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Saturday, April 7, 2012

कुरूक्षेत्रम् अन्‍तर्मनक पर राजदेव मण्डल


कुरूक्षेत्रम् अन्‍तर्मनक लेल पत्र-
प्रि‍य बन्‍धु,
अहॉंक दीर्धकाय ग्रंथ ‍“‍कुरूक्षेत्रम् अन्‍तर्मनक‍‍” पढ़बाक सुयोग प्राप्‍त भेल। कतेको साहि‍त्‍यि‍क कृति‍ (उपन्‍यास, कवि‍ता, कथा-गल्‍प संग्रह, नाटक, महाकाव्‍य, बाल नाटक, बाल कथा, बाल कवि‍ता, प्रबन्‍ध-नि‍बन्‍ध समालोचना आदि‍)केँ एकहि‍ं पुस्‍तकमे संग्रहि‍त कए अहॉं पाठकक लेल एकटा तेहेन पुष्‍पमाला बना देलि‍एक जाहि‍मे लगैत अछि‍ जे वि‍भि‍न्‍न रंगक पुष्‍प एकहि‍ं जगह गॉंथल हो। आ पाठक वृन्‍द साहि‍त्‍यक कोनहु स्‍वाद एहि‍ दीर्घ पोथीसँ प्राप्‍त कए सकैत छथि‍‍। नि‍श्‍चय अपनेक ई प्रयास साहि‍त्‍यक लेल नवीन अछि‍ संगहि‍ कर्मठताक साक्ष्‍य....।
हम कोनहु पैघ समीक्षक नहि‍ छी तेँ समीक्षा करबाक दायि‍त्‍वपूर्ण कार्यक लेल अक्षम छी। तथापि‍ अहॉंक पुस्‍तक पढ़लाक उपरान्‍त मनमे जे वि‍चारक उद्भव होएत ताहि‍सँ अवगत करा देब एकटा दायि‍त्‍व सन बुझैत छी। तेँ कि‍छु अपन वि‍चार पठा रहल छी।
बन्‍धु, प्रथमत: ई कहबामे हमरा कनि‍यो संकोच नहि‍ होएत अछि‍ जे मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल जे अपने साहि‍त्‍य आन्‍दोलनक कार्य क‍ऽ रहल छी से साहि‍त्‍यक लेल तँ एति‍हासि‍क अछि‍ए। संगहि‍ मैथि‍ली प्रेमी, मि‍थि‍लावासी सेहो अहॉंक एहि‍ सुकार्यकेँ कहि‍यो नहि‍ भूलत-बि‍सरत।
बालकथा-
अहॉं मि‍थि‍लांचलमे पसरल छोट-पैघ कथा सभकेँ नवीन रूपेँ संग्रहि‍त कएने छी। अहाँक एहि‍ प्रयाससँ वि‍लुप्‍त होइत कथा सभ पुन: जीवन्‍त भ‍ऽ उठल अछि‍। बगि‍याक गाछ बचपनावस्‍थामे दादीक मुँहसँ सुनने रही। आइ पुन: पढ़बाक अवसर भेटल।
राजा सलहेस, महुआ घटवारि‍न, नैका-बनि‍जारा, जट-जटि‍न इत्‍यादि‍ कथ्‍ाा सभ पढ़लासँ लगैत अछि‍ जे एति‍हासि‍क बहुत गूढ़, तथ्‍यपूर्ण बात सभ सोझा अाएल अछि‍। क्षि‍प्रताक साथ अग्रसर होइतो सब बातक संकेत धरि‍ आबि‍ गेल अछि‍ आ ओहि‍ प्राचीण समएक दशा आ दि‍शाक ज्ञान सहजहि‍ं परि‍लक्षि‍त भ‍ऽ रहल अछि‍। सामाजि‍क जि‍नगीक क्रि‍या-कलापक वर्णन करैत अहॉं जे चि‍त्र उपस्‍थि‍त कएने छी। ताहि‍मे ओहि‍ काल वि‍शेषक प्रेम-घृणा, संयोग-वि‍योग, उन्‍नति‍-अवनति‍, बैर-प्रीत, शांि‍त-अशांति‍, वीरता-कायरता, मुर्खता-वि‍द्वता सबटा भि‍न्न-भि‍न्न रूपेँ प्रगट भेल अछि‍। पढ़ैत काल लगैत अछि‍ जे हम दोसर संसारमे प्रवेश कएने छी। ओहि‍ समएकेँ जँ एखुनका समएसँ तुलना करैत छी तँ बुझि‍ पड़ैत अछि‍ जे वि‍कास कते तीब्र गति‍सँ भ‍ऽ रहल अछि‍। आ एहि‍ पुरान भेल जि‍नगीक कथापर कलम चलौनाइ कोनो साधारण गप्‍प नहि‍ अछि‍। वि‍षए-वस्‍तु सभपर जे अहॉं संतुलन बनौने छी से समए आ परि‍स्‍थि‍ति‍क अनुकूल अछि‍।
