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Saturday, April 7, 2012

कुरूक्षेत्रम् अर्न्‍तमनक पर शिव कुमार झा ’टिल्लू’



 कुरूक्षेत्रम् अर्न्‍तमनक-
       (समीक्षा)

कि‍छु लोकक ई प्रवृति‍ होइत अछि‍ जे सदि‍खन अपन चल जीवनमे नव-नव प्रकारक प्रयोग करैत रहैत अछि‍। एहि‍ नव प्रयोगक कारण जहानमे अपवर्गक वि‍हान देखएमे अबैत अछि‍। प्रयोग धर्मिता व्‍यक्‍ति‍क इच्‍छासँ नहि‍ जन्‍म लऽ सकैछ, ई तँ नैसर्गिक प्रति‍भाक परि‍णाम थि‍क। मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे प्रयोग धर्मी सरस्‍वती पुत्रक अभाव नहि‍ परंच वर्तमान कालमे एकटा एहेन प्रयोगधर्मी मि‍थि‍ला पुत्रकेँ मॉ मि‍थि‍ले अपन ऑचरमे सक्रि‍य कएलनि‍, जे तत्‍कालि‍क मैथि‍लीक दशा वदलवाक प्रयास कऽ रहल छथि‍। क्रांति‍वादी आ सम्‍यक वि‍चार धाराक सम्‍पोषक ओ व्‍यक्‍ति‍ केओ अनचि‍न्‍हार नहि‍- मैथि‍ली साहि‍त्‍यक प्रथम अंतर्जाल पाक्षि‍क पत्रि‍का वि‍देहक सम्‍पादक- श्री गजेन्‍द्र ठाकुर छथि‍। भऽ सकैत अछि‍ जे कि‍छु लोक मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ अन्‍तर्जालसँ जोड़वाक प्रयास कए रहल हएताह परंच एकटा मूर्त्त रूप दऽ ६४ अंक धरि‍ पहुँचेवाक कार्य गजेन्‍द्रे जी कएलन्‍हि‍। साहि‍त्‍यक नव-नव वि‍धा आ समाजक वेमात्र वर्गकेँ मैथि‍लीक आलि‍ंगनमे आवद्ध कऽ साम्‍यवाद आ समाजवादकेँ वैदेहीक माटि‍पर आनि‍ हमरा सबहक माथपर लागल अनसोहांत कलंककेँ धो देलनि‍। मात्र ६४ अंकमे जे कार्य भेल अछि‍ ओ कतऽ-कतऽ पहि‍ने भेल छल, आत्‍म अवलोकन करवाक पश्‍चात् जानल जा सकैत अछि‍। समाजक फूजल, बेछप्‍प आ उदासीन वर्गकेँ अपन वयनाक मानस पटलपर आच्‍छादि‍त करवाक लेल साहस सभ केओ नहि‍ जुटा सकैत अछि‍। मात्र भॉज पुरयवाक लेल मानस पुत्र एहेन कार्य नहि‍ कएलनि‍, ओहि‍ उपेक्षि‍त वर्गक रचना कारक रचनामे वि‍षए-वस्‍तुक गति‍शीलता आ तादात्‍म्‍य वोध ककरोसँ कम नहि‍ अछि‍। प्रयोगधर्मी गजेन्‍द्र जीक कर्मक दोसर आमुख थि‍क हि‍नक लेखनीक धारसँ नि‍कलल इन्‍द्रधनुषक सतरंगी गुलालसँ भरल भावक आत्‍मउदवोधन- “‍कुरूक्षेत्रम अन्‍तर्मनक”
  एहि‍ पोथीकेँ की कहल जाए उपन्‍यास, गल्‍प, बाल साहि‍त्‍य, समालोचना, प्रवंध वा काव्‍य? साहि‍त्‍यक सभ वि‍धाक अमि‍र रसकेँ घोरि‍ वंगोपखाड़ी वना देलनि‍ जतए ई कहव असंभव अछि‍ जे गंगा, कोशी, यमुना वा हुगली ककर नीर कतए अछि‍?
शीर्षक देखि‍ अकचका गेल छलहुँ, ई महाभारत मचौता की! मुदा अपन हृदएसँ सोचल जाए प्रत्‍येक मानवक हृदएक दूटा रूप होइत अछि‍, मुदा अन्‍तर्मन सदि‍खन सत्‍य बजैत अछि‍ ओहि‍ठॉ मि‍थ्‍याक स्‍थान नहि‍।
कुरूक्षेत्र रणभूमि‍ अवश्‍य छल परंच ओहि‍ठॉ सत्‍यक वि‍जयक लेल युद्ध भेल। ओहि‍ठॉ धर्मसंस्‍थापनार्थ वि‍नाश लीला मचल छल। हमरा सभकेँ अपन अन्‍तर्आत्‍मामे कुरूक्षेत्रक दर्शन करएवाक लेल दि‍शा नि‍र्देशन कऽ रहल छथि‍ गजेन्‍द्र जी।
मैथि‍ली साहि‍त्‍यक कोन असत्‍यकेँ त्‍याग करवाक चाही? कि‍अए सुमधुर वयनाक एहेन दशा भेल? नव पथक नि‍र्माण नवल दृष्‍टि‍कोणसँ हएत। हमरा बुझने एहि‍ पोथीमे साहि‍त्‍य समागमक लेल दृष्‍टि‍कोणकेँ प्राथमि‍कता देल गेल अछि‍। एहेन वि‍लक्षण साहि‍त्‍यपर आलेख लि‍खव हमरा लेल आसान नहि‍ अछि‍- मुदा दु:साहस कऽ रहल छी-

भऽ रहल वर्ण-वर्ण नि‍:शेष
शब्‍दसँ प्रकटल नहि‍ उधेश्‍य
मोनमे रहल मनक सभ वात
अछि‍ंजलसँ सध: स्‍नात
सात खण्‍डमे वि‍भक्‍त एहि‍ पोथीकेँ सम्‍पूर्ण परि‍वारक लेल सनेश कहि‍ सकैत छी।
प्रवंध-नि‍वंध-समालोचना:- एहि‍ खण्‍डक आदि‍ लोकगाथापर आधारि‍त कथा सीत-वसंतसँ कएल गेल अछि‍। उत्तर मध्‍यकालीन इति‍हासमे अल्‍हा-ऊदल, शीत वसंत सन कतेक कथा प्रचलि‍त छल, जकर मंचन पद्यक रूपमे वर्तमानकालमे वि‍हारक गाम-गाममे भऽ रहल अछि‍। एक राज परि‍वारक वि‍षय-वस्‍तुक चि‍त्रण करैत लेखक सतमाएक ि‍सनेहपर प्रश्‍न चि‍न्‍ह लगैवाक प्रयास कएलनि‍ अछि‍? कथाक आरंभसँ इति‍ धरि‍ मर्मस्‍पर्शक अनुभव होइत अछि‍। कथाक अंतमे वि‍माताकेँ ओहि‍ पुत्रक छाया भेटलनि‍ जकर पराभव ओ कऽ देने छलीह।
