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Saturday, April 7, 2012

मैथि‍ली उपन्‍यास साहि‍त्‍यमे ग्रामीण चि‍त्रण :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


साहि‍त्‍यक आधार मनुष्‍यक जि‍नगी होइछ। मनुष्‍येक जि‍नगीक ‍नींवपर भाषा साहि‍त्‍य ठाढ़ आ सुदृढ़ बनैत अछि‍। जे मनुष्‍यकेँ जीवैक कला सि‍खबैत अछि‍। गद्य-साहि‍त्‍यक वि‍धामे उपन्‍यासो छी। जाहि‍ नींवपर साहि‍त्‍यक भवन ठाढ़ रहैत अछि‍ ओ माटि‍क नि‍च्‍चाँ दाबल रहैत अछि‍। जीवन परमात्‍माक सृष्‍टि‍ छी तेँ अनन्‍त-अगम्‍य अछि‍। जहन कि‍ साहि‍त्‍य मनुष्‍यक सृष्‍टि‍ होइत तँए सुबोध-सुगम आ मर्यादि‍त होइत अछि‍। एहि‍ जगतमे मनुष्‍य जे कि‍छु सत्‍य आ सुन्‍दर पौलक आ पाबि‍यो रहल अछि‍ वहए साहि‍त्‍य छी। ओना साहि‍त्‍य समाजक दर्पण कहल जाइत अछि‍ मुदा, मनुष्‍यक अएना आ प्राकृति‍क अएनामे अन्‍तर अछि‍। प्राकृति‍क अएना वस्‍तुक बाहरी रूप देखवैत जहन कि‍ मनुष्‍यक अएनाकेँ दोहरी रूप होइत अछि‍। जाहि‍सँ बाहरी आ भीतरी दुनू रूप देखैत अछि‍। एहि‍ठामक (मि‍थि‍लाक) चि‍न्‍तनधारामे, प्रचलि‍त दार्शनि‍क चि‍न्‍तनधारासँ भि‍न्न कि‍छु एहेन वि‍शेषता सन्नि‍हि‍त अछि‍ जे अपन अलग पहचान बनौने अछि‍। जाहि‍ आधारपर साहि‍त्‍यकेँ दीप (ज्‍योति‍) कहब अधि‍क उपयुक्‍त हएत।
उच्‍च कोटि‍क साहि‍त्‍यि‍क सृजन लेल यथार्थ आ आदर्शक समावेश आवश्‍यक अछि‍। जकरा आदर्शोन्‍मुख-यथार्थवाद कहल जा सकैछ। अगर यथार्थवाद आँखि‍ खोलैत अछि‍ तँ आदर्शवाद उठा कऽ मनोरम स्‍थानपर पहुँचबैत अछि‍। चरि‍त्रकेँ उत्‍कृष्‍ट आ आदर्श बनेबा लेल जरूरी नहि‍ जे ओ नि‍रदोसे हुअए। एहि‍ जटि‍ल संसारमे, जाहि‍मे छोटसँ छोट आ पैघसँ पैघ समस्‍या लधलो अछि‍ आ दि‍न प्रति‍ दि‍न जन्‍मो लैत अछि‍। ताहि‍ठाम नि‍रदोस चि‍त्रणक नि‍र्माण कठि‍न अछि‍। महानसँ महान पुरूषमे कि‍छु नहि‍ कि‍छु कमजोरी रहि‍तहि‍ छन्‍हि‍, जेकरा नि‍खारब आगूक लेल महत्‍वपूर्ण अछि‍, तँए अनुचि‍त नहि‍। वएह कमजोरीक सुधार मनुष्‍य बनवैत अछि‍। जे उपन्‍यासक मुख्‍य बन्‍दु छी। साहि‍त्‍यक मुख्‍य अंग आदर्श छी जाहि‍सँ रचना कलाक पूर्ति होइत अछि‍।
