीकेँ पछाड़ैत
मंत्र-तंत्रयुक्त दुपहरियामे जागल
गुनधुनी बला स्वप्न
बनैत अछि सभसँ तीव्र धावक
अखरहाक सभसँ फुर्तिगर पहलमान
दमसाइत मालिकक स्वर तोड़ैत छैक ओकर एकान्त

कारिख चित्रित रातिक निन्न
टुटैत-अबैत-टुटैत निन्न आ स्वप्नक तारतम्य
...”


एहि महापाठकेँ एकटा एक्सपेरीमेन्ट केर रूपमे देखी तँ सेहो ठीक , आ सप्तर्षि-मंडलक निचोड़ अथवा सप्त-काण्डमे विभाजित आधुनिक महा काव्य रूपमे देखी तँ सेहो ठीक हएत। जेना पढ़ी , सामग्री एहिमे भरपूर अछि, भरिसक किछु अत्युच्च मानक लागत , आ किछु किनको तत्तेक नहि पसिन्न पड़तन्हि । मुदा एहि ग्रन्थ निचयकेँ पाठक अवश्य स्वागत करताह , आ नवीन लेखक वर्गकेँ एकटा नव दिशा सेहो भेटतन्हि।



मैसूर, ९ जून २००९ उदय नारायण सिंह “नचिकेता”
निदेशक,
भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर

No comments:

Post a Comment