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Sunday, April 8, 2012

तोहर सरि‍स एक तोहे माधव! ''गामक जीनगी'' :: रमाकान्‍त राय “रमा‍”


भारतीय भाषा साहि‍त्‍यमे ग्राम्‍यांचलक उर्वर भूमिमे सभ कि‍छु उपजैत अछि‍- अन-धन- लक्ष्‍मी। जँ आम सन अमृत फल होइत अछि‍ तँ करैला सन तीत सोहो। जँ सभ रूपमे औषधि‍ सन धातृफल तँ सभ तरहेँ अनि‍ष्‍टकारक बरहर सेहो। कनकजीर आ तुलसी फूल स्‍वादि‍ष्‍ट चाउर हम सभ उपजाबैत छी, कऽन-साग-मरूआ आ अकटा-मि‍सि‍या सन कुअन्न सेहो समए-कुसमए लोकक क्षुधा शांति‍ कऽ गरि‍मा मण्‍डि‍त होइत अछि‍।
दोसर दि‍स भादो मासमे झहरैत वर्षामे भीज कऽ थाल-कादोमे खि‍ल्‍ली-छाबा डुबा कऽ जँ धान रोपैत अछि‍ तँ चैत-बैसाखक बरकैत रौदमे गहुम काटैत अछि‍, दाउन करैत अछि‍ तथा माध मासक हारमे धुसि‍आइबला जाड़ आ जन-मारूख शीतलहरीमे राति‍-राति‍ भरि‍ जागि‍ कऽ लोक रवि‍-राइक पटौनी करैत अछि‍। काजमे जँ कनि‍को उफाँटि‍ भेल कि‍ पलमे प्रलए भऽ जाइत छै। लोकक जीवन अपटी खेतमे चलि‍ जाइत छै मुदा जँ जीवि‍त रहि‍ लोक काज सम्‍पन्न कऽ लैत अछि‍ तँ की की ने देखैत अछि‍- ताड़क गाछ तरेगन आ दि‍नोमे तरेगन।
गाम उर्वर भूमि‍ एक-सँ-एक वि‍द्वान, वैज्ञानि‍क, राजनेता आदि‍केँ अपना अंकमे पोषैत आबि‍ रहल अछि‍ तँ एक-सँ-एक कवि‍-कलाकार-साहि‍त्‍यकारकेँ सेहो। राष्‍ट्रकवि‍ मैथि‍लीशरण गुप्‍त, रामधारी सि‍ंह दि‍नकर‍ आ अमर कथाकार मुंशी प्रेमचंद गामेक उर्वर भूमि‍क पुत्र छलाह जे अपन-अपन क्षेत्रक शि‍खर पुरूष भेलाह।

मि‍थि‍ला मूलत: मैथि‍ली भाषा-भाषी ग्रामीण क्षेत्रक वि‍शाल भूभागमे पसरल अछि‍। तँए अइठाम सेहो अधि‍कांश लेखक, कवि‍, कलाकार-साहि‍त्‍यकार प्राय: गामेक मूल नि‍वासी छथि‍। मुदा एकटा बात आन भाषासँ मैथि‍लीमे भि‍न्न ई अछि‍ जे जतए आन भाषाक रचनाकार-कलाकार अपन कृति‍मे गामकेँ वि‍शेष जगजि‍यार करबाक चेष्‍टा केलनि‍ अछि‍ तेना मैथि‍लीमे नै। ओना राजकमल, यात्री, मायानन्‍द, ललि‍त, धीरेन्‍द्र, धूमकेतू आदि‍क रचनामे गाम आएल अछि‍ अवश्‍य मुदा ओकर मात्रा बड्ड थोड़ अछि‍‍। जेना राजकमलक ललका पाग‍ सन कथामे गामक नारीक नि‍श्‍छल प्रेमक प्रवाह अछि‍ तँ ललि‍तक रमजानी‍ पि‍छड़ल अल्‍पसंख्‍यकक कथा नीक जकाँ बि‍कछा कऽ कहल गेल अछि‍। जहि‍ना मायानन्‍द मि‍श्रक खौंता आ चि‍ड़ै‍ मे उच्‍च वर्ग आ पि‍छड़लक वर्ग संघर्षक कथा नीक जकाँ स्‍थान पओलक अछि‍ तहि‍ना यात्रीक बलचनमा‍ मे सेहो ऐ माैलि‍कताक स्‍पष्‍ट रेखांकन भेल अछि‍।
