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Sunday, April 8, 2012

जगदीश प्रसाद मंडलक उपन्‍यास- “‍मौलाइल गाछक फूल” :: धीरेन्‍द्र कुमार


मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे यथेष्‍ट सामग्री लऽ प्रवेश केनि‍हार उपन्‍यासकार/ कथाकारमे यशस्‍वी एक लेखक छथि श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल‍। २००२मे प्रवेश केनि‍हार मंडलजीक सामग्री सभकेँ आश्चर्यचकि‍त कऽ दैत छथि‍। एहन लगैत अछि‍ जे जीवनक चि‍ंतक, समाजक चि‍ंतन आ आस-पासक होइत घटनाक्रमपर सृजन-दृष्‍टि‍ हि‍नकर पहि‍नेसँ कार्यरत रहनि‍ आ शब्‍द-बद्ध करैत रहलाह आ अनुकूल समए भेटैत अंकुरि‍त भेलाह आ शीघ्रे एकटा गाछक पैघ स्‍वरूप धऽ लेलनि‍।

प्रस्‍तुत कृति‍ ग्राम्‍य-परि‍वेशक ससक्‍त अभि‍व्‍यक्‍ति‍मे सफल अछि‍। ग्राम्‍य-जीवनक चि‍त्रणक कमी नै अछि‍ मुदा हि‍नकर चि‍त्रण आर सभसँ अलग अछि‍। गामक छोट-छी‍न मुद्दाकेँ पकड़ैमे यथास्‍थान प्रस्‍तुति‍करण करैमे, चि‍त्रणक सघनतामे मंडलजी सि‍द्धस्‍त छथि‍।

मंडलजी हि‍न्‍दी साहि‍त्‍यसँ एम.ए. केने छथि‍। हि‍नका हि‍ंदी साहि‍त्‍यक कतेको उपन्‍यास-कथा पढ़बाक अवसर भेटल हेतनि‍। हि‍नक मौलाइल गाछक फूल उपन्‍यास पढ़लापर स्‍पष्‍ट प्रतीत होइत अछि‍ जे प्रेमचन्‍दसँ बेसी प्रभावि‍त छथि‍। गाम-घरमे रहि‍ कऽ अनुखन समाजक कल्‍याणक भावना हि‍नकामे छन्‍हि। जइ कारणें रमाकांत उदारवादी पात्रक रूपमे प्रति‍ष्‍ठि‍त छथि‍। व्‍यक्‍ति‍गत रूपसँ परि‍पूर्ण छथि‍। कि‍यो एकटा परि‍वारक पात्र एहन नै‍‍ अछि‍ जे आदर्शवादी रमाकांतक व्‍यवहारक वि‍रोध केने होथि‍। गाम-घरसँ पढ़ि‍-लि‍ख शहरमे नीक पदपर स्‍थापि‍त भऽ बेटा-कनि‍याँ गामक संस्‍कारसँ परि‍पूर्ण अछि‍। आजुक व्‍यस्‍तता, पाइक महत्ता आ छद्म-मुखौटाधारी एकोटा पात्र रमाकांतक परि‍वारमे नै भेटत।

उपन्‍यासकारक वि‍चार-दृष्‍टि‍ समाजमे मूल्‍य स्‍थापि‍त करब अछि‍ तँए ओइ दृष्‍टि‍सँ उपन्‍यासकेँ देखक चाही। जे अछि‍ जे होइत अछि‍ तइ‍ माध्‍यमसँ अबैत भवि‍ष्‍यकेँ सचेत नै‍‍ कऽ मानवीय-दृष्‍टि‍सँ आदर्श समाजक स्‍थापनापर हि‍नकर वि‍श्वास छन्‍हि‍।

भाषा हि‍नकर वि‍कासशील अछि‍। वि‍शेष वर्गमे स्‍थापि‍त भाषासँ अलग व्‍यवहारक शब्‍द आ भाषा हि‍नक उपन्‍यासमे छन्‍हि। तइ‍ कारणे पाठककेँ अपन समाजक बोध होइत छन्‍हि।
मंडल जीक उपन्‍यास और सेवासदनक आदर्श एक्के अछि‍। अपन जीवनकालमे मंडलजी मार्क्‍सवादसँ प्रभावि‍त छथि‍। एकर स्‍पष्‍ट दर्शन अपनेकेँ जमीन वि‍तरण प्रणालीमे अवस्‍से देखबामे आओत। कि‍छु लेखक जमीन छि‍नए लेल ठाढ़ समाजक चि‍त्रण केनि‍हार भेटताह मुदा, मंडल जीक पात्र रमाकांत अपन मोने, प्रसन्‍न्‍ा मोने वि‍तरण करैत अछि‍।

श्रृति‍ प्रकाशनसँ प्रकाशि‍त पोथी‍ सुन्‍दर आ छपाइक आकर्षक आवरणसँ युक्‍त अछि‍।

पोथीक नाओं- मौलाइल गाछक फूल
वि‍धा- उपन्‍यास
उपन्‍यासकार- जगदीश प्रसाद मंडल
प्रकाशन- श्रृति‍ प्रकाशन, दि‍ल्‍ली
मूल्‍य- २५० टाका
१९. ०६. २०१०

धीरेन्‍द्र कुमार-१९५४
नि‍र्मलीसुपौल, बि‍हार।
(वरीय व्‍याख्‍याता, हि‍ंदी वि‍भाग, सी.एम. बी. कॉलेजडेवढ़मधुबनी)

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