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Saturday, April 7, 2012

समकालीन मैथि‍ली कवि‍ता पर शिव कुमार झा ’टिल्लू’


‘समकालीन मैथि‍ली कवि‍ता’क
समीक्षा
साि‍हत्य अकादमी द्वारा सन् 1961सँ लऽ कऽ 1980 धरि‍ प्रकाशि‍त मैथि‍ली कवि‍ताक बीछल संकलनक प्रकाशन सन् 1988ई.मे भेल अछि‍, एकर शीर्षक देल गेल ‘समकालीन मैथि‍ली कवि‍ता’। सन् 1909मे मि‍थि‍लाक माि‍टपर जन्‍म लेल साहि‍त्‍यकार स्‍व. तंत्रनाथ झासँ लऽ कऽ आधुनि‍क पि‍रहीक कवि‍ श्री सुकान्‍त सोम सहि‍त 21 गोट कवि‍क 68 गोट कवि‍ताक संग्रहक संपादक द्व छथि‍- श्री भीमनाथ झा आ श्री मोहन भारद्वाज। ‘त्रि‍धारा’ आ ‘वीणा’ सन चर्चित कवि‍ता संग्रहक रचयि‍ता भीमनाथ जी मूलत: कवि‍ छथि‍ आ श्री मोहन जी मैि‍थलीक चर्चित समीक्षक मानल जाइत छथि‍।
संग, वि‍चार मूलक, श्रैंगारि‍क वि‍रह, वाल साहि‍त्‍य आ देशकालक दशापर आधारि‍त रचनाकेँ प्राथमि‍कता देल गेल। प्रस्‍तावनामे उल्‍लेख कएल गेल जे पहि‍ने मात्र पंद्रह गोट कवि‍क रचना संकलन करवाक छल, मुदा वि‍छवामे कठि‍नता कारणेँ एकरा 21 धरि‍ कऽ देल गेल। आव प्रश्‍न उठैत अछि‍ जे कवि‍क संख्‍या 21 आ कवि‍ताक गणना 68। वीस खर्खक जे परि‍धि‍ बनाओल गेल ओहि‍मे बहुत रास एहेन रचनाकार छूटल छथि‍ जनि‍क रचना सभ एहि‍ पोथीमे छपल कि‍छु रचनासँ वेसी वि‍म्‍वि‍त मानल जा सकैछ। जौं ‘समकालीन मैथि‍ली कवि‍’ शीर्षक रहि‍तए तँ प्रासंगि‍क मानल जा सकैत छल, परंच कवि‍ता-समकालीन लि‍खल गेल आ कि‍छु चर्चित कवि‍ताकेँ कात कऽ देल गेल ई सर्वथा भ्रामक। संपादक मंडल कवि‍ताक गणना बढ़ा सकैत छलाह, कि‍एक तँ कि‍छु कवि‍क चारि‍-चारि‍ रचना छपल अछि‍ मायाबावूक तँ पाँच गोट कवि‍ता देल गेल। मायाबावूक रचनासँ कोनो गति‍रोध नहि‍ मुदा जौं कि‍छु चर्चित कवि‍ता छुटि‍ गेल छल तँ मायाबावूक संग-संग अन्‍य रचनाकारक छपल कवि‍ताक गणना कम कएल जा सकैत छल। मैथि‍ली भाषाक दुर्भाग्‍य मानल जाए कि‍ एहि‍ संग्रहमे समाजक मुख्‍य धारसँ कात लागल रचनाकारक संग-संग कवयि‍त्री‍ सबहक एकोटा रचना नहि‍ देल गेल। मैथि‍लीक चर्चित कवयि‍त्री डाॅ शेफालि‍का वर्मा जीक कवि‍ता संग्रह वि‍प्रलब्‍धा 1974ई.मे प्रकाशीत भेल। हुनक पहि‍ल कवि‍ता ‘पावस प्रतीक्षा’ 1965ई.