आनो-आन नव-पुरान कथाकार मि‍थि‍लाक गामक कथा लि‍खलनि‍ अछि‍ मुदा खेति‍हर-मजदूर, नि‍म्नवर्गक बोनि‍हार, एक सांझ खा कऽ दोसर सांझक जोगारमे बेकल लोकक कथाक अभावे रहल अछि‍। श्री जगदीश प्रसाद मंडलक कथा संग्रह गामक जि‍नगी‍ ऐ‍‍ प्रकार अभावक पूर्ति करैत अछि। गामक सम्‍पूर्ण चि‍त्र देखेबामे समक्ष भेल अछि‍। ओतबए नै, ऐमे ने केवल नि‍म्न-मघ्‍यवि‍त्त आ पि‍छड़ल नि‍म्नवर्गक कथा अछि‍ प्रत्‍युत गामसँ बाहर रहि‍ अयोध धामन-गहुमन साँप सन वि‍षधरक कथा सेहो अछि‍ जे अपन जीवनक सांध्‍य बेलामे प्रदूषण मुक्‍त गामोकेँ अपन वि‍षक धधकैत ज्‍वालमे भस्‍मसात करए चाहैत छथि‍।
गामक जि‍नगी‍ कथा संग्रहमे कुल उन्नैसटा कथा अछि‍ जे समग्रतामे मूल रूपसँ गामक कथा अछि‍। ऐ सभ कथाक कोनो ने कोनो पात्र गामक अछि‍- व्‍याधि‍ रोग-शोक, इर्ष्‍या-द्वेष, धृणा-सि‍नेहक शि‍कार कतौ ने कतौ अवश्‍य होइत अछि। कि‍छु कथामे तँ एना लगैत अछि‍ जे कथा नायक वा उपनायाक जीवनसँ पूर्णत: नि‍राश भऽ अनि‍श्चयक भ्रमरजालमे ओझरा जाएत मुदा तखनहि‍ं आशाक सूर्यक कि‍रि‍ण हुनका जीवनमे एकटा नव उत्‍साह, उमंग भरि‍ दैत छन्‍हि‍ आ ओ पुन: वि‍श्वाससँ भरि‍ नव-जीवनक शुभारम्‍भ करबामे जुटि‍ जाइत छथि‍।
कि‍छु कथामे एक क्षेत्रक लोककेँ दोसर क्षेत्रक भौगोलि‍क परि‍वर्तनजन्‍य कि‍छु अनेरूआ फसि‍लक वि‍षएमे व्‍यवहारि‍क ज्ञानक अभाव रहैत अछि‍ जइसँ दैवी प्रकोपक समए नीक जकाँ जीवन-यापन कएल जा सकैत अछि‍।
कथाकार जगदीश प्रसाद मंडल जीवनक उतरार्द्धमे लि‍खब प्रारम्‍भ कएलनि‍ अछि‍। ओना कि‍छु पहि‍नहुँसँ लि‍खबाक अभ्‍यास छल होएतनि‍ मुदा देखार रूपमे मात्र दू-अढ़ाइ वर्षक अवधि‍मे दर्जन भरि‍सँ अधि‍क पोथीक सृजन कऽ ई एकटा नव कीर्तिमान स्‍थापि‍त कएलनि‍ अछि‍। जइमे आधा दर्जनसँ अधि‍क पोथी प्रकाशि‍त भऽ चूकल छन्‍हि‍।
मनुष्‍यक जीवनमे नि‍त्‍य अनेक घटना-दुर्घटना-संघर्षक संग हर्ष-वि‍षादक अवसर अबैत अछि‍। ओइ महँक कि‍छु सार्थक क्षणकेँ समेटि‍ कऽ मानवोचि‍त मर्यादा, दायि‍त्‍वबोध, सुरक्षा, संरक्षा, सु-वि‍वेचन-रचनादि‍ द्वारा मनुष्‍यमे जि‍जीवि‍षा उत्‍पन्न कऽ पुनस्‍थापि‍त करब कथाकारक दायि‍त्‍व अछि‍। जगदीशबाबू ऐमे पूर्ण सि‍द्धस्‍त  छथि‍। माजल छथि‍। जँए कि‍ ई ग्रामीण अंचलमे एकटा राजनैति‍क कार्यकर्ताक रूपमे समाजकेँ खूब नीक जकाँ चि‍न्हने छथि‍, जन-जनक, गरीब-अमीरक सुख-दु:खमे सहभागी रहल छथि‍ तँए ओकर नोन-तेल-हरदि‍सँ लऽ कऽ जन्‍म-मरण धरि‍क साक्षी रहलाह अछि‍। ऐ अनुभव सभकेँ ओ नीक-जकाँ बि‍कछा-बि‍कछा कऽ अपन कथा सबहक तानी-भरनी बनौलनि‍ अछि‍। तँए हुनक रचना मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे एकदम बेछप झि‍ पड़ैत अछि‍। बेछप अछि‍!

