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Sunday, April 8, 2012

रामलोचन शरणक मैथिली राम चरित मानस- गजेन्द्र ठाकुर


रामलोचन शरणक मैथिली राम चरित मानस

महाकाव्य वा गीत प्रबन्ध: महाकाव्यक वर्णन जे कतेक सर्गमे हुअए, एकर नायक केहन प्रकृतिक हुअए उच्च कुल उत्पन्न हुअए आदि आब बुद्धिविलास मात्र कहल जाएत। जेना गद्यमे कथा होइत अछि विस्तारक अनुसार लघुकथा, कथा उपन्यासमे विभक्त कएल जाइत अछि तइ सन्दर्भमे उपन्यास (वा बीच-बीचमे नाटककक) पद्य रूपान्तरण महाकाव्य कहल जाएत। जँ ऋगवैदिक परम्परामे जाइ तँ महाकाव्यकेँ गीत-प्रबन्ध कहल जएबाक चाही।

आचार्य रामलोचन शरणक गीत-प्रबन्ध मैथिली रामचरित मानस: मैथिली साहित्यकेँ पढ़निहारक समक्ष मैथिलीमे रामचरित किंवा रामायण श्री चंदा झा कृत मिथिला भाषा रामायण श्री लालदासक रमेश्वर चरित मिथिला रामायण - दू गोट ग्रंथक रूपमे प्राप्त होइत अछि। पाठ्यक्रमक अंतर्गत स्कूल, कॉलेज-विश्वविद्यालयक मैथिली विषयक पाठ हो किंवा सामान्य आलोचना ग्रंथ आकि पत्र-पत्रिकामे छिड़िआयल लेख सभ, तेसर रामायणक अस्तित्वो धरि नै स्वीकार कएल गेल अछि। एकर संग ईहो बुझि लिअ जे जनमानस समालोचनाशास्त्रक आधारपर राखल विचारकेँ तखने स्वीकार करैत अछि जखन सत्यताक प्रतीक हो। आइयो मिथिलामे जे अखंड रामायण पाठ होइत अछि से बाल्मीकि रामायणक किंवा तुलसीक रामचरितमानसक। एकर कारणपर हम बहुत दिन धरि विचार करैत रहलहुँ। कैकटा चन्द्र रामायण लालदासकृत मिथिला रामायण, रामायण अखंड पाठ केनिहार लोकनिकेँ बँटबो कएलहुँ मुदा सबहक ईएह विचार छल, जे दुनू ग्रंथ मैथिली साहित्यक अमूल्य धरोहर अछि, मुदा अखंड पाठक सुर जे तुलसीक मानसमे अछि से दोसर भाषाक रहला उत्तरो संगीतमय अछि। शंकरदेव अपन मातृभाषा असमियाक बदला मैथिली भाषाक प्रयोग संगीतमय भाषा होयबाक द्वारे कएलन्हि तइ भाषामे संगीतमय रामायणक रचना जे अखण्ड पाठमे प्रयोग भऽ सकए, केर निर्माण संभव नै भऽ सकल अछि, से हमर मोन मानबाक हेतु तैयार नै छल, श्री रामलोचनशरण-कृत यथासम्भव पूर्णभावरक्षित समश्लोकी मैथिली श्रीरामचरितमानस एकर प्रमाण अछि। अपन समीक्षक लोकनि मोतीकेँ चिन्हबामे सफल किए नै भऽ सकलाह, एकर चर्चो तक मैथिलीक उपरोक्त दुनू रामायणक समक्ष किए नै कएल जाइत अछि। स्व.हरिमोहन झाक कोनो पोथी मैथिली अकादमी द्वारा हुनका जिबैत प्रकाशित नै भेल साहित्य अकादमी पुरस्कार सेहो हुनका मृत्योपरांत देल गेलन्हि। आचार्य रामलोचन शरण मैथिलीक सभसँ पैघ महाकाव्यक रचयिता छथि हमरा विचारे सभसँ संपूर्ण मैथिली रामायणक सेहो। जखन हम महाकाव्यक फोटोकॉपी पूर्वाँचल मिथिलाक रामायण- अखंड- पाठक संस्थाकेँ देलहुँ, तँ लोकनि एकरा देख कऽ आश्चर्यचकित रहि गेलाह अगिला साल रामायणक अखंड पाठक निर्णय कएलन्हि। एकरा मैथिलीक समालोचनाशास्त्रक विफलता मानल जाए, किएक तँ महाकाव्य तँ विफल भैये नै सकैत अछि। आचार्यक मनोहरपोथीक चर्चा हम अपन बाल्येवस्थासँ सुनैत रही, मुदा पोथीक नै। मैथिलीक सभसँ पैघ महाकाव्यक चर्चा मात्र सीतायनपर आबि किए खतम भऽ जाइत अछि। आचार्य श्री रामलोचनशरणक मैथिली श्री रामचरितमानस सभसँ पैघ महाकाव्य अछि एकटा तथ्य अछि से समालोचनाकार किंवा मैथिली भाषाक इतिहासकार लोकनिक कृपाक वशीभूत नै अछि। अपन ग्रंथक किञ्चित् पूर्ववृत्तम् मे आचार्य लिखैत छथि- मिथिलाभाषायाः मूर्द्धन्या लेखकाः श्रीहरिमोहनझामहोदया निशम्यैतद् वृत्तं परमाह्लादं गता भूयो भूयश्च मामुत्साहितवन्तः। आँगाँ लिखैत छथि-प्राध्यापकस्य श्री सुरेन्द्रझासुमनतथा सम्पादनविभागस्थ पण्डित श्री शिवशंकरझा-महोदयस्य हृदयेनाहं कृतज़्ज्ञोऽस्मि। से सभकेँ देखल गुनल सेहो छलन्हि।

