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Sunday, April 8, 2012

चरि‍त्र चि‍त्रणक वाजीगर-जगदीश प्रसाद मंडल :: मंत्रेश्वर झा


पछि‍ला कि‍छु वर्षमे मैथि‍ली साहि‍त्‍यक इति‍हासमे जगदीश प्रसाद मंडल धूमकेतु जकाँ उगल आ चमकल छथि‍। संप्रति‍ हुनकर दू उपन्‍यास ‘जि‍नगीक जीत’ आ ‘मौलाइल गाछक फूल’ हमरा समक्ष अछि‍। दुनू उपन्‍यासकेँ मनोयोगसँ पढ़ि‍ चुकल छी। रोचक भाषा आ शैलीमे लि‍खल हि‍नकर दुनू उपन्‍यास ग्रामीण जीवनक चि‍न्‍तन आ ऊहापोहकेँ सजीव चि‍त्रण करैत अछि‍। जइ ‍गाम घरक कथा सभ मंडलजी उठाए ओकरा परि‍णति‍ तक पहुँचओने छथि‍ तइ गाम घरक एतेक सूक्ष्‍म आ वि‍स्‍तृत वि‍वरण मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे ऐसँ पूर्व कमे भेल अछि‍।
‘जि‍नगीक जीत’ उपन्‍यासमे कतेको एहन चरि‍त्र उभरल अछि‍ जे कोनो पाठककेँ प्रभावि‍त केने बि‍ना नै रहत। उदाहरण स्‍वरूप बचेलाल आ सुमि‍त्राक चरि‍त्र देखल जाए, शि‍वकुमारकेँ नोकरी होइते बचेलाल इस्‍कूलमे त्‍याग-पत्र दऽ देलक। बचेलालक त्‍यागपत्रसँ सौंसे गाम टि‍का-टि‍प्‍पणी चलए लागल। कि‍छु गोटेकेँ दुख ऐ‍‍‍ दुआरे होइत जे बेर-बेगरतामे पाइसँ मदति‍ भऽ जाइत। कि‍छु गोटेकेँ खुशि‍यो होइत कि‍एक तँ भने आमदनी बन्न भऽ गेलनि‍। मुदा सुमि‍त्राकेँ ने हरख आ ने वि‍स्‍मय। कि‍एक तँ ओ नीक नहाँति‍ बुझैत जे जत्ते मनुक्‍खक भीतर कमाइक शक्‍ति‍ होइत छै, ओते तँ नोकरीमे नहि‍ये होइत छैक।‍
एे उपन्‍यासमे महन्‍थी कोना चलैत अछि‍, महन्‍थ कोन-कोन कारनामा करैत अछि‍ तकरो अद्भुत चि‍त्रण भेल अछि‍। ‍ऊपरका हन्नामे आठ गो कोठली छै। आठो कोठली असगरे रखने अछि‍।... पूजाक बाद सभ अपन-अपन ठरपर चल जाइए। तकर बाद लीला शुरू होइ छै। मुदा बेसी नै कहबह। ऐ प्रकारे बेसी नै कहबह कहि‍ कऽ महन्‍थक चरि‍त्रक पूरा वर्णन स्‍पष्‍ट भऽ जाइत अछि‍। दू-तीन दशक पूर्व उच्‍चतम न्‍यायालय पटना उच्‍च न्‍यायालयक कोनो भ्रष्‍ट आदेशकेँ नि‍रस्‍त करैत बारंबार यएह टि‍प्‍पणी केने छल, “We say no more