डॉ. मेघन प्रसाद अपन पुस्‍तक मैथि‍ली कथा कोश मे कथाक प्रसंग अपन वि‍चार ऐ प्रकार व्‍यक्‍त कएलनि‍ अछि‍- कथा, जीवनक एकटा खण्‍ड चि‍त्र अछि‍ जे सम्‍पूर्ण जीवनक व्‍याख्‍या नै कऽ ओकर मात्र एकटा घनीभूत क्षणक उद्घाटन करैत अछि‍।‍ वस्‍तुत: कथा अपन आकारगत सीमाक कारणेँ एक्केटा घटनाक प्रभाशाली चि‍त्रण कऽ सकैत अछि‍। ओइमे प्रासंगि‍क कथा अथवा वि‍वरणक बेसी स्‍थान नै होइत अछि‍। दोसर शब्‍दमे कथा गद्यक एकटा छोट अत्‍यन्‍त सुघटि‍त आओर अपनामे पूर्ण साहि‍त्‍य रूप अछि‍। (भूमि‍का पूष्‍ठ-२)
जगदीश प्रसाद मंडलक कथा ऐ दृष्‍टि‍सँ कनि‍को पथ-च्‍युत नै भेल छन्‍हि‍। हँ, हि‍नक कथा सभमे कि‍छु वि‍स्‍तार अवश्‍य अधि‍क अछि‍ मुदा ओतेक वि‍स्‍तार नै जे मात्र कथाक एक्केटा रूप, लघुकथा रहि‍ जइतए जखन कि‍ ओइमे घनीभूत क्षणक उद्घाटन करबा लेल कि‍छु वि‍स्‍तार प्रयोजन बांछनीय होइछ। एकटा बात आर, हि‍नक कोनो कथामे प्रासंगि‍क वि‍वरण सेहो लघुरूप धारण कऽ घुसि‍आएल अवश्‍य भेटत। मुदा ओइसँ ने तँ कथाक मौलि‍कता प्रभावि‍त झि‍ पड़त आ ने ओकर औपन्‍यासि‍क वि‍स्‍तार बुझाएत। भने कोनो-कोनो कथाकेँ लघुक स्‍थानपर दीर्घकथा कथा कहबे श्रेयस्‍कर होएत।
सुप्रसि‍द्ध कथाकार डॉ. सुभाषचन्‍द्र यादव हि‍नक कथाक वि‍शि‍ष्‍टता मादे कहैत छथि‍ जे हि‍नक कथामे औपन्‍याि‍सक वि‍स्‍तार अछि‍। वर्तमान समैमे प्रचलि‍त आ मान्‍य कथासँ हुनक कथा भि‍न्न अछि‍। हुनक कथा घटना बहुल आ ऋृजुसँ युक्‍त अछि‍।
डॉ. मेघन प्रसादक वि‍चार जतए आम कथाक वि‍षएमे कहल गेल अछि‍ ओतहि‍ डॉ. यादवक वि‍चार मात्र श्री जगदीश प्रसाद मंडलपर केन्‍द्रि‍त अछि‍। मुदा शब्‍दक कनेक हेर-फेरसँ दुनू व्‍यक्‍ति‍क वि‍चार जइ वि‍न्‍दुपर मि‍लैत अछि‍ से अछि‍ डा. यादव द्वारा प्रत्‍युत शब्‍द- ऋृजु‍ अछि‍। ओ हि‍नका जीवन संघर्षक कथाकारक रूपमे स्‍थापि‍त करैत जि‍जीवि‍षा, मानवीयता आ आदर्शकेँ सुदृढ़ आ पुनप्रति‍ष्‍ठि‍त करबाक उद्देश्‍यसँ अनुप्रमाणि‍त मानैत छथि‍। एक्के संग अनेक नीक भावक संयोजनकेँ ऋृचा जकाँ बहुभावाभि‍व्‍यक्‍ति‍क संभावनाकेँ ऋृजु संज्ञा रूपमे डॉ. यादवक सोचक व्‍याख्‍या कएल जा सकैत अछि‍।
