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Sunday, April 8, 2012

सामाजिक प्रथाक पर्याय- प्रीति ठाकुर रचित “गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा” :: डॉ वीणा ठाकुर

गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथा

प्रीति ठाकुर रचित गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथापढ़बाक आ देखबाक सुयोग भेल। देखबाक ऐ लेल जे ई पोथी चित्रकथा थिक अर्थात चित्रक माध्यमे संकलित सोलह कथाक चित्रण लेखिका कएने छथि। सोलह कथामे नौ कथाक नायक छथि गोनू झा आ शेषमे रेशमा चूहड़मल, नैका-बनिजारा, भगता ज्योति पँजियार, महुआ घटवारिन, राजा सलहेस, छेछन महराज आ कालिदास। सभ पात्र मिथिलाक संस्कृतिक प्रतिनिधित्व करैत।
वस्तुतः संस्कृति शब्द अत्यन्त व्यापक अछि, दोसर शब्दमे कहल जा सकैत अछि जे एहन व्यवहार जे परम्परासँ प्राप्त होइत अछि, संस्कृति कहबैत अछि। एकरा सामाजिक प्रथाक पर्याय सेहो कहल जा सकैत अछि। प्रेम, त्याग, दया, करुणा, सहानुभूति आदि समस्त गुण संस्कृतिक अन्तर्गत समाहित होइत अछि। संगहि कलाक उद्देश्य जौं सौन्दर्यक अनुसंधान एवं रसानुभूति होइत अछि तँ कलाक संबंध लोक संस्कृतिसँ रहब आवश्यक भऽ जाइत अछि। गोनू झाक कथा मिथिलाक घर-घरमे जनकण्ठमे व्याप्त अछि प्रायः प्रत्येक मिथिला निवासी अपन बुजुर्गसँ गोनू झाक कथा सुनने होएत आ पश्चात अपन बाल-बच्चा, संगी-साथीकेँ सुनौने होएत। तहिना नैका बनिजारा, सलहेस, छेछन महराज, भगता ज्योति पँजियार- अपन शर्य, वीरता, पराक्रम आ उदात्त व्यक्तित्वक कारणेँ कहियो जौं लोकनायक छलाह तँ पाछाँ लोकदेवता रूपमे पूजित होमए लगलाह। तहिना कालिदास अपना विद्वता एवं पाण्डित्यसँ भारतीय संस्कृतिमे अपन महत्वपूर्ण स्थान निर्धारित कऽ लेने छथि। महुआ घटवारिनक आदर्श प्रेम कथा आदर्श रूपमे चित्रित होइत अमर भऽ गेल अछि। पोथीमे संकलित प्रत्येक पात्र एवं कथा मिथिलाक संस्कृतिक प्रतिनिधित्व कऽ रहल अछि।
संस्कृति लोक जीवनसँ सम्बद्ध रहैत अछि। समाज आ संस्कृतिमे अभिन्न सम्बन्ध अछि किएक तँ संस्कृतिक निर्माण काल सापेक्ष होइत अछि, जेना समाजमे नीक कृत्यक अनुकरण होइत अछि। किछु अवधि पश्चात ओ समाजक प्रकृति भऽ जाइत अछि। कालान्तरमे यएह प्रकृति संस्कृतिक रूप धारण कऽ लैत अछि। एवं प्रकारे कृति, प्रकृति आ संस्कृतिक क्रम चलैत रहैत अछि। यएह कारण अछि जे संस्कृतिक निर्माण आ विनाशमे समए लगैत अछि जखनकि सभ्यतामे परिवर्तन क्रम समैमे होइत अछि। पोथीमे संकलित प्रत्येक पात्र अपन-अपन समैक प्रतिनिधित्व करैत मिथिलाक संस्कृतिक प्रतीक छथि। कलाकार, लेखिका प्रीति ठाकुरजी रेखा आ रंगक माध्यमसँ चित्रकथाक रचना कएने छथि। प्रत्येक चित्र किछु संकेतकेँ प्रकट कऽ रहल अछि। अकारण वा अनायास किछु नै बनाओल जा सकैत अछि। प्रत्येक चित्र तथ्यात्मक अछि, प्रत्येक रेखा एकटा कथाक निर्माण कऽ रहल अछि।