मे मि‍थि‍ला मि‍ि‍हरमे छपल छल। श्रीमती सुभद्रा सि‍ंह ‘पाध्‍या’ 1970 दशकमे मैि‍थलीक चर्चित कवयि‍त्री छलीह। श्रमती श्‍यामा देवी, श्रीमती इलारानी सि‍ंह सन् मॉजल कवयित्रीकेँ वि‍सरब आश्‍चर्य जनक अछि‍। ‘समय रूपी दर्पणमे’ कवि‍ताक कवि‍ गोपेशजी, हे भाई’ कवि‍ताक कवि‍ फजलुर रहमान हाशमी जी, ‘कोइली’ शीर्षक कवि‍ताक कवि‍ श्री चन्‍द्रभानु सि‍ंह जी, बालुक करेजपर गीतक रचनाकार श्री वि‍लट पासवान वि‍हंगम, जागरण गान, माला कवि‍ स्‍व. काली कान्‍त झा बूच सन रचनाकारक कवि‍ता सबहक प्रासंगि‍कतापर प्रश्‍नचि‍न्‍ह लगाएव उचि‍त नहि‍। श्री भीमनाथ बावू आ भारद्वाज जी सन पारखी लोक एहि‍ रचनाकेँ कोना वि‍सरि‍ गेलनि‍! भऽ सकैत अछि‍ कोनो अपरि‍हार्य परि‍स्‍थि‍ति‍ भेल होनि‍।
एहि‍ लेल संपादक मंडलक पूर्वाग्रह नहि‍ मानल जा सकैत अछि‍, कि‍एक तँ भीमनाथ बाबू प्रायश्‍चि‍त स्‍वरूप अपन लि‍खल कवि‍ता सेहो एहि‍ संकलनमे नहि‍ देलनि‍, जखन कि‍ ओ मैथि‍लीक प्रांजल कवि‍ छथि‍।
कवि‍ताक श्री गणेश तंत्रनाथ जी लि‍खि‍त कवि‍ता ‘प्रायणालाप’ शीर्षक कवि‍तासँ कएल गेल अछि‍। स्‍मृति‍ रेखांकनक वि‍षय वस्‍तुमे एकातक वेदना हृदय स्‍पर्शी अछि‍। जीवन संग्रामक रणभूमि‍मे कवि‍ एकसरि‍ ठाढ़ छथि‍, सभ कि‍छु अछि‍, मुदा आत्‍माक सगरो स्‍थान रि‍क्‍त, ककरो स्‍मृति‍क शेष-अशेष व्‍यथामे तीजि‍-भि‍जि‍ गेल छनि‍। श्रैंगारि‍क वेलाक अवसान भेलापर वि‍रह मर्मस्‍पर्शी होइत अछि‍, मुदा ई तँ जीवनक गति‍ थि‍क। नि‍ष्‍कर्षत: ई कवि‍ता तृण-तृणकेँ छुबैत अछि‍।
सुमन जी मैथि‍लीक तत्‍सम् मि‍श्रि‍त काव्‍यधाराक उन्नयक कवि‍ छथि‍। प्रकृति‍ पूजनक वि‍षय वस्‍तुक परि‍पेक्ष्‍यमे वसुन्‍धराक महि‍माक गुणगान ‘पूजन-उपादान’ शीर्षक कवि‍तामे कएल गेल अछि‍। संसारक अस्‍ति‍त्‍व धरतीक वि‍नु अकल्‍पनीय अछि‍। अपन हृदयकेँ रवि‍ तापसँ जाड़ि‍ भाफ उत्‍पन्न कऽ मॉ धरि‍त्री संसारकेँ जल बून प्रदान करैत छथि‍।