जेना कि‍ संग्रहक नाओंसँ स्‍पष्‍ट अछि‍- ऐ पुस्‍तकमे गामक जि‍नगीक कथा कहल गेल अछि। मुदा आइ-काल्हि‍ केहनो ठेठ गामक जीवनमे कतौ ने कतौ शहर आबिए जाइत अछि‍। तखन कथाकार ऐ हेतु सभठाम पूर्ण सचेष्‍ट छथि‍ जे गाम आ शहरक ऐ दुरभि‍संधि‍मे गामक मौलि‍कता भुति‍आ नै जाए, हेरा नै जाए। हि‍नक कथा सभमे जँ कतौ गाम आ शहर मि‍झराएलो अछि‍ तँ ओ ऐ दुनूक सूच्‍चा  स्‍वरूपकेँ स्‍पष्‍ट रूपेँ रेखांकि‍त कएलनि‍ अछि‍ आ शहरक नगर जि‍नगीपर गामक जि‍नगी सभठाम प्रभावी देखाओलनि‍ अछि‍।
भैंटक लाबा, बि‍साँढ़ आ पि‍रारक फड़‍ ई तीनू कथा एक्के भूमि‍पर प्रति‍ष्‍ठि‍त अछि‍ भैंट, बि‍साँढ़ आ पि‍रारक उपयोगक वि‍षएमे जइठामक लोक नै जनैत छथि‍ हुनक पति‍ (जँ ओइठाम ओ वस्‍तु प्रयुक्‍त  होइत हो) कि‍ंवा पत्नीसँ ऐ वि‍षएमे जानि‍-झि‍ कऽ बाढ़ि‍, सुखारक समैमे ओकर सदुपयोग कऽ ओइसँ त्राण पएबाक ई एकटा सशक्‍त  साधन होइत अछि‍। मुदा समाने भाव-भूमि‍क होइतो तीनू कथाक ई वि‍शेषता अछि‍ जे बि‍साँढ़ जतए रौदीमे, सुखारमे गरीबक जीवन रक्षक होइत अछि‍, ओतहि‍ भैंटक लाबा बाढ़ि‍सँ बि‍लटल परि‍वारक रक्षक होइत अछि‍। मुदा पि‍रारक फड़ सामान्‍य समैओमे लोकक व्‍यंजनक बेगरता मेटबैत अछि‍। ऐ तीनू कथा गढ़बा काल लेखक ऐ हेतु पुर्ण साकांक्ष छथि।‍ ऐ स्‍थि‍ति‍-परि‍स्‍थि‍तमे गामक गि‍रहस्‍तक लेल कोन-कोनटा उपकरणक उपयोग अपेक्षि‍त अछि‍। ऐसँ आेइ‍ अव्‍यपहृत वा कम व्‍यवहृत सरंजाम-उपकरणक धि‍यान एकबेर आेइ‍ सभ लोककेँ आबि‍ जाइत छन्‍हि‍ जे ग्राम्‍य संस्‍कृति‍सँ बहुत दिनसँ सुदूर रहि‍ रहल छथि‍।
अनेरूआ बेटा‍ केँ नि‍:संतान दम्‍पति‍ अपन बना कऽ पोसैत अछि‍। पहि‍ने चाहक दोकान कऽ कए ओ क्रमश: पढ़ब-लि‍खब सि‍खैत अछि‍। ओकर जि‍ज्ञासु मन स्‍वाध्‍यायक बलपर साहि‍त्‍य सृजन दि‍स उन्‍मुख होइत अछि‍ आ क्रमश: ओहूमे सम्‍मान जनक स्‍थान प्राप्‍त  करैत अछि‍। गामक वातावरणसँ सर्वथा असंपपृक्‍त, शहरी जीवनक अभ्‍यासी एकटा वकील साहेबक नवयुवती पुत्रीकेँ ओकर साहि‍त्‍य  अपना दि‍स आकृष्‍ट करैत अछि‍। ओ ओकरासँ भेँट कऽ ओकरे संग अपन जीवन व्‍यतीत करबाक स्‍वपन्न देखैत अछि‍। छह नि‍श्चयी अपन स्‍वभाव-प्रभावसँ माए-बापकेँ मना कऽ ने केवल ओकरासँ बि‍याह करबामे सफल होइत अछि‍ प्रत्‍युत, गृहस्‍थ जीवनक हेतु आवश्‍यक सभटा सरंजामो पि‍तोसँ करबा लैत अछि‍।

