Pages

Saturday, April 7, 2012

मैथिली भाषा साहित्य : बीसम शताब्दी - प्रेमशंकर सिंह पर गजेन्द्र ठाकुर


मैथिली भाषा साहित्य : बीसम शताब्दी - प्रेमशंकर सिंहजीक एहि निबन्ध-प्रबन्ध-समालोचना संग्रहमे मैथिली साहित्यक २०म शताब्दी आ एक्कैसम शताब्दीक पहिल दशकक विभिन्न प्रिय-अप्रिय पक्षपर चर्चा भेल अछि। अप्रिय पक्ष अबैत अछि एहि द्वारे जे राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक समस्या-परिवर्तन आ एकीकरणक प्रक्रिया कखनो काल परस्पर विरोधी होइत अछि।

मैथिली साहित्यक पुरान सन्दर्भ मैथिली भाषा आ साहित्यमे वर्णित अछि। लोकगाथा मे मणिपद्मक लोकगाथाक क्षेत्रमे अवदानकेँ रेखांकित करैत लोकगाथाक चर्चा भेल अछि । लोकनाट्य मे मैथिली लोकनाट्यक विस्तृत उल्लेख अछि। बीसम शताब्दी- स्वर्ण युगमे मैथिली साहित्यक सए बर्खक सर्वेक्षण अछि। पारंपरिक नाटक मे मैथिलीक आ मैथिलीमे अनूदित पारम्परिक नाटकक चर्चा अछि।सामाजिक विवर्तक जीवन झा मैथिली नाट्य साहित्यमे हुनका द्वारा आनल नूतन कथ्य-शिल्पकेँ रेखांकित करैत अछि। हरिमोहन झाक परवर्त्ती रचनाकारपर प्रभाव हरिमोहन झा पर समीक्षा अछि। मैथिली आन्दोलनक सजग प्रहरी जयकान्त मिश्रक अवदानक आधारित अछि। संस्मरण साहित्य मे मणिपद्मक हुनकासँ भेँट भेल छल क सन्दर्भमे संस्मरण साहित्यपर चर्चा भेल अछि। अमरक एकांकी: सामाजिक यथार्थ मे अमरजीक एहि विधा सभक तँ मायानन्दिक रेडियो शिल्पु मे मायानन्द मिश्रक एहि विधाक सर्वेक्षण अछि। चेतना समिति ओ नाट्यमंच मे चेतना समिति द्वारा कएल रचनात्मक कार्यक विवरण अछि।

एहि सभ आलेखमे सत्यक आ कलाक कार्यक सौंदर्यीकृत अवलोकन, संस्था सभक निर्माण वा वर्तमानमे संपूर्ण समुदायक धर्म-नस्ल-पंथ भेद रहित आर्थिक आ सामाजिक हितपर आधारित सुधारक आवश्यकता, महिला-लेखन आ बाल-साहित्यक स्थान-स्थापर चर्चा, यथासंभव मेडियोक्रिटी चिन्हित करबाक प्रयास, मूल्यांकनमे ककरो प्रति पूर्वाग्रह वा घृणा नहि राखब- ई सभटा समीक्षाक आवश्यक तत्वक ध्यान राखल गेल अछि। एक पाँतिक वक्तव्य कतहु नहि भेटत, पूर्ण विवेचन भेटत।

कथाकार-कविक व्यक्तिगत जिनगीक अदृढ़ता, चाहे ओ वादक प्रति होअए वा जाति-धर्मक प्रति, साहित्यमे देखार भइए जाइत छैक। आ एहने साहित्य बेर-बेर अपनाकेँ परिमार्जित-परिवर्धित करितो मूल दोषसँ दूर नहि भऽ पबैत अछि, अपन व्यक्तिगत प्रशंसा आ दोसराक प्रति आक्षेपक कथा-कवितामे ब्लैकमेलर साहित्यकार द्वारा प्रयोग करबाक गुंजाइश रहैत अछि। मुदा तथ्यपूर्ण मूल्यांकनसँ लेखकक एहि प्रवृत्तिकेँ प्रेमशंकर सिंह चिन्हित करैत छथि। जातिवाद-सांप्रदायिकतावाद आबिये जाइत छैक, तकरा चिन्हित करैत छथि, हीन भावनासँ ग्रस्त साहित्य कल्याणकारी कोना भऽ सकत? ओ ई सेहो चिन्हित करैत छथि। मैथिली साहित्य, जतए पाठकक संख्या शून्य छैक, एक साहित्यकार दोसराक समीक्षा करैत अछि आ एतए व्यक्तिगत अहम् आ ब्लैकमेलिंगक पूर्ण गुंजाइश छैक। अहाँ दू-चारिटा कवि-कथाकार सम्मेलनमे चलि जाऊ, उद्घोषकक उद्घोषणा आ थोपड़ी उद्घोषकक आ साहित्यकारक पूर्वाग्रहकेँ चिन्हित कऽ देत। एहि सन्दर्भमे ई संग्रह एकटा नूतन दृष्टिकोण उपस्थित करैत अछि, बदलैत सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक-धार्मिक समीकरणक परिप्रेक्ष्यमे एकभग्गू प्रस्तुतिक रेखांकन करैत अछि आ गपाष्टक आ समीक्षाक अंतरकेँ चिन्हित करैत अछि।

No comments:

Post a Comment