’परमारथकेँ कारणे साधुन बना शरीर’ जकाँ पृथ्‍वी मात्र दोसरक लेल अपन अस्‍ति‍त्‍वकेँ जीवन्‍त कएने छथि‍। ‘भीक्षा-पात्र शीर्षक कवि‍तामे सुमन जी नीति‍ मूलक वि‍चारसँ समाजकेँ डबडब करवाक प्रयास कऽ रहल छथि‍। व्‍यष्‍टि‍सँ समष्‍टि‍क नि‍र्माण होइत अछि‍, व्‍यक्‍ति‍सँ समाजक नि‍र्माण होइत अछि‍। समाजक वि‍ना व्‍यक्‍ति‍क अस्‍ति‍त्‍व क्षीण ठीक ओहि‍ना व्‍यक्‍ति‍क बि‍नु समाजक कल्‍पनो टा नहि‍ कएल जा सकैत अछि‍। दि‍वस-रात्रि‍, नव-पुरातन, सनातन-नूतनता, सुख-दुख ई सभटा जीवन मूलक अवस्‍था थि‍क, एक बि‍नु दोसर अस्‍ति‍त्‍व वि‍हीन। हि‍न्‍दी साहि‍त्‍यमे अवि‍स्‍मरणीय कवि‍ता स्‍व. आरसी बावूक लि‍खल ‘जीवन का झरना’ शीर्षक कवि‍तासँ एहि‍ भि‍क्षा-पात्रक वि‍षय वस्‍तु मि‍लैत-जुलैत अछि‍, परंच वि‍श्‍लेषण वि‍लग अछि‍।
‘जा रहल छी’ कवि‍ता सुमन जीक कवि‍ताक पुष्‍पवाटि‍कामे खि‍लोओल एकटा महत्‍वपूर्ण कवि‍ता अछि‍। अपन प्राचीन सभ्‍यता ओ संस्‍कृति‍क महत्‍वपूर्ण अध्‍यायसँ वर्त्तमान अवस्‍थाक तुलना नीक वुझना जाइत अछि‍। हमर इति‍हास वि‍लक्षण अछि‍। श्री कृष्‍ण सत्‍यक रक्षाक लेल पार्थक सारथी बनि‍ गीताक उपदेश देलनि‍। व्‍यक्‍ति‍त्‍व मान नहि‍ बचि‍ सकैत अछि‍ जा धरि‍ राष्‍ट्रमानक भावना जन-जनमे जागृत नहि‍ हएत। वर्तमान समाजमे महाराणा प्रताप सन समर्पित व्‍यक्‍ति‍क अभाव अछि‍ तेँ मानसि‍ंह सन मानव अपन कुकर्मक शंखनाद कऽ रहल अछि‍। बुद्धि‍ कौशलसँ परि‍पूर्ण हमर भूमि‍ बुद्धि‍हीन भऽ गेल। समाजमे चाेरि‍ बजार व्‍याप्‍त अछि‍। कवि‍ एहि‍सँ हतोत्‍साहि‍त नहि‍ छथि‍। समाजमे क्रांति‍क शंखनाद कऽ अधर्मी तत्‍व सभकेँ चेता रहल छथि‍। एहि‍ कवि‍ताकेँ ‘योग धर्मक क्रांति‍ गीत’ मानल जा सकैत अछि‍।
मैथि‍ली साहि‍त्‍यक काव्‍य रूपी नौकाक पतवारि‍ जौं ‘यात्री’क हाथमे मानल जाए तँ कोनो अति‍शयोक्‍ति‍ नहि‍ हएत। कवि‍ चूड़ामणि‍ मधुपक पश्‍चात् मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे यात्री सभसँ वेसी जनप्रि‍य कवि‍ मानल जाइत अछि‍। एकर सभसँ महत्‍वपूर्ण कारण अछि‍ हुनक ‘वि‍षय वस्‍तुक चयन’। 1968ई.मे हुनक कवि‍ता संग्रह ‘पत्रहीन नग्‍न गाछक’ लेल हुनक साहि‍त्‍य अकादमी पुरस्‍कार देल गेल। ओना ‘चि‍त्रा हुनक सभसँ प्रसि‍द्ध कवि‍ता संग्रह मानल जा सकैछ जकर प्रकाशन बहुत पहि‍ने भेल छल। प्रस्‍तुत संकलनमे यात्री जीक पाँच गोट कवि‍ता देल गेल अछि‍। ‘पि‍ता-पुत्र संवाद’ कवि‍ता पत्रहीन नग्‍न गाछसँ लेल गेल अछि‍। कवि‍ताक भूमि‍का गणपति‍ आ श्री शि‍वक