आचार्य रामलोचन शरणक गीत-प्रबन्ध मैथिली रामचरित मानसक गेयता: आचार्यजीक सुन्दरकाण्डक प्रारंभ देखू एकर गेयताक तुलना चन्दा झाक रामायण लालदासक रामयणसँ करू:-
जामवंत केर वचन सोहाओल। सुनि हनुमंत हृदय अति भाओल॥1 ता धारि बाट देखब सहि सूले। खा कय बंधु कंद फल मूले॥2
जाधरि आबी सीतहिँ देखी। होयत काज मन हरख विसेखी॥3 कहि सबहिँ झुकाकय माथे। चलल हरषि हिय धय रघुनाथे॥4
सिंधु तीर एक सुंदर भूधर। कौतुक कूदि चढ़ल तेहि ऊपर॥5 पुनु पुनि रघुवीरहिँ उर धारी। फनला पवनतनय बल भारी॥6 जहि गिरि चरन देथि हनुमंते। से चल जाय पताल तुरंते॥7 सर अमोघ रघुपति केर जहिना। चलला हनूमान झट तहिना॥8 जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। कह मैनाक हौ श्रम भारी॥9


तुलसी अकबरक समकालीन छलाह हुनकर भाषा अखुनका भाषामे किछु अंतर आबि गेल अछि, मुदा तुलसीक गेयता ओहिनाक ओहिना अछि। आचार्यजी तुलसीक गेयता उठओलन्हि अछि, दुरूहता खतम कऽ देने छथि। सभ काण्डक शुरूमे देल संस्कृत पद्य तुलसीक मानससँ लेलन्हि अछि। आचार्यजीक मैथिली रामचरितमानस तुलसीक मानसक रूपांतर तँ अछि मुदा मैथिलीक मूल महाकाव्यक रूपमे परिगणित होयबाक अधिकारी अछि जेना कंबनक तमिल रामायण तुलसीक मानस अपन-अपन भाषामे परिगणित कएल जा रहल अछि। कंबन बाल्मीकि रामायणक रूपांतर तमिलमे कऽ रहल छलाह तखन बाल्मीकि रामायणक विषयमे कहलन्हि जे- रामायण एकटा दूधक समुद्र अछि हम छी एकटा बिलाड़ि जे मनसूबा बना रहल अछि जे सभटा दूधकेँ एक्के बेरमे पीबि जाइ। ओना ईहो सत्य जे कंबन कहियो (आचार्यजी सेहो एहिना कएलन्हि) रामायण केँ अपन मौलिक कृति नै कहलन्हि वरन बाल्मीकिक कृतिक रूपांतरे कहलन्हि, जखन कि अपन कृतिमे रामकेँ भगवान बना देलन्हि। बाल्मीकि रामकेँ मर्यादा पुरुष मानैत छलाह। बाल्मीकि सुग्रीवक विवाह बालीक पत्नीसँ बालीक मरबाक पश्चात होयबाक वर्णन करैत छथि मुदा कंबन बालीक पत्नीक आजीवन वैधव्यक वर्णन करैत छथि। आचार्यजीकेँ करबाक आवश्यकता नै पड़लन्हि किएक तँ लोकक कंठमे तुलसीक मानस बसि गेल छल, हुनका एकर गेयताक निर्वाह मात्र करबाक छलन्हि।