आदि‍काले सँ आदि‍वासि‍क रूपमे पनपैत मि‍थि‍लाक समाज आइक वि‍कसि‍त समाजक सीढ़ी धरि‍ पहुँचल अछि‍। जंगली जीवनसँ लऽ कऽ सुसभ्‍य जि‍नगी धरि‍क इति‍हास मि‍थि‍लाक भूमि‍मे चंदनक गाछ सदृश्‍य दुनि‍याँक वातावरणमे अपन महमही बि‍लहैत रहल आ अखनो बि‍लहैक सामर्थ रखैत अछि‍। जे हमरा सबहक धरोहर छी तँए बचा कऽ राखब सभसँ पैघ दायि‍त्‍व बनैत अछि‍। जि‍नगीक आवश्‍यकता आ उत्‍पादन करैक जते शक्‍ति‍ छलनि‍ ओहि‍ अनुकूल जि‍नगी बना सामंजस्‍यसँ सभ मि‍लि‍-जुलि‍ अखन धरि‍ रहला अछि‍। आगू बढ़ाएव आइक आवश्‍यकता छी। जाहि‍ समाजमे अखनो बरहवरना (बारह-वर्ण) भोज, बरहवरना बरियाती (वि‍वाहमे) बरहवरना कठि‍आरीक (जि‍नगीक अंति‍म क्रि‍या) चलैन अछि‍, कि‍ ओहि‍ समाजकेँ तोड़ि‍ सासु-पुतोहू, पि‍ता-पुत्रक संबंधकेँ माटि‍क बरतन जकाँ फोड़ि‍-फाड़ि‍ ि‍दअए। जाहि‍ समाजक बीच सभ संग मि‍लि‍ पावनि‍-ति‍हार, धार्मिक स्‍थानक नि‍र्माण केलनि‍, ि‍क ओकरा नेस्‍त-नाबूद कऽ दि‍अए?
ओना मि‍थि‍लाक दुर्भाग्‍य कही आकि‍ देशक दुर्भाग्‍य, साठि‍ बर्ख पूर्वसँ लऽ कऽ हजारो बर्ख पूर्व धरि‍ परतंत्र रहल। परतंत्रताक जि‍नगी केहन होइ छै, कहब जरूरी नहि‍। ओना जाहि‍ रूपक वि‍देशी प्रभाव आन-आन क्षेत्रमे पड़ल ओहि‍सँ भि‍न्न मि‍थि‍लांचल प्रभावि‍त भेल। अदौसँ अबैत वैदि‍क ढाँचामे सजल समाज अखनो धरि‍, एते दि‍नक गुलामीक उपरान्‍तो सजल अछि‍। मुदा भूमण्‍डलीकरणक प्रभाव जते तेजीसँ प्रभावि‍त कऽ रहल अछि‍ ओहि‍सँ बँचैक लेल गंभीर सोचक जरूरत अछि‍। जँ से नहि‍ हएत तँ मि‍थि‍लाक बदसुरत दृश्‍य सामने नचए लगत।
मि‍थि‍लाक संबंध जते पूरबी प्रान्‍त बंगाल (पछि‍म बंगाल सहि‍त बंगलादेश) आसाम (मेघालय सहि‍त आसाम) आ नेपालक तराइ इलाकासँ रहल ओते पछि‍मी आ दछि‍नी प्रान्‍तसँ नहि‍ रहल। घनगर अबादी होइबला इलाका रहने मि‍थि‍लाक बोनि‍हार (श्रमि‍क) बोइन करए नेपाल, आसाम आ बंगाल जाइत रहल अछि‍। पटुआ काटब, धोअब आ धान रोपब-काटब मुख्‍य काज रहल। जाहि‍सँ संग-संग रहैक, खाइ-पीवैक, नचै-गबैक अवसर भेटल। कला-संस्‍कृति‍मे मि‍श्रण भेल। जाहि‍सँ एक-दोसराक जि‍नगी मि‍लैत-जुलैत रहल अछि‍।