संवादक रूपेँ लेल गेल मुदा परि‍पेक्ष्‍य अति‍ गूढ़ संगहि‍ प्रासंगि‍क। शंकर गजाननसँ कुण्‍ठा, त्रास आ मृत्‍युवोधक लीलाक वि‍षयमे पूछैत छथि‍ तँ लम्‍बोदरक उत्तर छन्‍हि‍ जे स्‍वयं एहि‍ परि‍धि‍सँ दूर रमणीय स्‍थानपर बैसल हो ओ कोना बूझि‍ सकैत अछि‍? व्‍यथा वएह बूझत जे स्‍वयं व्‍यथि‍त भेल हुए वा वर्त्तमानमे अि‍छ। माए चुप करएवाक प्रयास करैत छथि। यात्री जी साम्‍यवादी वि‍चारधाराकेँ आत्‍मामे समाहि‍त कएने छथि‍। तेँ अधमक व्‍यथाकेँ कतहु ने कतहुँ नीति‍सँ जोड़ि‍ दैत छथि‍। मैथि‍ली भाषाक संग ई वि‍डंबना रहल अछि‍ जे शब्‍द वि‍न्‍यास महि‍मा मंडि‍त होइत अछि‍ वि‍षय-वस्‍तु दि‍श पाठक वा समीक्षक वि‍शेष ध्‍यान नहि‍ दैत छथि‍।
यात्री जी कवि‍ता सबहक शब्‍द-शब्‍दमे संत्रास अनायास भेट जाइत अछि‍। ‘भोरे-भोर’ कवि‍तामे प्रकृति‍क मनोरम रूपक बहाने यात्रीजी शस्‍य-श्‍यामला भूमि‍क महि‍माक गुणगान करैत छथि‍। ‘भोरे भोर आएल छी धाङि‍ पथारक मोती’क तात्‍पर्य अछि‍ जे हमर भूमि‍ हरि‍यर अन्नसँ भरल अछि‍। माघ मास घास, पात, अन्न, साग, तरकारीसँ खेत पथार सजल रहैत अछि‍।
कवि‍क दृष्‍टि‍ आदि‍त्‍यक रश्‍मि‍सँ तीक्ष्‍ण होइत अछि‍। एकर प्रमाण यात्री जीकेँ ‘कंकाले-कंकाल’ शीर्षक कवि‍तामे भेटैत अछि‍।
कंकालक आरि‍मे कवि‍ की कहऽ चाहैत छथि‍ एकर वि‍श्‍लेषण करव साधारण नहि‍। वि‍षय वस्‍तुसँ यएह बुझना जाइत अछि‍ जे समाजमे लोक अपन स्‍वार्थकेँ वि‍द्ध करवाक लेल दोसरक नाश तक कऽ दैत छथि‍। बाल, वृद्ध, रोगी, नि‍रोग ककरोसँ कोनो श्रद्धा वा दया नहि‍। अपन देश कृषि‍ प्रधान अछि‍ तेँ पावस-प्रतीक्षा सभकेँ रहैत अछि‍। ‘साओन’ शीर्षक कवि‍तामे कवि‍ पावस ऋृतुक आगमन मास साओनक वरखाक संग-संग सहलेस पूजा आ नागपंचमीक वर्णन करैत छथि‍। ई मास प्रणयक वि‍हंगम मास सेहो मानल जाइत अछि‍। यात्री जी सन वैरागी सेहो एहि‍ मासक माधुर्यसँ नहि‍ बचि‍ सकलाह। राधाक उतापक वहाने स्‍वयं नन्‍द कि‍शोर बनि‍ गेलनि‍। ‘सरि‍ता-सर नि‍र्मल जल सोहा’ – वरखाक पश्‍चात् शरदक अवाहन कवि‍ यात्री ‘ह’ आब भेल वर्षा शि‍र्षक कवि‍ताक माध्‍यमसँ करैत छथि‍। वि‍षय वस्‍तु सामान्‍य मुदा वि‍श्‍लेषण अंशत: नीक बुझना जाइत अछि‍। माटि‍क दीप, पूजाक फूल, सूर्यमुखी