संकर्षण-नाटक- अपाला आत्रेयी-दानवीर दधीची
अपाला आत्रेयी आर दानवीर दधीची-एहि‍ दुनू बाल नाटकमे आहॉं कथा कि‍छु नव रूपे प्रकट कएने छी। से पात्रकेँ अनुरूपे अछि‍। कथोप-कथनमे प्रवाह अछि‍ आर छोट-छोट वाक्‍यक प्रयोग अछि‍। जे नाटकीयतामे प्रभाव उत्‍पन्न करैत अछि‍। जेना दानवीर दधीचि‍क एकटा कथोपकथन : ‍“दधीची- इन्‍द्र। कुरूक्षेत्र लग एकटा जलाशय अछि‍ जकर नाम अछि‍, शर्यणा। अहॉं ओतय जाउ। ओतय घोड़ाक मुड़ी राखल अछि‍.....। ओहि‍सँ नाना प्रकारक शस्‍त्र बनाउ।‍”
बाल नाटक- बालकेँ ज्ञान बृद्धि‍क लेल सेहो उपयोगी अछि‍।
संकर्षण-
नाटक एकटा नवीन चरि‍त्रसँ परि‍चि‍त करबैत अछि‍। जे गामक लोककेँ ठकनाइकेँ नीक बुझैत अछि‍। एि‍ह अवगुणकेँ प्रति‍भा बुझैत रहैत अछि‍।‍ अवगुणक प्रति‍फलपर कनेको वि‍चार नहि‍ करैत अछि‍। वएह बेकती जखन दि‍ल्‍ली सन महानगर जाइत अछि‍ तँ रास्‍तामे स्‍वगं ठका जाइत अछि‍। लालकि‍लामे जूता कि‍नबा काल ओकरा पता चलि‍ जाइत अछि‍ जे ओ ठक वि‍द्यामे कतेक पाछू अछि‍, उदाहरण रूपेँ एकटा कथोपकथन : ‍“गोनर- अहॉंकेँ ठकि‍ लेलक। अहॉंक नाम तँ बुझनुक लोकमे अबैत अछि‍। संकर्षण- मि‍त्र की कहू‍?......। एहि‍ लालकि‍लाक चोर बजारक लोक सभ तँ कतेको महोमहापाध्‍यायक बुद्धि‍केँ गरदामे मि‍ला देतन्‍हि‍।‍”
छोट छीन कथोपकथन द्वारा व्‍यंग्‍य, हंसी आ गम्‍भीर बातकेँ सहज ढंगसँ कहि‍ देब अहॉं लेखनीक वि‍शेषता थीक। नाटककेँ आकार लघु अछि‍ जे नवीनताक सूचक अछि‍। तथा मि‍थि‍लामे पसरल बहुत रास बातकेँ समटबाक प्रयास नि‍श्‍चय सराहनीय अछि‍। मंचि‍त करबाक लेल दि‍शा नि‍र्देश नीक ढँगे कएल गेल अछि‍।
नाटक पठनीयता संगे नाटकीयतासँ परि‍पूर्ण अछि‍। आर संकर्षण आकर्षणसँ भरल अछि‍।।
कथा गुच्‍छ- (कथा संग्रह) कथा सभकेँ पढ़लहुँ जे गल्प गुच्‍छमे संग्रहि‍त अछि‍। पढ़ैत काल स्‍मरण भेल- एनसाइक्‍लोपीडि‍या ब्रि‍टेनि‍का कि‍छु शब्‍द- कथा स्‍वतंत्र वि‍धा अछि‍। एहिमे संक्षि‍प्‍ताक संगहि‍ अत्‍यधि‍क संगठि‍त तथा पूर्ण कथा रूप हेबाक चाही।
ओना जि‍नगी कथा अछि‍ आ कथा जीनगी अछि‍। आ जीनगी जे नि‍रन्‍तर नवीनताकेँ प्राप्‍त कऽ रहल अछि‍।
गप्‍ल गुच्‍छ पढ़ैत काल जे कथा वा पाँति‍ बेसी प्रभावि‍त कएलक ओहि‍ सबहक वि‍षयमे कहब आवश्‍यक बुझाइत अछि‍। नीक-अधलाह कहबाक अधि‍कार तँ पाठककेँ होइते अछि‍।
नव सामन्‍त- आब सामन्‍तबादी युग नहि‍ रहल। कि‍न्‍तु सामन्‍ती प्रवृति‍ एखनो जीअते अछि‍। हँ, ओकरा रूपमे परि‍र्वन भऽ गेल अछि‍। आ ओ भि‍न्न-भि‍न्न रूपे समाजमे आइयो दृष्‍टि‍गोचर भऽ गेल अछि‍। एहि‍ कथामे एकटा नव सामन्‍तक नवीन रूप लक्षि‍त भऽ रहल अछि‍।
सर्वशि‍क्षा अभि‍यान- कथाक माध्‍यमसँ दलि‍त आ गरीबक धीया-पुताकेँ पढ़ेबाक लेल उदासीनताक भावना व्‍यक्‍त भेल अछि‍। सरकार द्वारा मुफ्तमे देल गेल पोथी अदहरमे बेचि‍ लैत अछि‍। कथाक पाँति‍- “आ दुसाधटोली, चमरटोली आ धोवि‍याटोलीसँ सभटा कि‍ताव सहटि‍ कऽ नि‍कलि‍ गेल।‍”