श्री मायानन्‍द मि‍श्र मैथि‍ली साहि‍त्‍यक सभ वि‍धाक मांजल साहि‍त्‍य कार मानल जाइत छथि‍। हुनक इति‍हास वोधक चारू प्रमुख स्‍तंभ प्रथमं शैलपुत्री च, मंत्रपुत्र, पुरोहि‍त आ स्‍त्रीधनपर सम्‍यक आलेख प्रस्‍तुत कऽ गजेन्‍द्र जी पूर्वमे लि‍खल गेल प्रबंधक दृष्‍टकोणकेँ चुनौती दऽ रहल छथि‍। ऋृग्‍वैदि‍क कालीन इति‍हासपर आधारि‍त मंत्रपुत्र मायानन्‍द जीक प्रमुख कृति‍ मानल जाइत अछि‍। एहि‍ पोथीक लेल माया जीकेँ साहि‍त्‍य अकादेमी पुरस्‍कार भेटल अछि‍। मंत्रपुत्र पाश्‍चात्‍य इति‍हाससँ प्रभावि‍त अछि‍। मंत्रपुत्रक संग-संग पुरोहि‍तमे सेहो पाश्‍चात्‍य संस्‍कृि‍तक झलकि‍ देखए अबैत अछि‍। अपन समालोचनाकेँ गजेन्‍द्र जी अक्षरश: प्रमाणि‍त कऽ देने छथि‍, मुदा मायाबावूक रचना संसारपर कोनो तरह प्रश्‍न चि‍न्‍ह नहि‍ ठाढ़ कएलनि‍। समीक्षाक रूप एहने होएवाक चाही। समीक्षककेँ प्ूर्वाग्रह रहि‍त रहलासँ साहि‍त्‍यि‍क कृति‍क मर्यादा भंग नहि‍ होइत अछि‍।
केदारनाथ चौधरी जीक दू गोट उपन्‍यास ‘चमेली रानी’ आ ‘माहुर’पर गजेन्‍द्र जीक समीक्षा पूर्णत: सत्‍य मानल जा सकैत अछि‍। मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे बहुत रास रचनाक वि‍क्री सम्‍पूर्ण मैथि‍ल समाजमे जतेक नहि‍ भऽ सकल, ‘चमेली रानी’क ओतेक वि‍क्री मात्र जनकपुरमे भेल। एहि‍सँ एहि‍ साहि‍त्‍यक प्रति‍ पाठकक श्रद्धाकेँ देखल जा सकैत अछि‍। ‘माहुर’ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक लेल क्रांति‍कारी उपन्‍यास थि‍क। अरवि‍न्‍द अडि‍गक कृति‍क चरि‍त्रसँ एहि‍ उपन्‍यासक एक पात्रक तुलना लेखकक भाषायी समृद्धताकेँ प्रदर्शित करैत अिछ।
वि‍देह-सदेहक सौजन्‍यसँ श्रुति‍ प्रकाशन द्वारा नचि‍केता जीक एकटा नाटक ‘नो एण्‍ट्री मा प्रवि‍श’ प्रकाशि‍त भेल अछि‍। एहि‍ नाटकक लेखनपर नचि‍केता जीकेँ कीर्ति नारायण मि‍श्र सम्‍मान देल गेल अछि‍। नाटकक चारू कल्‍लोलक तर्क पूर्ण वि‍श्‍लेषण कऽ गजेन्‍द्र जी समीक्षाक रूप बदलवाक प्रयास कएलनि‍ अछि‍। एहि‍ नाटकमे तार्किकता आ आधुनि‍कताक वि‍षय वस्‍तु नि‍ष्‍ठताकेँ ठाम-ठाम नकारल गेल अछि‍।
रचना लि‍खवासँ पहि‍ने अध्‍यायमे गजेन्‍द्र जी मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे भाषा सम्‍पादनपर वि‍शेष ध्‍यान देवाक प्रयास कएलनि‍। अपन साहि‍त्‍यमे भाषायी त्रुटि‍पर पूर्णरूपसँ ध्‍यान नहि‍ देल जा रहल अछि‍।
कवि‍शेखर ज्‍योति‍रीश्‍वर, वि‍द्यापति‍ शब्‍दावली, रसमय कवि‍ चर्तुभूज शब्‍दावली आ बद्रीनाथ शब्‍दावली द्वारा मि‍थि‍ला-मैथि‍लीक सर्वकालीन शब्‍द वि‍न्‍यासक आ शब्‍द भंडारक वि‍स्‍तृत वर्णन कएल गेल अछि‍। एहि‍सँ नि‍श्‍चय भाषा सम्‍पादनमे सहायता भेटल। कतेक रास एहेन शब्‍द अछि‍ जकर वि‍षयमे हम की साहि‍त्‍यक पैघ-पैघ वेत्ता पहि‍ने नहि‍ जनैत होएताह। नि‍श्‍चि‍त रूपसँ ई अध्‍याय पाठकक संग-संग साहि‍त्‍यकार आ असैनि‍क सेवाक ओहि‍ प्रति‍योगीक लेल उपयोगी हएत जे मैथि‍लीकेँ मुख्‍य वि‍षयक रूपे प्रति‍योगि‍तामे सम्‍मि‍लि‍त होएवाक लेल प्रयत्‍नशील छथि‍। समीक्षक हमरा सबहक मध्‍य एकटा नव पद्य वि‍धाक चर्च कऽ रहल छथि‍- हाइकू। एहि‍ वि‍धापर मैथि‍लीमे पहि‍नहुँ रचना होइत छल जेना- “‍ई अरदराक मेघ नहि‍ मानता रहत बरसि‍केँ। मुदा एहि‍ विधाकेँ क्षणि‍का नाअोसँ जानल जाइत छल। जापानी साहि‍त्‍यक द्वारा सृजि‍त एहि‍ पद्य रूपक वास्‍तवि‍क चि‍त्रण मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे गजेन्‍द्र जी आ ज्‍योति‍ झा चौधरी कएलनि‍ अछि‍।
मि‍थि‍लाक लेल प्रलय कहल जाए वा वि‍भीषि‍का- ‘बाढ़ि‍’ ई शब्‍द सुनि‍तहि‍ कोशी, कमला, बलान, गंडकी, बागमती आ करेहक आंतसँ ओझराएल लोक सभ कॉपि‍ जाइत छथि‍। एहि‍ समस्‍याक स्‍थि‍ति‍, सरकारी प्रयासक गति‍ आ दि‍शाक संग-संग बचवाक उपाएपर लेखकक दृष्‍टि‍कोण नीक बुझना जाइत अछि‍।
कोनो ठाम आ कोनो आन धाममे जौं हमरा लोकनि‍क वि‍षयमे पता चलए-की मैथि‍ल छथि‍, लोकक दृष्‍टकोण स्‍पष्‍ट भऽ जाइत अछि‍- हम सभ मछगि‍द्धा छी। एकर कारण जे धारक कातमे रहनि‍हार जीवक जीवन जलचरे जकाँ होइत अछि‍।