मिथिलाक जन-जीवनक अभिव्यक्ति ऐ चित्र कथाक माध्यमसँ भेल अछि। वस्तुतः लोक चित्र कला तत्कालीन लोक जीवनक चित्रण करैत अछि जेना लोकगीत, लोकनृत्य, लोकभाषा आदि माध्यमसँ तत्कालीन समाजक स्वरूपक ज्ञान होइत अछि।
फूलक सुगंध सदृश संस्कृति अलक्ष्य होइत अछि मुदा वातावरणकेँ अपन सौरभसँ सतत सुवासित करैत रहैत अछि। ई आन्तरिक गुण थिक जकर मात्र अनुभव कएल जा सकैत अछि। एकर स्थान हृदैमे रहैत अछि, बाह्य आचरण ओकर मात्र प्रतिफल थिक। ऐ संस्कृतिक अभिव्यक्तिक माध्यम कला होइत अछि जेना नृत्यकला, संगीतकला, चित्रकला। चित्रकला मूक होइत अछि जकर भाषा रंग आ रेखा चित्र होइत अछि। कलाकार प्रीति ठाकुरजी मिथिलाक ऐ संस्कृतिकेँ नै मात्र रंग रेखाक माध्यमसँ चित्रित कएने छथि अपितु शब्दक माध्यमसँ चित्रित करैत अपन कलाकृतिक सौन्दर्य द्विगुणित कऽ लेने छथि। वस्तुतः हिनक ई प्रयास सर्वथा प्रशंसनीय छन्हि।
कला मानव संस्कृतिक उपज थिक, कला आ मनुष्यक सम्बन्ध अविभाज्य अछि। मानव द्वारा कलाक प्रतिष्ठा भेल अछि आ कला द्वारा मानव आत्मगौरव आ आत्मचैतन्य प्राप्त कएने अछि। कलाक माध्यमे सँ मानव जीवनमे माधुर्य आ सौन्दर्यशीलताक जन्म भेल आ कर्म मधुर आ सुन्दर बनि गेल। वस्तुतः सौन्दर्यक मूलभूत प्रेरणा कलाक उद्घम स्थल थिक आ सौन्दर्याभिरुचिक प्रमाण। मनुष्यक अनुकरण प्रवृत्ति थिक। आदिये कालसँ प्राकृतिक दृश्य मानव मोनकेँ आनन्दित करैत रहल आ ऐ दृश्यक निर्माण करबाक इच्छा मोनमे जागृत भेल आ यएह इच्छा जन्मक प्रेरक भेल। प्रीति ठाकुर जीक आत्मगौरव एवं आत्मचैतन्य ऐ चित्र कथाक रचना लेल प्रेरक भेलनि, आत्मगौरव मिथिलाक संस्कृतिक प्रति एवं आत्मचैतन्य सौन्दर्यशीलताक कारणेँ आ जकर प्रतिफल भेल विभिन्न कालक मिथिलाक लोकनायकक चित्रकथाक माध्यमसँ निरूपण करबाक।
प्रिन्ट मीडिया आ इलेक्ट्रानिक मीडियाक कारणेँ जखन सम्पूर्ण विश्वक ग्लोबलाइजेशन भऽ गेल अछि, मिथिलाक चित्रकलामे अन्य कलाक विधा सदृश सेहो पारम्परिक स्वरूपमे परिवर्तन भेल अछि। परिवर्तनेक दोसर नाओं तँ विकास थिक। लेखिका मिथिला चित्रकलाक पारम्परिक स्वरूपमे परिवर्तन तँ कएने छथि मुदा लोक चित्रकथाक माध्यमसँ एकर सार्थकता आ प्रासंगिकतामे सफल भेल छथि। किएक तँ मिथिलाक चित्रकला मूल्यग्राही अथवा कोमल हृदए कलाकारक मात्र हॉबी थिक अपितु परम्परावद्ध समाजक एकटा अभिन्न जीवन-दर्शन थिक, संगहि मैथिल संस्कृतिक जीवनक एक अविच्छिन्न अंग सेहो।