आचार्य रामलोचन शरणक गीत-प्रबन्ध मैथिली रामचरित मानस एकर नारी शूद्र-वन्यजाति विरोध प्रदर्शन: आब मानसक एकटा विवादास्पद पद्यक चर्चा करी। अर्थक अनर्थ कोना होइत अछि से देखू। आचार्यजी सुन्दरकाण्डक अंतमे लिखैत छथि जखन सिंधु (समुद्र)रामकेँ लंका जयबाक रस्ता नहि दैत छथि तखन राम कहैत छथि, लछुमन बान सरासन आनू। सोखब बारिधि बिसिख कृसानू॥1
तखन सिंधु कर जोरि बजैत छथि- ढोल गमार सुद्र पसु नारी। सब थिक ताड़न केर अधिकारी॥
एकर अर्थ जे सभ -ढोल गमार सुद्र पसु नारी- सभ शिक्षा किंवा सबक देबा योग्य अछि, गमार सुद्र नारीमे शिक्षाक अभाव अछि तेँ पसुमे मनुष्यक अपेक्षा बुद्धि नै छैक तेँ, ढोलक प्रयोग बिना शिक्षाक करब तँ संगीत नै ध्वनि भऽ जाएत। फेर समुद्र ओइ स्थितिमे खलनायक बनि रहल छल ओकर वक्त्तव्य कविक आकि रचनाकारक वक्त्तव्य नै भऽ सकैत अछि। रचनाकारक रचनामे नीक अधलाह सभ पात्र रहैत छथि, ओइ पात्रक मुँहसँ नीक अधलाह दुनू गप निकलत। रचनाकारक सफलता ऐपर निर्भर करैत अछि, जे अपनाकेँ अपन पात्रसँ फराक कऽ पबैत अछि आकि नै। मुदा तुलसी तेँ आचार्य रामलोचन शरण सेहो अपनाकेँ पात्रसँ बहुत ठाम फराक नै कऽ पबै छथि। जखन भारतमे सामन्तवादी सरकार छल तखन हुनकर शूद्र गएर द्विज जातिपर कएल टिप्पणी अनावश्यक बुझि पड़ैए। मिथिलाक स्मृतिकार लोकनि यएह परम्परा बादोमे रखलन्हि आश्चर्य तँ तखन होइए जखन तरहक गएर जरूरी टिप्पणी अंग्रेजी शासनकालमे प्रणीत संस्कृत ग्रन्थ सभमे मैथिल लोकनि द्वारा कएल देखै छी, ओइ अंग्रेजी शासनमे मे ब्राह्मण गएर ब्राह्मण सभकेँ ब्लैक इण्डियन कहै छलाह।

तुलसीक प्रासंगिकता वा कट्टरता नै वरण मात्र ओकर दुरूहताकेँ आचार्य खतम कएने छथि। उपरोक्त विवादास्पद पदक अतिरिक्त आनोठाम जातिवादिता देखबामे अबैत अछि।

मैथिली रामचरित मानस अयोध्याकाण्डक दोहा १२ बादक तेसर पद देखू:-

करय बिचार कुबुद्धि कुजाती।
हैत अकाज कोन बिधि राती॥३॥


मैथिली रामचरित मानस अयोध्याकाण्डक दोहा ५९ बादक पहिल पद देखू:-

कोल किरात सुता बन जोगे।
विधि रचलनि बंचित सुख भोगे॥१॥

मैथिली रामचरित मानस अयोध्याकाण्डक दोहा १६१ बादक चारिम पद देखू:-

विधियो सकथि तिय हिय जानी।
सकल कपट अघ अबगुन खानी॥४॥ (स्त्रीक हृदैक गति विधातो नै बुझि सकै छथि, कपट, पाप अवगुणसँ उगडुम अछि!!)

मैथिली रामचरित मानस अयोध्याकाण्डक दोहा १९३ बादक तेसर पद देखू:-

लोकवेद सबतरि जे नीचे।
छुबि जसु छाह लैछ जल सीचेँ॥३॥


तुलसी तेँ आचार्य रामलोचन शरण सेहो अपनाकेँ पात्रसँ बहुत ठाम फराक नै कऽ पबै छथि (कम्बन वाल्मीकिक अनुवाद करैत काल बहुत ठाम नव युगक अनुरूक अपनाकेँ फराक करैत छथि) तेँ मैथिली रामचरित मानस अयोध्याकाण्डक दोहा २५० बादक तेसर पदमे वन्यजातिक मुँहसँ कहबै छथि:-


यैह हमर अछि बुझु बड़ सेबे।
बासन बसन चोराय लेबे॥३॥


मैथिली रामचरित मानस बालकाण्डक दोहा ६२ बादक सातम पद देखू:-

जद्यपि जग दारुण दुख नाना।
सब सौँ कठिन जाति अपमाना॥७॥


मुदा जखन बीसम शताब्दीमे साहित्य अकादेमीक पोथीमे लोरिकपर मैथिली आलेखमे एकटा सज्जन लिखै छथि जे ब्राह्मणपर कएल शूद्रक अत्याचारक विरुद्ध लोरिक ठाढ़ भेलाह तँ अकबरकालीन तुलसी ओकर छन्दोबद्ध अनुवादक आचार्य रामलोचन शरणकेँ की दोष देल जाए! जेना विष्णु शर्मा पंचतंत्रक कथा कहैत-कहैत स्त्री शूद्रक पाछाँ अकारण क्रूर भऽ जाइ छथि सएह हाल राम चरित मानसक अछि।