ठेलाबला अा ि‍रक्‍साबला दुनू करेज तोड़ मेहनति‍बला लोक मुदा पहि‍ल जँ अपन कमाइसँ अपन दुनू बेटाकेँ नीक जकाँ मैट्रीक पास करबा कऽ शि‍क्षा-भि‍न्न‍ बना कऽ उपराग जि‍नगी जीवैत अछि‍ तँ रि‍क्‍साबला‍ जतए बैसारीमे रि‍क्‍शा चलबैत अछि‍ तँ शेष समए एकटा चि‍मनीक मालि‍क संग पुरैत अछि‍। एकदि‍न मालि‍कक कनि‍याँक दि‍नचार्य ओकरे मुँहसँ सुनि‍ कऽ ओकर भौति‍क जीवनक लाचारीक लाचारी आ आँखि‍ महँक भूख देखि‍ कऽ अनठा कऽ अपन घर पड़ाइत अछि‍।
‍डाॅ. हेमंतकेँ बढ़ि‍ग्रहस्‍त क्षेत्रक डयूटीपर जएबाक जे जेतेक संशय ग्रामीण वातावरण, सामन्‍यजस्‍यक समस्‍या आ ग्रामक अशि‍क्षि‍त लोकक संग रहबाक हीन ग्रन्‍थि‍ छलनि‍ सभटा ग्रामीणक सद्व्‍यवहार, सहयोग आ नि‍श्‍च्‍छल कार्यव्‍यापारसँ दूर भऽ जाइत छन्‍हि‍ आ गाममे बि‍ताओल क्षण हुनका जीवनक एकटा अनमोल स्‍मारक जकाँ मानस पटलपर अंकि‍त भऽ जाइत छन्‍हि‍।
बाहर रहि‍ जीवन भरि‍ भ्रष्‍टाचारमे आकंठ डूबल रहि‍ दूटा पि‍ति‍औतक जीवनमे ऐ भौति‍कवादी युगक उपादानो सभसँ जखन स्‍वाभि‍मानपर चोट पहुँचैत छन्‍हि‍ तखन गामक जि‍नगीक मोह गछारैत छन्‍हि‍। मुदा गाममे पास करबासँ पहि‍नहि‍ घरारीक बटबाराक क्रममे गामक शांत जि‍नगीमे ओ दुनू भाँइ उच्‍कोच आ छल-छद्वाक बलेँ जखन कि‍छु अनुचि‍त नै करा पबैत छथि‍ तखन प्रेम चन्‍द्रक पंचपरमेश्वर‍ सँ कोनो कम महत्‍पूर्ण अछि‍ नि‍श्‍च्‍छल ग्रामीण मि‍थि‍लाक ई कथा भैयारी।
बोनि‍हार-मरनीक बातपर जँ ओकरासँ काम करौनि‍हार मदमस्‍त  ठीकेदारक आँखि‍ नोरा जाइत अछि‍ तँ आनक कथे की? ऐ वैज्ञानि‍क युगमे श्रमक जतेक अवमूल्‍यन भेल अछि‍, भऽ रहल अछि‍ ओतेक कोनो आन वस्‍तुक नै। ऐमे ग्‍लाेवलाइजेशनक बड्ड पैघ हाथ छैक। नै तँ एकटा कुम्‍हार जँ एकबेर कोशीक कटावसँ गाम छोड़ि‍ पड़ा कऽ दोसर गाममे बसैत अछि‍ तँ दोसर बेर अपन वस्‍तु  जातक, श्रमसँ उत्‍पादि‍त वस्‍तुक ग्राहक अभावसँ गाम छोड़बाक नि‍श्चय करैत अछि‍। मुदा संयोगसँ तइ समए ओकर भुति‍आएल बेटा प्रचुर टाका-पैसाक संग आपस आबि‍ जाइत छैक जे आब कुम्‍हारक नै, मूर्तिकार आ चि‍त्रकारक रूपमे अपनाकेँ स्‍थापि‍त कऽ लेने छल। तँए ओइ कुम्‍हारक हारि‍ जीति‍‍मे बदलि‍ जाइत छैक।
पुस्‍तकक भाषा ठेठ ग्रामीण अछि‍ जइमे स्‍थानीय लोकोक्‍ति‍, मुहावरा आ सभसँ बेशी अप्रचलि‍त ठेठ ग्रामीण शब्‍दक बाहुल्‍य पुस्‍तककेँ अत्‍यधि‍क महत्‍वर्ण तत्‍व कहल जा सकैत अछि‍। बहुत कथामे तँ जाति‍गत पेशामे उपयोगमे आबएबला सभटा सामग्रीक नाओं एवं उपयोगक उल्‍लेख अछि‍ जे ओइ शब्‍दकेँ वि‍स्‍मृति‍क खाधि‍मे जएबासँ बचएबाक सफल प्रयास कहल जा सकैछ।