सभटा पोथीमे जीवनक गति‍ वा नि‍यति‍क प्रासंगि‍कता प्रवाहमयी अछि‍। एहि‍ संकलनमे ‘जीवन’ कवि‍ताक वि‍म्‍व हुनक हि‍न्‍दी साहि‍त्‍यमे लि‍खल कवि‍ता ‘जीवन का झरना’ सँ मि‍लैत अछि‍। जन्‍म-मृत्‍यु जीबनक सरि‍ताक ई कि‍नार थि‍क, मुदा एकर शक्‍ति‍ अपराजेय मानल जा सकैछ। फूलमे काॅट, अन्नमे भुस्‍सी जीवन सुखक मध्‍य अवांछि‍त तत्‍वक वोध करावैत अछि‍। दूधकेँ महि‍ कऽ घृत बनाओल जाइछ, ठीक ओहि‍ना जीवनमे समग्र तत्‍वकेँ महि‍ लेवाक चाही। एहि‍सँ जन्‍म-मृत्‍युक मध्‍य वेदनाक अनुभव नहि‍ भऽ सकत।
ओ मानव, मानव नहि‍ जकरा मातृभूमि‍क प्रति‍ श्रद्धा नहि‍ हो। राष्‍ट्रभक्‍ति‍ शीर्षक वि‍म्‍वमे मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे बहुत गीत लि‍खल गेल अछि‍, मुदा आरसी बाबू रचि‍त ‘राष्‍ट्रगीत’मे मातृभूमि‍क प्रति‍ श्रद्धाक संग-संग वर्तमान परि‍स्‍थि‍ति‍क अधम दशापर सेहो प्रहार कएल गेल अछि‍। जखन कंठसँ ध्‍वनि‍ नहि‍ फूटि‍ सकैत अछि‍ तखन शंखक कोन प्रयोजन? पुरानक लेल भ्रमर अनजान वनि‍ गेल, मनमे संताप आ वाहर गीतक गान भऽ रहल अछि‍ ई व्‍याथाक उद्वोधन कऽ रहल अछि‍। समाजक वि‍लगति‍ मानसि‍कतासँ कवि‍ क्षुब्‍ध छथि‍।
व्‍यास जीक कवि‍ता स्‍तरीय होइत अछि‍, मुदा एहि‍ संकलनमे देल गेल कवि‍ताक ‘मेहक बड़द जेकाँ’क वि‍म्‍वमे वैराग्‍य भावक बोध होइत अछि‍। वास्‍तमे मेहक बड़द अपन कर्मगति‍सँ मानव जीवनकेँ तृष्‍णासँ मुक्‍ति‍ दैत अछि‍, परंच अपन कवि‍ताक माध्‍यमसँ व्‍यासजी कर्मक परि‍णाम व्‍याथि‍त रूपेँ प्रकट कएलनि‍। भऽ सकैछ जीवनक कोनो क्‍लेशक वि‍वेचन होथि‍, मुदा एहि‍ प्रकारक कवि‍तासँ समाजकेँ की भेटत, ई अवलोकन करवाक योग्‍य अछि‍। व्‍यासजीक दोसर कवि‍ता ‘मृदु मयंक हंस शि‍शु’मे छायावादक प्रयोग नीक रूपेँ कएल गेल अछि‍। कि‍सुन जीक दुनू कवि‍ता ‘पत्रोतर’ आ वश्‍लेषण मि‍थि‍ला मि‍हि‍रसँ लेल गेल अछि‍। पत्रोत्तर कवि‍तामे पीड़ा भरल मोनमे पत्र प्राप्‍ति‍क पश्‍चात पसरल उद्धीपनक वि‍वेचन नीक लगैत अछि‍। रेलक काट माल डि‍ब्‍बासँ लऽ कऽ अभि‍मन्‍युक बलि‍दान धरि‍क तुलनामे छोहक अद्भुत स्‍पर्शण झकझोरि‍ दैत अछि‍। अमर जी मैथि‍ली साहि‍त्‍यक क्रांति‍वादी कवि‍ छथि‍। हास्‍य हो वा वि‍चारमूलक