आजुक संस्‍थागत शि‍क्षण व्‍यवस्‍थाक सदृश्‍य तँ संस्‍था कम छल मुदा पूर्वहि‍सँ गुरूकूल शि‍क्षण व्‍यवस्‍थाक चलैन आबि‍ रहल छल। वि‍देशी शासकक संग भाषा-साहि‍त्‍य सेहो आएल। सामाजि‍क व्‍यवस्‍थाक मजबूतीक चलैत ओ ओते तेजीसँ आगू नहि‍ बढ़ि‍ सकल जते तेजीसँ बढ़क चाहि‍ऐक। ओना राज-काजमे अपन स्‍थान बना लेलक। जनसंख्‍याक (मि‍थि‍लाक) अनुपातमे पढ़ै-लि‍खैक व्‍यवस्‍था नगण्‍य छल। कारण छल अखुनका जकाँ ने पढ़ै-लि‍खैक एते साधन छल आ ने पढ़ैक आवश्‍यकता बुझैत छल जीवैक लूरि‍ सीखि‍ लेब प्रमुख्‍य छल। जे परि‍वार (माए-बाप) सँ भेटि‍ जाइत छलैक। कि‍छु एहनो काज (लूरि‍) छलैक जे समाजोसँ भेटैत छलैक। जाहि‍सँ स्‍पष्‍ट रूपे दू भागमे वि‍भाजि‍त छल। पढ़ल-लि‍खल लोकक समाज आ बि‍नु पढ़ल-लि‍खल उत्‍पादक समाज। मुदा समाज हुनके (पढ़ल-लि‍खल) सबहक देखाओल रास्‍तासँ चलैत रहल। पढ़ल-लि‍खल लोकक बीच संस्‍कृत आ बि‍नु पढ़ल-लि‍खल लोकक बीच अपन बोली (जे वादमे भाषा बनल) चलैत छल। नव-नव शब्‍दक जन्‍म सेहो होइत छल। वैदि‍क संस्‍कृत सेहो जनभाषाक नगीचे छल मुदा धीरे-धीरे परि‍नि‍ष्‍ठि‍त बनैत-बनैत दूर हटैत गेल। जाहि‍सँ वि‍शाल जन-समूह संस्‍कृतसँ दूर भऽ गेल। जेकर प्रभाव जन-मानसक जीवनक अानो-आनो अंगपर पड़ल। कला-संस्‍कृतपर सेहो पड़ल। जाहि‍सँ लोक संस्‍कृत सेहो पनपल। संस्‍कृत समाजोन्‍मुखी नहि‍ भऽ परि‍वारोन्‍मुखी हुअए लगल। समाजक बीच पालि‍ (प्राकृत) भाषाक जन्‍म भेल। समाज-सुधारक आ धार्मिक सम्‍प्रदायि‍क जनमानसक बीच पालि‍ भाषाक प्रयोग केलनि‍। एहि‍ रूपे संस्‍कृतसँ पाि‍ल, अपभ्रंश होइत आगू मुँहे ससरल। अपभ्रंशसँ मागधी आ मागधीसँ बि‍हारी, उड़ि‍या, बंग्‍ला आ असमि‍या भाषाक वि‍कास भेल।
बि‍हारी भाषाक अन्‍तर्गत भोजपुरी, मगही आ मैथि‍लीक वि‍कास भेल। बि‍हारक मैिथली भाषा क्षेकसँ पछि‍म उत्तर-प्रदेशक पूवरि‍या भाग धरि‍ भोजपुरी भाषा बढ़ल। दछि‍न बि‍हार (गंगासँ दछि‍न) मगही आ गंगासँ उत्तर नेपालक तराइ धरि‍ मैथि‍लीक वि‍कास भेल। ओना भाषाक संबंधमे कहल गेल अिछ जे- चारि‍ कोसपर पानी बदले आठ कोसपर बाणी।‍ बि‍हारक तीनू भाषा क्षेत्रक अन्‍तर्गत क्षेत्रीय बोली सेहो पनपैत रहल अछि‍।
गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदानक बीच बसल ि‍बहार, बंगाल आ आसामक बीच माटि‍-पानि‍ आ जलवायुक (कि‍छु वि‍षमता छोड़ि‍) समता सेहो अछि‍। समतल भूमि‍ आ एकरंगाह जलवायु रहने खेती-पथारी, उपजा-बाड़ीमे सेहो समता अछि‍। धान सन प्रमुख अन्न तीनू राज्‍यक मुख्‍य उपज छी। एक रंगाह उपजा-बाड़ी आ खेतीक लूरि‍सँ खेति‍हरक एकरंगाह जि‍नगी बनल। खान-पान, आचार-वि‍चार चालि‍-ढालि‍, कला-संस्‍कृतमे एकरूपता आएल। मुदा प्राकृति‍क प्रकोप आ व्‍यापारि‍क अनुकूल भेने बंगाल आ मि‍थि‍लाक दूरी बढ़ौलक। जाहि‍ठाम मि‍थि‍ला क्षेत्र पोखरि‍क पानि‍ जकाँ असथि‍र (कहि‍यो काल पैघ भूमकम आ अन्‍हर-तुफान होइत) बनल रहल ताहि‍ठाम बंगाल प्राकृति‍क प्रकोपसँ अधि‍क प्रभावि‍त होइत रहल अछि‍। व्‍यापारि‍क अनुकूलता (समुद्री मार्गसँ) सँ वेदेशीक प्रभाव सेहो बढ़ल। कोनो भाषा-साहि‍त्‍य ओहि‍ठामक जि‍नगीसँ प्रभावि‍त होइत। एहि‍ दृष्‍टि‍सँ जेहन उर्वर भूमि‍ बंगला साहि‍त्‍यकेँ भेटल ओ मैथि‍लीकेँ नहि‍ भेटल। वि‍देशी कला-संस्‍कृतक प्रभाव जते बंगालपर पड़ल ओते बि‍हारपर नहि‍ पड़ल।
ओना मि‍थि‍लांचलक प्राकृति‍क प्रकोप आ वि‍देशी शासनसँ ओते प्रभावि‍त नहि‍ भेल जते बंगाल भेल। मुदा अनुकूल जलवायु रहने मि‍थि‍लांचलमे मनुष्‍यक बाढ़ि‍ सभ दि‍नसँ रहल। जाहि‍सँ जनसंख्‍याक भार सभ दि‍न रहल। सामंतीक कुव्‍यवस्‍था आ जनसंख्‍याक भारसँ मि‍थि‍लांचल गरीबीक जालमे सभ दि‍न फँसल रहल। जाहि‍सँ कला साहि‍त्‍य, संस्‍कृति‍ सभ कि‍छु प्रभावि‍त होइत रहल। समाजक स्‍थि‍ति‍केँ आरो भयावह बनबैमे जातीय आ साम्‍प्रदायि‍क योगदान भरपूर रहल। टुकड़ी-टुकड़ीमे समाज वि‍भाजि‍त भऽ गेल। जेकर प्रभाव कला-संस्‍कृतपर सेहो नीक-नहाँति‍ पड़ल अछि‍।
अर्द्ध-मागधीसँ नि‍कलल मैथि‍ली तेरहवीं-चौदहवीं शताब्‍दीमे ज्‍योति‍रीश्‍वर आ कि‍छु पछाति‍ वि‍द्यापति‍क रचनासँ प्रारंभ भेल। लोकक कंठ-कंठमे वि‍द्यापति‍ समाए अखनो गाबि‍ रहला अछि‍। ओना वि‍द्यापति‍ संस्‍कृत भाषाक राजपंडि‍त छलाह मुदा समाजक जनभाषा सेहो जनैत छलाह। जाहि‍सँ संस्‍कृत-मैथि‍लीक संग अवहट्ठ (जनभाषा)मे कीर्तिलता आ कीर्तिपताका सेहो लि‍खि‍ कहलनि‍- सक्कय वाणी बहुअन भावय‍ उन्नैसवीं शताब्‍दीसँ पूर्व धरि‍ साहि‍त्‍य सृजन कवि‍तेमे होइत आवि‍ रहल छल। आने-आने भाषा जकाँ मैथि‍ली गद्यक वि‍कास सेहो पछाति‍ भेल। साहि‍त्‍य सृजन मूलत: गद्य आ पद्यमे होइत। गद्यक चरम उपन्‍यास छी तहि‍ना पद्यक महाकाव्‍य।