डीहक बँटवारा‍ शीर्षक कथामे गुरूकाका गामक प्रसंग जे वि‍चार रखलनि‍ अछि‍ से द्रष्‍टव्‍य अछि‍- गाम तँ गामे छी। शुद्ध मि‍थि‍ला। भारत। जे स्‍वर्गोसँ नीक अछि‍। मुदा सभ गामक अपन-अपन चरि‍त्र आ प्रति‍ष्‍ठा छैक। जे चरि‍त्र आ प्रति‍ष्‍ठा गामक कर्मठ, ति‍यागी लोकनि‍ बनौने छथि‍। अपन कठि‍न मेहनति‍ आ कर्तव्‍यसँ सजौने छथि‍। ओकरा जीवि‍त राखब तँ अखुनके लोकक कान्‍हपर भार अछि‍ कि‍ ने?.....‍ ई तँ नहि‍ जे गदहा गेल स्‍वर्ग तँ छान-पगहा लगले गेलै।
नि‍ट्ठठ गाममे इर्ष्‍या-द्वेष कम सि‍नेह भैयारी-यारी अधि‍क रहैत अछि‍। जतए अपन जन्‍मलि‍ बेटी अपने धि‍या-पुतामे व्‍यस्‍त रहि‍ माएक मृत्‍यु  शय्यापर सुनि‍ कऽ देखबा लेल, सेवा करबा लेल नै आबि‍ पाबैत अछि‍ ओतहि‍ वि‍जातीय-नैहरक दूरक आन आन धर्मक बहीन‍ ने केवल देखबा लेल आबैत अछि‍ प्रत्‍युत बहीनकेँ जीवि‍त रहबा धरि‍ सेवाक करबाक उद्दात भावनसँ अभि‍भूत हि‍न्‍दु-मुस्‍लि‍म एकटा‍ क बीहनि‍ गाममे कतेक अधि‍क गहीर अछि‍- ई सि‍द्ध करबा लेल पर्याप्‍त अछि‍। आ यएह थि‍कैक गामक जि‍नगीक कथाक मूल तत्‍व।
कथाकार लेखक संपादक श्री गजेन्‍द्र ठाकुरक अनुसार जगदीश प्रसाद मंडलक कथा मैथि‍ली साहि‍त्‍यक पुनर्जागरणक प्रमाण उपलब्‍ध करबैत अछि‍ तथा हि‍नक कथा मैथि‍ली कथा धराकेँ एक भगाह होएबासँ बचा लैत अछि‍। उदाहरणमे ओ मात्र हि‍नक एक कथा बि‍साँढ़केँ उपस्‍थापि‍त करैत कहैत छथि‍ जे १९६७ईं.क अकालमे देखाओल गेल छल जे मुसहर लोक बि‍साँढ़ खा कऽ अकालसँ लड़ि‍ रहल छथि‍ मुदा ऐपर कथा लि‍खल गेल २००९ई.मे जगदीश प्रसाद मंडलजी द्वारा।
हम गामक जि‍नगी‍ कथा संग्रहक आधारपर ई कहए चाहब जे जहि‍ना हि‍न्‍दीमे गाम्‍यांचलक कथाकारमे प्रेमचन्‍द असगरे छलाह, तहि‍ना मैथि‍ली कथाक ऐ पुनर्जागरण कालमे, मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे जगदीश प्रसाद मंडल जीक कथा असगरे अछि‍- तोहर सरि‍स एक तोहे माधव!
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चर्चित पाेथी- गामक जि‍नगी
प्रकाशन वर्ष- २००९
लेखक- श्री जगदीश प्रसाद मंडल
प्रकाशक- श्रुति‍ प्रकाशन
पृष्‍ठ- १७६
मूल्‍य- २०० टाका मात्र

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