जलीय जीवक भक्षण अधि‍कांश व्‍यक्‍ति‍ करैत छथि‍। तेँ ने हमरा सभकेँ मॉछ आ मखानक प्रेमी बुझल जाइत अछि‍, आ वास्‍तवमे हम सभ मॉछक प्रेमी छी। अधि‍कांश मैथि‍ल ब्राह्मण परि‍वारमे सोइरीसँ श्राद्ध धरि‍ माॅछक भक्षण अनि‍वार्य अछि‍। अान जाति‍मे अनि‍वार्य तँ नहि‍ अछि‍, मुदा ओहु वर्गक अधि‍कांश लोक मॉछक प्रेमी छथि‍। लेखक एहि‍ लोकक भक्षण धारकेँ ध्‍यान धरैत कृषि‍ मत्‍स्‍य शब्‍दावली लि‍खलन्‍हि‍ अछि‍।
एहि‍मे सभ प्रकार मॉछक आकार, रंग, रूपक वि‍श्‍लेषण कएल गेल अछि‍। कृषि‍कार्यक लेल जोड़ा वरदक संग हर पालो इत्‍यादि‍क ज्‍वलन्‍त व्‍यवस्‍थापर लेखकक वि‍चार नीक मानल जा सकैत अछि‍। करैल, तारवूज आ खीराक वि‍वि‍ध प्रकारक नाओ सुनि‍ गामक जि‍नगी स्‍मरण आवि‍ जाइत अछि‍।
एहि‍ खण्‍डक सभसँ नीक वि‍षय जे हमरा अन्‍तर्मनकेँ हि‍लकोरि‍ देलक ओ अि‍छ वि‍स्‍मृति‍ कवि‍- पंडि‍त राम जी चौधरीक रचना संसारपर प्रवाहमय आ वि‍स्‍तृत प्रस्‍तुति‍।
हमरा सबहक भाखाक संग ि‍कछु वि‍षमता रहल जे एहि‍मे कतेक रास एहेन रचनाकार भेल छथि‍ जे अपने संग अपन रचनाकेँ गेंठ बन्‍हने वि‍दा भऽ गेलाह। एकर कारण एहि‍मे सँ कि‍छु रचनाकारक रचनाक संकलन नहि‍ भऽ सकल वा भेवो कएल तँ पाठक धरि‍ नहि‍ पहुँचल। एहि‍ लेल ककरा दोष देल जाए रचनाकारकेँ आ हमरा सबहक भाषाक तत्‍कालीन रक्षक लोकनि‍केँ? एहि‍ भीड़मे राम जी चौधरीक नाओ सेहो अछि‍। मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे रागपर लि‍खल रचनामे राम जी बावूक रचना सेहो अछि‍। भक्‍ति‍मय राग वि‍नय वि‍हाग, महेशवाणी, ठुमरी ति‍रहुता, ध्रुपद, चैती आ समदाओनक रूपमे हुनक लेखनीसँ नि‍कलैत गीत सभ अलम्‍य अछि‍। शास्‍त्रीय शैलीक मैथि‍ली गायनमे वर्तमान पि‍रहीक लेल अत्‍यन्‍त उपयोगी रचना सभकेँ प्रकाशमे आनि‍ गजेन्‍द्र जी मि‍थि‍ला, मैथि‍ली आ मैथि‍लपर पैघ उपकार कएलनि‍ अछि‍। सत्‍यकेँ स्‍वीकार करवाक सामर्थ्‍य मात्र कि‍छुए लोकमे होइत अछि‍। गजेन्‍द्र जी ओहि‍ लोकक पातरि‍मे ठाढ़ एक व्‍यक्‍ति‍ छथि‍ परि‍णामत: मैथि‍ली साहि‍त्‍य भोजपुरीसँ आगाँ मानल जाइत अछि‍ मुदा गुणवताक दृष्‍टि‍ए भोजपुरी रास परि‍मार्जि‍त अछि‍। भोजपुरी साहि‍त्‍यक काल पुरूष भि‍खारी ठाकुरक मर्म स्‍पर्शी वि‍देशि‍या एहि‍ भाषाक अलग पहि‍चान भेटल। मैथि‍ली भाषामे वि‍देशि‍याक कमीक मुख्‍य कारण रहल-प्रवासक प्रति‍ उदासीनता। जौं लि‍खलो गेल तँ महाकाव्‍यक रूप दऽ देल गेल। वि‍देशि‍या पद्य आ वि‍धापति‍क लि‍खल? हमरो वि‍श्‍वास नहि‍ भेल छल। वि‍द्यापति‍केँ मुख्‍यत: श्रैंगारि‍क कवि‍ मानल जाइत अछि‍। ओना हुनक रचनाकेँ भक्‍ति‍ रससँ सेहो जोड़ल जाइत अछि‍। कुरूक्षेत्रम अन्‍तर्मनक पोथी पढ़लासँ नव सोच मोनमे आवि‍ गेल। जकरा भोजपुरी साहि‍त्‍यमे वि‍देशि‍या कहल गेल वास्‍तवमे मैथि‍लीमे ओ अछि‍- पि‍या देशान्‍तर।
वि‍द्यापति‍क नेपाल पदावलीमे एहि‍ प्रकार रचना सभ संकलि‍त अछि‍, मुदा कहि‍यो एहि‍ रूपे महि‍मा मंडि‍त नहि‍ कएल गेल। कारण स्‍पष्‍ट अछि‍ पि‍या देशान्‍तरक नाटय रूप मि‍थि‍लाक पि‍छड़ल जाति‍क मध्‍य प्रदर्शित कएल जाइत अछि‍। तेँ अग्रसोची लोकनि‍ एकरासँ दूरे रहव उचि‍त बुझैत छथि‍। एहि‍सँ मैथि‍लीक दशा-दि‍शाकेँ नव गति‍ कोना भेटि‍ सकैत अछि‍। मैथि‍ली लोकभाषा अछि‍, लोक संस्‍कृति‍केँ बढ़यवाक प्रयास करवाक चाही। गजेन्‍द्र जीक सोझ दृष्‍टि‍कोणकेँ वि‍म्‍वि‍त करवाक चाही।
  “एतहि‍ जानि‍अ सखि‍ प्रि‍यतम व्‍यथा‍” –श्रैंगारि‍क-वि‍रह व्‍यथाक वर्णन मुदा अछि‍ तँ पि‍या देशान्‍तर।