थेथर मनुक्‍ख- एहि‍ कथासँ स्‍पष्‍ट होइत अछि‍ जे मनुक्‍खक पूर्ण अद्य:पतन भऽ गेल अछि‍। एतेक जे मनुक्‍ख चि‍ड़ई-चुनमुनी, परबा पौरकी धरि‍सँ नीचा उतरि‍ थेथर भऽ गेल अछि‍।
स्‍त्री-बेटा- एहि‍मे समाजमे स्‍त्रीगणक महत्‍वहीनता आ संगहि‍ करवट लैत सामाजि‍क स्‍थि‍ति‍-परि‍स्‍थि‍ति‍ चि‍त्रण भेल अछि‍।
वि‍आह आ गोरलागइ- झण-झणमे मनुक्‍खक बदलैत रँग गि‍रगि‍टा जकाँ...... आ दहेजक लोभी बेकती संतोषी सन बेवहार देखा कऽ स्‍वयं लज्‍जि‍त होइत छथि‍। आइयो कोन कोन रूपेँ दहेज लोभी दबकल अछि‍ समाजमे आ कोन-कोन प्रपंची चालि‍ चलि‍ रहल अछि‍। से एहि‍ कथासँ बुझाइत अछि‍। नीक चि‍त्रण भेल अछि‍।
प्रति‍भा- चालाकी आ प्रति‍भा दुनू अलग-अलग बात छैक। प्राप्‍ति‍क लेल दुनूमे सँ कोन महत्‍वपूर्ण सएह देखेबाक यत्‍न भेल अछि‍।
मि‍थि‍ला उद्योग- कि‍छु कथाक कोनो गप्‍प पाठककेँ दीर्घकाल तक झंकृत कएने रहैत अछि‍। एहि‍ कथामे गदहापर लादल जे संदेश भेटि‍ रहल अि‍छ से बहुत दि‍न धरि‍ पाठककेँ स्‍मरणमे रहत।
रकटल छलहुँ कोहबर लय- स्‍त्री-पुरूषक बीच बनैत-बि‍गड़ैत सम्‍बन्‍ध आ छल-प्रपंच अपने-आपकेँ ठकइ आ ठकाइबला गप्‍पक मार्मिक वि‍श्‍लेषण एहि‍ कथा द्वारा भेल।
हम नहि‍ जाएव वि‍देश- कोन बेकतीकेँ हृदयमे कतेक कष्‍ट-पीड़ा आ हँसी-खुशी भरल अछि‍। ओकरा पूर्णतया उत्‍खनन करनाइ सम्‍भवो नहि‍ अछि‍ तथापि‍ कथाकार तँ प्रयास करबे करता। एहि‍ कथामे द्वि‍जेन्‍द्रक मोनक व्‍यथाकेँ कथा पूर्णरूपेण उजागर भेल अछि‍।
एकटा पाँति‍- “कोन सरोकार माएसँ पैघ छल यौ लाल। जे अहाँ कहैत छी जे हम ककरोसँ सरोकार नहि‍ रखने छी।‍”
राग बैदेही भेरवी- एहि‍ कथामे एकटा कलाकारक जीनगीपर रोशनी देल गेल अछि‍। कोना एकटा साधारण गामक गबैया सुख-दुख, सफलता आ वि‍फलतासँ लड़ैत उच्‍चताकेँ प्राप्‍त कएलक तकर वि‍शद वर्णन भेटैत अछि‍।
बाढ़ि‍ भूख आ प्रवास- हास्‍य-व्‍यंग्‍यसँ पूर्ण कथा अछि‍। लघु आकारक रहि‍तहुँ ई कथा बहुत रास गप्‍पकेँ समेटने अछि‍। भूख आ भूखक कारणे उठैत मनक तरंग आ ओहि‍ कारणे बेकती कतऽ सँ कतए प्रवास करैले जाइत अछि‍। आ ओहो स्‍थानपर कोना आशापर तुषारपात होइत अछि‍। एहि‍ पाँति‍केँ पढ़लासँ स्‍वत: हास्‍य उपस्‍थि‍त भऽ जाइत अछि‍। “सरकार हम तँ ट्रेनसँ आएल छी मुदा अहाँ कोन सवारीसँ अएलहुँ जे हमरासँ पहि‍नहि‍सँ वि‍राजमान छी।‍”- बैदि‍क जी अल्‍हुआसँ हाथ जोड़ि‍ कहैत अछि‍।
नूतन मि‍डि‍या- आधुनि‍क मि‍डि‍या कोन तरहेँ चलि‍ रहल अि‍छ। से उजागर भेल अछि‍।
जाति‍-पाति‍- एहि‍ कथाकेँ पढ़लाक बाद पाँति‍ याद अबैत अछि‍- “देखनमे छोटन लागै जाति‍ पाति‍क दंश‍”