साहि‍त्‍यक आने वि‍धा जकाँ उपन्‍यासो छी। सामाजि‍क परि‍स्‍थि‍ति‍क दृष्‍टि‍सँ मैथि‍ली उपन्‍यासकेँ १९६०ई.सँ पूर्व आ साठि‍क पछाति‍केँ दू भागमे वि‍भाजि‍त कए आगू बढ़ैत छी। साठि‍क वि‍भाजन रेखाक पाछु देशक आजादी, ढहैत राजा-रजवाड़ आ भूमि‍-आन्‍दोलन प्रमुख कारण रहल अछि‍। साठि‍ ईस्‍वीसँ पूर्व मैथि‍लीमे नि‍म्न-लि‍खि‍त उपन्‍यासक सृजन भऽ चुकल छल। ि‍नर्दयी सासु (१९१४), शशि‍कला (१९१५), पूर्ण वि‍वाह (१९२६) दुरागमन रहस्‍य (१९४६), कलयुगी सन्‍यासी (१९२१) रामेश्‍वर (१९१५), सुमति‍ (१९१८), मनुष्‍यक मोल (१९२४) चन्‍द्रग्रहन (१९३३) कन्‍यादान (१९३३), सोन्‍दयोपासनक पुरस्‍कार (१९३८), सुशीला (१९४३) असहाया जाया (१९४५), जैबार (१९४६) पारो (१९४६) नवतुरि‍या (१९५६), कुमार (१९४६), भलमानुस (१९४७), कला (१९४६), वि‍कास (१९४६), चन्‍द्रकला (१९५०), प्रति‍मा (१९५०), मधुश्रावनी (१९५६) वीरकन्‍या (१९५०), वि‍दागरी (१९५०), अनलपथ (१९५४), वि‍द्यापति‍ (१९६०), कृष्‍णहत्‍या (१९५७), रत्‍नहार (१९५७), आन्‍दोलन (१९५८), दुर्वाक्षत (१९५८), आदि‍कथा (१९५८), चानोदय (१९५९), बि‍हाड़ि‍पात-पाथर (१९६०), दुरागमन (१९४५), चामुन्‍डा (१९३३), मालती-माधव (१९३५)
आजुक उपन्‍यास कलाक दृष्‍टि‍सँ भलेहीं उपरलि‍खि‍त सभ उपन्‍यासकेँ सफले नहि‍ कहब मुदा एहि‍ बातसँ इनकारो करब जे ओहि‍ उपन्‍यासकार सबहक संगे जेहन सामाजि‍क परि‍स्‍थि‍ति‍ छलनि‍ ओहि‍ अनुकूल नहि‍ अछि‍। हमरा सभकेँ एहि‍ बातक सदति‍ ध्‍यान राखए पड़त जे मैथि‍ली भाषा मि‍थि‍ला भूमि‍सँ जन्‍म नेने अछि‍ आ अखनो जीवि‍त अछि‍। पुरान भाषा मैथि‍ली रहि‍तहुँ आइ धरि‍ राजभाषाक रूपमे राज-दरवार नहि‍ पहुँचल, जे अवसर आइ भेटल, ओ प्रमाणि‍त करैत अछि‍ जे हम जीवि‍त भाषा छी। दुनि‍याँ अनेको एहेन राजभाषा अछि‍ जे मि‍थि‍ला क्षेत्र आ मैथि‍ली भाषासँ छोट अछि‍।