       श्री सुभाष चन्‍द्र यादव जीक कथा संग्रह ‘बनैत-वि‍गड़ैत’पर गजेन्‍द्र जीक समीक्षा अपूर्व अछि‍। प्रवेशि‍कामे हुनक कथा ‘काठक बनल लोक’ पढ़ने छलहुँ। काठक बनल लोकक नायक वदरि‍याक मर्म देखि‍ पाथरो पि‍घलि‍ जा सकैत अछि‍। वास्‍तवमे सुभाष जी मैथि‍ली साहि‍त्‍यक फनीश्‍वर नाथ रेणु छथि‍। महि‍मा मंडनक कालमे मात्र भाँज पुरएवाक लेल हि‍नक कथा पाठ्यक्रममे दऽ देल जाइत अछि‍। आंचलि‍क रचनाकेँ कहि‍या धरि‍ उपहासक पथि‍यामे झाॅपि‍ कऽ राखल जाएत? एक नहि‍ एक दि‍न छीप उधि‍या जएत आ सत्‍यक सामना करए पड़त। लोक धर्मी साहि‍त्‍यकार चाहे ओ धूमकेतु, कुमार पवन कमला चौधरी, सुभाष चन्‍द्र यादव, जगदीश प्रसाद मंडल वा कोनो आन होथु- हुनका सबहक रचनाक उपेक्षा नहि‍ होएवाक चाही। सुभाष जीक कथा कनि‍या-पुतरा, बनैत-वि‍गड़ैत आ दृष्‍टि‍क समीक्षा देखि‍ समए-कालक दशाक अवि‍रल द्वन्‍द्व उपस्‍थि‍त भऽ जाइत अछि‍। ऋृणी छी जे गजेन्‍द्र बावू एहि‍ पोथीपर समीक्षा लि‍खलन्‍हि‍। इंटरनेटक लेल अन्‍तर्जाल प्रयोग, नीक लागल। वेवसाइट बनएवाक तकनीकसँ गजेन्‍द्र जीक उद्वोधन आ नि‍यमन नहि‍ बुझि‍ सकलहुँ। तीन वेरि‍ पढ़लहुँ मुदा जेठक तेज वि‍हारि‍ जकाँ मॉथपरसँ उड़ि‍ गेल। नव-नव नेना भुटका बुझि‍ जएताह। तकनीकी युगक नेनाक स्‍मरण शक्‍ति‍क आॅगन पैघ होइत छथि‍ तेँ हुनके सबहक लेल एहि‍ अध्‍यायकेँ छोड़ि‍ देलहुँ।
लोरि‍क गाथा समाजक उपेक्षि‍त वर्गक संस्‍कृति‍पर आधारि‍त अछि‍। सहरसा-सुपौलक वीर आदि‍ पुरूष लोकि‍कक परि‍चए-पातमे पौराणि‍क मैथि‍ल संस्‍कृति‍क दर्शन होइत अछि‍।
मि‍थि‍लाक खोजमे जनकपुर, सुग्‍गा धनुषा सन नेपालक स्‍थलसँ लऽ कऽ मधुबनी जि‍लाक कतेको उत्तर मैथि‍ल गामसँ दक्षि‍णमे जयमंगलागढ़ (वेगूसराय)क चर्च कएल गेल अछि‍। पूवमे पूर्णिया कि‍शन गंजक कतेक स्‍थलसँ लऽ पश्‍चि‍ममे चामुण्‍डा (मुजफ्फरपुर)क मॉ दुर्गाक मंदि‍रक चर्च कएल गेल अछि‍।
मि‍थि‍लाक ि‍कछु स्‍थानक वर्णन एहि‍ सुचीमे नहि‍ भेटल जेना- सती स्‍थान (गाम-शासन प्रखंड-हसनपुर जि‍ला- समस्‍तीपुर) आ उदयनाचार्यक जन्‍म स्‍थली (गाम-करि‍यन जि‍ला- समस्‍तीपुर)। एहि‍ लेल लेखककेँ दोष नहि‍ देल जा सकैत अछि‍, कि‍एक तँ मि‍थि‍लाक खोज वि‍देहसँ लेल गेल अछि‍, जाहि‍मे गजेन्‍द्र जी अवाहन कएने छथि‍, जे जि‍नका लग कोनो प्रसि‍द्ध स्‍थलक वि‍षएमे जानकारी हुअए जे एहि‍मे सम्‍मि‍लि‍त नहि‍ अछि‍ तँ ओकर छाया चि‍त्रक संग सूचना पठाओल जाए। कि‍छु स्‍थल आर छूटल भऽ सकैत अछि‍, प्रवुद्ध पाठक एहि‍ वि‍षएपर कार्य कऽ सकैत छी।
सहस्‍त्रवाढ़नि‍ उपन्‍यास :- सहस्‍त्रवाढ़नि‍ एकटा आकाशीय पि‍ण्‍ड होइत अछि‍, जकर दर्शन आर्यक धार्मिक दृष्‍टि‍कोणमे अछोप बुझना जाइत अछि‍, मुदा उपन्‍यासकार एक अछोप पि‍ण्‍डकेँ आत्‍मसात् करैत एकरा सावि‍त्री बना देलनि‍। सावि‍त्री अपन पाति‍ब्रत्‍य आ दृढ़ नि‍श्‍चयसँ सत्‍यवानक प्राण यमराजसँ छीनि‍ लेने छलीह। एहि‍ उपन्‍यासक दृष्‍टि‍कोण तँ एहन नहि‍ अछि‍ परंच उपन्‍यासक नायक आरूणि‍क मृत्‍युपर वि‍जयमे सहस्‍त्रवाढ़नि‍क उत्‍प्रेरणक उद्वोधन कएल गेल अि‍छ। कुरूक्षेत्रम अन्‍तर्मनक मूल पृष्‍ठपर सहस्‍त्रवाढ़नि‍क चि‍त्र देल गेल अछि‍। एहि‍सँ प्रमाणि‍त होइत अछि‍ रचनाकारक दृष्‍टि‍मे सम्‍पूर्ण पोथीक सातो खण्‍डमे एहि‍ उपन्‍यासक वि‍शेष महत्‍व अछि‍। सहस्‍त्रवाढ़नि‍क अध्‍ययन कएलापर उन्नैसम शताब्‍दीक उतरांशसँ वर्तमानकाल धरि‍क वर्णन कएल गेल अछि‍।
एक परि‍वारक एक सए पंद्रह बरखक कथाक वर्णनकेँ कल्‍प कथा मानव नि‍श्‍चि‍त रूपसँ रचनाकारक भावनापर कुठाराघात मानल जाएत। सध: ई कथा रचनाकारक पॉजड़ि‍क कथा अछि‍। जौं एकरा गेजेन्‍द्र बावूक आत्‍मकथा मानल जाए तँ संभवत: अति‍ शयोक्‍ति‍ नहि‍ हएत।
उपन्‍यासक आदि‍ पुरूष झि‍ंगुर बावू एकटा कि‍सान छथि‍। जनि‍क घरमे भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेसक स्‍थापना बर्ख सन् १८८५ई.मे एकटा बालक जन्‍म लेलन्‍हि‍- कलि‍त। कलि‍तक नेनपनसँ एहि‍ उपन्‍यासक श्री गणेश कएल गेल। कलि‍तकेँ ओहि‍ कालमे वंगाली शि‍क्षकसँ अंग्रेजीक शि‍क्षण व्‍यवस्‍था दरि‍भंगामे कएल गेल। एहि‍सँ दू प्रकारक भावक वोध होइत अछि‍। पहि‍ल जे झि‍ंगुर बावू समृद्ध लोक छलाह। ओहि‍ कालमे अवहट्ठक शि‍क्षा सेहो गनल गुथल परि‍वारमे देल जाइत छल, अंग्रेजीक कथा तँ अति‍ वि‍रल छल। देासर जे वंगाली लोक हमरा सभसँ शि‍क्षाक दृष्‍टि‍मे आगाँ छलाह। वंगाली जाति‍क अंग्रेजी शि‍क्षक, हम सभ कतेक पाछाँ छलहुँ जे हमरा सबहक संस्‍कृति‍क राजधानी दरि‍भंगामे कोनो मैथि‍ल अंग्रेजी शि‍क्षक झि‍ंगुर बावूकेँ नहि‍ भेटलन्‍हि‍।