बहुपत्‍नी वि‍याह आ हि‍जड़ा- एहि‍ कथामे एकसँ अधि‍क पत्‍नी कएलासँ जे समाजमे सड़ांध पैदा भऽ रहल अछि‍। कोन-कोन रूपेँ ओकर बि‍कार नि‍कलैत अछि‍ तकर वर्णन भेल अछि‍। कि‍छु पाँति‍- “‍...भाति‍ज सभकेँ नहि‍ मानैत छि‍ऐक तैं भगवान बच्‍चा नहि‍ देलन्‍हि‍।”
बाणवीर- एहि‍ कथामे बाणवीरक मनोि‍वश्‍लेषण नीक जकाँ भेल अछि‍। समूहसँ कटल बाणवीर कतेक अथाह पीड़ामे संघर्ष करैत जीनगीक एक-एक पल कटैत रहैत अछि‍ से कथासँ स्‍पष्‍ट भऽ जाइत अछि‍। बाणवीरक एहि‍ कथनमे कतेक मर्म छि‍पल अछि‍- “माए बाबू! हमरा बुझल अछि‍ जे हमर बि‍याह दान नहि‍ होएत। मुदा अपन पेट तँ कोहुना हम गाममे भरि‍ए लैत छी। गुजर तँ कइए लैत छी। लोक सभ कहैत रहए जे तोहर माए-बाप तोरा बेचि‍ देलकउ। से ठीके अछि‍ की?‍”....कन्नारोहट उठि‍ गेल।
अनुकप्‍पाक नोकरी- लोककेँ बाप मरलापर नोकरी भेटैत छैक। हुनका भाएक मरलापर भेटलन्‍हि‍। एहि‍ कथाक सार अछि‍।
मृत्‍युदंड- कथाक द्वारा देखाओल गेल अछि‍ जे कोना बालि‍का आर्याकेँ मृत्‍युदंड मि‍ल जाइत अछि‍ जेकर कोनो दोष नहि‍ छल। बेगुनाहकेँ दण्‍ड। सेहो मृत्‍युदंड। एहेन अछि‍ एहि‍ठामक समाज। जेकरा सहजताक संग स्‍वीकारो कऽ लेल जाइत अछि‍। एखनुक समाजक दरपन जकाँ कथा लगैत अछि‍।
एहि‍ तरहेँ गल्‍प गुच्‍छक कथा सभकेँ बाद बुझाइत अछि‍ जे वर्तमान समस्‍याकेँ यर्थाथ रूप प्रगट भेल अछि‍। छोट-छोट दृश्‍य खंड काव्‍यात्‍मक रूपसँ सोझा आएल अछि‍। कथावस्‍तुमे मि‍थि‍लाक माट-पानि‍क गंध अछि‍। कि‍छु कथा अत्‍यन्‍त लघु तथापि‍ उदेश्‍य प्रकट भऽ गेल अछि‍ जे सम्‍पूर्ण देशक यथार्थनाकेँ समेटने अछि‍।
सहस्‍त्रबाढ़नि‍ (उपन्‍यास)- प्राचीनकालहि‍सँ सहस्‍त्रबाढ़नि‍क वि‍षयमे उत्‍सुकताक संगहि‍ अनुमान कएल जाइत रहल अछि‍। अनुमानि‍त व्‍याख्‍या आ समीक्षा होइत रहल अछि‍। वि‍ज्ञान द्वारा अलग ढंगसँ आ साहि‍त्‍य तथा अध्‍यात्‍म द्वारा अलग-अलग ढंगसँ। अहाँक उपन्‍यासक पात्र एहि‍ सम्‍बन्‍धमे कहैत अछि‍-
“खसैत लहास, कनैत हुनकर सबहक परि‍वार। सपनामे अबैत रहल ई सभ सहस्‍त्रबाढ़नि‍क रूप बनि‍ कए। हमरे सन कोनो शापि‍त आत्‍मा अछि‍ ओ सहस्‍त्रबाढ़नि‍ जे अपन संघर्ष अधखि‍ज्‍जू छोड़ि‍ मरि‍ गेल होएत आ आब ब्रहमाण्‍डमे घुरि‍या रहल अछि‍। आब देखू तीनू बच्‍चाक परीक्षा परि‍णाम सभदि‍न प्रथम करैत अबैत रहथि‍, आब की भऽ गेलन्‍हि‍। हम जे संघर्ष बीचमे छोड़लहुँ तकर छी ई परि‍णाम।‍” नन्‍द हबोढ़कार भऽ कानए लगलाह।
एहि‍ पाँति‍केँ जँ गम्‍भीरतासँ आत्‍मसात करए लगलहुँ तँ मात्र नामेटा नहि‍ संगहि‍ उपन्‍यासक सारतत्‍व एवं उदेश्‍यो प्रगट भऽ गेल। नन्‍दक चरि‍त्र आर हुनका द्वारा कएल गेल संघर्षक रूप तथा मनक मनोवि‍ज्ञान स्‍पष्‍ट भऽ जाइत अछि‍।
उपन्‍यासक भाषा शैली नवीन ढंगक अछि‍। वर्णात्‍मक शैलीमे आरम्‍भ भेल अछि‍। भाषामे चि‍त्रात्‍मकताक एकटा उदाहरण- “एकदि‍न कलि‍तकेँ देखलहुँ जे ठेहुनि‍याँ दैत आगू जा रहल छथि‍। आंगनसँ बाहर भेलापर जतए आँकर-पाथर देखलन्‍हि‍ ततए ठेहुन उठा कऽ मात्र हाथ आ पाएरपर आगू बढ़ए लगलाह।‍”