बीसवीं शताब्‍दीक पूर्वाद्धसँ आरंभ भेल उपन्‍यास साहि‍त्‍य कखनो कुदैत तँ कखनो ठमकि‍-ठमकि‍ चलि‍ अखनो चलि‍ रहल अछि‍। जे माटि‍-पानि‍ बंगला, असामी आ उड़ि‍या भाषा-साहि‍त्‍यकेँ भेटि‍लै से मैथि‍लीकेँ नहि‍ भेटि‍ सकलै तँए जँ ओहि‍ सभ साहि‍त्‍यसँ पछुआएल तँ एहि‍मे आश्‍चर्य की? ओना साठि‍क दशकमे मि‍थि‍लो समाजमे मोड़ आएल मुदा साहि‍त्‍य ठमकले रहि‍ गेल। उपन्‍यास साहि‍त्‍यक वि‍षए-वस्‍तुमे बढ़ाेत्तरी अवश्‍य भेल मुदा जाहि‍ रूपे होएवाक चाही से नहि‍ भेल। जि‍नगीक मुख्‍य समस्‍या साहि‍त्‍यक गौण रूपमे आ गौण समस्‍या मुख्‍य रूपमे बनल रहल। मुदा सौभाग्‍यक बात छी जे नव-नव उपन्‍यासकार मि‍थि‍लाक सर्वांगीण रूपकेँ दृष्‍टि‍मे राखि‍ लि‍खि‍ रहलाह अछि‍। ओना मि‍थि‍लाक जे वास्‍तवि‍क रूप अछि‍ ओ अत्‍यन्‍त दयनीय अछि‍। जाहि‍ बीच रहि‍ साहि‍त्‍य सृजन अत्‍यन्‍त कष्‍टकर अछि‍। मुदा मि‍थि‍ला तँ वएह धरती छी जाहि‍ठाम एकसँ एक ऋृषि‍-मुनि‍ साधना कए अपन दृष्‍टि‍ देलनि‍ जे दुनि‍याँक सभसँ ऊपर अछि‍।

     ग्रामीण चि‍त्रण-
ग्रामीण शब्‍दक दू अर्थ दू जगहपर होइत अछि‍। समग्र दृष्‍टि‍सँ ग्रामीण शब्‍दक अर्थ क्षेत्र-वि‍शेषक सभ कि‍छुसँ होइछ आ ग्रामीण परि‍धि‍मे (गामक सीमाक भीतर) ग्रामीण शब्‍द सि‍र्फ ग्राममे रहनि‍हार मनुष्‍यसँ होइछ। प्रश्‍न उठैत ग्राम संग ग्रामीण आकि‍ अगबे ग्रामीण?
ग्राम संग ग्रामीणक संबंध ओतबे नहि‍ होइत जे हम अमुख ग्राम रहै छी। ग्राम ओहि‍ रूपे ससरैत आगू बढ़ै जाहि‍ रूपे दुनि‍याँ ससरि‍ रहल अछि‍। जँ से नहि‍ हएत तँ लोक भागि‍-पड़ा ओहि‍ठाम पहुँचत जाहि‍ठाम सुगमतासँ सुभ्‍यस्‍त जि‍नगी भेटि‍तै। ग्रामक उत्‍पादि‍त पूँजी माटि‍-पानि‍, गाछ-वि‍रीछ, नदी-नाला इत्‍यादि‍ मनुष्‍यक संग पूरैबला आर्थिक आधार छी। कोनो जुग अबो आ जाओ, मनुष्‍यक जे मूल-समस्‍या अछि‍ ओ अनवरत रहवे करत। भलेहीं उन्नति‍ भेलापर सुगमता आओत, नहि‍ भेलापर जटि‍लता आओत। आजुक समयक मांग अछि‍ जे हमरा सबहक आर्थिक आधार ओहन बनए जे एक्कैसवीं शताव्‍दीक मनुष्‍य कहबैक अधि‍कारी बनी।
अंतमे, जहि‍ना पैघ गहवरमे सैकड़ो जगह पूजा ढारि‍ गोसाँइ खेलल जाइत तहि‍ना आइक समाजक मांग साहि‍त्‍यक अछि‍।

  


बेरमा, मधुबनी, ‍बि‍हार
५ मई २०१०

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