सौराठ आ ससौलाक सभा गाछीक चर्च तँ बेरि‍-बेरि‍ कएल जाइत अछि‍, मुदा एहि‍ पोथीमे वि‍लुप्‍त सभा बलान कातक गाम परतापुरक सभा गाछीसँ कथाकेँ जोड़वाक दृष्‍टि‍कोण अलग मुदा नीक बुझना जाइत अछि‍। कलि‍तक वि‍वाहमे वर महफामे, बूढ़ वरि‍याती कटही गाड़ीमे आ जवान लोकक पैदल जाएव वर्तमान पीढ़ीक लेल अजगुत लागत मुदा अपन पुरातन संस्‍कृति‍सँ नेना-भुटकाकेँ आत्‍मसात कराएव आवश्‍यक अछि‍। कलि‍तक मृत्‍युक पश्‍चातक कथा हुनक छोट पुत्र- नंद-क परि‍धि‍मे धूमए लागल। नंदक पारदर्शी सोच, अपन कनि‍यासँ प्रत्‍यक्षत: गप्‍प करव, तृतीय पुरूषक रूपे संवोधन नहि‍। मि‍थि‍लामे वर-कनि‍या, सासु-पुतोहु, साहु जमाएक गप्‍पमे तृतीय पुरूषक संवोधन अनिवार्य होइत अछि‍। एहि‍ प्रकारक व्‍यवस्‍थाक वि‍रूद्ध नंदजी अपन नवल सोचकेँ केन्‍द्रि‍त कएलन्‍हि‍। वर-कनि‍याँक संवंध स्‍वाभावि‍क रूपेँ तँ समझौता मात्र होइत अछि‍ परंच संसारक व्‍यवस्‍थामे सभसँ पवि‍त्र आ अपूर्व संबंध यएह होइत अछि‍। जीवन भरि‍ नि‍र्वहन कोनो एक जनक संग छूटलापर दोसरमे व्‍यथा..... अकथ्‍य व्‍यथा। तेँ एहि‍ संबंधमे प्रत्‍यक्ष संवोधन होएवाक चाही। हमर दृष्‍टि‍कोण ई नहि‍ जे अपन संस्‍कृति‍ पराभव कऽ देवाक चाही, मुदा संस्‍कृति‍ आ व्‍यवस्‍थाकेँ सेहो कालक गति‍मे परि‍वर्तनक अनि‍वार्यता प्रतीत होइत अछि‍।
आर्यावर्त्त न्‍याय, कर्म, मीमांसा सन प्रांजल दर्शनक अार्विभाव भूमि‍ मानल जाइत अछि‍। एहि‍ खण्‍डमे एकटा नव दर्शनसँ मि‍थि‍लाक भूमि‍केँ वैशि‍ष्‍ट्ता प्रदान कएल गेल ओ अछि‍- इमान आ मर्मक वि‍म्‍बमे संबंधक मर्यादा। नंद बावू इंजीनि‍यर छलाह। जौं अपन धर्मकेँ कि‍छु ढील कऽ दैतथि‍ तँ भौति‍कताक बाढ़ि‍सँ परि‍वार ओत-प्रोत भऽ सकैत छल। मुदा एना नहि‍ कऽ सतत अपन कर्मकेँ साकार सत्‍यसँ बान्‍हि‍ लेलन्‍हि‍। स्‍वाभावि‍क अछि‍ अर्थयुगमे इमानक प्रासंगि‍कता बड़ ओछ भऽ जाइत अछि‍। असमए मृत्‍युक पश्‍चात् परि‍वारक दशाक वि‍वेचन मर्मस्‍पर्शी लागल। हुनक सत् कर्मक प्रभाव यएह भेल जे संतान सभ वि‍शेषत: आरूणि‍ भौति‍क रूपसँ रास संपन्न तँ नहि‍ भऽ सकलाह मुदा पि‍ताक छत्र-छायाक आंगनमे मनुक्‍ख भऽ गेलाह। कर्मक गति‍सँ लोक राज भोगकेँ प्राप्‍त तँ कए सकैत अछि‍, मुदा मनुक्‍ख बनवाक लेल नैसर्गिक संस्‍कार वेशी महत्‍वपूर्ण होइत अछि‍। तेँ कहलो गेल अछि‍- “बढ़ए पूत पि‍ताक धर्मे।‍” कतहु-कतहु नीच वि‍चारक मानवक संतान मनुसंतान भऽ जाइत अछि‍, एहि‍मे दैहि‍क संस्‍कार आ प्रकृति‍क लीला होइत अछि‍। आरूणि‍क दृढ़ वि‍श्‍वासपर केन्‍द्रि‍त एहि‍ उपन्‍यासक कथामे सतत प्रवाहक गंगधारा खहखह आ शीतल बुझना गेल। जँ कथाकेँ आत्‍मसात् कएल जाए तँ कोनो अर्थमे एकरा काल्‍पनि‍क नहि‍ मानल जा सकैछ। आत्‍मकथा स्‍पष्‍टत: नहि‍ मानि‍ सकैत छी, कि‍एक तँ उपन्‍यासकार कोनो रूपेँ एकर उद्वबोधन नहि‍ कएलनि‍ अछि‍। भऽ सकैत अछि‍ समाजक अगल-बगलक रेखाचि‍त्र हो, मुदा हमरा मतेँ ई कल्‍पना नहि‍, सत्‍य घटनापर आधारि‍त अछि‍।
       उपन्‍यासमे एकटा कमी सेहो देखलहुँ। अंग्रेजी आखरक ठाम-ठाम प्रयोग कएल गेल जेना- एनेश्‍थेशि‍या, ओपि‍नि‍यन, इम्‍प्रेशन आदि‍। एहि‍ सभ शब्‍दक स्‍थानपर अपन शब्‍दक प्रयोग कएल जा सकैत छल, मुदा नहि‍ कएल गेल। हमरा बुझने हम दोसर भाखाक ओहि‍ शब्‍द सभकेँ मात्र आत्‍मसात करी जकर स्‍थानपर हमर अपन भाखामे शब्‍दक अभाव अछि‍।
सहस्‍त्राब्‍दीक चौपड़पर :- कुरूक्षेत्रम अन्‍तर्मनकक तेसर खण्‍ड कवि‍ता संग्रहक रूपमे अछि‍, जकर शीर्षक ‘सहस्‍त्राब्‍दीक चौपड़पर’ देल गेल। मात्र तैंतालीस गोट कवि‍ताक सम्‍मि‍लनमे श्रंृगार, वि‍रह हैकू, वि‍चार मूलक कवि‍ताक संग-संग एकटा ध्‍वज गीत सेहो अछि‍। इन्‍द्रधनुषक आसमानी रंग जकाँ प्रथम कवि‍ता ‘शामि‍ल वाजाक दुन्‍दभी वादक’मे क्षणि‍क प्रकृति‍क आवरणमे स्‍वर-सरगमक भान होइत अछि‍, मुदा अन्‍तरक अवलोकनक पश्‍चात् दशा पूर्णत: वि‍लग। राजस्‍थानक वाद्य संस्‍कृति‍मे एकटा दर्शक वाद्य यंत्रक प्रासंगि‍कताक केन्‍द्रनमे कवि‍क भाव अस्‍पष्‍ट लागल। सहज अछि‍ ‘जतऽ‘ नहि‍ पहुँचथि‍, अेातऽ गएलनि‍ कवि‍’। कवि‍ स्‍वयं दुन्‍दभी वादक छथि‍ तेँ स्‍पष्‍ट