कि‍छु एहि‍ तरहक शब्‍दक प्रयोगसँ भाषामे आकर्षण आबि‍ गेल अछि‍। जेना थाम्‍ह-थोम्‍ह, कानब-खीजब, काज-उद्यम, जान-पहचान, बूढ़-पुरान, घुमब-फि‍रब, टोका-टोकी, संगी-साथी, झगड़ा-झाँटी, तंत्र-मंत्र, पढ़ाइ-लि‍खाइ इत्‍यादि‍। उपन्‍यासक भाषा मैथि‍ली पाठककेँ अनुकूल अछि‍ जहि‍ना लोक बजैत छथि‍ तहि‍ना सहज ढंगसँ वर्णित अछि‍।
झि‍ंगूर बाबू, नन्‍द आ नन्‍दक भैया, भाति‍ज, बेटा, नवल जी झा, आरूणि‍ आ हुनक माए-बाबू, बहि‍न, कलि‍त आ हुनक पत्‍नी, शशांक, मणीन्‍द, भौजी, शौभा बाबू बुचि‍या इत्‍यादि‍ पात्रक माध्‍यमसँ कथावस्‍तु संगहि‍ चरि‍त्रक वि‍कास भेल अछि‍। जाहि‍मे मौलि‍कताक संगहि‍ स्‍वाभावि‍कता अछि‍। नव दृष्‍टि‍कोणसँ सहजताक संग चरि‍त्र सबहक वि‍कास भेल अछि‍। जे उपन्‍यासक अनुकूल अछि‍।
मि‍थि‍लाक नदी-कमला, कोशी, बलान अादि‍क वर्णन भेल अछि‍। संगहि‍ एहि‍ठामक गाम घर- झंझारपुर, मेहथ, गढ़ि‍या, कनकुआर, कछवी आदि‍ वर्णनसँ सहजहि‍ कथामे मि‍थि‍लाक माटि‍-पानि‍क गंध आबि‍ गेल अछि‍।
कथोपकथनमे संक्षि‍प्‍ता आ सहजता अछि‍। उदाहरण स्‍वरूप कि‍छु अंश देखल जा सकैत अछि‍।
‍आरूणि‍ दू-तीन कौर खा कऽ उठि‍ गेलहा। हुनकर संगी करण पुछलखि‍न्‍ह-
“पता नहि‍। घबराहटि‍ भऽ रहल अछि‍।‍”
“काल्हि‍ ट्रेनि‍ंगपर जएबाक अछि‍ ने। ताहि‍ द्वारे।‍”
“पता नहि‍।‍”
ताबत भीतरसँ अबाज आएल। सभ क्‍यो दौगलाह।
कथोपकथन जीनगी आ पात्रानुकूल अछि‍।
“की बजलहुँ बेटा‍”- माए पुछलखि‍न्‍ह।
“नहि‍। ई कॉलोनी देखि‍ कऽ कि‍छु मोन पड़ि‍ गेल।‍”
“नहि‍ देखू ई पपि‍याह कॉलोनीकेँ।‍”
उपन्‍यास मनोवि‍श्‍लेषणक संगहि‍ दर्शनसँ सेहो पुष्‍ट अछि‍।
“पृथ्‍वी वि‍शाल अछि‍ आ काल नि‍स्‍सीम, अनंत। एहि‍ हेतु वि‍श्‍वास अछि‍ जे आइ नहि‍ तँ काल्हि‍ क्‍यो न क्‍यो हमर प्रयासकेँ सार्थक बनाएत।‍”
आशाक संचार करएबला ई वाक्‍य बारम्‍वार मनमे उठैत अछि‍। जीनगीक संचालि‍त करबाक लेल तँ आवश्‍यक अछि‍ जीनगीक रस। वएह रस थि‍क- आशा। जँ जीनगीमे आशा, अभीप्‍सा नहि‍ होइ तँ जीवन नि‍रर्थक।
“आरूणि‍केँ लगलन्‍हि‍ जे ओ झोंटाबला सहस्‍त्रबाढ़नि‍ झमारि‍ कए एहि‍ वि‍श्‍वमे फेक दैत छन्‍हि‍ हुनक।‍”
कथीले कि‍छु कि‍एक से प्रश्‍न उठैत अछि‍ मनमे। यएह प्रश्‍न पाठककेँ बेर-बेर सोचैले मजबूर करैत अछि‍- बहुत रास गप्‍प। आ एक प्रश्‍नसँ जन्‍मैत अछि‍ बहुत प्रश्‍न जे पाठककेँ एकटा अलग संसारमे लऽ जाइत अछि‍।
मनुष्‍यक प्रवृति‍केँ सम्‍बन्‍धमे ई पाँति‍ देखल जा सकैत अछि‍- “मनुष्‍यक प्रवृति‍ये होइछ, समानता आ तुलना करबाक साम्‍य आ वैषम्‍यक समालोचना आ वि‍वेचनामे कतेक गोटे अपन जीनगी बि‍ता दैत छथि‍। आरूणि‍ आ नन्‍दक बीच सेहो अनायासहि‍ं साम्‍य देखल जा सकैत अछि‍।‍”