आचार्य रामलोचन शरणक गीत-प्रबन्ध मैथिली रामचरित मानसक विशेषता: मैथिली रामचरित मानस बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्य़काण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड उत्तरकाण्डमे विभक्त अछि। वाल्मीकि रामायणक सुनियोजित कथ्यमे किछु हेरफेर कएल गेल अछि। एकर शैली चरित्रक अंकन उदात्त अछि। श्रृंगार रसक प्राधान्य नै अछि मुदा राम सीताक सन्दर्भमे वियोग संयोग दुनू कालमे एकर प्रयोग भेल अछि। मुख्य अंगी रस अछि शान्ति, ओना सभटा रामभक्तिमे समाहित अछि। भक्तिक प्रधानता अछि मुदा ज्ञान कर्मक महत्व कम नै कएल गेल अछि, सगुणक प्राधान्य रहितहुँ निर्गुण भक्तिक महत्व कम नै भेल अछि, राम ब्रह्म छथि हुनकर निर्गुण सगुण दू रूप छन्हि। जीव ब्रह्म एकहि अछि। वचनक पालन हुअए वा पितृभक्ति, भ्रातृभक्ति वा नारीक प्रेम वा पतिव्रतक मैथिली रामचरित मानस सभ आदर्शसँ ओतप्रोत अछि। मैथिली रामचरित मानसमे सभ अलंकार प्रयोगमे अछि मुदा मुख्य रूपेँ रूपक उपमा प्रयोगमे अछि। प्रेमाख्यानमे प्रयुक्त दोहा चौपाइ आधारित प्रबन्ध पद्धतिक कड़वक विधिक प्रयोगक बादो संस्कृत छन्द सभ प्रयुक्त भेल अछि। मैथिली रामचरित मानसमे विद्यापतिक गीत-विधि, वीरगाथा सभक छप्पय विधि, दोहा, सोरठा, भाट सभक कवित्त-सवैया, नीतिवाक्यक सूक्ति, घनाक्षरी, तोमर, त्रिभंगी छन्दक प्रयोग भेल अछि। मनुक्खक बहुत रास टोटमाक सेहो वर्णन यत्र-तत्र भेल अछि। एकर उद्देश्य अछि मोक्ष, लोककल्याण रामरायक स्थापना। मुदा ऐमे रामक अतिरिक्त कृष्ण, शिव (सेतुबन्ध कालमे राम द्वारा शिवक पूजा) गणेशक स्तुति अछि। प्रकृति चरित्र दुनूक चित्रणमे मैथिली रामचरितमानस अद्वितीय अछि। कवि खिस्सा कहि रहल छथि मुदा बीच-बीचमे भारद्वाज-याज्ञवल्क्य गरुड़ काकभशुण्डीक सम्वादक माध्यमसँ सेहो कहल गेल अछि। सम्वाद शैलीक प्रयोग मैथिली रामचरितमानसमे खूब भेल अछि। लक्ष्मण-परशुराम सम्वाद हुअए वा मंथरा कैकेयीक सम्वाद आकि रावण अंगदक सम्वाद, सभ ठाम नाटकक सम्वाद शैली सन रोचक पद्य अहाँकेँ भेटत। प्रारम्भक बालकाण्ड अन्तक उत्तरकाण्डमे गीत-प्रबन्धक दूटा ध्रुव दृष्टिमे आएत। उत्तरकाण्डमे गुरु-शिष्यक खराप होइत सम्बन्ध ब्राह्मणक वेद बेचबाक पतित हेबाक चर्चा भेटैत अछि मुदा उत्तरकाण्डमे रामराज्यक रूपरेसेहो सेहो भेटैत अछि।

मैथिली साहित्यक गीत-प्रबन्ध मध्य मैथिली रामचरितमानसक स्थान: मैथिली वा कोनो भाषामे रामक चरित वाल्मीकि रामायणसँ प्रभावित भेने बिना नै रहि सकैए। आचार्य रामलोचन शरणक तुलसीक मानसक समश्लोकी मैथिली अनुवाद ओइ अर्थेँ आर विशिष्ट भऽ जाइत अछि जे आचार्य रामलोचनशरण खाँटी मैथिली तत्वक कतौ अवहेलना नै केने छथि गीत-प्रबन्ध मैथिलीक अखन धरिक आकारमे ( गुणात्मक रूपेँ सेहो) मैथिलीक सभसँ पैघ गीत-प्रबन्ध (महाकाव्य) अछि।

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