दर्शन कोना हएत। हि‍न्‍दी साहि‍त्‍यमे एकटा कवि‍ता पढ़ने छलहुँ ‘गोरैयो की मजलि‍समे कोयल है मुजरि‍म’। संभवत: समाजक पथ प्रदर्शकक मूक दृष्‍टकोणकेँ कवि‍ताक केन्‍द्र वि‍न्‍दु बनाओल गेल अछि‍। बहुआयामी व्‍यक्‍ति‍त्‍वक धनी व्‍यक्‍ति‍ सेहो जीवनक गति‍मे दबावक अनुभव करैत कतहु-कतहु अपन संवेदनाकेँ दवा कऽ दुन्‍दभी बनवाक नाटक करैत छथि‍। केओ-केओ दोसरकेँ संतुष्‍ट करबाक लेल अपन वि‍चारधारा वाह्य मनसँ बदैल दैत छथि‍। संतुष्‍टीकरण प्रवृति‍ वा कोनो प्रकारक मजवूरी हो हमरा सभकेँ परि‍स्‍थि‍ति‍सँ सामंजस करबाक बहाने अपन सम्‍यक वि‍चारकेँ माटि‍क तरमे नहि‍ झॅपवाक चाही। समाज जौं एकरा पूर्वाग्रह मानए तँ अपन पक्षक वि‍वेचन कएल जाए, मुदा अनर्गल प्रलापकेँ मूक समर्थक नहि‍ देवाक चाही।
मोनक रंगक अदृश्‍य देवालमे परि‍स्‍थि‍ति‍जन्‍य वि‍षमताक वि‍षय वस्‍तुक दर्शन आशातीत अछि‍। मन्‍दाकि‍नी.... आ पक्का जाठि‍ शीर्षक कवि‍तामे प्रकृति‍ आ समाजक स्‍थि‍ति‍क मध्‍य वि‍गलि‍त मानवतापर मूक प्रहारमे कवि‍क नैसर्गिक मुदा अदृश्‍य सोच हमरा सन साधारण समीक्षक लेल अनुबूझ पहेली जकाँ अछि‍। अपन पुरातन इति‍हासक ओहि‍ दि‍वसकेँ लोक स्‍मरण नहि‍ करए चाहैत छथि‍, जाहि‍सँ अतुल पीड़ाक अनुभव होइत अछि‍। त्रेता युगक घटना, कलि‍युग धरि‍ पाछाँ धेने अछि‍। सीता जीक वि‍याह अगहन शुक्‍ल पक्ष पंचमीकेँ भेलनि‍, परि‍णाम सोझा अि‍छ। तखन शतानंद पुरोहि‍त जी खरड़ख वाली काकीक वि‍आह ओहि‍ ति‍थि‍मे कि‍एक करौलन्‍हि‍? भऽ सकैत अछि‍ हुनक भाग्‍यमे सीताजी जकाँ गृहस्‍थ सुख नहि‍ लि‍खल दुख मुदा कलंक तँ ‘वि‍याह पंचमी’ ति‍थि‍केँ देल गेल। एहि‍ कवि‍तामे कवि‍क दृष्‍टकोण तँ वि‍धवा वि‍आहक समर्थन करवाक अछि‍, मुदा सवर्ण मैथि‍ल नहि‍ स्‍वीकार कऽ रहल छथि‍। अपन पुरान सॉगह लऽ कऽ हम सभ हवड़ाक पुल बनाएवक कल्‍पनामे कहि‍या धरि‍ ओझराएल रहव?
एहि‍ कवि‍ता संग्रहमे जे नव वि‍षय बुझना गेल ओ अछि‍ ‘बारह टा हैकू’। गि‍दरक नि‍रैठ, राकश थान, शाहीक मौस आ बि‍धक लेल शब्‍द-शब्‍द बजैत अछि‍।
हैकूक सार्थक अर्थ लगाएव अत्‍यन्‍त कठि‍न होइत अछि‍, मुदा हमरा बुझने जौं एहेन हैकू लि‍खल जाए तँ नेनो सभ जे मैथि‍लीमे माए परि‍वार कुटुम्‍वक संग बजैत छथि‍ अवश्‍य बूझि‍ जएताह।
मि‍थि‍लाक ध्‍वज गीतमे मातृभूमि‍सँ कर्मक सार्थक गति‍ मांगल गेल अछि‍। जेना गायत्री परि‍वारक प्रार्थना वह शक्‍ति‍ हमे दो दयानि‍धि‍ मे गाओत जाइत अछि‍। मातृ वंदनाकेँ कवि‍ता संग्रहमे देवाक हि‍नक दृष्‍टि‍कोण रचनाक्रममे उपयुक्‍त हो मुदा हमरा मते एकरा कुरूक्षेत्रम अन्‍तर्मनक प्रथम पृष्‍ठपर वंदनाक रूपमे देल गेल रहि‍ते तँ बेसी सुन्नर होइतए।
‘बड़का सड़क छह लेन बला’मे मि‍थि‍लाक वि‍कासक क्रमि‍त स्‍थि‍ति‍क वर्णन कएल गेल अछि‍।
सम्‍पूर्ण कवि‍ता संग्रहक अवलोकनक वाद कोनो पद्य अकच्‍छ करैबला नहि‍ लागल। ‘पुत्र प्राप्‍ति‍’ शीर्षक कवि‍तामे लुधि‍यानामे हमरा सबहक समूहक एकटा पंडि‍तक ठकपचीसीक चर्च कएल गेल अछि‍। एहने ठकक कारण ‘वि‍हारी’ व्‍यक्‍ति‍केँ आठ ठाम लोक शंकाक दृष्‍टि‍सँ देखैत छथि‍। मुदा गजेन्‍द्रजी सँ हमर आग्रह जे एहि‍ कवि‍ताक पंजावी भाषामे अनुवादक अनुमति‍ नहि‍ देल जाए नहि‍ तँ कतेको भलमानुष बनल मैथि‍ल घुरि‍ कऽ गाम आवि‍ जएताह आ हमरा सबहक समाजमे कुचक्र आरो बढ़ि‍ जाएत।
गल्‍प गुच्‍छ  ::  २३ गोट कथा-लघुकथाक सम्‍मि‍लन कऽ गल्‍प गुच्‍छक नाओ देल गेल। चौंसठि‍ पृष्‍ठक एहि‍ खण्‍डमे समए-सालक सभ रूपकेँ बि‍म्‍वि‍त करैत कथाकार साि‍हत्‍यक समग्र वि‍धापर लेखनक प्रयास कएलनि‍ अछि‍। सर समाज कथामे अर्थनीति‍क मौन प्रस्‍तुति‍ नीक लागल मुदा कलात्‍मक शैलीक अभाव बुझना गेल। घरक मरम्‍मति‍क बि‍म्‍वि‍त खि‍स्‍सामे कनेक रस-प्रवाह रहि‍तए तँ कथा आर नीक भऽ सकैत छल। हम नहि‍ जाएव वि‍देशमे पलायनवादक वि‍रोध कएल गेल अछि‍ बि‍म्‍व तँ नीक अछि‍ मुदा वि‍श्‍लेषणमे अलंकारक तादात्‍म्‍य नहि‍ भेटल। एहेन मार्मिक वि‍षय-वस्‍तुक कथा तँ ओहि‍ प्रकारक होएवाक चाही जाहि‍सँ हि‍यमे हि‍लकोरि‍ उत्‍पन्न भऽ जाए। राग भैरवी छोट मुदा संस्‍कृति‍केँ छूबैत अछि‍। काल स्‍थान वि‍स्‍थापन आ वैशाखीपर जि‍नगीकेँ औसत मानल जा सकैत छैक।