उपरसँ मानव भि‍न्न-भि‍न्न प्रवृति‍केँ होइत अछि‍। कि‍न्‍तु मूलमे गहराइसँ अन्‍वेषण कएल जाए तँ कि‍छु तलप सभ मनुष्‍य लगभग साम्‍य होइत अछि‍। अन्‍त:मे वएह रस नि‍:सृत होइत रहैत अछि‍। कि‍न्‍तु ओतेक शान्‍त भाव आ ओतेक गम्‍भीरतासँ स्‍वंयकेँ देखनाइ सहज गप्‍प तँ नहि‍ थि‍क।
उपन्‍यासक आकार लघु रहि‍तहुँ कथा वस्‍तुक पूर्ण वि‍कास भेल अछि‍। कथाक अनुकूल अछि‍ भाषाक संतुलि‍त ढंगसँ प्रयोग भेल अछि‍। नव वस्‍तुक नवीन दृष्‍टि‍कोणसँ अभि‍व्‍यक्‍ति‍ भेल अछि‍। मौलि‍कतासँ पूर्ण अछि‍।
वर्तमानमे मैथि‍ली साहि‍त्‍यक प्रगति‍क लेल अहाँ सन बेकतीकेँ आवश्‍यकता अछि‍। जे एकभगाह होइत मैथि‍लीकेँ संंतुलि‍त करता आ संगहि‍ स्‍वयं तँ अग्रसर होएबे करताह दोसरोकेँ आगू बढ़बाक सुअवसर देताह। एहि‍ दृष्‍टि‍कोणसँ अहाँक प्रयास अवर्ण्‍य अछि‍।
एकटा पाँति‍ स्‍मरण भऽ गेल-
अहीं सन मैि‍थली सेवकपर
अछि‍ हमरा सबहक आस
भरब भण्‍डार मैथि‍लीक
अछि‍ पूर्ण वि‍श्‍वास।
सहस्‍त्राब्‍दीक चौपड़पर-
सहस्‍त्राब्‍दीक चौपड़पर बैसल अहाँ जि‍नगीक खेल देख रहल अछि‍। गहन अन्‍वेषण करैत एक-एकटा चि‍त्रक रचना कऽ रहल छी आ ओइ उमंगमे डूबि‍ रहल छी।
“असीम समुद्रक कातक दृश्‍य
हृदय भेल उमंगसँ पूरि‍त....।‍”
अहाँक अन्‍तरक कवि‍ रवि‍क चि‍त्र उपस्‍थि‍त करैत कहैत अछि‍-
“सूर्य कि‍रण पसरि‍ छल गेल
कतेक रहस्‍य बि‍लाएल
ति‍मि‍रक धुँध भेल अछि‍ कातर
मुदा ई की.......।‍”
संग्रहमे कि‍छु हैकू पढ़बाक सुअवसर भेटल। कि‍छु सुआद बदलबाक लेल....। मि‍थि‍लांचलक गमकसँ अहाँक कवि‍ता हमरा सबहक मोनकेँ गमका रहल अछि‍ :
“‍मोन पाड़ैत छी धानक खेत
झि‍ल्‍ली कचौड़ी
लोढ़ैत काटल धानक झट्टा
ओहि‍ बीछल शीसक पाइसँ कीनल
लालझड़ी
जेकरे नाओं लाल छड़ी आ
सत धरि‍आ खेल....।”
प्रवासमे रहैत स्‍मरण होइत गाम घर। ऐ पाँति‍मे वि‍योगक ओइ व्‍याथाक वर्णन भेटैत अछि‍। एकटा नवीन लयक संग-
“‍पता नहि‍ घुरि‍ कऽ जाएब
आकि‍ एतहि‍ मरि‍-खपि‍
बि‍लाएब.....।”
ऐ व्‍यंग्‍यमे स्‍पष्‍ट दृष्‍टि‍गोचर भऽ रहल अछि‍।
“लाठी मारबामे कोनो देरी नहि‍
बाछी भेलापर शोको थोड़ नहि‍
परन्‍तु छी पूजनीया अहाँ....।‍”
बाढ़सँ उत्‍पन्न भेल समस्‍या आ ओकरा छोट-छीन पाँति‍मे समेटनाइ गागरमे सागर भरबाक प्रयास ऐ पाँति‍मे परि‍लक्षि‍त भऽ रहल अछि‍-
“ठाम-ठाम कटल छल हठहर
ऊपरसँ बुन्नी पड़ि‍ रहल
सभटा धान चाउर भीतक कोठी
टटि‍ खसल पानि‍क भेल ग्रास...।‍”
नव-नव बि‍म्‍बसँ कवि‍ता सभ पूरि‍त अछि‍-
“सहस्‍त्रबाढ़नि‍ जकाँ दानवाकार
घटनाक्रमक जंजाल
फूलि‍ गेल साँस
हड़बड़ा कऽ उठलहुँ हम....।‍”
हड़बड़ा कऽ नै बल्‍कि‍ अहाँ सचेत भऽ कऽ उठलहुँ। नव-नव चि‍त्र ध्‍वनि‍ लऽ कऽ नवीन दृष्‍टि‍क संगे। पता नै कतऽ धरि‍ जाएब। कतऽ गन्‍तव्‍य अछि‍ अहाँक।
“वि‍श्‍वक मंथनमे
होएत कि‍छु बहार आब....