कवि‍ता, सभठॉ हुनक क्रांति‍वादी स्‍वरसँ कवि‍ताक वि‍षय वस्‍तु ओत प्रोत रहैत अछि‍। ‘युद्ध-एक समाधान’ शीर्षक कवि‍तामे कवि‍ दि‍नकर जीक ‘शक्‍ति‍ और क्षमा’ कवि‍ता स्‍वरूप झलकैत अछि‍। ‘अभि‍यान’ कवि‍तामे हि‍मालयक गुणगानसँ लऽ कऽ योगक बलवंत स्‍वरूपक वि‍श्‍लेषणमे कवि‍क वि‍शाल अध्‍ययनशीलताक झॉकी देखऽमे अबैछ। राजकमल जी मैथि‍लीक चर्चित रचनाकार छथि‍। मैथि‍ली हुअए वा हि‍न्‍दी राजकमल जी कथाकारक रूपेँ वेसी चर्चित भेल छथि‍। मैथि‍लीमे ‘स्‍वरगंधा’ कवि‍ता संग्रहक संग-संग वि‍वि‍ध पत्र पत्रि‍कामे 57गोट कवि‍ता सेहो प्रकाशीत भेल अछि‍। प्रयोगकेँ वादक धरातलपर प्रति‍ष्‍ठि‍त करबाक श्रेय मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे हुनके देल जाइत अछि‍। प्रस्‍तुत संग्रहमे हुनक चारि‍ गोट कवि‍ता देल गेल अछि‍। ‘अथतंत्रक चक्रव्‍यूह’मे कवि‍ की कहए चाहैत छथि‍ ई बूझव क्‍लि‍ष्‍ट अछि‍। कोनो रचनाकारकेँ अनुत्तरि‍त प्रश्‍न छोड़ि‍ कऽ नहि‍ जएबाक चाही। एहि‍सँ पाठकक मध्‍य भ्रमक स्‍थि‍ति‍ उत्‍पन्न भऽ जाइत अछि‍। ‘वासन्‍ती परकि‍या वि‍लास’ सर्वथा समीचीन कवि‍ता मानल जा सकैत अछि‍। समकालीन मैथि‍ली कवि‍तामे एहि‍ कवि‍ताक स्‍थान नि‍श्‍चि‍त रूपेँ स्‍वर्णिम अछि‍। प्रकृति‍क संग-संग जीवनक दर्शन आ श्रंृगारपर आधारि‍त कवि‍तामे भावक उद्वोधन नीक जकाँ कएल गेल अछि‍। ‘मेहावन’ कवि‍ता सेहो नीक लगैत अछि‍। सत्‍य आ नैति‍कताक वि‍म्‍बक मध्‍य हेराएल स्‍वपनपर आधारि‍त कवि‍तामे हृदयगत जुआरि‍ प्रदर्षित कएल गेल।
’पत्‍नी पत्‍नी कथा’ शीर्षक कवि‍ताकेँ सर्वकालीन कवि‍ताक श्रेणीमे राखब उचि‍त नहि‍। एकटा महान कवि‍क साधारण रचना एहि‍ कवि‍ताकेँ मानल जा सकैत अछि‍।
सोमदेव जी मूल रूपेँ उपन्‍यासकार छथि‍, मुदा एकटा कवि‍ता संग्रह ‘कालध्‍वनि‍’ सेहो प्रकाशीत भेल अछि‍। प्रस्‍तुत संग्रहमे हुनक लि‍खल चारू कवि‍ता खाली आकाश, स्‍थायी प्रभातक उद्येश्‍येँ, एकटा अदना सि‍पाही आ मोह शीर्षक कवि‍तासँ प्रमाणि‍त होइत अछि‍ जे ओ युगान्‍तरकारी कवि‍ छथि‍। धीरेन्‍द्र जी उपन्‍यासकार छथि‍, मुदा कि‍छु स्‍फुट कवि‍ता आ गीतक रचना सेहो कएलनि‍ अछि‍। ‘हैंगरमे टॉगल कोट’ हुनक स्‍फुट कवि‍ता अछि‍ जकर प्रथम प्रकाशन