       कोनो साहि‍त्‍यकेँ ता धरि‍ पूर्ण नहि‍ मानल जा सकैछ जा धरि‍ समाजक अंति‍म व्‍यक्‍ति‍सँ संबंधत भाषा साहि‍त्‍यकेँ जोड़ल नहि‍ गेल हुअए। “सर्व शि‍क्षा अभि‍यान‍” कथाकेँ पढ़़लाक वाद मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे दलि‍त, पि‍छड़ा आदि‍ वर्गक प्रति‍ सरकारी योजनाक ि‍नष्‍फल होएबाक कारण केर स्‍पष्‍टीकरण वास्‍तवि‍क लगैत अछि‍। पेटमे अन्नक फक्का नहि‍ हो आ पोथी मुफ्तमे भेटए, एहेन शि‍क्षाक स्‍थि‍ति‍पर प्रश्‍न चि‍न्ह ठाढ़ करव स्‍वाभावि‍क अछि‍। साम्‍यवादी सोच राखएबला कथाकार कथाक बहाने स्‍पष्‍ट करए चाहैत छथि‍ जे गरीबक मध्‍य जाति‍क आधारपर वि‍भाजन हमरा सबहक समाजक कलुष रूप थि‍क। छोट उद्येश्‍यपूर्ण कवि‍ताकेँ क्षणि‍का वा हाइकूक नाओ देल गेल मुदा लघुकथाकेँ की कहल जाए? लघुकथामे बि‍म्‍वक वि‍श्‍लेषण अति‍ क्‍लि‍ष्‍ट होइत अछि‍ मुदा “जाति‍वादी मराठी‍”मे मैथि‍ली भाषाक अस्‍ति‍त्‍वपर लागल जाति‍क कलंकक प्रस्‍तुति‍ सराहनीय अछि‍। थेथर मनुक्‍ख, बहुपत्‍नी वि‍वाह आ ि‍हजड़ा, स्‍त्री-बेटी वि‍आह आ गोरलगाइ, प्रति‍भा, अनुकम्‍पाक नौकरीक सभक वि‍षय-वस्‍तु छोट-छीन परंच सारगर्भित लागल। जेना हि‍न्‍दी साहि‍त्‍यक पत्र-पत्रि‍कामे चर्चित लेखक खुशबन्‍त सि‍ंह मात्र दू पॉति‍मे बहुत-रास गप्‍प लि‍खि‍ जाइत छथि‍ ठीक ओहि‍ना एहि‍ सभ लघुकथाकेँ पढ़ि‍ बुझना गेल।
जाति‍-पाति‍ लघुकथा तँ पूर्णत: बेच्‍छप लागल। एकटा डोम जाति‍क आइ.पी.एस. परि‍वीक्षाधीन अधि‍कारीमे जाति‍क गरानि‍ कोनो आत्‍मीय मनुक्‍खकेँ मर्माहि‍त कऽ सकैत अछि‍। मृत्‍युदंड आ वाणवीरक सामाजि‍क बि‍म्‍वक संग-संग सामन्‍तवादी, मीडि‍यासँ संबंधि‍त कथा सभकेँ वेजोड़ तँ नहि‍ मुदा मैिथली साहि‍त्‍यक लेल नूतन-धाराकेँ स्‍पर्श करैबला कथा जौं मानल जाए तँ कोनो दोख नहि‍।
       आव प्रश्‍न उठैत अछि‍ जे गल्‍प-गुच्‍छकेँ कोन रूपक मानल जाए। हमरा सबहक भाषाक संग दुर्भाग्‍य रहल जे कथाक वि‍षय वस्‍तुसँ वेशी भाषा वि‍ज्ञान, बि‍म्‍वक वि‍श्‍लेसन आ शब्‍द वि‍न्‍यासक कलाकारीपर वि‍शेष ध्‍यान देल जाइत अछि‍। साहि‍त्‍यक अधि‍कांश अधि‍ष्‍ठाता एकटा गप्‍पपर नहि‍ ध्‍यान देबए चाहैत छथि‍ जे रचनासँ समाजक परि‍दृश्‍यमे सम्‍यक जीवनक सनेश जाएत वा नहि‍। जाति‍क संग-संग संतुष्‍टीकरण केर छद्मसँ ऊपर उठव अनि‍वार्य अछि‍ नहि‍ तँ मैथि‍लीक अस्‍ति‍त्‍वपर प्रश्‍न चि‍न्‍ह ठाढ़ भऽ जएत। भौगोलि‍कीकरणक परि‍धि‍मे मैथि‍ली सभसँ बेसी प्रभावि‍त भेल छथि‍। सौति‍न भाषाक संग-संग पाश्‍चात्‍य संस्‍कृति‍क प्रभावसँ वैदेही टि‍म टि‍मा गेली। एहि‍ भाषामे नवल अर्चिस जड़एबाक लेल वर्ग संघर्षक स्‍थि‍ति‍सँ ऊपर उठि‍ कऽ कार्य करवाक चाही। पागक अभि‍प्राय जौं मैथि‍ल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्‍थक संग-संग बहुल झॉपल मुदा जनभाषाक संरक्षक वर्ग धरि‍ पहुँचवाक प्रयास कएल जाए तँ मैथि‍लीक दशामे फेरि‍ चारि‍ नहि‍ आठ गोट चान लागि‍ जाएत।
       एहि‍ कथा सबहक कथाकार कथाक शैली ओ वि‍वेचन जे हुअए एकर निर्णए पाठकपर छोड़ि‍ देवाक चाही मुदा रचनाक उद्येश्‍य स्‍पष्‍ट अछि‍। गजेन्‍द्र जी नि‍श्‍चि‍त रूपेँ एहि‍ कथा संग्रहक माध्‍यमसँ समाजमे अपन संस्‍कृति‍क रक्षा करैत नूतन सम्‍यक ज्‍येाति‍ जड़ाबए चाहैत छथि‍, जतऽ डोम, चमार, ब्राह्मण, राजपूत, मुसलमान ओ कायस्‍थ नहि‍ मात्र “मैथि‍ल‍” शब्‍दक व्‍योमक परि‍धि‍मे मि‍थि‍लाक चर्च कएल जाए।
दुर्भाग्‍य अछि‍ जे मैथि‍ली पोथीक समीक्षा करवामे आलोचना-प्रत्‍यालोचनाकेँ मूल बि‍म्‍व मानल जाइत छैक जखन की आन भाषामे रचनाकारक मनोवृति‍ आ दृष्‍टि‍कोणपर ध्‍यान देल जाइत अछि‍।  



नाटक- संकर्षण

मात्र १६ पृष्‍ठक नाटक, सुनबामे कनेक अनसोहाँत जकाँ लगैत अछि‍ मुदा जौं तन्‍मय भऽ कऽ पढ़ल जाए तँ स्‍पष्‍ट भऽ जाइत जे हि‍न्‍दी साहि‍त्‍यमे मात्र कि‍छु कथाक कथाकार श्री चन्‍द्रधर शर्मा गुलेरी जीकेँ कोना आ कि‍ए आत्‍मसात् कऽ लेल गेल?