मौलाइल गाछक फूल उपन्‍यास सेहो ओहि‍ना उद्देश्‍यपूर्ण अछि‍ जेना जि‍नगीक जीत। मुदा ऐ उपन्‍यासमे आदर्शवाद कने बेसी प्रकट भेल अछि‍। रमाकान्‍तक जे चरि‍त्र प्रस्‍तुत भेल अछि‍ तकर उदाहरण भेटब ओतेक सुलभ नै‍। चाह पीब रमाकान्‍त कहलखि‍न, देखू हम अप्‍पन सभ खेत समाजकेँ दऽ देलि‍ऐक। आब हमरा कोनो मतलब आेइ‍ खेतसँ नै‍‍ अछि‍। दोसर दि‍स सुबुधक चरि‍त्र अछि‍ जे नोकरी छोड़ि‍ गामक छोट-पैघ सबहक धीयापूताकेँ पढ़ेबा लेल त्‍यागक आदर्श प्रस्‍तुत करैत अछि‍। एहेन चरि‍त्र सभ नि‍स्‍संदेह गामकेँ पुनर्जीवि‍त आ पुनर्गठि‍त करबामे प्रेरणाक काज करत।
दुनू उपन्‍यास सभ दृष्‍टि‍येँ उत्‍कृष्‍ठ अछि‍ आ मैथि‍ली उपन्‍यास लेखनमे नव आयाम गढ़ैत अछि‍। मंडल जीक कथा संग्रह गामक जि‍नगी आओरो बेसी श्रेष्‍ठ रचना अछि‍। ऐ संग्रहमे कुल उनैस कथा संकलि‍त अछि‍। ऐ संग्रहक लगभग सभ कथा प्रकाशनसँ पूर्व मंडलजी हमरा पठौने रहथि‍। तहि‍या हम ि‍दल्‍लीमे रही। हुनकर आग्रह रहनि‍ जे हम कथाक पांडुलि‍पि‍केँ शुद्ध कऽ के हुनका पठा दि‍अनि‍। हमरा आश्चर्य भेल छल जे हमरा कोना ओ ऐ लेल उपयुक्‍त बुझलनि‍। मंडल जीक कथा सभ पढ़ि‍ हम ततेक प्रभावि‍त भेल रही जे हमरा पांड़लि‍पि‍मे कतौ कोनो चेन्‍ह लगाएब उपयुक्‍त नै लागल। हम दूरभाषपर जगदीश मंडलजी आ हुनक सुपुत्र उमेश मंडलकेँ कहलि‍एनि‍ जे जखन हम पटना आपस आएब तखन स्‍वयं हुनकासँ भेँट कए अपन सुक्षाव देबनि‍। कोनो रचनात्‍मक लेखनकेँ आलोचना तँ भऽ सकैत अछि‍, ओकर गुण-दोषकेँ वि‍वेचन तँ भऽ सकैत अछि‍, ओकर हठात् काटल-छाँटल नै जा सकैत अछि‍। से कएलो नै जेबाक चाही। संयोगसँ ऐ बीच गजेन्‍द्र ठाकुर जीकेँ मंडल जीक पांड़लि‍पि‍ प्राप्‍त भेलनि‍ आ ओ सफल जौहरी जकाँ मंडल जीक कथा, उपन्‍यास, नाटक आदि‍ कतोक वि‍धाक रचनाकेँ वि‍वि‍ध रूपमे प्रकाशमे अनलखि‍न। ऐ लेल ओ अशेष धन्‍यवादक पात्र छथि‍।
गामक जि‍नगीक सभ कथा ग्राम्‍य जीवनकेँ कि‍छु अनछुअल प्रसंगकेँ मार्मिक चि‍त्रण करैत अछि‍। भैंटक लावा, बि‍साँढ़, अनेरूआ बेटा, डीहक बटबारा, घरदेखि‍या, बाबी, जीवि‍का, ठेलाबला, बोनि‍हारि‍न मरनी, इत्‍यादि‍ ऐ संग्रहक उत्‍कृष्‍ठ कथा सभ छन्‍हि‍। अपन उपन्‍यासे जकाँ मंडल जीक कथा सभ जि‍जीवि‍षा आ व्‍यावहारि‍क आदर्शक उत्‍कंठासँ भरल अछि‍।
मंडलजी जइ तरहेँ नि‍रंतरतामे वि‍वि‍ध वि‍धाक रचना कऽ रहल छथि‍ से भवि‍ष्‍यमे हुनकर वि‍शेष अवदान लेल वि‍श्वास जगबैत अछि‍।
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