समाजक परिवर्तनक प्रभाव कला आ साहित्यपर पड़ब स्वाभाविक अछि संगहि कला आ साहित्य समाजक प्रतिबिम्ब सेहो थिक। वस्तुतः साहित्य युगक प्रवृत्ति एवं प्रयोजनक उपेक्षा नै कऽ सकैत अछि। कला जीवनसँ निरपेक्ष नै रहि सकैत अछि कारण एकर आधार मानव जीवन थिक। एकर पोषण जीवनसँ होइत छैक, एकर प्रभाव मानव जीवनपर पड़ैत छैक, तँए कलाकार जीवनक प्रति अपन उत्तरदायित्वक उपेक्षा नै कऽ सकैत अछि। आ यएह कारण अछि जे कलाक स्वरूपमे परिवर्तन होइत रहैत अछि। ऐ वैश्विक प्रतियोगिताक युगमे मिथिलाक चित्रकला जइमे मात्र कोहबर, डाला, अष्टदल, अरिपन, मंडप, वेदी आदिक चित्र निर्माणक परिधिमे ओझराएल अछि, आवश्यक अछि जे मिथिला चित्रकलाक विषए-वस्तुमे विस्तार कएल जाए। लेखिकाक ई सर्वथा नूतन प्रयास छन्हि। प्रीति ठाकुरजी परम्परागत विषय वस्तुसँ आगाँ बढ़ि मिथिलाक लोक-कथाकेँ चित्रकथाक माध्यमे चित्रित करैत मैथिली साहित्य मध्य सर्वथा नूतन शैलीक रचना कएलनि अछि। निश्चित रूपसँ मैथिली साहित्यक भंडारमे श्रीवृद्धि तँ भेल अछिये, ई नव शैली, नव विषय वस्तु एक शब्दमे नव स्टाइल सर्वथा प्रशंसनीय अछि।
समए परिवर्तनशील होइत अछि, ऐ बदलैत समैक संग जे अपनामे परिवर्तन नै आनैत अछि से विकासक धारासँ बाहर भऽ जाइत अछि। तँए समैक यथार्थक चित्रण कलाक माध्यमसँ होएब आवश्यक अछि, तखने कला अपन प्रासंगिकता सिद्ध कऽ सकैत अछि। वर्तमान बदलैत आधुनिक समाजक आवश्यकताक अनुरूप लेखिका ऐ पोथीक रचना कएलनि, ई प्रासंगिक तँ अछिये संगहि लोकोपयोगी सेहो अछि।
संगहि एकटा तथ्य आर महत्वपूर्ण अछि। मैथिली लोक साहित्यक संरक्षिका मिथिलाक महिला लोकनि छथि, किएक तँ हिनकहि कण्ठमे लोकगीत आ लोकनृत्य आ हिनकहिं हाथे लोकचित्रकला जीवित अछि। त्याग आ तपस्यासँ युक्त हिनका लोकनिक सांस्कृतिक चेतनासँ लोककला जीवित अछि तथा हिनकहि लोकनिक कोमल तूलिकाक प्रसादात मिथिलाक चित्रकला जीवित, संरक्षित एवं विकसित भऽ रहल अछि।
आ ई पोथी गोनू झा आ आन मैथिली चित्रकथाक रचयिता सेहो महिला छथि। ई सर्वथा स्तुत्य थिक।
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वीणा ठाकुर
अध्यक्षमैथिली विभागल.ना.मिथिला विश्वविद्यालयदरभंगा।

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