पथक पथ ताकब.....
प्रयाण दीर्घ भेल आब....।‍”
प्रबन्‍ध-नि‍बन्‍ध समालोचना :-
प्रारंम्‍भमे फल्‍ड वर्कपर आधारि‍त खि‍स्‍सा सीत-बसंत अछि‍। ई लोक कथा मार्मिक अछि‍ संगहि‍ शि‍क्षा आ उपदेशसँ भरल। सतमाएक चरि‍त्र केहेन होइत अछि‍ आ केहेन होएबाक चाही से स्‍पष्‍ट भेल अछि‍। समाज द्वारा बि‍सरल जा रहल ऐ कथाकेँ अहाँ पुन: जीअत करबाक कएने छी जैमे माए-बाप बेटा आ सतमाएक मर्मस्‍पर्शी वर्णन भेल अछि‍। वर्तमानमे सीत-बसंत नाच बि‍हारक गाम-गाममे लोक मानसकेँ आनन्‍दि‍त कऽ रहल अछि‍।
दोसर अछि‍- मायानन्‍द मि‍श्रक प्रथमं शैल पुत्री च, मंत्रपुत्र, पुरोहि‍त आ स्‍त्रीधन। जे वेदकालीन इि‍तहासपर आधारि‍त अछि‍। जेकर समीक्षा इति‍हास आ साहि‍त्‍य दुनू आधार लऽ अहाँ नीक जकाँ प्रस्‍तुत कएने छी।
एकर बाद अछि‍ केदान नाथ चौधरी जीक दूटा उपन्‍यास- चमेली रानी आ माहुर ई पाठक द्वारा आढ़ृत उपन्‍यास अछि‍। एकर समीक्षा अहाँ नीक तरहेँ कएने छी। अहा कहने छी जे- नव समीक्षावाद कृति‍क वि‍स्‍तृत वि‍वरणपर आधारि‍त अछि‍।
नो एंट्री : मा प्रवि‍श नचि‍केता जीक नाटक अछि‍। जेकरा अहाँ कि‍छु नव तरहेँ समीक्षा करबाक प्रयत्‍न कएने छी।
कवि‍शेखर ज्‍योति‍रीश्‍वर शब्‍दावली- वि‍द्यापति‍ शब्‍दली, कवि‍ चतुर्भुज शब्‍दावली आ बद्रीनाथ झा शब्‍दावली द्वारा मैथि‍ली शब्‍द भंडारकेँ वि‍शद वर्णन कएल गेल अछि‍।
मैथि‍ली हैकू आ क्षणि‍का पढ़बाक अवसर भेटल। श्रीमती ज्‍योति‍ झा चौधरीक इंग्‍लि‍श हैकू अहाँक मैथि‍ली अनुवाद सहि‍त।
मि‍थि‍लाक बाढ़ि‍- जे एतुक्का रहनि‍हारक लेल प्रलय बनि‍ आबैत अछि‍। ऐ समस्‍या आ सरकारी प्रयासक वर्णन नीक जकाँ भेल अछि‍।
वि‍स्‍मृत कवि‍ पं. रामजी चौधरीक रचनाकेँ पठकक सोझा रखबाक प्रयास। वास्‍तवमे ई अहाँक अवि‍स्‍मरणीय कार्य अछि‍।
वि‍द्यापति‍क बि‍देशि‍या- पि‍आ देसाँतर- ऐमे कि‍छु नव तथ्‍य सभ सोझा आएल अछि‍।
बनैत-बि‍गड़ैत सुभाष चन्‍द्र यादवक कथा संग्रहक समीक्षामे अहाँ द्वारा सार्थक प्रयास भेल अछि‍। ई कथन जे “‍ओ कथाक माध्‍यमसँ जीवनकेँ रूप दैत अछि‍। शि‍ल्‍प आ कथ्‍य दुनूसँ कथाकेँ अलंकृत कए कथाकेँ सार्थक बनबैत छथि‍।”
ऐ कथा संग्रहक अहाँ वि‍शद रूपेँ समीक्षा कएने छी।
अन्‍तर्जालपर मैथि‍ली- ऐमे नवीन एवं ज्ञानवर्द्धक तथ्‍य सभ पाठकक लेल परोसने छी। आजुक समएमे एकर ज्ञान आ अनुभव बड्ड आवश्‍यक भऽ गेल अछि‍।