मि‍थि‍ला मि‍हि‍रमे भेल। एहि‍ कवि‍तामे चेतनाक दर्शन स्‍वरूप नीक मानल जा सकैछ। मुदा अन्‍य तीनू कवि‍ता बुल बुल गीत, लक्ष्‍य हम्‍मर दूर आ भोरक आशापर कोनो अर्थे सकमालीन श्रेष्‍ठ कवि‍ताक श्रेणीमे नहि‍ मानल जा सकैत अछि‍। वि‍म्‍वक रूपकेँ जौं सम्‍यक मानल जाए तैयो वि‍वेचन सामान्‍य लगैत अछि‍।
मैथि‍ली कवि‍तामे नव कवि‍तावादक प्रणेता मायानंद मि‍श्र जीकेँ मानल जाइत अछि‍। हुनक कवि‍ता संग्रह ‘दि‍शांतर’ 1965ई.मे प्रकाशीत भेल अछि‍। एकर अति‍रि‍क्‍त वि‍वि‍ध पत्र पत्रि‍कामे ओ कवि‍ता आ गीतक सेहो प्रकाशीत होइत रहल अछि‍। प्रस्‍तुत संग्रहमे हुनक लि‍खल चारि‍ गोट कवि‍ता देल गेल अछि‍। एकटा नखशि‍ख: एकटा दृश्‍य, साम्राज्‍यवाद, मानवता आ लालटेन ई सभ लघुकवि‍ता थि‍क। वि‍षय वस्‍तुक संयोजन नीक मुदा वि‍वेचन अस्‍पष्‍ट अछि‍। बि‍रड़ो छोट मुदा प्रासंगि‍क कवि‍ता लागल।
जीवकांत जीक कवि‍ता संसार बड़ वि‍स्‍तृत अछि‍ मुदा सभटा अतुकांत। हि‍नका आशुकवि‍ नहि‍ मानल जा सकैछ। ओना तँ एहि‍ संकलनमे ि‍हनक चारि‍ गोट कवि‍ता देल गेल अछि‍, मुदा मात्र ‘पापक भाेग’ कवि‍ताकेँ प्रासंगि‍क आ समकालीन मैथि‍ली कवि‍ताक श्रेणीमे मानल जा सकैछ। ई कवि‍ता हुनक कवि‍ता संग्रह ‘नाचू हे पृथ्‍वी’सँ लेल गेल अछि‍। ‘आकाश पपि‍याह नहि‍ अछि‍’ सँ शून्‍यवादमे आत्‍मीयताक दर्शन होइत अछि‍।
चि‍न्‍तनशील कवि‍ताक रचनामे कीर्ति नारायण मि‍श्र जीक नाओ सादर लेल जा सकैछ। ‘सीमान्‍त’ कवि‍ता संग्रहक द्वारा कीर्ति जी प्रयोग वादकेँ राजकमल जीक पश्‍चात नव रूप देलनि‍।
एि‍ह संकलनमे प्रकाशीत हि‍नक चारू कवि‍ताक वि‍षय वस्‍तु नीक, वि‍वेचन उपयुक्‍त आ भाषा सरल अछि‍। हि‍नक जन्‍म शोकहारा बरौनीमे भेलनि‍। वर्तमान वि‍हारमे औधोगि‍कीकरणक सभसँ बेसी प्रभाव एहि‍ ठाम भेल। अपन प्राचीन रूपक गामक ि‍स्‍थति‍क तुलना वर्तमान वि‍काशील गामसँ करैत ‘कतेक वर्षक वाद’ कवि‍ताक रचना कएलनि‍। हंसराज जीक चारि‍ गोट कवि‍ता एहि‍ संकलनमे देल गेल अछि‍। पहि‍ल कवि‍ता ‘गंध’ हुनक कालजयी कवि‍ता ि‍थक, प्रवेशि‍का स्‍तरक पूर्व पाठ्यक्रममे ई सेहो छल। प्रस्‍तावनामे एहि‍ कवि‍ताकेँ श्रमशील लोकक चामक गंधकेँ ममतासँ जोड़ल गेल, मुदा ई प्रश्‍न उठैत अछि‍ जे श्रमशील लोकक मध्‍य ‘गंध’ कतऽ सँ अाएत ओ तँ कर्मसँ वातावरण आ समाजमे सुगंध पसारैत छथि‍। जौं चर्म उद्योगक श्रमजीवीकेँ चामक गंध लागल तँ ओहि‍ चामकेँ मूर्त्त रूप नहि‍ देल जा सकैछ, जौं कृषककेँ घामक गंध लागल तँ वसुन्‍धराक कोखि‍ शस्‍य श्‍यामला नहि‍ भऽ सकत। ‘कलंक लि‍प्‍सा’ कवि‍ता सुमधुर आ प्रवाहमयी लागल। चानकेँ साक्षी मानि‍ कऽ लि‍खल गेल कवि‍ता नारीक मान आ पुरूषक स्‍वाभि‍मानक वि‍वेचन तथ्‍यपरक बुझना गेल। ‘नारी’ शीर्षक कवि‍तामे नारी जीवनक व्‍यथाक मार्मिक चि‍त्रण असहज अछि‍। साधन वि‍हीन नारीक जीवन चूल्हि‍क संग प्रारंभ आ इति‍ भऽ जाइत अछि‍। ‘हम तँ’ नोरेसँ चि‍क्कस सनैत छी’मे दीनहीन नारीक मनोदशा वि‍वेचन हृदयकेँ झकझोरि‍ दैत अछि‍। कुलानंद मि‍श्र जीक कवि‍ता ‘स्‍पष्‍टीकरण’मे अपन मनोदशाकेँ कवि‍ नुका लेलनि‍। ‘जड़कालाक साँझ’ कवि‍तामे वि‍म्‍बक मूल्‍यन आ नि‍ष्‍कर्ष प्रासंगि‍क अछि‍। मि‍ला-जुला कऽ हुनक तीनू कवि‍ताकेँ नीक मानल जा सकैत अछि‍।
प्रवासी जीकेँ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक नि‍राला मानल जाए तँ कोनो अति‍शयोक्‍ति‍ नहि‍। ‘सम्‍हरि‍ कऽ चलि‍हेँ’ शीर्षक कवि‍तामे जीबनक गति‍केँ नव आयामसँ कवि‍ नि‍र्दोशि‍त कऽ रहल छथि‍। परि‍वर्तन, वसन्‍त, अनभुआर तीनू कवि‍ता लघुकवि‍ताक रूपमे लि‍खल गेल अछि‍, परंच वि‍म्‍बक परि‍धि‍क रूप व्‍यापक अछि‍। गंगेश गुंजन, वि‍नोद जी, मंत्रेश्‍वर झा आ नचि‍केता जीक कवि‍ता सभमे दृष्‍टकोणक व्‍यापक उद्वोधन स्‍वत: भऽ जाइछ तेँ एहि‍ कवि‍ सबहक कवि‍तापर प्रश्‍नचि‍न्‍ह ठाढ़ करब प्रासंगि‍क नहि‍।
सुकान्‍त सेाम जीक तीनू कवि‍ता स्‍वत: स्‍फूर्त नहि‍ मानल जा सकैत अछि‍, कतहु-कतहु लागल जे गद्य रूपमे लि‍खि‍ कऽ पद्यक रूपेँ परि‍वर्तित कएल गेल।
नि‍ष्‍कर्षत: ‘समकालीन मैथि‍ली कवि‍ता’ नीक कवि‍ताक संकलन थि‍क, मुदा समए कालक जाहि‍ परि‍धि‍क ि‍नर्धारण कएल गेल अछि‍ ओहि‍मे कि‍छु चर्चित कवि‍ता सबहक ति‍रस्‍कार कएल गेल। परि‍स्‍थि‍ति‍ की छल? ई तँ नहि‍ कहल जा सकैत अछि‍, मुदा मैथि‍ली कवि‍ता समूहक संग पूर्ण न्‍याय नहि‍ कएल गेल जकरा कोनो अर्थे उचि‍त नहि‍ मानल जाएत।

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