संकर्षण सन अभि‍नेता ज‍ नाटकमे हुअए ओ‍मे ि‍वशेष भावक उपस्‍थि‍ति‍ स्‍वाभावि‍क अछि‍। अभि‍नेताक कोनो गुण नै‍ मुदा गजेन्‍द्र जी एकरा प्रधान नायक बना देलनि‍। समाजक कुहरैत अवस्‍थाक यएह सत्‍य रूप थि‍क, एक ि‍दश महीसक चरवाह आ दोसर दि‍शि‍ कलक्‍टरक चाटुकार। मि‍थि‍लाक समाजि‍क बिम्बकेँ स्‍पर्श करैत छोट नाटक संकर्षणमे नुक्कड़ नाटकक रूप अछि‍।हौ गोनर! पानि‍ कोना लागए देबैक एकरा। पएरक चमड़ा सड़त तँ फेर नवका आबि‍ जाएत। मुदा ई सड़ि‍ जाएत तखन कतएसँ एत।‍ कहबाक तात्‍पर्य जे ज‍ व्‍यक्‍ति‍केँ शरीरसँ बेसी कि‍छु कैंचाक जुत्ता वि‍शेष महत्‍वपूर्ण लगैत हुअए ओ‍ व्‍यक्‍ति‍मे जीवनक तादात्‍म्‍यक कोन प्रयोजन?
धर्मनीति‍सँ अर्थनीति‍ बेसी महत्‍वपूर्ण अछि‍। कालक बदलैत स्‍वरूपक ि‍चन्‍तन करबाक योग्‍य संभवत: ‍ नाटकक यएह उद्देश्‍य थि‍क, पर्दा उठत आ आधा धंटामे नाटक समाप्‍त। जीवनक नाटकमंडलीकेँ केन्‍द्रि‍त करए बला संकर्षण चि‍न्‍तन करबाक योग्‍य लागल। सभटा नाटकमे कोनो ने कोनो रूपेँ हास्‍य आ श्रंृगारक सम्‍मि‍लन होइत अछि‍ मुदा ठाँ अभाव कि‍एक तँ समाजक मनोवृत्ति‍केँ छुबैत नाटककेँ पढ़ि‍ कोनो कवि‍क एकटा कवि‍ताक एक पाँॅति‍ मोन पड़ि‍ गेल-
ठोप-ठोप चारक चुआठकेँ आंॅगुरसँ उपछैत रहल छी‍
गजेन्‍द्र जीक प्रयास छोट परंच अनुकरणीय लागल

त्‍वन्चाहन्‍च आ असंजाति‍ मन- जेना की नाअोसँ स्‍पष्‍ट भऽ जाइत अछि‍ जे दुनू काव्‍य ऐति‍हासि‍क धटनाकेँ बि‍म्‍वि‍त कऽ लि‍खल गेल। धर्म आ कर्मक्षेत्रक परि‍धि‍मे आर्य संस्‍कृति‍क वि‍वेचन नीक लागल। एहि‍ महाकाव्‍यक वि‍षयमे मात्र यएह कहल जा सकैत अछि‍ जे सुरेन्‍द्र झा सुमन, वैधनाथ मल्‍लि‍क वि‍धु आ मार्कण्‍डेय प्रवासी जीक काव्‍य लेखन परम्‍पराकेँ जीवंत रखवाक प्रयास कएल गेल।

बालमंडली आ कि‍शोर जगत- हम सभ गौरवान्‍वि‍त छी जे मैथि‍ली भाषा समग्र आर्य परि‍वारक भाषा समूहमे सभसँ सरस भाषा मानल जाइत अछि‍। साहि‍त्‍य चि‍न्‍तन सेहो पाठकक गणनाकेँ देखैत ककरोसँ कम नहि‍। मुदा एकटा पक्ष जे सभसँ कमजोर रहल ओ ि‍थक मैथि‍ली भाषा साहि‍त्‍यमे “बाल साहि‍त्‍यक दरि‍द्रता।‍” कहबाक लेल तँ बहुत रास लेखक वा कवि‍ अपनाकेँ बाल साहि‍त्‍यसँ जोड़वाक सतत् वाक् पटुता देखबैत छथि‍ मुदा जौं पूर्ण रूपसँ बाल साहि‍त्‍यक रचनाक गणना कएल जाए तँ जीवकांत जी सन मात्र कि‍छु साहि‍त्‍यकार छथि‍ जि‍नक लेखनी एहि‍ दि‍शामे क्रि‍याशील रहल। जखन की बाल साहि‍त्‍य जौं परि‍मार्जित नहि‍ हएत तँ ि‍नकट भवि‍ष्‍यमे मातृभाषाक स्‍वरूप वि‍गलि‍त भऽ सकैत अछि‍।
       एहि‍ दि‍शामे गजेन्‍द्र जीक प्रयाससँ कृतज्ञ होएबाक चाही जे कुरूक्षेत्रम अन्‍तर्मनक सातो खण्‍डमे सभसँ नीक खण्‍ड बाल मंडली। कि‍शोर जगतपर अपन लेखनीकेँ हाथसँ नहि‍ हृदयसँ लि‍खलन्‍हि‍।
       एहि‍ खण्‍डमे दू गोट बाल नाटक तैइस गोट बाल कथा, वर्णमाला शि‍क्षा आ एक सएसँ ऊपर बाल कवि‍ता देल गेल अछि‍। सभ बि‍म्‍वकेँ केन्‍द्रि‍त करैत लि‍खल गेल रचना सभक भाषा अत्‍यन्‍त सरल अछि‍। नेना-भुटकाकेँ एहने रचना चाही। जौं तत्‍सम मे बाल साहि‍त्‍य लि‍खल जाए तँ ओकर कोन प्रयोजन? कवि‍ता सभ तँ खूब नीक मानल जा सकैत अछि‍-
       आइ छुट्टी
       काल्हि‍ छुट्टी
       घूमब फि‍रब जाएब गाम......।
बाल बोधक लेल अलंकारसँ बेसी मनक चंचलता उपयोगी होइत छैक तँए एहि‍ खण्‍डकेँ आलोचनात्‍मक स्‍वरूपसँ देखब उचि‍त नहि‍।
नि‍ष्‍कर्ष-  सात खण्‍डमे वि‍भक्‍त एहि‍ पोथीमे साहि‍त्‍यक समग्र रसक स्‍वादन करएबाक प्रयास कएल गेल। मुदा एकर सभसँ पैघ नकारात्‍मक स्‍वरूप जे एकरा की मानल जाए? भऽ सकैत अछि‍ सभ धाराकेँ छूबि‍ गजेन्‍द्र जी मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे एकटा नव रूपक धारा केन्‍द्रि‍त करए चाहैत होथि‍।
एकटा पोथीमे प्रबन्‍ध, समालोचना, उपन्‍यास, गल्‍प, कवि‍ता संग्रह, महाकाव्‍यक संग-संग बाल साहि‍त्‍य पोथीकेँ वि‍शाल बना देलक। भऽ सकैत अछि‍ समीक्षक लोकनि‍क संग-संग ि‍कछु पाठककेँ नीक नहि‍ लागनि‍ मुदा हम एहि‍ प्रकारक प्रयोगक स्‍वागत करब उचि‍त बूझैत छी। ओना पाठकक सुवि‍धाक लेल अलग-अलग सेहो प्रकाशि‍त कएल गेल अछि‍।
       सभसँ बेसी प्रकाशक धन्‍यवादक पात्र छथि‍ जे एतेक वि‍शाल पोथीक नीक रूपेँ आ सम्‍यक् मूल्‍यमे प्रकाशन कएलन्‍हि‍। भाषा सम्‍पादन सेहो नीक लागल, शाब्‍दि‍क आ व्‍याकरणीय अशुद्धता अत्‍यन्‍त न्‍यून अछि‍।

पाेथीक नाओ- कुरूक्षेत्रम् अन्‍तर्मनक
लेखक- गजेन्‍द्र ठाकुर

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