लोरि‍कक गाथामे समाज ओ संस्‍कृति‍- ऐ गाथामे ओइकालक समाज ओ संस्‍कृति‍ एवं राजनीति‍क पक्षकेँ अहाँ उजागर कएने छी।
मि‍थि‍लाक खोज- अहाँ करैत रहलहुँ गाम-गाम। संगहि‍ पाठककेँ स्‍थान सभसँ परि‍चि‍त करबैत सराहनीय कार्य कएलहुँ।
त्‍वन्‍चाहन्‍च आ असन्जाति‍ मन (महाकाव्‍य)- महाकाव्‍यमे जीवनक अत्‍यन्‍त व्‍यापक चि‍त्रण उदात मानवीय अनुभूति‍क रूपमे प्रगत कएल जाइत अछि‍।
अहाँ प्रारम्‍भमे लि‍खने छी-
“ई भारत ग्रंथ
जयक जाहि‍मे गान
तखन कहि‍या सँ भेलाह एतुक्का लोक
कर्महीन, संकीर्ण.....।‍”
अहाँ अन्‍त ऐ पाँति‍सँ कएने छी-
“असन्‍जाति मनक ई सम्‍बल
देलहुँ अहाँ हे बुद्ध
हे बुद्ध- हे बुद्ध।‍”
ओना आब महाकाव्‍य कम लि‍खल जा रहल अछि‍। कि‍न्‍तु साहि‍त्‍यक सभ वि‍धा जीअत रहबाक चाही। ऐ परम्‍पराकेँ अहाँक द्वारा आगू बढ़ेबाक प्रयास भेल अछि‍। धर्म-उपदेशपर आधारि‍त पौराणि‍क कथाकेँ अहाँ कथावस्‍तुक रूपेँ कि‍छु नूतन तरहेँ सजेबाक प्रयास कएने छी। अभि‍व्‍यक्‍ति‍ लेल तत्‍सम शब्‍दावलीक प्रयोग भेल अछि‍। ओना पात्रानुकूल ओहन शब्‍द आनब आवश्‍यके छल। शीर्षक कहबामे काठि‍न्‍य सन अनुभव भेल। ताद्यपि‍‍ रचना आदर करबाक योग्‍य अछि‍।
बाल कवि‍ता- ऐमे उपदेशक संगहि‍ मनकेँ रंजि‍त करबाक क्षमता होएबाक चाही। जे उत्‍सुकता बनौने रहए।
नव-नव मोहक दृश्‍य देखबैत अहाँ बच्‍चा सभकेँ नव संसारसँ परि‍चि‍त करबाक प्रयास कएने छी। जेना-
“मेहनति‍ अहाँ करू
फल हमरा दि‍अ.....।‍”
दोसर पाँति‍-
“मुइलपर भाबहु की भैंसुर केलहुँ अततह समए बदलल नहि‍ बदलल ई गाम हमर।।‍”
नि‍श्‍चय एतेक रास बाल कवि‍ता रचि‍ अहाँ बाल साि‍हत्‍यक भण्‍डार भरबाक सराहनीय प्रयास कएने छी।
अन्‍तमे, यएह जे साहि‍त्‍यक सभ वि‍धाकेँ एक्केठाम संग्रहि‍त करबाक एकटा नव प्रयोग भेल अछि‍।
व्‍याकरण आ भाषाक शुद्धता अछि‍।
श्रुति‍ प्रकाशन धन्‍यवादक पात्र छथि‍ जे नीक जकाँ एतेक पैघ पोथीक प्रकाशन कएलनि‍। दीर्घकाय पोथीक मूल्‍य कम अछि‍। जैसँ पाठककेँ क्रय करबामे सुवि‍धा हेतैक।
पोथि‍क लेल यएह कहब जे- अहाँ भि‍न्न-भि‍न्न प्रकारक पुष्‍पसँ सुसज्‍जि‍त एहेन पुष्‍पबाटि‍का बनेलहुँ जैमे प्रवेश कऽ पाठक जेहने आकांक्षा करत तेहने रूप, गंध प्राप्‍त करत आ हमरे जकाँ आनन्‍दि‍त भऽ कहत- “धन्‍यवाद।‍”

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